
رضوی
माहे रमज़ान के तेरहवें दिन की दुआ (13)
माहे रमज़ानुल मुबारक की दुआ जो हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने बयान फ़रमाया हैं।
اَللّهُمَّ طَہرْني فيہ مِنَ الدَّنسِ وَالْأقْذارِ وَصَبِّرْني فيہ عَلى كائِناتِ الْأَقدارِ وَوَفِّقْني فيہ لِلتُّقى وَصُحْبَة الْأبرارِ بِعَوْنِكَ ياقُرَّة عَيْن الْمَساكينِ..
अल्लाह हुम्मा तह्हिरनी फ़ीहि मिनल दन सि वल अक़ ज़ार, व सब्बिरनी फ़ीहि अला काएनातिल अक़दार, व वफ़्फ़िक़नी फ़ीहि लित्तुक़ा व सुहबतिल अबरार, बेऔनिका या क़ुर्रता ऐनिल मसाकीन (अल बलदुल अमीन, पेज 220, इब्राहिम बिन अली)
ख़ुदाया! इस महीने में मुझे आलुदगियों और नापाकियों से पाक कर दे, और मुझे सब्र अता कर उन चीज़ों पर जो मेरे लिए मुकर्रर हुई हैं और मुझे परहेज़गारी व नेक लोगों की हमनशीनी की तौफ़ीक़ अता फ़रमा, तेरी मदद के वास्ते ऐ बेचारों (मिस्कीनों) की आंखों की ठंडक.
ज़ायोनी हुकूमत संकट में: इमाम ख़ामेनेई
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने 20 मार्च 2024 को नौरोज़ की तक़रीर में ग़ज़ा के विषय पर बात करते हुए ज़ायोनी हुकूमत की हालत इन लफ़्ज़ों में बयान कीः “ग़ज़ा के वाक़यात में पता चला कि ज़ायोनी हुकूमत न सिर्फ़ अपनी रक्षा के सिलसिले में संकट का शिकार है बल्कि संकट से बाहर निकलने में भी उसे संकट का सामना है। ग़ज़ा में ज़ायोनी हुकूमत के दाख़िल होने से उसके लिए एक दलदल पैदा हो गया। अब अगर वो ग़ज़ा से बाहर निकले तो भी हारी हुयी है और बाहर न निकले तब भी हारी हुयी मानी जाएगी।”
इस लेख में ये समीक्षा करने की कोशिश की जा रही है कि इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ज़ायोनी हुकूमत के सिलसिले में ये बात क्यों कह रहे हैं और इसके क्या पहलू हैं।
ग़ज़ा में ज़ायोनी हुकूमत के ज़मीनी ऑप्रेशन को 150 से ज़्यादा दिन गुज़र चुके हैं। इस बर्बरतापूर्ण हमले में 13 हज़ार से ज़्यादा बच्चे और 9 हज़ार से ज़्यादा औरतें शहीद हो चुकी हैं, ज़ायोनी हुकूमत ने ये ऑप्रेशन ग़ज़ा में रेज़िस्टेंस के मोर्चे को ख़त्म करने और फ़िलिस्तीनियों को ग़ज़ा से बाहर निकालने के लिए शुरू किया था। 2024 के आग़ाज़ में ज़ायोनी हुकूमत ने दावा किया था कि उसने उत्तरी ग़ज़ा में हमास की फ़ौजी क्षमता को पूरी तरह ख़त्म कर दिया है और यही स्थिति पूरी ग़ज़ा पट्टी में स्थापित करने की कोशिश कर रही है।(1) इस दावे को 70 दिन से ज़्यादा का वक़्त गुज़र जाने के बाद ग़ज़ा जंग के संबंध में दो ख़बरे क़रीब क़रीब एक साथ वायरल हो गयीं। एक ख़बर हमास को ख़त्म करने के लिए ग़ज़ा पट्टी के दक्षिणी इलाक़े रफ़ह में ज़मीनी ऑप्रेशन शुरू करने पर नेतनयाहू की ज़िद के बारे में थी। (2) दूसरी उत्तरी ग़ज़ा के शिफ़ा अस्पताल के आस-पास भीषण झड़पों की ख़बर थी।(3)
ज़ायोनी प्रधान मंत्री ने इससे कुछ दिन पहले हमास के कमांडरों की टार्गेट किलिंग की कोशिशों के बारे में बात की थी। वो कोशिशें जो कई महीने के बाद भी कामयाब नहीं हो सकीं।(4) दूसरी ओर क़रीब हर दिन ग़ज़ा पट्टी के उन इलाक़ों में जिन पर कंट्रोल हासिल कर लेने का ज़ायोनी हुकूमत दावा करती है, रेज़िस्टेंस फ़ोर्सेज़ के हमलों और ऑप्रेशन की ख़बरें और वीडियोज़ सामने आ रही हैं। ग़ज़ा की ज़मीनी लड़ाई के बारे में इस तरह की विरोधाभासी ख़बरों और ज़ायोनी हुकूमत के दावों से बस एक ही नतीजा निकल सकता है कि ज़ायोनी हुकूमत ग़ज़ा पट्टी में अब तक कोई भी लक्ष्य हासिल नहीं कर सकी है और इस हुकूमत पर दबाव दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है। भीतरी दबाव भी और बाहरी दबाव भी। बाहरी दबाव इतना ज़्यादा है कि इस हुकूमत के पश्चिमी घटकों जैसे कैनेडा ने एलान कर दिया है कि वो ज़ायोनी हुकूमत को हथियारों की सप्लाई रोक रहे है।(5) और वाइट हाउस के अधिकारी दिखावे के लिए ही सही युद्ध विराम की बातें कर रहे हैं।(6) ग़ज़ा पट्टी में ज़ायोनी हुकूमत की हार सिर्फ़ जंग के मैदान और कूटनीति के मैदान तक सीमित नहीं है। आर्थिक क्षेत्र में भी इस क़ाबिज़ हुकूमत को भारी नुक़सान पहुंचा है। इस पर कई रिपोर्टें छप चुकी हैं।(7)
हिज़्बुल्लाह के महासचिव सैयद हसन नसरुल्लाह ने अपनी हालिया तक़रीर में कहा कि ग़ज़ा पट्टी में ज़ायोनी हुकूमत की हार की साफ़ निशानियों में से एक ये है कि उन्होंने जंग के आग़ाज़ में हमास को पूरी तरह ख़त्म कर देने की बातें की थीं, लेकिन आज युद्ध विराम की बातचीत में वो हमास से वार्ता कर रहे हैं।
ये सारी हक़ीक़तें इस्लामी इंक़ेलाब के नेता की इस बात में नज़र आती हैं जो उन्होंने 20 मार्च की तक़रीर में कही कि ग़ज़ा ज़ायोनी हुकूमत के लिए एक दलदल है, इस हुकूमत की हार निश्चित है, वो ग़ज़ा में अपनी फ़ौजी मौजूदगी जारी रखती है तब भी।
ज़ायोनी हुकूमत की हार का दूसरा पहलू भी है और वो है ग़ज़ा से बाहर निकलने की स्थिति में हार। क़ाबिज़ ज़ायोनी हुकूमत ने अपनी साख बहाल करने और अपनी डिटरेन्स पावर को फिर से हासिल करने की कोशिश में ग़ज़ा में पागलों की तरह ऑप्रेशन शुरू कर दिया। अब अगर वो ग़ज़ा से बाहर निकलती है तो इससे अपनी डिटरेन्स ख़त्म हो जाने पर वो ख़ुद ही मोहर लगाएगी। ज़ायोनी हुकूमत की राजनैतिक पार्टियों के बीच भी गंभीर मतभेद जो पारंपरिक यहूदियों को ग़ज़ा की जंग में भेजने को लेकर ज़्यादा खुलकर सामने आए, (8) ग़ज़ा में हार और वहाँ से ज़ायोनियों के बाहर निकलने की स्थिति में एक नए चरण में दाख़िल हो जाएंगे। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ज़ायोनी हुकूमत जो जातीय सफ़ाए के मसले में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में घसीटी जा चुकी है, इलाक़े के मुल्क़ों के साथ सामान्य संबंध क़ायम करने का अपना एजेंडा गंवा चुकी है और इस वक़्त उसके ख़िलाफ़ कम से कम चार मोर्चे खुल चुके हैं। एक तो उत्तरी सरहदों पर लेबनान के साथ जंग का मोर्च है, दूसरा रेड सी में यमन से मुक़ाबले का मोर्चा है और तीसरा इराक़ की रेज़िस्टेंस फ़ोर्सेज़ का मोर्चा है जो समय समय पर ज़ायोनी हुकूमत की मुख़्तलिफ़ बंदरगाहों को मीज़ाईल हमलों का निशाना बना रही हैं।
ईश्वरीय आतिथ्य- 12
ईरान की राजधानी तेहरान में प्रतिवर्ष पवित्र रमज़ान के दौरान क़ुरआन की अन्तर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी लगती है।
इसबार क़ुरआन की 26वीं अन्तर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी लगाई गई है। यह अन्तर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी तेहरान के "मुस्ल्ला इमाम ख़ुमैनी" या इमाम ख़ुमैनी ईदगाह में लगाई गई है। 19 मई से आरंभ होने वाली इस प्रदर्शनी में बड़ी संख्या में लोग पहुंच रहे हैं। प्रतिवर्ष क़ुरआन की इस प्रदर्शनी में न केवल तेहरान से बल्कि ईरान के दूसरे नगरों से भी लोग भाग लेने आते हैं। यह प्रदर्शनी, मुसल्ला इमाम ख़ुमैनी में पचास हज़ार वर्गमीटर क्षेत्र में लगाई गई है।
जब कोई भी व्यक्ति तेहरान में आयोजित क़ुरआन की अन्तर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी को देखने पहुंचता है तो सबसे पहले उसकी दृष्टि ऐसे कलाकारों पर पड़ती है जो वहां पर बैठे हुए अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे हैं। यह लोग विभिन्न शैलियों में पवित्र क़ुरआन की आयतें लिखते हुए दिखाई देंगे। इस प्रदर्शनी में पवित्र क़ुरआन के 20 अन्तर्राष्ट्रीय संस्थान, विश्वविद्यालयों के 16 और धार्मिक शिक्षा केंद्रों के 15 संस्थानों के अतिरिक्त 32 जन संगठन भी भाग ले रहे हैं। 7 देशों के प्रतिनिधि तथा पवित्र क़ुरआन के क्षेत्र में काम करने वाले कई देशों के दसियों लोग, तेहरान की अन्तर्राष्ट्रीय क़ुरआन प्रदर्शनी में भाग ले रहे हैं। तेहरान में आयोजित “फ़ानूसे हिदायत” नाम से अंतर्राष्ट्रीय क़ुरआन प्रदर्शनी में इराक़, मलेशिया, तुर्की, रूस और आज़रबाइजान सहित दुनिया के विभिन्न देशों से आई क़ुरआन की दुर्लभ और प्राचीन प्रतियां मौजूद हैं, साथ ही कई देशों के प्रसिद्ध विद्वान भी इस प्रदर्शनी में शामिल हुए हैं।
अन्तिम आसमानी किताब क़ुरआन, ऐसी ईश्वरीय पुस्तक है जो मानवता के मार्गदर्शन के लिए है। इससे संसार के सब लोग लाभ उठा सकते हैं। इस बारे में सूरे असरा की आयत संख्या 9 में ईश्वर कहता है कि निश्चित रूप से यह क़ुरआन सीधे रास्ते की ओर मार्गदर्शन करता है। वर्तमान समय में क़ुरआन ही ऐसी किताब है जिसमें शुरू से लेकर अंत तक कोई मतभेद नहीं है। आज दुनिया भर में पवित्र क़ुरआन की जितनी प्रतियां पाई जाती हैं उनमें से किसी एक में भी एक बिंदु का अंतर नहीं है। उदाहरण स्वरूप विश्व के किसी भी दूरस्थ गाँव की किसी मस्जिद से क़ुरआन लेकर संसार के किसी एक अन्य दूरस्थ गाँव मे मौजूद क़ुरआन से अगर मिलान किया जाए तो उनमे एक बिंदु का भी अंतर नहीं मिलेगा। नवीनतम छपे हुए कुरान तथा संग्रहालयों मे रखे हुए प्राचीन से प्राचीन कुरआन में एक शब्द का अंतर भी नहीं मिलेगा। यह विशेषता संसार के किसी अन्य धर्मग्रंथ में नहीं है। दुनिया भर में लाखों लोगों को पूरा कुरआन हिफ़्ज़ या कंठस्थ है। ऐतिहासिक रूप से यह सिद्ध हो चुका है कि इस धरती पर उपस्थित हर क़ुरआन की प्रति वही मूल प्रति का प्रतिरूप है जो हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) पर नाज़िल हुआ था।
क़ुरआन की 26वीं अन्तर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी का शुभारंभ आयतुल्लाह सुब्हानी के संदेश से हुआ। उन्होंने अपने संदेश में लिखा है कि पवित्र क़ुरआन, ईश्वर का ऐसा चमत्कार है जो पूरी मानवता के लिए है। आयतुल्लाह सुब्हानी कहते हैं कि पवित्र क़ुरआन प्रकृति की भांति है। जिस प्रकार से प्रकृति में अनंत रहस्य पाए जाते हैं और वैज्ञानिक इस बारे में आए दिन शोध करते रहते हैं और उसपर शोध का सिलसिला अब भी जारी है ठीक उसी प्रकार से क़ुरआन भी है। पवित्र क़ुरआन, ईश्वर की ओर से भेजी जाने वाली किताब है जिसमें अनंत रहस्य छिपे हुए हैं। यह एसी अद्वितीय किताब है जिसके जैसी किताब पूरे संसार में हो ही नहीं सकती। क़ुरआन में एक स्थान पर ईश्वर कहता है कि अगर संसार के सारे लोग और जिन्नात एक साथ मिलकर क़ुरआन जैसी किताब लाने का प्रयास करें तो भी वे कभी ऐसा नहीं कर सकते।
ईरान के संस्कृति और मार्गदर्शन मंत्री सैयद अब्बास सालेही ने इस प्रदर्शनी के उद्घाटन समारोह में कहा हैं कि यह पवित्र किताब, इस्लामी सभ्यता का आरंभ बिंदु और आस्था का आधार है। वे कहते हैं कि वे लोग जिन्होंने इस्लामी क्रांति को प्रभावित किया वे वही थे जो क़ुरआन के अनुसरणकर्ता थे।
इस्लामी इतिहास पर शोध करने से संबन्धित आंरभिक काल के स्रोत अधिकतर संग्रहालयों और पुस्तकालयों में अब भी सुरक्षित हैं। इन स्रोतों पर शोध करने से क़ुरआन के इतिहास, उसकी लीपि और उसके पढ़ने की शैली को उचित ढंग से समझा जा सकता है। स्वाभाविक सी बात है कि आरंभिक काल के स्रोतों में जो भी इस्लाम के उदयकाल से जितना निकट होगा वह उतना ही विश्वसनीय होगा। क़ुरआन की अन्तर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी में हज़रत अली अलैहिस्सलाम से संबन्धित क़ुरआन की एक प्रति का उद्धाटन किया गया। इस बारे में पवित्र क़ुरआन की पुरानी प्रतियों के विख्यात जानकार "तैयार क़ूलाच" कहते हैं कि इस समय हम क़ुरआन की एक ऐसी प्रति के समक्ष हैं जो सहाबा के समय से संबन्धित है। इसको पढ़ना हमारे लिए विशेष महत्व रखता है। निश्चित रूप से क़ुरआन की यह प्रति हस्तलिखित है। शोध से यह पता चला है कि इसे दसवीं शताब्दी हिजरी के मध्य में कूफ़े, मदीने और शाम में लिखा गया है।
ईरान के संस्कृति और मार्गदर्शन मंत्री सैयद अब्बास सालेही इस प्रदर्शनी के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं कि तेहरान में आयोजित होने वाली यह अन्तर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी, क़ुरआन के बारे में इस्लामी जगत की बहुत महत्वपूर्ण प्रदर्शनी है जो पूरे संसार में क़ुरआन के क्षेत्र में की जाने वाली गतिविधियों को प्रदर्शित करती है। पिछली प्रदर्शनियों में जो कुछ महत्वपूर्ण होता है उसे बाद वाली प्रदर्शनी में अवश्य प्रदर्शित किया जाता है। जनता की ओर से इसका व्यापक स्तर पर स्वागत इस प्रदर्शनी की उपयोगिता को सिद्ध करता है। उन्होंने कहा कि तेहरान में प्रतिवर्ष रमज़ान के महीने में लगने वाली क़ुरआन की प्रदर्शनी से लोग क़ुरआन के बारे में बहुत कुछ सीखते हैं।
तेहरान में क़ुरआन की 26वीं अन्तर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी में भाग लेने वाले एक शिक्षक ने कहा कि क़ुरआन की संस्कृति को फैलाने और युवाओं का मार्गदर्शन करने में इस प्रदर्शनी का बहुत महत्व है। उन्होंने कहा कि यह एक वास्तविकता है कि क़ुरआन का प्रभाव उसी पर हो सकता है जो स्वयं को बुराइयों से दूर करे और ईश्वरीय प्रकाश को प्राप्त करने के लिए तैयार हो। मनुष्य का अन्तरमन जितना अधिक स्वच्छ होगा और उसके भीतर क़ुरआन की बातों को जानने की जिज्ञासा जितनी अधिक होगी, वह क़ुरआन से उतना ही अधिक संपर्क प्राप्त कर सकता है। यह स्पष्ट सी बात है कि यदि किसी गंदे बरतन में स्वच्छ पानी भी दिया जाए तो उस बर्तन में पहुंचने के बाद वह स्वच्छ पानी भी ख़राब हो जाता है। इसी प्रकार से अच्छी बातों को समझने के लिए मनुष्य को अपने अन्तरमन को स्वच्छ करना चाहिए।
बंदगी की बहार- 12
सूरे माएदा की आयत संख्या 105 में ईश्वर कहता हैः हे ईमान वालो! अपने आप को बचाओ।
जान लो कि तुम्हें मार्गदर्शन प्राप्त हो गया तो पथभ्रष्ट तुम्हें क्षति नहीं पहुंचा सकेंगे। तुम सबकी वापसी ईश्वर (ही) की ओर है फिर वह तुम्हें तुम्हारे कर्मों से अवगत कराएगा।
मनुष्य को अपने जीवन में जिन शत्रुओं का सामना रहता है वे दो प्रकार के हैं। पहला शत्रु तो स्वंय उसकी आंतरिक इच्छाए हैं जबकि दूसरा शत्रु शैतान है। इस्लामी शिक्षाओं में आंतरिक इच्छाओं को भीतरी शत्रु की संज्ञा दी जाती है जबकि शैतान को बाहरी शत्रु कहकर संबोधित किया गया है। आंतरिक इच्छाओं के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम (स) कहते हैं कि तुम्हारा सबसे बड़ा शत्रु वे इच्छाए हैं जो तुम्हारे अस्तित्व में निहित हैं। इस बारे में पवित्र क़ुरआन में कहा गया है कि आंतरिक इच्छाएं मनुष्य को बुरे कर्मों की ओर प्रेरित करती हैं। मनुष्य का दूसरा सबसे बड़ा शत्रु शैतान है। पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम इस बारे में ईश्वर को संबोधित करते हुए कहते हैं कि हे ईश्वर! मैं तुझसे उस शत्रु की शिकायत करता हूं जो मुझको पथभ्रष्ट करना चाहता है। यह शैतान मेरे मन में भांति-भांति के विचार लाता है यह मुझको सांसारिक मायामोह की ओर अग्रसर करता है। यह मुझमें और तेरी उपासना के बीच गतिरोध उत्पन्न करता है। शैतान की चालों और उसके हथकण्डों से बचने के सबसे अच्छा मार्ग पवित्र रमज़ान का पवित्र महीना है। इस महीने में रोज़े रखकर मनुष्य शैतान को परास्त कर सकता है।
प्रतिवर्ष रमज़ान के महीने में लोगों के लिए यह अवसर उपलब्ध हो जाता है कि वे अपने शरीर और आत्मा को शुद्ध करने के लिए अधिक से अधिक ध्यान दें। इस संदर्भ में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्ला ख़ामेनेई कहते हैं कि आत्म निर्माण के लिए रमज़ान का महीना बहुत ही उपयुक्त अवसर है। हम लोग उस कच्ची मिट्टी की तरह है जिसपर अगर काम किया जाए तो फिर उसे अपने दृष्टिगत आकार में लाया जा सकता है। यदि हम अपने जीवन में प्रयत्न करते हैं तो उसके परिणाम भी हासिल कर लेंगे। वैसे जीवन का उद्देश्य भी स्वयं का निर्माण करना है।
रमज़ान का पवित्र महीना एक प्रकार से आत्म निर्माण का महीना है। इस महीने में आत्मशुद्धि की जा सकती है। यह महीना शैतान से दूरी का महीना है। इस महीने में आंतरिक इच्छाओं पर नियंत्रण स्थापित किया जा सकता है। रमज़ान का हर पल मूल्यवान है। इस महीने में एक विशेष प्रकार का आध्यात्मिक वातावरण बन जाता है। इस प्रकार के आध्यात्मिक वातावरण में आत्मनिर्माण करने में बहुत सहायता मिलती है। आत्मशुद्धि करके मनुष्य बुराइयों से मुक़ाबला कर सकता है। रमज़ान में एकांत में बैठकर ईश्वर की प्रार्थना करने से विशेष प्रकार का आनंद प्राप्त होता है। ऐसे में हम व्यक्तिगत या सामूहिक रूप में उपासना करके ईश्वर से अधिक निकट हो सकते हैं।
आत्मनिर्माण ऐसा विषय है जिसके बारे में पवित्र क़ुरआन ने बहुत बल दिया है। क़ुरआन के अनुसार मनुष्य की आत्मा आरंभ में एक सफ़ेद काग़ज़ की भांति साफ होती है। उसके भीतर अच्छाइयों की ओर जाने या बुराइयों का रूख करने, दोनो की क्षमता पाई जाती है। अब मनुष्य के ऊपर है कि वह कौन से मार्ग का चयन करता है। पवित्र क़ुरआन के सूरे शमस में ग्यारह बार सौगंध खाने के बाद ईश्वर आत्मनिर्माण को सफलता का एकमात्र साधन बताता है। इसी के साथ वह नैतिक भ्रष्टाचार को मनुष्य के पतन का कारण बताता है। ईशवर कहता है कि निश्चित रूप से वह सफल रहा जिसने आत्मनिर्माण किया और निश्चित रूप में वह विफल रहा जिसने अपनी आंतरिक इच्छाओं का अनुसरण किया। जिसने भी स्वयं को पापों में लगा लिया वह अच्छाइयों से वंचित रहा।
ईश्वर ने अपने दूतों को धरती पर इसलिए भेजा कि वे लोगों को बुराइयों के दुष्परिणाम से अवगत करवाते हुए उनको इससे रोकें। पैग़म्बरे इस्लाम (स) जब भी सूरे शम्स की आयत संखया 9 की तिलावत करते थे तो पहेल कुछ देर ठहरते थे। उसके बाद ईश्वर से अनुरोध करते हुए कहते थे कि हे ईश्वर, मेरे भीतर अपने भय को जगह दे क्योंकि तूही मेरा स्वामी है। मेरी आत्मा को पवित्र कर दे क्योंकि तू ही सबसे अच्छा पवित्र करने वाला है। अपने पूर्वजों की ही भांति इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम भी आत्मा की शुद्धि के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहते थे कि हे पालनहार! मेरे भीतर उन अच्छी विशेषताओं को भर दे जो आत्म शुद्धि का माध्यम हैं।
आत्मशुद्धि का अर्थ होता है आत्मा को स्वच्छ करना। इसका दूसरा अर्थ आत्मिक विकास भी हो सकता है। आत्मा को स्वच्छ करना भी एक प्रकार का विकास ही है। यह बात इसलिए कही जा रही है कि जब आत्मा को शुद्ध किया जाएगा तो वह विकास की ओर उन्मुख होगी जबकि अगर उसे अशुद्ध कर दिया जाए तो उसका विकास रुक जाएगा। मनुष्य के भीतर आत्मिक विकास धीरे-धीरे होता है इसिलए यह आवश्यक है कि इसके लिए लगातार प्रयास किये जाएं। आत्मा का विकास उस स्थिति में ही संभव है जब ईश्वरीय आदेशों को व्यवहारिक बनाया जाए।
पवित्र रमज़ान के रोज़े, मनुष्य के आत्म निर्माण और उसके प्रशिक्षण का एक व्यवस्थित कार्यक्रम हैं। विगत से ही रोज़े को आत्मनिर्माण और अध्यात्म से संपर्क का माध्यम बताया गया है। कुछ तत्वदर्शी और आत्मज्ञानी, यह मानते हैं कि रोज़ा, तत्वदर्शिता प्राप्त करने का मूल स्तंभ है। समस्त धर्मों में रोज़े को नियंत्रण के अर्थ में पेश किया गया है जिसके माध्यम से लोगों को ईश्वरीय पहचान, आत्मशुद्धि और इच्छाशक्ति को मज़बूत करने का आह्वान किया गया है। इस संदर्भ में शहीद आयतुल्लाह मुतह्हरी कहते हैं कि रमज़ान का कार्यक्रम यह है कि जिन लोगों में कुछ कमी है वे अपनी कमियों को दूर करके अच्छाइयां पैदा करें, जो लोग अच्छे हैं वे और अधिक अच्छाइयों को अपने भीतर लाने के प्रयास करें और अंततः परिपूर्णता तक पहुंचने की कोशिश जारी रखें। इस महीने का कार्यक्रम आत्म निर्माण करते हुए अपने भीतर छिपी बुराइयों को दूर करते रहना है। रमज़ान में अपनी आंतरिक इच्छाओं पर पूरी तरह से नियंत्रण करके उन्हें बुद्धि के अधीन लाना चाहिए। कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि रोज़ेदार, रमज़ान में भूखा और प्यासा रहने के साथ ही आत्मविकास के लिए भी प्रयासरत रहे।
अगर कोई व्यक्ति 30 दिनों तक लगातार भूखा और प्यासा रहे तथा उसमें विगत की तुलना में कोई भी परिवर्तन न आए तो इस प्रकार के रोज़े उसके लिए प्रभावहीन हैं। इसी विषय के दृष्टिगत शहीद मुतह्हरी कहते हैं कि रोज़ा, एसी व्यवहारिक उपासना है जिसका उद्देश्य, आत्मोत्थान करना है। रोज़े को अगर उसकी सही पहचान और विशेष शर्तों के साथ रखा जाए तो फिर नैतिक, आय्धात्मिक तथा सामाजिक दृष्टि से एसी मूल्यवान उपलब्धियां प्राप्त होंगी जो स्वंय रोज़ेदार के लिए भी लाभदायक होंगी और उस समाज के लिए भी जहां पर वह रहता है।
पवित्र क़ुरआन, तक़वा या ईश्वरीय भय को रोज़े का महत्वपूर्ण परिणाम बताता है। तक़वे का अर्थ होता है हर प्रकार की बुराई से दूर रहना। तक़वा कभी भी आत्मशुद्धि के बिना हासिल नहीं हो सकता। तक़वा एसी सवारी है जिसका सवार पूरे विश्वास के साथ अपने गंतव्य तक पहुंचता है और वह रास्ते में भटक नहीं पाता। तक़वे को जलती हुई मशाल भी बताया गया है जो राहगीर को अंधकार में उसके लक्ष्य तक पहुंचाती है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) कहते हैं कि तक़वा, हर अच्छाई का स्रोत है। महापुरूषों ने सदैव ही तक़वे को तरक़्क़ी या विकास की सीढ़ी बताया है। उनका कहना है कि स्वंय को नियंत्रित करके ईश्वरीय भय या तक़वे के माध्यम से सफलता प्राप्त की जा सकती है। विशेष बात यह है कि रोज़ा, मनुष्य के मन पर नियंत्रण का माध्यम बनता है एसे में इसे तक़वे तक पहुंचने का सबसे अच्छा रास्ता कहा जा सकता है।
ईश्वरीय दूतों और महापुरूषों के कथनों में आत्मा की गंदगी को परिपूर्णता के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा बताया गया है। इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम कहते हैं कि एक बार हज़रत मूसा ने ईश्वर से पूछा कि वे लोग कौन हैं जो प्रलय के दिन तेरी छत्रछाया हो होंगे। उनको जवाब मिला कि पवित्र हृदय वाले ही मेरी छत्रछाया में होंगे। यह वे लोग होंगे जो ईश्वर के अतिरिक्त और कुछ नहीं देखते और झूठ से दूर रहते हैं।
अपने कर्मों के प्रति सचेत रहने से मनुष्य, बुराइयों से बचा रहता है और ईश्वरीय आदेशों को उचित ढंग से व्यवहारिक बना सकता है। वह अपने कर्मों को इस प्रकार से अंजाम दे सकता है कि ईश्वर के प्रकोप से सुरक्षित रह जाए। जो लोग इस बात पर पूरी तरह से विश्वास रखते हैं उनकी पूरी कोशिश यही रहती है कि उनसे कोई भी पाप न होने पाए और वे पापों से बचे रहें। एसे लोग अपने जीवन में सदैव ही अच्छे-अच्छे काम करने की कोशिश करते रहते हैं।
रमज़ान के पवित्र महीने में रोज़ेदार, अपनी आंतरिक इच्छाओं पर नियंत्रण कर सकता है। इस बारे में वह ईश्वर से सहायता भी हासिल कर सकता है। हमारी ईश्वर से प्रार्थना है कि वह रोज़ेदारों को उनकी आंतरिक इच्छाओं पर नियंत्रण का सौभाग्य प्रदान करे।
माहे रमज़ान के बारहवें दिन की दुआ (12)
माहे रमज़ानुल मुबारक की दुआ जो हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने बयान फ़रमाया हैं।
اَللّهُمَّ زَيِّنِّي فيہ بالسِّترِ وَالْعَفافِ وَاسْتُرني فيہ بِلِباسِ الْقُنُوعِ وَالكَفافِ وَاحْمِلني فيہ عَلَى الْعَدْلِ وَالْإنصافِ وَآمنِّي فيہ مِنْ كُلِّ ما اَخافُ بِعِصْمَتِكَ ياعصمَةَ الْخائفينَ..
अल्लाह हुम्मा ज़ैय्यिनी फ़ीहि बिस्सित्रे वल अफ़ाफ़, वस तुरनी फ़ीहि बेलिबासिल क़ुनूइ वल कफ़ाफ़, वह मिलनी फ़ीहि अलल अद्ले वल इन्साफ़, व आमिन्नी फ़ीहि मिन कुल्ले मा अख़ाफ़ु बे इस मतिका या इस मतल ख़ाएफ़ीन (अल बलदुल अमीन, पेज 220, इब्राहिम बिन अली)
ख़ुदाया! मुझे इस महीने में पर्दा और पाकदामनी से ज़ीनत अता फ़रमा और मुझे किफ़ायते शआरी और इकतेफ़ा का लिबास पहना और मुझे इस महीने में अद्ल व इन्साफ़ पर आमादा कर दे और इस महीने के दौरान मुझे हर उस चीज़ से अमान दे जिससे मैं ख़ौफ़ज़दा होता हूं, ऐ ख़ौफ़ज़दा बन्दों की पनाहगाह.
अल्लाह हुम्मा स्वल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद व अज्जील फ़रजहुम.
हज 2024 में महरम कोटा सबसे ज़्यादा संख्या में महाराष्ट्र की महिलाएं हज करेंगी।
हज कमेटी ऑफ इंडिया के सी.ई.ओ डॉ. लियाकत अली आफ़ाक़ी आई.आर.एस ने ड्रा में चयनित सभी भाग्यशाली महिला हज यात्रियों को बधाई देते हुए अपील की है कि आज से ही आप मानसिक रूप से इस पवित्र यात्रा के लिए खुद को तैयार कर लें।
नई दिल्ली। भारत सरकार की हज नीति 2024 के तहत महरम पालिसी के लिए 500 हज सीटें निर्धारित की गईं।
ऐसी महिलाएं जो पासपोर्ट के अभाव या किसी अन्य कारण से हज के लिए आवेदन नहीं कर सकी थीं और उनका शरई महरम हज 2024 के लिए चयन हो गए है। उन्हें महरम कोटे के तहत हज आवेदन पत्र ऑनलाइन जमा करने का अवसर दिया गया था इस कोटे में 714 आवेदन प्राप्त हुए।
जिनका चयन आज हज कमेटी ऑफ इंडिया के नये शाखा कार्यालय आरके, पुरम सेक्टर-1 में कम्प्यूटरीकृत ड्रा के माध्यम से किया गया जिस में महाराष्ट्र से 87, केरल से 60, उत्तर प्रदेश से 57, जम्मू-कश्मीर और कर्नाटक से 51-51, गुजरात से 38, मध्य प्रदेश से 33, तेलंगाना से 30, तमिलनाडु से 28, दिल्ली से 15, राजस्थान और आंध्र प्रदेश से 11-11, पश्चिम बंगाल से 8, बिहार से 6, उत्तराखंड से 5, असम और छत्तीसगढ़ से 2-2, झारखंड, हरियाणा, ओडिशा, पांडिचेरी और पंजाब से 1-1 हज यात्री चुने गए है।
चयनित हज यात्रियों की सूची हज कमेटी ऑफ़ इंडिया की वेबसाइट पर उपलब्ध है। हज कमेटी ऑफ इंडिया के सी.ई.ओ डॉ. लियाकत अली आफ़ाक़ी आई.आर.एस ने ड्रा में चयनित सभी भाग्यशाली महिला हज यात्रियों को बधाई देते हुए अपील की है कि आज से ही आप मानसिक रूप से इस पवित्र यात्रा के लिए खुद को तैयार कर लें।
तैयारी करें और हर स्तर पर हज ट्रेनिंग प्रोग्राम मे जरूर शामिल हों ताकि हज के दौरान आप सभी परेशानियों से बचे रहें।
डॉ. आफ़ाक़ी ने महरम कोटे में चयनित महिला हज यात्रियों से हज खर्च की पहली और दूसरी किस्त की कुल राशि 2,51,800/- भारतीय स्टेट बैंक या यूनियन बैंक ऑफ इंडिया की किसी भी शाखा मे 05 अप्रैल 2024 तक या इससे पहले हज कमेटी ऑफ इंडिया के खाते में जमा करने की अपील की तथा अंतर्राष्ट्रीय पासपोर्ट, मेडिकल स्क्रीनिंग, फिटनेस प्रमाणपत्र, शपथ पत्र, बैंक पे-स्लिप, ऑनलाइन हज आवेदन पत्र की डाउनलोड की गई कॉपी वा अन्य संबंधित दस्तावेजों को अपनी राज्य हज कमेटी मे निर्धारित तिथि तक जमा दे।
क़ातिलों को अमरीकी सीनेटर्ज़ का समर्थन
8 अमेरिकी सीनेटर्ज़ ने एक योजना पेश की है जिसमें अमेरिकी सरकार से अल्बानिया की राजधानी तिराना में स्थित "अशरफ-3" कैंप में एमकेओ के आतंकवादी गुट (मुजाहेदीने ख़ल्क) के सदस्यों की सुरक्षा की गुहार लगाई गयी है।
इस योजना को पेश करने वाले सीनेटर अमरीका की दोनों प्रसिद्ध पार्टियों रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टियों से हैं।
इन सीनेटर्ज़ ने एमकेओ आतंकी गुट के सदस्यों के समर्थन की अपील ऐसे समय में किया गया है कि जब यह आतंकवादी गुट 2010 तक अमेरिका, कनाडा और यूरोपीय संघ के विदेशमंत्रालयों की आतंकवादी गुटों की सूची में था, लेकिन उसके बाद ईरान से दुश्मनी के मक़सद से, इस आतंकी गुट को अमेरिका और कुछ यूरोपीय देशों द्वारा ब्लैक लिस्ट से हटा दिया गया।
इस आतंकवादी गुट का गठन जेल, घुटन, ग़ुलामी, जबरन भर्ती, कैंप के अंदर सदस्यों को क़ैद रखने, उन्हें बाहरी दुनिया से बिल्कुल अलग थलग कर देना, जबरन तलाक़ और विवाह यहां तक कि संगठन की नीतियों का पालन करते हुए ब्रह्मचर्य का आह्वान करना, सदस्यों का ब्रेनवॉश करने के लिए मानसिक प्रेरणा के इस्तेमाल करने के आधार पर किया गया।
आतंकवादी गुट एमकेओ के यह कुछ ऐसे तरीके हैं जो आम यह गुट आम और भोले भाले लोगों पर इस्तेमाल करता है। जिन चीज़ों का हमने उल्लेख किया गया है वे चीज़ें इस खतरनाक आतंकी गुट के शिविरों में देखी गयी हैं।
1980 के दशक में इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद के वर्षों में, एमकेओ आतंकी गुट ने ईरान के अंदर कई आतंकी हमले किए और तब से इस ग्रुप का नाम ईरानी जनता के मन में एक नफ़रती ग्रुप के रूप में दर्जं हो गया।
इस आतंकवादी विचारधारा वाले ग्रुप के समर्थन की गुहार जो "ईरानी जनता की आज़ादी" के दावे करता है, ईरान के ख़िलाफ़ थोपे गए युद्ध के दौरान इराक़ की बास पार्टी के तानाशाह सद्दाम से लगाई गयी जिसकी वजह से ईरानी जनता के के बीच इस गुट की ज़रा भी इज़्ज़त नहीं रही और इस तरह से एमकेओ ईरान में सबसे अधिक घृणित और नफ़रत किया जाने वाला नाम बन गया।
ईरानी जनता के ख़िलाफ़ एमकेओ आतंकवादी गुट द्वारा किए गए कई अपराधों के बावजूद, अमेरिकी राजनेता इस ग्रुप का समर्थन करना जारी रखे हुए हैं।
2013 में अमेरिकी सरकार ने अल्बानिया को इस आतंकवादी गुट के सदस्यों को शरणार्थी के रूप में स्वीकार करने के लिए मजबूर किया था।
इस्लामी क्रांति की सफलता के शुरुआती दिनों से लेकर अब तक एमकेओ आतंकी गुट ने विभिन्न आतंकवादी कार्यवाहियों के दौरान 17 हज़ार से अधिक ईरानी नागरिकों की हत्या कर दी है।
इस्लामी क्रांति की सफलता के शुरुआती दिनों में ईरान के भीतर आतंकी कार्यवाहियों के कारण, इस गुट के कई आतंकियों को न्यायपालिका ने सज़ाए मौत की सज़ा सुनाई।
जॉन बोल्टन सहित कई अमेरिकी राजनेता हमेशा ही इस आतंकवादी गुट के संपर्क में रहे हैं।
मरियम रजावी के नेतृत्व में इस गुट द्वारा ईरान विरोधी प्रदर्शनों और विदेशी मीडिया में तेहरान के ख़िलाफ लगातार प्रोपेगैंडा किया जाता रहा है।
हालिया वर्षों के दौरान आतंकी गुट मुजाहेदीने ख़ल्क़ के सदस्य विभिन्न भाषाओं में सोशल मीडिया पर ईरान के ख़िलाफ़ और अमेरिकी प्रतिबंधों के समर्थन में कामेंट करते रहे हैं।
ईरान की इनडोर हॉकी टीम ने हासिल की दूसरी रैंक
इस्लामी गणतंत्र ईरान की राष्ट्रीय इनडोर हॉकी टीम ताज़ा वैश्विक रैंकिंग में दूसरे स्थान पर पहुंच गयी है।
विश्व हॉकी साइट एफ़आईएच (FIH) की ताज़ा रैंकिंग में ईरान की राष्ट्रीय इनडोर हॉकी टीम 1650 प्वाइंट्स के साथ एक पायदान ऊपर उठते हुए दुनिया में दूसरे स्थान पर पहुंच गयी है।
इस रैंकिंग में विश्व चैंपियन ऑस्ट्रियाई टीम पहले स्थान पर है और बेल्जियम की राष्ट्रीय हॉकी टीम तीसरे स्थान पर है और ईरान की राष्ट्रीय हॉकी टीम से नीचे है।
जर्मनी, चेक गणराज्य, नीदरलैंड, दक्षिण अफ्रीका, पोलैंड, अमेरिका और स्विट्जरलैंड विश्व रैंकिंग में चौथे से दसवें स्थान पर हैं।
इस्राईल के जल आतंकवाद से कई क्षेत्रीय देश प्रभावित - विश्व जल दिवस
स्वीट्ज़लैंड के शहर बेसल में अगस्त 1897 में आयोजित होने वाली ज़ायोनियों की पहली कांफ्रेंस में कहा गया था कि पानी के बिना, ज़ायोनी सरकार की स्थापना संभव नहीं हो सकेगी।
आज ज़ायोनी शासन आतंकवाद और असुरक्षा जैसी सीधी चुनौतियों के अलावा, लेबनान, जॉर्डन और फ़िलिस्तीन जैसे अरब देशों के सामने पानी का संकट उत्पन्न करने की कोशिश कर रहा है।
पिछले साल इस्राईल ने हवाई हमला करके दक्षिणी लेबनान स्थित सबसे बड़े जल पंपिंग स्टेशन वाज़ानी को नष्ट कर दिया।
इस संदर्भ में स्थानीय अधिकारी अहमद अल-मोहम्मद का कहना हैः "इस्राईली हमलों में जल परियोजना के विद्युत उपकरणों, पंप और वितरण नेटवर्क को नुक़सान पहुंचा है, जिसके बाद कई गांवों और क़स्बों में पानी की आपूर्ति बंद हो गई है।"
लेबनान की सीमा पर ज़ायोनी शासन की निरंतर बमबारी के कारण, वहां रहने वालों के लिए पानी का संकट पैदा हो गया है और लोग बारिश का पानी स्टोर करके अपनी ज़रूरतों को पूरा कर रहे हैं।
अन्य क्षेत्रों में भी लेबनानी ग्रामीण कुएं खोदकर पानी की अपनी ज़रूरतें पूरी कर रहे हैं, जिससे न केवल उनके स्वास्थ्य को ख़तरा है, बल्कि जलवायु संतुलन भी बिगड़ सकता है
लेबनान की तरह जॉर्डन ने भी पिछले साल ऐसी ही स्थिति का अनुभव किया था।
1994 में जॉर्डन और इस्राईल के बीच शांति समझौते के बाद इस शासन ने जॉर्डन को सालाना 25 से 50 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी उपलब्ध कराने का वादा किया था, लेकिन बार-बार वह अपने इस को तोड़ता रहता है।
जॉर्डन के विदेश मंत्री एमन सफ़दी ने कहा है कि इस्राईल, ग़ज़ा में लोगों का क़त्लेआम कर रहा है, ऐसी स्थिति में वह एक ज़ायोनी मंत्री के साथ बैठकर पानी और बिजली के समझौते पर हस्ताक्षर नहीं कर सकते।
क्षेत्रीय देशों में पानी का संकट पैदा करने के इस्राईल के प्रयासों के कारण, लेबनान, सीरिया, फ़िलिस्तीन और जॉर्डन को कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है।
फ़िलिस्तीन ऑथार्टि जॉर्डन नदी के पश्चिमी किनारे की पहाड़ी से थोड़ा सा पानी हासिल कर पाती है और पादूसरी ओर, गोलान हाइट्स पर इस्राईल के क़ब्ज़े के बाद से सीरिया जलीला झील के पानी से वंचित हो गया है।
इस्राईल नदी के किनारे भूमिगत जल और पर्वतीय भूमिगत जल पर निर्भर है, और यह दोनों ग़ज़ा और वेस्ट बैंक के नीचे स्थित हैं। इस्राईल सतह पर मौजूद पानी के लिए उत्तर और पूरब पर निर्भर है और जॉर्डन नदी का पानी चुराने की वजह से जॉर्डन और सीरिया के लिए समस्याएं पैदा हो गई हैं।
तेल-अवीव ने राष्ट्रीय जल परियोजना की शुरूआत की है, जिसके तहत पाइप लाइन और पंपों से जलीला नदी के पानी को उत्तर, मध्य और दक्षिणी इलाक़ों तक पानी पहुंचाया जा रहा है।
क़ुनैतरा के उत्तर में मसअदा झील और गोलान और फ़िलिस्तीन के बीच में जलील नदी और गोलान के पश्चिम में जॉर्डन नदी और उत्तर में रुक़्क़ाद के स्थित होने के कारण ज़ायोनी शासन इस क्षेत्र पर अपना क़ब्ज़ा जारी रखना चाहता है।
इससे स्पष्ट हो जाता है कि इस्राईल ने आधी सदी पहले ही जल आतंकवाद शुरू कर दिया था और आज जब पश्चिमी एशिया में जल युद्ध की संभावना की चर्चा है, तो तेल-अवीव इस तरह के संकट उत्पन्न करने वाले आतकंवाद का सहारा लेना बंद नहीं करेगा। नी को लेकर गंभीर समस्या से ग्रस्त है।
इतिहास में पहली बार तेहरान में आज़ादी टॉवर पर पाकिस्तानी झंडा
ईरान की राजधानी तेहरान में पाकिस्तान दिवस के मौके पर आज़ादी टावर को पाकिस्तानी झंडे के रंगा रंग किया गया।
आज़ादी टावर को पाकिस्तानी झंडे से रंगने के मौके पर ईरानी लोगों के साथ तेहरान में तैनात पाकिस्तानी राजदूत मोहम्मद मुदस्सर टीपू भी मौजूद थे।
तेहरान में पाकिस्तानी दूतावास ने एक बयान में कहा कि पाकिस्तान ईरान संबंधों के इतिहास में यह पहली बार है कि इतना खूबसूरत कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है।
पाकिस्तानी दूतावास की ओर से जारी बयान में आगे कहा गया कि आजादी टॉवर को विशेष एलईडी लाइटों की मदद से पाकिस्तानी झंडे से सजाया गया था और इस समारोह में दोनों देशों के राष्ट्रगान भी बजाए गए जिससे दोनों पड़ोसी देशों के बीच संबंध और मजबूत हुए।