رضوی

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विलायत एजुकेशनल एंड वेलफेयर ट्रस्ट द्वारा रात 9.15 बजे जामिया मस्जिद तहसीनगंज में बज़्म-ए-कुरान का आयोजन किया गया है जिसमें रियाज़-उल-कुरान, मदरसा तजवीद वा क़राअत, तंजील अकादमी, ऐन अल-हयात ट्रस्ट शामिल हैं , हैदरी एजुकेशनल एंड वेलफेयर सोसाइटी, हिदायत मिशन। , इंस्टीट्यूशन ऑफ रिफॉर्म्स, इलाही घराना, फलाह-उल-मोमिनीन ट्रस्ट, वली असर अकादमी, मदरसा जमीयत अल-ज़हरा ने भी समर्थन दिया।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, लखनऊ/23 मार्च, रमज़ान कुरान का वसंत महीना है, इसी के मद्देनजर विलायत एजुकेशनल एंड वेलफेयर ट्रस्ट द्वारा जामी मस्जिद तहसीनगंज में रात 9.15 बजे बज़्म-ए-कुरान का आयोजन किया गया है जिसमें रियाद अल-कुरान, मदरसा तजवीद वा क़राअत, तंजील अकादमी, ऐन अल हयात ट्रस्ट, हैदरी एजुकेशनल एंड वेलफेयर सोसाइटी, हिदायत मिशन, इंस्टीट्यूट ऑफ रिफॉर्मेशन, इलाही घराना, फलाह अल मोमिनीन ट्रस्ट, वली असर अकादमी, मदरसा जामिया अल ज़हरा ने भी समर्थन किया।

जिसमें कारी मौलाना नामदार अब्बास साहब, कारी बदरुल दाजी साहब (शिक्षक, फरकानिया मदरसा), कारी मौलाना अज़ादार अब्बास साहब, कारी हाफ़िज़ आफताब आलम साहब, कारी सैयद वासिफ अब्बास रिज़वी और कारी मुहम्मद याह्या साहब के मनमोहक और मनमोहक और बहुत ही सुंदर स्वर हैं .मैंने पवित्र कुरान का पाठ किया और कार्यक्रम में उपस्थित लोगों को आध्यात्मिक प्रकाश प्रदान किया और उनके मन को खुशी दी, जिससे सभी दर्शकों का मनोरंजन हुआ।

इस कार्यक्रम का संचालन मौलाना हैदर अब्बास रिज़वी साहब ने किया और इस कार्यक्रम को कुरान टीवी के यूट्यूब चैनल के माध्यम से लाइव स्ट्रीम किया गया।

बता दें कि इस साल बिज़्म कुरान का तीसरा दौर था। जिसमें शहर की मशहूर हस्तियों ने शिरकत की. जिसमें विशेष रूप से मौलाना मंजर सादिक साहब, मौलाना हसनैन बाक़ेरी साहब, मौलाना क़मरुल हसन साहब, मौलाना सकलैन बाक़ेरी साहब, मौलाना मशाहिद आलम साहब, मौलाना सईदुल हसन साहब, मौलाना साबिर अली इमरानी साहब, क्लब सब्तैन नूरी साहब और अन्य गणमान्य लोग शामिल हुए। सभी दर्शकों ने यह भी महसूस किया कि इस तरह के और भी आयोजन करने की जरूरत है।

गौरतलब है कि रमजान के इस पवित्र महीने में पवित्र कुरान की तिलावत आम दिनों की तुलना में ज्यादा की जाती है और इस महीने में पवित्र कुरान की तिलावत का महत्व भी बढ़ जाता है. इस महीने में मुसलमान कम से कम पूरी कुरान पढ़ने की कोशिश करते हैं। जो व्यक्ति कुरान को याद कर लेता है और उसे बेहतरीन आवाज में पढ़ता है, उसे कारी कहा जाता है और लोग उसकी तिलावत को सुनने में बहुत रुचि रखते हैं।

 

अमरीका में मेहरदाद रेज़ाई ने प्रतियोगिता जीत कर बनाया रेकार्ड

फेक एम्परर्स गेम की प्रतियोगिता में भाग लेने वाले ईरानी, मेहरदाद रेज़ाई को इस प्रतियोगिता का सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार मिला है।

अमरीकन गेम प्रतियोगिता में भाग लेकर मेहरदाद रेज़ाई, फेक एम्परर्स गेम की प्रतियोगिता में मोबाइल और टेबलेट गेम का पुरस्तार जीत गए।

पुरस्कार जीतने के बाद रेज़ाई ने कहा कि मैं कामना करता हूं कि यह इनाम, इस वर्ष ईरान के खेल उद्योग के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सफलताओं से भरा साल हो।

फेक एम्पर्रस नामक गेम की कहानी विभिन्न प्रकार की प्रेरणाओं वाले कई अलग-अलग पात्रों के संबन्ध में है।  इनमें से प्रत्येक पात्र, गेम में स्वयं को अधिक शक्तिशाली एवं सम्राट दिखाने के प्रयास करता है।  इस गेम में 6 से अधिक नायक थे साथ ही इसमें क्लासिक 2डी हैंड एनीमेशन के 8000 फ्रेम हैं।

 

इंसान इस बात को समझे कि यह दुनिया परीक्षा का स्थान है।

पवित्र क़ुरआन के एक व्याख्याकार अंसारी बताते हैं कि ईश्वर की परंपरा, इस दुनिया में मनुष्य के अमर न होने पर आधारित है।

उस्ताद मुहम्मद अली अंसारी के अनुसार पवित्र क़ुरआन के 21वें सूरे "अंबिया" की 35वीं आयत में कहा गया है कि हर हंसान को मौत का मज़ा चखना है।  हम तुमको मुसीबत और राहत में इम्तेहान के लिए आज़माते हैं। अंततः तुम हमारी ही ओर पलटाए जाओगे।

पवित्र क़ुरआन की इस आयत में कुछ बिंदुओं की ओर इशारा किया जा सकता है।  आयत में बिना किसी अपवाद के हरएक के लिए मौत की बात कही गई है।  आयत कहती है कि हर इंसान, मौत का मज़ा चखेगा।

हर इंसान के लिए मौत के क़ानून के बाद यह सवाल पैदा होता है कि इस अस्थाई जीवन के लक्ष्य क्या है, और इसका क्या फ़ाएदा है?

इसी संदर्भ में पवित्र क़ुरआन आगे कहता है कि मुसीबत और राहत में हम तुमको आज़माते हैं अर्थात तुम्हारी परीक्षा लेते हैं और आख़िर में तुमको पलटकर हमारी ओर ही आना है।

वास्तव में क़ुरआन का जवाब यह है कि इंसान की अस्ली जगह यह दुनिया नहीं है बल्कि कोई दूसरी जगह है।  क़ुरआन के अनुसार तुम यहां पर केवल इम्तेहान देने के लिए आते हो।  इम्तेहान देने और आवश्यक विकास करने के बाद तुम अपनी अस्ली जगह पर वापस चले जाओगे।

 

गाजा में ज़ायोनी सरकार के क्रूर हमलों को पच्चीस महीने बीत चुके हैं।

गाजा के विभिन्न इलाकों में ज़ायोनी सरकार के बर्बर हमले अभी भी जारी हैं।

ग़ाज़ा से ताज़ा रिपोर्टों में कहा गया है कि ज़ायोनी सैनिकों की क्रूर गोलाबारी में दर्जनों फ़िलिस्तीनी मारे गए जो खाद्य सहायता प्राप्त करने के लिए कतार में खड़े थे।

बताया गया है कि ज़ायोनी सैनिकों के ताज़ा बर्बर हमले में कम से कम 10 फ़िलिस्तीनी शहीद हो गए और 20 घायल हो गए। घायलों में से कई की हालत गंभीर बताई जा रही है, इसलिए शहीदों की संख्या बढ़ सकती है।

शम्स न्यूज़ वेबसाइट ने बताया कि सूदखोर ज़ायोनी सरकार ने गाजा के दक्षिण में फ़िलिस्तीनियों से भरे अल-क्विट स्क्वायर पर बमबारी की। गाजा के नागरिक सुरक्षा के प्रवक्ता मोहम्मद बाज़ल ने भी कहा कि फ़िलिस्तीनी नागरिकों के पास उनके लिए खाने-पीने का सामान था। परिवार, महिलाएँ और बच्चे। वे अपने रास्ते पर थे जब ज़ायोनी सैनिकों ने उन पर गोलीबारी की। कब्ज़ा करने वाली ज़ायोनी सरकार के सैनिकों ने अल-शफ़ा अस्पताल के एक हिस्से में आग लगा दी है।

अल-शफा मेडिकल कॉम्प्लेक्स से जुड़ी कई आवासीय इमारतों को भी ध्वस्त कर दिया गया है।

फ़िलिस्तीनी सूत्रों ने कहा है कि कब्ज़ा करने वाली ज़ायोनी सरकार के युद्धक विमानों ने रफ़ा शहर के पूर्व में अल-जुनैना नामक क्षेत्र में एक घर पर बमबारी की, जिससे घर में कम से कम सात लोग मारे गए। यूनुस पार ने भी गंभीर हमला किया है। रिपोर्टों में बताया गया है कि ज़ायोनी सैनिकों ने शहर खान यूनिस के उपनगरीय इलाके में स्थित नासर अस्पताल पर गोलाबारी की।

फिलिस्तीनी रेड क्रीसेंट ने यह भी कहा है कि गोलाबारी में खान यूनिस अल-अमल अस्पताल में कई कार्यकर्ता शहीद हो गए।

ज़ायोनी सेना के तोपखाने ने अल-ब्रिज और अल-जदीद नामक शिविरों पर गोलाबारी की।

ग़ज़ा के ख़िलाफ़ ज़ायोनी सरकार के हमलों में शहीद फ़िलिस्तीनियों की संख्या 32,140 तक पहुँच गई है।

याद रहे कि फिलिस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय ने शनिवार शाम को घोषणा की थी कि पिछले चौबीस घंटों में गाजा के विभिन्न इलाकों में ज़ायोनी सरकार के हमलों में सैकड़ों फिलिस्तीनी शहीद हो गए हैं, जिसके बाद शहीदों की संख्या में वृद्धि हुई है बाईस हजार एक सौ बयालीस तक - इस अवधि में चौरासी हजार चार सौ बारह फिलिस्तीनी घायल हुए हैं।

रिपोर्टों के अनुसार गाजा में ज़ायोनी सरकार के हमलों में कृषि को इतना नुकसान हुआ है कि कुछ क्षेत्र अब कृषि योग्य नहीं रह गये हैं।

क़ुद्स न्यूज़ एजेंसी ने अल-शफ़ा मेडिकल कॉम्प्लेक्स के उपनगरों में आवासीय भवनों के विनाश की तस्वीरें भी प्रकाशित कीं।

हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लेमीन हाज अबुल कासिम ने कहा: गलत काम करने वालों और पापियों की आज्ञाकारिता को ईश्वर के अलावा अन्य की आज्ञाकारिता के रूप में माना जाता है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, हज़रत मासूमा के पवित्र तीर्थ के खतीब हुज्जत-उल-इस्लाम वल-मुस्लिमीन हज अबुल कासिम, भगवान उन्हें आशीर्वाद दें और उन्हें शांति प्रदान करें, उन्होंने दिव्य छंदों के कुछ हिस्सों का उल्लेख किया और पापी लोगों को तागुत और आज्ञाकारिता कहा। शिर्क का एक रूप और कहा: अनैतिक अनुष्ठानों के प्रति बिना शर्त आज्ञापालन, जो ईश्वर की उपस्थिति में अस्वीकार और निंदनीय हैं, गैर-ईश्वर की आज्ञापालन और पाप है।

उन्होंने आगे कहा: सूरह अल-मुबारका अत-तौबा आयत 31 में उल्लेख किया गया है कि किताब के लोगों ने अपने विद्वानों और भिक्षुओं को भगवान के बजाय भगवान बना दिया, हालांकि भगवान के अलावा कोई भगवान नहीं है और वह किसी भी साथी से स्वतंत्र है।

हुज्जत-उल-इस्लाम अबुल-कासिम ने कहा: गलत और गैरकानूनी रीति-रिवाजों के प्रति बिना शर्त आज्ञाकारिता, जो ईश्वर की उपस्थिति में अस्वीकार और निंदनीय हैं, ईश्वर के अलावा किसी और की आज्ञाकारिता और पाप है क्योंकि ईश्वर के अलावा किसी और की बिना शर्त आज्ञाकारिता स्वीकार्य नहीं है।

उन्होंने आगे कहा: पवित्र कुरान में कई जगहों पर, सर्वशक्तिमान ने खुद के अलावा किसी और की बिना शर्त आज्ञा मानने से भी मना किया है।

हज़रत मासूमा के खतीब, अल्लाह उन्हें आशीर्वाद दे और उन्हें शांति प्रदान करे, ने कहा: पाप के लोगों की आज्ञाकारिता एक निंदनीय और गंभीर पाप है और इससे ईश्वरीय दंड मिलता है।

 

 

 

 

 

अमरीकी प्रतिबंधों के बावजूद तेल और गैस के निर्यात में ईरान, रेकार्ड बना रहा है।

अलजज़ीरा ने एक रिपोर्ट प्रसारित की है जिसका शीर्षक है, "क्या अमरीका, ईरान के तेल निर्यात पर प्रभाव नहीं डाल सका है"। रिपोर्ट के अनुसार प्रतिबंधों के बावजूद ईरान तेल और गैस के निर्यात में अमरीका को चुनौती देता दिखाई दे रहा है।

स रिपोर्ट में बताया गया है कि अमरीकी प्रतिबंधों की छाया में ईरान की ओर ऊर्जा के निर्यात को लेकर होने वाले व्यापक विवाद की संभावनाओं के बीच इस्लामी गणतंत्र ईरान की सरकार ने इन प्रतिबंधों पर नियंत्रण स्थापित होने पर बल दिया है।

ब्लूमबर्ग का हवाला देते हुए अलजज़ीरा बताता है कि Facts Global Energy के डेटा के अनुसार ईरान के एलपीजी के निर्यात में 28 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जो अब 11 मिलयन टन तक पहुंच चुकी है।  इस कंपनी ने अनुमान लगाया है कि इस वर्ष के दौरान ईरान की ओर से एलपीजी का निर्यात 12 मिलयन टन से भी अधिक हो जाएगा।

मानवाधिकारों और महिलाओं के अधिकारों का ढ़िंढोरा पीटने वाले पश्चिमी संगठन बहुत से स्थानों पर महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचरों पे मौन क्यों धारण कर लेते हैं।

पीकेके जैसे ईरान विरोधी प्रथक्तावादी गुटों के नेता, महिलाओं को भर्ती के लिए केवल एक वस्तु या प्रचार सामग्री की दृष्टि से क्यों देखते हैं।

पीकेके के संचार माध्यमों में महिलाएं, आकर्षित करने का मात्र माध्यम हैं।  ईरान विरोधी विघटनकारी गुटों में लड़कियों और महिलाओं का कठिन जीवन, जो उनके झूठे वादों के झांसे में आ गईं, वह इन गुटों के नेताओ और उनके पश्चिमी समर्थकों की सोच का परिणाम हैं। 

जब हम पीकेके जैसे विघटनकारी गुट और उसकी विभिन्न शाख़ाओं में सक्रिय महिलाओं के चित्रों को देखते हैं तो यह बात साफ पता चलती है कि वे बहुत ही बुरी परिस्थतियों में जीवन गुज़ार रही हैं।

 

इन गुटों द्वारा महिलाओं के साथ जिस प्रकार का व्यवहार किया जाता है वह, महिलाओं के अधिकारों का खुला उल्लंघन है जैसे उनसे थका देने वाले काम लेना, उनकी क्षमता से अधिक काम करवाना, उनकी भावनाओं को अनदेखा करना, इन भावनाओं का दमन और महिलाओं की मातृत्व की भावना की पूरी तरह से अनदेखी करना आदि।

एसे में पीकेके के नेता किस प्रकार से महिलाओं के समर्थन का दावा करते हैं, जबकि वे अपने ही गुट की महिला सदस्यों से रोज़ाना उनकी क्षमता से अधिक काम काम करवाते हैं। इस गुट की महिला सदस्यों के साथ इस प्रकार का व्यवहार किया जाता है कि उनके हीतर से परिवार गठन की सोच ही समाप्त हो जाए।

सवाल यह पैदा होता है कि महिलाओं को उनके जो अधिकार मिलने चाहिए वे इस गुट के नेताओं की नज़र में क्या कोई महत्व ही नहीं रखते? क्यों यह गुट, उन महिलाओं और लड़कियों के हाथों में हथियार देकर उनको सैनिक के रूप में प्रयोग करते हैं जबकि महिलाएं तो राष्ट्र का निर्माण करने वाली होती हैं।  हथियारों का प्रयोग, महिलाओं के स्वभाव से मेल नहीं खाता।

सुरैया शफीई, दो बच्चों की मां हैं।  अपनी घरेलू परेशानियों के कारण वे पीकेके के झांसे में आ जाती हैं। उनके बारे में पीकेके से अलग होने वाले एक सदस्य ने बताया कि सुरैया शफीई ने जबसे पीकेके ज्वाइन किया था उस समय से अपनी मौत के बीच वे हमेशा अपने बच्चों की याद में रहा करती थीं किंतु उनके गुट ने उनको कभी भी वापस जाने का मौक़ा नहीं दिया।  इस गुट ने हमेशा ही इस महिला की भवनाओं का दमन किया यहां तक कि उसकी मौत हो गई।

कुर्द क्षेत्रों में अशांति के दौरान, पश्चिम का समर्थन प्राप्त कुछ नेता महिलाओं को उपकरण के रूप में देखते हैं।  एसा ही कटु अनुभव उन महिलाओं या माओं को करना पड़ा जो अपनी किसी मजबूरी के कारण या इन गुटों के नेताओं के धोखे में आकर यहां पहुंची और फिर बहुत ही बुरे हालात में उनको अपना जीवन गुज़ारना पड़ा।

अब सवाल यह है कि मानवाधिकारों और महिलाओं के अधिकारों का ढ़िंढोरा पीटने वाले पश्चिमी संगठन, जो कुछ देशों में अशांति फैलाने के लिए "महिला, जीवन, आज़ादी" के नारे का प्रयोग करते हैं, वे पीकेके जैसे गुटों के भीतर महिलाओं के विरुद्ध इतने व्यापक स्तर पर किये जा रहे महिलाओं के अधिकारों के हनन को देखने के बावजूद कुछ क्यों नहीं बोलते?

इस लेख को ईरान के कूटनीतक स्रोत से लिया गया है।

 

रविवार, 24 मार्च 2024 18:13

दुआ ए मुजीर

रमज़ान के पवित्र महीने में पढ़ी जाने वाली एक अन्य दुआ, दुआए मुजीर है। पापों को क्षमा किए जाने के लिए रमज़ान की रातों विशेष कर तेरहवीं, चौदहवीं और पंद्रहवीं रात में इस दुआ को पढ़ने की काफ़ी सिफ़ारिश की गई है। मुजीर शब्द का अर्थ होता है, रक्षक। इस दुआ का नाम मुजीर रखे जाने का कारण यह कि इसमें यह वाक्य बहुत अधिक दोहराया गया है कि अजिरना मिनन्नारे या मुजीर अर्थात हे रक्षक, नरक से हमारी रक्षा कर।

इस पूरी दुआ में ईश्वर के पवित्र नामों का उल्लेख है और दुआ के हर वाक्य में प्रार्थी ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वह उन्हें नरक की आग से शरण दे। आरंभ के बिस्मिल्लाह और अंत के ईश्वरीय गुणगान को छोड़ कर इस दुआ में 90 वाक्य हैं और हर वाक्य में ईश्वर को हर प्रकार की बुराई से पवित्र कह कर और उसकी महानता को मान कर उसे उसके दो नामों से पुकारा जाता है और फिर यह वाक्य दोहराया जाता हैः अजिरना मिनन्नारे या मुजीर अर्थात हे रक्षक, नरक से हमारी रक्षा कर।

हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने इस दुआ को 13,14,15 रमज़ान उल मुबारक में पढ़ने की ताकीद फरमाई हैं।

बिस्मिल्लाह अर्रहमान निर्रहीम

सुब्हानका या अल्लाहो, ताआलैता या रहमानो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या रहीमो, ताआलैता या करीमो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या मालेको, ताआलैता या मालेको, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या क़ुद्दूसो, ताआलैता या सलामो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या मोमिनो, ताआलैता या मोहैमेनो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या अज़ीज़ो, ताआलैता या जब्बारो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या मुतकब्बेरो, ताआलैता या मुतजब्बिरो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या ख़ालिको, ताआलैता या बारेओ, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या मुसव्विरो, ताआलैता या मुक़द्दिरो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या हादी, ताआलैता या बाक़ी, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या वहाबो, ताआलैता या तव्वाबो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या फ़त्ताहो, ताआलैता या मुरताहो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या सय्यिदी, ताआलैता या मौलाया, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या क़रीबो, ताआलैता या रक़ीबो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या मुबदेओ, ताआलैता या मोईदो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या हमीदो, ताआलैता या मजीदो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या क़दीमो, ताआलैता या अज़ीमों, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या ग़फ़ूरो, ताआलैता या शकूरो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या शाहिदो, ताआलैता या शहीदो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या हन्नानो, ताआलैता या मन्नानो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या बाइसो, ताआलैता या वारेसो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या मोहई, ताआलैता या मोमीतो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या शफ़ीक़ो, ताआलैता या रफ़ीक़ो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या अनीसो, ताआलैता या मुनिसो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या जलीलो, ताआलैता या जमीलो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या ख़बीरो, ताआलैता या बसीरो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या ख़फ़ियो, ताआलैता या मलियो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या माबूदों, ताआलैता या मौजूदो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या ग़फ़्फ़ारो, ताआलैता या क़ह्हारो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या मज़कूरो, ताआलैता या मशकूरो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या जवादो, ताआलैता या मआज़ो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या जमालो, ताआलैता या जलालो, अजिरना मीनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या साबेक़ो, ताआलैता या राज़ेको, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या सादिक़ो, ताआलैता या फ़ालेक़ो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या समीओ, ताआलैता या सरीओ, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या रफ़ीओ, ताआलैता या बदीओ, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या फ़आलो, ताआलैता या मुतआलो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या क़ाज़ी, ताआलैता या राज़ी, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या क़ाहेरो, ताआलैता या ताहिरो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या आलिमो, ताआलैता या हाकिमो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या दाएमो, ताआलैता या क़ाएमों, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या आसिमो, ताआलैता या क़ासिमो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या ग़नीयो, ताआलैता या मुग़नी, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या वफ़ियो, ताआलैता या क़वियो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या काफ़ी, ताआलैता या शाफ़ी, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या मुक़द्दिमो, ताआलैता या मुअख़्ख़िरो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या अव्वलो, ताआलैता या आख़िरो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या ज़ाहेरो, ताआलैता या बातेनो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या रजाओ, ताआलैता या मुरतजा, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या ज़ल-मन्ने, ताआलैता या ज़त-तौले, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या हैयो, ताआलैता या क़य्यूमो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या वाहिदो, ताआलैता या अहदो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या सय्येदो, ताआलैता या समदो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या क़दीरो, ताआलैता या कबीरो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या वाली, ताआलैता या मुतआली, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या अलिय्यो, ताआलैता या आला, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या वलियो, ताआलैता या मौला, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या ज़ारेओ, ताआलैता या बारेओ, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या हाफ़िज़ो, ताआलैता या राफ़ेओ, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या मुक़सितो, ताआलैता या जामेओ,

अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या मोइज़्ज़ो, ताआलैता या मोज़िल्लो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या हाफ़ेज़ो, ताआलैता या हफ़ीज़ो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या क़ादिरो, ताआलैता या मुक़तदेरो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या अलीमो, ताआलैता या हलीमो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या मुअती, ताआलैता या मानेओ, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या ज़ार-रो, ताआलैता या नाफ़ेओ, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या मोजीबो, ताआलैता या हसीबो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या आदेलो, ताआलैता या फ़ासिलो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या लतीफ़ो, ताआलैता या शरीफ़ो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या रब्बो, ताआलैता या हक़्क़ो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या माजेदो, ताआलैता या वाहेदो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या अफ़ुव्वो, ताआलैता या मुन्तक़िमो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या वासेओ , ताआलैता या मुवस्सेओ, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या रउफ़ो, ताआलैता या अतूफ़ो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या फ़र्दो, ताआलैता या वित्रो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या मुक़ीतो, ताआलैता या मुहीतो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या वकीलो, ताआलैता या अद्लो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या मुबीनो, ताआलैता या मतीनो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या बर्रो, ताआलैता या वदूदो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या रशीदो, ताआलैता या मुर्शिदों, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या नूरो, ताआलैता या मुनव्विरो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या नसीरो, ताआलैता या नासिरो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या सबूरो, ताआलैता या साबेरो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या मुहसी, ताआलैता या मुन्शिओ, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या सुब्हानो, ताआलैता या दय्यानो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या मुग़ीसो, ताआलैता या ग़ियासो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या फ़ातेरो, ताआलैता या हाज़ेरो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या ज़ल-इज़्ज़े वल जमाल, तबारकता या ज़ल जबरूते वल जलाल, सुब्हानका ला इलाहा इल्ला अन्ता सुब्हानका इन्नी कुन्तो मिनज़ ज़ालिमीन, फ़स-तजब्ना लहू व नज्जैनाहो मिनल ग़म्मे व कज़ालेका नुन जिल मोमिनीना व सल्लल लाहो अला सय्येदिना मोहम्मदिन व आलेही अज-मईन वल हम्दो लिल्लाहे रब्बिल आलमीन व हस-बुनल्लाहो व नेमल वकीलो व ला हौला वला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाहिल अलिय्यिल अज़ीम।

 

अल्लाह हुम्मा स्वल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद व अज्जील फ़रजहुम

रविवार, 24 मार्च 2024 18:12

ईश्वरीय आतिथ्य- 13

रमज़ान का पवित्र महीना, ईश्वर का महीना है, क़ुरआने मजीद नाज़िल होने का महीना है, ईश्वरीय दया व क्षमा का महीना है, ईश्वर की विशेष कृपा व अनुकंपा का महीना है।

यह वह महीना है जिसमें मुसलमान और ईमान वाले पूरे उत्साह के साथ क़ुरआने मजीद की आसमानी शिक्षाओं को सीखने की कोशिश करते हैं और अपने धार्मिक दायित्वों का निर्वाह करके अपनी बंदगी का प्रदर्शन करते हैं। वे इस माध्यम से ईश्वर से सामिप्य द्वारा उसकी व्यापक दया का पात्र बनते हैं और ईश्वर से भय के उच्च चरणों तक पहुंचते हैं।

सभी मामलों में सफलता का मंत्र, अवसरों व उचित परिस्थितियों से सही ढंग से लाभ उठाना है। बुद्धिमान लोग हमेशा इस बात की कोशिश करते हैं कि प्राप्त होने वाले अवसरों से भरपूर लाभ उठाएं। वे अच्छी तरह जानते हैं कि समय जल्दी गुज़र जाता है और संभव है कि मामूली सी ढिलाई के चलते सबसे बड़ा अवसर हाथ से निकल जाए और इंसान के हाथ पश्चाताप के अलावा कुछ न लगे। इसी कारण ईश्वरीय दूतों ने हमेशा इस बात पर बल दिया है कि अवसरों से हर संभव लाभ उठाओ क्योंकि ये बादलों की तरह बहुत जल्दी गुज़र जाते हैं।

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने फ़रमाया हैः जान लो कि तुम्हारे जीवन के दिनों में ऐसे क्षण आते हैं कि जिनमें ईश्वर की ओर से जीवनदायक हवाएं चलती हैं तो कोशिश करो कि उन अवसरों से लाभ उठाओ और अपने आपको उन अवसरों के समक्ष ले जाओ। एक अन्य हदीस में उन्होंने फ़रमायाः जिसके लिए भी भलाई का कोई दरवाज़ा खुल जाए वह उससे लाभ उठाए क्योंकि उसे नहीं पता है कि वह दरवाज़ा कब बंद हो जाएगा।

रमज़ान का पवित्र महीना उनहीं दिनों में से है जिनमें ईश्वरीय दया की हवाएं चलती हैं और उसका हर पल एक उचित व अद्वितीय अवसर है और अगर उससे अच्छी तरह लाभ न उठाया गया तो फिर केवल पछतावा ही होगा। इसी लिए ईमान वाले इस विभूतिपूर्ण महीने से अधिक से अधिक लाभ उठाने के लिए इसमें अधिक से अधिक क़ुरआन की तिलावत करने और ईश्वर से दुआ व प्रार्थना में बिताने का प्रयास करते हैं।

दुआओं की किताबों में इस पवित्र महीने के हर दिन और हर रात के लिए पैग़म्बर व उनके परिजनों की ओर से अनेक दुआएं मिलती हैं जिनमें से एक दुआए इफ़्तेताह है। यह दुआ रमज़ान की रातों से विशेष है और इसमें बड़े सुंदर व मनमोहक ढंग से ईश्वर का गुणगान किया गया है और ईश्वर के प्रिय बंदे जिस प्रकार से उसे पुकारा करते थे उसी तरह से इसमें ईश्वर को पुकारा गया है। दुआए इफ़्तेताह की एक अहम विशेषता, मानव समाज में व्यापक रूप से पाई जाने वाली समस्याओं व कठिनाइयों पर ध्यान दिया जाना है।

यह दुआ इस प्रकार ईश्वर के गुणगान से शुरू होती है। प्रभुवर! प्रशंसा मैं तेरे गुणगान से आरंभ करता हूं क्योंकि तूने ही मुझे अपनी ओर ध्यान देने का सामर्थ्य प्रदान किया। तेरे उपकार की वजह से दूसरे सीधे मार्ग पर मज़बूती डटे रहते रखता है और मुझे विश्वास है कि तू कृपालुओं में सबसे बड़ा कृपालु है, दंडित करने में सबसे अधिक दंड देने वाला और महानता में सबसे महान है। प्रभुवर! तूने मुझे इस बात की अनुमति दी है कि मैं तुझे पुकारूं, तो हे सुनने वाले ईश्वर! मेरे आभार को स्वीकार कर और हे दयालु ईश्वर! मेरी प्रार्थना को स्वीकार कर और हे क्षमा करने वाले ईश्वर! मेरी ग़लतियों को माफ़ कर दे।

 जो चीज़ मनुष्य के कल्याण का कारण बनती है वह यह समझना है कि वह ईश्वर व उसकी महानता के समक्ष एक छोटा व तुच्छ बंद है जिसका, अपना कुछ भी नहीं है। सभी अच्छाइयां ईश्वर की ओर से हैं और जो भी समस्याएं या बुराइयां हैं उनमें वह अपने बुरे कर्मों के कारण ग्रस्त हुआ है। इंसान को यह समझना चाहिए कि अगर वह ग़लत चयन के कारण बुरे रास्ते पर चलता है तो व्यवहारिक रूप से ईश्वर से लड़ता है। उसे अपने आपको ईश्वर से भय और उससे आशा के बीच की स्थिति में बाक़ी रखना चाहिए यानी ऐसा सोचना चाहिए कि संभव है कि अत्यधिक उपासना के बावजूद किसी बड़ी ग़लती के चलते उसका अंजाम बुरा हो जाए लेकिन उसे हर हाल में ईश्वर की दया की ओर से आशावान रहना चाहिए।

ईश्वर ने स्वयं से निराशा को बड़े पापों की श्रेणी में रखा है। मनुष्य चाहे जितना बड़ा पापी हो, उसे ईश्वर की दया की ओर से निराश नहीं होना चाहिए। ईश्वर की दया इतनी व्यापक है कि अगर मनुष्य सच्चे मन से तौबा व प्रायश्चित करके उसकी ओर लौट आए तो ईश्वर उसे क्षमा कर देगा। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पर पौत्र इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं कि कोई भी ईमान वाला बंदा ऐसा नहीं है जिसके हृदय में दो प्रकाश न हों, एक ईश्वर से भय का प्रकाश और दूसरे उससे आशा का प्रकाश और अगर इन दोनों को तौला जाए तो इनमें से किसी को भी दूसरे पर श्रेष्ठता प्राप्त नहीं है।

दुआए इफ़्तेताह में एक विषय जिस पर अत्यधिक बल दिया गया है, वह इस्लाम के वैश्विक शासन से प्रेम की अभिव्यक्ति है जो ईश्वर के अंतिम प्रतिनिधि हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम के प्रकट होने के बाद स्थापित होगा। यह दुआ पढ़ने वाला ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहता है। प्रभुवर! हम एक ऐसे सम्मानीय शासन के लिए उत्सुक है जिसके माध्यम से तू इस्लाम और उसके मानने वालों को सम्मान प्रदान करेगा और असत्य तथा उसके मानने वालों को अपमानित करेगा। प्रभुवर! हमें उस शासन में लोगों को तेरे आज्ञापालन की ओर बुलाने वालों और तेरे मार्ग पर चलने वालों में रख।

रमज़ान के पवित्र महीने में सहरी के समय पढ़ी जाने वाली अहम दुआओं में से एक दुआए अबू हमज़ा सुमाली भी है। इस दुआ की शिक्षा पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पौत्र इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने दी है और इसे उनसे उनके एक साथी अबू हमज़ा ने लोगों तक पहुंचाया है। अबू हमज़ा अपने समय के अत्यंत प्रतिष्ठित लोगों में से थे और उन्हें अपने समय का सलमान कहता जाता था। इस दुआ में ईश्वर के सद्गुणों का उल्लेख है और इसी तरह विभिन्न आध्यात्मिक, सामाजिक, राजनैतिक व नैतिक विषयों की ओर भी संकेत किया गया है। इस दुआ में तौबा और ईश्वर से भय के मार्ग का बड़ी अच्छी तरह से चित्रण किया गया है और ईश्वर की महान अनुकंपाओं को गिनाया गया है। दुआए अबू हमज़ा सुमाली में प्रलय की कठिनाइयों और पापों के बोझ की ओर इशारा करते हुए पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम व उनके परिजनों के आज्ञापालन की आवश्यकता पर बल दिया गया है। इस दुआ में इसी तरह आलस्य और निराशा जैसे अवगुणों से पवित्र किए जाने की प्रार्थना भी की गई है।

दुआए अबू हमज़ा सुमाली की एक अहम विशेषता यह है कि इसमें अपने पालनहार से मनुष्य की प्रार्थना की शैली का भली भांति चित्रण किया गया है। पैग़म्बरे इस्लाम व उनके परिजनों की दुआओं में इस बिंदु पर बहुत ध्यान दिया गया है कि प्रार्थी हमेशा अपने आपको भय व आशा के बीच महसूस करे। एक ओर जब बंदा अपने पापों को देखता है तो उसमें शर्मिंदगी की भावना पैदा होती है और दूसरी ओर जब वह ईश्वर की महान दया की ओर ध्यान देता है तो उसमें आशा की किरण पैदा होती है।

भय व आशा की यह स्थिति इंसान में हमेशा रहनी चाहिए। इसी लिए इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहते हैं। प्रभुवर! मैं तुझे उस ज़बान से पुकार रहा हूं जिसे पापों ने गूंगा बना दिया है। अर्थात जब मैं अपने पापों को देखता हूं तो शर्म के मारे तुझसे बात नहीं कर पाता। प्रभुवर! मैं तुझसे उस हृदय से प्रार्थना कर रहा हूं जिसे पापों व अपराधों ने मार दिया है अर्थात वह निराशा के निकट पहुंच गया है।

ईश्वर यह बात पसंद करता है कि उसके बंदे अपने पापों की स्वीकारोक्ति करें। इससे ईश्वर को कोई लाभ नहीं होता, बंदा चाहे अपने पापों की स्वीकारोक्ति करे या न करे इससे ईश्वर की शक्ति व स्वामित्व में कोई कमी या बेशी नहीं होती लेकिन ईश्वर के समक्ष अपने पापों को स्वीकार करने से बंदा, ईश्वरीय दया का अधिक आभास करता है और ईश्वरीय क्षमा उसके लिए अधिक मोहक हो जाती है। दयालु ईश्वर के समक्ष अपने पापों की स्वीकारोक्ति, वास्तविक तौबा का मार्ग अधिक प्रशस्त करती है। अलबत्ता हमें यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि यह स्वीकारोक्ति केवल ईश्वर के समक्ष होनी चाहिए और किसी को भी इस बात की अनुमति नहीं है कि वह किसी भी व्यक्ति के सामने अपने पापों का उल्लेख करे।

रमज़ान के पवित्र महीने में पढ़ी जाने वाली एक अन्य दुआ, दुआए मुजीर है। पापों को क्षमा किए जाने के लिए रमज़ान की रातों विशेष कर तेरहवीं, चौदहवीं और पंद्रहवीं रात में इस दुआ को पढ़ने की काफ़ी सिफ़ारिश की गई है। मुजीर शब्द का अर्थ होता है, रक्षक। इस दुआ का नाम मुजीर रखे जाने का कारण यह कि इसमें यह वाक्य बहुत अधिक दोहराया गया है कि अजिरना मिनन्नारे या मुजीर अर्थात हे रक्षक, नरक से हमारी रक्षा कर।

इस पूरी दुआ में ईश्वर के पवित्र नामों का उल्लेख है और दुआ के हर वाक्य में प्रार्थी ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वह उन्हें नरक की आग से शरण दे। आरंभ के बिस्मिल्लाह और अंत के ईश्वरीय गुणगान को छोड़ कर इस दुआ में 90 वाक्य हैं और हर वाक्य में ईश्वर को हर प्रकार की बुराई से पवित्र कह कर और उसकी महानता को मान कर उसे उसके दो नामों से पुकारा जाता है और फिर यह वाक्य दोहराया जाता हैः अजिरना मिनन्नारे या मुजीर अर्थात हे रक्षक, नरक से हमारी रक्षा कर।

 

 

रविवार, 24 मार्च 2024 18:11

बंदगी की बहार- 13

पवित्र रमज़ान का महीना सभी मुसलमानों को यह अवसर देता है कि वह ख़ुद और अपने आस-पास के समाज को परिपूर्णतः तक पहुंचाने के बारे में सोचे।

रोज़ा आत्मशुद्धि, अपनी इच्छाओं पर क़ाबू पाने और बुरी इच्छाओं से संघर्ष करने का अभ्यास है। रोज़ा इंसान के जीवन के सबसे अहम उद्देश्य अर्थात परिपूर्णतः और ईश्वर का सामिप्य पाने जैसे उद्देश्य की प्राप्ति में बहुत प्रभावी तत्व है। ईश्वर ने पवित्र रमज़ान के महीने में रोज़ा अनिवार्य करके इन्सान को यह अवसर दिया है कि वह अपनी निहित क्षमता को ईश्वर का सामिप्य प्राप्त करने की दिशा में सक्रिय करे। रोज़े का उद्देश्य इंसान का आध्यात्मिक प्रशिक्षण करते हुए उस मार्ग पर ले जाना है जिस पर चलकर वह सदाचारी बन सकता है।

रोज़ा के जहां और भी फ़ायदे वहीं यह अपने मन की शक्ति को प्रदर्शित करने व आत्मबोध का भी साधन है। जब रोज़ादार एक निर्धारित समय तक अपनी सभी शारीरिक ज़रूरतों को नज़रअंदाज़ करते हुए, भूखा व प्यासा रहता है तो उसे यह विश्वास हो जाता है कि वर्जित चीज़ों से ख़ुद को बचाए रखना मुमकिन है। इस तरह इच्छाओं के मुक़ाबले में प्रतिरोध का द्वार उसके लिए खुल जाता है और वह ख़ुद को अनिवार्य व ग़ैर अनिवार्य कर्म के लिए तय्यार कर सकता है। रोज़े के शारीरिक, नैतिक व सामाजिक फ़ायदे इंसान को धर्मपरायणता के मार्ग पर ले जाते हैं। जैसा कि पवित्र क़ुरआन इस बारे में कहता हैः "हे ईश्वर पर आस्था रखने वालो! तुम्हारे लिए रोज़ा रखना अनिवार्य है जिस तरह तुमसे पहले वालों पर अनिवार्य था ताकि तुम सदाचारी बन सको।"

पवित्र रमज़ान का रोज़ा इंसान को शारीरिक व आत्मिक फ़ायदे के अलावा एक और अहम शिक्षा देता है, वह यह कि रोज़ा रखने वाला भूख और वंचिता का अनुभव करता है। इस तरह उसके मन में ज़रूरतमंद लोगों के प्रति एक तरह की हमदर्दी पैदा होती है।

पैग़म्बरे इस्लाम के ग्यारहवें उत्तराधिकारी इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम से जब पूछा गया कि रोज़ा क्यों अनिवार्य है? आपने फ़रमाया कि धनवान भूख की पीड़ा को महसूस करे और निर्धनो पर ध्यान दे। पैग़म्बरे इस्लाम के छठे उत्तराधिकारी हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के शिष्य हेशाम ने जब उनसे रोज़े अनिवार्य होने की वजह पूछी तो आपने फ़रमायाः "ईश्वर ने रोज़ा अनिवार्य किया ताकि धनवान और निर्धन एक समान हो जाएं इस आयाम से कि धनवान भूख की पीड़ा को महसूस करके निर्धन पर कृपा करे। अगर ऐसा न होता तो धनवान निर्धनों व वंचितों पर दया नहीं करते।"

पवित्र रमज़ान महीने के रोज़े का एक सामाजिक फ़ायदा अपव्यय या ग़ैर ज़रूरी उपभोग से बचना है। रोज़ा अपव्यव के मुक़ाबले में एक ढाल है। रोज़ा एक तरह से विभिन्न वर्गों के बीच आर्थिक दृष्टि से खाई को रोकता है क्योंकि जिस समाज में दान-दक्षिणा होगी वह कभी भी निर्धनता का शिकार नहीं होगा।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैः निर्धनता सबसे बड़ी मौत है। क्योंकि मौत की कठिनाई एक बार है जबकि निर्धनता से उत्पन्न कठिनाई बहुत ज़्यादा होती हैं। रोज़ा इसलिए अनिवार्य है ताकि मुसलमान ख़ुद को भौतिकवाद व लालच में डूबने से बचाए। रोज़ा इंसान को सिखाता है कि वह दूसरों की मुश्किलों के बारे में भी सोचे। अपनी शारीरिक इच्छाओं पर क़ाबू रखे, ज़रूरत भर पर किफ़ायत करे और अपव्यव से दूर रहे। मितव्ययता से इंसान में दानशीलता जैसी विशेषता पैदा होती है। मितव्ययी व्यक्ति दूसरों से आवश्यक्तामुक्त होता है। दूसरों की ओर हाथ नहीं बढ़ाता। जिस समाज में किफ़ायत व मितव्ययता जैसी विशेषता प्रचलित हो जाए वह आत्म निर्भर होगा। ऐसा समाज अनुचित उपभोग से दूर रह कर अपने पांव पर खड़ा हो सकता है।

पवित्र रमज़ान के रोज़े की एक विशेषता संयुक्त धार्मिक अनुभव की प्राप्ति है। रोज़ा समाज के लोगों में संयुक्त धार्मिक अनुभव की प्राप्ति का साधन है। धार्मिक अनुभव ही धर्मपरायणता का आधार है। यह न सिर्फ़ व्यक्ति के विचार में बदलाव लाता है बल्कि उसके सामाजिक संबंध को बेहतर बनाने में भी प्रभावी है। रोज़े का एक अहम सामाजिक आयाम, सामाजिक न्याय को मज़बूत करना है। क्योंकि पवित्र रमज़ान के महीने में समाज के हर वर्ग का व्यक्ति निर्धारित घंटों के लिए एक पहर के भोजन से वंचित रहता है। यह चीज़ धनवान लोगों को समाज के निर्धन व वंचित लोगों को याद करने के लिए प्रेरित करती है जो पूरे साल भूख सहन करते हैं। इस तरह सामाजिक स्तर पर सहानुभूति की भावना मज़बूत होती है।

पवित्र रमज़ान के महीने में एक और सुंदर दृष्य जो नज़र आता है वह सार्वजनिक स्थलों व मस्जिदों में इफ़्तार की व्यवस्था है। निर्धन व धनवान एक ही दस्तरख़ान पर बैठ कर रोज़ा इफ़्तार करते और इफ़्तार के बाद एक साथ सामूहिक रूप से नमाज़ पढ़ते हैं। रमज़ान में समाज के विभिन्न वर्ग एक दूसरे के निकट होते हैं और मस्जिद जैसी धार्मिकि संस्थाओं के ज़रिए सामाजिक तानाबाना मज़बूत होता है।

पवित्र रमज़ान से समाज में नैतिक व सामाजिक मानदंड मज़बूत होता है। पवित्र रमज़ान में सच्चाई, ईमानदारी और सामाजिक स्वास्थ्य के बेहतर होने का मार्ग समतल होता है जिससे समाज मज़बूत होता है और सामाजिक स्तर पर विश्वास की भावना मज़बूत होती है। बहुत से उचित सामाजिक मानदंड जिन्हें आम दिनों में नज़रअंदाज़ किया जाता है, पवित्र रमज़ान में मज़बूत होते हैं। मिसाल के तौर पर अगर कोई व्यक्ति झूठ और पीठ पीछे दूसरों की बुराई से बचता है तो दूसरी बहुत सी बुराइयों का मार्ग उसके लिए बंद हो जाता है। इस तरह पवित्र रमज़ान माहौल के प्रभाव में सामाजिक माहौल बेहतर हो जाता है और व्यक्तिगत क्रियाएं उचित मानदंड की ओर उन्मुख होती हैं।           

ईदुल फ़ित्र में सामूहिक भावना का प्रतिबिंबन नज़र आता है क्योंकि समाज के लोग एक जगह पर सामूहिक उपासना के एक सत्र के बाद इकट्ठा होते और अपनी सफलता का जश्न मनाते हैं। वास्तव में ईदुल फ़ित्र रोज़े जैसी अनिवार्य उपासना को अंजाम देने में समाज की सफलता का जश्न है। अनिवार्य उपासना में धर्म का रोल सामाजिक एकता लाने वाले तत्व के रूप में पूरी तरह स्पष्ट है। जैसा कि पवित्र रमज़ान के महीने में सामाजिक एकता अपनी चरम पर होती है। औद्योगिक समाज भौतिक तरक़्क़ी के बाद भी बहुत से अवसर पर शून्य का आभास करता है यहां तक कि इस तरह के समाज के विद्वान भी धर्म के सार्थक रोल को मानते हैं। मिसाल के तौर पर फ़्रांसीसी समाजशास्त्री ऑगस्त कोन्ट का मानना है कि सामाजिक एकता व अनुशासन धर्म में निहित है। समाज को नुक़सान पहुंचाने वाले तत्वों की नज़र से कुछ विचारों की पवित्र रमज़ान के परिप्रेक्ष्य में समीक्षा करें तो बहुत ही अच्छे नतीजे सामने आते हैं। जैसे ख़ुदकुशी का विचार पेश करने वाले विचारक दुर्ख़ेम ने सामाजिक एकता और ख़ुदकुशी के स्तर के बीच संबंध को पेश किया है। उनका मानना है कि जिस समाज के लोगों में एकता ज़्यादा होगी उसमें ख़ुदकुशी का अनुपात उतना ही कम होगा। चूंकि पवित्र रमज़ान के महीने में सामाजिक एकता अपनी चरम पर होती है इसलिए स्पष्ट है कि ख़ुदकुशी का अनुपात भी कम होता है।

शोध के अनुसार, पवित्र रमज़ान के आते ही सामाजिक अपराध में काफ़ी कमी आती है। इस सामाजिक सुधार के राज़ को समाज के लोगों में अध्यात्म की ओर झुकाव और समाज में अध्यात्मिक माहौल में ढूंढना चाहिए। यह महा-अध्यात्मिक उपाय धार्मिक व आत्मिक मामलों के सही तरह से प्रचार व प्रसार द्वारा दूसरी सामाजिक बुराइयों को रोक सकता है। इस्लामी देशों में पवित्र रमज़ान शुरु होते ही बड़ी संख्या में लोग धर्म विरोधी कर्मों से बचने का संकल्प लेते हैं। इसी वजह से इस महीने में साल के दूसरे महीनों की तुलना में अपराध कम होते हैं। इस महीने में लोगों में आत्मसंयम की भावना मज़बूत हो जाती है यहां तक कि यह भावना उन लोगों में भी पैदा होती है जिनके पास बुराई करने का बहुत अवसर होता है। यही वजह है कि समाजशास्त्रियों का मानना है कि इस तरह का आत्म संयम दूसरे तत्वों की तुलना में लोगों के व्यवहार पर अधिक प्रभावी होता है।

पवित्र रमज़ान में रोज़ा सामाजिक उपासना का अभ्यास है। इसलिए रोज़े में अन्य उपासनाओं की तरह न सिर्फ़ व्यक्तिगत फ़ायदे निहित हैं बल्कि इससे इंसान का आत्मोत्थान और सामाजिक आयाम से विकास होता है। सामाजिक एकता, आपसी सहयोग की भावना का मज़बूत होना, सामाजिक अपराध में कमी, व्यक्तिगत व सामाजिक सुरक्षा का बढ़ना, निर्धन व धनवान वर्ग में खाई का कम होना, निर्धनों की मदद, दूसरों के अधिकारों का पालन, एक दूसरे का सम्मान करना कि इनसे सांस्कृतिक, सामाजिक, नैतिक और आर्थिक सुरक्षा क़ायम होती है, रोज़े की उपलब्धियां हैं।