
رضوی
हज़रत फातिमा मासूमा की शहादत
हज़रत मासूमा का पहली जिल्क़ादा साल 173 हिजरी मे मदीने मे जन्म हुआ.
कुरान समाचार (iqna) इस्फहान शाखा के मुताबिक़ मासूमा ने 1 ज़िल्कादा साल 173 हिजरी मदीने मे आँख खोली,और 10 रबिऊस्सानी सन् 201 हिजरी में वफ़ात पाईं। आर आप सर ज़मीने क़ुम में दफ़्न हुईं । इस महान ख़ातून ने जन्म से ही ऐसे माहौल मे तर्बियत पाई जहाँ माँ,बाप,भाई बहन सभी लोग मानव कमालात मे सब से आगे थे.इबादत, ज़ोहद, तक़वा, सच्चाई,पाक दामनी वग़ैरा इस खान्दान की खुसुसियत थी.
शहज़ादी का पालंण पोषण इल्म व एख़लाक वाले कुटुम्ब मे हुआ बाबा इमामे मूसा काज़ीम (अ) की शहादत के बाद भाई इमाम रज़ा(अ)ने आप की पर्वरिश की ज़िम्मेदारी ली। जिस बिना पर आप सातवें इमाम की तमाम अवलादों मे बाद अज़ इमाम रज़ा(अ)सबसे ज़्यादा बा कमाल थीं.जैसा कि आप के नाम और लक़ब से ज़ाहिर है आप भी जनाबे ज़ैनब(अ)की तरह आलिमऐ ग़ैर मुअल्लिमा थीं.
आर आप की शान में आइम्मऐ मासूमीन(अ)से मुताअद्दिद रिवायतें नक़ल हुईं हैं जिनमें से कुछ येह हैं:
(1) इमाम सादिक़ अ.फरमाते हैं (होशयार होजाओ ख़ुदा के लिऐ ऐक मोहतरम जगह है वह मक्का है पैग़म्बर के लिऐ मदीना हरम है हज़र अली के लिऐ कूफा हरम है पणुं मेरे और मेरी अवलादों के लिऐ क़ुम हम है क़म हमारे लिऐ कूफे समान है जान लो कि जन्नत मे 8 दरवाज़े हैं उनमे 3 कुम की जानिब खुलते हैं मेरे वंश से ऐक बेटी ब नाम फातिमा यहां दफ्न हगी जो हमारे शियों शफाअत कराऐ गी)
(2) (ـ عن سعد بن سعيد ، عن أبي الحسن الرضا ( عليه السلام ) ، قال : سألته عن قبر فاطمة بنت موسى بن جعفر ( عليهم السلام ) ، فقال : ( من زارها فله الجنّة
तर्जुमाँ: साद बिन सईद कहतें हैं मैं ने इमामे रिज़ा(अ) से जनाबे फातिमा मासूमा (अ) की क़ब्र के बारे मे पूछा तो आप ने फ़रमाया कि जो इनकी ज़ियारत करे उसके लिये जन्नत है।(1)
(3) ( قال الإمام الجواد ( عليه السلام ) : ( من زار قبر عمّتي بقم فله الجنّة
तर्जुमाँ: इमामे जवाद(अ)फ़रमाते हैं कि जे मेरी फूफी की क़ब्र की क़ुमँ में ज़ियारत करे तो उसके लिये जन्नत है।(2)
( عن سعد ، عن الإمام الرضا ( عليه السلام ) قال : ( يا سعد ، عندكم لنا قبر ) ، قلت له : جُعلت فداك ، قبر فاطمة بنت موسى ؟ قال : ( نعم ، من زارها عارفاً بحقّها فله الجنّة)
(4) तर्जुमाँ: साद कहतें हैं कि इमामे रिज़ा(अ)ने कहा कि( ऐ साद तुमहारे पास हमारी क़ब्र है) तो मैने कहा आप पर फ़ेदा हो जाऊँ हज़रत फातिमा मासूमा(अ)की क़ब्र ,आप ने कहा हाँ ,जो उनके हक़ की मारेफ़त के साथ उनकी ज़ियारत करे उसके लिये जन्नत है।(3)
(5) ـ قال الإمام الصادق ( عليه السلام ) : ( إنّ لله حرماً وهو مكّة ، وإنّ للرسول ( صلى الله عليه وآله ) حرماً وهو المدينة ، وإنّ لأمير المؤمنين ( عليه السلام ) حرماً وهو الكوفة ، وإنّ لنا حرماً وهو بلدة قم ، وستدفن فيها امرأة من أولادي تسمّى فاطمة ، فمن زارها وجبت له الجنّة
तर्जुमाँ: इमाम सादिक़ अ.फरमाते हैं (बेशक ख़ुदा के लिऐ ऐक मोहतरम जगह है वह मक्का है और पैग़म्बर के लिऐ मदीना हरम है और हज़र अली(अ)के लिऐ कूफा हरम है और बेशक हमारे और हमारी अवलाद के लिऐ क़ुम हरम है और अनक़रीब ऐक ख़ातून हमारी औलाद में से वहाँ दफ़्न होगी जिनका नाम फातिमा होगा।(4)
(1) सवाबुल आमाल: 99
(2) कामिलुज़्ज़ियारात 536
(3) बिहारुल अनवार 48 ,317
(4) बिहारुल अनवार 57,216
इमामे असकरी अलैहिस्सलाम अलैहिस्सलाम
उस समय अब्बासी शासक मोतमिद के हाथ में सत्ता थी। वह सोचता या कि इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम को अपने मार्ग से हटाकर वह उनकी याद को भी लोगों के मन से मिटा देगा और वे सदैव के लिए भुला दिए जाएंगे किन्तु जिस दीपक को पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम और उनके परिजनों ने जलाया हो वह कभी बुझ नहीं सकता बल्कि वह मानवता का सदैव मार्गदर्शन करता रहे गा।
जैसाकि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने फ़रमाया हैं: मेरे परिजन नूह की नौका की भांति हैं जिसने उनके दामन में पनाह ली वह मुक्ति पाएगा और जो उनसे दूर होगा वह डूब जाएगा।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम पर पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों पर ईश्वर का सलाम हो हम इस बात के लिए ईश्वर का आभार व्यक्त करते हैं कि उसने मानवता के मार्गदर्शन के लिए इस महान हस्ती को संसार में भेजा।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम धार्मिक बंधुओं के अधिकारों की पहचान और उनके समक्ष विनम्रता के बारे में कहते हैं: जिसे अपने धार्मिक बंधुओं के अधिकारों की अधिक पहचान हो और वह उसके लिए अधिक प्रयास करे, ईश्वर के निकट उसका स्थान बहुत ऊंचा होगा। जो अपने धार्मिक बंधुओं से विनम्रता से मिले तो ईश्वर के निकट उसकी गणना सत्यवादियों व सत्य के अनुयाइयों में होगी।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की इमामत अर्थात ईश्वरीय आदेशानुसार जनता के मार्गदर्शन का काल, अब्बासी शासन श्रृंखला का सर्वाधिक हिंसाग्रस्त काल था। अब्बासी शासकों की अयोग्यता और दरबरियों में आपस में अंतरकलह, जनता में असंतोषत और निरंतर विद्रोह, दिगभ्रमित विचारों का प्रसार, उस काल की राजनैतिक व सामाजिक उथल पुथल के कारणों में थे। शासक, जनता का शोषण कर रहे थे और वंचितों व बेसहारा लोगों की संपत्ति बलपूर्वक हथि रहे थे। वे जनता के पैसों से भव्य महलों का निर्माण करते थे और जनता की निर्धनता व समस्याओं की ओर तनिक भी ध्यान नहीं देते थे।
अब्बासी शासक अपने अत्याचारी शासन को चलाने के लिए किसी भी अपराध की ओर से संकोच नहीं करते थे और समाज के सभी वर्गों के साथ उनका व्यवहार कठोर था। उस दौरान पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के परिजनों को और अधिक घुटन भरे वातावरण का सामना था। क्योंकि ये हस्तियां अत्याचार व भ्रष्टाचार के समक्ष मौन धारण नहीं करती थीं बल्कि उनके विरुद्ध आवाज़ उठाती थीं।
अब्बासी शासकों ने इमाम हसन अस्करी और उनके पिता इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम को मदीना नगर से जो पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों का केन्द्र था, तत्कालीन अब्बासी शासन की राजधानी सामर्रा नगर पलायन के लिए विवश किया। सामर्रा नगर में इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम अब्बासी शासन के अधिकारियों के नियंत्रण में थे। उन्हें सप्ताह में कुछ दिन अब्बासी शासन के दरबार में उपस्थित होना पड़ता था। अब्बासी शासक, इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम पर विभिन्न शैलियों से दबाव डालते थे क्योंकि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम का यह कथन सब को याद था कि विश्व को उत्याचार से मुक्ति दिलाने वाला उन्हीं का पौत्र होगा। वह मानवता को मुक्ति दिलाने वाले वही मोक्षदाता हैं जिन के प्रकट होने से संसार से अत्याचार जड़ से समाप्त हो जाएगा। ऐसे किसी शिशु के जन्म की कल्पना, अत्याचारी अब्बासी शासकों को अत्यधिक भयभीत करने वाली थी।
अब्बासी शासकों के व्यापक स्तर पर प्रयासों के बावजूद इस शिशु के जन्म लेने का ईश्वर का इरादा व्यावहारिक हुआ और इमाम महदी अलैहिस्सलाम ने इस संसार में क़दम रखा। इमाम मेहदी अलैहिस्सलाम के जन्म के पश्चात, इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने कठिन भविष्य का सामना करने के लिए समाज को तैयार करने का बीड़ा उइया।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम उचित अवसरों पर ग़ैबत अर्थात इमाम मेहदी अलैहिस्सलाम के लोगों की दृष्टि से ओझल रहने के काल की विशेषताओं तथा संसार के भावी नेतृत्व में अपने सुपुत्र की प्रभावी भूमिका का उल्लेख करते थे।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम बल दिया करते थे कि उनके सुपुत्र के हातों पूरे विश्व में न्याय व शांति स्थापित होगी।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम का व्यक्तित्व इतना आकर्षक था कि जिसकी भी दृष्टि उन पर पड़ती वह ठहर कर उन्हें देखने लगता और बरबस उनकी प्रशंसा करता था।
अब्बासी शासन की इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम से शत्रुता के बावजूद इस शासन का एक मंत्री इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के महान व्यक्तित्व का उल्लेख इन शब्दों में करता है। मैंने सामर्रा में हसन बिन अली के जैसा किसी को न पाया। गरिमा, सुचरित्र और उदारता में कोई उनके जैसे नहीं मिला।
हालांकि वह युवा हैं किन्तु बनी हाशिम उन्हें अपने वृद्धों पर वरीयता देते हैं। वह इतने महान हैं कि मित्र और शत्रु दोनों ही प्रशंसा किए बिना नहीं रह सकते।
वंचितों और बेसहारों पर इमाम की कृपादृष्टि उनके लिए आशा की किरण थी इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की कृपा से लाभान्वित होने वाला एक व्यक्ति कहता है: मेरी और मेरे पिता की आर्थिक स्थिति इतनी दयनीय हो चुकी थी कि लोगों की दान दक्षिणा से बड़ी मुश्किल से जीवन व्यतीत हो रहा था। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम से भेंट करना बहुत कठिन था क्योंकि अब्बासी शासन ने उन पर बहुत रोकटोक लगा रखी थी। इमाम हसन अलैहिस्सलाम की उदारता विख्यात थी। वे समस्याओं में घिरे लोगों की सहायता के लिए जाने जाते थे। इसलिए मुझे आशा थी कि वे मेरी आर्थिक समस्या का निदान करेंगे। मार्ग में पिता ने मुझसे कहा कि यदि इमाम पॉच सौ दिरहम दे दें तो मेरी बहुत सी समस्याओं का निदान हो जाएगा। मैं भी मन ही मन सोच रहा था कि यदि इमाम मुझे तीन सौ दिरहम दे दें तो में जबल नगर जाकर अपना नया जीवन आरंभ करुंगा। हम लोग इमाम के घर में प्रविष्ट हुए और एक कमरे में प्रतीक्ष करने लगे। उनके एक संबंधी, कमरे में आए और पॉंच सौ और तीन सौ दिरहम की दो थेलियां पिता को और मुझे दे दीं। में आश्चर्य में पड़ गया, समझ में नहीं आ रहा था कि क्या कहूं। मैं और पिता आश्चर्य की स्थिति में थे कि इमाम के दूत ने मुझसे कहा: इमाम ने तुम्हें जबल नगर जाने से रोका है बल्कि जीवन यापन के लिए सूरा नगर का सुझाव दिया है। ईश्वर का आभार व्यक्त करते हुए बहुत प्रसन्न हो कर इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के घर से निकला मैं इमाम के सुझाव के अनुसार सूरा नगर गया और इमाम की सहायता से वहॉ अच्छा जीवन व्यतीत करने लगा। यह सब पैग़म्बरे इस्लाम के महान पौत्र इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की कृपा दृष्टि का फल था।
उस समय लोगों के विचारों पर संकीर्णता छाई हुई थी और धर्म में नई नई बातें शामिल की जा रही थीं, ऐसी स्थिति में इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने धर्म के वास्तविक रुप को लोगों के सामने स्पष्ट किया। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के पास भी पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेहि व सल्लम के अन्य परिजनों की भांति ज्ञान का अथाह सागर था। लोगों की ज़बान पर इमाम अलैहिस्सलाम के ज्ञान की चर्चा रहती थी। वे सत्य के मार्ग की खोज करने वालों का मार्गदर्शन करते थे। शास्त्रार्थों में इमाम ऐसे प्रभावी र्तक देते थे कि तत्कालीन अरब दार्शनिक याक़ूब बिन इस्हाक़ कन्दी ने इमाम से शास्त्रर्थ के पश्चात उस किताब को जला दिया जिसमें उसने कुछ धार्मिक बातों की आलोचना की थी। उस समय इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम को लोगों तक अपना दृष्टिकोण पहुंचाने में भी कठिनाइयों का सामना था। इसलिए इमाम अनेक शैलियों तथा अपने विश्वस्नीय प्रतिनिधियों के माध्यम से जनसंपर्क बनाते थे और सुदूर क्षेत्रों के मुसल्मानों की स्थिति से अवगत होते थे।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ईश्वर की इतनी उपासना करते थे कि बहुत से पथभ्रष्ट उनकी उपासना को देखकर सत्य के मार्ग पर आ जाते थे। ऐसे ही लोगों में सालेह बिन वसीक़ नामक जेलर भी था। जिस समय इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम को जेल ले जाया गया उस समय सालेह बिन वसीक़ जेलर था। वह इमाम के व्यक्तित्व से इतना प्रभावित हुआ कि उसकी गणना उस समय के महाउपासकों व धर्मनिष्ठों में होने लगी। वह कहता है:जैसे ही में इमाम को देखता हूं, मेरे भीतर ऐसा परिवर्तन होने लगता है कि मैं स्वंय पर नियंत्रण नहीं रख पाता और ईश्वर की उपासना करने लगता हूं।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम फ़र्माते हैं: मिथ्या, व्यक्ति को झूठ , बेइमानी, वचन तोड़ने और छल कपट की ओर ले जाती है और सत्य के मार्ग से दूर कर देती है। मिथ्याचारी व्यक्ति भरोसे के योग्य नहीं है। जान लो कि मिथ्या को समझने के लिए पैनी दृष्टि और बहुत चेतना की आवश्यक्ता होती है।
एक अन्य स्थान पर फ़रमाते हैं: तुम्हारा जीवन बहुत सीमित और इसके दिन निर्धारित है और मृत्यु अचानक आ पहुंचती है। जो सदकर्म करता है उससे लाभानिवत होता है और जो बुराई करता उसके परिणाम में उसे पछतावा होता है तुम्हें धर्म को समझने, शिष्टाचार अपनाने, और सदकर्म की अनुशंसा करता हूं।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई का संदेश लेकर लेबनान पहुंचे क़ालिबाफ, प्रधानमंत्री से मुलाक़ात
ईरान की पार्लियामेंट के स्पीकर मोहम्मद क़ालिबाफ ने अपनी लेबनान यात्रा के दौरान इस देश के प्रधानमंत्री नजीब मीक़ाती से मुलाक़ात की।
ज़ायोनी सेना के बर्बर हमलों में तबाह हुए दक्षिणी लेबनान का दौरा करते हुए क़ालिबाफ ने कहा कि मैं ईरान की इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर हज़रत आयतुल्लाह खामनेई का संदेश लेकर आया हूँ।
उन्होंने कहा कि हम हमेशा लेबनान राष्ट्र और सरकार के साथ हैं और कठिन परिस्थितियों में हम उनका साथ नहीं छोड़ेंगे। साथ ही, जिनेवा में आईपीयू की बैठक में हम ग़ज़्ज़ा और लेबनान के लोगों के उत्पीड़न का संदेश दुनिया तक पहुंचाएंगे और उनके समर्थन में कोई कमी नहीं करेंगे।
इजरायल के खिलाफ मिसाइल हमले अमेरिका ने ईरान पर प्रतिबंध लगाए
अमेरिका ने 1 अक्टूबर को इज़राइल के खिलाफ देश द्वारा शुरू किए गए बैलिस्टिक मिसाइल हमले के मद्देनजर ईरान के ऊर्जा व्यापार को लक्षित करते हुए प्रतिबंधों की घोषणा की है।
एक रिपोर्ट के अनुसार ,अमेरिका ने 1 अक्टूबर को इज़राइल के खिलाफ देश द्वारा शुरू किए गए बैलिस्टिक मिसाइल हमले के मद्देनजर ईरान के ऊर्जा व्यापार को लक्षित करते हुए प्रतिबंधों की घोषणा की है।
राज्य विभाग द्वारा जारी एक बयान के अनुसार, विभाग ईरानी पेट्रोलियम व्यापार में लगी छह संस्थाओं पर प्रतिबंध लगा रहा है।
बयान में कहा गया है इस बीच, ट्रेजरी विभाग एक दृढ़ संकल्प जारी कर रहा है जो ईरानी अर्थव्यवस्था के पेट्रोलियम या पेट्रोकेमिकल क्षेत्रों में काम करने के लिए निर्धारित किसी भी व्यक्ति के खिलाफ प्रतिबंध लगाएगा।
बयान में कहा गया है इसके अतिरिक्त, ट्रेजरी 10 संस्थाओं को मंजूरी दे रही है और अमेरिका द्वारा नामित संस्थाओं नेशनल ईरानी ऑयल कंपनी या ट्रिलियंस पेट्रोकेमिकल कंपनी लिमिटेड के समर्थन में ईरानी पेट्रोलियम और पेट्रोकेमिकल उत्पादों के शिपमेंट में शामिल होने के लिए अवरुद्ध संपत्ति के रूप में 17 जहाजों की पहचान कर रही है।
अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने एक बयान में कहा कि उपरोक्त उपाय ईरान को उसके मिसाइल कार्यक्रमों का समर्थन करने और अमेरिका, उसके सहयोगियों और भागीदारों को धमकी देने वाले आतंकवादी समूहों को समर्थन प्रदान करने के लिए उपयोग किए जाने वाले वित्तीय संसाधनों से वंचित करने में मदद करेंगे।
ईरानी उपराष्ट्रपति पाकिस्तान जाएंगे
ईरानी उपराष्ट्रपति अपने प्रतिनिधिमंडल के साथ पाकिस्तान में होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए पाकिस्तान जाएंगे।
एक रिपोर्ट के अनुसार, ईरानी उपराष्ट्रपति डॉ. मोहम्मद रज़ा आरिफ 15 अक्टूबर को शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के शिखर सम्मेलन के सिलसिले में एक प्रतिनिधिमंडल के साथ इस्लामाबाद जाएंगे।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि ईरानी उपराष्ट्रपति एससीओ शिखर सम्मेलन के साइडलाइंस पर पाकिस्तानी नेतृत्व से भी मुलाकात करेंगे।
इन बैठकों में पाकिस्तान-ईरान संबंधों क्षेत्र की स्थिति के साथ-साथ ग़ाज़ा और लेबनान की मौजूदा स्थिति पर भी चर्चा होने की संभावना है।
ग़ज़्ज़ा मेअस्पताल बंद होने से कई बीमारियों की आशंका
विश्व स्वास्थ्य संगठनके अधिकारियों ने लेबनान में खराब अस्पतालों और शरणार्थी आश्रयों में भीड़भाड़ के कारण बीमारी के संभावित प्रकोप की चेतावनी दी है। बता दें कि इजरायली युद्ध के कारण देश के मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर को भी नुकसान पहुंचा है।
अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अधिकारियों ने अस्पताल बंद होने और शरणार्थी आश्रयों में भीड़भाड़ के कारण लेबनान में संभावित बीमारी फैलने की चेतावनी दी है। लेबनान के बेरूत में जिनेवा में एक प्रेस वार्ता से वीडियो लिंक के माध्यम से बोलते हुए, डब्ल्यूएचओ के उप घटना प्रबंधक लैन क्लर्क ने कहा: डायरिया, हेपेटाइटिस ए और अन्य वैक्सीन-रोकथाम योग्य बीमारियों के फैलने की संभावना है। चिकित्साकर्मी या तो इज़रायली बमबारी के डर से बाहर चले गए हैं या लेबनानी अधिकारियों के आदेश पर खाली हो गए हैं।
लेबनान के लोग इजरायली युद्ध के दौरान चिकित्सा संकट और बीमारियों के फैलने के डर से जूझ रहे हैं। इजरायली हमले के कारण न केवल देश के बुनियादी ढांचे बल्कि स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली को भी नुकसान पहुंचा है। 23 सितंबर को इजराइल ने लेबनान पर बमबारी शुरू कर दी, जिसके परिणामस्वरूप 10 लाख से ज्यादा लोग विस्थापित हो गए हैं।
इज़राइल की लगातार बमबारी के कारण संयुक्त राष्ट्र और अन्य सहायता एजेंसियों को लेबनान के साथ-साथ गाजा में खाद्य सहायता तक पहुँचने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। संयुक्त राष्ट्र ने भी लेबनान में खाद्य संकट को लेकर चेतावनी दी है।
तुर्की इस्राईल को तेल आपूर्ति करने वाले देशों में पहले नंबर पर
लाखों फिलिस्तीनियों को क़त्ल करने वाला इस्राईल ग्रेटर इस्राईल के अंतर्गत तुर्की, सीरिया, फिलिस्तीन, जॉर्डन, सऊदी अरब और इराक के एक बड़े भूभाग पर क़ब्ज़े की योजना बनाए हुए है और इस बात को एक बार फिर ज़ायोनी वित्त मंत्री बेज़ेल स्मोट्रिच ने इस ज़ायोनी साज़िश को एक बार फिर खुल कर स्वीकार किया है।
ग़ौर तालाब बात है की इस्लामी दुनिया को नष्ट करने की साज़िश में लगे इस्राईल की ज़रूरतों को खुद तुर्की, आज़रबैजान, सऊदी और जॉर्डन जैसे देश ही पूरा भी कर रहे हैं। इस्राईल की ज़रूरत का 25 फीसद तेल अकेले तुर्की के रास्ते से इस्राईल पहुँचता है। आज़रबैजान और क़ज़ाक़िस्तान से तुर्की के रास्ते इस्राईल को 25% तेल पहुँचता है।
अंसारुल्लाह यमन के कारन इस्राईल के लिए लाल सागर का मार्ग बंद हुआ तो सऊदी अरब, जॉर्डन और संयुक्त अरब अमीरात जहाँ ज़मीनी कॉरिडोर के रास्ते इस्राईल को ज़रूरत का सभी सामान पहुंचा रहे हैं वहीँ तुर्की हवाई मार्ग से इस्राईल को हर तरह की रसद पहुंचा रहा है।
दक्षिण सूडान में बाढ़ से करीब 90 लाख लोग प्रभावित, 25 लाख बेघर
दक्षिण सूडान में एक दशक की सबसे भीषण बाढ़ से लगभग 900,000 लोग प्रभावित हुए हैं, जबकि लगभग 250,000 लोग विस्थापित हो गए हैं।
संयुक्त राष्ट्र मानवीय सहायता एजेंसी के अनुसार, सूडान से उभरा दुनिया का सबसे आधुनिक देश दक्षिण सूडान एक दशक की सबसे भीषण आपदा की चपेट में है, जहां 41,000 लोग विस्थापित हुए हैं, जबकि प्रभावित लोगों की कुल संख्या 8,93,000 है। संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के मुताबिक, देश में भारी बारिश के कारण आई इस बाढ़ के कारण 15 प्रमुख सड़कें पूरी तरह से बंद हो गई हैं ।
दक्षिण सूडान की कुल 78 काउंटियों में से 42 काउंटियाँ बाढ़ से प्रभावित हैं, जिनमें जुबा और खार्तूम के बीच विवादित अबेई प्रशासनिक क्षेत्र भी शामिल है, जबकि यूनिटी और वारिप प्रांतों की 16 काउंटियों में से 40 प्रतिशत आबादी बाढ़ से प्रभावित है ऊंची भूमि पर शरण मांगना। बता दें कि 2011 में सूडान से आजादी मिलने के बाद से यह देश अस्थिरता, आर्थिक मंदी, प्राकृतिक आपदाओं, सूखे और बाढ़ से जूझ रहा है। विश्व बैंक के अनुसार, सूडान में चल रहे युद्ध के परिणामस्वरूप, सितंबर तक 797,000 शरणार्थी दक्षिण सूडान में आ चुके थे, जिनमें से 80% लोग दक्षिण सूडान लौटने वाले थे। दक्षिण सूडान में तेल भंडार हैं, लेकिन सूडान में चल रहे युद्ध के परिणामस्वरूप, देश की विदेशी मुद्रा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली एक प्रमुख पाइपलाइन क्षतिग्रस्त हो गई है, जिससे तेल निर्यात में उल्लेखनीय कमी आई है।
बाल आयोग की मांग, मदरसों की फंडिंग बंद करे सरकार
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को पत्र लिख मदरसों और मदरसा बोर्डों को दी जाने वाली सरकारी फंडिंग बंद करने की सिफारिश की है।
पहले भी मदरसों के खिलाफ अपने रुख को लेकर चर्च्चा में रहने वाले NCPCR ने मदरसा बोर्डों को बंद करने का भी सुझाव दिया है आरटीई अधिनियम, 2009 के अनुसार मौलिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए मदरसों से बाहर और स्कूलों में दाखिला दिए जाने की बात कही है। इसके अलावा NCPCR ने एक और रिपोर्ट जारी की है, जिसमें दावा किया है कि 2023-24 में 11 लाख से ज्यादा बच्चे बाल विवाह के प्रति संवेदनशील थे, जिन्हें एनसीपीसीआर ने बाल विवाह से बचाने के लिए ऐहतियाती कदम उठाए।
NCPCR ने ये भी सिफारिश की है कि सभी गैर-मुस्लिम बच्चों को मदरसों से निकालकर आरटीई अधिनियम, 2009 के अनुसार बुनियादी शिक्षा प्राप्त करने के लिए स्कूलों में भर्ती कराया जाए। साथ ही, मुस्लिम समुदाय के बच्चे जो मदरसा में पढ़ रहे हैं, चाहे वे मान्यता प्राप्त हों या गैर-मान्यता प्राप्त, उन्हें औपचारिक स्कूलों में दाखिला दिलाया जाए और आरटीई अधिनियम, 2009 के अनुसार निर्धारित समय और पाठ्यक्रम की शिक्षा दी जाए।
यूरोपीय संघ ने लेबनान को मानवीय सहायता पहुंचाई
यूरोपीय संघ (ईयू) ने हिजबुल्लाह और इज़राइल के बीच चल रहे संघर्ष के बीच लेबनान को सहायता प्रदान करने के लिए एक मानवीय सहायता भेजा है जिसमें महत्वपूर्ण दवाएं और चिकित्सा वस्तुएं शामिल हैं।
समाचार एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, लेबनान में यूरोपीय संघ के प्रतिनिधिमंडल द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि पहली उड़ान शुक्रवार को बेरूत पहुंचेगी, जिसमें स्वच्छता के सामान, कंबल और आपातकालीन आश्रय किट सहित अन्य सामान शामिल होंगें।
इसमें कहा गया है कि आने वाले दिनों में ग्रीस से और सहायता पहुंचाई जाएगी जबकि स्पेन, स्लोवाकिया, पोलैंड, फ्रांस और बेल्जियम से सहायता पिछले सप्ताह से बेरूत पहुंचाई गई है।
इसमें कहा गया है सदस्य देशों द्वारा दान की गई आपूर्ति में लेबनान में आपातकालीन स्वास्थ्य देखभाल की कमी वाले लोगों विशेष रूप से जबरन विस्थापित लोगों की सहायता के लिए महत्वपूर्ण दवाएं और चिकित्सा वस्तुएं शामिल हैं।
23 सितंबर से इज़रायली सेना हिज़्बुल्लाह के साथ खतरनाक वृद्धि में लेबनान भर में गहन हवाई हमले कर रही है इसने लेबनान में एक सीमित जमीनी सैन्य अभियान भी शुरू किया है।