رضوی

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हज़रत हबीब इब्ने मज़ाहिर अलअसदी आपके अलकाब में फाज़िल कारी, हाफ़िज़ और फकीह बहुत ज़्यादा मशहूर है इनका सिलसिला-ऐ-नसब यह है की हबीब इब्ने मज़ाहिर इब्ने रियाब इब्ने अशतर इब्ने इब्ने जुनवान इब्ने फकअस इब्ने तरीफ इब्ने उम्र इब्ने कैस इब्ने हरस इब्ने सअलबता इब्ने दवान इब्ने असद अबुल कासिम असदी फ़कअसी हबीब के पद्रे बुजुर्गवार जनाबे मज़ाहिर हजरते रसूले करीम स० की निगाह में बड़ी इज्ज़त रखते थे रसूले करीम स० इनकी दावत कभी रद्द नहीं फरमाते थे।

हज़रत हबीब इब्ने मज़ाहिर अलअसदीआपके अलकाब में फाज़िल कारी, हाफ़िज़ और फकीह बहुत ज़्यादा मशहूर है इनका सिलसिला-ऐ-नसब यह है की हबीब इब्ने मज़ाहिर इब्ने रियाब इब्ने अशतर इब्ने इब्ने जुनवान इब्ने फकअस इब्ने तरीफ इब्ने उम्र इब्ने कैस इब्ने हरस इब्ने सअलबता इब्ने दवान इब्ने असद अबुल कासिम असदी फ़कअसी हबीब के पद्रे बुजुर्गवार जनाबे मज़ाहिर हजरते रसूले करीम स० की निगाह में बड़ी इज्ज़त रखते थे रसूले करीम स० इनकी दावत कभी रद्द नहीं फरमाते थे।

शहीदे सालिस अल्लमा नूर-उल्लाह-शुस्तरी मजलिस-अल-मोमिनीन में लिखते है की हबीब इब्ने मज़ाहिर को सरकारे दो आलम की सोहबत में रहने का भी शरफ हासिल हुआ था उन्होंने उनसे हदीसे सुनी थी। वो अली इब्ने अबू तालिब अल० की खिदमत में रहे और तमाम लड़ाइयों (जलम,सिफ्फिन,नहरवान) में उन के शरीक रहे शेख तूसी ने इमाम अली इब्ने अबू तालिब और इमाम हसन अलै० और इमाम हुसैन अलै० सब के असहाब में उन का जिक्र किया है।

शबे आशूर एक शब् की मोहलत के लिए जब हजरत अब्बास उमरे सअद की तरफ गए तो हबीब इब्ने मज़ाहिर आप के हमराह थे। नमाज़े जोहर आशुरा के मौके पर हसीन ल० इब्ने न्मीर की बद-कलामी का जवाब आप ही ने दे दिया था और इसके कहने पर की ‘हुसैन की नमाज़ क़ुबूल न होगी “आप ने बढ़ कर घोड़े के मुंह पर तलवार लगाईं थी और ब-रिवायत नासेख एक जरब से हसीन की नाक उड़ा दी थी।

आप ने मौका-ऐ-जंग में कारे-नुमाया किये थे। आप इज्ने जिहाद लेकर मैदान में निकले और नबर्द आजमाई में मशगूल हो गए यहाँ  तक की बासठ (62) दुश्मनों को कत्ल करके शहीद हो गए ।

 

 

 

 

 

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का आंदोलन, एक एसी घटना है जिसमें प्रेरणादायक और प्रभावशाली तत्वों की भरमार है। यह आंदोलन इतना शक्तिशाली है जो हर युग में लोगों को संघर्ष और प्रयास पर प्रोत्साहित कर सकता है। निश्चित रूप से यह विशेषताएं उन ठोस विचारों के कारण हैं जिन पर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का आंदोलन आधारित है।

इस आंदोलन में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का मूल उद्देश्य ईश्वरीय कर्तव्यों का पालन था। ईश्वर की ओर से जो कुछ कर्तव्य के रूप में मनुष्य के लिए अनिवार्य किया गया है वह वास्तव में हितों की रक्षा और बुराईयों से दूरी के लिए है। जो मनुष्य उपासक के महान पद पर आसीन होता है और जिसके लिए ईश्वर की उपासना गर्व का कारण होता है, वह ईश्वरीय कर्तव्यों के पालन और ईश्वर को प्रसन्न करने के अतिरिक्त किसी अन्य चीज़ के बारे में नहीं सोचता। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के कथनों और उनके कामों में जो चीज़ सब से अधिक स्पष्ट रूप से नज़र आती है वह अपने ईश्वरीय कर्तव्य का पालन और इतिहास के उस संवेदनशील काल में उचित क़दम उठाना है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए बुराईयों से रोकने की इमाम हुसैन की कार्यवाही, उनके विभिन्न प्रयासों का ध्रुव रही है।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का एक उद्देश्य, ऐसी प्रक्रिया से लोहा लेना था जो धर्म और इस्लामी राष्ट्र की जड़ों को खोखली कर रहे थे। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने एसे मोर्चे से टकराने का निर्णय लिया जो समाज को धर्म की सही विचारधारा और उच्च मान्यताओं से दूर करने का प्रयास कर रही थी। यह भ्रष्ट प्रक्रिया, यद्यपि धर्म और सही इस्लामी शिक्षाओं से दूर थी किंतु स्वंय को धर्म की आड़ में छिपा कर वार करती थी। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को भलीभांति ज्ञान था कि शासन व्यवस्था में व्याप्त यह बुराई और भ्रष्टाचार इसी प्रकार जारी रहा तो धर्म की शिक्षाओं के बड़े भाग को भुला दिया जाएगा और धर्म के नाम पर केवल उसका नाम ही बाक़ी बचेगा। इसी लिए यज़ीद की भ्रष्ट व मिथ्याचारी सरकार से मुक़ाबले के लिए विशेष प्रकार की चेतना व बुद्धिमत्ता की आवश्यकता थी। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने आंदोलन के आरंभ में मदीना नगर से निकलते समय कहा थाः मैं भलाईयों की ओर बुलाने और बुराईयों से रोकने के लिए मदीना छोड़ रहा हूं।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विचार धारा में अत्याचारी शासन के विरुद्ध आंदोलन, समाज के राजनीतिक ढांचे में सुधार और न्याय के आधार पर एक सरकार के गठन के लिए प्रयास भलाईयों का आदेश देने और बुराईयों से रोकने के ईश्वरीय कर्तव्य के पालन के उदाहरण हैं। ईरान के प्रसिद्ध विचारक शहीद मुतह्हरी इस विचारधारा के महत्व के बारे में कहते हैं

भलाईयों के आदेश और बुराईयों से रोकने के विचार ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन को अत्याधिक महत्वपूर्ण बना दिया। अली के पुत्र इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम भलाईयों के आदेश और बुराईयों से रोकने अर्थात इस्लामी समाज के अस्तित्व को निश्चित बनाने वाले सब से अधिक महत्वपूर्ण कार्यवाही की राह में शहीद हुए और यह एसा महत्वपूर्ण सिद्धान्त है कि यदि यह न होता तो समाज टुकड़ों में बंट जाता।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम एक चेतनापूर्ण सुधारक के रूप में स्वंय का यह दायित्व समझते थे कि अत्याचार, अन्याय व भ्रष्टाचार के सामने चुप न बैठें। बनी उमैया ने प्रचारों द्वारा अपनी एसी छवि बनायी थी कि शाम क्षेत्र के लोग, उन्हें पैग़म्बरे इस्लाम के सब से निकटवर्ती समझते थे और यह सोचते थे कि भविष्य में भी उमैया का वंश ही पैग़म्बरे इस्लाम का सब से अधिक योग्य उत्तराधिकारी होगा। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को इस गलत विचारधारा पर अंकुश लगाना था और इस्लामी मामलों की देख रेख के संदर्भ में पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों की योग्यता और अधिकार को सब के सामने सिद्ध करना था। यही कारण है कि उन्होंने बसरा नगर वासियों के नाम अपने पत्र में, अपने आंदोलन के उद्देश्यों का वर्णन करते हुए लिखा थाः

हम अहलेबैत, पैग़म्बरे इस्लाम के सब से अधिक योग्य उत्तराधिकारी थे किंतु हमारा यह अधिकार हम से छीन लिया गया और अपनी योग्यता की जानकारी के बावजूद हमने समाज की भलाई और हर प्रकार की अराजकता व हंगामे को रोकने के लिए, समाज की शांति को दृष्टि में रखा किंतु अब मैं तुम लोगों को कुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम की शैली की ओर बुलाता हूं क्योंकि अब परिस्थितियां एसी हो गयी हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम की शैली नष्ट हो चुकी है और इसके स्थान पर धर्म से दूर विषयों को धर्म में शामिल कर लिया गया है। यदि तुम लोग मेरे निमंत्रण को स्वीकार करते हो तो मैं कल्याण व सफलता का मार्ग तुम लोगों को दिखाउंगा।

कर्बला के महाआंदोलन में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विचारधारा इस वास्तविकता का चिन्ह है कि इस्लाम एक एसा धर्म है जो आध्यात्मिक आयामों के साथ राजनीतिक व समाजिक क्षेत्रों में भी अत्याधिक संभावनाओं का स्वामी है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विचारधारा में धर्म और राजनीति का जुड़ाव इस पूरे आंदोलन में जगह जगह नज़र आता है। वास्तव में यह आंदोलन, अत्याचारी शासकों के राजनीतिक व धार्मिक भ्रष्टाचार के विरुद्ध क्रांतिकारी संघर्ष था। सत्ता, नेतृत्व और अपने समाजिक भविष्य में जनता की भागीदारी, इस्लाम में अत्याधिक महत्वपूर्ण और संवेदनशील विषय है।

इसी लिए जब सत्ता किसी अयोग्य व्यक्ति के हाथ में चली जाए और वह धर्म की शिक्षाओं और नियमों पर ध्यान न दे तो इस स्थिति में ईश्वरीय आदेशों के कार्यान्वयन को निश्चित नहीं समझा जा सकता और फेर बदल तथा नये नये विषय, धर्म की मूल शिक्षाओं में मिल जाते हैं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने इन परिस्थितियों को सुधारने के विचार के साथ संघर्ष व आंदोलन का मार्ग अपनाया। क्योंकि वे देख रहे थे कि ईश्वरीय दूत की करनी व कथनी को भुला दिया गया है और धर्म से अलग विषयों को धर्म का रूप देकर समाज के सामने परोसा जा रहा है।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की दृष्टि में मानवीय व ईश्वरीय आधारों पर, समाज-सुधार का सबसे अधिक प्रभावी साधन सत्ता है। इस स्थिति में पवित्र ईश्वरीय विचारधारा समाज में विस्तृत होती है और समाजिक न्याय जैसी मानवीय आंकाक्षाएं व्यवहारिक हो जाती हैं।

आशूर के महाआंदोलन में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विचारधारा का एक आधार, न्यायप्रेम और अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष था। न्याय, धर्म के स्पष्ट आदेशों में से है कि जिसका प्रभाव मानव जीवन के प्रत्येक आयाम पर व्याप्त है। उमवी शासन श्रंखला की सब से बड़ी बुराई, जनता पर अत्याचार और उनके अधिकारों की अनेदेखी थी। स्पष्ट है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम जैसी हस्ती इस संदर्भ में मौन धारण नहीं कर सकती थी। क्योंकि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के विचार में चुप्पी और लापरवाही, एक प्रकार से अत्याचारियों के साथ सहयोग था। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम इस संदर्भ में हुर नामक सेनापति के सिपाहियों के सामने अपने भाषण में कहते हैं।

हे लोगो! पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा है कि यदि कोई किसी एसे अत्याचारी शासक को देखे जो ईश्वर द्वारा वैध की गयी चीज़ों को अवैध करता हो, ईश्वरीय प्रतिज्ञा व वचनों को तोड़ता हो, ईश्वरीय दूत की शैली का विरोध करता हो और अन्याय करता हो, और वह व्यक्ति एसे शासक के विरुद्ध अपनी करनी व कथनी द्वारा खड़ा न हो तो ईश्वर के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि उस व्यक्ति को भी उसी अत्याचारी का साथी समझे। हे लोगो! उमैया के वंश ने भ्रष्टाचार और विनाश को स्पष्ट कर दिया है, ईश्वरीय आदेशों को निरस्त कर दिया है और जन संपत्तियों को स्वंय से विशेष कर रखा है।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के तर्क में अत्याचारी शासक के सामने मौन धारण करना बहुत बड़ा पाप है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के अस्तित्व में स्वतंत्रता प्रेम, उदारता और आत्मसम्मान का सागर ठांठे मार रहा था। यह विशेषताएं इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को अन्य लोगों से भिन्न बना देती हैं। उनमें प्रतिष्ठा व सम्मान इस सीमा तक था कि जिसके कारण वे यजीद जैसे भ्रष्ट व पापी शासक के आदेशों के पालन की प्रतिज्ञा नहीं कर सकते थे। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विचारधारा में ऐसे शासक की आज्ञापालन की प्रतिज्ञा का परिणाम जो ईश्वर और जनता के अधिकारों का रक्षक न हो, अपमान और तुच्छता के अतिरिक्त कुछ नहीं होगा। इसी लिए वे, अभूतपूर्व साहस व वीरता के साथ अत्याचार व अन्याय के प्रतीक यजीद की आज्ञापालन के विरुद्ध मज़बूत संकल्प के साथ खड़े हो जाते हैं और अन्ततः मृत्यु को गले लगा लेते हैं। वे मृत्यु को इस अपमान की तुलना में वरीयता देते हैं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विचारधारा में मानवीय सम्मान का इतना महत्व है कि यदि आवश्यक हो तो मनुष्य को इसकी सुरक्षा के लिए अपने प्राण की भी आहूति दे देनी चाहिए।

इस प्रकार से इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन में एसे जीवंत और आकर्षक विचार नज़र आते हैं जो इस आंदोलन को इस प्रकार के सभी आंदोलनों से भिन्न बना देते हैं। यही कारण है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का स्वतंत्रताप्रेमी आंदोलन, सभी युगों में प्रेरणादायक और प्रभावशाली रहा है और आज भी है।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का आंदोलन, एक एसी घटना है जिसमें प्रेरणादायक और प्रभावशाली तत्वों की भरमार है। यह आंदोलन इतना शक्तिशाली है जो हर युग में लोगों को संघर्ष और प्रयास पर प्रोत्साहित कर सकता है। निश्चित रूप से यह विशेषताएं उन ठोस विचारों के कारण हैं जिन पर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का आंदोलन आधारित है।

इस आंदोलन में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का मूल उद्देश्य ईश्वरीय कर्तव्यों का पालन था। ईश्वर की ओर से जो कुछ कर्तव्य के रूप में मनुष्य के लिए अनिवार्य किया गया है वह वास्तव में हितों की रक्षा और बुराईयों से दूरी के लिए है। जो मनुष्य उपासक के महान पद पर आसीन होता है और जिसके लिए ईश्वर की उपासना गर्व का कारण होता है, वह ईश्वरीय कर्तव्यों के पालन और ईश्वर को प्रसन्न करने के अतिरिक्त किसी अन्य चीज़ के बारे में नहीं सोचता। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के कथनों और उनके कामों में जो चीज़ सब से अधिक स्पष्ट रूप से नज़र आती है वह अपने ईश्वरीय कर्तव्य का पालन और इतिहास के उस संवेदनशील काल में उचित क़दम उठाना है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए बुराईयों से रोकने की इमाम हुसैन की कार्यवाही, उनके विभिन्न प्रयासों का ध्रुव रही है।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का एक उद्देश्य, ऐसी प्रक्रिया से लोहा लेना था जो धर्म और इस्लामी राष्ट्र की जड़ों को खोखली कर रहे थे। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने एसे मोर्चे से टकराने का निर्णय लिया जो समाज को धर्म की सही विचारधारा और उच्च मान्यताओं से दूर करने का प्रयास कर रही थी। यह भ्रष्ट प्रक्रिया, यद्यपि धर्म और सही इस्लामी शिक्षाओं से दूर थी किंतु स्वंय को धर्म की आड़ में छिपा कर वार करती थी। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को भलीभांति ज्ञान था कि शासन व्यवस्था में व्याप्त यह बुराई और भ्रष्टाचार इसी प्रकार जारी रहा तो धर्म की शिक्षाओं के बड़े भाग को भुला दिया जाएगा और धर्म के नाम पर केवल उसका नाम ही बाक़ी बचेगा। इसी लिए यज़ीद की भ्रष्ट व मिथ्याचारी सरकार से मुक़ाबले के लिए विशेष प्रकार की चेतना व बुद्धिमत्ता की आवश्यकता थी। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने आंदोलन के आरंभ में मदीना नगर से निकलते समय कहा थाः मैं भलाईयों की ओर बुलाने और बुराईयों से रोकने के लिए मदीना छोड़ रहा हूं।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विचार धारा में अत्याचारी शासन के विरुद्ध आंदोलन, समाज के राजनीतिक ढांचे में सुधार और न्याय के आधार पर एक सरकार के गठन के लिए प्रयास भलाईयों का आदेश देने और बुराईयों से रोकने के ईश्वरीय कर्तव्य के पालन के उदाहरण हैं। ईरान के प्रसिद्ध विचारक शहीद मुतह्हरी इस विचारधारा के महत्व के बारे में कहते हैं

भलाईयों के आदेश और बुराईयों से रोकने के विचार ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन को अत्याधिक महत्वपूर्ण बना दिया। अली के पुत्र इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम भलाईयों के आदेश और बुराईयों से रोकने अर्थात इस्लामी समाज के अस्तित्व को निश्चित बनाने वाले सब से अधिक महत्वपूर्ण कार्यवाही की राह में शहीद हुए और यह एसा महत्वपूर्ण सिद्धान्त है कि यदि यह न होता तो समाज टुकड़ों में बंट जाता।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम एक चेतनापूर्ण सुधारक के रूप में स्वंय का यह दायित्व समझते थे कि अत्याचार, अन्याय व भ्रष्टाचार के सामने चुप न बैठें। बनी उमैया ने प्रचारों द्वारा अपनी एसी छवि बनायी थी कि शाम क्षेत्र के लोग, उन्हें पैग़म्बरे इस्लाम के सब से निकटवर्ती समझते थे और यह सोचते थे कि भविष्य में भी उमैया का वंश ही पैग़म्बरे इस्लाम का सब से अधिक योग्य उत्तराधिकारी होगा। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को इस गलत विचारधारा पर अंकुश लगाना था और इस्लामी मामलों की देख रेख के संदर्भ में पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों की योग्यता और अधिकार को सब के सामने सिद्ध करना था। यही कारण है कि उन्होंने बसरा नगर वासियों के नाम अपने पत्र में, अपने आंदोलन के उद्देश्यों का वर्णन करते हुए लिखा थाः

हम अहलेबैत, पैग़म्बरे इस्लाम के सब से अधिक योग्य उत्तराधिकारी थे किंतु हमारा यह अधिकार हम से छीन लिया गया और अपनी योग्यता की जानकारी के बावजूद हमने समाज की भलाई और हर प्रकार की अराजकता व हंगामे को रोकने के लिए, समाज की शांति को दृष्टि में रखा किंतु अब मैं तुम लोगों को कुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम की शैली की ओर बुलाता हूं क्योंकि अब परिस्थितियां एसी हो गयी हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम की शैली नष्ट हो चुकी है और इसके स्थान पर धर्म से दूर विषयों को धर्म में शामिल कर लिया गया है। यदि तुम लोग मेरे निमंत्रण को स्वीकार करते हो तो मैं कल्याण व सफलता का मार्ग तुम लोगों को दिखाउंगा।

कर्बला के महाआंदोलन में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विचारधारा इस वास्तविकता का चिन्ह है कि इस्लाम एक एसा धर्म है जो आध्यात्मिक आयामों के साथ राजनीतिक व समाजिक क्षेत्रों में भी अत्याधिक संभावनाओं का स्वामी है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विचारधारा में धर्म और राजनीति का जुड़ाव इस पूरे आंदोलन में जगह जगह नज़र आता है। वास्तव में यह आंदोलन, अत्याचारी शासकों के राजनीतिक व धार्मिक भ्रष्टाचार के विरुद्ध क्रांतिकारी संघर्ष था। सत्ता, नेतृत्व और अपने समाजिक भविष्य में जनता की भागीदारी, इस्लाम में अत्याधिक महत्वपूर्ण और संवेदनशील विषय है।

इसी लिए जब सत्ता किसी अयोग्य व्यक्ति के हाथ में चली जाए और वह धर्म की शिक्षाओं और नियमों पर ध्यान न दे तो इस स्थिति में ईश्वरीय आदेशों के कार्यान्वयन को निश्चित नहीं समझा जा सकता और फेर बदल तथा नये नये विषय, धर्म की मूल शिक्षाओं में मिल जाते हैं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने इन परिस्थितियों को सुधारने के विचार के साथ संघर्ष व आंदोलन का मार्ग अपनाया। क्योंकि वे देख रहे थे कि ईश्वरीय दूत की करनी व कथनी को भुला दिया गया है और धर्म से अलग विषयों को धर्म का रूप देकर समाज के सामने परोसा जा रहा है।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की दृष्टि में मानवीय व ईश्वरीय आधारों पर, समाज-सुधार का सबसे अधिक प्रभावी साधन सत्ता है। इस स्थिति में पवित्र ईश्वरीय विचारधारा समाज में विस्तृत होती है और समाजिक न्याय जैसी मानवीय आंकाक्षाएं व्यवहारिक हो जाती हैं।

 आशूर के महाआंदोलन में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विचारधारा का एक आधार, न्यायप्रेम और अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष था। न्याय, धर्म के स्पष्ट आदेशों में से है कि जिसका प्रभाव मानव जीवन के प्रत्येक आयाम पर व्याप्त है। उमवी शासन श्रंखला की सब से बड़ी बुराई, जनता पर अत्याचार और उनके अधिकारों की अनेदेखी थी। स्पष्ट है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम जैसी हस्ती इस संदर्भ में मौन धारण नहीं कर सकती थी। क्योंकि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के विचार में चुप्पी और लापरवाही, एक प्रकार से अत्याचारियों के साथ सहयोग था। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम इस संदर्भ में हुर नामक सेनापति के सिपाहियों के सामने अपने भाषण में कहते हैं।

हे लोगो! पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा है कि यदि कोई किसी एसे अत्याचारी शासक को देखे जो ईश्वर द्वारा वैध की गयी चीज़ों को अवैध करता हो, ईश्वरीय प्रतिज्ञा व वचनों को तोड़ता हो, ईश्वरीय दूत की शैली का विरोध करता हो और अन्याय करता हो, और वह व्यक्ति एसे शासक के विरुद्ध अपनी करनी व कथनी द्वारा खड़ा न हो तो ईश्वर के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि उस व्यक्ति को भी उसी अत्याचारी का साथी समझे। हे लोगो! उमैया के वंश ने भ्रष्टाचार और विनाश को स्पष्ट कर दिया है, ईश्वरीय आदेशों को निरस्त कर दिया है और जन संपत्तियों को स्वंय से विशेष कर रखा है।

 इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के तर्क में अत्याचारी शासक के सामने मौन धारण करना बहुत बड़ा पाप है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के अस्तित्व में स्वतंत्रता प्रेम, उदारता और आत्मसम्मान का सागर ठांठे मार रहा था। यह विशेषताएं इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को अन्य लोगों से भिन्न बना देती हैं। उनमें प्रतिष्ठा व सम्मान इस सीमा तक था कि जिसके कारण वे यजीद जैसे भ्रष्ट व पापी शासक के आदेशों के पालन की प्रतिज्ञा नहीं कर सकते थे। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विचारधारा में ऐसे शासक की आज्ञापालन की प्रतिज्ञा का परिणाम जो ईश्वर और जनता के अधिकारों का रक्षक न हो, अपमान और तुच्छता के अतिरिक्त कुछ नहीं होगा। इसी लिए वे, अभूतपूर्व साहस व वीरता के साथ अत्याचार व अन्याय के प्रतीक यजीद की आज्ञापालन के विरुद्ध मज़बूत संकल्प के साथ खड़े हो जाते हैं और अन्ततः मृत्यु को गले लगा लेते हैं। वे मृत्यु को इस अपमान की तुलना में वरीयता देते हैं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विचारधारा में मानवीय सम्मान का इतना महत्व है कि यदि आवश्यक हो तो मनुष्य को इसकी सुरक्षा के लिए अपने प्राण की भी आहूति दे देनी चाहिए।

इस प्रकार से इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन में एसे जीवंत और आकर्षक विचार नज़र आते हैं जो इस आंदोलन को इस प्रकार के सभी आंदोलनों से भिन्न बना देते हैं। यही कारण है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का स्वतंत्रताप्रेमी आंदोलन, सभी युगों में प्रेरणादायक और प्रभावशाली रहा है और आज भी है।

 

ग़ज़ा में युद्ध की वजह से राजनीतिक, सुरक्षा, सैन्य और सामाजिक ख़र्चों के अलावा ज़ायोनी शासन के लिए भारी और अपूरणीय आर्थिक ख़र्चे बढ़ गये हैं।

 ग़ज़ापट्टी पर ज़ायोनी सेना के हमले से पहले इस्राईल की अर्थव्यवस्था भयंकर, मंदी, महंगाई और गिरावट से जूझ रही थी और अब इस युद्ध के 9 महीने से अधिक समय के बाद इस संकट का दायरा और भी गंभीर हो गया है। पार्सटुडे के इस लेख में, हमने ग़ज़ा युद्ध के बाद इस्राईली शासन के आर्थिक संकट पर एक नज़र डाली है:

 युद्ध के आर्थिक प्रभावों की वजह से इस्राईल की क्रेडिट रेटिंग कम हो गई

 ग़ज़ा पर अपने हमलों की शुरुआत के बाद, ज़ायोनी शासन को कई आर्थिक ख़र्चों का सामना करना पड़ा जिनमें हाल ही में मूडीज़ क्रेडिट रेटिंग एजेंसी ने क्रेडिट रेटिंग के क्षेत्र में बताया कि पिछले 30 साल में पहली बार इस्राईल के ताज़ा ख़र्चे डाउनग्रेड हुए हैं।

 मूडीज़ एक अमेरिकी वित्तीय और व्यावसायिक सेवा कंपनी है जो बांड बाज़ार की समीक्षाएं और विश्लेषण, क्रेडिट बाज़ार का जाएज़ा, बांड प्रबंधन और निवेश प्रबंधन सेवाएं प्रदान करती है।

 मूडीज़ क्रेडिट रेटिंग एजेंसी ने इस्राईल के उसकी रेटिंग योजना में शामिल होने के बाद पहली बार इस्राईल की क्रेडिट रेटिंग को घटाकर A2 कर दी है।

 इस कंपनी ने अपने बयान में, घोषणा की कि यह काम उच्च स्तर के भू-राजनीतिक ख़तरों, विशेष रूप से इस्राईल के लिए मध्यम और दीर्घकालिक सुरक्षा ख़तरों की वजह है।

 ग़ज़ा युद्ध के नतीजे में ज़ायोनी शासन के मंत्रिमंडल के कर्ज़ों में वृद्धि

 युद्ध की वजह से ज़ायोनी शासन की कैबिनेट का कर्ज़ भी बढ़ गया और 2023 की तीसरी तिमाही के अंत में यह लगभग 1.08 ट्रिलियन शेकेल (294.2 बिलियन डॉलर) तक पहुंच गया और ऐसा लगता है कि तब से जंग की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कर्ज़ और वित्तीय मदद हासिल करने के विषय में तेज़ी आई है।

 इस्राईल के लिए लाल सागर का सुरक्षा ख़तरा, परिवहन ख़र्चों में वृद्धि

 ग़ज़ा में ज़ायोनी शासन के अपराधों और इस इलाक़े की नाकाबंदी के बाद, यमनी सशस्त्र बलों ने एलान किया कि वे मक़बूज़ा क्षेत्रों की ओर जाने वाले जहाजों का रास्ता रोकेंगे और उन्हें निशाना बनाएंगे।

 हालिया हफ़्तों में ये हमले और तेज़ हो गए हैं और ज़ायोनी शासन का 90 प्रतिशत से अधिक व्यापार समुद्र पर निर्भर होने की वजह से तेल अवीव पर भारी आर्थिक लागत आ गई है।

 पर्यटन आय में कमी

 मक़बूज़ा क्षेत्रों में पर्यटकों की संख्या के सर्वेक्षण से पता चलता है कि 1995 और 2023 के बीच, सालाना औसतन 2.5 मिलियन लोगों ने मक़बूज़ा क्षेत्रों का दौरा किया जो 2019 में अपने चरम पर पहुंच गया था जब 4.5 मिलियन पर्यटकों ने इस्राईल की यात्रा की थी।

 इस शासन ने 2022 में पर्यटन से 5.5 बिलियन डॉलर की कमाई की है लेकिन तूफ़ान अल-अक्सा ऑपरेशन के बाद इस शासन के पर्यटन को भारी नुकसान हुआ और अक्टूबर और नवम्बर 2023 में पर्यटकों की संख्या क्रमशः 89 हजार और 38 हजार थी जबकि दिसंबर में यह संख्या शून्य तक पहुंच गई।

 युद्ध का नौकरियों पर असर

 युद्ध की शुरुआत के बाद से, किसी भी कंपनी ने मक़बूज़ा क्षेत्रों में काम करना शुरू नहीं किया है और लगभग 57 हजार कंपनियां, जिनमें से अधिकांश छोटी कंपनियां हैं, 2023 में बंद हो गई हैं, जो कि पिछले साल बंद कंपनियों की तुलना में 35  प्रतिशत की वृद्धि दर्शाती है।

 ज़ायोनी शासन की 70 प्रतिशत से अधिक आरक्षित सेनाओं को वापस बुलाने के बाद, इस शासन को श्रमिकों की कमी का सामना करना पड़ रहा है और इसकी भरपाई के लिए भारतीय श्रमिकों को काम पर रखना शुरू कर दिया गया है।

 शरणार्थियों को बसाने का ख़र्चा

 युद्ध की शुरुआत के बाद, ग़ज़ा पट्टी के आसपास और मक़बूज़ा क्षेत्रों और लेबनानी सीमा के उत्तर में रहने वाले कई परिवारों ने उन क्षेत्रों में प्रवास करने की कोशिश की जहां सुरक्षा ज़्यादा है। इसीलिए शुरुआती दिनों में होटल, मोटल और किराये के अपार्टमेंट, अपनी क्षमताओं से ज़्यादा भरे हुए थे।

 ज़ायोनी शासन के होटल एसोसिएशन के प्रमुख ने कहा है कि होटल के आधे कमरे ग़ज़ा के आसपास से विस्थापित लोगों के लिए रिज़र्व कर दिए गए हैं।

 परिणामस्वरूप, ज़ायोनी शासन की कैबिनेट ने इन लोगों को एक स्थान पर एकत्रित रखने के लिए शिविर बनाने के बारे में सोचा और मिसाल पेश करने क लिए शिविर निर्माण के लिए 150 हजार वर्ग मीटर ज़मीन भी विशेष कर दी।

 इन घटनाओं का नतीजा यह निकला कि मक़बूज़ा फ़िलिस्तीन से ज़ायोनीवादियों के रिवर्स प्रवासन तेज़ हो गया जो पिछले वर्षों की तुलना में कई गुना है।

 इससे ज़ायोनी शासन के मंत्रिमंडल पर भारी वित्तीय बोझ भी पड़ता है और मक़बूज़ा क्षेत्रों में होटल उद्योग को भी गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

 ज़ायोनी शासन पर युद्ध के आर्थिक प्रभाव के बारे में व्यक्त किये गये बिंदु इस शासन को हुए नुकसान का मात्र एक हिस्सा मात्र थे जिसके नतीजे उसके लिए भारी आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और सुरक्षा के रूप में सामने आएंगे।

 दुनिया के सभी हिस्सों में लोगों के बहिष्कार और बॉयकॉट के कारण ज़ायोनी शासन की कुछ संबद्ध या समर्थित कंपनियों को अन्य आर्थिक नुकसान भी हुआ है जिसे सटीक रूप से आंका नहीं जा सका है।

 

 

हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा अलह़ाज ह़ाफ़िज़ बशीर हुसैन नजफ़ी ने केंद्रीय कार्यालय नजफ़ अशरफ़ में हज़रत आयतुल्लाह सैयद अलवी बुरुजर्दी का स्वागत किया इस मौके पर हौज़ा ए इल्मिया और दीन की तबलीग़ के बारे में बात की।

हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा अलह़ाज ह़ाफ़िज़ बशीर हुसैन नजफ़ी ने  केंद्रीय कार्यालय नजफ़ अशरफ़ में हज़रत आयतुल्लाह सैयद अलवी बुरुजर्दी का स्वागत किया इस मौके पर हौज़ा ए इल्मिया और दीन की तबलीग़ के बारे में बात की।

हज़रत आयतुल्लाह सय्यद अलवी बुरुजर्दी ने मरज ए आली क़द्र की अयादत फ़रमाई और उनकी सेहत व आफ़ियत के लिए बारगाहे ख़ुदावन्दी में दुआ फ़रमाई उक्त इजतिमा में हवज़ाते इल्मिया और मुस्लिम उम्मह की वर्तमान स्थिति पर चर्चा की गई और मोमेनीन के स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए दुआ की गई।

मजलिस वहदत मुस्लिमीन पाकिस्तान के सेंट्रल शोक विंग द्वारा आयोजित, दूसरा वार्षिक भव्य "क़ुमी हुसैन (एएस) मिनी सम्मेलन" नेशनल लाइब्रेरी ऑडिटोरियम, इस्लामाबाद में आयोजित किया गया था, जिसमें शिया सुन्नी विद्वानों और विचार के अन्य स्कूलों ने भाग लिया और संबोधित किया ।

मजलिस वहदत मुस्लिमीन पाकिस्तान की केंद्रीय शोक शाखा द्वारा आयोजित दूसरा वार्षिक "कौमी हुसैन मिनी सम्मेलन" इस्लामाबाद के नेशनल लाइब्रेरी ऑडिटोरियम में आयोजित किया गया था, जिसमें अन्य विचारधाराओं से संबंधित शिया सुन्नी विद्वान शामिल हुए। उन्होंने भाग लिया और संबोधित किया।

एमडब्ल्यूएम के अध्यक्ष सीनेटर अल्लामा राजा नासिर अब्बास जाफरी, जमात अहल हरम के प्रमुख मुफ्ती गुलजार अहमद नईमी, डॉ. सैयद ओसामा बुखारी, अंजुमन ताजरान के अध्यक्ष काशिफ अब्बासी, शायर अहमद फरहाद सैयद अहमद इकबाल रिजवी, सैयद नासिर अब्बास शिराज़ी, अजादारी विंग के अध्यक्ष मलिक इकरार अल्वी, सदस्य नेशनल असेंबली इंजीनियर हमीद हुसैन, सैयद असद अब्बास नकवी, जाने-माने पत्रकार और स्तंभकार मजहर बरलास, अल्लामा मुहम्मद असगर अस्करी सहित सभी धर्मों और विचारधारा के विद्वानों और राजनीतिक और सामाजिक हस्तियों और विभिन्न क्षेत्रों के लोगों ने बात की। जीवन. बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए।

कर्बला आंदोलन का घोषणापत्र;  यह उत्पीड़न और अन्याय के खिलाफ खड़ा होना था

सम्मेलन में भाग लेने वालों को संबोधित करते हुए, अल्लामा राजा नासिर अब्बास जाफ़री ने कहा कि इमाम हुसैन (अ.स.) ने अल्लाह के दूत की भाषा में एक सिद्धांत दिया है कि किसी को अपनी स्वतंत्रता से कभी समझौता नहीं करना चाहिए, न केवल स्वतंत्र होने के लिए इंसानियत की आज़ादी के लिए कोशिश करो, कहते हैं जो ज़िंदा है वही ज़ुल्म के ख़िलाफ़ लड़ता है, आज़ादी के लिए मरना ख़ुशी की बात है आज के फिरौन और यज़ीद हैं गाज़ा में मासूम बच्चे शहीद हो रहे हैं , मजलूमों के साथ खड़ा होना ही असली जिंदगी है।

उन्होंने आगे कहा कि पाकिस्तान में हर जगह क्रूरता और क्रूरता चल रही है, पंजाब में एक प्रतिशोधी व्यक्ति को थोपा गया है, लोगों की राय बदल दी गई है और उन पर अत्याचार किया गया है, मातृभूमि को नुकसान पहुंचाने वाला हर समझौता एमएफ बजट पेश करके निषिद्ध और अमान्य है सरकार के प्रति हमारी धार्मिक जिम्मेदारी है कि वह हमारे पोते रसूल स.अ.व. के महान बलिदान को याद रखे और कर्बला के सार्वभौमिक और क्रांतिकारी संदेश को पीढ़ी-दर-पीढ़ी प्रसारित करे।

अल्लामा राजा नासिर अब्बास जाफ़री ने कहा कि इमाम अल-मक़म ने कर्बला के मैदान में झूठ को हराकर इस्लाम को जीवन और शक्ति दी, मुहर्रम अल-हरम हमें धैर्य और दृढ़ता सिखाता है, आज भी सही और गलत की लड़ाई जारी है, कर्बला अभी भी एक है। स्वतंत्रता सेनानियों के लिए मशाल, जिसका गाजा के उत्पीड़ित लोग अनुसरण करते हैं।

कर्बला आंदोलन का घोषणापत्र;  यह उत्पीड़न और अन्याय के खिलाफ खड़ा होना था

सैयद अहमद इकबाल रिज़वी ने कहा कि इमाम हुसैन (अ.स.) का धन्य व्यक्तित्व मुस्लिम उम्मा के लिए एकता का बिंदु है। इस्लाम धर्म के अस्तित्व के लिए वफादार साथियों ने एक महान बलिदान दिया, यह शाश्वत कहानी आज के समय में हमारे लिए एक उदाहरण है।

मुफ्ती गुलजार अहमद नईमी ने कहा कि कर्बला का संदेश मानवता के लिए है, कर्बला का सबक निस्वार्थता, साहस, धैर्य और एकता है, कर्बला का सबक जुल्म के खिलाफ खड़ा होना है, फिलिस्तीनी लोगों ने इजरायली क्रूरता का पूरी तरह से विरोध किया है ताकत के साथ खड़े होकर विचार को व्यवहार में लाएं।

इस्लामाबाद बार काउंसिल के पूर्व अध्यक्ष आजाद स्टेट ने कहा कि कर्बला आंदोलन का घोषणापत्र उत्पीड़न, ज्यादती और अन्याय के खिलाफ खड़ा होना था, उपनिवेशवाद इस्लाम धर्म के खिलाफ साजिशों में लगा हुआ है, जिसे रोकना और विफल करना हमारी प्राथमिकताओं में होना चाहिए।

केंद्रीय महासचिव सैयद नासिर अब्बास शिराज़ी ने कहा कि सत्य और धर्म के वाहक, मानवीय गरिमा के संरक्षक और विचार की स्वतंत्रता के निडर मुजाहिदीन, इतिहास के महान नायक, हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) की यह महान उपलब्धि और अतुलनीय बलिदान है। इस्लाम हमें यह शिक्षा देता है कि एक मोमिन के जीवन का लक्ष्य अल्लाह ताला की प्रसन्नता और प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए अपने जीवन, धन, सम्मान और प्रतिष्ठा, अपने परिवार और बच्चों को सच्चाई की राह पर बलिदान करना है। पवित्र पैगंबर ने कहा: हुसैन मुझसे हैं और मैं हुसैन से हूं।

नजफ अशरफ,ह़ज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा अलह़ाज ह़ाफ़िज़ बशीर हुसैन नजफ़ी ने अज़ादारी और मजालिस के हवाले से ख़ातिबों और मुबल्लेग़ीन के नाम पैगाम दिया हैं।

नजफ अशरफ,ह़ज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा अलह़ाज ह़ाफ़िज़ बशीर हुसैन नजफ़ी ने अज़ादारी और मजालिस के हवाले से ख़ातिबों और मुबल्लेग़ीन के नाम पैगाम दिया हैं।

  1. मेरे अज़ीज़ भाइयों ,मोहतरम ख़ातिबों, मिम्बरे हुसैनी के ख़िदमत गुज़ारो और मैदाने ख़िताबत के शहसवारों !

बेशक अल्लाह ने आपको ऐसी नेमत से नवाज़ा है के आप इमाम ज़माना (अज) के नाएबीन फ़क़ीहों के फ़रीज़े के बाद सबसे अहम्, अशरफ़ और अफ़ज़ल अमल और फ़रीज़े को अंजाम दे रहे हैं के जो लोगों को दीन की तरफ़ दावत देना नसीहत ,तब्लीग़ और हिदायत और रहनुमाई करना है। हमारे इमामों (अस) ने अपने क़ौल और अमल के ज़रिए पूरे साल के दौरान और ख़ास तौर पर मुहर्रम के दिनों में अज़ादारी और मजालीसे अज़ा बरपा करने की बहुत ताकीद की है

और इमामों की तरफ़ से मजालीसे अज़ा का इस क़द्र एहतेमाम और ताकीद इमाम हुसैन (अस) के ख़ूनी ,रूहानी और आतफ़ी (खूनी, आध्यात्मिक और भावनात्मक) रिश्ते की वजह से नहीं था बल्कि ये सब एहतेमाम सिर्फ़ इस वजह से था के हज़रत इमाम हुसैन (अस) के मुक़द्दस इन्किलाब और क़ुर्बानियों ने दीने इस्लाम को हयाते अबदी बख़्शी के जो शजरए मलऊना बनी उमय्या के ज़ुल्मो सितम, फ़साद और बे राहरवी तले अपने आसार खो रहा था ( जो उमय्यदों के शापित परिवार के उत्पीड़न, उत्पात और गुमराही के तहत अपने निशान खो रहा था।)

बनी उमय्या का उम्मते मुस्लिमा पर तसल्लुत और इस्लाम को मिटाने को कोशिश करना उम्मत के उस इंहिराफ़ का नतीजा था के  जिस की वजह से ज़ाहेरी हुकूमत उसके अस्ल हक़दारों से ग़स्ब होकर उम्मत के ना अहल अफ़राद के हाथों में आगई।

  1. जब हम कर्बला के वाक़ये से पहले और बाद के हालात का जायज़ा लेते हैं तो यह स्पष्ट हो जाता है के इस्लाम को बचाने के लिए इमाम हुसैन (अस) का क़याम और ऐसा हुसैनी इन्किलाब निहायत ज़रूरी और हतमी था और इसी जानिब रसूले ख़ुदा (स अ व आ व) के इरशादात भी इशारा करते हैं ,दीन के हक़ीक़ी क़ाएदीन रसूले ख़ुदा (स अ व आ व), हज़रत अली (अस) हज़रत इमाम हसन (अस) ये जानते थे के दीन को बचाने के लिए ये हुसैनी इन्किलाब बहुत ज़रूरी था यही वजह है के इमामों (अस) ने इस क़यामे हुसैनी और इसकी याद को ज़िंदा और बाक़ी रखने पर बहुत ज़ोर दिया है,

कियोंकि इस इन्किलाब की बक़ा दीन की बक़ा है जब तक इस इन्किलाब का शोला रौशन और मुसतमीर रहेगा लोगों को मोहम्मदी शरीयत की बक़ा ,दीन की मदद और नुसरत के लिए उभारता , उनके शौक़ और हिम्मत में इज़ाफ़ा करता और उनके नुफ़ूस पर तारीख़ी असरात रुनुमा करता रहेगा।

इस एतेबार से आप ख़ातिबों का अमल इसी सांचे में आता है के जिसकी कड़ी शहीदों और इस्लाम की ख़ातिर क़ुर्बानियां देने वालों के सिलसिले से जा मिलती है।

में आपको अज़ीम रुतबे और मन्ज़ेलत पर फ़ाएज़ होने पर  ख़िराजे तहसीन पेश करता हूँ।

  1. वाजिब है के हम लोगों को मजालीसे अज़ा और मातमी जुलूसों में शिरकत करने की ताकीद करें और इसके साथ उन्हें इन जुलूसों वग़ैरा में शरीयत के हुदूद से बाहर निकलने से रोकें और उन्हें ऐसे कामों की इजाज़त ने दें के जो इमाम हुसैन (अस) के मुक़द्दस इन्किलाब की तौहीन का जरिया बने।

इसी तरह ज़रूरी है के अज़ादारी को सियासी मक़ासिद से दूर रखा जाए और कोई शख़्स  इमाम हुसैन (अस) की अज़ादारी और वाक़ये कर्बला को अपने दुनयावी और सियासी मक़ासिद के लिए इस्तेमाल न करे।

  1. ख़तीब के लिए वाजिब है के बावुसूक़ (प्रामाणिक) रवायात को पढ़े और मोतबर किताबों से अहलेबैत (अस) के फ़ज़ाएल, मनाक़िब और मसाएब को हासिल करे , ख़तीब के लिए जाएज़ नहीं है के वो किसी ऐसी रवायत को बयान करे जिस में मज़हब या इमाम हुसैन अस की तौहीन का पहलु मौजूद हो और बेहतर ये है के रवायात के साथ किताब का हवाला दे ताके उस रवायत की ज़िम्मेदारी किताब वाले के ज़िम्मे हो जाए और आप नक़ल करने की ज़िम्मेदारी से आज़ाद हो जाएँ।

5 . ख़तीब के लिए ज़रूरी है के वो कर्बला के वाक़ये को बयान करे और कर्बला के वाक़ये और दीन के अहकाम जैसे नमाज़ रोज़ा  हज ज़कात ख़ुम्स जिहाद वग़ैरा के दरमियान मौजूद रब्त और ताल्लुक़ को लोगों के सामने इमाम हुसैन अस और उनके असहाब अस या इमामों अस से मरवी कलेमात के ज़रिये बयान करे जैसे इमाम हुसैन अस का ये फ़रमान के जिस में आप फ़रमाते हैं

’’ ألا ترون ان الحق لا یعمل بہ و ان الباطل لا یتناھی عنہ لیرغب المؤمن فی لقاء اﷲ محقا‘‘

अर्थात्: क्या तुम नहीं देख रहे कि हक़ पर अमल नहीं किया जा रहा है और किसी को बातिल से रोका नहीं जा रहा है ताकि मोमिन अल्लाह से हक़ीक़ी मुलाक़ात को दोस्त रखे।

इसी तरह इमाम हुसैन अस के इस फ़रमान को भी पढ़ा जा सकता है जो उन्होंने अपने नाना रसूल अल्लाह (स अ व आ व) की क़ब्र को अलविदा करते हुए इरशाद फ़रमाया

.... اللھم انی احب ان آمر بالمعروف و انھٰی عن المنکر

अर्थात्: मेरे अल्लाह में अम्र बिल मारूफ़ और नही अनिल मुनकर को दोस्त रखता हूँ।

कर्बला में जिन नेक और अच्छे इंसानों ने सह़ी और कामयाब रास्ते को अपनाया और अपने ज़माने के इमाम के नेतृत्व में बुरे लोगों के मुक़ाबले, अपनी ख़ुशी के साथ जंग की और शहीद हुए उनमें से कुछ वीर ह़ज़रत अली (अ.स) के बेटे भी थे जो अमी

इमाम हुसैन अ. के कितने भाई कर्बला में शहीद हुए।

अहलेबैत न्यूज़ एजेंसी अबना: कर्बला में जिन नेक और अच्छे इंसानों ने सह़ी और कामयाब रास्ते को अपनाया और अपने ज़माने के इमाम के नेतृत्व में बुरे लोगों के मुक़ाबले, अपनी ख़ुशी के साथ जंग की और शहीद हुए उनमें से कुछ वीर ह़ज़रत अली (अ.स) के बेटे भी थे जो अमीरूल मोमिनीन अ. की तरफ़ से इमाम ह़ुसैन अलैहिस्सलाम के भाई थे, इतिहास की किताबों में उनकी संख्या 18 बताई गई है।

1) हज़रत उम्मुल बनीन की संतानें

हज़रत उम्मुल बनीन की कोख से जन्म लेने वाले अमीरूल मोमिनीन हज़रत अली अ. के चार बेटे करबला में शहीद हुए हैं।

  1. अब्दुल्लाह इब्ने अली अ.

इतिहास में उन्हें अब्दुल्लाह अकबर के नाम से याद किया गया है और अबू मुहम्मद के नाम से मशहूर थे आपकी मां का नाम उम्मुल बनीन था।

आप हज़रत अब्बास अ. से से छोटे लेकिन अपने दूसरे भाइयों में सबसे बड़े थे आपकी करबला में शहादत निश्चित है और सभी इतिहासकारों ने आपका नाम बयान किया है।

  1. जाफ़र इब्ने अली अ.

कुछ इतिहासकारों ने अबू जाफ़र अकबर के नाम से आपको याद किया है और आपकि उपाधि अबू अब्दिल्लाह बयान की है, चूंकि अमीरूल मोमेनीन अ. अपने भाई जाफ़र इब्ने अबी तालिब से बहुत ज़्यादा मुहब्बत करते थे इसलिए आपने उनके नाम पर अपने बेटे का नाम जाफ़र रखा।

  1. उस्मान इब्ने अली अ.

कुछ लोगों ने आपका नाम उस्मान अकबर बयान किया है, अमीरूल मोमिनीन हज़रत अली अ. ने फ़रमाया मैंने अपने बेटे का नाम उस्मान, अपने भाई उस्मान इब्ने मज़नून के नाम पर रखा है (तीसरे ख़लीफ़ा के नाम पर नहीं जैसा के कुछ अहले सुन्नत उल्मा कहते हैं कि तीसरे ख़लीफ़ा के नाम पर आपने अपने बेटे का नाम रखा।)

  1. अब्बास इब्ने अली अ.

हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने जनाब फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की शहादत के दस साल बाद जनाबे उम्मुलबनीन अ. से शादी की। हज़रत अली अलैहिस्सलाम और फ़ातिमा बिन्ते हेज़ाम के यहाँ चार बेटे पैदा हुए, अब्बास, औन, जाफ़र और उस्मान कि जिनमें सबसे बड़े हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम थे। यही कारण है कि उनकी मां को उम्मुल बनीन यानी बेटों की माँ कहा जाता है।

जब जनाबे अब्बास अलैहिस्सलाम का जन्म हुआ तो हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने कानों में अज़ान और इक़ामत कही। आप जनाब अब्बास अलैहिस्सलाम के हाथों को चूमा करते थे और रोया करते थे, एक दिन जनाब उम्मुल बनीन ने इसका कारण पूछा तो इमाम अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया यह हाथ हुसैन की मदद में काट दिये जाएंगे।

हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम कर्बला की ओर हरकत करने वाले इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के कारवान के सेनापति थे। इमाम हुसैन अ. ने कर्बला के मैदान में धैर्य, बहादुरी और वफादारी के वह जौहर दिखाए कि इतिहास में जिसकी मिसाल नहीं मिलती।अब्बास अमदार ने अमवियों की पेशकश ठुकरा कर मानव इतिहास को वफ़ादारी का पाठ दिया। आशूर के दिन कर्बला के तपते रेगिस्तान में जब अब्बास अ. से बच्चों के सूखे होठों और नम आँखों को न देखा गया तो सूखी हुई मश्क को उठाया और इमामअ. से अनुमति लेकर अपने जीवन का सबसे बड़ा इम्तेहान दिया। दुश्मन की सेना को चीरते हुये घाट पर कब्जा किया और मश्क को पानी से भरा लेकिन खुद एक बूंद भी पानी नहीं पिया। इसलिए कि अब्बास अ. की निगाह में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और आपके साथियों के भूखे प्यासे बच्चों की तस्वीर थी।दुश्मन को पता था कि जब तक अब्बास के हाथ सलामत हैं कोई उनका रास्ता नहीं रोक सकता। यही वजह थी कि हज़रत अब्बास के हाथों को निशाना बनाया गया। मश्क की रक्षा में जब अब्बास अलमदार के हाथ अलग हो गए और दुश्मन ने पीछे से हमला किया तो हज़रत अब्बास अ. से घोड़े पर संभला नहीं गया और जमीन पर गिर गये। इमाम हुसैन अ. ने खुद को अपने भाई के पास पहुंचाया।

2) अमीरूल मोमिनीन अ. की दूसरी बीवियों की संतानें जो कर्बला में शहीद हुईं

  1. मुह़म्मद इब्ने अली

आप मुह़म्मद असग़र के नाम से मशहूर हैं

  1. आपकी मां के बारे में कि वह कनीज़ थीं या आज़ाद सह़ी मालूमात नहीं मिलती हैं। कलबी, इब्ने सअद, तबरी व शेख़े तूसी ने आपकी मां को कनीज़ बयान किया है। जबकि नाम बयान नहीं किया है।
  2. जबकि बलाज़री ने आपके कनीज़ होने के बयान के साथ साथ आपका नाम वरह़ा बयान किया है।
  3. दूसरी किताबों में आपको आज़ाद बताया गया है याक़ूबी ने आपका नाम अमामा बिन्ते अबिल आस बयान किया है।
  4. हालांकि कुछ लोगों ने आपके कर्बला में होने के बारे में कुछ नहीं लिखा है या शक किया है। लेकिन बहुत सी मोतबर व विश्वस्नीय किताबों नें आपको कर्बला के शहीदों में गिना है। इसी वजह से आपके नाम को अहले सुन्नत और शिया दोनों ने शहीदों में गिना है।
  5. जबकि इब्ने शहर आशूब अ. ने आपके कर्बला में मौजूद होने की तो ख़बर दी है लेकिन बीमारी की वजह से शहादत से इन्कार किया
  6. अबूबक्र इब्ने अली (अ.स)

आपके नाम के सिलसिले में मतभेद पाया जाता है कुछ ने अबदुल्लाह कुछ ने उबैदुल्लाह और कुछ ने मुह़म्मद असग़र जाना है। मशहूर कथन यह है कि आपकी मां का नाम लैला बिन्ते मसऊद नहली था। जबकि कुछ ने आपकी मां का नाम उम्मुल बनीन बिन्ते ह़िज़ाम कलबी बयान किया है। बहुत सी किताबों में आपको कर्बला के शहीदों में गिना गया है। जबकि कुछ लोग जैसेः तबरी,अबुलफ़ज्र, व इब्ने शहेर आशूब ने आपकी शहादत के सिलसिले में शक किया है शैख़े मुफ़ीद अलैहिर्रह़मा ने आपके नाम को कर्बला के शहीदों में बयान किया है। लेकिन जब ह़ज़रत अली (अ.स) के बेटों की गिनती की है तो अबूबक्र को मुह़म्मद असग़र के उपनाम से याद किया है।

  1. इब्राहीम इब्ने अली (अ.स)

इब्ने क़तीबा, इब्ने अब्दुर रब्बे और दूसरी में इब्राहीम की कर्बला में मौजूदगी और शहादत की ख़बर दी गई है जबकि अबुलफ़रज ने अपनी किताब अनसाब में आपका नाम बयान नहीं किया है। जबकि मुह़म्मद इब्ने अली इब्ने ह़मज़ा के हवाले से बयान किया है कि इब्राहीम “ तफ़” के दिन शहीद हुए। उसने और दूसरों ने आपकी मां को कनीज़ जाना है।

  1. उमर इब्ने अली (अ.स)

कुछ ने आपके नाम को उमरे अकबर और उपनाम अबुल क़ासिम या अबु ह़फ़्स बयान किया है। आपकी मां के संदर्भ में भी मतभेद हुआ है इब्ने सअद और याक़ूबी ने आपकी मां का नाम उम्मे ह़बीब बिन्ते रबीअ तग़लबी जाना है और बयान किया है कि आपको ख़ालिद इब्ने वलीद ने ऐनुत्तम्र में गिरफ़्तार करके मदीना लाया लेकिन उनसे कब ह़ज़रत अली (अ.स) ने शादी की उसका उल्लेख नहीं हुआ है। कुछ दूसरों ने आपकी मां का नाम लैला बिन्ते मसऊद दारमी जाना है। बलाज़री ने लिखा है कि उमर इब्ने ख़त्ताब ने अपने नाम पर उनका नाम रखा, फ़ख़रे राज़ी ने उमर को ह़ज़रत अली (अ.स) के सबसे छोटे बेटे के तौर पर बयान किया है आपके कर्बला में मौजूद होने के बारे में लेखकों में मतभेद पाया जाता है,ख़्वारज़मी, इब्ने शहरे आशूब, मामेक़ानी और दूसरों ने आपको कर्बला के शहीदों में गिना है।

3) वह शहीद जिनका सम्बंध ह़ज़रत इमाम अली (अ.स) से हैं।

  1. उबैदुल्लाह इब्ने अली (अ स)

तबरी ने आपकी मां का नाम लैला बिन्ते मसऊद नहली उल्लेख किया है और लिखा है हेशाम इब्ने मुह़म्मद के गुमान से आप तफ़ में शहीद हुए। (1) अबुलफ़रज ने भी अबुबक्र इब्ने उबैदुल्लाह तलह़ी से रिवायत की है कि वह कर्बला में शहीद हुए लेकिन ख़ुद इस कथन को नहीं माना है। वह और कुछ दूसरे इतिहासकार इस बात को मानते हैं कि मुख़तार के साथियों ने उबैदुल्लाह को मज़ार के दिन क़त्ल कर दिया था। (2) मशहूर नज़रिये में आपकी माँ का नाम लैला बिन्ते मसऊद नहली बयान हुआ है। (3) लेकिन ख़लीफ़ा ने आपकी मां का नाम रुबाब बिन्ते उमरुलक़ैस कलबी लिखा है । (4)

(1) अश्शजरूल मुबारका पेज 189 (2) मक़तलुल ह़ुसैन जिल्द 2 पेज 28 (3) तारीख़े तबरी जिल्द 5, पेज 154 (4) अत्तबक़ातुल कुबरा जिल्द 5, पेज 88।

  1. अब्बास असग़र (अ स)

इब्ने ह़ेज़ाम और उमरी ने आपकी मां का नामः सहबा तग़लबी जबकि ख़लीफ़ा ने लुबाबा बिन्ते उबैदुल्लाह इब्ने अब्बास जाना है (5) कुछ दूसरी किताबों में बयान हुआ है कि आप शबे आशूरा (9 मुहर्रम की रात) पानी लेने गये और फ़ुरात के किनारे शहीद हुए। (6)।

(5) अत्तबक़ातुल कुबरा जिल्द 5, पेज 88 (6) तारीख़े ख़लीफ़ा पेज 145।

11, मुह़म्मद औसत इब्ने अली (अ.स)

मशहूर कथन में आपकी मां का नाम अमामा बिनते अबिल आस उल्लेख हुआ है। और यह बयान हुआ है कि ह़ज़रत अली (अ स) ने जनाब फ़ातेमा (स...) (7) की वसीयत की वजह से उनसे शादी की (8) अकसर किताबों में आपको कर्बला के शहीदों में गिना नहीं किया गया है लेकिन कुछ ने यह लिखा कि आप आशूर के दिन कर्बला में इमाम ह़ुसैन (अ.स) के साथ थे और आप (अ.स) की इजाज़त से जंग की और बहुत से दुश्मनों को मारने के बाद इब्ने ज़ेयाद के लश्कर के हाथों शहीद हुए। (9)

(7) तारीख़े ख़लीफ़ा पेज 145 (8) इत्तेआज़ुल ह़ुनफ़ा पेज 7 (9) वसीलहुद्दारैन पेज 262।

  1. औन इब्ने अली (अ.स)

आपकी माँ असमा बिनते उमैस ख़शअमी हैं और बहुत से इतिहासकारों ने आपको ह़ज़रत अली (अ.स) का बेटा जाना है। (10) अकसर किताबों ने आपकी कर्बला में मौजूदगी पर चुप्पी साध ली है उसके बावजूद कुछ ने आपको कर्बला के शहीदों में गिना गया है। और इस बात का ज़िक्र किया है कि वह इमाम ह़ुसैन (अ.स) के साथ मदीने से कर्बला आये थे।

(10) अत्तबक़ातुल कुबरा जिल्द3, पेज 14।

  1. अतीक़ इब्ने अली (अ स)

आपकी माँ का नाम मालूम नहीं है, कुछ ने आपकी माँ का नाम कनीज़ जाना है (11) कुछ लोग जैसेः इब्ने एमादे ह़म्बली, दयार बकरी, ज़हबी और मुज़फ्फर ने आपकी शहादत को माना है।(12) जबकि पुरानी किताबों में आपका नाम शोहदा में बयान नहीं हुआ है।

(11) तनक़ीहुल मक़ाल जिल्द 3 पेज 83 (12) अत्तबक़ातुल कुबरा जिल्द 3, पेज 514।

  1. जाफ़रुल असग़र (अ.स)

हालांकि आपकी शाहादत पर कोई दलील मौजूद नहीं है उसके बावजूद मुज़फ़्फ़र ने अनुमान के आधार पर आपको कर्बला के शहीदों में गिना है क्योंकि उनका विश्वास यह है कि ह़ज़रत अली (अ स) की जो संतानें कर्बला में नहीं थीं उनका ज़िक्र मिलता है जैसा कि जनाब मोह़सिन की शहादत और जनाब मुह़म्मद इब्ने ह़नफ़िया का मदीने में रुकना (13) जबकि यह साबित है कि ह़ज़रत अली (अ स) के एक बेटे का नाम जाफ़रुल असग़र था। (14)

(13) ज़ख़ीरतुद्दारैन पेज 166 (14) अलइमामा वस्सियासा जिल्द2, पेज 6।

15, अबदुर्रह़मान

कुछ लेखकों ने इस तर्क के आधार पर आपको भी कर्बला के शहीदों में गिना है (15) कहा गया है कि आपकी माँ भी कनीज़ थीं उससे ज़्यादा मालूमात आपके बारे में नहीं मिलती हैं।

(15) बतलुल अलक़मी जिल्द 3, पेज 530।

16, अबदुल्लाहिल असग़र

आपका नाम भी शहीदों की लिस्ट में कुछ पुरानी किताबों में आया है। आयानुश्शिया और दूसरी किताबों में भी आपका उल्लेख मिलता है। कि आप इमाम ह़सन (अ स) के बेटों के शहीद होने के बाद मैदाने कर्बला गये और ज़जर इब्ने क़ैस के हाथ शहीद हुए। (16) मनाक़िब जिल्द 4, पेज 122।

17, क़ासिम इब्ने अली (अ स)

इब्ने शहेर आशूब ने आपको कर्बला के शहीदों में जाना है।

  1. यहया इब्ने अली (अ.)

आपकी मां का नाम असमाँ बयान हुआ है जोउमैस की बेटी थीं, कुछ किताबों में कर्बला में आपकी शहादत की ख़बर दी गई है और कहा गया है कि उमैर इब्ने हज्जाज कंदी आपका सर उठाने वाला था।

हज़रत इमाम हुसैन (अस) ने सन् (61) हिजरी में यज़ीद के विरूद्ध आंदोलन किया। उन्होने अपने आंदोलन के उद्देश्यों को इस तरह बयान किया है किः

  1. जब हुकूमती यातनाओं से तंग आकर हज़रत इमाम हुसैन (अस) मदीना छोड़ने पर मजबूर हुये तो उन्होने अपने आंदोलन के उद्देश्यों को इस तरह स्पष्ट किया। कि मैं अपने व्यक्तित्व को चमकाने या सुखमय ज़िंदगी बिताने या फ़साद करने के लिए आंदोलन नहीं कर रहा हूँ। बल्कि मैं केवल अपने नाना (पैगम्बरे इस्लाम स.अ.) की उम्मत में सुधार के लिये जा रहा हूँ। तथा मेरा मक़सद लोगों को अच्छाई की ओर बुलाना व बुराई से रोकना है। मैं अपने नाना पैगम्बर(स.) व अपने बाबा इमाम अली (अस) की सुन्नत पर चलूँगा।
  2. एक दूसरे अवसर पर आपने कहा कि ऐ अल्लाह तू जानता है कि हम ने जो कुछ किया वह हुकूमत से दुश्मनी या दुनियावी मोहमाया के लिये नहीं किया। बल्कि हमारा उद्देश्य यह है कि तेरे दीन की निशानियों को यथा स्थान पर पहुँचाए। तथा तेरे बंदों के बीच सुधार करें ताकि लोग अत्याचारियों से सुरक्षित रह कर तेरे दीन के सुन्नत व वाजिब आदेशों का पालन कर सके।
  3. जब आप की मुलाक़ात हुर इब्ने यज़ीदे रिहायी की सेना से हुई तो, आपने कहा कि ऐ लोगो अगर तुम अल्लाह से डरते हो और हक़ को हक़दार के पास देखना चाहते हो तो यह काम अल्लाह को ख़ुश करने के लिए बहुत अच्छा है। ख़िलाफ़त पद के अन्य अत्याचारी दावेदारों के मुकाबले में हम अहलेबैत सबसे ज़्यादा अधिकार रखते हैं।
  4. एक अन्य स्थान पर कहा कि हम अहलेबैत हुकूमत के लिये उन लोगों से ज़्यादा हक़दार हैं जो हुकूमत पर क़ब्ज़ा जमाए हैं। इन चार कथनों में जिन उद्देश्यों की और इशारा किया गया है वह इस तरह हैं,
  5. इस्लामी समाज में सुधार।
  6. लोगों को अच्छे काम की नसीहत।
  7. लोगों को बुरे कामों के करने से रोकना।
  8. हज़रत पैगम्बर(स.) और हज़रत इमाम अली (अस) की सुन्नत को किर्यान्वित करना।
  9. समाज को शांति व सुरक्षा प्रदान करना।
  10. अल्लाह के आदेशो के पालन के लिये रास्ता समतल बनाना।

यह सारे उद्देश्य उसी समय हासिल हो सकते हैं जब हुकूमत की बाग़डोर ख़ुद इमाम के हाथो में हो, जो इसके वास्तविक अधिकारी भी हैं। इसलिये इमाम ने ख़ुद कहा भी है कि हुकूमत हम अहलेबैत का अधिकार है न कि हुकूमत कर रहे उन लोगों का जो अत्याचारी हैं।

अनवार अल नजफ़ीया फाउंडेशन के प्रमुख हुज्जतुल इस्लाम शेख अली नजफ़ी ने हौज़ा ए इल्मिया और विश्वविद्यालय के सम्मेलन में शिरकत की और इस मौके पर उन्होंने लोगों को हौज़ा ए इल्मिया और विश्वविद्यालय की अहमियत पर संबोधित किया

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा अलह़ाज ह़ाफ़िज़ बशीर हुसैन नजफ़ी के बेटे और अनवार अल नजफ़ीया फाउंडेशन के प्रमुख हुज्जतुल इस्लाम शेख अली नजफ़ी ने मेहमानों को अपने संबोधन में कहा कि हमारे लिए यह महत्वपूर्ण है कि हम हौज़ा ए इल्मिया और विश्वविद्यालय को अहमियत दे।

ह़ज़रत आयतुल्लाह अल उज़मा अलह़ाज ह़ाफ़िज़ बशीर हुसैन नजफ़ी के फ़रज़न्द और केंद्रीय कार्यालय के निदेशक, हुज्जतुल इस्लाम अली नजफ़ी साहब ने नजफ़ अशरफ ने आयोजित हौज़ा और विश्वविद्यालय सम्मेलन में भाग लिया और केंद्रीय कार्यालय का बयान पढ़ा।

उन्होंने अपने संबोधन में कहा:

हौज़ा और विश्वविद्यालय इराक और विदेशों में सम्मानजनक जीवन की रीढ़ हैं भटकने से बचने के लिए हौज़ा इराकी विश्वविद्यालयों के साथ साथ  इसलिए दुनिया के अच्छे विश्वविद्यालयों के साथ सहयोग कर रहा है।

हौज़ा के प्रणेता विश्वविद्यालय के स्नातकों के बिना नहीं हैं और विश्वविद्यालय भी अपने सभी कार्यकर्ताओं और अग्रदूतों के साथ-साथ जीवन के सभी चरणों में हौज़ा से सहायता और मार्गदर्शन चाहते हैं।

अल्लाह  ने हमें होज़ा इल्मिया के आशीर्वाद से सम्मानित किया है और इसे नजफ़ अशरफ़ में स्थिर किया है, उसी प्रकार उसने हमें व्यापक विश्वविद्यालयों का भी आशीर्वाद दिया है और ये दो आशीर्वाद मोमेनीन के सम्मान का प्राथमिक कारक है।

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ प्रोफेसर ऐसे समय में आधिकारिक तौर पर नास्तिकता और विचलित विचारों को फैलाने में भी भाग लेते हैं जब प्रोफेसरों को शिक्षक माना जाता है।

विश्वविद्यालय कैडरों को विश्वविद्यालयों में नैतिक भ्रष्टाचार के प्रसार को रोकना चाहिए, और उन्हें लड़कों और लड़कियों को धर्म का पालन करने और शैतानी रणनीति से दूर रखने का प्रयास करना चाहिए।

मोहर्रम की पहली तारीख से हज़रत इमाम हुसैन अ.स.का शोक समारोह लंदन में रहने वाले बड़ी संख्या में शियाओं की उपस्थिति के साथ इस्लामिक सेंटर में आयोजित कि गई।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,इंग्लैंड के इस्लामिक सेंटर के सूचना के आधार के अनुसार मुहर्रम के महीने के आगमन के साथ लंदन में रहने वाले विभिन्न राष्ट्रीयताओं के शियाओं ने इंग्लैंड के इस्लामिक सेंटर में इमाम हुसैन अ.स का शोक मनाया और एक बार फिर कर्बला के शहीदों के सरदार को सम्मान देने के लिए उन्होंने अपने इमामों की सीरत को दिखाया हैं।

हज़रत इमाम हुसैन अ.स के लिए एक शोक समारोह इस साल इंग्लैंड के इस्लामिक सेंटर में चार भाषाओं में अलग अलग आयोजित किया गया है और यह केंद्र एक बार फिर इस्लाम के पवित्र पैगंबर के परिवार के सम्मान के लिए इंग्लैंड में रहने वाले बहुत से शियाओं के लिए एक वादा स्थल बन गया है।

राष्ट्रीयताओं के विभिन्न वर्ग, विभिन्न भाषाएँ और रंग, लेकिन एकल और एकजुट प्रेम के साथ, फ़ारसी, अरबी, उर्दू और अंग्रेजी सहित अपनी संस्कृति और भाषा के साथ, इंग्लैंड के इस्लामी केंद्र में काले कपड़े पहनकर और कर्बला के शहीदों के सरदार और उत्पीड़ितों के लिए शोक मनाते हैं।

इस वर्ष मुहर्रम के शोक समारोह की पहली रात को इंग्लैंड के इस्लामिक सेंटर के इमाम हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैय्यद हाशिम मूसवी ने फ़ारसी वक्ताओं के लिए एक भाषण में आशूरा क़याम के दर्शन की व्याख्या करते हुए उत्तर दिया।

सवाल यह है कि शिया लोग आशूरा की घटना से पहले मुहर्रम के पहले दशक में शोक क्यों मनाते हैं। शिया इमाम मुहर्रम के महीने की पवित्रता का पालन करने के बारे में सख्त थे, और उनमें से कई खुद को और अपने परिवारों को सैय्यद अल-शुहदा के लिए शोक मनाने के लिए मुहर्रम महीने की शुरुआत से बाध्य मानते थे।

इसलिए, इमाम मासूमीन अ.स की परंपरा के अनुसार, आशूरा के दिन से 9 दिन पहले मुहर्रम के पहले दिन से शोक शुरू हो जाता है।

इंग्लैंड के इस्लामिक सेंटर के इमाम ने भी इमाम हुसैन अ.स के शोक के सामाजिक और व्यक्तिगत परिणामों की ओर इशारा किया और कहा: धर्म और इस्लामी मूल्यों का पुनरुद्धार, उत्पीड़न और बलिदान की याद, एकता और एकजुटता को मजबूत करना, नैतिकता को बढ़ावा देना और मानवता, और आशूरा संस्कृति की शिक्षा और प्रसारण, इमाम हुसैन (अ.स) के लिए शोक का झंडा उठाना सामाजिक है।

इन शोक सभाओं में अहलुल बैत अ.स. के प्रशंसक कर्बला के शहीदों के ज़ुल्म के शोक में विभिन्न भाषाओं में नारे भी लगाते हैं और नौहा और मताम करते हैं।