ईरान और पूर्वी एशिया के बीच भाषाई, सांस्कृतिक और सभ्यतागत संबंधों पर 45वें पूर्व-संगोष्ठी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में ज़ायोनी शासन के साथ संबंधों को सामान्य बनाना फ़िलिस्तीन के साथ विश्वासघात घोषित किया गया है।
ईरान और पूर्वी एशिया के बीच भाषाई सांस्कृतिक और सभ्यतागत संबंधों पर 45वीं पूर्व-संगोष्ठी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन क़ुम में आयोजित की गई।
यह संगोष्ठी संबंधों के सामान्यीकरण की प्रक्रिया और इसकी विश्व व पूर्वी एशियाई देशों पर प्रभाव विषय पर आधारित थी इसे समाज-उलमुस्तफा आलमिया के उच्च विद्यालय सांस्कृतिक अध्ययन विभाग, अरबी भाषा व संस्कृति अध्ययन समूह तथा उच्च शिक्षा परिसर भाषा, साहित्य और संस्कृति अध्ययन विभाग के संयुक्त सहयोग से आयोजित किया गया।
इस बैठक में हुज्जतुल इस्लाम मोहसिन मदनी नेजाद जो इस्लामी विज्ञानों के तुलनात्मक अध्ययन अनुसंधान संस्थान के अध्यक्ष हैं मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित रहे इसके अलावा, हुज्जतुल इस्लाम मोहम्मद जो अरबी भाषा व संस्कृति अध्ययन विभाग के प्रोफेसर हैं इस कार्यक्रम के सचिव थे यह कार्यक्रम छात्रों व शोधार्थियों की उपस्थिति में अरबी भाषा में प्रस्तुत किया गया।
मदनी नेजाद ने चर्चा की शुरुआत में फ़िलिस्तीनी जनता के मूलभूत अधिकारों की अनदेखी के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य का विश्लेषण किया उन्होंने कहा कि वर्षों से इन अधिकारों के दमन ने तूफान अलअक्सा अभियान को जन्म दिया है। उन्होंने यह भी कहा कि फ़िलिस्तीनी जनता के वापसी के अधिकार, यरुशलम की स्थिति और एक स्वतंत्र फ़िलिस्तीनी राज्य की स्थापना जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों की उपेक्षा ने तनाव बढ़ाया है और इस पवित्र भूमि में मानवता पर आपदाएँ लाई हैं।
बैठक में यह भी विश्लेषण किया गया कि दुनिया के विभिन्न देशों विशेषकर पूर्वी एशिया के देशों जैसे जापान चीन, इंडोनेशिया, उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया में इस्राइल के साथ संबंधों के सामान्यीकरण का क्या प्रभाव पड़ा है।मदनी नेजाद ने पूर्वी एशियाई देशों की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इन देशों ने इस मुद्दे पर अलग अलग नीतियाँ अपनाई हैं
इंडोनेशिया और उत्तर कोरिया अपने सिद्धांतवादी दृष्टिकोण के तहत आर्थिक लाभ की बजाय फ़िलिस्तीनी अधिकारों के समर्थन को प्राथमिकता देते हैं।चीन जापान और दक्षिण कोरिया फ़िलिस्तीन के अधिकारों का समर्थन करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन साथ ही वे इस्राइल के साथ आर्थिक संबंध भी बनाए रखना चाहते हैं।
इससे यह स्पष्ट होता है कि पूर्वी एशियाई देशों में आर्थिक हितों और मानवीय मूल्यों के समर्थन के बीच एक विरोधाभास मौजूद है।
मदनी नेजाद ने ज़ोर देते हुए कहा कि इस्राइल के साथ संबंधों को सामान्य बनाना फ़िलिस्तीनी अधिकारों के कमजोर होने और उनके आदर्शों की अवहेलना का कारण बनता है। उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया का विरोध करने वाले देश और समूह इसे फ़िलिस्तीनी अधिकारों के साथ विश्वासघात और एक अतिक्रमणकारी सरकार के साथ सहयोग मानते हैं उनका मानना है कि इस प्रकार का सामान्यीकरण तनाव को और अधिक बढ़ा सकता है।