ईश्वरीय आतिथ्य- 7

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ईश्वरीय आतिथ्य- 7

असअद बिन ज़ुरारा मक्के पहुंचा और अपने दोस्त अत्बा बिन रबीआ के घर गया।

उसने दो क़बीलों के बीच बढ़ रहे मतभेद के समाधान के लिए उससे मदद मांगी। अत्बा ने जवाब में कहा कि आज कल हमारे सामने एक नई समस्या पैदा हो गई है जिसमें हम उलझे हुए हैं और इसी लिए हम तुम्हारी मदद नहीं कर सकते। असअद ने पूछा कि तुम लोग तो मक्के जैसे सुरक्षित स्थान पर जीवन बिता रहे हो, तुम्हें क्या समस्या आ गई है। अत्बा ने कहाः हमारे बीच एक व्यक्ति है जो कहता है कि मैं ईश्वर का पैग़म्बर हूं। वह हमें बुद्धिहीन समझता है और हमारे पूज्यों व मूर्तियों को बुरा कहता है। उसने हमारी एकता तोड़ दी है और हमारे युवाओं को गुमराह कर दिया है।

असअद ने पूछा कि वह किस घराने से है? अत्बा ने बताया कि वह अब्दुल्लाह का पुत्र व अब्दुल मुत्तलिब के पोता और बनी हाशिम क़बीले के सम्मानीय परिवार का है। वह इस समय मस्जिदुल हराम में है लेकिन अगर तुम वहां जाना चाहते हो तो उसकी बातें न सुनना क्योंकि वह एक ज़बरदस्त जादूगर है। असअद ने कहा कि मेरे पास कोई मार्ग नहीं है, मैंने एहराम पहन लिया है और मुझे काबे का तवाफ़ अर्थात परिक्रमा करनी ही होगी। अत्बा ने कहा कि तो फिर अपने कान में रूई डाल लो ताकि उसकी बातें तुम्हें सुनाई न दें।

असअद अपने दोनों कानों में रूई डाल कर मस्जिदुल हराम पहुंचा और काबे का तवाफ़ करने लगा। उसने पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम को देखा जिनके पास कुछ लोग बैठे हुए थे और बड़े ध्यान से उनकी बातें सुन रहे थे। उसने उन पर एक नज़र डाली और तेज़ी से गुज़र गया। तवाफ़ के दूसरे चक्कर में उसने अपने आपसे कहा कि मुझसे बड़ा मूर्ख कोई नहीं होगा। क्या यह हो सकता है कि इतनी अहम बात मक्के के लोगों की ज़बानों पर हो और मुझे उसके बारे में कोई ख़बर न हो?

यह सोच कर उसने अपने कानों में से रूई निकाल कर फेंक दी और पैग़म्बरे इस्लाम के पास पहुंचा। वह उनकी बातें ध्यान से सुनने लगा, उसने पाया कि कोई जादू-टोना नहीं है बल्कि जो कुछ वह सुन रहा था वह मार्गदर्शन का एक प्रकाश था जो उसके हृदय को चमका रहा था और उसकी बुद्धि उन बातों की पुष्टि कर रही थी। वह आगे बढ़ा और उसने सवाल कियाः आप हमें किस चीज़ का निमंत्रण देते हैं? पैग़म्बर ने पूरे संतोष से जवाब दिया। मैं इस बात की गवाही देने का निमंत्रण देता हूं कि ईश्वर अनन्य है और मैं उसका पैग़म्बर हूं। इसके बाद उन्होंने सूरए अनआम की आयत क्रमांक 151, 152 और 153 की तिलावत की। असअद का दिल क़ुरआने मजीद की मार्गदर्शक बातें सुन कर पूरी तरह से बदल गया और उसने ऊंची आवाज़ में कहाः मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के अतिरिक्त कोई पूज्य नहीं और मैं इस बात की भी गवाही देता हूं कि मुहम्मद, ईश्वर के पैग़म्बर हैं।

इस्लाम के आरंभिक काल में क़ुरआने मजीद मुसलमानों के लिए जीवनदाता बन गया था और आज भी वह अपनी इसी क्षमता के माध्यम से मुस्लिम राष्ट्रों की शक्ति, वैभव, सम्मान और शांति का कारण है। आज भी क़ुरआने मजीद की आयतें एकेश्वरवाद और सम्मान का निमंत्रण देती हैं। क़ुरआन का यह निमंत्रण रमज़ान के पवित्र महीने में अधिक स्पष्ट रूप से सामने आता है। इस महीने में क़ुरआने मजीद से मुसलमान का रिश्ता अधिक घनिष्ट होता हैं और वे अपने दिन व रात के भागों को इस ईश्वरीय किताब की तिलावत से पावन बनाते हैं। रमज़ान का पवित्र महीना अपनी समस्त ईश्वरीय व आध्यात्मिक अनुकंपाओं व सुपरिणामों के साथ सामाजिक जीवन में क़ुरआने मजीद के सही स्थान को पुनर्स्थापित करने और इसी तरह इस्लामी समाज के वैचारिक व सांस्कृतिक आधारों को सुधारने व मज़बूत बनाने का एक अच्छा अवसर है।

क़ुरआने मजीद से घनिष्ट रिश्ते के लिए अरबी भाषा में उन्स शब्द का प्रयोग किया जाता है जिसका अर्थ होता है किसी चीज़ का आदी हो जाना, किसी चीज़ से संतुष्टि मिलना, किसी का हर पल का साथी होना और एक साधारण संपर्क से बढ़ कर एक मज़बूत रिश्ता जो प्रभाव लेने और प्रभाव डालने का कारण बने। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से किसी भी चीज़ से घनिष्ट रिश्ते का मार्ग, उससे अधिक से अधिक संपर्क है जिसके स्वाभाविक परिणाम सामने आते हैं जो सकारात्मक और नकारात्मक दोनों हो सकते हैं।

पैग़म्बरों और ईश्वर के प्रिय बंदों के चरित्र पर एक नज़र डाल कर हम यह बात समझ सकते हैं कि सबसे अहम घनिष्ट रिश्ते, अपने ईश्वर से मनुष्य का सीधा रिश्ता है। यह व्यवहारिक रवैये वाला सबसे छोटा रास्ता है। इस्लाम में क़ुरआने मजीद को ईश्वर से सामिप्य का सबसे संतुष्ट मार्ग बताया गया है। क़ुरआन, ईश्वर को उसकी महानता, कृपा, दया व तत्वदर्शिता के साथ पहचनवाता है। अगर इंसान यह जान ले कि इतने महान गुणों वाले ईश्वर और उसके कथन का प्रतिबिंबन क़ुरआने मजीद में हुआ है तो वह हर क्षण उससे बात कर सकता है और बिना किसी माध्यम के सीधे उससे अपनी बात कह सकता है। तब वह क़ुरआने मजीद के एक एक शब्द को प्रकाश, तत्वदर्शिता, उपदेश व मार्गदर्शन पाएगा।

मनुष्य कभी भी क़ुरआने मजीद के साथ घनिष्ट संपर्क से आवश्यकतामुक्त नहीं हो सकता क्योंकि उसकी परिपूर्ण शिक्षाएं और विषयवस्तु, मानव जीवन की अहम आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। यही कारण है कि क़ुरआने मजीद ने ईमान वालों से कहा है कि वे प्रकाश के इस स्रोत की जहां तक संभव हो तिलावत करें और इसके असीम ज्ञान वाले समुद्र से लाभ उठाएं। पैग़म्बरे इस्लाम के नाती इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने इंसानों को चार गुटों में बांटा है जिनमें से हर गुट अपनी क्षमता के अनुसार क़ुरआने मजीद से लाभान्वित हो सकता है। वे कहते हैं। ईश्वर की किताब चार चीज़ों पर आधारित है। इबारत, इशारे, रोचक बिंदु और तथ्य। इसकी इबारतों या मूल पाठ से सभी लोग लाभ उठाते हैं, इशारे, विशेष लोगों, रोचक बिंदु, ईश्वर के प्रिय बंदों और तथ्य पैग़म्बरों के लिए हैं।

इस हदीस के आधार पर क़ुरआने मजीद की शिक्षाएं बड़ी गहन हैं और जिन लोगों का ज्ञान सीमित है और जो कुरआन की गहराइयों को नहीं समझ सकते वे उसकी सादा व रोचक इबारतों से लाभ उठा सकते हैं। जिन लोगों का दृष्टिकोण व्यापक है वे क़ुरआने मजीद में निहित इशारों से लाभान्वित हो सकते हैं। ईश्वर के प्रिय बंदे जिनका ईश्वरीय कथन से निकट रिश्ता है वे उसकी बारीकियों व रोचक बिंदुओं से अपनी आत्माओं को तृप्त करते हैं जबकि पैग़म्बर जिनके हृदय व आत्मा पर ईश्वर का सीधा प्रकाश पड़ता है वे इस किताब से वे तथ्य सीखते हैं जिनकी दूसरे मनुष्य कल्पना भी नहीं कर सकते।

इस प्रकार क़ुरआने मजीद से घनिष्ठ रिश्ता, उससे जुड़ने वालों की आत्मा और सोच की गहराइयों में एक व्यापक परिवर्तन पैदा करता है और सत्य के खोजियों के समक्ष एक प्रकाशमयी क्षितिज खोलता है। ईश्वर, क़ुरआने मजीद को स्पष्ट करने वाली किताब बताता है। सूरए माएदा की पंद्रहवीं आयत के एक भाग में कहा गया है। निःसन्देह ईश्वर की ओर से तुम्हारे लिए नूर अर्थात प्रकाश और स्पष्ट करने वाली किताब आ चुकी है। इस सूरे की अगली आयत में वह बल देकर कहता है कि ईश्वर इस (किताब) के माध्यम से उसकी प्रसन्नता प्राप्त करने का प्रयास करने वालों को शांतिपूर्ण एवं सुरक्षित मार्गों की ओर ले जाता है।

क़ुरआने मजीद लोगों का अन्धकार से प्रकाश की ओर मार्गदर्शन करता है। ईरान समेत सभी इस्लामी देशों में रमज़ान के पवित्र महीने में ईश्वरीय किताब क़ुरआन की तिलावत, व्याख्या और उसे याद करने की बैठकें आयोजित होती हैं। हर मस्जिद और गली कूचे में इस तरह की बैठकें देखी जा सकती हैं जिनमें बच्चे, युवा और वृद्ध सभी भाग लेते हैं। सभी क़ुरआने मजीद की तिलावत करके पूरे वातावरण को मनमोहक बना देते हैं। इस पवित्र महीने में बहुत से घरों में क़ुरआने मजीद की तिलावत और पूरा क़ुरआन पढ़ने की सभाएं आयोजित होती हैं। हालांकि ये सभाएं रमज़ान के महीने से विशेष नहीं हैं और साल के दूसरे महीनों और दिनों में भी आयोजित होती हैं लेकिन रमज़ान में इन सभाओं की रौनक़ कुछ और ही होती है और सभी औरत-मर्द और बच्चे-बूढ़े इनमें भाग लेते हैं।

वरिष्ठ धर्मगुरुओं और अहम हस्तियों के जीवन का अध्ययन करने से पता चलता है कि ये महान लोग बचपन से ही क़ुरआने मजीद से जुड़े रहे और इसी के माध्यम से उन्होंने परिपूर्णता का मार्ग तै किया। इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह हमेशा, क़ुरआने मजीद से अधि से अधिक जुड़ाव की कोशिश करते थे, कभी कभी यह अवसर दो मिनट का भी होता था। उनकी बहू डाक्टर फ़ातिमा तबातबाई बताती हैं कि जब इमाम ख़ुमैनी नजफ़ में थे तो एक बार उनकी आंखों में तकलीफ़ हुई। डाक्टर ने उनका निरीक्षण करने के बाद कहा कि आप कुछ दिन तक क़ुरआन न पढ़िए और आराम कीजिए। इमाम ख़ुमैनी हंसने लगे। उन्होंने कहा कि डाक्टर साहब मैं आंखें, क़ुरआन पढ़ने के लिए ही तो चाहता हूं, अगर मेरी आंख हो और मैं क़ुरआन न पढ़ पाऊं तो इसका क्या फ़ायदा है? आप कुछ ऐसा कीजिए कि मैं क़ुरआन पढ़ सकूं।

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