वफ़ात उम्मुल मोमिनीन हज़रत ख़दीजा तस्लीयत

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वफ़ात उम्मुल मोमिनीन हज़रत ख़दीजा तस्लीयत

आज इस्लामी तारीख सबसे पुरग़म दिनों में से एक है ये वही दिन है जिस दिन रसूल-ए-अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वा आलिहि वसल्लम की सबसे अज़ीज़ शरीके हयात, उनकी वफ़ादार साथी, इस्लाम की पहली मोमिना मोहसिन-ए-इस्लाम हज़रत ख़दीजाؑ बिन्ते खुवैलिद इस दुनिया से रुख़्सत हुईं।

आज  इस्लामी तारीख  सबसे पुरग़म दिनों में से एक है। ये वही दिन है जिस दिन  रसूल-ए-अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वा आलिहि वसल्लम की सबसे अज़ीज़ शरीके हयात, उनकी वफ़ादार साथी, इस्लाम की पहली मोमिना, मोहसिन-ए-इस्लाम हज़रत ख़दीजाؑ बिन्ते खुवैलिद इस दुनिया से रुख़्सत हुईं।

हज़रत ख़दीजाؑ की वफ़ात कोई आम वाक़िआ नहीं था। ये वो चराग़ थीं जिनकी रोशनी ने इस्लाम की इब्तिदाई तारीकियों को रौशन कर दिया।जब नबी-ए-करीमؐ पर वही नाज़िल हुई और आपने तौहीद की सदा बुलंद की, तो सबसे पहले जिसने इस सदा पर लब्बैक कहा, वो हज़रत ख़दीजाؑ का दिल था।जब दुनिया ने ठुकराया, उन्होंने गले लगाया।जब कुफ़्फ़ार ने दुश्मनी की, उन्होंने वफ़ादारी की इंतेहा कर दी।

उन्होंने अपना घर, अपना माल, अपनी इज़्ज़त सब कुछ दीन-ए-ख़ुदा पर क़ुर्बान कर दिया, लेकिन कभी एक शिकवा ज़बान पर न लाईं।हज़रत ख़दीजाؑ ने शेब-ए-अबी तालिब में फाके बर्दाश्त किए, अपनी दौलत इस्लाम पर निछावर कर दी, और आख़िरी उम्र में कमज़ोरी के आलम में नबीؐ के पहलू में खामोशी से इस दुनिया से रुख़्सत हो गईं।

रसूल-ए-ख़ुदाؐ ने इस ग़म को कभी भुलाया नहीं। उनकी जुदाई ने आपको बेइंतिहा ग़मगीन कर दिया, यहाँ तक कि आपने उस साल को "आम-उल-ह़ुज़्न" यानी ग़म का साल क़रार दिया।

हज़रत ख़दीजाؑ की वफ़ात शब-ए-10 रमज़ानुल मुबारक, मक्का में हुई।

"जन्नतुल मुअल्ला" के क़ब्रिस्तान में दफ़न किया गया।हज़रत ख़दीजाؑ रसूलؐ की सिर्फ़ शरीके हयात नहीं थीं, बल्कि दीन की सबसे बड़ी मोहसिना थीं।आपके बत्न से जनाबे फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा तशरीफ़ लाईं, जो अहलुल बैतؑ का सिलसिला और नूर-ए-इमामत का सरचश्मा हैं।

रोज़-ए-वफ़ात उम्मुल मोमिनीन हज़रत ख़दीजा-ए-कुबरा सलामुल्लाह अलैहा, मोहसिन-ए-इस्लाम, सैय्यदा-ए-निसा-ए-कायनात, शरीक़ा-ए-हयात-ए-रसूल, मादर-ए-बतूल सलामुल्लाह अलैहा के मौक़े पर हम तमाम आलम-ए-इस्लाम, मोमिनीन व मोमिनात, उलेमा-ए-किराम, मराजे अज़ाम, और ख़ुसूसन वारिस-ए-हज़रत ख़दीजाؑ—इमाम-ए-वक़्त हज़रत बक़ीयतुल्लाह अल-अज़म, अरवाहुना लहु अल-फ़िदाह—की बारगाह में दिल की गहराइयों से तस्लियत व ताज़ियत पेश करते हैं।

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