رضوی

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 अल्लाह तआला का मालिक होना और हमारा मालिक होना दो अलग अलग स्तरों की बात है जिसमें अल्लाह की सर्वोच्चता और हमारी सीमितता स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।

हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने फरमाया,दुनिया में हमारे पास मालेकाना हक़ के नाम पर एक चीज़ है। यह वास्तविक स्वामित्व नहीं है बल्कि किसी और के ज़रिए दिया गया स्वामित्व है। यहाँ तक कि हम अपने जिस्म के भी मालिक नहीं हैं।

हम अपने जिस्म के कैसे मालिक हैं कि इस जिस्म में आने वाले बदलाव हमारी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ सामने आते हैं और उन्हें कंट्रोल करना हमारे बस में नहीं है? इस जिस्म में दर्द होता है, यह जिस्म मिट जाता है और इस पर हमारा कोई अख़्तियार नहीं होता।

हम दुनिया में बहुत सी चीज़ों को अपनी संपत्ति समझते हैं। इस कमज़ोर से स्वामित्व पर ही इंसान फ़ख़्र करता है, क़यामत में यह थोड़ा सा स्वामित्व भी नहीं होगा। क़यामत में हमारे शरीर के अंग हमारे ख़िलाफ़ बोलेंगे और वहाँ सामने आने वाली सारी बातें इंसान के अख़्तियार के दायरे से बाहर होंगी।

 

 

सीरिया में बेगुनाह लोगों के भयावह नरसंहार ने हर आज़ादख़्याल इंसान के दिल को आहत कर दिया है। संस्थाएँ और मानवाधिकार संगठन सीरिया में नरसंहार रोकें

हुकूमत ए तहरीर शाम के हाथों सीरियाई अवाम के नरसंहार पर जामेआए मुदर्रिसीन हौज़ा ए इल्मिया क़ुम की कार्यकारी परिषद् ने निंदानीय बयान जारी किया है

निंदनीय बयान कुछ इस प्रकार है:

إِنَّا لِلَّهِ وَإِنَّا إِلَيْهِ رَاجِعُونَ,بِأَیِّ ذَنْبٍ قُتِلَتْ

सीरिया में बेगुनाह और निहत्थे लोगों के भयावह नरसंहार जिसने हर स्वतंत्रचेता इंसान के दिल को आहत कर दिया है हम हज़रत वली-ए-असर स.ल. मक़ाम-ए-मुअज़्ज़म रहबरी, मराजे-ए-अज़ाम-ए-तक़लीद और तमाम मोमिनों व मुस्लिमों की सेवा में संवेदना प्रकट करते हैं।

हम इस भयंकर अपराध की कड़ी निंदा करते हैं और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं, मानवाधिकार संगठनों, इस्लामी सहयोग संगठन (OIC), NAM और अरब लीग से मांग करते हैं कि सीरिया में नरसंहार को रोकने और ख़ूँख़ार हुकूमत-ए-तहरीर अलशाम के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करें।

पैग़म्बर (स) ने फ़रमाया: " لَوْ یَعْلَمُ الْعَبْدُ ما فِی رَمَضانِ لَوَدَّ اَنْ یَکُونَ رَمَضانُ السَّنَة लो यअलमुल अब्दो मा फ़ी रमज़ाने लवद्दा अय यकूना रमज़ानुस सनता " यदि कोई व्यक्ति रमजान के महीने की बरकतों और वास्तविकताओं से अवगत होता, तो वह चाहता कि पूरा वर्ष रमजान का महीना हो।

अल्लाह के रसूल (स) ने रमज़ान उल मुबारक के महीने की खूबियों के बारे में बहुत ही खूबसूरत कथन कहे हैं, जिनमें से कुछ का उल्लेख नीचे किया गया है।

पैग़म्बर (स) ने फ़रमाया:

" لَوْ یَعْلَمُ الْعَبْدُ ما فِی رَمَضانِ لَوَدَّ اَنْ یَکُونَ رَمَضانُ السَّنَة लो यअलमुल अब्दो मा फ़ी रमज़ाने लवद्दा अय यकूना रमज़ानुस सनता "

 

यदि कोई व्यक्ति रमजान के महीने की बरकतों और वास्तविकताओं से अवगत होता, तो वह चाहता कि पूरा वर्ष रमजान का महीना हो।

اِنَّ اَبْوابَ السَّماءِ تُفْتَحُ فی اَوَّلِ لَیْلَةٍ مِنْ شَهْرِ رَمَضانِ وَ لا تُغْلَقُ اِلی آخِرِ لَیْلَةٍ مِنْهُ. इन्ना अब्वाबस समाए तुफ़्तहो फ़ी अव्वले लैलतिम मिन शहरे रमजाने वला तुग़लक़ो ऐला आख़ेरे लैलतिम मिन्हो

स्वर्ग के द्वार रमजान माह की पहली रात को खुल जाते हैं और आखिरी रात तक बंद नहीं होते।

لَوْ عَلِمْتُم مالَکُم فِی رَمَضانِ لَزِدْتُم لِلّه تَبارَکَ و تَعالی شُکْرا. लौ अलिमतुम मालकुम फ़ी रमज़ाने लज़िदतुम लिल्लाहे तबारका व तआला शुक्रन

यदि आप जान लें कि रमज़ान के महीने में आपके लिए क्या लिखा गया है, तो आप सर्वशक्तिमान ईश्वर के प्रति अत्यंत आभारी होंगे।

وَ کَّلَ اللّه ُ مَلائِکَةً بِالدُّعاءِ لِلصّائِمین؛ वक्कलल्लाहो मलाएकतन बिद्दुआऐ लिस्साऐमीन

अल्लाह तआला रोज़ा रखने वालों के लिए दुआ करने हेतु स्वर्गदूतों को नियुक्त करता है।

हज़रत अली (उन पर शांति हो) ने फ़रमाया:

صَوْمُ الْقَلْبِ خَیْرٌ مِنْ صِیامِ اللِّسانِ و صِیامُ اللِّسانِ خَیْرٌ مِنْ صِیامِ الْبَطْن. सौमुल क़ल्बे ख़ैरुम मिन सेयामिल लेसाने व सेयामुल लेसाने ख़ैरुम मिन सेयामिल बत्ने

दिल का रोज़ा ज़बान के रोज़े से बेहतर है और ज़बान का रोज़ा पेट के रोज़े से बेहतर है।

صَوْمُ النَّفْسِ عَنْ لَذّاتِ الدُّنیا اَنْفَعُ الصِّیامِ. सौमुन नफ़्से अन लज़्ज़ातिद दुनिया अनफ़्उस सेयामे

 

नफस का सांसारिक सुखों से दूर रहना सबसे लाभकारी रोज़ो में से एक है।

الصِّیامُ اِجْتِنابُ الْمَحارِمِ کَما یَمْتَنِعُ الرَّجُل مِنَ الطَّعامِ وَالشَّرابِ. अस्सयामो इज्तेनाबुल महारेमे कमा यमतनेउर रजोले मिनत तआमे वश्शराबे

रोज़ा उन चीज़ों से परहेज़ करने का कार्य है जिन्हें अल्लाह ने मना किया है, ठीक उसी तरह जैसे इस महीने के दौरान व्यक्ति खाने-पीने से परहेज़ करता है।

इमाम बाकिर (अ.स.) ने फ़रमाया:

«الصِّیام وَالْحَجُّ تَسْکینُ الْقُلُوبِ؛ अस्सयामो वल हज्ज़ो तस्कीनुल क़ुलूबे

रोज़ा और हज दिलों को शांति देते हैं।

इमाम जाफ़र सादिक (अ.स.) ने फ़रमाया:

غُرَّةُ الشُّهُورِ شَهْرُ رَمَضان و قَلْبُ شَهرِ رَمَضان لَیْلَةُ الْقَدْرِ. ग़ुर्रतुश्शोहूरे शहरो रमज़ाने व क़ल्बो शहरे रमज़ाने लैलतुल कद्रे

सबसे पुण्य महीना रमज़ान का महीना है और रमज़ान के महीने का हृदय शब ए कद्र है।

نِعْمَ الشَّهْرُ رَمَضانُ کانَ یُسَمّی عَلی عَهْدِ رَسُولِ اللّه الْمَرْزُوقُ. नेअमश शहरो रमज़ानो काना योसम्मा अला अहदे रसूलिल्लाहिल मरज़ूक़ो

रमज़ान कितना अद्भुत महीना है. पैगम्बर मुहम्मद (स) के समय में इसे नेमतो का महीना कहा जाता था।

इमाम हादी (अ.स.) ने फ़रमाया:

فَرَضَ اللّه ُ تَعالی الصَّوْمَ لِیَجِدَ الْغَنِیُّ مَسَّ الْجُوع لِیَحْنُو عَلَی الْفَقِیرِ. फ़रजल्लाहो तआलस सौमा लेयजेदल ग़निय्यो मस्सल जूए लेयहनू अलल फ़क़ीरे

अल्लाह तआला ने रोज़े को अनिवार्य बनाया है ताकि अमीर लोग भूख महसूस कर सकें और फिर गरीबों और जरूरतमंदों से प्यार कर सकें।

इस आयत में अल्लाह तआला ने मुसलमानों को गुप्त मामलों से बचने और सामाजिक कल्याण गतिविधियों में संलग्न होने के लिए प्रोत्साहित किया है। जो व्यक्ति अल्लाह के लिए दान, अच्छे कर्म और सुधार करता है, अल्लाह सर्वशक्तिमान उसे बड़ा इनाम देगा। यह आयत हमें सिखाती है कि हमें अपने शब्दों और कार्यों में अल्लाह की प्रसन्नता को ध्यान में रखना चाहिए और समाज के लिए उपयोगी कार्य करना चाहिए।

بسم الله الرحـــمن الرحــــیم बिस्मिल्लाह अल रहमान अल रहीम

لَا خَيْرَ فِي كَثِيرٍ مِنْ نَجْوَاهُمْ إِلَّا مَنْ أَمَرَ بِصَدَقَةٍ أَوْ مَعْرُوفٍ أَوْ إِصْلَاحٍ بَيْنَ النَّاسِ ۚ وَمَنْ يَفْعَلْ ذَٰلِكَ ابْتِغَاءَ مَرْضَاتِ اللَّهِ فَسَوْفَ نُؤْتِيهِ أَجْرًا عَظِيمًا   ला ख़ैरा फ़ी कसीरिम मिन नजवाहुम इल्ला मन अमरा बेसदक़तिन औ मारूफ़िन और इस्लाहिन बैनन नासे व मय यफ़अल ज़ालेकब तेग़ाआ मरज़ातिल्लाहे फ़सौफ़ा नूतीहे अजरन अज़ीमा (नेसा 114)

अनुवाद: उनकी अधिकतर गुप्त बातों में कोई भलाई नहीं, सिवाय उस व्यक्ति के जो दान, अच्छे कर्म या लोगों के बीच मेल-मिलाप का आदेश दे। और जो व्यक्ति अल्लाह की प्रसन्नता की चाह में ये सब करेगा, उसे हम अवश्य बड़ा बदला देंगे। देना।

विषय:

इस आयत में अल्लाह तआला ने मानव समाज के गुप्त मामलों (नज्वा) के बारे में स्पष्ट मार्गदर्शन दिया है। इस आयत में कहा गया है कि अधिकांश गुप्त मामलों में कोई भलाई नहीं है, सिवाय उन मामलों के जो दान, अच्छे कर्म या लोगों के बीच सुधार के लिए हों। जो कोई अल्लाह के लिए ऐसा करेगा, अल्लाह तआला उसे बड़ा बदला देगा।

पृष्ठभूमि:

यह आयत मदीना में अवतरित हुई। उस समय मुस्लिम समाज में विभिन्न प्रकार की गुप्त बातचीत और षड्यंत्र होते थे, जिनका उद्देश्य अक्सर लोगों को नुकसान पहुंचाना या परेशानी पैदा करना होता था। अल्लाह तआला ने हमें इन चीजों से बचने की सलाह दी है और केवल उन चीजों को उपयोगी बताया है जो सामाजिक कल्याण, भलाई और सुधार के लिए हैं।

तफ़सीर:

भूमिगत होने वाली चीजें बहुत खतरनाक होती हैं। इसलिए, आमतौर पर दो बातें गुप्त रूप से कही जाती हैं: एक जो अपने फायदे के लिए होती है और दूसरी जो दूसरों के लिए हानिकारक होती है। अन्यथा, यदि बात अच्छाई की हो तो अक्सर उसे छिपाने की कोई जरूरत नहीं होती। हालाँकि, अच्छी चीजों को तब छिपाया जाता है जब इरादा उन्हें किसी भी तरह के पाखंड से मुक्त रखने का हो। इसलिए दान के बारे में कहा गया है:

[यदि तुम दान दिखाओ तो अच्छा है। लेकिन यदि तुम उसे छिपाकर गरीबों को दोगे तो यह तुम्हारे लिए बेहतर है।] (2:271)

[अल्लाह की प्रसन्नता की खोज:] आयत के दूसरे भाग में एक महत्वपूर्ण वाक्य कहा गया है: और जो कोई अल्लाह की प्रसन्नता की खोज में ऐसा करेगा, हम उसे शीघ्र ही बड़ा प्रतिफल प्रदान करेंगे। जाहिर है, दान, भलाई और सुधार का सुंदरता में अपना स्थान है। अगर अल्लाह की रजा को लक्ष्य बनाकर इन नेकियों को करने वाला इंसान अपने अंदर नेकियाँ भी पैदा कर ले तो यह काम नेक, सवाब और सवाब का हकदार है। वरना अगर काम में नेकी है और नेकी नहीं है यदि कर्ता में कोई दोष है, तो उसे अच्छा प्रतिफल नहीं मिलेगा और वह प्रतिफल का हकदार नहीं है। उदाहरण के लिए, यदि कोई चोर दान देता है या कोई पेशेवर अपराधी और हत्यारा दान का काम करता है, तो उसका कार्य लोगों की नज़र में सराहनीय नहीं होगा, बल्कि लोग उसका उपहास और तिरस्कार करेंगे। इससे उस प्रश्न का भी उत्तर मिल जाता है जो आम जनता पूछती है: क्या गैर-मुस्लिम वैज्ञानिकों को भी कोई पुरस्कार मिलेगा जिन्होंने मानवता के लिए अनेक सेवाएं दी हैं?

महत्वपूर्ण बिंदुः

  1. अल्लाह की प्रसन्नता को लक्ष्य बनाना मोमिन में सुन्दरता पैदा करता है।
  2. जैसे-जैसे एक आस्तिक में अच्छाई विकसित होती है, उसके कार्य बेहतर होते जाते हैं और उसका प्रतिफल बढ़ता जाता है।

परिणाम:

इस आयत में अल्लाह तआला मुसलमानों को गुप्त मामलों से बचने और सामाजिक कल्याण गतिविधियों में संलग्न होने के लिए प्रोत्साहित करता है। जो व्यक्ति अल्लाह के लिए दान, अच्छे कर्म और सुधार करता है, अल्लाह सर्वशक्तिमान उसे बड़ा इनाम देगा। यह आयत हमें सिखाती है कि हमें अपने शब्दों और कार्यों में अल्लाह की प्रसन्नता को ध्यान में रखना चाहिए और समाज के लिए उपयोगी कार्य करना चाहिए।

सूर ए नेसा की तफ़सीर

हज़रत रसूल अल्लाह स.अ.व.व ने एक रिवायत में हज़रत खदीजा सलामुल्लाह अलैहा की अज़मत की ओर इशारा किया है।

इस रिवायत को " बिहारूल अनवार" पुस्तक से लिया गया है। इस रिवायत का पाठ इस प्रकार है:

:قال رسول اللہ صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم

أَيْنَ مِثْلُ خَدِيجَةَ صَدَّقَتْنِي حِينَ كَذَّبَنِي النَّاسُ‌ وَ وَازَرَتْنِي عَلَى دِينِ اللَّهِ وَ أَعَانَتْنِي عَلَيْهِ بِمَالِهَا إِنَّ اللَّهَ عَزَّ وَ جَلَّ أَمَرَنِي أَنْ أُبَشِّرَ خَدِيجَةَ بِبَيْتٍ فِي الْجَنَّةِ مِنْ قَصَبِ الزُّمُرُّدِ لَا صَخَبَ فِيهِ وَ لَا نَصَب

हज़रत रसूल अल्लाह स.अ.व.व ने फरमाया:

ख़तीजा जैसा कौन हो सकता है? उसने इस वक्त मेरी तस्दीक कि जब लोग मुझे झुठला रहे थे, और दीन ए खुदा की तरक्की के लिए अपने माल और दौलत से मेरी मदद की, खुदा ने मुझे हुक्म दिया है कि खदीजा सलामुल्लाह अलैहा को जन्नत में ऐसे ज़मुर्रत के महल की खुशखबरी सुनाओ, कि जिस में ना कोई ग़म है और ना कोई परेशानी और ना कोई ज़हमत।

बिहारूल अनवार,भाग 43, पेंज 131

 

आज इस्लामी तारीख सबसे पुरग़म दिनों में से एक है ये वही दिन है जिस दिन रसूल-ए-अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वा आलिहि वसल्लम की सबसे अज़ीज़ शरीके हयात, उनकी वफ़ादार साथी, इस्लाम की पहली मोमिना मोहसिन-ए-इस्लाम हज़रत ख़दीजाؑ बिन्ते खुवैलिद इस दुनिया से रुख़्सत हुईं।

आज  इस्लामी तारीख  सबसे पुरग़म दिनों में से एक है। ये वही दिन है जिस दिन  रसूल-ए-अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वा आलिहि वसल्लम की सबसे अज़ीज़ शरीके हयात, उनकी वफ़ादार साथी, इस्लाम की पहली मोमिना, मोहसिन-ए-इस्लाम हज़रत ख़दीजाؑ बिन्ते खुवैलिद इस दुनिया से रुख़्सत हुईं।

हज़रत ख़दीजाؑ की वफ़ात कोई आम वाक़िआ नहीं था। ये वो चराग़ थीं जिनकी रोशनी ने इस्लाम की इब्तिदाई तारीकियों को रौशन कर दिया।जब नबी-ए-करीमؐ पर वही नाज़िल हुई और आपने तौहीद की सदा बुलंद की, तो सबसे पहले जिसने इस सदा पर लब्बैक कहा, वो हज़रत ख़दीजाؑ का दिल था।जब दुनिया ने ठुकराया, उन्होंने गले लगाया।जब कुफ़्फ़ार ने दुश्मनी की, उन्होंने वफ़ादारी की इंतेहा कर दी।

उन्होंने अपना घर, अपना माल, अपनी इज़्ज़त सब कुछ दीन-ए-ख़ुदा पर क़ुर्बान कर दिया, लेकिन कभी एक शिकवा ज़बान पर न लाईं।हज़रत ख़दीजाؑ ने शेब-ए-अबी तालिब में फाके बर्दाश्त किए, अपनी दौलत इस्लाम पर निछावर कर दी, और आख़िरी उम्र में कमज़ोरी के आलम में नबीؐ के पहलू में खामोशी से इस दुनिया से रुख़्सत हो गईं।

रसूल-ए-ख़ुदाؐ ने इस ग़म को कभी भुलाया नहीं। उनकी जुदाई ने आपको बेइंतिहा ग़मगीन कर दिया, यहाँ तक कि आपने उस साल को "आम-उल-ह़ुज़्न" यानी ग़म का साल क़रार दिया।

हज़रत ख़दीजाؑ की वफ़ात शब-ए-10 रमज़ानुल मुबारक, मक्का में हुई।

"जन्नतुल मुअल्ला" के क़ब्रिस्तान में दफ़न किया गया।हज़रत ख़दीजाؑ रसूलؐ की सिर्फ़ शरीके हयात नहीं थीं, बल्कि दीन की सबसे बड़ी मोहसिना थीं।आपके बत्न से जनाबे फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा तशरीफ़ लाईं, जो अहलुल बैतؑ का सिलसिला और नूर-ए-इमामत का सरचश्मा हैं।

रोज़-ए-वफ़ात उम्मुल मोमिनीन हज़रत ख़दीजा-ए-कुबरा सलामुल्लाह अलैहा, मोहसिन-ए-इस्लाम, सैय्यदा-ए-निसा-ए-कायनात, शरीक़ा-ए-हयात-ए-रसूल, मादर-ए-बतूल सलामुल्लाह अलैहा के मौक़े पर हम तमाम आलम-ए-इस्लाम, मोमिनीन व मोमिनात, उलेमा-ए-किराम, मराजे अज़ाम, और ख़ुसूसन वारिस-ए-हज़रत ख़दीजाؑ—इमाम-ए-वक़्त हज़रत बक़ीयतुल्लाह अल-अज़म, अरवाहुना लहु अल-फ़िदाह—की बारगाह में दिल की गहराइयों से तस्लियत व ताज़ियत पेश करते हैं।

जनाबे ख़दीजा स.अ.पूरे अरब में दौलतमन्द और मश्हूर थीं आपका लक़्ब मलीकतुल अरब था आप को अमीरतुल क़ुरैश भी कहा जाता था आपकी इतनी दौलत थी कि कारवाने तिजारत तमाम क़ुरैश के कारवान से मिलकर भी ज़्यादा हुआ करते थी आपने अपनी सारी दौलत इस्लाम पर कुर्बान कर दिया तारीख ए इस्लाम में जनाबे ख़तीजा का बहुत बड़ा एहसान हैं।

किसी भी मिशन की कामयाबी के लिए जितना ख़ुलूसे नियत की ज़रूरत होती है उस से कहीं ज़्यादा सरमाया (माल) दरकार होता है। हर आलमी (दुन्यवी) रहबर और सरबराहे कौम को साहिबे सरवत मुख़्लिस मददगारों की हमेशा ज़रूरत पेश आती है। सिर्फ़ ख़ालिस साथियों का होना मिशन को कामयाब नही बना सकता। मक्के की ज़मीन पर जब हुज़ूरे सरवरे काएनात स.अ.ने ऐलाने रिसालत किया तो उनको भी माल और दौलत की सख्त़ ज़रूरत पेश आई।

शुरू में रसूलुल्लाह स.अ. की हिमायत में ग़रीब और मिसकीन खड़े हुए और मालदार गिरोह आपके मिशन का सख्त़ मुखा़लिफ़ था इन हालत में हज़रत स.अ. को मुख़लिस मददगारों के साथ साथ सरमाए की ज़रूरत भी थी उस वक्त अल्लाह ने अपने नबी की मदद जनाबे ख़दीजा स.अ. के माल से फ़रमाई।

जनाबे ख़दीजा स.अ.पूरे अरब में दौलतमन्द और मश्हूर थीं आपका लक़्ब ‘मलीकतुल अरब’ था। आप को ‘अमीरतुल क़ुरैश’ भी कहा जाता था। आपकी इतनी दौलत थी कि कारवाने तिजारत तमाम क़ुरैश के कारवान से मिलकर भी ज़्यादा हुआ करते थे। (तबका़त इब्ने साद, जि. 8)

क़ुरआन की आय़त ऐलान करती है व वजदक आएलन फ अग़ना उसने आपको फ़कीर पाया तो आप को ग़नी (मालदार) बनाया। (सुरए अज़्ज़ुहा, आयत 8)

इस आय़त की तफ़सीर में इब्ने अब्बास से रिवायत है कि वह कहते हैं कि मैंने इस आय़त के मुतअल्लिक़ रसूलल्लाह स.अ. से सवाल किया, तो हज़रत ने जवाब में फ़रमाया:

फ़कीरो इन्द क़ौमेका यकूलून ला माल लक फ अग़ना कल्लाहो बे माले ख़दीजा, आप के पास दौलत न होने के सबब आपकी क़ौम आपको फ़कीर समझती थी पस अल्लाह ने आप को जनाबे ख़दीजा स.अ.की दौलत से मालदार कर दिया (मानिल अखबार, तफ़सीरे बुरहान)

सिर्फ़ माल और दौलत ही नहीं बल्कि हर महाज़ पर जनाबे ख़दीजा स.अ. पेश पेश रहीं। आप स.अ. की खि़दमत की इस्लाम में कोई मिसाल नहीं मिलती। आप स.अ. ने अल्लाह के दीन की हर मुमकिन मदद की है।

आप ने रसूलुल्लाह स.अ. का उस वक़्त साथ दिया जब कोई उनका पुरसाने हाल न था कोई उनका हामी और मददगार न था ख़ुद सरवरे काएनात स.अ. का बयान सही मुस्लिम में इस तरह नक़्ल हुआ है।

अल्लाह ने मुझे ख़दीजा से बेहतर कोई चीज़ नहीं दी है, उन्होंने मुझे उस वक्त क़ुबूल किया जब सबने मुझे ठुकरा दिया था। उनका मेरी रिसालत पर उस वक़्त भी मुकम्मल ईमान था जब लोगों को मेरी नबुव्वत पर शक हुआ करता था।

क़ुरआन में इरशादे रब्बुल इज़्ज़त है मन ज़ल लज़ी युकरेज़ुल्लाह क़र्ज़न हसनन फ युज़ाएकहू लहू आज़आफन कसीरा  (सुरए बकरह, आयत 245)

कौन है जो अल्लाह को क़र्ज़े हसाना दे ताकि अल्लाह उस में बहुत ज़्यादा कर के लौटाए।

अगर अल्लाह ख़ुद को किसी के माल का मकरूज़ कह रहा है तो यक़ीनन वह ख़ुलूस और वह पाक माल और दौलत, ख़दीजा स.अ. की दौलत है।उम्मुल मोमेनीन जनाबे ख़दीजा स.अ. वह खा़तून हैं जिन्होंने राहे ख़ुदा में सब कुछ सर्फ़ कर दिया, यहाँ तक कि वक्ते आख़िर रसूलुल्लाह स.अ. के पास अपनी ज़ौजा ख़दीजा स.अ. को देने के लिए कफ़न भी न था।

यक़ीनन खुदा का दीन और उसके मानने वाले इस बीबी के मकरूज़ हैं।

 

लेबनान की उत्तरी सीमाओं पर हज़ारों सीरियाई नागरिकों का जमावड़ा देखा गया है क्योंकि इस देश के तटीय क्षेत्रों में आतंकवादी तत्वों के निर्मम हमलों की छाया बनी हुई है।

लेबनान की उत्तरी सीमाएँ पिछले कुछ दिनों से सीरियाई नागरिकों की एक बड़ी संख्या के इस देश की ओर बढ़ने की गवाह रही हैं विशेष रूप से अकार नामक सीमा क्षेत्र में।

हजारों सीरियाई नागरिक, आतंकवादी जौलानी गुट द्वारा हत्याओं और नागरिकों के जनसंहार से बचने के लिए अपने देश के तटीय क्षेत्रों से भाग रहे हैं और लेबनान की सीमाओं के करीब पहुँच रहे हैं।

लेबनान की संसद के सदस्य सजीअ अतिया ने इस मुद्दे की ओर इशारा करते हुए कहा, हम लेबनान और सीरिया की उत्तरी सीमाओं पर सीरियाई शरणार्थियों की एक बड़ी लहर देख रहे हैं।

उन्होंने जोर देकर कहा कि हजारों सीरियाई नागरिक, विशेष रूप से अलवी बहुल गांवों से अकार पहुंचे हैं, जहां अब एक ही घर में दर्जनों लोग रह रहे हैं। अकेले एक दिन में सीरियाई शरणार्थियों की संख्या 10,000 तक पहुँच गई है।

अतिया ने आगे बताया कि इज़राइली शासन ने लेबनान और सीरिया के बीच कानूनी सीमा चौकियों पर बमबारी की है, जिसके कारण इन दोनों देशों के बीच अब कोई आधिकारिक सीमा मार्ग शेष नहीं रहा है।

 

संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंतोनियो गुटेरेस के प्रवक्ता ने मंगलवार की रात सीरिया में जारी तनाव पर चिंता व्यक्त करते हुए सभी पक्षों से आग्रह किया कि वे नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करें और आगे किसी भी तरह के तनाव से बचें।

संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंतोनियो गुटेरेस के प्रवक्ता ने मंगलवार की रात सीरिया में जारी तनाव पर चिंता व्यक्त करते हुए सभी पक्षों से आग्रह किया कि वे नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करें और आगे किसी भी तरह के तनाव से बचें।

अलजज़ीरा के अनुसार, लाताकिया और टार्टस में आम नागरिकों विशेष रूप से अलवी समुदाय के खिलाफ हुए हमलों पर संयुक्त राष्ट्र ने कड़ा रुख अपनाया है।

संयुक्त राष्ट्र के प्रवक्ता ने कहा,महासचिव सीरिया में अपने प्रियजनों को खोने वालों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हैं और घायलों के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना करते हैं।

इसके अलावा गुटेरेस ने ज़ोर देते हुए कहा,सीरिया में खूनखराबा तुरंत बंद होना चाहिए और निर्दोष नागरिकों के नरसंहार में शामिल अपराधियों को न्याय के कटघरे में लाया जाना चाहिए।

 

तहरीर अलशाम से जुड़े आतंकवादियों ने एक आपराधिक कृत्य के तहत सीरिया के हमा प्रांत के महर्दे शहर में ईसाई समुदाय से संबंधित कब्रों और धार्मिक प्रतीकों को नष्ट कर दिया।

स्थानीय सूत्रों ने बताया है कि हयात तहरीर अलशाम से जुड़े आतंकवादियों ने एक आपराधिक कृत्य के तहत सीरिया के हमा प्रांत के महर्दे शहर में ईसाई समुदाय से संबंधित कब्रों और धार्मिक प्रतीकों को नष्ट कर दिया।

यह कार्रवाई उन आतंकवादी समूहों की लगातार जारी रणनीति का हिस्सा है जो धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाना बनाते हैं और इन क्षेत्रों की सांस्कृतिक व धार्मिक विरासत को मिटाने का प्रयास करते हैं।

अंतरराष्ट्रीय समुदाय और मानवाधिकार संगठनों ने बार बार उन क्षेत्रों में अल्पसंख्यकों के अधिकारों के उल्लंघन को लेकर चेतावनी दी है, जो इन समूहों के कब्जे में हैं यह घटना एक बार फिर धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए त्वरित कार्रवाई की आवश्यकता को उजागर करती है।