बंदगी की बहार- 22

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बंदगी की बहार- 22

रमज़ान के पवित्र महीने के दिन और रातें गुज़रती जा रही हैं और हम इस महीने के अंतिम दशक में हैं।

 

यह वह महीना है जिसके बारे में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने कहा है कि इसका आरंभ दया है, बीच क्षमा है और अंत, प्रार्थनाओं की स्वीकृति है। अगर हम इस महीने को तीन दशकों में बांटें तो इसका पहला दशक ईश्वरीय दया का है जैसा कि पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने प्रख्यात ख़ुतबे में कहा है कि तुम्हें ईश्वरीय आतिथ्य के लिए आमंत्रित किया गया है। तो रमज़ान के महीने का पहला दशक अपने बंदों पर ईश्वर की दया व कृपा का दशक है। रमज़ान के पवित्र महीने का दूसरा दशक, तौबा व प्रायश्चित तथा पापों की क्षमा का दशक है जबकि अंतिम दशक, परिणाम हासिल करने का दशक है। वास्तव में रमज़ान के पहले दशक में मनुष्य ईश्वरीय दया प्राप्त करने के बाद जो एक मूल्यवान अवसर है, दूसरे दशक में तौबा व प्रायश्चित का सामर्थ्य प्राप्त करता है और इस महीने के अंतिम दशक में वह ईश्वर से अपनी प्रार्थनाएं करता है और वह उसकी प्रार्थनाओं की स्वीकृति का समय होता है।

 

रमज़ान के पवित्र महीने के अंतिम दशक की रातों के बीच 23वीं रात को विशेष महत्व प्राप्त है। कुछ दिनों या रातों को ईश्वर द्वारा उन पर विशेष ध्यान देने और उनके प्रभावों के चलते अधिक महत्व व प्रतिष्ठा हासिल हो जाती है। इन्हीं में से एक रात, रमज़ान के पवित्र महीने के 23वीं रात है जो क़द्र की तीन रातों में से एक है। इस्लाम में शबे क़द्र या क़द्र की रात को पूरे साल की सबसे अहम व मूल्यवान रात माना जाता है। इस रात की अहमियत इतनी है कि न केवल क़ुरआने मजीद के विभिन्न सूरों में इसकी विशेषताओं का उल्लेख किया गया है बल्कि एक पूरा सूरा भी सूरए क़द्र के नाम से क़ुरआने मजीद में मौजूद है। क़द्र अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है नाप या निर्धारण। हदीसों में है कि इस रात को इस लिए क़द्र की रात कहा जाता है क्योंकि ईश्वर इसी रात में मनुष्य के पूरे साल की घटनाओं का निर्धारण करता है। दूसरे शब्दों में एक शबे क़द्र से दूसरी शबे क़द्र तक लोगों के जीवन, मौत, आजीविका, सौभाग्य, दुर्भाग्य और इसी प्रकार की अन्य बातों का निर्धारण इसी रात में किया जाता है।

यद्यपि हदीसों में शबे क़द्र के रूप में रमज़ान के पवित्र महीने की 19, 21 और 23 वीं रात का उल्लेख किया गया है लेकिन इन्हीं हदीसों में 23वीं रात के शबे क़द्र होने की ओर अधिक इशारे मिलते हैं। इसी तरह कुछ हदीसों से रमज़ान की 23वीं रात के शबे क़द्र होने को अधिक विश्वनसीयता मिलती है। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पौत्र इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम से पूछा गया कि रमज़ान के महीने में किस रात के शबे क़द्र होने की आशा है? उन्होंने कहा कि 19, 21 और 23 वीं रात। उनसे फिर पूछा गया कि इनमें से किसको अधिक विश्वसनीयता हासिल है? तो उन्होंने कहा कि 23वीं रात को।

इसी तरह इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने इस रात के बारे में कहा है कि रमज़ान की 23वीं रात में ईश्वरीय तत्वदर्शिता के आधार पर हर काम को अलग अलग कर दिया जाता है और इसमें कठिनाइयों, मौत, आयु, आजीविका और जो कुछ अगले साल इसी रात तक ईश्वर करने वाला होता है, अंकित कर दिया जाता है। तो जो बंद इस रात को सज्दे और रुकू में जाग कर बिताए वह कितना सौभाग्यशाली है। इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने शबे क़द्र में किए जाने वाले कर्मों के बारे में कहा है कि रमज़ान के पवित्र महीने की 19वीं, 21वीं और 23 वीं रात को नहाओ और इसे जाग कर गुज़ारने की कोशिश करो। इसके बाद उन्होंने कहा कि 23वीं रात वह रात है जब ईश्वर की तत्वदर्शिता से हर चीज़ की युक्ति की जाती है और हर काम को अलग कर दिया जाता है। इसी रात में यह लिखा जाता है कि कौन सा कारवान हज के लिए जाएगा और इस साल से अगले साल तक क्या होगा। बेहतर है कि इस रात में सौ रकअत नमाज़ पढ़ी जाए और हर रकअत में सूरए हम्द के बाद सूरए तौहीद की तिलावत की जाए।

हर शबे क़द्र के अपने विशेष “आमाल” या उस रात किए जाने वाले काम हैं। उनमें से कुछ संयुक्त भी हैं जैसे रात भर जागना या जो बातें ईश्वर से निकट करती हैं उनके बारे में सोच-विचार करना। इन रातों में उचित है कि मनुष्य कुछ समय एकांत में रहे और अपने साल भर के कर्मों व क्रियाकलाप पर एक नज़र डाले। अपने साल भर के व्यवहार और कर्मों की गहराई से समीक्षा करे और देखे कि पिछले साल वह कहां था और अब कहां पहुंच चुका है?

इस प्रकार के विचारों के साथ हम शबे क़द्र से अधिक से अधिक लाभ उठाने का मार्ग समतल कर सकते हैं। हमें ईश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए कि वह अगले साल हमारे लिए सर्वोत्तम बातों का निर्धारण करे। हमें उससे प्रार्थाना करनी चाहिए कि वह उस मार्ग पर चलने में हमारी सहायता करे जो उसे पसंद है। इसी तरह हमें उससे, जिसने इस महीने और विशेष रूप से इस रात में हमारे पापों को क्षमा करने का वादा किया है, अपनी ग़लतियों को क्षमा करने की प्रार्थना करनी चाहिए और यह संकल्प लेना चाहिए कि अब हम पहले से अधिक उसका आज्ञापालन करेंगे।

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने ईश्वर की ओर से दो भारी व मूल्यवान वस्तुओं का परिचय करवाया और उनसे जुड़े रहने को मोक्ष व कल्याण का कारण बताया। उन्होंने कहाः हे लोगो! मैं तुम्हारे बीच दो भारी चीज़ें छोड़ कर जा रहा हूं, ईश्वर की किताब और मेरे परिजन। शबे क़द्र, जिसमें हमारे साल भर के कामों का निर्धारण होता है, ईश्वर की किताब अर्थात क़ुरआने मजीद और पैग़म्बर के परिजनों से अपने जुड़ाव के प्रदर्शन की रात है। इसी लिए हदीसों में आया है कि शबे क़द्र में भोर के समय क़ुरआन हाथ में लेकर दुआ करनी चाहिए और फिर उसे सिर पर रखना चाहिए अर्थात उसे अपने कामों में सबसे अधिक प्राथमिकता देनी चाहिए।

इसके बाद प्रार्थना करनी चाहिए और पैग़म्बर व उनके परिजनों का नाम लेना चाहिए। इससे पता चलता है कि ईश्वर की किताब और पैग़म्बर के परिजन हमेशा एक दूसरे के साथ हैं और वे कभी अलग नहीं होंगे। ये दोनों, ईश्वर से हमारे जुड़ाव का माध्यम और साधन हैं। जो बंदा, अपने जीवन के मामलों में उलझा हुआ है और सृष्टि के रचयिता से दूर होकर उसकी ओर से निश्चेत हो गया है, उसे उसके निकट होने और ईश्वरीय दया व कृपा का पात्र बनने के लिए साधान की ज़रूरत है। उपासना सर्वोत्तम साधन है। अगर हम शबे क़द्र में ईश्वर की किताब और पैग़म्बर के परिजनों का सहारा लें और उनके माध्यम से ईश्वर से निकट होने की कोशिश करेंगे तो हमें मुक्ति मिल जाएगी क्योंकि अगर कोई इन रातों में अपने आपको मुक्त नहीं कर पाया तो फिर वह हमेशा दास रहेगा, दिल की शांति व संतोष से दूर अपनी आंतरिक इच्छाओं का दास!

ग़रीबों की मदद करके और पीड़ितों की सहायता करके ईश्वर को याद करना, उन कर्मों में से हैं जिनकी सिफारिश की गयी है। इस प्रकार से हर सचेत और ज्ञानी व्यक्ति और ईश्वर का हर दास, अपनी क्षमता भर और अपनी सभांवना के अनुसार, स्वंय को ईश्वर का कृपापात्र बना सकता है। हमें उम्मीद है कि इस सुनहर अवसर और इस बरकतों वाली रात से हम सब उचित लाभ उठा सकेंगे।

शबे क़द्र, अपने पापों को क्षमा करने के लिए ईश्वर से याचना करने का बहुत अच्छा अवसर है और ईश्वर इस रात, अपने दासों पर विशेष रूप से कृपा दृष्टि डालता है। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम क़द्र की रात को, अपने अनुयाइयों के लिए ईश्वरीय कृपा पात्र बनने का बहुत अच्छा अवसर बताते हुए कहते हैं कि मेरे अनुयाइयों को रमज़ान के महीने में पांच चीज़ें दी गयी हैं कि जो मुझ से पहले किसी भी ईश्वरीय दूत के अनुयाइयों के नहीं दी गयी। पहला उपहार यह है कि जब भी रमज़ान की पहली रात आती है, ईश्वर अपने दासों पर कृपा दृष्टि डालता है और जिस पर ईश्वर कृपा दृष्टि डालता है वह ईश्वरीय प्रकोप से सुरक्षित हो जाता है। दूसरा उपहार यह है कि रोज़ा रखने वालों के मुंह से रोज़े की वजह से जो दुर्गंध आती है ईश्वर उसे कस्तूरी से अधिक सुगंधित बना देता है। तीसरा उपहार यह है कि रोज़ा रखने वाले के लिए फरिश्ते, दिन रात, उसके पापों के लिए ईश्वर से क्षमा मांगते हैं। चौथा उपहार यह है कि ईश्वर, स्वर्ग हो आदेश देता है कि रोज़ादार के पापों की क्षमा मांगे और ईश्वर दासों के लिए सजे संवरे। तो दुनिया की कठिनाइयां जल्दी ही उसे निगल लेंगी और वह प्रतिष्ठित, स्वर्ग में चले जाएंगे। पांचवा उपहार यह है कि जब भी रात का अंतिम पहर आता है तो ईश्वर अपने सभी दासों को क्षमा कर देता है। इस अवपर पर एक व्यक्ति ने पूछा कि हे ईश्वरीय दूत! क़द्र की रात में ? इस पर पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा कि क्या तुम्हें नहीं मालूम कि मज़दूरों का काम जब भी खत्म होता है, उन्हें उनकी मज़दूरी दे दी जाती है।

कभी कभी ऐसा होता है कि एक व्यक्ति अपनी प्रार्थना की स्वीकृति के लिए किसी विशेष समय या स्थान में होता है लेकिन ज़बान से अपनी ज़रूरतों को बयान नहीं कर पाता और उसकी समझ में नहीं आता कि अपने रचयिता से क्या मांगे। इसके विभिन्न कारण हो सकते हैं। कभी उसकी आत्मा बहुत प्रफुल्लित होती है और वह कुछ मांग नहीं पाता और कभी इतना बड़ा सामर्थ्य मिलने की ख़ुशी में उसकी ज़बान बंद हो जाती है।

ईवर और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के बीच इस रात जो बात चीत हुई थी उसके कुछ भाग इस तरह हैं। प्रभुवर! मैं तेरा सामिप्य चाहता हूं। ईश्वर ने कहा कि मेरा सामिप्य उसके लिए है जो शबे क़द्र में जागता रहे। उन्होंने कहा कि हे ईश्वर! मैं तेरी दया चाहता हूं। उसके कहाः मेरी दया उसके लिए है जो शबे क़द्र में ग़रीबों की मदद करे। उन्होंने कहा कि मैं पुले सिरात से गुज़रने का अनुमति पत्र चाहता हूं। ईश्वर ने कहा कि वह उसके लिए है जो शबे क़द्र में दान दक्षिणा करे। हज़रत मूसा ने कहा कि मैं स्वर्ग के फल चाहता हूं। उसने कहा कि वे उसके लिए हैं जो शबे क़द्र में पवित्रता के साथ मुझे याद करे। उन्होंने कहा कि मैं नरक की आग से मुक्ति चाहता हूं। ईश्वर ने कहाः वह उसके लिए है जो शबे क़द्र में तौबा करे। मूसा ने कहाः मैं तेरी प्रसन्नता चाहता हूं। ईश्वर ने कहाः वह उसके लिए है जो शबे क़द्र में दो रकअत नमाज़ पढ़े।

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