
رضوی
तेहरान-बेरूत उड़ान रद्द होने पर लेबनानी विमान संगठन की सफाई।
लेबनान के नागरिक उड्डयन संगठन ने तेहरान-बेरूत उड़ानों के रद्द होने के बाद उठे विवाद और लेबनान में हुए विरोध प्रदर्शनों के बीच एक स्पष्टीकरण जारी किया है।
संगठन के अनुसार, उड़ानों में यह बदलाव यात्रियों की सुरक्षा और स्वास्थ्य सुनिश्चित करने के लिए किया गया है।
यह कदम रफीक अल-हरीरी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे और पूरे लेबनानी हवाई क्षेत्र की सुरक्षा के लिए उठाया गया है, जिसे एयरपोर्ट सुरक्षा बलों के साथ समन्वय में लागू किया गया।
संगठन ने दावा किया कि यह निर्णय अंतरराष्ट्रीय उड्डयन कानूनों (ICAO) और लेबनानी राष्ट्रीय नियमों के अनुसार लिया गया है।
कुछ एयरलाइंस को इन नियमों को लागू करने के लिए अतिरिक्त समय की जरूरत थी, इसलिए कुछ उड़ानों को 18 फरवरी (30 बहमन) तक अस्थायी रूप से पुनर्निर्धारित किया गया है।
यह बदलाव गुरुवार को एयरलाइंस को सूचित कर दिया गया था ताकि यात्रियों को अग्रिम रूप से टिकट बदलने का समय मिल सके।
लेबनानी यात्रियों को वापस लाने के लिए शुक्रवार रात बेरूत से तेहरान के लिए एक विशेष उड़ान भेजने की योजना बनाई गई है।
इस बयान के बावजूद, लेबनान में इस फैसले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन जारी हैं, और इसे राजनीतिक रूप से प्रेरित कदम बताया जा रहा है।
ट्रंप सरकार ने एक बार फिर अमानवीय व्यवहार किया
शनिवार को रात साढ़े 11 बजे के बाद अमृतसर एयरपोर्ट पर उतरे अमेरिका के दूसरे सैन्य विमान सी-17 में लाए गए 116 प्रवासियों को भी ट्रंप प्रशासन ने जंजीरों में जकड़कर भेजा उन्हें विमान के भारत की धरती पर उतरने के बाद ही जंजीरों से मुक्त किया गया।
शनिवार को रात साढ़े 11 बजे के बाद अमृतसर एयरपोर्ट पर उतरे अमेरिका के दूसरे सैन्य विमान सी-17 में लाए गए 116 प्रवासियों को भी ट्रंप प्रशासन ने जंजीरों में जकड़कर भेजा उन्हें विमान के भारत की धरती पर उतरने के बाद ही जंजीरों से मुक्त किया गया।
हालांकि पीएम मोदी ने साफ़ साफ़ शब्दों में कहा कि भारत उन अवैध भारतीय नागरिकों की वापसी के लिए पूरी तरह से तैयार है जिन्हें धोखा देकर और फंसा कर अमेरिका भेजा गया था।
शनिवार को रात साढ़े 11 बजे के बाद अमृतसर एयरपोर्ट पर उतरे अमेरिका के दूसरे सैन्य विमान सी-17 में लाए गए 116 प्रवासियों को भी ट्रंप प्रशासन ने जंजीरों में जकड़कर भेजा। उन्हें विमान के भारत की धरती पर उतरने के बाद ही जंजीरों से मुक्त किया गया।
रविवार की रात विदेशी भारतीय प्रवासियों से भरा हुआ तीसरा अमेरिकी विमान अमृतसर एयरपोर्ट पर उतरा जिसमें 156 लोगों के सवार होने की जानकारी है,
दिलजीत सिंह, जो शनिवार को भारत पहुंचाए गए प्रवासियों में शामिल हैं अमृतसर एयरपोर्ट पर ट्रंप प्रशासन के अत्याचार की कहानी सुनाते हुए बताया कि उन्हें पूरे सफर में जो औसतन 14 घंटे का होता है, हाथों में हथकड़ी और पैरों में जंजीर डालकर रखा गया।
अमेरिका से देश निकाले गए लोगों में शामिल हरजीत सिंह ने बताया कि मैं सुबह 6 बजे घर पहुंचा हूं। हमें 27 जनवरी को अमेरिका की सीमा पार करते हुए गिरफ्तार कर लिया गया था और 18 दिन तक कैद में रखा गया। हमें हाथों में हथकड़ी और कमर से लेकर पैरों तक जंजीर से जकड़कर भारत भेजा गया।
विमान के अमृतसर पहुंचते ही प्रवासियों ने दुर्व्यवहार की शिकायत की और बताया कि भारत पहुंचने के बाद उनकी जंजीरें खोली गईं। इन आरोपों पर विदेश मंत्रालय पूरी तरह संज्ञान लिया है। इसके जिम्मेदार अधिकारियों ने यह कहकर पल्ला झाड़ने की कोशिश की कि वे स्थिति पर नजर रखे हुए हैं और स्थिति की गंभीरता से अमेरिकी प्रशासन को अवगत भी करा रहे हैं भारत में विपक्ष ने इसे मोदी सरकार की कूटनीति की विफलता से जोड़ा है।
जर्मनी को अमेरिकी प्रकाशन की चेतावनी
फॉरेन पॉलिसी" मैगज़ीन के अनुसार, यदि जर्मनी ने इज़राइली शासन के अपराधों के लिए अपना समर्थन बंद नहीं किया, तो उसे जल्द ही अंतर्राष्ट्रीय अदालतों में इन अपराधों के भागीदार के रूप में पहचाना जाएगा।
"फॉरेन पॉलिसी" के नज़रिए के मुताबिक़, जर्मनी अपनी प्रतिष्ठा को बहाल करने के लिए अपराधी ज़ायोनी शासन की आलोचना न करने की कोशिश कर रहा है जो विश्व युद्ध और होलोकास्ट के दौरान क्षतिग्रस्त हो गई थी।
ज़ायोनी शासन को जर्मन सरकार के बिना शर्त समर्थन का ज़िक्र करते हुए कहा कि बर्लिन ज़ायोनियों के अपराधों से अवगत है लेकिन सार्वजनिक क्षेत्र में इसकी घोषणा नहीं करता है बल्कि इस चीज़ ने जर्मन सरकार को इन अपराधों में भागीदार बना दिया है।
"फॉरेन पॉलिसी" के अनुसार, ज़ायोनी शासन द्वारा अंतर्राष्ट्रीय कानून के उल्लंघन के कुछ मामलों के तहत जर्मन हथियारों का इस्तेमाल किया गया है।
इस लेख में कहा गया है: हालांकि जर्मन अधिकारी अपने निजी हलक़ों में स्वीकार करते हैं कि ज़ायोनियों ने ग़ज़ा में अपराध किए हैं, जर्मन सरकार इस अतिग्रहणकारी शासन का समर्थन करने के लिए जवाबदेह होने से बचने के लिए जानबूझकर जनता की राय को नियंत्रित करती है।
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के आंकड़ों के अनुसार, 2019 और 2023 के बीच, जर्मनी ने ज़ायोनी शासन के आयातित भारी हथियारों का लगभग 30 प्रतिशत प्रदान किया जिसमें बख्तरबंद वाहनों के इंजन भी शामिल थे जिनका उपयोग गजा युद्ध के साथ लेबनान और सीरिया में इज़राइल के अवैध हमलों में किया गया था।
2023 में, इज़राइल को जर्मन हथियारों का निर्यात पिछले वर्ष की तुलना में 10 गुना बढ़ गया था। इनमें से अधिकांश हथियार 7 अक्टूबर, 2023 (गजा में युद्ध की शुरुआत) के बाद भेजे गए थे, जिनमें 3 हज़ार एंटी-टैंक मिसाइलें और 5 लाख राउंड गोला-बारूद शामिल थे।
सर्वेक्षणों के अनुसार, लगभग 60 प्रतिशत जर्मन, ज़ायोनी शासन को हथियारों के निरंतर निर्यात के खिलाफ हैं, हालांकि, जर्मनी के लगभग सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने इस्राईल को हथियारों के निर्यात को जारी रखने का समर्थन किया है।
आंतरिक नाराज़गी के अलावा, विदेश नीति ने ज़ायोनी शासन के लिए जर्मनी के बिना शर्त समर्थन के विनाशकारी परिणामों की ओर इशारा किया और कहा कि पश्चिम एशियाई देशों के साथ बर्लिन के संबंध, इज़राइल के अपराधों से गंभीर रूप से प्रभावित हुए थे और जर्मनी दुनिया में अलग-थलग पड़ गया था।
इस मीडिया के अनुसार, जर्मनी को ज़ायोनी शासन के साथ अपने संबंधों की गंभीरता से समीक्षा करनी चाहिए और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के प्रति अपने दायित्वों और नागरिक जीवन की रक्षा और मानवाधिकारों की रक्षा के अपने नैतिक कर्तव्य का उल्लंघन नहीं होने देना चाहिए, अन्यथा उसे जल्द ही अंतरराष्ट्रीय अदालतों में इज़राइल के अपराधों में भागीदार के रूप में पहचाना जाएगा।
ग़ज़्ज़ा में गहराता जल संकट।
ग़ज़्ज़ा में फ़िलिस्तीनी जनता 15 महीनों से ज़ायोनी सैनिकों के हमलों की तबाही झेल रहे हैं, हर दिन पीने के साफ़ पानी तक पहुंचने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। रफ़ह शहर में फ़िलिस्तीनी नागरिक घंटों तक कतार में खड़े रहते हैं ताकि एक टैंकर से साफ़ और सुरक्षित पेयजल प्राप्त कर सकें।
इमाम मेंहदी अ.ज.की हुकूमत अल्लाह का सच्चा वादा है जो पूरा होकर रहेगा
शेख़ इब्राहिम ज़कज़ाकी नाइजीरिया इस्लामी आंदोलन के नेता ने इमाम मेंहदी अ.ज. के जन्म दिवस के अवसर पर अपने भाषण में जोर देकर कहा कि उनकी वैश्विक सरकार एक ईश्वरीय वादा है जो निस्संदेह भविष्य में पूरा होकर रहेगा।
नाइजीरिया में इस्लामिक आंदोलन के नेता हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिम शेख इब्राहिम ज़कज़ाकी ने अपने आवास अबूजा में इमाम मेंहदी अ.ज. के जन्म दिवस के अवसर पर एक महफिल का आयोजन किया गया।
उन्होंने इमाम अस्र स.ल. के जन्म से पहले ज़ालिम ताकतों द्वारा उनके ज़हूर को रोकने के प्रयासों की ओर इशारा करते हुए कहा, ज़ालिमों ने इस ईश्वरीय वादे को नाकाम करने के लिए इमाम अस्करी अलैहिस्सलाम की हत्या तक करवा दी।
शेख इब्राहिम ज़कज़ाकी ने कहा कि इमाम अस्र स.ल. की पहचान की शुरुआत अल्लाह और पैगंबर (स.ल.) की पहचान से होनी चाहिए क्योंकि इमाम ईश्वर द्वारा नियुक्त पैगंबर के उत्तराधिकारी हैं और उनकी ग़ैबत में भी ईश्वरीय इच्छा की अहम भूमिका है।
नाइजीरिया इस्लामी आंदोलन के नेता ने ज़ोर देकर कहा कि इमाम महदी स.ल. की सरकार निस्संदेह स्थापित होगी क्योंकि यह एक ईश्वरीय वादा है।
उन्होंने दौराने इंतज़ार को कठिन लेकिन वर्तमान युग की सबसे महत्वपूर्ण इबादत करार देते हुए इस्लामी उम्मत से ईमान और जागरूकता को मज़बूत कर इमाम के ज़हूर के लिए स्वयं को तैयार करने का आह्वान किया।
शेख़ ज़कज़ाकी ने यह भी बताया कि नाइजीरिया की सुरक्षा एजेंसियों द्वारा इस समारोह को रोकने के प्रयास के कारण कार्यक्रम स्थल को बदलकर उनके निवास स्थान पर करना पड़ा।
उन्होंने अधिकारियों को चेतावनी देते हुए कहा: धार्मिक आयोजनों को रोकने का प्रयास 'एसोसिएशन की स्वतंत्रता' का स्पष्ट उल्लंघन है, जिसे नाइजीरिया का संविधान सुनिश्चित करता है। यहां तक कि पिछली तानाशाही सरकार भी इस अधिकार का सम्मान करती थी।
इज़राइल के साथ संबंधों को सामान्य बनाना फ़िलिस्तीन के साथ विश्वासघात
ईरान और पूर्वी एशिया के बीच भाषाई, सांस्कृतिक और सभ्यतागत संबंधों पर 45वें पूर्व-संगोष्ठी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में ज़ायोनी शासन के साथ संबंधों को सामान्य बनाना फ़िलिस्तीन के साथ विश्वासघात घोषित किया गया है।
ईरान और पूर्वी एशिया के बीच भाषाई सांस्कृतिक और सभ्यतागत संबंधों पर 45वीं पूर्व-संगोष्ठी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन क़ुम में आयोजित की गई।
यह संगोष्ठी संबंधों के सामान्यीकरण की प्रक्रिया और इसकी विश्व व पूर्वी एशियाई देशों पर प्रभाव विषय पर आधारित थी इसे समाज-उलमुस्तफा आलमिया के उच्च विद्यालय सांस्कृतिक अध्ययन विभाग, अरबी भाषा व संस्कृति अध्ययन समूह तथा उच्च शिक्षा परिसर भाषा, साहित्य और संस्कृति अध्ययन विभाग के संयुक्त सहयोग से आयोजित किया गया।
इस बैठक में हुज्जतुल इस्लाम मोहसिन मदनी नेजाद जो इस्लामी विज्ञानों के तुलनात्मक अध्ययन अनुसंधान संस्थान के अध्यक्ष हैं मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित रहे इसके अलावा, हुज्जतुल इस्लाम मोहम्मद जो अरबी भाषा व संस्कृति अध्ययन विभाग के प्रोफेसर हैं इस कार्यक्रम के सचिव थे यह कार्यक्रम छात्रों व शोधार्थियों की उपस्थिति में अरबी भाषा में प्रस्तुत किया गया।
मदनी नेजाद ने चर्चा की शुरुआत में फ़िलिस्तीनी जनता के मूलभूत अधिकारों की अनदेखी के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य का विश्लेषण किया उन्होंने कहा कि वर्षों से इन अधिकारों के दमन ने तूफान अलअक्सा अभियान को जन्म दिया है। उन्होंने यह भी कहा कि फ़िलिस्तीनी जनता के वापसी के अधिकार, यरुशलम की स्थिति और एक स्वतंत्र फ़िलिस्तीनी राज्य की स्थापना जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों की उपेक्षा ने तनाव बढ़ाया है और इस पवित्र भूमि में मानवता पर आपदाएँ लाई हैं।
बैठक में यह भी विश्लेषण किया गया कि दुनिया के विभिन्न देशों विशेषकर पूर्वी एशिया के देशों जैसे जापान चीन, इंडोनेशिया, उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया में इस्राइल के साथ संबंधों के सामान्यीकरण का क्या प्रभाव पड़ा है।मदनी नेजाद ने पूर्वी एशियाई देशों की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इन देशों ने इस मुद्दे पर अलग अलग नीतियाँ अपनाई हैं
इंडोनेशिया और उत्तर कोरिया अपने सिद्धांतवादी दृष्टिकोण के तहत आर्थिक लाभ की बजाय फ़िलिस्तीनी अधिकारों के समर्थन को प्राथमिकता देते हैं।चीन जापान और दक्षिण कोरिया फ़िलिस्तीन के अधिकारों का समर्थन करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन साथ ही वे इस्राइल के साथ आर्थिक संबंध भी बनाए रखना चाहते हैं।
इससे यह स्पष्ट होता है कि पूर्वी एशियाई देशों में आर्थिक हितों और मानवीय मूल्यों के समर्थन के बीच एक विरोधाभास मौजूद है।
मदनी नेजाद ने ज़ोर देते हुए कहा कि इस्राइल के साथ संबंधों को सामान्य बनाना फ़िलिस्तीनी अधिकारों के कमजोर होने और उनके आदर्शों की अवहेलना का कारण बनता है। उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया का विरोध करने वाले देश और समूह इसे फ़िलिस्तीनी अधिकारों के साथ विश्वासघात और एक अतिक्रमणकारी सरकार के साथ सहयोग मानते हैं उनका मानना है कि इस प्रकार का सामान्यीकरण तनाव को और अधिक बढ़ा सकता है।
हिज़्बुल्लाह समर्थकों का बेरूत एयरपोर्ट जाने वाले रास्ते पर धरना
हज़ारों की संख्या में प्रतिरोध समर्थकों ने हिज़्बुल्लाह लेबनान के आह्वान पर बीती शाम से लेकर रात देर तक रफीक हरीरी एयरपोर्ट के रास्ते पर शांतिपूर्ण धरना दिया।
गुरुवार को बेरूत के रफीक हरीरी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर ईरान की महान एयरलाइन के दो विमानों की लैंडिंग रोकने के बाद लेबनान में विशेष रूप से हिज़्बुल्लाह और उसके समर्थकों की ओर से बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन देखा गया।
ईरानी विमानों की लैंडिंग रोकने का यह कदम उस समय सामने आया जब इज़रायली सेना ने दावा किया कि ईरान यात्री विमानों के जरिए लेबनान के हिज़्बुल्लाह को नकद धनराशि भेज रहा है। हालांकि इस कदम के जवाब में तेहरान ने भी लेबनानी विमान की इमाम खुमैनी हवाई अड्डे पर लैंडिंग रोक दी लेकिन हिज़्बुल्लाह और प्रतिरोध के समर्थक इस बात से नाराज़ हैं कि लेबनान की नई सरकार तेल अवीव की मांगों के आगे झुक गई है।
इस घटना के बाद बेरूत में गुरुवार से ही लेबनानी युवाओं के विरोध प्रदर्शन जारी हैं बीती शाम भी सैकड़ों लोगों ने हिज़्बुल्लाह के आह्वान पर बेरूत हवाई अड्डे के रास्ते पर शांतिपूर्ण धरना दिया लेकिन इस धरने पर लेबनानी सेना और सुरक्षा बलों की प्रतिक्रिया देखने को मिली।
सुरक्षा बलों की दखलअंदाजी और आंसू गैस के गोले दागे जाने के कारण कई प्रदर्शनकारी दम घुटने की स्थिति में आ गए और अंततः हिज़्बुल्लाह लेबनान ने तनाव को और बढ़ने से रोकने के लिए अपने समर्थकों से धरना समाप्त करने की अपील की।
इस प्रदर्शन में भाग लेने वालों ने लेबनान का झंडा, हिज़्बुल्लाह का झंडा और शहीद सैयद हसन नसरल्लाह की तस्वीरें उठा रखी थीं और अमेरिका व इज़राइल के हस्तक्षेप के खिलाफ नारे लगा रहे थे।
हिज़्बुल्लाह की राजनीतिक परिषद के उपाध्यक्ष हाज महमूद क़माती ने धरने में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए उनका धन्यवाद किया और इज़राइल व अमेरिका द्वारा थोपे गए फैसलों को अस्वीकार्य बताया।क़माती ने कहा,हमने शहीद दिए हैं ताकि हमारी इज्जत बनी रहे और इस देश की असली संप्रभुता कायम रहे।
उन्होंने जोर देते हुए कहा,हमारा रुख जिसका ऐतिहासिक नारा कर्बला से लेकर आज तक नहीं बदला यही है हैयहात मिन्ना ज़िल्लाह (हम कभी भी अपमान स्वीकार नहीं करेंगे)।
हमास की चेतावनी, विस्थापन यरूशलेम की ओर ही होगा
हमास ने एक बयान जारी करते हुए कहा कि पूरी दुनिया को यह समझ लेना चाहिए कि फिलिस्तीनी लोगों की पुनर्वास योजना केवल यरुशलम की ओर होगी। युद्धविराम समझौते के तहत, हमास ने तीन और इसरायली बंदियों को रिहा किया और इसके बदले इसराइल ने ३६९ फिलिस्तीनी बंदियों को रिहा किया।
हमास ने एक बयान जारी करते हुए कहा कि पूरी दुनिया को यह समझ लेना चाहिए कि फिलिस्तीनी लोगों की पुनर्वास योजना केवल यरुशलम की ओर होगी। युद्धविराम समझौते के तहत, हमास ने तीन और इसरायली बंदियों को रिहा किया और इसके बदले इसराइल ने ३६९ फिलिस्तीनी बंदियों को रिहा किया।
हमास ने इस बात पर जोर दिया कि ग़ज़्ज़ा में बंद इस्राईली बंदियों की रिहाई केवल वार्ता और युद्धविराम समझौते के तहत ही हो सकती है और उनका मानना है कि फिलिस्तीनी लोगों की पुनर्वास योजना केवल यरुशलम की ओर होनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि यरुशलम, मस्जिद अल-अक्सा और वहाँ की बड़ी भीड़ की तस्वीरें इस्राईली और उनके सहयोगियों के लिए एक नया संदेश हैं।
हमास ने यह भी कहा कि यह कदम उनके संघर्ष, एकता और प्रतिरोध की शक्ति का प्रतीक है। उन्होंने पूरी दुनिया से कहा कि फिलिस्तीनी लोग यरुशलम की ओर ही पलायन करेंगे, कहीं और नहीं।
हाल ही में, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ग़ज़्ज़ा पर कब्जा करने और फिलिस्तीनियों को पड़ोसी देशों में बसाने की बात की थी, जिसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विरोध का सामना करना पड़ा।
लेबनान और सीरिया के युद्ध प्रभावितों के लिए राहत सामग्री रवाना
एनडीएमए के अनुसार, इस राहत सामग्री की खेप में 60 टन सामान शामिल है जिसमें टेंट, तिरपाल और गर्म शिविर मौजूद हैं ताकि युद्ध प्रभावित लोगों को भीषण मौसम में सहायता प्रदान की जा सके।
नेशनल डिज़ास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (NDMA) द्वारा लेबनान ग़ाज़ा और सीरिया के युद्ध प्रभावित लोगों के लिए राहत सामग्री भेजने का सिलसिला जारी है।
इस कड़ी में 24वीं राहत खेप जिन्ना इंटरनेशनल एयरपोर्ट, कराची से रवाना कर दी गई है।
NDMA के अनुसार, इस राहत सामग्री में 60 टन सामान शामिल है, जिसमें टेंट, तिरपाल और गर्म शिविर शामिल हैं, ताकि युद्ध प्रभावित लोगों को भीषण मौसम में सहायता प्रदान की जा सके।
अब तक NDMA लेबनान, ग़ाज़ा और सीरिया के लिए कुल 1,861 टन राहत सामग्री भेज चुका है, जिसमें खाद्य सामग्री, चिकित्सा आपूर्ति, तंबू और अन्य आवश्यक वस्तुएं शामिल हैं।
पाकिस्तान इन देशों के युद्ध प्रभावित लोगों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए लगातार राहत अभियान चला रहा है ताकि इस कठिन समय में पीड़ित जनता को हर संभव मदद उपलब्ध कराई जा सके।
पनामा, कनाडा, ग्रीनलैंड और ग़ज़ा के बाद अब यूक्रेन और सऊदी अरब की बारी
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने यूक्रेन के दुर्लभ खनिज पदार्थों को लेने की अपनी सरकार की योजना की बात कही थी जिसकी प्रतिक्रिया में यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदोमीर ज़ेलंस्की ने कहा है कि इस योजना से यूक्रेन और उसके हितों की रक्षा नहीं होगी।
समाचार पत्र वाल स्ट्रीट जरनल ने अपनी हालिया एक रिपोर्ट में एलान किया था कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कनाडा, ग्रीनलैंड, पनामा और ग़ज़ा सहित विश्व के विभिन्न क्षेत्रों पर नियंत्रण के संबंध में जो बात कही थी उसका संबंध 21वीं शताब्दी की एक पुरानी धारणा से है जिसके अनुसार बड़ी शक्तियों को चाहिये कि वे अपने नियंत्रण वाले क्षेत्र उत्पन्न करें और दूसरों पर अपनी इच्छाओं व दृष्टिकोणों को थोपकर अपने आर्थिक और सुरक्षा हितों की रक्षा करें।
अमेरिका यूक्रेन के दुर्लभ 50 प्रतिशत खनिज पदार्थों को लेना चाहता है
समाचारिक सूत्रों ने बताया है कि ट्रम्प सरकार ने अमेरिकी वित्तमंत्री (Scott Bessent) की 12 फ़रवरी को होने वाली कीव यात्रा की ओर संकेत करते हुए एक प्रस्ताव दिया है कि यूक्रेन की सरकार को चाहिये कि वह अपने 50 प्रतिशत दुर्लभ खनिज पदार्थों को अमेरिका को दे दे और अमेरिका यूक्रेन की रक्षा के लिए अपने सैनिकों को वहां तैनात करने के तैयार है। यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेंलस्कीं ने इस प्रस्ताव को रद्द करते हुए कहा कि इस प्रस्ताव से यूक्रेन और उसके हितों की रक्षा नहीं होगी।
क्या यूक्रेन से अधिक विशिष्टता लेने के लिए अधिक वार्ता
अमेरिकी सूत्रों ने शनिवार को रिपोर्ट दी थी कि इस देश के वरिष्ठ अधिकारी यूक्रेन संकट के समाधान के संबंध में शीघ्र ही सऊदी अरब में रूस और यूक्रेन के अधिकारियों से भेंटवार्ता करने वाले हैं।
रिपब्लिकन सांसद माइकल मेक काल ने इस संबंध में टेक्सस राज्य में कहा कि शीघ्र ही विदेशमंत्री, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और मध्यपूर्व के मामलों में ट्रम्प के विशेष दूत व प्रतिनिधि सऊदी अरब की यात्रा पर जाने वाले हैं।
यूक्रेन के राष्ट्रपति ने इससे पहले यूरोप के प्रति वाशिंग्टन के समर्थन के बंद किये जाने के बारे में चेतावनी देते हुए कहा था कि यूक्रेन उस शांति समझौते को क़बूल नहीं करेगा जिसमें वह उपस्थित नहीं होगा।
अलग शिकार सऊदी अरब?
सऊदी अरब के प्रतिरक्षामंत्री ने अपने अमेरिकी समकक्ष से सैनिक सहयोग को मज़बूत बनाये जाने के संबंध में टेलीफ़ोनी वार्ता की है। सऊदी अरब के प्रतिरक्षामंत्री युवराज ख़ालिद बिन सलमान ने इस बारे में कहा कि अमेरिका के रक्षामंत्री Pete Heggst से रक्षा के क्षेत्र में सहयोग को मज़बूत करने के संबंध में वार्ता किया है। अमेरिकी रक्षामंत्री ने इस टेलीफ़ोनी वार्ता में रियाज़ और वाशिंग्टन के मध्य समानताओं पर बल दिया। इससे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एलान किया था कि सऊदी अरब 600 अरब डा᳴लर का पूंजी निवेश अमेरिका में करेगा और उसे वह एक ट्रिलियन तक पहुंचाने का इरादा रखता है।
ज्ञात रहे कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने पहले राष्ट्रपति काल में सऊदी अरब को दुधारू गाय की संज्ञा दी थी।