رضوی

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यमन के सभी शहरों और प्रांतों में सैयद अब्दुल मलिक अलहौसी के आह्वान पर ग़ाज़ा निवासियों के समर्थन में विशाल रौलि और प्रदर्शन हुए प्रदर्शनकारियों ने नारे लगाते हुए कहा कि ग़ाज़ा के साथ एकजुटता में जबरन विस्थापन और सभी साजिशों के खिलाफ हम खड़े हैं।

यमन के सभी शहरों और प्रांतों में सैयद अब्दुल मलिक अलहौसी के आह्वान पर ग़ाज़ा निवासियों के समर्थन में विशाल रौलि और प्रदर्शन हुए प्रदर्शनकारियों ने नारे लगाते हुए कहा कि ग़ाज़ा के साथ एकजुटता में जबरन विस्थापन और सभी साजिशों के खिलाफ हम खड़े हैं।

और चेतावनी दी कि यदि अमेरिका ग़ाज़ा के खिलाफ अपनी योजना पर अड़ा रहा तो यमन की ओर से कड़ी प्रतिक्रिया होगी।

एक समाचार एजेंसी सबा ने बताया कि केवल सादा प्रांत में 35 अलग अलग प्रदर्शन हुए। सना में भी अल-सबीन स्क्वायर लोगों से भरा हुआ था यमन के रक्षा मंत्री ब्रिगेडियर जनरल मोहम्मद नासिर अलअतफी ने सना में अंतिम बयान पढ़ा और कहा कि यमनी सेना ग़ाज़ा के लोगों का समर्थन करने और जबरन विस्थापन की योजनाओं का मुकाबला करने के लिए दुश्मनों के खिलाफ कड़ी सैन्य कार्रवाई करने के लिए तैयार है।

इस विशाल प्रदर्शन के अंतिम बयान में प्रतिभागियों ने इजरायल और अमेरिका को चेतावनी दी कि किसी भी जबरन विस्थापन योजना को लागू करने के गंभीर परिणाम होंगे। साथ ही फिलिस्तीन के लोगों के प्रति दृढ़ समर्थन और उनके साथ किए गए वादे को निभाने पर जोर दिया गया।

बयान में यह भी कहा गया कि फिलिस्तीनी लोग अकेले नहीं होंगे और उनका समर्थन चाहे जो भी कीमत हो जारी रहेगा। साथ ही डोनाल्ड ट्रम्प के हालिया बयानों को अभद्र बताया गया और कहा गया कि ऐसे रुख केवल यमन के लोगों के संकल्प को और मजबूत करेंगे।

प्रदर्शनकारियों ने अरब देशों विशेष रूप से फिलिस्तीन के पड़ोसियों को चेतावनी दी कि फिलिस्तीनियों के जबरन विस्थापन की योजना ग्रेटर इजरायल प्रोजेक्ट का हिस्सा है जो अंततः उन्हें भी निशाना बनाएगा। बयान में जोर देकर कहा गया कि इस योजना को खारिज करने से देशों को खतरनाक परिणामों से बचाया जा सकता है लेकिन इसके साथ जुड़ने का मतलब होगा एक अभूतपूर्व अपराध में भागीदारी।

यमन के सुप्रीम पॉलिटिकल काउंसिल के वरिष्ठ सदस्य मोहम्मद अली अलहौती जो सादा शहर में मौजूद थे ने फिलिस्तीन के प्रति यमन के समर्थन पर जोर दिया और कहा कि यदि ट्रंप ने गाजा के लोगों को विस्थापित करने की अपनी योजना को अंजाम दिया तो अमेरिका को यमन की ओर से कुछ ऐसा देखने को मिलेगा जो उसने पहले कभी अनुभव नहीं किया।

उन्होंने यह भी कहा कि यमन के सैन्य शस्त्रागार ने अपनी ताकत वापस पा ली है और कमांड का इंतजार कर रहे हैं। अलहौसी ने कहा कि मिसाइलों विमानों और उन सभी हथियारों का, जो ट्रंप ने अवैध रूप से कब्जाए गए शासन को दिए हैं, गाजा के लोगों को विस्थापित करने में कोई फायदा नहीं होगा।

ब्रिटेन मे तुर्की वाणिज्य दूतावास के बाहर पवित्र कुरान का अपमान करने वाले एक शरारती व्यक्ति की एक राहगीर ने बुरी तरह पिटाई कर दी। इतना ही नहीं, उसे जमीन पर गिराने के बाद राहगीर ने उस पर धारदार हथियार से भी वार कर दिया।

ब्रिटेन मे तुर्की वाणिज्य दूतावास के बाहर पवित्र कुरान का अपमान करने वाले एक शरारती व्यक्ति की एक राहगीर ने बुरी तरह पिटाई कर दी। इतना ही नहीं, उसे जमीन पर गिराने के बाद राहगीर ने उस पर धारदार हथियार से भी वार कर दिया।

अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, शुक्रवार को ब्रिटेन में तुर्की दूतावास के सामने विरोध प्रदर्शन की आड़ में एक बदमाश ने यह जघन्य कृत्य किया। जब उसने लाइटर से पवित्र कुरान की एक प्रति जलाई, तो वहां से गुजर रहे एक व्यक्ति ने उस पर हमला कर दिया और उसे नीचे गिरा दिया। राहगीर ने जमीन पर गिरे व्यक्ति के हाथ से पवित्र कुरान की प्रति छीन ली और उस पर लात-घूंसों की बरसात कर दी। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो में देखा जा सकता है कि बदकिस्मत आदमी अपने हाथ में एक बड़ी किताब पकड़े हुए है, जो पवित्र कुरान की एक प्रति है और इसका एक हिस्सा जल रहा है।

वीडियो में राहगीर को शापित व्यक्ति पर चाकू से हमला करते हुए भी देखा जा सकता है, जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो जाता है। पास में खड़े एक डिलीवरी बॉय ने भी गुस्सा होकर उसे मुक्का मार दिया। बाद में पुलिस अधिकारियों ने गुस्साई भीड़ से उस व्यक्ति को बचाया और एम्बुलेंस के जरिए अस्पताल में भर्ती कराया। जहां उसकी हालत खतरे से बाहर बताई जा रही है। पुलिस ने चाकू से हमला करने वाले व्यक्ति को भी हिरासत में ले लिया है तथा उससे पूछताछ की जा रही है।

मिस्र सरकार ने फिलिस्तीनी जनता का समर्थन करने और ग़ाज़ा में मानवीय सहायता पहुंचाने में सुविधा प्रदान करने के उद्देश्य से मिस्र रेड क्रिसेंट के 30 हजार स्वयंसेवकों को सिना क्षेत्र में भेजा गया है।

रूसी समाचार वेबसाइट रूसिया अलयौम (RT) ने अल-शोरूक के हवाले से लिखा कि मिस्र की सामाजिक सहयोग मंत्री माया मरसी ने घोषणा की है कि मिस्र रेड क्रिसेंट के 30 हजार स्वयंसेवकों को सिना में तैनात किया गया है ताकि ग़ाज़ा में मानवीय सहायता भेजने की प्रक्रिया का प्रबंधन किया जा सके और उन रोगियों व घायलों का स्वागत किया जा सके जो इस क्षेत्र से मिस्र में प्रवेश कर रहे हैं।

उन्होंने आगे बताया कि 10 राहत काफिले जिनमें 200 टन खाद्य सामग्री, कपड़े, टेंट, पानी और चिकित्सा उपकरण शामिल हैं रफ़ह बॉर्डर क्रॉसिंग पर पहुंच चुके हैं और ग़ज़ा में प्रवेश के लिए तैयार हैं। यह सहायता सामग्री अरब सामाजिक मामलों के मंत्रिपरिषद के वित्त पोषण और मिस्र रेड क्रिसेंट के पूर्ण समन्वय के साथ भेजी गई हैं।

माया मरसी ने यह भी जोर दिया कि मिस्र रेड क्रिसेंट का महत्वपूर्ण योगदान न केवल फिलिस्तीनी घायलों के इलाज और मानवीय सहायता के वितरण में है बल्कि सिनाई में तैनात टीमों द्वारा रोगियों के साथ आने वालों को मानसिक और भावनात्मक सहायता भी प्रदान की जा रही है।

उन्होंने यह भी कहा कि युद्धविराम समझौते के तहत ग़ाज़ा में प्रतिदिन 600 ट्रकों की मानवीय सहायता भेजने के प्रयास जारी हैं।इसी बीच मिस्री अरबी उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल जिसमें मिस्र के उप प्रधानमंत्री खालिद अब्दुलग़फ़्फ़ार, मंत्री माया मरसी और अरब लीग के वरिष्ठ अधिकारी, विशेष रूप से इसके उप महासचिव हुसाम जकी शामिल थे।

रफ़ह बॉर्डर क्रॉसिंग और अल-अरीश अस्पताल का दौरा किया इस दौरे का उद्देश्य इलाज सेवाओं की प्रभावशीलता सुनिश्चित करना और चिकित्सा उपकरणों व आवश्यक दवाओं की पर्याप्त उपलब्धता की पुष्टि करना था।माया मरसी ने दोहराया कि मिस्र सरकार फिलिस्तीनी जनता के समर्थन के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेगी।

इसके अलावा इस दौरे के दौरान, अरब सामाजिक और स्वास्थ्य मामलों के मंत्रिपरिषद द्वारा वित्तपोषित एक और मानवीय सहायता काफिला ग़ाज़ा के लिए रवाना हुआ।

फ़िलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हमास ने एलान किया है कि युद्धविराम समझौते को जारी रखने और बंदियों की आज़ादी व रिहाई के संबंध में हमें ज़ायोनी सरकार की ओर से नई गैरेन्टी प्राप्त हुई है।

हमास आंदोलन के प्रवक्ता हाज़िम क़ासिम ने युद्धविराम समझौते को लागू करने के मार्ग में ज़ायोनी सरकार द्वारा उत्पन्न की जा रही रुकावटों व बाधाओं की ओर संकेत करते हुए कहा कि हम किसी प्रकार के परिवर्तन के बिना इस समझौते को लागू करने के प्रयास में हैं और जितना भी दबाव अधिक हो उसमें बदलाव और परिवर्तन की अनुमति नहीं देंगे।

हाज़िम क़ासिम ने कहा कि जिन शर्तों के साथ युद्धविराम हुआ है हम उसके प्रति कटिबद्ध हैं जबकिअतिग्रहणकारी हमेशा की भांति टालमटोल और आनाकानी की नीति को जारी रखते हैं मगर जिन शर्तों के साथ युद्धविराम हुआ है हमने उन्हें उसे मानने पर मजबूर कर दिया है।

ग़ाज़ा पट्टी की 70 प्रतिशत आधारभूत संरचनायें तबाह

इसी बीच ग़ाज़ा के मेयर हसना मेहना ने कहा है कि ग़ाज़ा की 70 प्रतिशत आधारभूत संरचनायें तबाह हो गयी हैं और यह हालत बुनियादी सेवाओं के बंद होने और लोगों की दिनचर्या की ज़िन्दगी के बहुत सख्त बनने का कारण बनी है।

मेहना ने कहा कि ग़ज़ा पट्टी में बड़े पैमाने पर तबाही पानी के बहुत अधिक कम होने, जलनिकासी की व्यवस्था के ख़राब हो जाने, कड़े का ढ़ेर लग जाने, सड़कों और रास्तों का बर्बाद हो जाना बिजली और ऊर्जा के न होने का कारण बना है और यह उस हालत में है जब नगर पालिका की सेवायें न्यूनतम स्तर पर कम हो गयी हैं।

ग़ाज़ा के मेयर ने बल देकर कहा कि ज़ायोनी सैनिक अब भी ग़ाज़ा में भारी वाहनों के आने को रोक रहे हैं और यह बात मलबे को हटाने और सड़कों व रास्ते के साफ़ करने में रुकावट बनी हुई है। इसी प्रकार उन्होंने कहा कि परिवहन के फ़िर से आरंभ होने और आवासीय क्षेत्रों तक लोगों को पहुंचाने व आवाजाही में विलंब का कारण बना है।

पश्चिमी किनारे पर चार फ़िलिस्तीनी शहीद

दूसरी ओर ज़ायोनी सैनिकों ने पश्चिमी किनारे पर चार फ़िलिस्तीनी जवानों को शहीद कर दिया।

पश्चिमी किनारे पर फ़िलिस्तीनी नागरिकों के मामलों से जुड़े कार्यालय ने एक बयान में एलान किया है कि जेहाद महमूद हसन मशारेक़ा, मोहम्मद ग़स्सान अबू आबिद और ख़ालिद मुस्तफ़ा शरीफ़ आमिर को बुधवार को ज़ायोनी सैनिकों ने तूलकर्म के उत्तर में गोलीमार कर शहीद कर दिया और ज़ायोनी सैनिकों ने अभी तक शहीद होने वालों के शवों को नहीं दिया है।

आदिल अहमद आदिल बिशकार एक अन्य फ़िलिस्तीनी जवान है जिसे ज़ायोनी सैनिकों ने शुक्रवार की रात को नाब्लस के पूरब में अस्कर नामक शिविर में गोली मारकर शहीद कर दिया।

ज़ायोनी सैनिकों ने दक्षिणी लेबनान के कई क्षेत्रों पर हमला किया

समाचारिक सूत्रों ने बताया है कि ज़ायोनी सैनिकों ने दक्षिणी लेबनान के नब्तिया प्रांत के यारून उपनगर पर हमला किया।

ईरान के हौज़ा ए इल्मिया के प्रमुख आयतुल्लाह आराफ़ी ने कहा कि इमाम की मारफ़त ही इंसान की आध्यात्मिक उन्नति और पूर्णता की बुनियाद है यदि इमाम की सही पहचान न हो तो इंसान के सभी कर्म अधूरे और नाकिस रहेंगे।

ईरान के हौज़ा ए इल्मिया के प्रमुख आयतुल्लाह आराफ़ी ने कहा कि इमाम की मारफ़त ही इंसान की आध्यात्मिक उन्नति और पूर्णता की बुनियाद है और यदि इमाम की सही पहचान न हो तो इंसान के सभी कर्म अधूरे और नाकिस रहेंगे।

उन्होंने यह बात शहर बनाब के हौज़ा-ए-इल्मिया के छात्रों की अम्मामा पोशी की रस्म के दौरान अपने संबोधन में कही इस कार्यक्रम में उलेमा राजनीतिक और सामाजिक हस्तियां तथा जनता की एक बड़ी संख्या मौजूद थी।

 

आयतुल्लाह आराफ़ी ने इमाम ज़माना अ.ज. के इंतज़ार को ईश्वरीय मूल्यों को प्रोत्साहित करने वाला तत्व बताते हुए कहा कि छात्रों को चाहिए कि इमाम की पहचान और उनसे प्रेम के साथ-साथ, धर्म और समाज की सेवा में विनम्रता और त्याग को अपनाएं और इसी रास्ते पर आगे बढ़ें।

उन्होंने आज़रबाइजान विशेष रूप से शहर बनाब के लोगों की सराहना करते हुए कहा कि हौज़ा-ए-इल्मिया बनाब जनता के समर्थन के कारण आज देश के प्रतिष्ठित धार्मिक विद्यालयों में गिना जाता है इसके लगभग दो हजार पूर्व छात्र आज क़ुम और अन्य शहरों में धार्मिक सेवाएं अंजाम दे रहे हैं जो बनाब के लोगों के लिए गर्व की बात है।

ईरान और हौज़ा-ए-इल्मिया की इस्लामी शिक्षाओं के प्रचार में ऐतिहासिक भूमिका को उजागर करते हुए उन्होंने कहा कि ईरान ने खुले दिल से इस्लाम और शिया मत को स्वीकार किया और आज दुनिया भर में इस्लामी और शिया शिक्षाएं ईरानी हौज़ों के माध्यम से फैल रही हैं।

आयतुल्लाह आराफ़ी ने कहा कि इस्लामी क्रांति इस महान आंदोलन की ध्वजवाहक है और आज पूरी दुनिया की नज़रें ईरान और हमारे धार्मिक केंद्रों पर टिकी हुई हैं।

उन्होंने इमाम ज़माना अ.ज. की पहचान और उनके इंतज़ार की महत्ता पर जोर देते हुए कहा कि इंतज़ार केवल एक विचार नहीं है, बल्कि सभी ईश्वरीय मूल्यों, जैसे नमाज़, रोज़ा, जिहाद, नेकी और समाज सेवा का असली प्रेरक है। हमें इमाम ज़माना अज की पहचान और प्रेम को मजबूत करते हुए उनके जुहूर के लिए स्वयं को तैयार करना चाहिए।

उन्होंने इतिहास में हौज़ा-ए-इल्मिया की नास्तिकता और अधार्मिकता के खिलाफ भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि संविधानिक क्रांति और प्रथम विश्व युद्ध के बाद हौज़ा-ए-इल्मिया क़ुम को मरहूम अब्दुलकरीम हायरी यज़दी ने फिर से जीवित किया आज इस्लामी क्रांति की बदौलत धार्मिक विद्यालय पूरी दुनिया में फैल चुके हैं।

आयतुल्लाह आराफ़ी ने इमाम-ए-जुमा बनाब और अन्य हस्तियों का धन्यवाद करते हुए आशा व्यक्त की कि जनता और अधिकारियों के सहयोग से हौज़ा-ए-इल्मिया और अधिक विकसित होंगे और धर्म एवं समाज की सेवा में अपनी ज़िम्मेदारियों को पूरी तरह निभाएंगे।

अपने बयान में धार्मिक विद्वानों ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र और अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों को फिलिस्तीन के संबंध में अमानवीय, अवैध उत्पीड़न और उत्पीड़न पर आधारित संयुक्त राज्य अमेरिका और इजरायल के उत्तेजक रुख के खिलाफ भूमिका निभानी चाहिए।

यूनाइटेड उलेमा फ्रंट और डिफेंस फोर्सेज ऑफ पाकिस्तान फोरम के संस्थापक प्रमुख मौलाना मुहम्मद अमीन अंसारी ने कहा है कि संयुक्त राज्य अमेरिका और इजरायल ने फिलिस्तीनी मुद्दे को एक विनाशकारी नई स्थिति में डाल दिया है।

उन्होंने कहा कि फिलिस्तीनियों के जबरन विस्थापन के विनाशकारी प्रभावों से पश्चिमी और यूरोपीय देश भी सुरक्षित नहीं रहेंगे।

उन्होंने आगे जोर देकर कहा कि संयुक्त राष्ट्र और अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों को फिलिस्तीन के प्रति अमानवीय, अवैध उत्पीड़न और उत्पीड़न पर आधारित संयुक्त राज्य अमेरिका और इजरायल के उत्तेजक रुख के खिलाफ भूमिका निभानी चाहिए।

पाकिस्तान के अशांत बलूचिस्तान प्रांत में शुक्रवार को उस समय नौ कोयला खनिकों की मौत हो गई जब उन लोगों को ले जा रही वाहन एक बम विस्फोट की चपेट में आ गई। इस घटना में नौ लोगो कि मौत और सात लोग घायल हो गए।

पाकिस्तान के अशांत बलूचिस्तान प्रांत में शुक्रवार को उस समय नौ कोयला खनिकों की मौत हो गई जब उन लोगों को ले जा रही वाहन एक बम विस्फोट की चपेट में आ गई। इस घटना में नौ लोगो कि मौत और सात लोग घायल हो गए।

हरनाई क्षेत्र के उपायुक्त हजरत वली काकर के अनुसार, यह घटना प्रांत के हरनाई जिले के शाहराग इलाके में हुई पीड़ित एक मिनी ट्रक सवार थे।उन्होंने कहा कि घायलों को नजदीक के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

पुलिस ने कहा कि कानून प्रवर्तन एजेंसियों के अधिकारी घटनास्थल पर पहुंच गए हैं और उन्होंने जांच शुरू कर दी है। पुलिस ने अपराधियों को पकड़ने के लिए तलाशी अभियान शुरू किया है।बलूचिस्तान सरकार के प्रवक्ता शाहिद रैंड ने इस घटना पर दुख व्यक्त करते हुए कहा कि मामले में जांच शुरू कर दी गई है।

उन्होंने कहा कि अभी तक किसी समूह ने इस हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है लेकिन अतीत में हुए इस तरह के हमलों के लिए प्रतिबंधित बलूच लिबरेशन आर्मी को जिम्मेदार ठहराया गया है।

गाजा युद्ध विराम समझौते के तहत शनिवार को बंधकों और कैदियों की छठी अदला बदली के तहत हमास ने तीन इजरायली बंधकों को और रिहा कर दिया।

गाजा युद्ध विराम समझौते के तहत शनिवार को बंधकों और कैदियों की छठी अदला बदली के तहत हमास ने तीन इजरायली बंधकों को और रिहा कर दिया इन तीन के बदले में यहूदी राष्ट्र 369 फिलिस्तीनी कैदियों आजाद करेगा।

फिलिस्तीनी ग्रुप ने जिन तीन बंधकों को रिहा किया है उन्हें गाजा के करीब स्थित किबुत्ज नीर ओज से 7 अक्टूबर 2023 के हमले के दौरान हमास के लड़ाकों ने पकड़ा था।

रिहा किए गए बंधकों में अलेक्जेंडर ट्रोफानोव (29 वर्षीय रूसी-इजरायली), यायर हॉर्न (46 वर्षीय अर्जेंटीनी-इजरायली), सगुई डेकेल-चेन (36 वर्षीय अमेरिकी-इजरायली) शामिल हैं।

19 जनवरी को युद्ध विराम शुरू होने के बाद से हमास ने 16 इजरायली और पांच थाई बंधकों को रिहा किया है वहीं इजरायल ने 766 फिलिस्तीनी कैदियों को रिहा किया है। हमास ने तीनों को रेड क्रॉस को सौंप दिया जो उन्हें लेकर इजरायल की ओर रवाना हो गए।

इससे पहले हमास ने गुरुवार को कहा कि वह समझौते को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है, जिसमें निर्दिष्ट समयसीमा के अनुसार कैदियों की अदला बदली भी शामिल है बता दें सोमवार को हमास ने ऐलान किया कि वह शनिवार को बंधकों को रिहा नहीं करेगा।

हमास की घोषणा के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तब चेतावनी दी थी कि अगर हमास शनिवार तक गाजा में बंधक बनाए गए सभी लोगों को रिहा करने में नाकाम रहा तो तबाही मच जाएगी।

इजरायली पीएम नेतन्याहू ने कहा कि अगर हमास शनिवार दोपहर तक बंधकों को मुक्त नहीं करता है तो इजरायल गाजा में 'तीव्र लड़ाई' फिर से शुरू कर देगा।

मुंजी ए बशरियत इमाम महदी (अ) के शुभ जन्म दिवस पर अंजुमने शरई शियाने जम्मू कश्मीर द्वारा शरीयताबाद, यूसुफाबाद, बडगाम मे रैली का आयोजन किया गया।

मुंजी ए बशरियत इमाम महदी (अ) के शुभ जन्म दिवस पर अंजुमने शरई शियाने जम्मू कश्मीर द्वारा शरीयताबाद, यूसुफाबाद, बडगाम मे रैली का आयोजन किया गया।

रैली की अध्यक्षता अंजुमने शरई शियाने जम्मू कश्मीर के अध्यक्ष हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लेमीन आगा सैयद मुहम्मद हादी अल-मूसवी अल-सफ़वी ने की। रैली मदरसा-ए-कुरान अयातुल्ला आगा सय्यद यूसुफ मीरगुंड, बडगाम से शुरू हुई और इमामबारगाह आयतुल्लाह आगा सैयद यूसुफ फजलुल्लाह रोड़ बेमिना में समाप्त हुई।

इस अवसर पर हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन आगा सैयद मोहसिन रिजवी, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मौलाना इरफान इसहाक, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मौलाना वली मुहम्मद सहित अन्य धर्मावलंबी और अंजुमन से संबद्ध विद्यालयों के छात्र-छात्राओं ने उपस्थित होकर सर्वोच्च इमाम की सेवा को श्रद्धांजलि अर्पित की।

शियों के आखरी इमाम और रसूले इस्लाम (स.) के बारहवें जानशीन 15 शाबान सन् 255 हिजरी क़मरी व सन् 868 ई. में जुमे के दिन सुबह के वक़्त इराक के शहर (सामर्रा) में पैदा हुए।

उन के पिता शियों के ग्यारहवें इमाम हज़रत हसन अस्करी (अ. स.) और उन की माता जनाबे नर्जिस ख़ातून थीं। उनकी माता की क़ौम के बारे में रिवायतों में मत भेद पाया जाता हैं। एक रिवायत के अनुसार जनाबे नर्जिस खातून, रोम के बादशाह यशूअ की बेटी थीं और उन की माँ, हज़रत ईसा (अ. स.) के वसी जनाबे शमऊन की नस्ल से थीं। एक

रिवायत के अनुसार जनाबे नर्जिस खातून एक ख्वाब के नतीजे में मुसलमान हुईं और इमाम हसन अस्करी (अ. स.) की हिदायत (मार्गदर्शन) की वजह से मुसलमानों से जंग करने वाली रोम की फ़ौज के साथ रहीं और जब उस जंग में मुसलमानों को सफलता मिली तो वह भी अन्य बहुत से लोगों के साथ इस्लामी फ़ौज के द्वारा क़ैदी बना ली गईं। हज़रत इमाम अली नकी (अ. स.) ने एक इंसान को वहाँ भेजा ताकि वह उन्हें खरीद कर सामर्रा ले आये।[1]

इस बारे में अन्य रिवायतें भी मिलती हैं [2] लेकिन महत्वपूर्ण और ध्यान देने योग्य बात यह है कि हज़रत नर्जिस खातून एक मुद्दत तक हक़ीमा खातून (इमाम अली नक़ी (अ. स.) की बहन) के घर में रहीं और उन्होंने ही जनाबे नर्जिस ख़ातून की तरबियत की, जिस की वजह से जनाबे हकीमा खातून उन का बहुत ज़्यादा एहतिराम किया करती थीं।

जनाबे नर्जिस खातून (अ. स.) वह बीबी हैं जिनकी पैग़म्बरे इस्लाम (स.)[3] हज़रत अमीरुल मोमिनीन (अ. स.)[4] और हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.)[5] ने बहुत ज़्यादा तारीफ़ की है और उन को क़नीज़ों में बेहतरीन क़नीज़ और क़नीज़ों की सरदार कहा है।

यह बात बताना भी ज़रूरी है कि हज़रत इमामे ज़माना (अज्जल अल्लाहु तआला फरजहु शरीफ़) की आदरनीय माता को दूसरे नामों से भी पुकारा जाता था, जैसे- सोसन, रिहाना, मलीका, और सैक़ल व सक़ील।

इमामे ज़माना(अ. स.) का नाम कुन्नियत और अलक़ाब

हज़रत इमामे ज़माना (अज्जल अल्लाहु तआला फरजहु शरीफ़) का नाम और क़ुन्नियत[6] पैग़म्बरे इस्लाम (स.) का नाम और कुन्नियत है। कुछ रिवायतों में उनके ज़हूर तक उनका नाम लेने से मना किया गया है।

उन के मशहूर अल्काब इस तरह हैं, महदी, क़ाइम, मुन्तज़िर, बक़ीयतुल्लाह, हुज्जत, ख़लफे सालेह, मंसूर, साहिबुल अम्र, साहिबुज़्ज़मान, और वली अस्र, इन में महदी लक़ब सब से ज़्यादा मशहूर है।

इमाम (अ. स.) का हर लक़ब उनके बारे में एक मख़सूस पैग़ाम रखता है।

खूबियों के इमाम को (महदी) कहा गया है, क्यों कि वह ऐसे हिदायत याफ्ता हैं जो लोगों को हक़ की तरफ़ बुलायें गे और उन को क़ाइम इस लिए कहा गया है क्यों कि वह हक़ के लिए क़ियाम करेंगे और उन को मुन्तज़िर इस लिए कहा गया है क्यों कि सभी उन के आने का इन्तेज़ार कर रहे हैं। उन्हें ब़कीयतुल्लाह लक़ब इस वजह से दिया गया है क्यों कि वह ख़ुदा की हुज्जतों में से बाक़ी हुज्जत हैं और वही अल्लाह का आख़िरी ज़ख़ीर हैं।

(हुज्जत) का अर्थ मखलूक पर ख़ुदा के गवाह, और ख़लफ़े सालेह का अर्थ अल्लाह के नेक जानशीन है। उनको मंसूर इस वजह से कहा गया है कि ख़ुदा की तरफ़ से उनकी मदद होगी। वह साहबे अम्र इस वजह से कहलाये जाते हैं कि अदले इलाही की हुकूमत क़ायम करना उन्हीं की ज़िम्मेदारी है। साहिबुज़्ज़मान और वली अस्र भी इसी अर्थ में हैं कि वह अपने ज़माने के तन्हा हाकिम होंगे।

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[1] . कमालुद्दीन, जिल्द न. 2, बाब 41, पेज न. 132,

[2] . बिहार उल अनवार, जिल्द न. 5, पेज न. 22, और हदीस 14, पेज न. 11,

[3] . बिहार उल अनवार, जिल्द न. 5 पेज न. 22, और हदीस 14, पेज न. 11.

[4] . ग़ैबते तूसी अलैहिर्रहमा, हदीस 478, पेज न. 470.

[5] . कमालूद्दीन, जिल्द न. 2, बाब 33, हदीस 31, पेज न. 21.

[6] . कुन्नियत ऐसे नाम को कहा जाता है जो (अब) या ( अम) से शुरु होते हैं जैसे अबू अब्दील्लाह और उम्मुल बनीन

जन्म की स्थिति

बहुत सी रिवायतों में पैग़म्बरे इस्लाम (स.) से नक्ल हुआ है कि मेरी नस्ल से महदी नाम का इंसान क़याम करेगा, जो ज़ुल्मो सितम की बुनियादों को खोखला कर देगा।

बनी अब्बास के ज़ालिम व सितमगर बादशाहों ने इन रिवायत को सुन कर यह तय कर लिया था कि इमाम महदी (अ. स.) को जन्म के समय ही क़त्ल कर दिया जाये। इसी वजह से इमाम मुहम्मद तक़ी (अ. स.) के ज़माने से ही अइम्मा ए मासूमीन (अ. स.) पर बहुत ज़्यादा सख्तियाँ की गईं और इमाम हसन अस्करी (अ. स.) के ज़माने में यह सख्तियां अपनी आख़िरी हद तक पहुँच गईं। हालत यह थी कि अगर कोई हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) के घर पर जाता था तो उसका आना जाना उस वक़्त की हुकूमत की नज़रों से छुपा नहीं था। ज़ाहिर है कि ऐसे माहौल में अल्लाह की आखरी हुज्जत का जन्म गोपनीय तरीके से होना चाहिए था। इसी दलील की वजह से इमाम के जन्म को इतना छुपा कर रखा गया कि हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) के नज़दीकी साथी भी हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के जन्म से बे खबर थे। हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के जन्म से कुछ घण्टे पहले तक भी उनकी माँ जनाबे नर्जिस खातून के जिस्म में किसी बच्चे को जन्म देने की निशानियाँ नही पाई जाती थीं।

जनाबे हकीमा खातून जो कि हज़रत इमाम मुहम्मद तकी (अ. स.) की बेटी हैं, हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के जन्म के बारे में इस तरह विवरण देती हैं।

हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) ने मुझे बुलाया और कहा : ऐ फुफी जान आज आप हमारे यहाँ इफ़्तार करना, क्यों कि आज पन्द्रहवीं शाबान की रात है और ख़ुदा वन्दे आलम इस रात में अपनी आख़री हुज्जत को ज़मीन पर ज़ाहिर करने वाला है। मैं ने सवाल किया उसकी माँ कौन है ? इमाम (अ. स.) ने जवाब दिया कि नर्जिस खातून। मैं ने कहा कि मैं आप पर कुर्बान, उन में तो हम्ल (गर्भ) की कोई भी निशानी नही दिखाई दे रही हैं। इमाम (अ. स.) ने फरमाया : बात वही है जो मैं ने कही है। इस के बाद मैं नर्जिस ख़ातून के पास गई और सलाम कर के उन के पास बैठ गई। वह मेरी जूतियाँ उतारने के लिए मेरे पास आईं और मुझ से कहा कि ऐ मेरी मलका, आपका क्या हाल है ? मैं ने कहा कि नहीं आप ही मेरी और मेरे खानदान की मलीका हैं। उन्हों ने मेरी बात को नही माना और कहा फुफी जान आप क्या फरमाती हैं ? मैं ने कहा, आज की रात ख़ुदा वन्दे आलम तुम को एक बेटा ऐसा बेटा देगा जो दुनिया और आखिरत का सरदार होगा। वह यह सुन कर शर्मा गईं।

हक़ीमा खातून कहती हैं कि मैं ने इशा की नमाज़ के बाद इफ़्तार किया और उस के बाद आराम के लिए अपने बिस्तर पर लेट गई। आधी रात बीतने के बाद मैं नमाज़े शब पढ़ने के लिए उठी और नमाज़ पढ़ कर नर्जिस की तरफ़ देखा तो वह उस वक़्त तक आराम से ऐसे सोई हुई थीं, जैसे उनके सामने कोई मुश्किल न हो। मैं नमाज़ की ताक़िबात (नमाज़ के बाद पढ़ी जाने वाली दुआओं को ताक़ीबात कहते हैं) के बाद फिर पलटी और नर्जिस खातून की तरफ़ देखा तो वह उसी तरह सोई हुई थीं। थोड़ी देर के बाद वह नींद से जागी और नमाज़े शब पढ़ कर दो बारा सो गईं।

हकीमा खातून का कहना है कि मैं सहन में आई ताकि देखूं कि सुब्हे सादिक (सुब्ह की नमाज़ के वक़्त को सुब्हे सादिक़ कहते हैं) हुई या नहीं, मैं ने देखा कि अभी सुब्हे काज़िब (रात का वह आख़िरी हिस्सा जिस में ऐसा लगता है कि सुब्ह हो गई है, लेकिन वास्तव में रात ही होती है उसे सुब्हे काज़िब कहते हैं) है। मैं जब यह देखने के बाद अन्दर आयी तो उस वक़्त तक भी नर्जिस खातून सोई हुई थीं। मुझे शक होने लगा ! अचानक हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) ने अपने बिस्तर से आवाज़ दी : ऐ फुफी जान जल्दी न करें बच्चे के जन्म का समय नज़दीक है। मैं ने सूरः ए सजदा और सूरः ए यासीन की तिलावत शुरु कर दी। तभी जनाबे नर्जिस परेशानी की हालत में नींद से जागीं, मैं जल्दी से उन के पास गई और कहा, ”اسم اللہ علیک“ (तुम से बला दूर हो) क्या तुम्हें किसी चीज़ का एहसास हो रहा है ? उन्होंने कहा कि हाँ फुफी जान, मैं ने कहा कि अपने ऊपर कन्ट्रोल रखो, और अपने दिल को मज़बूत कर लो, यह वही वक़्त है जिस के बारे में मैं आपको पहले बता चुकी हूँ। इस मौके पर मुझे और नर्जिस खातून को कमज़ोरी का एहसास हुआ। इस के बाद मेरे सैय्यद व सरदार बच्चे की आवाज़ सुनाई दी। मैं ने उनके ऊपर से चादर हटाई तो उन को सजदे की हालत में देखा, मैं आगे बढ़ी और बच्चे को गोद में ले लिया। मैंने देखा कि बच्चा पूरी तरह से पाक व पाक़ीज़ा है।

उस मौक़े पर हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) ने मुझ से फरमाया : ऐ फुफी जान मेरे बेटे को मेरे पास ले आइये। मैं उस को उनके पास ले गई, उन्होंने अपनी गोद में ले कर फरमायाः ऐ मेरे बेटे कुछ बोलो ! यह सुन कर वह बच्चा बोलने लगा और कहा कि اشھد ان لا الہ الا الله وحدہ لا شریک لہ و اشھد انّ محمداً رسول الله“, इस के बाद अमीरुल मोमिनीन और अन्य मासूम इमामों (अ. स.) पर दुरुद भेजा और अपने पिता का नाम लेने पर रुक गये। इमामे हसन अस्करी (अ. स.) ने फरमायाः फुफी जान! इस बच्चे को इस की माँ के पास ले जाओ, ताकि यह उन्हें सलाम करे।

हकीमा खातून कहती हैं, कि दूसरे दिन जब में इमाम हसन अस्करी (अ. स.) के यहाँ गई तो मैं ने इमाम (अ. स.) को सलाम किया, मैं ने अपने मौला व आक़ा (इमाम महदी) को देखने के लिए पर्दा उठाया, लेकिन वह दिखाई न दिये, अतः मैं ने उन के हज़रत इमाम हसन अस्करी से सवाल किया : मैं आप पर कुर्बान, क्या मेरे मौला व आक़ा के लिए कोई इत्तिफाक़ पेश आ गया है ? इमाम (अ. स.) ने फरमायाः ऐ फुफी जान मैं ने उस को उस ख़ुदा के सुपुर्द कर दिया है जिस को जनाबे मूसा की माँ ने जनाबे मूसा को सिपुर्द किया था।

हकीमा खातून कहती हैं, जब सातवां दिन आया मैं फिर इमाम (अ. स.) के यहाँ गई और सलाम करके बैठ गई। इमाम (अ. स.) ने फरमायाः मेरे बेटे को मेरे पास लाओ, मैं अपने मौला व आक़ा को उन के पास ले गई, इमाम (अ. स.) ने फरमाया : ऐ मेरे बेटे कुछ बात करो, बच्चे ने ज़बान खोली और ख़ुदा वन्दे आलम की वहदानियत (एकेश्वरवाद) की गवाही देने और पैग़म्बरे इस्लाम (स.) व अपने बाप दादाओं पर दुरुद व सलाम भेजने के बाद इन आयतों की तिलावत फरमाई। بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰن الرَّحِیْمِ

(وَنُرِیدُ اٴَنْ نَمُنَّ عَلَی الَّذِینَ اسْتُضْعِفُوا فِی الْاٴَرْضِ وَنَجْعَلَہُمْ اٴَئِمَّةً وَ نَجْعَلَہُمُ الْوَارِثِینَ ۔ وَنُمَکِّنَ لَہُمْ فِی الْاٴَرْضِ وَنُرِی فِرْعَوْنَ وَہَامَانَ وَجُنُودَہُمَا مِنْہُمْ مَا کَانُوا یَحْذَرُونَ و [ (1) ]2]

शुरु करता हूँ अल्लाह के नाम से जो बड़ा रहमान व रहीम है, और हम ये जानते हैं कि जिन लोगों को ज़मीन में कमज़ोर कर दिया गया है उन पर एहसान करें और उन्हें लोगों का इमाम और ज़मीन का वारीस बनायें और उन्हीं को ज़मीन पर हुकूमत दें और फिरौन व हामान और उनकी फ़ौजों को उन्हीँ कमज़ोरों के हाथों वह मंज़र दिखलायें जिस से ये डर रहे हैं।

हज़रते इमाम महदी (अ. स.) की विशेषताएं

पैग़म्बरे इस्लाम (स.) और अहलेबैत (अ. स.) की रिवायतों में इमाम महदी (अ. स.) की शक्ल व सूरत और विशेषताओं का जो उल्लेख मिलता है, यहाँ पर उन में से कुछ की तरफ़ इशारा किया जा रहा है।

इमाम के चेहरे का रंग गेहूँआ, ऊँचा व चमकता हुआ माथ, भंवैं गोल और आँखें बड़ी बड़ी, नाक लम्बी और खूबसूरत, दाँत चौड़े और चमकदार, दाहिने गाल पर एक काले तिल का निशान, काँधे पर नबूवत जैसी एक निशानी, जिस्म मज़बूत और दिलरुबा है।

आपकी जो निशानियाँ व विशेषताएं मासूम इमामों (अ. स.) की हदीसों में बयान हुई हैं उन में से कुछ इस तरह हैं।

(हज़रत महदी अ. स.) बहुत इबादत करने वाले हैं और वह रात भर जाग कर इबादत करते हैं। वह ज़ाहिद और सादी ज़िन्दगी बसर करने वाले हैं। वह सब्र और बर्दाश्त करने वाले हैं। वह न्याय से काम करने वाले और नेक किरदार के मालिक हैं। वह इल्म के लिहाज़ से सब लोगों से उत्तम हैं और उनका मुबारक वजूद बरकत और पाकिज़गी का समुन्द्र है। वह जुल्म के ख़िलाफ़ उठ खड़े होंगे और जंग करेंगे। वह पूरी दुनिया के लोगों का नेतृत्व करेंगे और दुनिया में बहुत बड़ा इन्केलाब (परिवर्तन) लायेंगे। वह लोगों को निजात (मुक्ति) दिलाने वाले आख़िरी हादी होंगे और इंसानियत का सुधार करने वाले होंगे। वह पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की नस्ल से, हज़रत फ़ातिमा (स.अ.) की औलाद हैं और हज़रत इमाम हुसैन (अ. स.) के नवें बेटे हैं। वह अपने ज़हूर के वक़्त खान- ए- काबा की दीवार के सहारे खड़े होंगे और पैग़म्बरे इस्लाम (स.) का परचम अपने हाथ में लिए होंगे। वह अपने क़ियाम से अल्लाह के दीन को ज़िन्दा करेंगे और अल्लाह के अहकाम (आदेशों) को पूरी दुनिया में लागू करेंगे। वह अपने ज़हूर के बाद दुनिया को अदल व इंसाफ (न्याय) और मुहब्बत से भर देंगे, जैसा कि वह उनके आने से पहले ज़ुल्म व अत्याचार से भरी होगी।[3]

इमाम महदी (अज्जल अल्लाहु तआला फरजहु शरीफ़) की ज़िन्दगी तीन हिस्सों में बटी हुई है-

  1. मख़फ़ी ज़माना—जन्म के वक़्त से हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) की शहादत तक आपकी ज़िन्दगी लोगों से मख़फ़ी (गुप्त) रही।
  2. ग़ैबत का ज़माना- हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) की शहादत के बाद से इमाम (अ. स.) की ग़ैबत का सिलसिला शुरु हुआ और जब तक ख़ुदा वन्दे आलम चाहेगा ये सिलसिला जारी रहेगा।

 

  1. ज़हूर का ज़माना- ग़ैबत का वक़्त पूरा होने के बाद इमामे ज़माना (अ. स.) अल्लाह के हुक्म से ज़हूर फरमायेंगे और दुनिया को अदल व इन्साफ़ और नेकियों से भर देंगे। उनके ज़हूर का वक़्त कोई भी नहीं जानता और इमामे ज़माना (अ. स.) से रिवायत है कि जो लोग हमारे ज़हूर के लिए कोई ख़ास वक़्त निश्चित करें वह झूठे हैं।[4]

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[1] सूरः ए क़िसस आयत न. 5 व 6۔

[2] कमालुद्दीन, जिल्द न.2, बाब न. 42, पेज न. 143

[3] मुन्तखिबुलअसर, फ़सले दोवम, पेज न. 239 ता 383.

[4] एतेजाज, जिल्द न. 2, नम्बर 344, पेज न. 542.