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बॉम्बे हाईकोर्ट ने भारत को इस्लामी राष्ट्र बनाने की साज़िश रचने के आरोप में नदी बनाए गए तीन लोगों को ज़मानत देने से इंकार कर दिया। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंगलवार को पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के तीन सदस्यों की जमानत याचिका खारिज कर दी।

न्यायमूर्ति अजय गडकरी, न्यायमूर्ति श्याम चांडक की खंडपीठ ने रजी अहमद खान, उनैस उमर खय्याम पटेल और कय्यूम अब्दुल शेख की जमानत याचिका खारिज की। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि आरोपी व्यक्तियों ने आपराधिक बल का उपयोग करके सरकार को डराने की साजिश रची थी।

अदालत ने तीनों को यह कहते हुए जमानत देने से इन्कार कर दिया कि उन्होंने 2047 तक भारत को एक इस्लामिक देश में बदलने की साजिश रची थी। अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया तीनों के खिलाफ सबूत हैं। बता दें कि केंद्र सरकार ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) पर 2022 में प्रतिबंध लगा दिया था।

फिलिस्तीन के समर्थन में चलाए जा रहे अपने अभियान के तहत इराकी प्रतिरोधी संगठनों ने मक़बूज़ा फिलिस्तीन के ईलात बंदरगाह पर ड्रोन हमले की खबर दी है।

रसिस्टेंस ने अपने बयान में कहा कि ज़ायोनी शासन का मुकाबला जारी रखने, ग़ज़्ज़ा के निवासियों की मदद करने और ज़ायोनीवादियों द्वारा फिलिस्तीनी नागरिकों की हत्या के जवाब में, हमारे मुजाहिदीन ने मक़बूज़ा फिलिस्तीन के ईलात में ज़ायोनी शासन के सैन्य हवाई अड्डे को ड्रोन से निशाना बनाया।

 इराकी प्रतिरोध ने मकब्बूजा फिलिस्तीन के दक्षिण में स्थित इलियट में एक संवेदनशील और महत्वपूर्ण लक्ष्य को ड्रोन हमलों का निशाना बनाया।

बता दें कि इराकी प्रतिरोध ने इस से पहले अपने अभियान के अंत में धमकी दी थी कि अगर ग़ज़्ज़ा के खिलाफ ज़ायोनी अभियान को न रोका गया तो इस्राईल के खिलाफ हमारे हमले व्यापक और अधिक विध्वंसकारी होंगे।

 

अमेरिका ने एक बार फिर हमास पर दबाव बढ़ते हुए उसे बाइडन के शांति प्रस्ताव के आगे झुकने के लिए विवश करना शुरू कर दिया है।

अवैध राष्ट्र इस्राईल के दौरे पर पहुंचे अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने दावा किया कि दुनिया इस योजना के समर्थन में है। उन्होंने दोहराया कि हमास पर इसे स्वीकारने का दबाव है।

पिछले 8 महीने से फिलिस्तीन जनता के जनसंहार में लगे इस्राईल को भरपूर सैन्य एवं आर्थिक समर्थन दे रहे अमेरिका के विदेश मंत्री ब्लिंकेन ने कहा की ज़ायोनी पीएम बेंजामिन नेतन्याहू ने भी प्रस्ताव पर अपनी प्रतिबद्धता जताई है। उन पर ग़ज़्ज़ा में युद्ध के बाद की योजना लागू करने का दबाव है।

बता दें कि 8 अक्टूबर को ग़ज़्ज़ा में ज़ायोनी हमलों कोई शुरुआत के बाद से अमेरिका के ज़ायोनी विदेश मंत्री आठवीं बार इस्राईल यात्रा पर आए हुए हैं।

अल-जज़ीरा टीवी चैनल ने हिज़्बुल्लाह का वीडियो जारी किया, जिसमें देखा जा सकता है कि किस तरह से हिज़्बुल्लाह इस्राईल के सैनिकों पर नज़र रखे हुए है, यहां तक कि कमरों में भी उसकी उनपर नज़र है।

 

पार्सटुडे की रिपोर्ट के मुताबिक़, वैश्विक प्रतिरोध के प्रतिनिधि के रूप में हिज़्बुल्लाह ने 8 अक्तूबर से ही स्पेशल ज़ोन में इस्राईल के जासूसी के केन्द्रों और रडारों को निशाना बनाना शुरू कर दिया था।    

 

हिज़्बुल्लाह ने मेरून सैन्य अड्डे को 7 बार निशाना बनाया है और तबरिया में इस्राईल के दो जासूसी बैलून को भी नष्ट किया है।

 

लेबनान के इस्लामी प्रतिरोधी संगठन के हमलों में सीमावर्ती इलाक़ों के आसमान पर इस्राईल का वर्चस्व अब कमज़ोर पड़ गया है, यही वजह है कि हिज़्बुल्लाह के ड्रोन इस्राईल के रडारों को चकमा देकर और ख़तरे का अलार्म बजे बिना लक्ष्यों को निशाना बना रहे हैं। इसके अलावा, हिज़्बुल्लाह लेबनान की वायु सीमा में इस्राईल के कई ड्रोन विमानों का शिकार कर चुका है।

 

इस्लामी प्रतिरोध ने अरब अल-अरामेशा में अपने जासूसी ड्रोन विमानों द्वारा महत्वपूर्ण जानकारियां इकट्ठा कीं और इस इलाक़े में स्थित ज़ायोनी सेना के अड्डे को निशाना बनाया, जिसमें एक दर्जन से भी ज़्यादा ज़ायोनी सैनिक मारे गए और ज़ख़्मी हो गए।

हिज़्बुल्लाह ने अपने हमलों का दायरा बढ़ा दिया है। इस्राईल के दो जासूसी बैलूनों को मार गिराए जाने के बारे में कहा जा सकता है कि इस्लामी प्रतिरोध ने बहुत ही होशियारी से यह काम किया है। लेबनानी सैन्य अदालत के पूर्व प्रमुख मुनीर शहादा ने मेहर न्यूज़ एजेंसी के साथ बातचीत में कहा हिज़्बुल्लाह ने रणनीति के तहत पहले कंट्रोल रूम को निशाना बनाया, उसके बाद बैलून को मार गिराया। क्योंकि अगर ऐसा नहीं किया जाता, तो कंट्रोल रूम ऑटोमैटिक तरीक़े से बैलून में मौजूद जानकारियों को डिलीट कर देता।

दूसरे बैलून को सीमा से 32 किलोमीडर अंदर तबरिया के इलाक़े में मार गिराया गया। हिज़्बुल्लाह ने सिर्फ़ इस बैलून को ही नहीं गिराया, बल्कि अपने जासूसी ड्रोन को इस्राईल के काफ़ी भीतर घुसा दिया, जिसके बाद वह ड्रोन बैलून से जानकारियां एकत्रित करके और लक्ष्यों की वीडियो और तस्वीरें लेकर वापस लौट आया।

अल-जज़ीरा टीवी पर जो वीडियो हिज्बुल्लाह ने जारी किया है, उसमें देखा जा सकता है कि इस्राईली सैनिकों की समस्त गतिविधियों पर हिज़्बुल्लाह की नज़र है और यहां तक कि बेत हीलल में वह इस्राईली सैन्य बैरकों पर मिसाइलों की बारिश कर सकता है। सोशल मीडिया पर घायल इस्राईली सैनिकों की कई तस्वीरें भी वायरल हुई हैं।

इससे हिज़्बुल्लाह ने साबित कर दिया है कि उसके ड्रोन विमान दुश्मन के बारे में सटीक जानकारियां एकत्रित कर रहे हैं, इस हद तक कि इस्राईली सैन्य अड्डों में आने-जाने वाली गाड़ियों की भी पहचान की जा सकती है।

इसके अलावा, हाल ही में हिज़्बुल्लाह ने आत्मघाती ड्रोन का भी अनावरण किया है, जो 2 साम-5 मिसाइल अपने साथ ले जा सकता है। इस तरह से यह ड्रोन एक ही साथ तीन लक्ष्यों को निशाना बना सकता है। यह ड्रोन हमला करने के अलावा, टारगेट की वीडियो और तस्वीरें भी भेजा सकता है। अलमास मिसाइल में भी यह टेक्नॉलोजी मौजूद है।

डॉक्टर इस्फंदयार अख़्तियारी के अनुसार ईरान की नैतिक संस्कृति है न आइडियालोजी। ईरानी संस्कृति में जो पहली चीज़ महत्वपूर्ण है वह इंसानियत और अख़लाक़ व नैतिकता है।

डॉक्टर इस्फंदयार अख्तियारी ईरान की संसद मजलिसे शुराये इस्लामी में ज़रतुश्तियों के पूर्व सांसद थे। उन्होंने पार्सटुडे के साथ अपने हालिया साक्षात्कार के एक भाग में इस बात का उल्लेख किया कि ईरान में सफल शांतिपूर्ण जीवन का मूल क्या है। यहां हम उनके जवाब और बातों के विश्लेषण पर एक नज़र डालेंगे।

हम ईरान और ईरानी संस्कृति की बात कर रहे हैं। ईरानी संस्कृति का निर्माण पिछले 40 वर्षों में नहीं हुआ है। उसका निर्माण पिछले 1000 सालों में भी नहीं हुआ है। हमारी संस्कृति कई हज़ार साल पुरानी है।

 डॉक्टर इस्फंदयार अख़्तियारी

जब हम कई हज़ार वर्षीय ईरानी संस्कृति की बात करते हैं तो हम कुरूश जैसे व्यक्ति तक पहुंचते हैं। जब वह बाबिल पर विजय हासिल करता है तो आधिकारिक रूप से एलान करता है कि हर कोई अपने धर्म पर बाक़ी रह कर उसका अनुसरण कर सकता है।

इस आधार पर जब हम ईरान में ज़िन्दगी करते हैं तो एक हज़ार 400 साल पहले देखते हैं कि ईसाईयों और यहूदियों ने यहां ज़िन्दगी की है यहां तक कि उनके इतिहास में है कि ईसाईयों के क्षेत्रों के बाद सबसे पुराना गिरजाघर ईरान में था। यह इस बात का सूचक है कि ईरानी संस्कृति का आधार नैतिकता व शिष्टाचार है न कि आइडियालोजी।

ईरानी संस्कृति में सबसे पहली महत्वपूर्ण चीज़ इंसानियत और अख़लाक़ है। इसके बाद आइडियालोजी की बात आती है। यानी हम सब पहले इंसान हैं उसके बाद कुछ और हैं। यह चीज़ ईरानी संस्कृति का आधार है। मिसाल के तौर पर मिर्ज़ा कुचिक ख़ान सड़क के किनारे आतशकदये तेहरान है यानी तेहरान अग्निकुंड और उसके सामने ईसाईयों का गिर्जाघर है। इसी सड़क पर थोड़ा आगे यहूदियों का उपासना स्थल है और उसके आगे मुसलमानों की मस्जिद। इस सड़क का निर्माण अभी नहीं हुआ है, 50 साल पहले भी नहीं हुआ था। यह विषय इस बात का सूचक है कि हमारे देश की संस्कृति शांतिपूर्ण ढंग से रहना है।

इस संस्कृति को उन देशों को समझना बहुत कठिन है जो दाइश को बनाते हैं और वह लोगों का सिर क़लम करता है। क्योंकि उन देशों में आइडियालोजी के आधार पर काम होता है।

मेरे विचार में ईरान न तो दूसरे देशों की तरह है और कभी भी नहीं होगा यहां तक कि अगर कोई गिरोह इस प्रक्रिया को रोकना व बंद करना चाहे तब भी नहीं कर सकता। यह संभव नहीं है क्योंकि संस्कृति एक रात में अस्तित्व में नहीं आती है। संस्कृति सर्क्युलर या परिपत्र से अस्तित्व में नहीं आती है कि उसे एक दूसरे से परिपत्र से बदल दिया जाये। जो भी यह काम करेगा वह हार जायेगा, वह स्वयं को जला व ख़त्म कर लेगा मगर दूसरे देशों में यह होगा क्योंकि उसका मज़बूत सांस्कृतिक पृष्ठिपोषक नहीं है।  दूसरे शब्दों में ईरान में यह होता है कि मैं ज़रतुश्ती हूं एक मुसलमान, एक यहूदी और एक ईसाई का सम्मान करता हूं और इसका उल्टा भी होता है। यह अभी अस्तित्व में नहीं आया है जो अभी समाप्त हो जायेगा। शांतिपूर्ण ढ़ंग से ज़िन्दगी गुज़ारने का अतीत हमारे देश में हज़ारों साल पुराना है जो बाक़ी रहेगा।

यूरोप में संसदीय चुनाव का आयोजन, ज़ायोनी सरकार के युद्धोन्मादी मंत्रिमंडल के सदस्य बेनी गैन्ट्स का इस्तीफ़ा, कोलम्बिया की ओर से इस्राईल का व्यापारिक बहिष्कार पिछले सप्ताह दुनिया की महत्वपूर्ण ख़बरें थीं।

ज़ायोनी सरकार के जंगी मंत्रिमंडल के सदस्य बेनी गैन्ट्स का इस्तीफ़ा

ज़ायोनी सरकार के जंगी मंत्रिमंडल के एक सदस्य बेनी गैन्ट्स ने आधिकारिक तौर पर अपने त्यागपत्र का एलान किया और मध्यावधि चुनाव कराये जाने की मांग की। अलआलम टीवी चैनल की रिपोर्ट के अनुसार ज़ायोनी सरकार के जंगी मंत्रिमंडल के सदस्य बेनी गैन्ट्स ने अपने त्यागपत्र में इस्राईल के प्रधानमंत्री बिनयामिन नेतनयाहू को ग़ज़्ज़ा युद्ध में विजयी होने के मार्ग की रुकावट बताया और बल देकर कहा कि जंगी मंत्रिमंडल में उपस्थिति की वजह संयुक्त भविष्य था न कि राजनीतिक भागीदारी।

जंगी मंत्रिमंडल के सदस्य ने कहा कि जंगी मंत्रिमंडल से निकलने का फैसला सख़्त और दर्दनाक है। साथ ही उन्होंने नेतनयाहू का आह्वान किया कि वह जल्द से जल्द चुनाव कराने और एक जांच कमेटी कठित करने की दिशा में क़दम उठायें।

यूरोपीय संसद के लिए चुनाव

यूरोप में संसदीय चुनाव आयोजित हुए। यह चुनाव यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के निकल जाने के बाद पहले चुनाव थे।

घोषित नतीजों के अनुसार इन चुनावों में 59/51 लोगों ने भाग लिया जो पिछले चुनावों की अपेक्षा इस चुनाव में लोगों की भागीदारी अधिक रही।

इसी प्रकार जिन चुनाव परिणामों की घोषणा हो चुकी है वह इस बात का सूचक है कि इन चुनावों में दक्षिणपंथी और पापुलिस्ट पार्टियां कामयाब रही हैं जबकि यूरोप की ECR पार्टी 131 सीट हासिल करके तीसरे स्थान पर रही है और ID पार्टी को 139 सीटें और S@D  पार्टी ने 184 सीट पर जीत दर्ज की।

इन परिवर्तनों के दृष्टिगत कहा जा सकता है कि यूरोपीय संसद में सत्ता का संतुलन दक्षिणपंथी शक्तियों के पक्ष में रहा है। इसी प्रकार इन चुनावों में बहुत सी सीटें वामपंथी पार्टियों व गठबंधन के हाथ से निकल गयीं और इस समय केवल 54 प्रतिशत सीटें ही उनके पास हैं जो पूर्णबहुमत हासिल करने के लिए काफ़ी नहीं हैं।

फ्रांस में संसद भंग

यूरोप की संसद के लिए होने वाले चुनावों में भारी पराजय के बाद फ्रांस के राष्ट्रपति एमानोएल मैक्रां ने इस देश की संसद को भंग कर दिया और मध्यावधि चुनाव कराये जाने का आदेश दिया है।

फ्रांस में मतदान केन्द्रों से वापस लौटने वाले मतदाताओं का मत और उनका दृष्टिकोण इस बात का सूचक है कि दक्षिण पंथी "मीटिंग ऑफ़ असेंबली पार्टी" 5/31 प्रतिशत और रिंसांस पार्टी ने केवल 2/15 वोट हासिल किया।

फ्रांस के राष्ट्रपति एमानोएल मैक्रां ने नेश्नल पार्टी की जीत पर प्रतिक्रिया में फ्रांस में शांति और समन्वय पर बल दिया।

मैक्सिको में पहली महिला राष्ट्रपति क्लाडिया शाइनबेम

मैक्सिको के चुनाव आयोग की घोषणा के अनुसार क्लाडिया शाइनबेम सबसे अधिक वोट हासिल करके इस देश की ष्ट्रपति चुन ली गयी हैं।

क्लाडिया शाइनबेम मैक्सिको की पहली महिला राष्ट्रपति

मेहर न्यूज़ एजेन्सी ने रोयटर के हवाले से रिपोर्ट दिया है कि मैक्सिको के चुनाव आयोग ने आधिकारिक रूप से क्लाडिया शाइनबेम की जीत की घोषणा के साथ इस बात का भी एलान कर दिया है कि क्लाडिया शाइनबेम मैक्सिको की पहली महिला राष्ट्रपति हो गयी हैं।

क्लाडिया शाइनबेम जलवायु के क्षेत्र में एक अध्ययन व शोधकर्ता हैं और उन्हें मैक्सिको के डेमोक्रेटिक इतिहास में सबसे अधिक वोट लगभग 58 से 60 प्रतिशत मिले हैं।

लैटिन अमेरिका की ओर से इस्राईल का पहला व्यापारिक बहिष्कार

कोलंबिया की सरकार ने डिप्लोमैटिक सीमा से आगे बढ़कर इस्राईल को पत्थर के कोयले के निर्यात को बंद करने का फैसला किया है। उसके इस क़दम का लक्ष्य ग़ज़्ज़ा युद्ध को बंद करने के लिए इस्राईल पर दबाव डालना है। यह किसी लैटिन अमेरिकी देश की ओर से इस्राईल का पहला व्यापारिक बहिष्कार है।

समाचार एजेन्सी इर्ना ने समाचार पत्र अलपाइस के हवाले से रिपोर्ट दी है कि कोलंबिया के व्यापार और वाणिज्यमंत्रालय ने जो आदेश जारी किया है उसके अनुसार इस देश की सरकार ने जायोनी सरकार को पत्थर के कोयले के निर्यात को बंद करने का फैसला किया है और उसके इस फैसले का मकसद जायोनी सरकार को गज्जा युद्ध को बंद करने के लिए दबाव डालना है।

कोलंबिया के विदेशमंत्रालय, वित्तमंत्रालय और ऊर्जा मंत्रालय की ओर से भी इस फैसले का समर्थन किया जा रहा है और इस देश के राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद इस पर अमल किया जायेगा।

 

 अमेरिका और मैक्सिको की सीमा पर सीमित संख्या में शरणार्थियों को स्वीकार किया जायेगा

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने एक आदेश पर हस्ताक्षर कर दिया है जिसके अनुसार अमेरिका और मैक्सिको की सीमा पर अमेरिका में शरण लेने के इच्छुक लोगों को और अधिक सीमित किया जायेगा।

वाइट हाउस के एलान के अनुसार अमेरिकी राष्ट्रपति का मानना है कि अमेरिका को चाहिये कि वह अपनी सीमा को सुरक्षित बनाये। इस आदेश के अनुसार प्रतिदिन मैक्सिको से अमेरिका में प्रवेश करने वाले शरण के इच्छुक लोगों की संख्या औसतन जब 2500 पहुंच जायेगी तो अमेरिका में शरण चाहने वालों की प्रक्रिया बंद कर दी जायेगी और अमेरिकी सीमा केवल उसी समय खोली जायेगी जब अमेरिका में शरण पाने के इच्छुक लोगों की संख्या 2500 से कम होकर 1500 कम हो जायेगी।

अफ़ग़ानिस्तान की पार्लियामेंट में बामयान प्रांत का प्रतिनिधित्व करते रहे मोहम्मद सरवर जवादी ने कहा कि तालिबान की हरकतें उकसाने वाली हैं जबकि शिया समुदाय किसी तरह का तनाव नहीं चाहता है।

सरवर जवादी ने कहा कि तालिबान सरकार ने शिया समुदाय से संबंधित ख़ातिमुल अंबिया यूनिवर्सिटी, तमद्दुन चैनल और हौज़ए इल्मिया ख़ातिमुल अंबिया को बंद करा दिया है।

उन्होंने कहा कि अफ़सोस की बात है कि तालिबान उन सभी धार्मिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों का विरोध करता है जिनसे वे सहमत नहीं हैं, और ऐसा कोई भी धर्म या धार्मिक काम जो उनकी मान्यताओं के अनुरूप नहीं हैं, साथ ही सांस्कृतिक अभिव्यक्तियाँ जो उनकी मान्यताओं में फिट नहीं होती हैं तालिबान उनका कट्टर विरोधी है और तालिबान के लिए यह कोई नया काम नहीं है। तालिबान ने अफगान शिया समुदाय से जुड़े मीडिया, सांस्कृतिक केंद्रों, सूचना और जागरूकता केंद्रों पर प्रतिबंध लगा दिया। कई मीडिया आउटलेट पहले ही बंद कर दिए गए हैं। हम किसी तरह का टकराव नहीं चाहते। अफ़ग़ानिस्तान के शिया शुरू से ही युद्ध और हिंसा की ओर नहीं जाना चाहते थे, भविष्य में भी हम यह रास्ता नहीं चुनेंगे। अफ़ग़ानिस्तान की समस्याएँ केवल धार्मिक और सांस्कृतिक नहीं हैं। अफगान शियाओं के लिए सबसे बड़ी समस्या अर्थव्यवस्था भी है। फिलहाल अफगानिस्तान के शिया इलाकों में बड़े पैमाने पर खदानें लूटी जा रही हैं, लेकिन क्षेत्र के लोगों की ओर से किसी भी व्यक्ति या कंपनी को इनमें काम करने की भी इजाजत नहीं है।

ईरान, सऊदी अरब और मिस्र समेत 5 देशों ने पहली बार ब्रिक्स की बैठक में हिस्सा लिया जिसका भारत ने तहे दिल से स्वागत किया। ईरान, मिस्र, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), सऊदी अरब और इथियोपिया के प्रतिनिधियों ने ब्रिक्स की एक महत्वपूर्ण बैठक में पहली बार हिस्सा लिया।

इन पांचों देशों के प्रतिनिधियों ने रूस की ओर से आयोजित ब्रिक्स की एक महत्वपूर्ण बैठक में पहली बार हिस्सा लिया। इसे लेकर भारत की ओर से खुशी जताई गई। रूस की ओर से आयोजित ब्रिक्स की बैठक में वरिष्ठ राजनयिक दम्मू रवि ने भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया। यह बैठक पश्चिमी रूस के निजनी नोवगोरोद में आयोजित की गई।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने सोशल नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर एक पोस्ट में लिखा ‘विस्तारित ब्रिक्स समूह के की एक महत्वपूर्ण बैठक हुई। भारत इसमें शामिल हुई नए सदस्यों का तहे दिल से स्वागत करता है।’ वर्ष 2023 में ब्रिक्स के विस्तार के बाद यह पहली मंत्रिस्तरीय बैठक थी। मिस्र, इथियोपिया, ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात अब ब्रिक्स समूह के पूर्ण सदस्य बन गए हैं। ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका पहले से ही ब्रिक्स के सदस्य हैं।

 

ग़ज़्ज़ा में अमेरिका के समर्थन से लगातार जनसंहार कर रहा इस्राएल आए दिन अपने हमलों को तेज़ कर रहा है। इसी बीच अमेरिका के ज़ायोनी विदेश मंत्री एक बार फिर सीज़फायर की कोशिशों के नाम पर मिडिल ईस्ट के देशों की यात्रा पर निकले हुए हैं।

इस्राईल का गुणगान करते हुए ब्लिंकेन ने कहा कि इस्राईल बाइडन का शांति प्रस्ताव मान चुका है। ब्लिंकन ने दौरे के पहले दिन मिस्र के राष्ट्रपति सीसी से काहिरा में मुलाकात की और मीडिया से बात करते हुए कहा, “हमास एकमात्र पक्ष है जो अभी तक बाइडन के युद्धविराम प्रस्ताव पर सहमत नहीं हुआ है। उन्होंने मिस्र से कहा है कि वह हमास पर दबाव बनाए।

वहीँ ईरान ने एक बार फिर अमेरिका की साज़िशों मक्कारी को बेनक़ाब करते हुए कहा कि अमेरिका ग़ज़्ज़ा में सीज़फायर करना ही नहीं चाहता। ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नासिर कनआनी ने कहा, पिछले 8 महीने से ग़ज़्ज़ा जनसंहार में जंग ज़ायोनी शासन को अमेरिका का पूरा साथ मिल रहा है। उन्होंने कहा कि अमेरिका किसी भी तरह से युद्धविराम नहीं चाहता।

 

ब्रिक्स देशों ने ग़ज़्ज़ा पर ज़ायोनी हमलों और इस्राईली बर्बरता पर गहरी चिंता जताई है। ब्रिक्स देशों ने अंतरराष्ट्रीय कानून के आधार पर फिलिस्तीन मुद्दे के दो-राज्य समाधान के दृष्टिकोण के प्रति समूह की अटूट प्रतिबद्धता दोहराई।

रूस के निजनी नोवगोरोड में ब्रिक्स देशोंके विदेश मंत्रियों की एक बैठक हुई। इस बैठक में विदेश मंत्रालय में सचिव (आर्थिक संबंध) दम्मू रवि ने भारत का प्रतिनिधित्व किया।

बैठक के बाद जारी किये गए

संयुक्त बयान में मक़्बूओजा फिलिस्तीन में स्थिति की गिरावट पर गंभीर चिंता व्यक्त की। ग़ज़्ज़ा में ज़ायोनी सेना के हमलों के परिणामस्वरूप यहाँ जारी हिंसा, फिलिस्तीनी लोगों की बड़ी संख्या में मौत और बड़े पैमाने पर नागरिक विस्थापन पर चिंता जताई गयी।