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यमनी सेना द्वारा अमेरिकी और ब्रिटिश जहाजों पर हमले
यमनी सशस्त्र बलों के प्रवक्ता ने संयुक्त राज्य अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम के खिलाफ छह मिसाइल और ड्रोन हमलों की सूचना दी है।
प्राप्त समाचार के अनुसार, यमनी सशस्त्र बलों के प्रवक्ता याह्या अल-सरी ने कहा कि गाजा के लोगों को सहायता पहुंचाने के लिए और प्रतिरोध के 10 वें दिन की शुरुआत के संबंध में हमलावरों के खिलाफ मंगलवार को यमन के सशस्त्र बलों ने छह मिसाइल और ड्रोन ऑपरेशन चलाए हैं
याह्या सरी ने कहा कि यमनी नौसेना ने अदन की खाड़ी और लाल सागर में चार अमेरिकी और ब्रिटिश जहाजों के खिलाफ कार्रवाई की है। यमनी सशस्त्र बलों के प्रवक्ता ने कहा कि अदन की खाड़ी में मार्सक साराटोगा और डेट्रॉइट नाम के दो जहाजों को निशाना बनाया गया। और लाल सागर. बनाया गया है.
याह्या सरी ने कहा कि ब्रिटिश जहाज हुआंगपु को लाल सागर में निशाना बनाया गया और प्रिटी लेडी जहाज को कब्जे वाले फिलिस्तीन की ओर जाते हुए निशाना बनाया गया. इस यमनी अधिकारी ने कहा कि देश के ड्रोन ने लाल सागर में दो अमेरिकी विध्वंसक जहाजों को भी निशाना बनाया है.
यमनी सशस्त्र बलों के प्रवक्ता ने कहा कि कब्जे वाले फिलिस्तीन के दक्षिण में उम्म अल-रसराश में इजरायली ठिकानों पर मिसाइलों से हमला किया गया है। उन्होंने जोर देकर कहा कि यमनी सेनाएं गाजा के मुजाहिदीन को अपना अभियान समर्पित करती हैं और सभी दुश्मन ठिकानों के खिलाफ अपने हमले जारी रखने पर जोर देती हैं।
मौलाना फजलुर रहमान ने किया उपचुनाव का बहिष्कार
पाकिस्तान में जमीयत उलेमा इस्लाम (एफ) के प्रमुख मौलाना फजलुर रहमान ने 8 फरवरी के आम चुनाव के नतीजों को खारिज कर दिया और उप-चुनावों के बहिष्कार की घोषणा की।
पाकिस्तानी मीडिया के मुताबिक, अपने वीडियो संदेश में मौलाना फजलुर रहमान ने कहा कि जेयूआई ने 8 फरवरी के चुनावों के नतीजों को खारिज कर दिया और अब आगामी उप-चुनावों के बहिष्कार की घोषणा की है. उम्मीदवार उप-चुनावों में भाग नहीं लेंगे. वह देश को एक वास्तविक इस्लामी कल्याणकारी और लोकतांत्रिक राज्य बनाने के लिए कड़ा संघर्ष करेंगे, कार्यकर्ताओं को अभी से काम करना शुरू कर देना चाहिए।
जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम के प्रमुख मौलाना फजलुर रहमान ने कहा है कि 2018 के चुनाव में लोगों के वोट देने के अधिकार को लूट लिया गया, जबकि 2024 के चुनाव में भी लोगों के वोट के अधिकार का उल्लंघन किया गया.
फ़िलिस्तीनी नेता का तेहरान में एलानः हम इस्राईल को शिकस्त देंगे
फ़िलिस्तीन के जेहादे इस्लामी संगठन के महासचिव ने जो ज़ायोनी शासन की हिट लिस्ट में हैं मंगलवार को 1 लाख लोगों की क्षमता वाले तेहरान के आज़ादी स्टेडियम में इस्लामी गणराज्य ईरान की ओर से फ़िलिस्तीनी जनता और रेज़िस्टेंस फ़ोर्सेज़ की मदद की सराहना की।
उन्होंने कहा कि फ़िलिस्तीनी क़ौम क़ुरआन और इस्लाम के करम से और ईरान की सहायताओं से ज़ायोनी शासन को शिकस्त देगी।
ज़्याद अलनुख़ाला ने इस समारोह में कहा कि क़ुरआन ने मुसलमानों को एक दूसरे से जोड़ा है और फ़िलिस्तीनी अवाम के दिल ईरान के प्यारे अवाम के साथ हैं।
मंगलवार को तेहरान के आज़ादी स्टेडियम में पैग़म्बरे इस्लाम के नवासे और शियों के दूसरे इमाम हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम के जन्म दिन के मौक़े पर दसियों हज़ार लोगों की सभा आयोजित हुई।
इमाम हसन अलैहिस्सलाम के जन्म दिन पर आज़ादी स्टेडियम में 1 लाख लोगों की सभा
आज़ादी स्टेडियम में इमाम हसन के श्रद्धालुओं की महफ़िले क़ुरआन
आज़ादी स्टेडियम में जमा ईरानियों के हाथ में ईरान और फ़िलिस्तीन के राष्ट्र ध्वज
फ़िलिस्तीनी संगठन हमास के पोलित ब्योरो चीफ़ इस्माईल हनीया ने भी मंगलवार को इस्लामी इंक़ेलाब के नेता से मुलाक़ात में फ़िलिस्तीन और ग़ज़ा के अवाम के लिए इस्लामी गणराज्य ईरान की सरकार और जनता के समर्थन का शुक्रिया अदा किया।
क़ाबिज़ इस्राईल 7 अक्तूबर 2023 से पश्चिमी देशों के समर्थन से ग़ज़ा पट्टी और वेस्ट बैंक में बड़े पैमाने पर मज़लूम फ़िलिस्तीनियों का नरसंहार कर रहा है।
ताज़ा रिपोर्टों के अनुसार ग़ज़ा पर ज़ायोनी शासन के हमलों में अब तक 32 हज़ार से अधिक फ़िलिस्तीनी शहीद और 74 हज़ार से अधिक घायल हो चुके हैं।
ज़ायोनी शासन के हवाई अड्डे पर इराकी प्रतिरोध बल का हमला
इराक के इस्लामी प्रतिरोध ने कहा है कि फिलिस्तीन में ज़ायोनी सरकार के एक हवाई अड्डे को ड्रोन द्वारा निशाना बनाया गया है।
अल-मायादीन की रिपोर्ट के मुताबिक, इराक के इस्लामिक प्रतिरोध ने कहा है कि हमारे मुजाहिदीन ने मंगलवार रात उत्तरी कब्जे वाले फिलिस्तीन में ज़ायोनी सरकार के औफ़दार हवाई अड्डे को ड्रोन से निशाना बनाया है। इराक के इस्लामी प्रतिरोध ने कहा है कि उसने कब्जे वाले फिलिस्तीन में सेपिर नामक कब्जा करने वाले सैनिकों के सैन्य अड्डे को भी निशाना बनाया है।
इराक के इस्लामिक प्रतिरोध ने रविवार को एक बयान में कहा कि ज़ायोनी सरकार के युद्ध मंत्रालय को ड्रोन हमले से निशाना बनाया गया। समूह ने पिछले दिनों अपने अभियानों के दौरान कब्ज़ा करने वाली सेनाओं को चेतावनी दी थी कि यदि गाजा पर आक्रामक हमले जारी रहे, तो वे कब्ज़ा करने वाली सरकार के पदों पर अपने हमले तेज कर देंगे।
गाजा पर क्रूर ज़ायोनी हमले जारी, कई फ़िलिस्तीनी शहीद और घायल
गाजा पट्टी के अलग-अलग इलाकों पर इजरायली सेना के हमलों में अस्सी से ज्यादा फिलिस्तीनी शहीद हो गए.
हमारे संवाददाता की रिपोर्ट के अनुसार, गाजा में फिलिस्तीन के स्वास्थ्य मंत्रालय ने घोषणा की है कि पिछले चौबीस वर्षों में ज़ायोनी हमलों में इक्यासी फिलिस्तीनी शहीद हो गए हैं और तिरानवे घायल हो गए हैं। अभी कई शहीदों के शव मलबे में दबे हुए हैं और आपातकालीन कर्मियों के पास उन्हें निकालने की कोई संभावना नहीं है. चार हजार सात सौ सत्तासी लोग घायल हैं.
गाजा पर ज़ायोनी सरकार के ये हमले ऐसे हालात में हैं कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने सोमवार को गाजा में तत्काल युद्धविराम प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है.
ईरान फ़िलिस्तीन के समर्थन में कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाएगा
इस्लामी क्रांति के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने मंगलवार 26 मार्च 2024 को हमास आंदोलन के पोलित ब्योरो चीफ़ इस्माईल हनीया और उनके साथ आए प्रतिनिधिमंडल से मुलाक़ात में फ़िलिस्तीन की रेज़िस्टेंस फ़ोर्सेज़ और ग़ज़ा के अवाम की ऐतिहासिक दृढ़ता की सराहना की।
उन्होंने कहा कि ज़ायोनी सरकार के अपराधों और दरिंदगी पर जो पश्चिम के भरपूर समर्थन से अंजाम पा रही है ग़ज़ा के अवाम का ऐतिहासिक सब्र बड़ी अज़ीम हक़ीक़त है जिस ने इस्लाम की मर्यादा बढ़ाई और फ़िलिस्तीन के मुद्दे को दुश्मन की इच्छा के विपरीत दुनिया का सबसे अहम मुद्दा बना दिया।
इस्लामी क्रांति के नेता ने इस बात पर ज़ोर देते हुए कि ग़ज़ा के अवाम का नरसंहार और इस इलाक़े में जारी नस्लीय सफ़ाया दिल रखने वाले हर इंसान को प्रभावित कर देता है कहाः
इस्लामी जम्हूरिया ईरान फ़िलिस्तीन के मसले और ग़ज़ा के मज़लूम व मुजाहिद अवाम के समर्थन में किसी हिचकिचाहट में पड़ने वाला नहीं है।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने विश्व जनमत और इस्लामी दुनिया की जनता विशेष रूप से अरब जगत की जनता की ओर से ग़ज़ा के अवाम के समर्थन को महत्वपूर्ण क़रार दिया और कहाः
"फ़िलिस्तीन के रेज़िस्टेंस मोर्चे की प्रचारिक और मीडिया संबंधी गतिविधियां अब तक बहुत अच्छी और ज़ायोनी दुश्मन से आगे रही हैं लेकिन इस मैदान में अभी और काम करने की ज़रूरत है।"
रहबरे इंक़ेलाब ने हमास के नेता शहीद सालेह अलआरूरी को याद किया जिन्हें ज़ायोनी हुकूमत ने शहीद कर दिया, आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने कहाः
यह अज़ीम शहीद बड़ी महान हस्ती थे जिनका नेक अंजाम यानी शहादत उनके संघर्षों पर अल्लाह का इनाम था।
हमास आंदोलन के नेता इस्माईल हनीया ने इस मुलाक़ात में इस्लामी जम्हूरिया ईरान की सरकार और अवाम की तरफ़ से फ़िलिस्तीन के समर्थन की सराहना की और कहा कि ग़ज़ा के अवाम और रेज़िस्टेंस फ़ोर्सेज़ का इन छह महीनों का संघर्ष उनके पुख़्ता इमान का नतीजा था और इसकी वजह से ज़ायोनी दुश्मन को ग़ज़ा की जंग में अपना कोई भी स्ट्रैटेजिक लक्ष्य हासिल नहीं हुआ।
हमास आंदोलन के नेता का कहना था कि तूफ़ान अलअक़सा आप्रेशन ने ज़ायोनी हुकूमत के अपराजेय होने के तिलिस्म को तोड़ दिया और आज जंग के छह महीने बीत जाने के बाद ज़ायोनी सरकार को भारी नुक़सान पहुंच चुका है, उसके हज़ारों सैनिक हताहत और घायल हो चुके हैं।
उन्होंने कहा कि ग़ज़ा की जंग एक विश्व युद्ध है और अमरीका में सत्ताधारी टीम ज़ायोनी सरकार के अपराधों में भागीदार है क्योंकि ज़ायोन हुकूमत की युद्ध मशीन की स्टेयरिंग उसी के हाथ में है।
इस्माईल हनीया ने इस्लामी इंक़ेबलाब के नेता से कहा कि ग़ज़ा में जारी बेपनाह दरिंदगी, अपराधों और नस्लीय सफ़ाए के बावजूद ग़ज़ा के अवाम और रेज़िस्टेंस फ़ोर्सेज़ पूरी मज़बूती से डटी हुई हैं और ज़ायोनी दुश्मन को कोई भी लक्ष्य पूरा करना का मौक़ा नहीं देंगी।
माहे रमज़ान के सोलहवें दिन की दुआ (16)
माहे रमज़ानुल मुबारक की दुआ जो हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने बयान फ़रमाया हैं।
اَللّهُمَّ وَفِّقْني فيہ لِمُوافَقَة الْأبرارِ وَجَنِّبْني فيہ مُرافَقَۃ الأشرارِ وَآوني فيہ برَحمَتِكَ إلى دارِ القَرارِ بإلهيَّتِكَ يا إله العالمينَ.
अल्लाह हुम्मा वफ़्फ़िक़नी फ़ीहि ले मुवाफ़क़तिल अबरार, व जन्निबनी फ़ीहि मुराफ़क़तल अशरार, व आविनी फ़ीहि बे रहमतिका इला दारिल क़रार, बे इलाहिय्यतिका या इलाहल आलमीन (अल बलदुल अमीन, पेज 220, इब्राहिम बिन अली)
ख़ुदाया! मुझे इस महीने में नेक बन्दों का साथ देने और उनके हमराह होने की तौफ़ीक़ दे और अशरारों (फ़ित्नाबाज़ों) की दोस्ती से महफ़ूज़ फ़रमा, और अपनी रहमत से सुकून के घर में मुझे पनाह दे, अपनी रुबूबियत के वास्ते से, ऐ आलमीन के मालिक.
अल्लाह हुम्मा स्वल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद व अज्जील फ़रजहुम.
ईश्वरीय आतिथ्य- 16
तक़वा अर्थात ईश्वरीय भय रखने वाले दुनिया में सराहनीय व अच्छे लोग हैं।
वे सुदृढ़ व अच्छी बात करते हैं। वस्त्र धारण करने में वे मध्यमार्गी रास्ता अपनाते हैं। वे विनम्रता से रास्ता चलते हैं। जो चीज़ें ईश्वर ने हराम करार दी हैं उसे वे नहीं देखते। जो ज्ञान उनके लिए लाभदायक होते हैं उसे ही वे सुनते हैं। इस आधार पर तक़वा धारण करने वाले व्यक्तियों को देखने से आम इंसानों को आनंद प्राप्त होता है। एक हदीस अर्थात कथन में आया है कि तक़वा अर्थात ईश्वरीय भय रखने वाले इंसान को समस्त लोग पसंद करते हैं चाहे वे किसी भी धर्म के अनुयाइ हों।
समस्त ईश्वरीय दूतों का उद्देश्य लोगों को तक़वा का निमंत्रण देना था। तक़वा यानी स्वयं का ध्यान रखना व निरीक्षण करना। एक मोमिन व्यक्ति खुले नेत्रों से और जागरुक दिल से जीवन के मामलों व समस्याओं का सामना करता है। इस बात का ध्यान रखता है कि उसका कोई कार्य महान ईश्वर की इच्छा और धर्म के खिलाफ न हो। इंसान में जब इस प्रकार के निरीक्षण की भावना पैदा हो जाती है तो उसका हर कार्य महान ईश्वर द्वारा बताये गये मार्ग और उसकी इच्छा के अनुसार होता है। तक़वे के मुकाबले में निश्चेतना है। रमज़ान का पवित्र महीना और इस महीने में 30 दिनों तक रोज़ा रखना तक़वे के अभ्यास की मूल्यवान भूमिका है ताकि इस अभ्यास के परिणाम में मूल्यवान चीज़ें हासिल कर लें और कठिन दिनों में इन मूल्यवान चीज़ों से लाभ उठायें। दुनिया और दुनिया की समस्याओं का सदैव इंसान को सामना रहता है और जो इंसान विशेषकर रमज़ान के पवित्र महीने में तकवे की क्षमता को बेहतर व अधिक करता है वह सांसारिक समस्याओं का सामना बेहतर ढंग से करता है क्योंकि उसका व्यक्तित्व मज़बूत हो जाता है और मूल्यों व सिद्धांतों पर बाकी रहने के लिए उसके अंदर अधिक कारण होते हैं। इस आधार पर समस्त लोगों को चाहिये कि वे रमज़ान के पवित्र महीने के मूल्य को समझें और इसके अवसरों से लाभ उठाकर तकवे के मीठे फलों को संचित कर लें।
पहले चरण में तक़वे का अर्थ उन पापों से दूरी करना है जिनसे महान ईश्वर ने इंसान को मना किया है परंतु तक़वे का दूसरा पहलु यह है कि इंसान महान ईश्वर के आदेशों पर अमल करे और भले कार्यों को अंजाम दे। वास्तव में स्वयं की निगरानी करना, पापों से निकट न होना, ईश्वर से डरना और अच्छे कार्यों को अंजाम देना तक़वा रूपी सिक्के के दो पहलु हैं। इन अर्थों में कि तकवा उत्पन्न करने में ईश्वर से भय महत्वपूर्ण कारण है और वह इंसान को भले कार्यों की ओर प्रोत्साहित करने में प्रभावी है।
अलबत्ता यहां इस बात का उल्लेख आवश्यक है कि इंसान में जो बर्बाद करने वाला भय होता है वह उस भय से भिन्न होता है जो भय इंसान को पापों से दूर रहने के लिए प्रेरित करता है। जो भय इंसान को पापों से दूर रहने के लिए प्रेरित करता है उसका स्रोत महान ईश्वर से प्रेम व भय होता है और वह ऊर्जा दायक भय होता है। इस प्रकार का भय इंसान के दिल को शक्ति प्रदान करता है। इस अर्थ में कि मोमिन इंसान महान ईश्वर की उपेक्षा से बचने के लिए पापों से दूरी करता है।
तक़वे के अंदर भले कार्यों को अंजाम देने के लिए उत्साह निहित होता है। तो तक़वा समस्त अच्छाइयों को अंजाम देने और समस्त बुराइयों से रुकने का कारक है। जैसाकि पैग़म्बरे इस्लाम फरमाते हैं” ईश्वर से डरो कि वह समस्त भलाइयों का स्रोत है। इसी प्रकार उन्होंने एक अन्य स्थान पर फरमाया है" ईश्वर से डरो कि वह समस्त उपासनाओं का संग्रह है।
तकवे का एक चरण अमल है और जो कार्य तकवे के साथ अंजाम दिया जाता है उसका विशेष महत्व होता है। इंसान तकवे के चरणों को तय करने के लिए पापों से दूरी करता है, अपने दिल और ज़बान को बुरे कार्यों से दूर रखता है। अच्छे कार्यों को अंजाम देकर अपने तकवे की शक्ति व क्षमता को अधिक करता है। अलबत्ता समस्त इंसानों में अच्छे कार्यों को अंजाम देने की भावना मौजूद होती है परंतु जो लोग तक़वा रखते हैं यानी महान ईश्वर से डरते हैं उनमें अच्छे कार्य अंजाम देने की भावना अधिक होती है और रमज़ान के पवित्र महीने में यह भावना अधिक हो जाती है क्योंकि यह दिलों को स्वच्छ बनाने का महीना है। जो इंसान तकवा रखते हैं यानी मुत्तकी हैं उनके भले कार्य अंजाम देने और वे इंसान जो तकवा नहीं रखते हैं उनमें भले कार्य अंजाम देने में अंतर यह है कि जो इंसान ईश्वरीय भय रखता है वह केवल महान ईश्वर की प्रसन्नता के लिए भले कर्म करता है और यही शुद्ध नियत है जो आध्यात्मिक सुन्दरता को सैक़ल देती है जबकि जो इंसान तकवा नहीं रखते हैं संभव है कि वे दूसरे कारणों से भले कार्यों को अंजाम दें। पवित्र कुरआन की दृष्टि में भले कार्य की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता शुद्ध नियत के साथ उसे अंजाम देना है। यानी अपने को बड़ा बताने और लोगों को दिखाने के लिए नहीं बल्कि तकवा रखने वाला इंसान केवल महान ईश्वर की प्रसन्नता के लिए भले कार्यों को अंजाम देता है।
जो इंसान महान ईश्वर से डरता है उसके अंदर परोपकार की भावना पायी जाती है और वह दूसरे इंसानों के साथ भलाई करना चाहता है और यह भावना रमज़ान के पवित्र महीने में अधिक हो जाती है। महान ईश्वर से डरने वाले दूसरों के साथ भलाई करने में संकोच से काम नहीं लेते हैं। निर्धनों को खाना खिलाते हैं। अपने माले को गोपनीय ढंग से महान व सर्वसमर्थ ईश्वर के मार्ग में खर्च करते हैं और अपने दूसरे मुसलमान भाइयों की समस्याओं का समाधान करते हैं और हर भले कार्य के प्रति उनमें रुझान होता है।
सद्गुणों से सुसज्जित हो जाना और महान ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करना मुत्तकी लोगों की हार्दिक आकांक्षा होती है। मुत्तकी हो जाना और मुत्तकी की विशेषताओं से सुसज्जित हो जाना हर अकलमंद की मनोकामना होती है। चिंतन- मनन करने वाले और बुद्धिमान यह जानते हैं कि तकवे के बिना परिपूर्णता के किसी भी चरण को तय करना संभव नहीं है क्योंकि जब तक इंसान की आत्मा पापों से दूषित है और इंसान अपनी गलत इच्छाओं का अनुसरण कर रहा है तो वह कभी भी आध्यात्मिक परिपूर्णता को प्राप्त नहीं कर सकता। इसी तरह वह कभी भी पवित्र जीवन नहीं प्राप्त कर सकता जो इंसान को पैदा करने का मुख्य उद्देश्य है।
तकवे के बहुत अधिक लाभ हैं। तकवे का एक लाभ यह है कि इंसान महान ईश्वर की कृपा व दया का पात्र बनता है महान ईश्वर उसका पथप्रदर्शन करता है उसकी मदद करता है।
मुत्तकी इंसान अपने तकवे के हिसाब से ब्रह्मांड के रहस्यों को देखता और समझता है वह सीधे रास्ते को आसानी से तय करता है। जैसाकि महान ईश्वर पवित्र कुरआन के सूरे अनफाल की 29वीं आयत में कहता है अगर तकवा अख्तियार करोगो तो मैं तुम्हें सत्य- असत्य के बीच अंतर करने की क्षमता प्रदान करूंगा। ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज्मा सैयद अली ख़ामनेई इस बारे में कहते हैं” अगर इंसान मुत्तकी है तो उसे ईश्वरीय पथ प्रदर्शन भी प्राप्त है और अगर तकवा न हो तो समाज और व्यक्ति का पूरी तरह पथप्रदर्शन भी नहीं होगा। यह रोज़ा तकवे की भूमिका है।“
स्वर्ग में जो कुछ इंसान को देने का वादा किया गया है वह सब हराम कार्यों से दूरी करने और अनिवार्य कार्यों को अंजाम देने का प्रतिदान है। पवित्र कुरआन के सूरे क़ाफ की दूसरी आयत में महान ईश्वर कहता है” मुत्तकीन के लिए स्वर्ग को निकट कर दिया गया है।“
रमज़ान के पवित्र महीने में जो निष्कर्ष निकाला जाना चाहिये वह यह है कि जितना हो सके इस पवित्र महीने के अवसरों से लाभ उठायें ताकि अपने तकवे को अधिक से अधिक करके मुत्तकी बन सकें। ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता कहते हैं” तक़वा लोक- परलोक के सौभाग्य की कुंजी है। गुमराह लोग जो नाना प्रकार की समस्याओं का सामना कर रहे हैं वे तकवे से दूरी और निश्चेतना की मार खा रहे हैं। जो समाज पिछड़ेपन का शिकार हैं उनकी हालत पता है। विश्व के विकसित समाजों को भी जीवन में खतरनाक शून्य का सामना है यद्यपि उन्हें जीवन की कुछ सुविधायें प्राप्त हैं जो जीवन में होशियारी और जागरुकता का परिणाम हैं और विकसित समाजों को जिन खतरनाक चुनौतियों का सामना है उनका उल्लेख उनके लेखक, वक्ता और कलाकार स्पष्ट शब्दों में कर रहे हैं।
बंदगी की बहार- 16
उस समाज को अच्छा समाज कहा जा सकता है कि जहांपर लोगों के बीच भाईचारा पाया जाता हो।
ऐसे समाजों में लोग एक-दूसरे से अधिक निकट होते हैं। इस प्रकार के समाजों में रहने वाले हमेशा एक-दूसरे की सहायता करने को तत्पर रहते हैं। उनका यह प्रयास रहता है हमारे समाज के लोग परेशान न रहें। ऐसी भावना से समाज के भीतर मानवताप्रेम, परोपकार, सहायता करना, लोगों की बुरी बातों को अनदेखा करना और ऐसी ही बहुत सी अन्य विशेषताएं जन्म लेती हैं। सूरे बक़रा की आयत संख्या 265 में ईश्वर कहता हैः और उन लोगों का उदाहरण कि जो अल्लाह को प्रसन्न करने और अपनी आत्मा को दृढ़ करने के लिए दान करते हैं उस उद्यान की भांति होता है कि जो ऊंचे स्थान पर हो और सदैव वर्षा होती रहे जिससे उसमें दुगने फल हों और अगर भारी वर्षा न भी हो तो भी फुहार पड़ती रहे और तुम जो कुछ भी करते हो अल्लाह उससे अवगत है। इस आयत में उन लोगों के दान का उदाहरण पेश किया गया है जो पवित्र भावना और मानव प्रेम के अन्तर्गत काम करते हैं। यह दान उस बीज की भांति है जो ऊंची और उपजाऊ भूमि में बोया गया हो। वर्षा चाहे तेज़ हो या हल्की न केवल यह कि उस बीज को नहीं धोती बल्कि उसके कई गुना बढ़ने का कारण बन जाती है क्योंकि भूमि उपजाऊ होती है। यह भूमि वर्षा का पानी भलीभांति सोख लेती है जिसके परिणाम स्वरूप पौधे की जड़ें गहराई तक चली जाती हैं।
रमज़ान का महीना मुसलमानों के बीच मित्रता और भाईचारे को बढ़ावा देने वाला महीना है। इस महीने में पूरे संसार के मुसलमानों के बीच अधिक से अधिक दोस्ती बढ़ती है। रमज़ान में लोगों से अपनी भूख और प्यास को नियंत्रित करने का आह्वान किया गया है। इस काम से लोगों के बीच अपनी इच्छाओं को नियंत्रित करने की भावना बढ़ती है और वे निर्धनों तथा आवश्यकता रखने वालों की सहायता करने को तैयार रहते हैं। रोज़ा रखने से मनुष्य को दूसरों की स्थिति का भी आभास होता है और उनको पता चलता है कि समाज के बहुत से लोग, बड़ी विषम परिस्थितियों में जीवन गुज़ार रहे हैं। एसे में वे उनकी सहायता करने को तैयार रहते हैं। रमज़ान का महीना रोज़दारों के भीतर अध्यात्म को बढ़ावा देने के साथ ही परोपकार की भावना को भी बढ़ाता है। इस बात को रमज़ान में बहुत ही स्पष्ट रूप में देखा जा सकता है कि इस महीने के दौरान लोगों के इफ़्तारी देने का चलन बहुत अधिक है।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) कहते हैं कि मुसलमान आपस में ऐसे हैं जैसे एक शरीर। जब शरीर के किसी अंग में दर्द होता है तो उसका प्रभाव दूसरे अंगों पर भी पड़ता है। इसी संदर्भ में इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम का कहना है कि मोमिन, मोमिन का भाई है ठीक वैसे ही जैसे शरीर। जब इसके किसी एक भाग में पीड़ा होती है तो उसका प्रभाव शरीर के अन्य भागों पर पड़ता है।
दूसरों की सहायता करना ऐसी विशेषता है जो मनुष्य की प्रवृत्ति में निहित है। इस बात पर ईश्वरीय धर्मों विशेषकर इस्लाम में विशेष रूप से ध्यान दिया गया है। इस महीने में ग़रीबों व निर्धनों की सहायता करने की भावना में वृद्धि होती है। रोज़ा रखने का एक रहस्य निर्धनों, गरीबों, अनाथों, भूखों और प्यासों की सहायता है क्योंकि जब इंसान भूखा और प्यासा होता है तो ग़रीबों और वंचितों की भूख व प्यास को बेहतर ढंग से समझता है। इस स्थिति में वह उनकी समस्याओं के निदान के लिए उत्तम ढंग से प्रयास करने लगता है। रमज़ान के पवित्र महीने में ग़रीबों और वंचितों की सहायता की बहुत सिफारिश की गयी है और दूसरी ओर रोज़े की भूख तथा प्यास वंचितों एवं परेशान व्यक्तियों की स्थिति के और बेहतर ढंग से समझने का कारण बनती है। इस प्रकार धनी, निर्धन के निकट हो जाता है और उसकी भावनाएं नर्म व कोमल हो जाती हैं और वह अधिक भलाई व उपकार करता है।
ईरान में पिछले कई वर्षों से "इकराम व इतआमे यतीमान" के नाम से एक कार्यक्रम, रमज़ान के दौरान आरंभ होता है। यह कार्यक्रम प्रतिवर्ष रमज़ान के दौरान जनता के माध्यम से चलाया जाता है। इसको आगे बढ़ाने में समाज के बहुत से परोपकारी लोग भाग लेते हैं। इन लोगों का यह प्रयास रहता है कि वे अपनी क्षमता के अनुसार लोगों के दिलों को एक-दूसरे से निकट करें। उनका प्रयास रहता है कि अनाथ बच्चों के मुख पर हंसी दिखाई दे और उनके भीतर जीवन के प्रति आशा जागृत हो सके। इस योजना के अन्तर्गत लोग किसी अनाथ बच्चे का ख़्रर्च उठाते हैं।
यह एक वास्तविकता है कि दूसरों की सहायता करना ऐसी विशेषता है जो हरएक के भीतर नहीं पाई जाती। एसा देखा गया है कि कुछ लोगों की आर्थिक स्थिति बहुत ही अच्छी होती है। वे बहुत ही ठाटबाट से जीवन गुज़ारते हैं किंतु उनके भीतर दूसरों की सहायता करने की भावना नहीं पाई जाती। कुछ लोग कंजूसी तो कुछ अन्य अपव्यय करने के कारण ग़रीबों की सहायता नहीं करते। यह कोई ज़रूरी नहीं है कि दूसरों की सहायता केवल रुपये-पैसे से ही की जाए। कभी-कभी मनुष्य के मुख से निकले दो वाक्य ही किसी दूसरे की समस्या का समाधान बन जाते हैं। इस संदर्भ में इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम कहते हैं कि मनुष्य का विकास, प्रेम और दूसरों की सहायता से अधिक होता है। वे कहते हैं कि जबतक धरती पर रहने वाले एक-दूसरे से प्रेम करेंगे, दूसरों की अमानतों को उनतक पहुंचाएंगे और सत्य के मार्ग पर अग्रसर रहेंगे उस समय तक वे ईश्वर की अनुकंपाओं से लाभान्वित होते रहेंगे। धरती पर ऐसे लोग पाए जाते हैं जिनका सदैव यह प्रयास रहता है कि वे लोगों की आवश्यकताओं को पूरा कर सकें। यह वे लोग हैं जो सत्य और प्रलय के दिन पर विश्वास रखते हैं। जो भी किसी मोमिन को प्रसन्न करे तो प्रलय के दिन ईश्वर उसके मन को प्रसन्न करेगा।
पवित्र क़ुरआन में लोगों की सहायता करने की बहुत अनुशंसा की गई है। ईश्वर ऐसे लोगों की प्रशंसा करता है जो हर स्थिति में दूसरों की सहायता करने के लिए तैयार रहते हैं। परोपकारी वे लोग होते हैं जो अच्छी या बुरी हर स्थिति में समस्याग्रस्त लोगों की समस्याओं का निदान करने के लिए व्याकुल रहते हैं। लोगों के भीतर परोपकार की भावना का महत्व इतना अधिक है कि हमारे महापुरूषों ने उसे अपने जीवन में अपनाया था। इस काम में पैग़म्बरे इस्लाम (स) और उनके पवित्र परिजन सबसे आगे रहे हैं। इस बारे में इब्ने अब्बास से एक कथन मिलता है कि एक बार हज़रत अली अलैहिस्सलाम के पास केवल चार दिरहम ही थे। उन्होंने एक दिरहम रात में दान कर दिया और एक दिरहम दिन में। बाद में आपने एक दिरहम छिपाकर जबकि दूसरे को सार्वजनिक रूप में दान किया। इस घटना के बाद सूरे बक़रा की आयत नंबर 274 में ईश्वर कहता है कि वे लोग जो अपने पैसे को दिन-रात या छिपाकर और दिखाकर दान करते हैं उनका पारितोषिक ईश्वर के पास है। वे लोग न तो डरते हैं और न ही दुखी होते हैं।
रमज़ान में परोपकार का एक अन्य उदाहरण लोगों को इफ़्तारी देना है। इस काम को ईश्वर बहुत पसंद करता है। यह ऐसा काम है जिसपर इस्लाम में बहुत बल दिया गया है। इसका महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि अगर मनुष्य की आर्थिक स्थिति इतनी न हो कि वह दूसरों को खाना खिला सके तो वह केवल एक ग्लास पानी ही पिला सकता है। इस्लाम में अकेले खाना खाने को अच्छा नहीं समझा गया है बल्कि यह कहा गया है कि अपने खाने में दूसरों को भी शामिल करो। इस बात के दृष्टिगत इफ़्तारी बहुत अच्छी चीज़ है। एक तो यह है कि इसे सामूहिक रूप में अंजाम दिया जाता है दूसरे यह कि बहुत से भूखे लोग एकसाथ बैठकर खाते हैं जो इस्लाम के अनुसार पशंसनीय काम है।
दूसरों के लिए ईश्वर से प्रार्थना करना मानवता की निशानी है। जो किसी की समस्या के समाधान के लिए दुआ करता है और उसके लिए भलाई की मांग करता और स्वयं के लिए दुआ करने से पहले दूसरों के लिए दुआ करता है तो वास्तव में उसने अपनी आत्ममुग्धता को कुचल दिया है। इस प्रकार का व्यक्ति ईश्वर की प्रसन्नता से अधिक निकट होता है। इस प्रकार से उसकी दुआएं शीघ्र स्वीकार होती हैं। पैग़म्बरे इस्लाम (स) का कहना है कि जिसने भी अपनी दुआ से पहले चालीस मोमिनों के लिए दुआ की तो उसकी और उन चालीस लोगों की दुआएं पूरी होंगी। हदीस में आया है कि इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं कि जो भी किसी मोमिन की अनुपस्थिति में उसके लिए दुआ करे तो आकाश से उसके लिए आवाज़ आती है कि हे उपासक तुने जो अपने भाई के लिए दुआ की वह उसे दी जाएगी बल्कि उससे एक लाख गुना अधिक तुझको दिया जाएगा।
हज़रत इमाम हसन अ.स. के दान देने और क्षमा करने का वाक़्या
एक दिन हज़रत इमाम हसन अ.स. घोड़े पर सवार हो कर कही जा रहे थे कि शाम अर्थात मौजूदा सीरिया का रहने वाला एक इंसान रास्ते में मिला। उस आदमी ने इमाम हसन को बुरा भला कहा और गाली देना शुरू कर दिया हज़रत इमाम हसन अ.स चुपचाप उसकी बातें सुनते रहे, जब वह अपना ग़ुस्सा उतार चुका तो हज़रत इमाम हसन अ.स. ने उसे मुस्कुरा कर सलाम किया और अपने अख्लाक के जरिए से उसके इबहाम को दूर किए।
एक दिन हज़रत इमाम हसन अ.स. घोड़े पर सवार हो कर कही जा रहे थे कि शाम अर्थात मौजूदा सीरिया का रहने वाला एक इंसान रास्ते में मिला। उस आदमी ने इमाम हसन को बुरा भला कहा और गाली देना शुरू कर दिया हज़रत इमाम हसन अ.स चुपचाप उसकी बातें सुनते रहे, जब वह अपना ग़ुस्सा उतार चुका तो हज़रत इमाम हसन अ.स. ने उसे मुस्कुरा कर सलाम किया और कहने लगे:
ऐ शेख़, मेरे विचार में तुम यहां अपरिचित हो और तुमको धोखा हो रहा है, अगर भूखे हो तो तुम्हें खाना खिलाऊं, अगर कपड़े चाहिये तो कपड़े पहना दूं, अगर ग़रीब हो तो तुम्हरी ज़रूरत पूरी कर दूं, अगर घर से निकाले हुये हो तो तुमको पनाह दे दूं और अगर कोई और ज़रूरत हो तो उसे पूरा करूं। अगर तुम मेरे घर आओ और जाने तक मेरे घर में ही रहो तो तुम्हारे लिये अच्छा होगा क्योंकि मेरे पास एक बड़ा घर है तथा मेहमानदारी का सामान भी मौजूद है।
सीरिया के उस नागरिक ने जब यह व्यवहार देखा तो पछताने और रोने लगा और इमाम को संबोधित करके कहने लगाः मैं गवाही देता हूं कि आप ज़मीन पर अल्लाह के प्रतिनिधि हैं तथा अल्लाह अच्छी तरह जानता है कि अपना प्रतिनिधित्व किसे प्रदान करे। आप से मिलने से पहले आपके पिता और आप मेरी निगाह में लोगों के सबसे बड़े दुश्मन थे और अब मेरे लिये सबसे से अच्छे हैं।
यह आदमी मदीने में इमाम हसन का मेहमान बना और पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. एवं उनके अहलेबैत का श्रद्धालु बन गया। इमाम हसन (अ) की सहनशीलता व सब्र इतना मशहूर था कि “हिल्मुल- हसन” अर्थात हसन की सहनशीलता सब की ज़बानों पर रहता था।
पैग़म्बरे इस्लाम के नाती और हज़रत अली के बेटे इमाम हसन भी अपने नाना और पिता की तरह अल्लाह की इबादत के प्रति बहुत ज़्यादा पाबंद एवं सावधान थे। अल्लाह की महानता का इतना आभास करते थे कि नमाज़ के समय चेहरा पीला पड़ जाता और जिस्म कांपने लगता था, हर समय उनकी ज़बान पर अल्लाह का ज़िक्र व गुणगान ही रहता था।
इतिहास में आया है कि किसी भी ग़रीब व फ़क़ीर को उन्होने अपने पास से बिना उसकी समस्या का समाधान किये जाने नहीं दिया। किसी ने सवाल किया कि आप किसी मांगने वाले को कभी ख़ाली हाथ क्यों नहीं लौटाते। तो उन्होने जवाब दिया“ मैं ख़ुद अल्लाह के दरवाज़े का भिखारी हूं,और उससे आस लगाये रहता हूं, इसलिये मुझे शर्म आती है कि ख़ुद मांगने वाला होते हुये दूसरे मांगने वाले को ख़ाली हाथ भेज दूं। अल्लाह ने मेरी आदत डाली है कि लोगों पर ध्यान दूं और अल्लाह की अनुकंपायें उन्हें प्रदान करूं।
इमाम हसन (अ) ने 48 साल से ज़्यादा इस दुनिया में अपनी रौशनी नहीं बिखेरी लेकिन इस छोटी सी अवधि में भी उनका समय भ्रष्टाचारियों से लगातार जंग में ही बीता। अपने पिता की शहादत के बाद इमाम हसन (अ) ने देखा कि निष्ठावान व वफ़ादार साथी बहुत कम हैं इसलिये मोआविया से जंग का कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकलेगा इसलिये उन्होने मुआविया द्वारा प्रस्तावित सुलह को अपनी शर्तों के साथ स्वीकार कर लिया। इस शान्ति संधि का नतीजा यह निकला कि वास्तविक मुसलमानों को ख़्वारिज के हमलों से नजात मिल गयी और जंग में उनकी जानें भी नहीं गईं।
इमाम हसन(अ) के ज़माने के हालात के बारे में आयतुल्लाह ख़ामेनई कहते हैं“ हर क्रान्तिकारी व इंक़ेलाबी के लिये सबसे कठिन समय वह होता है जब सत्य व असत्य आपस में बिल्कुल मिले हुये हों-----(इस हालत को निफ़ाक़ या मित्थ्या कहते हैं) इमाम हसन के ज़माने में निफ़ाक़ की उड़ती धूल हज़रत अली के ज़माने से बहुत ज़्यादा गाढ़ी थी इमाम हसने मुज्तबा (अ) जानते थे कि उन थोड़े से साथियों व सहायकों के साथ अगर मुआविया से जंग के लिये जाते हैं
और शहीद हो जाते हैं तो इस्लामी समाज के प्रतिष्ठत लोगों पर छाया हुआ नैतिक भ्रष्टाचार उनके ख़ून (के प्रभाव) को अर्थात उनके लक्ष्य को आगे बढ़ने नहीं देगा। प्रचार, पैसा और मुआविया की कुटिलता, हर चीज़ पर छा जायेगी तथा दो एक साल बीतने के बाद लोग कहने लगेंगे कि इमाम हसन(अ) व्यर्थ में ही मुआविया के विरोध में खड़े हुये। इसलिये उन्होने सभी कठिनाइयां सहन कीं लेकिन ख़ुद को शहादत के मैदान में जाने नहीं दिया,क्योंक् जानते थे कि उनका ख़ून अकारत हो जायेगा।
इस आधार पर इमाम हसन(अ) की एक विशेषता उनका इल्म व बुद्धिमत्ता थी। पैगम्बरे इस्लाम (स) इमाम हसन (अ) की बुद्धिमत्ता के बारे में कहते “ अगर अक़्ल को किसी एक आदमी में साकार होना होता तो वह आदमी अली के बेटे हसन होतें,