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हमास आंदोलन के एक नेता ने 40 इजरायली कैदियों के बदले 700 फिलिस्तीनी कैदियों को रिहा करने के समझौते के बारे में कहा है कि अगर युद्ध, अपराध और घेराबंदी जारी रहेगी तो कैदियों की अदला-बदली नहीं होगी.

हमास के वरिष्ठ नेता ने अपना नाम उजागर न करने की शर्त पर कहा कि ज़ायोनी मीडिया में यह दावा कि इज़राइल हमास को उदारवादी समाधान दे रहा है और रियायतें दे रहा है, निराधार और खोखला प्रचार है।

हमास के नेता ने कहा कि ज़ायोनी दुश्मन के प्रचार का उद्देश्य इज़रायली सरकार की कठोरता को छिपाना और सुलह के रास्ते में बाधा डालने की ज़िम्मेदारी से बचना है।

हमास के नेता ने कहा कि हमने अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है और हम इससे पीछे नहीं हटेंगे और अगर युद्ध, अपराध और घेराबंदी जारी रही तो कैदियों की अदला-बदली नहीं होगी.

इससे पहले ज़ायोनी सरकार के टीवी-रेडियो ने एक सरकारी अधिकारी के हवाले से घोषणा की थी कि तेल अवीव 40 इज़रायली कैदियों के बदले में 700 हमास कैदियों को रिहा करने के लिए तैयार है। वे वापसी के लिए बड़ी रियायतें देने के लिए भी तैयार हैं।

माइक्रोब्लॉगिंग वेबसाइट एक्स पर एलन मस्क ने अपनी एक पोस्ट में ब्रिटिश न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्ज़ को दुनिया का सबसे झूठा संचार माध्यम क़रार दिया है।

पूर्व में ट्विटर के नाम से जानी जाने वाली वेबसाइट पर मस्क ने लिखाः मेन स्ट्रीम मीडिया आउलेट्स अपने संबंधोकों से पानी पीने की तरह आसानी से झूठ बोलते हैं और इनमें रॉयटर्ज़ का हाल सबसे बुरा है।

इससे पहले एलन मस्क ने कहा था कि अमरीकी नागरिकों को अमरीकी सरकार द्वारा सेंसरशिप का थोड़ा सा भी आइडिया नहीं है।

दुनिया भर से हजारों लोग दक्षिण अफ़्रीकी शहर केपटाउन में एकत्र हुए और गाजा में युद्धविराम की मांग करते हुए 41 किलोमीटर लंबा मार्च निकाला.

दक्षिण अफ्रीकी मीडिया सूत्रों के अनुसार, दुनिया के 20 देशों के 160 शहरों से हजारों लोग फिलिस्तीन के साथ एकजुटता व्यक्त करने और चर्चों की अपील पर "गाजा में संघर्ष विराम के लिए मार्च" करने के लिए केप टाउन में एकत्र हुए। ईसाई समुदाय। के शीर्षक के तहत

पैदल मार्च किया. मार्च केप टाउन के दक्षिण में साइमन टाउन से शुरू हुआ और केप टाउन शहर के केंद्र में समाप्त हुआ।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, गाजा पट्टी की लंबाई को देखते हुए 41 किलोमीटर तक का मार्च निकाला गया, जिसमें शामिल होने वालों की संख्या हजारों में थी. प्रदर्शनकारियों ने फ़िलिस्तीनी झंडे पकड़ रखे थे और मार्च के अंत तक गाजा में संघर्ष विराम का आह्वान किया और फ़िलिस्तीनियों के लिए प्रार्थना की।

मार्च के दौरान प्रदर्शनकारियों ने दमनकारी इजरायली सरकार के खिलाफ नारे भी लगाए।

तेहरान विश्वविद्यालय के छात्र और जनता रविवार रात को ज़ायोनी अपराधों की निंदा करने और फ़िलिस्तीनियों का समर्थन करने के लिए एकत्र हुए।

तेहरान विश्वविद्यालय के छात्र और लोग ज़ायोनी अपराधों की निंदा करने और फ़िलिस्तीनियों का समर्थन करने के लिए रविवार रात ब्रिटिश दूतावास के सामने एकत्र हुए, जबकि इसी तरह की एक सभा तेहरान के फ़िलिस्तीन स्क्वायर और ज़ायोनी अपराधों पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में आयोजित की गई थी। संस्थानों से जवाब मांगा गया.

तेहरान की मस्जिद में पवित्र कुरान की प्रदर्शनी के अवसर पर लोगों ने एकत्र होकर फिलिस्तीनियों के समर्थन में नारे लगाये और ज़ायोनी अपराधों की निंदा की। आज रात फ़िलिस्तीनियों के समर्थन में और तेहरान की अर्ग मस्जिद में ज़ायोनी अपराधों की निंदा करने के लिए एक सभा आयोजित करने की घोषणा की गई है। इसी तरह की सभाएं ईरान के कई अन्य शहरों में भी आयोजित की जा रही हैं।

लखनऊ, 13 माहे रमज़ान अल मुबारक को एलिया कालोनी पीर बुख़ारा चौक में जनाब सैयद मज़हर अब्बास साहब के घर पर मग़रिब बाद रात 8 बजे दौरा ए क़ुरआन हुआ जिसमें मोमनीन के अलावा उल्मा व तुल्लाब ने क़ुरआन ख़्वानी की।

उसके बाद मजलिस ए अज़ा मुनअक़िद हुई जिसे मौलाना सैयद अली हाशिम आब्दी इमाम जमाअत मस्जिद काला इमामबाड़ा ने ख़ेताब किया।

मौलाना सैयद अली हाशिम आब्दी ने फ़रमाया: माहे रमजान खुद को नेक बनाने का महीना है, कुरान की तालीमात और अहलेबैत अ०स० की हदीसों और सीरत सीखने और उस पर चलने का महीना हैं।

मौलाना सैयद अली हाशिम आब्दी ने जनाबे मुख्तार की शहादत का हवाला देते हुए बयान किया कि हमारी जिंदगी का एक अहम मक़सद यह होना चाहिए की इमामे वक़्त हमसे राज़ी हो जाएं और हमारे अमल से खुश हो जाएं जो सबसे बड़ी सआदत और कामयाबी हैं।

जनाबे मुख्तार ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के कातिलों को क़त्ल किया और जब आपने इब्ने ज़ेयाद मलऊन और उमर बिन साद का सर अपने इमाम ज़माना यानी इमाम ज़ैनुलआब्दीन अ०स० को भेजा तो इमाम ज़ैनुलआब्दीन अ०स० ख़ुश हुए, क्या कोई दावा कर सकता है कि उसके फलां अमल से इमाम ज़माना अ०स० ख़ुश हुए? मौलाना सैयद अली हाशिम आब्दी ने बयान किया कि इमामे वक़्त को हज़रत मुख्तार ने खुश करने का सलीक़ा सिखाया

मौलाना सैयद अली हाशिम आब्दी ने बयान किया कि रिवायत में है इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने जनाबे मुस्लिम अ०स० को कूफा भेजते हुए फरमाया कि तुम्हें जिस पर भरोसा हो वहां उसके घर रुकना और जनाब मुस्लिम अ०स० कूफे में जनाबे मुख्तार के घर मेहमान हुए।

जिससे ज़ाहिर होता है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के सफीर जनाबे मुस्लिम अ०स० को जनाबे मुख्तार पर भरोसा था।

फ़िलिस्तीन रेड क्रिसेंट सोसाइटी ने घोषणा की है कि कब्ज़ा करने वाले ज़ायोनी शासन के हमलावर सैनिकों ने अल-अमल और नासिर अस्पतालों को घेर लिया है।

फिलिस्तीनी रेड क्रिसेंट सोसाइटी ने घोषणा की है कि कब्जे वाले ज़ायोनी शासन के आक्रामक सैनिकों के वाहन गाजा के दक्षिण में खान यूनिस में नासिर और अल-अमल अस्पतालों के पास तैनात किए गए हैं, और गोलियों और अल की आवाज़ें आ रही हैं। -अमल। उसे अस्पताल से काट दिया गया है।

ऐसे में ही कुछ दिन पहले अल-शफ़ा हॉस्पिटल पर हमला बोलकर कब्ज़ा करने वाली ज़ायोनी सरकार ने भयानक तरीके से नरसंहार किया है। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि फ़िलिस्तीनियों को गिरफ़्तार किया जा रहा है, उन्हें फाँसी दी जा रही है

उनसे जबरन मजदूरी करवाना एक अमानवीय अपराध है जो बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। अल-जज़ीरा टीवी चैनल ने भी अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि ज़ायोनी सैनिक अल-शफ़ा अस्पताल के मरीज़ों को टैंकों से कुचल रहे हैं। गाजा में स्वास्थ्य मंत्रालय ने घोषणा की है कि गाजा के खिलाफ 170 दिनों से जारी बर्बर ज़ायोनी आक्रमण में बत्तीस हजार दो सौ छब्बीस फिलिस्तीनी शहीद हो गए हैं और 74 हजार पांच सौ अठारह अन्य घायल हो गए हैं।

अध्यक्ष शिया उलेमा काउंसिल मौलाना अबुल कासिम रिज़वी ऑस्ट्रेलिया ने कहां,ऑस्ट्रेलिया:इस्लाम दुश्मन मीडिया के प्रोपांडे को नाकाम करने के लिए ज़रूरी है इस्लाम का हाकीकी चेहरा दुनिया के सामने पेश किया जाए।

इस्लाम शांति का दूत है इस्लामी शिक्षाएं प्रेम, भाईचारा, सहिष्णुता और उच्च मूल्य नैतिक और मानवीय पर आधारित हैं। यह प्रत्येक शिया की जिम्मेदारी है कि वह अपनी तबलीग़ में कुरान और अहल-अल-बैत (अ.स) की शिक्षाओं का प्रसार करें।

कॉलेज, विश्वविद्यालय, कार्यालय, कारखाना, बाजार, पड़ोस, पार्क, यात्रा और शहर इस सम्बन्ध में यथासंभव धार्मिक अनुष्ठानों के कार्यक्रम किये जाने चाहिए।

इसी सिलसिले में सोमवार 18 मार्च को इमामबारगाह कायम में इफ्तार multicultural Iftar Dinner का आयोजन किया गया जिसमें बहुसांस्कृतिक मंत्री Multicultural Minister, स्थानीय संसद सदस्य, शिक्षा मंत्री, मेयर और परिषद के सदस्यों के साथ-साथ विभिन्न धर्मों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

इस आयोजन की खास बात यह थी कि गैरमुस्लिम महिलाओं ने पूरा हिजाब पहना था और उन्होंने कहा कि वह हिजाब पहनकर खुश हैं।

यह याद रखना चाहिए कि ऑस्ट्रेलिया के मशहूर खतीब और इमाम जुमा मेलबर्न अध्यक्ष शिया उलेमा काउंसिल मौलाना अबुल कासिम रिज़वी ऑस्ट्रेलिया ने निमंत्रण के साथ प्रतिभागियों के लिए एक ड्रेस कोड का अनुरोध किया था जिसे पहले लागू किया गया था।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मेहमानों ने अपनी खुशी जाहिर की बल्कि मौलाना सैयद अबुल कासिम रिजवी के नेतृत्व में इस्लाम की शिक्षाओं और इंटर-रिलिजियस काइम फाउंडेशन की सेवाओं की सराहना की और नफरत के इस दौर में मौलाना की प्रशंसा की।

आए हुए प्रतिभागियों ने सवाल पूछे और जवाब से बहुत खुश और संतुष्ट हुए सवाल था कि किस उम्र में रोजा रखना अनिवार्य है। मौलाना अबुल कासिम रिजवी ने कहा कि लड़कों के लिए पंद्रह साल की उम्र में और लड़कियों के लिए नौ साल की उम्र में रोजा रखना अनिवार्य है।

सबसे पहले, लड़कों की तुलना में वे बुद्धिमान, कर्तव्यनिष्ठ और जिम्मेदार हैं और हम इसे अपने जीवन में देख रहे हैं, इसलिए अल्लाह हमारा निर्माता है।

इसी तरह आए हुए मेहमानों का मौलाना ने प्रश्न का उत्तर दिया और वह लोग बहुत प्रसन्न हुए और मौलाना की बहुत तरीफ की,

इसी तरह जब मौलाना अबुल कासिम रिज़वी ने रोज़े का मकसद और रोज़ा तोड़ने, कफ़्फ़ारा और फिरौती का कारण रोज़ेदार को समझाया, तो उन्होंने कहा कि आज दुनिया का एक तिहाई हिस्सा भूख से पीड़ित है, इसका उद्देश्य भूख और अभाव को खत्म करना है। समाज की ओर से इफ्तार के बाद उपहार के रूप में गुलदस्ते, किताबें और चॉकलेट भी भेंट की गई

मौलाना सैयद अबुल कासिम रिज़वी साहब ने पड़ोसियों, चर्च, मस्जिद और अहले सुन्नत के अन्य केंद्रों को उनके सहयोग के लिए धन्यवाद दिया कि हमारे बड़े कार्यक्रम में वे उसी प्रेम और सहिष्णुता के लिए आज अपने केंद्रों के दरवाजे खोलते हैं और पार्किंग की सुविधा प्रदान करते हैं।

ज्ञात हो कि मौलाना अबुल कासिम रिज़वी को उनकी सेवाओं के लिए दो साल पहले कायम फाउंडेशन ऑस्ट्रेलिया की ओर से संसद द्वारा सम्मानित किया गया था।

 

फिलिस्तीन की गज्जा पट्टी में जायोनी सरकार द्वारा आवासीय मकानों पर बमबारी और विशेष परिस्थिति का सामना होने के कारण हर घंटे तीन फिलिस्तीनी महिलायें शहीद हो रही हैं। ये महिलायें पुरूषों की अपेक्षा अधिक कठिनाइ से मलबों के नीचे से निकल पाती या आग लगने की घटनाओं से मुक्ति हासिल कर पाती हैं।

 

इस इलाक़े की स्थिति ऐसी हो गयी है कि 60 हज़ार गर्भवती महिलायें किसी प्रकार की चिकित्सा सेवा या बेहोश किये बिना बच्चे को जन्म दे रही हैं और बहुत अधिक भूख की वजह से कम से कम 21 महिलाओं की मौत हो गयी।

 

फिलिस्तीनी प्रशासन में महिलाओं के मामलों की मंत्री आमाल हमद का मानना है कि फिलिस्तीनी महिलाओं और बच्चों के खिलाफ इस्राईली हमले पूर्व नियोजित हैं और वे नस्ली सफाये के परिप्रेक्ष्य में अंजाम दिये जा रहे हैं।

वह कहती हैं” फ़िलिस्तीन की घायल महिलायें शवों और घायलों के बीच अपने मरने की प्रतीक्षा करती हैं चाहे हवाई हमले की वजह से या चाहे भूख, प्यास या बीमारी की वजह से।

 

एक विश्लेषण के अनुसार इस्राईल जो नस्ली सफाया कर रहा है उसका यह व्यवहार अमेरिका के उस व्यवहार से लिया गया है जो उसने 9 मार्च 1945 को जापान में अंजाम दिया है। नरसंहार की यह शैली इस बात का ज्ञान होने के बावजूद अपनाई जा रही है कि आम नागरिक विशेषकर महिलाओं और बच्चों को कठिन परिस्थितियों का सामना है और आवासीय मकानों और इलाकों पर भारी बमबारी की वजह से धुओं और जलने की समस्या का सामना है। इस तरह का जो नरसंहार हो रहा है।

 

इसका संबंध द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जापान में होने वाले जनसंहार से है।

 

जापान में अमेरिका की वायुसेना ने जो कृत्य अंजाम दिये उसके संबंध में दो दृष्टिकोण मौजूद थे। एक दृष्टिकोण यह था कि अमेरिकी सैनिक जो बमबारी करते थे उसके संबंध में दावे किये जाते थे कि गैर ज़रूरी चीज़ों को लक्ष्य नहीं बनाया जा रहा है ताकि आम जनमत में यह संदेश दिया जा सके कि न तो अनुचित जगहों पर बमबारी की जा रही है और न ही आम लोग मारे जा रहे हैं जबकि दूसरा दृष्टिकोण यह था कि बमबारी लक्ष्यपूर्ण नहीं है और इस प्रकार का दृष्टिकोण रखने वालों की पूरी कोशिश यह दिखाने की थी कि जो जंग और बमबारी हो रही है उसमें सैनिकों के साथ महिलायें और बच्चे मारे जा रहे हैं।

जो लोग पहले दृष्टिकोण के पक्षधर थे वर्ष 1945 से पहले सत्ता उनके हाथ में थी परंतु अमेरिका की वायुसेना का नेतृत्व एसे कमांडर के हाथ में आया जिससे दृष्टिकोण परिवर्तित हो गया। अमेरिकी जनरल क्रिटिस इमर्सन लेमेय (Curtis emerson lemay) का मानना था कि समय नष्ट नहीं करना चाहिये और भीषण बमबारी करके जापान को हराया जा सकता है।

अमेरिकी कमांडर का कहना था कि इस त्रासदी और भीषण बमबारी में तबाही इतनी अधिक हो कि जापान दोबारा प्रतिरोध की ताकत पैदा न कर सके।

 

इस बीच अमेरिका के हारवर्ड विश्व विद्यालय ने लगभग वर्ष 1942 में एक ऐसे पदार्थ का आविष्कार किया जो विचित्र तरीक़े से ज्वलनशील था। यह जेलेटिन की भांति नेपाल्म नाम का एक पदार्थ था जिसकी कुछ बूंदें लगभग चार वर्गमीटर के क्षेत्रफल में मौजूद हर चीज़ को जलाकर भस्म कर देती थीं। नेपाल्म पर जल का प्रभाव नहीं होता था और उससे काला और दम घुटने वाला धुंआ उठता था और वह महिलाओं के फेफड़े पर अधिक प्रभावी था।

नेपाल्म बम का आविष्कार हो जाने और उससे होने वाली तबाही का पता चल जाने के बाद जंग में इस्तेमाल करने के लिए अमेरिका को अच्छी चीज़ मिल गयी थी। यह ऐसी चीज़ थी जो दुश्मन और उसके घर को जला सकती थी। इस बात के साथ इस महत्वपूर्ण बिन्दु के किनारे से सरसरी तौर पर नहीं गुज़रना चाहिये कि उस समय जापान के अधिकांश लोगों के मकान लकड़ी के बनाये गये थे।

 

अमेरिकी जनरल लेमेय ने जेलेटिन से होने वाली तबाही से आश्वस्त होने के लिए अमेरिका में जापान की तरह लकड़ी के मकान बनाये जाने का आदेश दिया ताकि नेपाल्म बम का उन पर परीक्षण किया जाये। जब अमेरिका में इस बम का परीक्षण किया गया तो उससे होने वाली तबाही चकित करने वाली थी और अमेरिका इस बात से आश्वस्त हो गया कि इस बम के प्रयोग से जापान में भीषण व अनउदाहरणीय तबाही होगी।

 

अगर इस्राईल ख़त्म नहीं होता है तो वह दुनिया के लिए एक बहुत ही ख़तरनाक आदर्श के रूप में बाक़ी रहेगा।

सोशल मीडिया के एक यूज़र ने एक्स पर Eye on Palestine को रीपोस्ट करते हुए इस्राईल को एक एसे शासन के रूप में बताया है जिसने पाश्विक्ता की सारी सीमाएं पार की दी हैं।

इस यूज़र ने सोशल मीडिया नेटवर्क एक्स पर लिखा है कि इस्राईल ने वर्तमान तथाकथित सभ्य युग में जनसंहार की बुराई को ही समाप्त कर दिया है।  इस अवैध शासन ने पाश्विकता की सीमाओं को तोड़ते हुए दुनिया को शैतानी आत्मविश्वास दिया है।  विश्व की प्रतीक्षा में बहुत ही ख़तरनाक दिन हैं।  दुनिया के सारे ही बुरे लोग अब स्वयं से ही यह सवाल करेंगे कि क्यों केवल इस्राईल और अमरीका? क्यों हम नहीं?

हालिया कुछ दिनों के दौरान पवित्र रमज़ान के दौरान ग़ज़्ज़ा के अश्शफ़ा अस्पताल में ज़ायोनी सैनिकों के पाश्विक अपराधों के प्रत्यक्ष दर्शियों के वक्तव्यों और वहां से संबन्धि समाचारों ने पूरी दुनिया से ज़ायोनियों के विरुद्ध नकारात्मक प्रतिक्रियाएं आ रही हैं।  स्वास्थ्य केन्द्रों पर हमले को युद्ध अपराध माना जाता है।  वैश्विक संगठनों की गंभीर चेतावनियों के बावजूद अवैध ज़ायोनी शासन उनकी ओर ध्यान दिये बिना ही फ़िलिस्तीनियों के विरुद्ध जनसंहार जारी रखे हुए है।

अवैध ज़ायोनी शासन ने पश्चिमी देशों के समर्थन से फ़िलिस्तीनियों के विरुद्ध अक्तूबर 2023 से हिंसक कार्यवाहियां आरंभ कर रखी हैं।  फ़िलिस्तीनियों पर ज़ायोनियों की हिंसक कार्यवाही मे अबतक कम से कम 32000 फ़िलिस्तीनी शहीद हो चुके हैं।  शहीद फ़िलिस्तीनियों के बहुत बड़ी संख्या बच्चों और महिलाओं की है।  इन हमलों में शहीद होने वाले फ़िलिस्तीनियों की संख्या 74000 से भी अधिक हो चुकी है।

अवैध ज़ायोनी शासन का गठन वैसे तो विदित रूप में सन 1948 में हुआ था किंतु इसकी भूमिका 1917 से आरंभ हो चुकी थी।  उस समय ब्रिटेन की षडयंत्रकारी योजना के अन्तर्गत दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों से यहूदियों को पलायन करवाकर पहले उनको फ़िलिस्तीन में लाया गया और बाद मे एक अवैध शासन के गठन ही घोषणा की गई जिसकी पाश्विकता आज पूरी दुनिया के सामने उजागर हो चुकी है।

इस्लामी पहचान यह है कि औरत अपनी पहचान और औरत होने की ख़ूबियों को बाक़ी रखने के साथ साथ, तरक़्क़ी के मैदान में आगे बढ़े। यानी अपने कोमल जज़्बात और भीतर से उबलते हुए जज़्बात की, मोहब्बत और कोमलता की और अपनी ज़नाना पाकीज़गी की रक्षा करते हुए रूहानी मूल्यों के मैदान में आगे बढ़े

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने फरमाया, इस्लामी पहचान यह है कि औरत अपनी पहचान और औरत होने की ख़ूबियों को बाक़ी रखने के साथ साथ, तरक़्क़ी के मैदान में आगे बढ़े।

यानी अपने कोमल जज़्बात और भीतर से उबलते हुए जज़्बात की, मोहब्बत और कोमलता की और अपनी ज़नाना पाकीज़गी की रक्षा करते हुए रूहानी मूल्यों के मैदान में आगे बढ़े, राजनैतिक और सामाजिक मामलों में सब्र, स्थिरता और दृढ़ता दिखाए,

राजनैतिक भागीदारी, राजनैतिक मांग, राजनैतिक सूझबूझ और होशियारी के साथ अपने मुल्क की पहचान, अपने भविष्य की पहचान, अपने क़ौमी लक्ष्य और इस्लामी मुल्कों व क़ौमों से संबंधित आला इस्लामी लक्ष्य की पहचान, दुश्मन की साज़िशों की पहचान, दुश्मन की पहचान और दुश्मन की शैलियों की समझ में दिन ब दिन इज़ाफ़ा करे और न्याय क़ायम करने की राह में भी घरों और परिवारों के भीतर सुकून व इत्मीनान का माहौल बनाने में आगे निकले।

इमाम ख़ामेनेई,