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ईरान के रक्षा मंत्री ने अपने आर्मिनियन समकक्ष से मुलाक़ात में कहा: तेहरान क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय और भू-राजनीतिक सीमाओं में किसी भी प्रकार के परिवर्तन का विरोधी है।

इस्लामी गणराज्य ईरान के रक्षा मंत्री ने अपने  आर्मिनियन समकक्ष से मुलाक़ात में क्षेत्रीय सीमाओं की स्थिरता और क्षेत्रीय अखंडता को ईरान की अटल नीतियों में से एक बताया और कहा: ईरान और आर्मिनिया की साझा सीमा दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक संपर्क का मार्ग है और तेहरान इस सीमा में किसी भी तरह की छेड़छाड़ की अनुमति नहीं देगा।

ब्रिगेडियर जनरल पायलट अज़ीज़ नसीरज़ादे ने मंगलवार को येरवान में आर्मिनिया के रक्षा मंत्री सोरन पापिक्यान से मुलाक़ात की। इस दौरान उन्होंने क़फ़क़ाज़ क्षेत्र में बाहरी शक्तियों की उपस्थिति पर चेतावनी देते हुए कहा: क्षेत्र की सुरक्षा की रूपरेखा खुद क्षेत्रीय देशों द्वारा तैयार की जानी चाहिए क्योंकि बाहरी हस्तक्षेप केवल और अधिक अस्थिरता को जन्म देगा।

 इस्लामी गणराज्य ईरान के रक्षा मंत्री ने आर्मिनिया के प्रधानमंत्री से ईरान के सर्वोच्च नेता की मुलाकात के दौरान दिए गए बयानों का हवाला देते हुए कहा: ईरान आर्मिनिया के साथ संबंधों के विस्तार पर ज़ोर देता है और यह सहयोग परस्पर हितों पर आधारित होगा तथा बाहरी शक्तियों के दबाव से स्वतंत्र रूप से जारी रहेगा।

 ब्रिगेडियर जनरल पायलट अज़ीज़ नसीरज़ादे ने दोनों देशों के संबंधों के रणनीतिक महत्व पर बल देते हुए कहा: ईरान की पड़ोसी नीति में आर्मिनिया एक विशेष स्थान रखता है। तेहरान और येरेवान के संबंध मजबूत ऐतिहासिक और सांस्कृतिक आधारों पर क़ायेम हैं और कफ़क़ाज़ क्षेत्र में स्थायी शांति क्षेत्रीय विकास के लिए व्यापक अवसर उत्पन्न करेगी।

 रक्षा मंत्री ने ईरान में मुसलमानों और आर्मिनियाई लोगों के शांतिपूर्ण जीवन की ओर इशारा करते हुए कहा कि यह धार्मिक सहिष्णुता और संवाद का एक सफ़ल मॉडल है। उन्होंने आगे कहा: इस्लामी गणराज्य ईरान की मूल नीति सभी पड़ोसी देशों, विशेष रूप से आर्मिनिया के साथ संबंधों को सुदृढ़ करना है और इस रास्ते में कोई भी बाधा रुकावट नहीं डाल सकती।

 ब्रिगेडियर जनरल नसीरज़ादे ने आज़रबाइजान गणराज्य और आर्मिनिया के बीच शांति वार्ता की प्रक्रिया का समर्थन करते हुए कहा:

 इस्लामी गणराज्य ईरान शांति समझौतों पर हस्ताक्षर का समर्थन करता है और इस प्रक्रिया को तेज़ करने के लिए तैयार है।

 बैठक के अंत में दोनों देशों के रक्षा मंत्रालयों के बीच सहमति पत्र हस्ताक्षर किए गए।

 

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सलह मीरज़ाई ने कहा,शहीद रईसी रिज़वानुल्लाह अलैह ने इस्लामी व्यवस्था के मानकों को ऊँचा किया, और यह ज़रूरी है कि सभी उच्च और मध्य स्तर के प्रबंधक शहीद रईसी जैसे आदर्श और किरदार को अपनाएँ।

मजलिस-ए-ख़बरगान-ए-रहबरी के रुक्न हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सलह मीरज़ाई ने ख़ादिम-ए-इमाम रज़ा (अ.स.) और ख़ादिम-ए-मिल्लत की शहादत की पहली बरसी के मौके पर कहा, आयतुल्लाह सैय्यद इब्राहीम रईसी जुम्हूरी इस्लामी ईरान के महबूब, आवामी और मुजाहिदाना सदर थे।

उन्होंने रहबर-ए-मुअज़्ज़म-ए-इंक़ेलाब-ए-इस्लामी के इस बयान को शहीद रईसी की सबसे अहम ख़ासियत क़रार दिया कि वह "मरदी" यानी अवामी थे। इस ख़ासियत को बयान करते हुए उन्होंने कहा,जैसा कि अमीरुल मोमिनीन इमाम अली अलैहिस्सलाम ने नहजुल बलाग़ा के ख़ुत्बा नंबर 53 में मालिक अश्तर से फ़रमाया।

فَلاَ تُطَوِّلَنَّ احْتِجَابَکَ عَنْ رَعِیَّتِکَ، فَإِنَّ احْتِجَابَ الْوُلاَةِ عَنِ الرَّعِیَّةِ شُعْبَةٌ مِنَ الضِّیقِ، وَقِلَّةُ عِلْم بِالاُْمُورِ؛ وَالاِحْتِجَابُ مِنْهُمْ یَقْطَعُ عَنْهُمْ عِلْمَ مَا احْتَجَبُوا دُونَهُ، فَیَصْغُرُ عِنْدَهُمُ الْکَبِیرُ وَیَعْظُمُ الصَّغِیرُ، وَیَقْبُحُ الْحَسَنُ وَیَحْسُنُ الْقَبِیحُ، وَیُشَابُ الْحَقُّ بِالْبَاطِلِ؛ وَإِنَّمَا الْوَالِی بَشَرٌ لاَ یَعْرِفُ مَا تَوَارَی عَنْهُ النَّاسُ بِهِ مِنَ الاُْمُورِ، وَلَیْسَتْ عَلَی الْحَقِّ سِمَاتٌ تُعْرَفُ بِهَا ضُرُوبُ الصِّدْقِ مِنَ الْکَذِبِ ...

यह ध्यान रखना चाहिए कि प्रजा से लंबे समय तक ओझल रहना ठीक नहीं, क्योंकि शासकों का जनता से दूर रहना एक तरह की नज़रता (संकीर्णता) और हालात से बेखबरी का कारण बनता है।यह दूरी उन्हें उन मामलों की जानकारी से भी वंचित कर देती है जिनसे वे अनजान रहते हैं।

नतीजा यह होता है कि बड़ी बातें उनकी नज़र में छोटी और छोटी बातें बड़ी लगने लगती हैं, अच्छाई बुराई बन जाती है और बुराई अच्छाई, और हक़ (सच) बातिल (झूठ) के साथ गडमड हो जाता है। और शासक भी आखिर एक इंसान होता है, जो उन बातों से अनजान रह सकता है जिन्हें लोग उससे छिपा लेते हैं। और हक़ की पेशानी (माथे) पर कोई निशान नहीं होता जिससे झूठ और सच की पहचान की जा सके।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सलह मीरज़ाई ने कहा,शहीद रईसी इस वसीयत (नसीहत) पर अमल करने की भरपूर कोशिश करते थे। वे जनता के बीच रहते थे, उनकी बातें सुनते थे और उनके दुख-दर्द में शरीक होते थे।

उन्होंने आगे कहा, शहीद रईसी जनता के साथ जीने और उनके सुख-दुख में भाग लेने को अपना फ़र्ज़ समझते थे और यही बात उनकी थकान न मानने वाली सेवा का राज़ थी। वे सिर्फ राष्ट्रपति नहीं थे बल्कि एक ऐसे ईमानदार ख़ादिम थे जिनका शासकीय तौर-तरीक़ा भविष्य के सभी शासकों के लिए एक रौशन नमूना (प्रकाशमान आदर्श) है।

 

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन आगा तेहरानी ने शहीद रईसी की वैज्ञानिक, नैतिक और प्रबंधकीय विशेषताओं का वर्णन करते हुए कहा कि जनप्रियता न्याय-प्रियता और उनकी विलक्षण फकाहत शहीद राष्ट्रपति रईसी की प्रमुख और उत्कृष्ट विशेषताएँ थीं।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मौलाना मुर्तज़ा आगा तेहरानी, जो कि ईरान की संसद की सांस्कृतिक समिति (कमीशन) के अध्यक्ष हैं, ने आज दोपहर क़ुम स्थित हज़रत फातिमा मअसूमा (स.ल) मस्जिद में आयतुल्लाह सैय्यद इब्राहीम रईसी की शहादत की सालगिरह पर आयोजित समारोह में भाषण दिया।

आगा तेहरानी ने इस कार्यक्रम में शहीद आयतुल्लाह रईसी की विशेषताओं की ओर इशारा करते हुए कहा,शहीद रईसी की सबसे अहम विशेषताओं में से एक उनका धार्मिक ज्ञान और उनकी विद्वता थी। वे एक पढ़े-लिखे और मुज्तहिद फकीह थे, और यही विशेषता उनके न्यायपूर्ण और सूझबूझ भरे निर्णयों की बुनियाद थी।

संसद की सांस्कृतिक समिति के अध्यक्ष ने कहा،न्याय (अदल) शहीद रईसी का सबसे प्रमुख नैतिक गुण था। उनका न्याय हर आम व खास के बीच मशहूर था। वे जिस भी पद पर रहे, न्याय को हमेशा अपने फैसलों का केंद्र बनाया।

हुज्जतुल इस्लाम आगा तेहरानी ने जनप्रियत को भी शहीद रईसी की एक खास विशेषता बताया और कहा,मेरे विचार से, उनका मर्दमी होना उनके तलबगी (धार्मिक शिक्षा और सेवा) जीवन से जुड़ा था, क्योंकि एक तलबा से सबसे अहम अपेक्षा होती है कि वह जनता से घनिष्ठ संबंध रखे और उनकी समस्याओं को समझे। शहीद रईसी युवावस्था से ही जनता के साथ थे और हमेशा उनके बीच मौजूद रहते थे।

उन्होंने एक निजी मुलाक़ात का ज़िक्र करते हुए कहा,एक बार मैंने उनसे कहा कि यह खुदा की एक खास नेमत है कि आप हौज़ा ए इल्मिया में पढ़े हैं। आप एक मुज्तहिद हैं और आपको अपने इस इज्तेहाद का उपयोग अहम मौकों पर ज़रूर करना चाहिए।

उन्होंने बताया कि संसद में एक गंभीर मतभेद के दौरान, जो कई घंटों तक चल सकता था शहीद रईसी ने अपनी फिकही सूझबूझ से उस मुद्दे को तुरंत सुलझा दिया।

आगा तेहरानी ने आगे कहा,राष्ट्रपति पद पर एक मुज्तहिद का होना एक दुर्लभ और अत्यंत मूल्यवान घटना थी। दुर्भाग्यवश कुछ जिम्मेदार पदों पर ऐसे लोग भी बैठे होते हैं जो इस्लाम की गहराई से परिचित नहीं होते और इससे कभी-कभी समस्याएं उत्पन्न होती हैं।

अंत में, उन्होंने विलायत-ए-फकीह की अहमियत पर बल देते हुए कहा,हमारे लिए एक मूलभूत सिद्धांत यह है कि 'वली-ए-फकीह की हम पर विलायत है लेकिन कुछ लोग ऐसे व्यवहार करते हैं जैसे फकीह पर उनकी विलायत हो जबकि ये दोनों सोचें बिल्कुल अलग हैं।

 

इस्लामी क्रांति के नेता ने मंगलवार, 20 मई, 2025 की सुबह शहीद रईसी और अन्य शोहदा ए ख़िदमत, कुछ उच्च पदस्थ अधिकारियों और शहीदों के परिवारों के साथ बैठक मे शहीद आले-हाशिम, शहीद अमीर अब्दुल्लाहियान, शहीद हेलीकॉप्टर चालक दल के सदस्यों, पूर्वी अज़रबैजान प्रांत के शहीद गवर्नर और शहीद सुरक्षा कमांडर को श्रद्धांजलि दी, जो शहीद रईसी के साथ मारे गए।

मंगलवार, 20 मई, 2025 की सुबह, इस्लामी क्रांति के नेता ने शहीद रईसी और अन्य 'शोहदा ए ख़िदमत', कुछ उच्च पदस्थ अधिकारियों और शहीदों के परिवारों के साथ एक बैठक में उन्हें श्रद्धांजलि दी। उन्होंने शहीद अल-हाशिम, शहीद अमीर अब्दुल्लाहियन, शहीद हेलीकॉप्टर चालक दल के सदस्यों, पूर्वी अज़रबैजान प्रांत के शहीद गवर्नर और शहीद सुरक्षा कमांडर को श्रद्धांजलि दी, जो शहीद रईसी के साथ मारे गए।

सर्वोच्च नेता सय्यद अली खामेनेई ने कहा कि इन शहीदों को श्रद्धांजलि देने का मुख्य उद्देश्य चिंतन करना और सबक सीखना है, और शहीद राष्ट्रपति के हार्दिक, मौखिक और व्यावहारिक गुणों का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि अजीज रईसी में इलाही सरकार के अधिकारी के सभी गुण थे और उन्होंने अपने अथक प्रयासों से लोगों और राष्ट्र का सम्मान और दर्जा बढ़ाया, और उनका यह दृष्टिकोण हम सभी अधिकारियों, युवाओं और हमारे बाद आने वाले लोगों के लिए एक बड़ा सबक है।

उन्होंने फिरौन के शासन से दूर होकर ईश्वरीय शासन के मार्ग पर आगे बढ़ने को देश चलाने के लिए एक महत्वपूर्ण मानदंड बताया और शहीद रईसी को इसका आदर्श उदाहरण बताया। इस्लामी क्रांति के नेता ने पवित्र कुरान की आयतों का हवाला देते हुए कहा कि खुद को श्रेष्ठ समझना और लोगों को तुच्छ समझना और अपनी जिम्मेदारी लोगों के कंधों पर डालना फिरौन के शासन की विशेषताएं हैं और शहीद रईसी इन चीजों से पूरी तरह से रहित थे और खुद को लोगों की श्रेणी में और कभी-कभी आम लोगों से भी कमतर समझते थे और इसी विचारधारा के साथ देश चलाया। उन्होंने ईश्वर के बंदों की सेवा में अपनी पूरी ऊर्जा लगाने और अपने पद से प्राप्त राजनीतिक और सामाजिक स्थिति से किसी भी व्यक्तिगत लाभ से बचने को शहीद रईसी से एक महान सबक बताया और कहा कि इस्लामी व्यवस्था में ऐसे लोग कम नहीं हैं जिनमें ये विशेषताएं हैं, लेकिन इन विशेषताओं और सबक को सामान्य संस्कृति में बदल दिया जाना चाहिए। आयतुल्लाह खामेनेई ने किसी भी व्यक्ति के दिल, जुबान और कामों को उसके व्यक्तित्व की पहचान के तीन मुख्य तत्व बताते हुए कहा कि शहीद रईसी के पास अल्लाह से डरने और उसे याद करने वाला दिल, साफ और सच्ची जुबान और अथक और लगातार काम करने की क्षमता थी।

उन्होंने कहा कि शहीद रईसी ने कोई पद संभाला हो या नहीं, लेकिन जीवन भर अल्लाह के प्रति समर्पण और विनम्रता, प्रार्थना, हिमायत और मानवता उनकी निरंतर विशेषताओं में से एक थी और उनका दिल लोगों के प्रति दया से भरा था और लोगों से किसी भी तरह की दुर्भावना, अपेक्षा या संदेह के बिना, वह हमेशा अपनी गंभीर जिम्मेदारियों को पूरा करने के बारे में सोचते थे।

इस्लामिक क्रांति के नेता ने शहीद रईसी की भाषा को घरेलू मुद्दों, यहां तक ​​कि कूटनीतिक क्षेत्र में भी निष्पक्ष और सत्यनिष्ठ बताया और कहा कि रईसी स्पष्ट रुख अपनाते थे और दुश्मन को यह दावा करने का मौका नहीं देते थे कि उन्होंने धमकी, लालच या धोखे से ईरान को बातचीत की मेज पर लाया है।

उन्होंने ईरान के साथ सीधी बातचीत पर दूसरे पक्ष के जोर को ईरान को प्रभावित करने के लिए दुष्प्रचार की रणनीति बताया और कहा कि शाहिद रईसी ने उन्हें यह मौका नहीं दिया, हालांकि उनके समय में वर्तमान की तरह अप्रत्यक्ष वार्ताएं होती थीं, जो कभी फलदायी नहीं रहीं और अब भी हमें नहीं लगता कि ये वार्ताएं किसी नतीजे पर पहुंचेंगी। इसी तरह अयातुल्ला खामेनेई ने अमेरिकियों को तुच्छ बातों से दूर रहने की चेतावनी देते हुए कहा कि अमेरिकियों का यह कहना कि वे ईरान को यूरेनियम संवर्धन नहीं करने देंगे, उनके समय से परे है और देश में कोई भी उनका और उनकी अनुमति का इंतजार नहीं कर रहा है और इस्लामिक रिपब्लिक अपनी नीति और पद्धति के अनुसार आगे बढ़ता रहेगा। उन्होंने ईरान में यूरेनियम संवर्धन न करने पर अमेरिकियों और कुछ पश्चिमी देशों के जोर की ओर इशारा करते हुए कहा कि किसी समय मैं देश को बताऊंगा कि इस जिद के पीछे उनका असली इरादा और लक्ष्य क्या है। इस्लामी क्रांति के नेता ने शहीद रईसी की सच्चाई और स्पष्टवादिता की ओर इशारा करते हुए कहा कि इसके महत्व को समझने के लिए इसकी तुलना कुछ पश्चिमी देशों के अधिकारियों की झूठी भाषा से की जानी चाहिए जो शांति और मानवाधिकारों के नारे लगाते नहीं थकते, लेकिन उन्होंने गाजा में 20,000 से अधिक निर्दोष बच्चों की हत्या पर आंखें मूंद ली हैं और यहां तक ​​कि अपराधियों की मदद भी कर रहे हैं।

उन्होंने शहीद रईसी के उत्कृष्ट और व्यावहारिक कार्यों को उनकी विशेषताओं का एक और पहलू बताते हुए कहा कि उन्होंने अथक परिश्रम किया और अपने दिन-रात सेवा, गुणवत्तापूर्ण कार्य और निरंतर काम करने में लगा दिए।

आयतुल्लाह खामेनेई ने शहीद रईसी की सेवाओं जैसे जलापूर्ति, सड़क निर्माण, रोजगार सृजन, रुकी हुई या बंद पड़ी फैक्ट्रियों को फिर से चालू करना और अधूरी परियोजनाओं को पूरा करना लोगों के लिए प्रत्यक्ष और दृश्यमान सेवाएं माना और कहा कि शहीद रईसी ने ईरानी राष्ट्र के सम्मान, स्थिति और गरिमा की भी सेवा की और उन्हें बढ़ाया।

उन्होंने कहा कि शाहिद रईसी के शासनकाल की शुरुआत में ईरान की आर्थिक वृद्धि दर लगभग शून्य थी, जिसे उन्होंने अपने शासनकाल के अंत तक बढ़ाकर लगभग पाँच प्रतिशत कर दिया और यह देश और राष्ट्र के लिए गर्व की बात है, जो देश की प्रगति को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के जनरल सभा में पवित्र कुरान या शहीद सुलेमानी की तस्वीर को हाथ में लेना उन अन्य कार्यों में से थे जिनके माध्यम से शहीद रईसी ने ईरानी राष्ट्र का सम्मान बढ़ाया।

 

जन्नत-उल-बक़ीअ दरगाहों के ध्वस्त होने के 100 साल पूरे होने पर मौलाना जलाल हैदर नकवी की पुस्तक जन्नत-उल-बकी: तारीख, हक़ीक़त और दस्तावेज का अनावरण समारोह बाब-उल-इल्म ओखला, नई दिल्ली में आयोजित किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में विद्वानों ने भाग लिया।

जन्नत-उल-बक़ीअ दरगाहों के ध्वस्त होने के 100 साल पूरे होने पर मौलाना जलाल हैदर नकवी की पुस्तक जन्नत-उल-बकी: तारीख, हक़ीक़त और दस्तावेज का अनावरण समारोह बाब-उल-इल्म ओखला, नई दिल्ली में आयोजित किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में विद्वानों ने भाग लिया। मुक़र्रेरीन ने कहा जन्नतुल बकीअ से हमारा अकीदत का रिश्ता है और यह मसला किसी एक संप्रदाय का नहीं है।

इस विषय पर शोध कार्य करने के लिए मौलाना जलाल हैदर नकवी बधाई के पात्र हैं, मैं जानता हूं कि उन्होंने फिलिस्तीन के मुद्दे पर इमाम खुमैनी (र) के कुद्स आंदोलन को भारत में जीवित रखा है और वे जन्नतुल बकी के मुद्दे को भी उठा रहे हैं। पुस्तक अनावरण के अवसर पर बोलते हुए मौलाना काजी सैयद मुहम्मद असकरी ने कहा कि मौलाना जलाल हैदर द्वारा संकलित यह पुस्तक एक मील का पत्थर है, पुस्तक के शीर्षक से ही लगता है कि एक बहुत ही प्रभावी और उपयोगी पुस्तक संकलित की गई है। मौलाना मुहम्मद अली मोहसिन तकवी ने कहा कि यह किताब समय की मांग है, क्योंकि एक समय था जब शव्वाल की आठ तारीख को सभाएं होती थीं, उसके बाद विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला शुरू हो गया था, लेकिन आज अकादमिक सेवाओं के माध्यम से बकीअ के विषय को पुनर्जीवित किया जा रहा है और यह एक सराहनीय पहल है, हालांकि, आपको जन्नतुल बाकी आंदोलन पर इस किताब जितनी सामग्री एक जगह नहीं मिलेगी, यह उपलब्धि सराहनीय है।

इस अवसर पर मौलाना रईस अहमद जारचवी ने कहा कि मौलाना जलाल हैदर साहब बधाई के पात्र हैं, उन्होंने बहुत बढ़िया काम किया है, यह किताब बहुत अच्छी लिखी गई है, किताबें जागरूकता पैदा करती हैं, लेकिन किताबें कौन लिखता है? जब पाठक नहीं होते हैं, तो जिस राष्ट्र में किताबें पढ़ने की जागरूकता नहीं होती है, वह अपनी तारीख़ याद नहीं रखता है।

समारोह में मौलाना मकसूद-उल-हसन कासमी ने कहा कि सबसे पहले मैं किताब के लेखक मौलाना जलाल हैदर साहब को तहे दिल से बधाई देना चाहता हूं। सौ साल पहले जब जन्नत-उल-बकी को ध्वस्त किया गया था, तो दारुल उलूम देवबंद के मुफ्तियों ने सर्वसम्मति से फतवा जारी किया था। मौलाना हैदर अब्बास नोगानवी ने कहा कि इस किताब के विमोचन में शामिल होना मेरे लिए सम्मान की बात है, मुझे वह दिन याद है जब जलाल साहब ने जामेअतुल मुंतजर में प्रवेश किया था, लेकिन मुझे नहीं पता था कि वह इस मिशन और इस आंदोलन को इस मुकाम तक ले जाएंगे, यह किताब इस विषय पर मील का पत्थर साबित होगी, एक दिन ऐसा आएगा जब जन्नत-उल-बकी का पुनर्निर्माण किया जाएगा और यह किताब वहां रखी जाएगी और इस किताब ने अतीत में लिखने वालों को भी नया जीवन दिया है। विमोचन के अवसर पर मौलाना आदिल फराज नकवी ने कहा कि मौलाना जलाल हैदर साहब इस महान वैज्ञानिक और शोध कार्य को अंजाम देने के लिए बधाई के पात्र हैं; यह पुस्तक जन्नत-उल-बकी आंदोलन के संबंध में एक सशक्त आवाज है। जन्नत-उल-बकी के विध्वंस के तुरंत बाद पूरे इस्लामी जगत, खासकर भारत से बहुत तीखी प्रतिक्रिया हुई थी, लेकिन समय बीतने के साथ वे आवाजें कम होती गईं, लेकिन एक बार फिर इस पुस्तक के माध्यम से इस आंदोलन को एक नया रंग मिलेगा।

पुस्तक का परिचय देते हुए मौलाना जलाल हैदर नकवी ने कहा कि पिछले वर्षों में जन्नत-उल-बकी के विध्वंस के अवसर पर कई विशेषांक प्रकाशित हुए हैं, लेकिन जन्नत-उल-बकी के सौ वर्ष पूरे होने पर सौ वर्षों के इतिहास को संक्षिप्त, सही लेकिन प्रामाणिक तरीके से एक ही पुस्तक में संकलित करने की आवश्यकता थी, हमने इस संबंध में काम किया और हमें यह सफलता मिली।

1925 से 2025 तक जन्नत-उल-बकी के विध्वंस की सौ साल की कहानी, जो दुख की सौ साल की कहानी है, को एक ही संग्रह में संकलित करना बहुत कठिन काम था, लेकिन भगवान का शुक्र है कि यह काम पूरा हो गया; इस पुस्तक में हमने वर्तमान और प्राचीन समय के महत्वपूर्ण लेखकों के प्रयासों को भी शामिल किया है।

उन्होंने आगे कहा कि इस अवसर पर मैं मौलाना आदिल फ़राज़ साहब, मौलाना सज्जाद रब्बानी साहब और मौलाना तालिब हुसैन साहब और नूर हिदायत फाउंडेशन लखनऊ का बहुत आभारी हूँ, जिनकी मदद से मुझे इस किताब को पूरा करने में कदम दर कदम सफलता मिली, मैं सभी विद्वानों का शुक्रिया अदा करता हूँ।

यह कार्यक्रम ऑल इंडिया शिया काउंसिल द्वारा आयोजित किया गया था, जिसमें विद्वानों सहित बड़ी संख्या में आस्थावानों ने भाग लिया।

 

सोशल मीडिया "एक्स" के उपयोगकर्ताओं ने यमनी सशस्त्र बलों द्वारा हइफ़ा बंदरगाह पर समुद्री घेराबंदी की योजना को लागू करने की कार्रवाई की सराहना की है।

यमनी सशस्त्र बलों ने एक बयान में घोषणा की है कि उन्होंने हइफ़ा बंदरगाह पर समुद्री घेराबंदी की योजना को लागू करना शुरू कर दिया है। यमनी सशस्त्र बलों द्वारा जारी किए गए इस बयान में कहा गया हैः हइफ़ा बंदरगाह की घेराबंदी की योजना, इस्राईली शासन के बर्बर हमलों में तेज़ी और ग़ज़ा की जनता पर जारी घेराबंदी व भूख की नीति के जवाब में है।"

 यमनी सशस्त्र बलों ने चेतावनी दी है कि बयान जारी होने के समय से हइफ़ा बंदरगाह को औपचारिक रूप से यमन के सैन्य लक्ष्यों की सूची में शामिल कर लिया गया है।

 एक्स के उपयोगकर्ताओं ने यमन के इस क़दम को ग़ज़ा के लोगों के समर्थन में उठाया गया एक साहसिक क़दम बताया है।

 इसी संदर्भ में पूरहुसैन नामक एक सक्रिय उपयोगकर्ता ने एक्स पर लिखा: यमन ने इस्राईली अर्थव्यवस्था को पहले इलात बंदरगाह और बेन गुरियन हवाई अड्डा को पंगु बनाकर तहस-नहस कर दिया और अब वह हाइफ़ा बंदरगाह की ओर बढ़ा है, ताकि इस्राईल और उसके साझेदारों को एक अच्छा सबक सिखाया जा सके। यमन ने साबित कर दिया है कि अन्य अरब शासकों के विपरीत, उसमें ग़ैरत है और वह इस्लाम की शान व इज़्ज़त का कारण है।

 मुजतबा ने, जो एक्स के एक अन्य उपयोगकर्ता हैं, लिखा है

"यमनी लोगों ने इस्राईल के सभी हवाई अड्डों को अपने लक्ष्यों में शामिल कर लिया है ताकि घेराबंदी की पकड़ और मजबूत हो जाए, लेकिन आज यमनियों ने इस अपराधी गिरोह की घेराबंदी के अंतिम चरण की घोषणा कर दी। हइफ़ा पर हमले का अर्थ इस्राईली शासन के समुद्री मार्गों से होने वाले सभी लेन-देन को ठप कर देना।

 

एक अन्य उपयोगकर्ता "खुशनाम" का कहना है:

यदि यमन हइफ़ा, तेल अवीव और इलात बंदरगाह को व्यापक रूप से निशाना बनाता है, तो इंशा अल्लाह ग़ज़ा की घेराबंदी ख़त्म हो जाएगी।

 एक्स के एक अन्य सक्रिय उपयोगकर्ता असदी का मानना है कि यमन इस्राईल पर ईश्वर का प्रकोप बरसा रहा है, ऐसा शासन जो अब यमन के बहादुर देश से दिन-रात गंभीर चोटें खा रहा है!

 अबू हाशिम ज़ुबारा ने,  जो कि एक यमनी उपयोगकर्ता हैं, लिखा है कि दुनिया सुन ले, यमन ग़ज़ा में अपने भाइयों की रक्षा और समर्थन के लिए पूरी दुनिया से टकराने के लिए तैयार है और वह किसी भी परिणाम की परवाह नहीं करता, चाहे वह कितना भी बड़ा क्यों न हो या कहीं तक भी क्यों न पहुँच जाए। हम ग़ज़ा को कभी नहीं छोड़ेंगे।

 अलमुर्तज़ा अल-मरूनी ने जो एक अन्य यमनी उपयोगकर्ता हैं, एक्स पर लिखा कि हमने ईश्वर पर भरोसा करते हुए और उसके आदेशों का पालन करते हुए, जो हमें अत्याचार के विरुद्ध खड़े होने और पीड़ितों का साथ देने का निर्देश देता है, यह निर्णय लिया कि हम हइफ़ा बंदरगाह में अपराधी दुश्मन की घेराबंदी करें। हमारे रुख़ वही हैं जो यह मानते हैं कि वास्तविक शक्ति केवल ईश्वर से आती हैऔर जीत उन्हीं लोगों की होती है जो अपने वादों पर कायम रहते हैं और सच्चाई की राह पर चलते हैं।

 अबू ताहा अल-मुखलफ़ी ने भी यमनी सेना के बयान की प्रशंसा करते हुए लिखा कि अगर अरब लीग की स्थापना से लेकर आज तक के सभी सम्मेलनों के बयानों को इकट्ठा कर लिया जाए और उनकी तुलना यमनी सशस्त्र बलों के इस एक बयान से की जाए, जो हइफ़ा की घेराबंदी से संबंधित है, तब यह स्पष्ट हो जाएगा कि यमन का यह ठोस और निर्णायक रुख़, अरब लीग के सभी बयानों पर भारी पड़ता है।

 

 हिज़्बुल्लाह लेबनान के डिप्टी सेक्रेटरी जनरल शेख़ नाईम क़ासिम ने रविवार के दिन एक तक़रीर (भाषण) में शोहदा ए ख़िदमत को याद किया और शहीद सैयद इब्राहीम रईसी को उनके मुक़ावमत के जज़्बे और सम्मानजनक किरदार के लिए ख़िराज-ए-तहसीन पेश की।

हिज़्बुल्लाह लेबनान के डिप्टी सेक्रेटरी जनरल शेख़ नाईम क़ासिम ने रविवार के दिन एक तक़रीर (भाषण) में शोहदा ए ख़िदमत को याद किया और शहीद सैयद इब्राहीम रईसी को उनके मुक़ावमत के जज़्बे और सम्मानजनक किरदार के लिए ख़िराज-ए-तहसीन पेश की।

शेख नाईम क़ासिम ने कहा,स्वर्गीय और शहीद ईरानी राष्ट्रपति, देश के लिए एक महान पूंजी थे। शहीद रईसी के दिल और दिमाग में हमेशा फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध ज़िंदा रहता था।

उन्होंने आगे कहा,शहीद रईसी ने अपनी ज़िंदगी की सबसे कठिन परिस्थितियों और फैसलों में भी अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया और हमेशा साहसिक रूप से अपने रुख पर कायम रहे हमारी ओर से उन पर दरूद व सलाम हो।

शेख क़ासिम ने इस बात पर ज़ोर दिया,इस महान शख्सियत शहीद सैयद इब्राहीम रईसी की कोशिशों का नतीजा वही विचारधारा थी जिसे इमाम खुमैनी ने महत्व दिया और जिसे रहबर-ए-मुअज्ज़म इमाम ख़ामेनेई ने ऊँचाइयों तक पहुँचाया।

उन्होंने आगे कहा,लेबनानी प्रतिरोध (मुक़ावमत) हमेशा उनकी पहली प्राथमिकताओं में रहा वे हमेशा उम्मत के शिक्षक और शहीद, सैयद हसन नसरुल्लाह से हालात और तफ़्सीलात के बारे में जानकारी लेते रहते थे।

शेख नाईम क़ासिम ने अपनी बात इस वाक्य से खत्म की हमें गर्व है कि हम हक़ के मोर्चे पर लेबनानी मुक़ावमत, फ़िलिस्तीन, लेबनान, ईरान और क्षेत्र के सभी सम्मानित मुजाहिदों के साथ — एक ही सफ़ में खड़े हैं।

 

समाचार वेबसाइट हिल ने एक लेख में डोनाल्ड ट्रंप की ज़ायोनी शासन के प्रति नीति, विशेष रूप से हालिया पश्चिमी एशिया यात्रा के दौरान तेल अवीव में न रुकने की उनकी उपेक्षा का विश्लेषण करते हुए लिखा है कि बिन्यामिन नेतन्याहू अमेरिका के सहयोगी नहीं हैं।

जब हाल ही में डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी पश्चिम एशिया यात्रा के दौरान इस्राइल को नज़रअंदाज़ कर फ़ार्स खाड़ी के अरब देशों का रुख करना ज़्यादा उचित समझा, तो इसका कारण न तो घृणा थी और न ही विश्वासघात बल्कि यह दूरी और यथार्थवाद का संदेश था। दूसरे शब्दों में, यह याद दिलाने के लिए था कि संयुक्त राज्य अमेरिका एक महाशक्ति है, न कि किसी पर आश्रित, वित्त-पोषक या सेवक देश।

 कांग्रेस से संबंधित इस न्यूज़ एजेन्सी के विश्लेषक ने लिखा: यह दूरी उस सच्चाई की ओर इशारा करती है जिसे अमेरिकी राजनीतिक वर्ग लम्बे समय से कहने से डरता रहा है: बिन्यामिन नेतन्याहू अमेरिका का दोस्त नहीं है। वह ख़ुद को मित्र कह सकता है, कांग्रेस के मंच से भाषण दे सकता है, पश्चिमी मूल्यों की पोशाक पहन कर पश्चिमी सभ्यता की बातें कर सकते हैं लेकिन अगर आप ध्यान से देखें तो सामने एक ऐसा व्यक्ति नज़र आता है जो सत्ता से बुरी तरह चिपका हुआ है और राजनीति में अपनी बक़ा के लिए वैश्विक स्थिरता को ख़तरे में डालने, युद्ध की आग भड़काने तथा उस देश के साथ सेतु तोड़ने को भी तैयार है, जिसके प्रति वह सम्मान दिखाने का नाटक करता है।

 लेखक के दृष्टिकोण से ऐसा प्रतीत होता है कि ट्रंप ने अंततः इस बात को समझ लिया है और पहले के राष्ट्रपतियों के विपरीत, जो इस्राइल को वाइट चेक अर्थात बिना शर्त समर्थन देते समय नर्म लहज़े में बात किया करते थे, ट्रंप दृढ़ता से बोलते हैं, क्योंकि उन्होंने यह समझ लिया है कि अमेरिका के पास ही असली "ट्रंप कार्ड" है यानी सत्ता और प्रभाव की असली कुंजी अमेरिका के पास है।

 

इस समाचार वेबसाइट के अनुसार, इस्राइल के प्रधानमंत्री ने ग़ज़ा में जारी वहशी व बर्बर युद्ध को किसी ज़रूरत के चलते नहीं, बल्कि राजनीतिक हताशा के कारण लंबा खींचा है। हर बम जो वह ग़ज़ा पर गिराता है और हर अस्पताल जिसे वह तबाह करता है उसके कारण उसे भ्रष्टाचार के आरोपों में कटघरे में खड़ा करना चाहिये पर इसके बजाये वह इस्राइल का प्रधानमंत्री बना हुआ है।

 हिल के विश्लेषक के अनुसार, बिन्यामिन नेतन्याहू एक ऐसा व्यक्ति है जो अमेरिका की शक्ति का उपयोग घरेलू जवाबदेही से बचने के लिए करने की कोशिश कर रहा है।

 लेखक का मानना है कि ट्रंप की वर्तमान नीति इस्राइल के प्रति नेतन्याहू के वर्षों पुराने विश्वासघात की प्रतिक्रिया है जो अब जाकर सामने आ रही है।

 नेतन्याहू ने वर्षों से अमेरिका की सद्भावना का फ़ायदा उठाया है और अमेरिकी वफ़ादारी का दुरुपयोग करते हुए तथा AIPAC (अमेरिका-इस्राइल पब्लिक अफ़ेयर्स कमेटी) पर निर्भर रहकर उसने आलोचकों की आवाज़ दबाई है।

 हर बार जब किसी ने उसके इरादों व कारणों पर सवाल उठाने की हिम्मत की तो उसे यहूदी-विरोधी करार दिया गया।

 

यमन की सशस्त्र सेना ने हइफ़ा बंदरगाह पर समुद्री घेराबंदी की शुरुआत की घोषणा की है।

यमनी सशस्त्र बलों के प्रवक्ता ब्रिगेडियर यह्या सरीअ ने सोमवार को एक बयान में हइफ़ा बंदरगाह की समुद्री घेराबंदी शुरू करने के निर्णय की घोषणा की।

 उन्होंने कहा: यह निर्णय इस्राइली दुश्मन की बढ़ती आक्रामकता, बर्बर हमलों और फ़िलिस्तीनी जनता की घेराबंदी व भूख से मारने की नीति के जवाब में लिया गया है।

 इस बयान में यमनी सशस्त्र बलों ने चेतावनी दी कि हइफ़ा बंदरगाह को इस बयान के जारी होने के साथ ही औपचारिक रूप से यमन के सैन्य लक्ष्यों की सूची में शामिल कर लिया गया है।

 साथ ही, उन सभी कंपनियों से, जिनके जहाज़ हइफ़ा बंदरगाह में मौजूद हैं या वहाँ की ओर रवाना हो रहे हैं, अनुरोध किया गया है कि वे घोषित की गई चेतावनियों और उपायों को गंभीरता से लें।

 बयान के अंत में कहा गया है कि ज़ायोनी शासन के ख़िलाफ सभी सैन्य कार्रवाइयाँ और निर्णय उस समय रोक दिए जाएंगे, जब ग़ज़ा पर हमलों को पूरी तरह से बंद किया जाएगा और वहाँ की नाकाबंदी समाप्त की जाएगी।

 हइफ़ा बंदरगाह की घेराबंदी: एक ऐतिहासिक और अनोखा क़दम

 इसी संबंध में, फिलिस्तीन की स्वतंत्रता के लिए जन आंदोलन ने एक बयान जारी करते हुए कहा है कि ग़ज़ा पट्टी की जनता के खिलाफ ज़ायोनी शासन की बढ़ती बर्बरता के जवाब में हइफ़ा बंदरगाह पर यमन द्वारा समुद्री घेराबंदी लागू करने के निर्णय का हम स्वागत और सराहना करते हैं।

 इस आंदोलन ने आगे कहा कि हइफ़ा बंदरगाह की घेराबंदी, जो अवैध अधिकृत भूमि में स्थित है, एक अद्वतीय क़दम और एक महत्वपूर्ण बिन्दु है और इस्राइली शासन के ख़िलाफ यमन के प्रतिरोधक बलों की कार्यवाही के एक नए चरण की शुरुआत मानी जाएगी।

ग़ज़ा में शहीदों की संख्या में वृद्धिः

फ़िलिस्तीनी जनता के ख़िलाफ ज़ायोनी शासन के अपराधों के जारी रहने के बीच, फिलिस्तीनी चिकित्सीय सूत्रों ने मंगलवार को बताया कि सोमवार से अब तक इस्राइली सेना द्वारा ग़ज़ा पट्टी के विभिन्न क्षेत्रों पर किए गए भीषण हमलों में कम से कम 126 फिलिस्तीनी शहीद हुए हैं।

 ग़ज़ा के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, इस संख्या को मिलाकर 7 अक्टूबर 2023 से अब तक ग़ज़ा पट्टी में शहीदों की कुल संख्या 53,486 तक पहुँच चुकी है, जबकि घायलों की संख्या 151,398 हो गई है।

 फिलिस्तीनी प्रतिरोध के साथ संघर्ष में एक ज़ायोनी सैनिक मारा गया

 दूसरी ओर इस्राइली सेना ने घोषणा की है कि उसका एक सैनिक, जो 601 इंजीनियरिंग यूनिट से संबंधित था, ग़ज़ा पट्टी के उत्तर में फिलिस्तीनी प्रतिरोध बलों के साथ हुई झड़पों में मारा गया है।

 इस्राइली सुरक्षा सूत्रों ने सोमवार को ग़ज़ा पट्टी में एक सुरक्षा घटना के होने की भी सूचना दी है। इन सूत्रों के अनुसार, इस्राइली सेना के दो बचाव हेलीकॉप्टर घायल सैनिकों को लेकर "सोरोका अस्पताल" में उतरे हैं। ये घायल सैनिक ग़ज़ा से लाए गए थे।

 ज़ायोनी मीडिया रिपोर्टों के अनुसार कम से कम एक सैनिक इस घटना में मारा गया है। इसके अलावा ज़ायोनी सूत्र "हदशोत लेओ तज़नज़ोरा" ने दावा किया है कि इस्राइली सेना का एक सैनिक अपने ही साथियों की गलती से हुई गोलीबारी में मारा गया है।

 ग़ज़ा के इंडोनेशियाई अस्पताल में बिजली पूरी तरह गुल

 ग़ज़ा के स्वास्थ्य मंत्रालय ने जानकारी दी है कि इंडोनेशियाई अस्पताल में बिजली पूरी तरह से कट चुकी है और इस्राइली बलों के सीधे हमलों में अस्पताल के जनरेटरों को निशाना बनाया गया है, जिससे इलाज की सेवाएं पूरी तरह से बर्बादी के कगार पर पहुँच गई हैं।

 इस मंत्रालय ने चेतावनी दी है कि अस्पतालों में बिजली जनरेटरों की तबाही का अर्थ है स्वास्थ्य सेवाओं की रीढ़ का टूट जाना और यह कि इससे ग़ज़ा पट्टी भर के अस्पतालों में सभी ज़रूरी चिकित्सीय गतिविधियाँ पूरी तरह से ठप पड़ जाएंगी।

 लेबनान पर इस्राइली ड्रोन हमले

इसी बीच ज़ायोनी शासन ने सोमवार को संघर्षविराम का उल्लंघन करते हुए कई बार ड्रोन हमले लेबनान पर किए।

 ताज़ा घटना में इस्राइली ड्रोन हमले में लेबनान के दक्षिणी क्षेत्र के हूला कस्बे में एक नागरिक अपने घर के सामने शहीद हो गया।

 इसके अलावा कफ़रकला कस्बे में एक लेबनानी नागरिक इस्राइली सैनिकों की गोलीबारी में कंधे से घायल हो गया, जिसे इलाज के लिए मरजेऊन अस्पताल ले जाया गया।

 लेबनानी सूत्रों ने बताया कि एक इस्राइली ड्रोन ने दक्षिण लेबनान के अज़्ज़हीरा कस्बे में एक कार पर बम गिराया, जिससे वाहन क्षतिग्रस्त हो गया।

 साथ ही दक्षिण लेबनान के बिंते जुबैल क्षेत्र के उपनगर "सर्बीन" के पास "वादिल उयून" इलाके में एक मोटरसाइकिल पर किए गए इस्राइली ड्रोन हमले में दो लोग घायल हुए हैं।

 

फ्रांस के विदेश मंत्री ने इज़राईली शासन के खिलाफ कड़ा रुख अपनाते हुए कहा है कि फ्रांस, यूरोपीय संघ के सहयोग परिषद द्वारा इस्राईल पर संभावित प्रतिबंधों की समीक्षा का समर्थन करता है।

फ्रांस के विदेश मंत्री जाँ नोएल बारो ने France Inter चैनल से बातचीत में कहा कि इस्राईल द्वारा ग़ाज़ा पट्टी में जिन मददों के प्रवेश की अनुमति दी गई है, वे बिल्कुल भी पर्याप्त नहीं हैं।

उन्होंने ज़ोर दिया कि तेल अवीव को तुरंत अधिक मात्रा में मानवीय मदद की आपूर्ति सुनिश्चित करनी चाहिए।बारो ने यह भी कहा कि फ्रांस, यूरोपीय संघ की सहयोग परिषद द्वारा इस्राईल पर प्रतिबंध लगाने के विचार की पुष्टि करता है।

इससे पहले फ्रांस के राष्ट्रपति एमैनुएल मैक्रों ने भी अलजज़ीरा चैनल को दिए गए बयान में कहा था,हम ग़ाज़ा पट्टी में तेल अवीव के सैन्य अभियानों के विस्तार का कड़े शब्दों में विरोध करते हैं।

उन्होंने क्षेत्र की मानवीय स्थिति को लेकर चेतावनी दी और कहा,ग़ाज़ा के लोगों का दुख और तकलीफ़ अब असहनीय स्तर पर पहुँच चुका है।

गौरतलब है कि फ्रांस लंबे समय से इस्राईल की ग़ाज़ा पर क्रूर हमलों का प्रमुख समर्थक रहा है, लेकिन अब बदली हुई मानवीय परिस्थितियों में उसकी राजनीतिक भाषा में कुछ बदलाव देखा जा रहा है।