رضوی

رضوی

हौज़ा ए इल्मिया ईरान के प्रमुख ने कहां,नई पीढ़ी के पास इस समय के आधार पर नए अल्फाज़ और नए सवालात हैं और इनमें से बहुत से सावलात और चैलेंज का जवाब अब अतीत के रूप से नहीं दिया जा सकता हैं, इसके लिए हमें नए तरीकों की आवश्यकता है इस दृष्टिकोण से परिचित ऊर्जावान और सक्षम लोगों की आवश्यकता है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , हौज़ा ए इल्मिया ईरान के प्रमुख आयतुल्लाह अली रज़ा आराफी ने कुम के शिक्षा मंत्री और कई अन्य सरकारी अधिकारियों के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ एक बैठक में कहा, शिक्षा में विभिन्न संकटों से निपटने के लिए सक्षम लोगों का होना ज़रूरी हैं।

उन्होंने शिक्षा व्यवस्था में विभिन्न समस्याओं और कठिनाइयों का ज़िक्र करते हुए कहा,शिक्षा और प्रशिक्षण के मुद्दे प्रशासनिक संस्थानों और मंत्रालयों के ध्यान का केंद्र होना चाहिए

हौज़ा ए इल्मिया ईरान के प्रमुख ने कहां,सभी को शिक्षा प्रणाली को बेहतर बनाने के लिए शिक्षा मंत्रालय की मदद करनी चाहिए क्योंकि यह शिक्षा ही है जो सभी की सेवा करती है।

आयतुल्लाह अराफ़ी ने कहा जिन देशों में शिक्षा व्यवस्था को सबसे ऊपर रखा जाता है वह सफल और विकसित देश हैं।

उन्होंने आगे कहा,जो संगठन शहरों में नए परिसरों और आवास परियोजनाओं का निर्माण करना चाहते हैं उन्हें मस्जिदों और स्कूलों के निर्माण पर भी ध्यान देना चाहिए।

 

ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है कि पिछले छह महीनों से गाजा में हुई दर्दनाक घटनाएं अंतरराष्ट्रीय हलकों और सरकारों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन की परीक्षा हैं।

इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नासिर कनानी ने अपने सोशल मीडिया पेज पर लिखा कि पिछले छह महीनों में गाजा में हुई दर्दनाक घटनाएं इस बात की परीक्षा हैं कि सरकारें, संस्थाएं और कितनी दूर हैं। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय मानवाधिकारों को लेकर चिंतित हैं। वे इस संबंध में अपने नैतिक, मानवीय, कानूनी और अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों से बंधे हैं।

नासिर कनानी ने कहा कि दक्षिणी के समुद्र तटों पर दो निहत्थे फ़िलिस्तीनी युवाओं को मारने और दफनाने के लिए इज़राइल की रंगभेदी सरकार के सैनिकों के भयानक अपराधों और कार्रवाई पर मानवाधिकारों का दावा करने वाले अधिकारियों और देशों की प्रतिक्रिया की प्रकृति से यह स्पष्ट है। गाजा पट्टी। वे मानव अधिकारों के अपने नारों के प्रति कितने सच्चे हैं।

इराक के इस्लामिक प्रतिरोध ने कब्जे वाले गोलान में एक सैन्य अड्डे पर हमला किया है।

IRNA की रिपोर्ट के मुताबिक, इराकी इस्तिकामी समूह ने अपने बयान में कहा है कि सीरिया के कब्जे वाले गोलान क्षेत्र में एक ड्रोन ने इजरायली सैन्य अड्डे पर हमला किया है. बयान में कहा गया है कि इराकी स्थिरता, गाजा के लोगों के समर्थन में, रमजान के पवित्र महीने के दौरान कब्जाधारियों के खिलाफ कार्रवाई तेज करेगी।

इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक ने भी सोमवार को घोषणा की कि उसने ज़ायोनी शासन के एक ड्रोन डिपो को निशाना बनाया है

इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक ने बुधवार सुबह ज़ायोनी सरकार के युद्ध मंत्रालय की इमारत पर भी ड्रोन हमला किया।

नरसंहारक ज़ायोनी सरकार के सैनिकों पर फ़िलिस्तीनी मुजाहिदीन के हमले में एक ज़ायोनी सैनिक मारा गया और सोलह अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए।

माहेर न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, खान यूनिस में फ़िलिस्तीनी मुजाहिदीन के सफल हमले में ज़ायोनी सैनिकों को भारी नुकसान हुआ। हमले को स्वीकार करते हुए उसने घोषणा की है कि पिछले 24 घंटों में कई और सैनिक घायल हुए हैं .

ज़ायोनी सरकार की सेना की घोषणा के अनुसार, पिछले तीन दिनों में ग़ज़ा में मुजाहिदीन के साथ झड़पों में दसियों इज़रायली सैनिक घायल हुए हैं। हमास की सैन्य शाखा, इज्जेदीन क़सम ब्रिगेड ने भी घोषणा की है कि पश्चिमी शहर खान यूनिस में नासिर अस्पताल के पास टीबीजी विरोधी मिसाइल हमले द्वारा इजरायली सैनिकों के एक समूह को निशाना बनाया गया है।

ज़ायोनी शासन की सेना ने पहले स्वीकार किया था कि गाजा युद्ध की शुरुआत के बाद से उसके 3,160 से अधिक सैनिक घायल हो गए हैं। ज़ायोनी सेना गाजा में अपने हताहतों की खबर को सेंसर कर रही है और स्वतंत्र सूत्रों का कहना है कि गाजा में ज़ायोनी सेना का नुकसान इजरायली सरकार द्वारा घोषित की तुलना में बहुत अधिक है।

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने इस्राईल के लिए अधिक हथियार भेजने का जो फैसला किया है उस पर अमेरिका के वर्मोन्ट राज्य के आज़ाद व निर्दलीय सिनेटर बर्नी सेन्डर्ज़ ने आपत्ति जताई है।

इस अमेरिकी सिनेटर ने सोशल साइट एक्स पर लिखा है कि अमेरिका नेतनयाहू से यह अपील नहीं कर सकता कि वह आम नागरिकों की बमबारी को बंद कर दें और अगले दिन वह दो हज़ार पाउंड के हज़ारों बम उनके लिए भेजता है जो शहर के पूरे मोहल्लों को तबाह कर सकता है। यह काम लज्जाजनक है। बर्नी सेन्डर्ज़ ने एक बार फिर बल देकर कहा कि हम इस्राईल का जो साथ दे रहे हैं उसे समाप्त करना चाहिये। अब इस्राईल के लिए एक बम भी न भेजो।

एलीना रहीमी ने विश्व टेबल टेनिस प्रतियोगिता में रजत पदक जीत लिया।

ईरान की पिंगपांग की महिला खिलाड़ी ने टेबल टेनिस की विश्व  प्रतियोगतिा में रजत पदक जीता।

ईरान की टेबिल टेनिस की युवा खिलाड़ी एलीना रहीमी ने टेबल टेनिस प्रतियोगिता में सिल्वर कप जीता।

इलीना रहीमी ने टूर्नामेंट में अपनी भारतीय प्रतिस्पर्धी को पराजित करके यह पदक हासिल किया है।

लेबनान में आयोजित होने वाली डब्लूटीटी वर्डफ्री टेबल टेनिस प्रतियोगिता में इस ईरानी महिला खिलाड़ी ने नए साल में देश के लिए पहला पदक जीता है।

लेबनान में हुई इस प्रतियोगिता में एलीना रहीमी के ईरानी कोच, रज़ा फ़रजी थे।

पिछले महीने और ग़ज़्ज़ा जंग के शुरू होने पर जायोनी सैनिकों ने ग़ज्जा में आम फिलिस्तीनियों को गिरफ्तार किया था जिसकी तस्वीरें प्रकाशित हुई थीं जिस पर विश्व के संचार माध्यमों में काफी प्रतिक्रिया हुई थी।

आम फिलिस्तीनी बंदियों को निर्वस्त्र किया जाना और उनकी आंखों पर पट्टी बांधना वह दृश्य था जिसे देखकर इराक और सीरिया में दाइश के कृत्यों की याद आ जाती थी।

तकफीरी भी नीचा दिखाने और डराने के लक्ष्य से इन दोनों देशों में बहुत से आम नागरिकों की आंखों पर पट्टी बांधते और उन्हें ज़मीन पर बिठाते थे।

नेतनयाहू की जो तस्वीर दाइश जैसी बनाई गयी है वह इंस्टाग्राम पर घूम रही है

आम नागरिकों की हत्या, बच्चों की हत्या, अस्पतालों पर हमले, राहत पहुंचाने वाले वाहनों पर हमले, प्रतिबंधित हथियारों का प्रयोग, लोगों पर पानी बंद कर देना, ज़िन्दगी की ज़रूरी चीज़ों को तबाह व बर्बाद कर देना, मौलिक वस्तुओं को नष्ट कर देना, जातिवाद, घरबार छोड़ देने पर मजबूर कर देना, अंतरराष्ट्रीय कानूनों को इंकार करना और अंतरराष्ट्रीय कंवेन्शनों की अनदेखी कर देना, बंदियों को शारीरिक और मानसिक यातना देना, आम नागरिकों और सैनिकों में कोई अंतर न करना, नस्ली सफाया, दूसरे राष्ट्रों की भूमियों पर कब्ज़ा कर लेना, मस्जिदों और गिरजाघरों सहित सांस्कृतिक पहचानों को मिटा देना... जायोनियों और दाइश के मध्य समान व संयुक्त चीज़ें हैं।

इस्राईल के अस्तित्व को ख़तरे में देखकर अमरीका ने तेज़ी से हाथपैर मारने शुरू कर दिये हैं।

सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स के एक ईरानी यूज़र, अमरीका की ओर से अवैध ज़ायोनी शासन के चौतरफा समर्थन के संदर्भ में लिखते हैं कि अगर इस्राईल के अस्तित्व को वास्तव में ख़तरा हो तो उसको बाक़ी रखने के लिए वाशिग्टन, नेतनयाहू की भी बलि चढा सकता है।

अब्दुर्रहीम अंसारी लिखते हैं कि ग़ज़्ज़ा युद्ध को आरंभ हुए अब छह महीने का समय हो रहा है।  ग़ज़्ज़ा में इस्राईल के हाथों जातीय सफाए की कार्यवाही के बावजूद, जिसमें महिलाएं और बच्चे सब ही मारे जा रहे हैं, किसी भी अमरीकी राजनेता की आवाज़ बुलंद नहीं हुई।  वे लिखते हैं कि अब जबकि वास्तव में इस्राईल के अस्तित्व को गंभीर ख़तरा पैदा हो गया है तो अब वहां से हर ओर से संघर्ष विराम की आवाज़ें आने लगी हैं।अब अमरीकी, राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद का प्रस्ताव वीटो नहीं कर रहा है।  यहां तक कि डोनाल्ड ट्रम्प जो, इस्राईल की सेवा करने के लिए मर है, वह भी युद्ध की समाप्ति की बात कर रहा है।

बाइडेन प्रशासन नेतनयाहू को किनारे लगाने के लिए अप्रत्यक्ष रूप में प्रयास कर रहा है।  यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि पूरे इस्राईल का अस्तित्व ही ख़तरे में है।  अगर आवश्यक हुआ तो नेतनयाहू की भी बलि दी जा सकती है।

अमेरिकी विदेश नीति के अंग के रूप में यहूदी लॉबी को विशेष स्थान प्राप्त है।

हालांकि यहूदी, अमेरिकी आबादी का केवल तीन प्रतिशत ही हैं, फिर भी वे अमेरिकी सत्ता संरचना में सबसे प्रभावशाली जातीय अल्पसंख्यक बनने में कामयाब रहे हैं। अमेरिका में यहूदी लॉबी के अलग-अलग एजेंडे हैं लेकिन उसका मुख्य ध्यान, अमेरिका-इस्राईल संबंधों पर केन्द्रित है।

इस्राईल के समर्थन में लॉबी के प्रयास कई यहूदी संगठनों के संयुक्त प्रयास का नतीजा हैं जिनमें सबसे शक्तिशाली और प्रसिद्ध अमेरिकी यहूदी संगठन के रूप में अमेरिकन-इस्राईल पब्लिक अफेयर्स कमेटी (एआईपीएसी) की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है।

यह संगठन अमेरिका में अधिकांश यहूदी संगठनों की गतिविधियों की योजना और समन्वय के लिए ज़िम्मेदार है और ज़ायोनी हितों के साथ अमेरिकी नीतियों के समन्वय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

यह समन्वय कांग्रेस के सदस्यों और कार्यकारी शाखा के उच्च पदस्थ अधिकारियों के साथ संपर्क और रचनात्मक संचार के माध्यम से होता है जिससे इस्राईल के पक्ष में विधायी पहल की शुरुआत होती है जो इस शासन के अस्तित्व, बाक़ी रहने और सुरक्षा की गारंटी देता है।

आज अमेरिका और इस्राईल को एक ख़ास रिश्ते के पक्ष के तौर पर जाना जाता है। इस विशेष रिश्ते और इस्राईल के लिए अमेरिका के व्यापक समर्थन का सबसे महत्वपूर्ण कारण, एआईपीएसी जैसे संगठनों का अस्तित्व है, जो हमेशा वाशिंगटन और तेल अवीव के लिए सामान्य ख़तरों की ओर इशारा करते हैं और अमेरिकी राजनेता दोनों के रणनीतिक सहयोग की घोषणा करते हैं और कहते हैं कि दोनों पक्षों का लक्ष्य, इन ख़तरों को ख़त्म करना है।

कई यहूदी संगठनों का गठन करके यह ग्रुप बहुत व्यापक धार्मिक और जातीय संबंधों का उपयोग करते हुए संयुक्त राज्य अमेरिका के निर्णय लेने वाले निकाय में अपने प्रभाव को सुचारू करने की कोशिश कर रहा है और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अमेरिका की विदेश नीति तंत्र का मार्गदर्शन करना चाहता है।

एआईपीएसी (AIPAC) अमेरिकी चुनाव के उम्मीदवारों चाहे कांग्रेस के चुनाव हों या राष्ट्रपति पद के चुनाव, के समर्थन में अपनी व्यापक आर्थिक और विज्ञापन शक्ति के उपयोग के माध्यम से उन समाधानों को आगे बढ़ाता है, जिनकी राय इस संगठन की राय से मेल खाती है।

इस प्रकार एआईपीएसी की प्रभावशीलता का एक मुख्य कारण अमेरिकी कांग्रेस में इसका प्रभाव है जहां इस्राईल किसी भी आलोचना से लगभग अछूता है।

हालांकि कांग्रेस कभी भी विवादास्पद मुद्दों पर चर्चा करने से नहीं कतराती है लेकिन जब इस्राईल की बात आती है तो संभावित आलोचकों को चुप करा दिया जाता है और शायद ही कभी चर्चा होती है।

एआईपीएसी की सफलता उसके कार्यक्रमों का समर्थन करने वाले सांसदों और कांग्रेस के उम्मीदवारों को पुरस्कृत करने की क्षमता और उसके कार्यक्रमों का विरोध करने वालों को दंडित करने की क्षमता की वजह से है।

इसके अलावा कार्यकारी शाखा में एआईपीएसी का प्रभाव आंशिक रूप से अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में यहूदी मतदाताओं के प्रभाव से ही पैदा होता है। यहूदी, अपनी कम संख्या के बावजूद भी दोनों पार्टियों के उम्मीदवारों को बड़ा वित्तीय योगदान देते हैं।

इसके अलावा, चुनावों में यहूदी प्रत्याशियों की दर अधिक है और वे कैलिफोर्निया, फ्लोरिडा, इलिनोइस, न्यूयॉर्क और पेंसिल्वेनिया जैसे महत्वपूर्ण राज्यों में केंद्रित हैं।

यह संगठन इस्राईल और दुनिया के सबसे विवादास्पद क्षेत्र, विशेषकर पश्चिम एशियाई क्षेत्र से संबंधित मामलों में दुनिया की महान शक्तियों की नीतियों को प्रभावित करने के लिए अमेरिका में ज़ायोनियों का सबसे महत्वपूर्ण उपकरण और हथकंडा है।

यह विषय इतना महत्वपूर्ण है इसीलिए इसके बारे में यह उल्लेख किया जाना चाहिए कि "इस्राईल प्रेशर ग्रुप और अमेरिकी विदेश नीति" नामक पुस्तक में "जॉन मर्सहाइमर" और "स्टीफन वॉल्ट" का मानना ​​​​है कि इस तथ्य के बावजूद कि कोई भी रणनीतिक या नैतिक विचार, इस्राईल के लिए अमेरिकी समर्थन के वर्तमान स्तर को कम नहीं कर सकता है लेकिन उनका दावा है कि इस असामान्य स्थिति का मुख्य कारण अमेरिका में यहूदी लॉबी का प्रभाव है।

उनका मानना ​​है कि 2003 में इराक़ में विनाशकारी युद्ध में अमेरिका को घसीटने और ईरान तथा सीरिया के साथ संबंध स्थापित करने के प्रयासों को ख़राब करने में इस्राईली लॉबी ने प्रमुख भूमिका निभाई थी।

इसीलिए पुस्तक के लेखक मध्यपूर्व में अमेरिकी विदेश नीति की मुख्य दिशा के रूप में इस्राईली लॉबी का परिचय देते हैं जो एआईपीएसी के केंद्र में है।

एआईपीएसी का प्रभाव और असर ऐसा रहा है कि कई मामलों में उसने अमेरिकी अधिकारियों को उनकी इच्छा के विरुद्ध अपनी नीतियों को इस्राईल की नीतियों के साथ तैयार करने करने के लिए प्रेरित किया है।

इसका एक स्पष्ट उदाहरण एआईपीएसी के दबाव के तहत पिछले अमेरिकी राष्ट्रपतियों द्वारा फ़िलिस्तीनी राज्य स्थापित करने के अपने वादे से पीछे हटना है।

यह ऐसी हालत में है कि जब बुश ने इराक़ पर क़ब्ज़े के बाद एक स्वतंत्र फ़िलिस्तीनी राज्य की स्थापना का समर्थन करने का वादा किया था और फ़िलिस्तीनियों और इस्राईल के बीच संघर्ष को हल करने के लिए एक रोड मैप नामक कार्यक्रम भी तैयार किया था लेकिन ज़्यादा समय नहीं बीता कि एआईपीएसी गुस्सा और चिंता बढ़ गयी जिसके बाद वाशिंग्टन इस वादे से पीछे हट गया और एक स्वतंत्र फ़िलिस्तीनी राज्य की स्थापना का मुद्दा फिर से ठंडे बस्ते में चला गया।

इसके अलावा, एआईपीएसी की वार्षिक बैठक में ओबामा के भाषण से न केवल मध्यपूर्व संकट का समाधान नहीं निकला, बल्कि क्षेत्र के मुस्लिम देशों की नाराज़गी में वृद्धि ही हुई।

यह भाषण क्षेत्र के देशों को संबोधित करने के बजाय संयुक्त राज्य अमेरिका में ज़ायोनी लॉबी का समर्थन हासिल करने के लिए दिया गया था। हालिया वर्षों में किसी ने भी इस्राईल की उतनी सेवा नहीं की जितनी ट्रम्प ने की है।

इस तरह से कि मध्यपूर्व में ट्रम्प के सभी काम या तो नेतन्याहू द्वारा वांछित दो-सरकारी योजना को एक-सरकारी योजना से बदलने के बारे संदर्भ में हो या अमेरिकी दूतावास को तेल अवीव से बैतुल मुक़द्दस स्थानांतरित करने के बारे में हो या जेसीपीओए से निकलने और ईरान के ख़िलाफ़ ज़्याद से ज़्यादा दबाव और प्रतिबंध लगाने के संदर्भ में हो या आईएसआईएस के ख़िलाफ़ जंग के कमांडर जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या का मामला हो, यह सभी मामलों को नेतन्याहू ने ही तय किया था जिसे एआईपीएसी के प्रभुत्व के माध्यम से ट्रम्प प्रशासन को सूचित किया गया था।

यह लेख पारसा जाफ़री ने लिखा है जिसे ईरानी डिप्लोमेसी वेबसाइट से लिया गया है

फिलिस्तीन के जेहादे इस्लामी आंदोलन के महासचिव ज़ियाद अन्नख़ाला और उनके साथ तेहरान की यात्रा पर आये प्रतिनिधिमंडल ने गुरूवार की दोपहर को ईरान की इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता से मुलाकात की।

इस मुलाकात में सर्वोच्च नेता ने प्रतिरोध और ग़ज्जा के लोगों को अबतक का रणक्षेत्र का विजयी बताया और बल देकर कहा कि इज़्ज़त के चरम शिखर के साथ फिलिस्तीन और ग़ज्जा के लोगों का प्रतिरोध और इस 6 महीने की जंग में जायोनी सरकार की नाकामी एक ईश्वरीय घटना व हादसा है।

आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई ने इस भेंट में जायोनी सरकार द्वारा ग़ज्ज़ा के लोगों की हत्या करने में उसके अपराधों की ओर संकेत करते हुए कहा इतने अधिक सैनिक हथियारों, संसाधनों और दुनिया की अत्याचारी ताकतों के समर्थन के बावजूद जायोनी सरकार महिलाओं और बच्चों की हत्या कर रही है जो इस बात का सूचक है कि यह सरकार प्रतिरोध का मुकाबला करने और उसे पराजित करने की ताक़त नहीं रखती।

सर्वोच्च नेता ने फिलिस्तीन के जेहादे इस्लामी आंदोलन के महासचिव को संबोधित करते हुए कहा कि ईश्वर की कृपा से आप गज्जा के लोगों की अंतिम विजय को देखेंगे।

फिलिस्तीन के जेहादे इस्लामी के महासचिव ने भी इस भेंट में इस्लामी गणतंत्र ईरान द्वारा फिलिस्तीन के समर्थन की सराहना की और शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी को याद किया और कहा आज गज्जा में जो कुछ हो रहा है वह वास्तव में कर्बला की घटना दोहराई जा रही है और समस्त सख्तियों और षडयंत्रों के बावजूद गज्जा के लोग अदम्य साहस के साथ प्रतिरोध के साथ डटे हुए हैं और उन्होंने अपने प्रतिरोध से प्रतिरोध को समाप्त करने हेतु अमेरिका, जायोनी सरकार और उसके समर्थकों के षडयंत्रों को नाकाम कर दिया है।

ज़ियाद नख़ाला ने प्रतिरोधक बलों विशेषकर हमास और जेहादे इस्लामी के बीच पूर्ण समन्वय पर बल देते हुए कहा कि ग़ज़्ज़ा के लोग और प्रतिरोधक बल अंतिम विजय मिलने तक डटे रहने का पक्का इरादा व दृढ़ संकल्प रखते हैं और ईश्वर की कृपा से अंतिम विजय अधिक दूर नहीं है।