رضوی

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आतंकवाद से मुक़ाबले के महानायक जनरल क़ासिम सुलैमानी की शहादत की पांचवीं बरसी गुरूवार को ईरान के किरमान प्रांत में मनाई गयी। इस अवसर पर दसियों हज़ार लोग उनकी समाधि पर हाज़िर हुए।

जनरल क़ासिम सुलैमानी की शहादत की पांचवीं बरसी के कार्यक्रम का आरंभ, इराक़ी अधिकारियों द्वारा शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी की समाधि पर भावभीन श्रद्धांजलि अर्पित करना, नये ईसवी साल के आरंभ होने के साथ ग़ाज़ा के लोगों के समर्थन में कई देशों में प्रदर्शन, कड़ाके की ठंड और फ़िलिस्तीनियों की जानों को ख़तरा, अमेरिका के न्यू ऑर्लियंस में ट्रक से हमला, ट्रम्प के होटल के सामने विस्फ़ोट और यूरोप को रूसी गैस का निर्यात बंद, ईरान और विश्व की कुछ महत्वपूर्ण ख़बरें हैं जिनका हम यहां पर उल्लेख कर रहे हैं।

शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी इस्लामी फ़ोर्स सिपाहे पासदारान आईआरजीसी के क़ुद्स ब्रिगेड के कमांडर थे और तीन जनवरी 2020 को वे इराक़ी सरकार के आधिकारिक निमंत्रण पर इराक़ की यात्रा पर थे और बग़दाद के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से बाहर कुछ दूरी पर अमेरिका के आतंकवादी सैनिकों ने ड्रोन से उन पर आक्रमण किया जिसमें वह शहीद हो गये। उनके साथ इराक़ के स्वयं सेवी बल हश्दुश्शाबी के डिप्टी कमांडर अबू मेंहदी अलमोहिन्दिस और दूसरे आठ लोग भी शहीद हो गये।

आतंकवाद के महानायक जनरल क़ासिम सुलैमानी की शहादत की पांचवी बरसी मनाई गयी। उनकी शहादत की बरसी के कार्यक्रम में दसियों हज़ार लोगों ने भाग लिया। 

इराक़ के स्वयं सेवी बल हश्दुश्शाबी के प्रमुख फ़ालेह अलफ़य्याज़ ने बुधवार को शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी की शूरवीरता की प्रशंसा करते हुए था कि इराक़ ने शहीद अलमोहन्दिस और क़ासिम सुलैमानी सहित अपने बेहतरीन वीर सपूतों और नेताओं को आतंकवाद से मुक़ाबले के मार्ग में क़ुर्बान कर दिया।

इराक़ के बद्र संगठन के महासचिव हादी अलआमेरी ने बुधवार को जनरल क़ासिम सुलैमानी और अबू मेंहदी अलमोहन्दिस की शहादत की पांचवी बर्सी के अवसर पर बग़दाद में कहा कि शहीद सुलैमानी बहुत जुझारू थे और इराक़ और सीरिया में बहुत सी चुनौतियों के मुक़ाबले में उन्होंने बहुत ही उल्लेखनीय व अविस्मरणीय भूमिका निभाई है।

भारत नियंत्रित कश्मीर में भाषा के उस्ताद और प्रोफ़ेसर ने बुधवार को कहा कि कश्मीर और करगिल सहित भारत के विभिन्न भागों में शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी को प्रतिरोध के प्रेरणादायक व प्रतीक के रूप में लोग पहचानते हैं।

भारत नियंत्रित कश्मीर में भाषा के उस्ताद मोहम्मद रज़ा ने कहा कि शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी की भारत में लोकप्रियता का एक कारण इराक़ में दाइश के नियंत्रण से भारतीय नर्सों को स्वतंत्र करवाना था और इस विषय का उल्लेख भारतीय संचार माध्यमों ने जनरल क़ासिम सुलैमानी की शहादत के बाद किया था।

हमास के प्रवक्ता जिहाद ताहा ने कहा कि गाजा युद्धविराम समझौते से जुड़ी चुनौतियों से निपटने के लिए हमास के एक प्रतिनिधिमंडल ने मिस्र की राजधानी काहिरा का दौरा किया है।

एक रिपोर्ट के अनुसार ,हमास के प्रवक्ता जिहाद ताहा ने कहा कि गाजा युद्धविराम समझौते से जुड़ी चुनौतियों से निपटने के लिए हमास के एक प्रतिनिधिमंडल ने मिस्र की राजधानी काहिरा का दौरा किया है।

ताहा ने बताया कि प्रतिनिधिमंडल की काहिरा यात्रा गाजा की स्थिति के संबंध में मिस्र, कतर और तुर्किये सहित मध्यस्थों के साथ चल रही चर्चा का हिस्सा थी।

ताहा ने कहा इस यात्रा का उद्देश्य इजरायल द्वारा हाल ही में लगाई गई बाधाओं और शर्तों को संबोधित करना है उन्होंने कहा कि हमास फिलिस्तीनी लोगों के लाभ के लिए किसी भी प्रयास के लिए खुला है और इजरायल आक्रामकता और हत्याओं को रोकने के लिए प्रतिबद्ध है।

ताहा ने उम्मीद जताई कि अगर इज़राइल अपनी हालिया शर्तों को पलट दे तो एक समझौता हो सकता है।

इस सप्ताह की शुरुआत में इज़राइली राज्य के स्वामित्व वाले कान टीवी ने बताया कि हमास ने कैदियों की अदला बदली के बिना एक सप्ताह के युद्धविराम का प्रस्ताव दिया था। इज़राइल ने प्रस्ताव को खारिज कर दिया और हमास से युद्धविराम से पहले रिहाई के लिए बंधकों की सूची उपलब्ध कराने की मांग की।

हमास के एक सूत्र ने खुलासा किया कि मिस्र के अधिकारियों के साथ काहिरा में हमास प्रतिनिधिमंडल की बैठकों के परिणामस्वरूप युद्धविराम समझौते में बाधा डालने वाले कुछ विवादास्पद बिंदुओं को स्थगित करने का प्रस्ताव आया था।

सूत्र ने गुमनाम रूप से बात करते हुए बताया कि प्रस्ताव सहित मिस्र पक्ष के साथ हुए समझौते 20 जनवरी से पहले एक समझौते को सुरक्षित करने के अंतिम प्रयास में इज़राइल को प्रस्तुत किए जाएंगे

फ़िलिस्तीन के स्वास्थ्य मंत्रालय ने गुरुवार को घोषणा की है ग़ाज़ा में युद्ध के 454वें दिन इजरायली हमलों के कारण 28 और फ़िलिस्तीनी शहीद और 59 घायल हो गए।

एक रिपोर्ट के अनुसार , फ़िलिस्तीन के स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि 7 अक्टूबर 2023 से शुरू हुए युद्ध में अब तक शहीदों की संख्या 45,581 हो गई है, जबकि घायलों की संख्या 1,08,438 तक पहुंच चुकी है।

स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, हजारों फ़िलिस्तीनी अभी भी लापता हैं और कई शहीदों के शव मलबे के नीचे दबे हुए हैं जिन्हें निकालने की कोशिशें असफल रही हैं।

आज हुए इजरायली हमलों में एक बड़ा हादसा ख़ान यूनुस के अलमवासी क्षेत्र में हुआ जहां एक कथित सुरक्षित क्षेत्र में फ़िलिस्तीनी शरणार्थियों के तंबू को निशाना बनाया गया।

इस बर्बर बमबारी में कम से कम 11 लोग शहीद हो गए जिनमें तीन बच्चे, ग़ाज़ा पुलिस के महानिदेशक सरलश्कर मुहम्मद सलाह उनके डिप्टी हुसाम शहवान (अबू शरूक), और 12 अन्य लोग घायल हो गए।

ये ताज़ा हमले इजरायली हमलों की क्रूरता को दर्शाते हैं जहां नागरिक इलाकों शरणार्थी शिविरों और बच्चों तक को निशाना बनाया जा रहा है।

 

सीरिया के दक्षिणी अलेप्पो प्रांत को इजरायली युद्धक विमानों ने वहां के रक्षा कारखानों और एक अनुसंधान केंद्र पर हमला किया और अलेप्पो प्रांत को हिलाकर रख दिया

एक रिपोर्ट के अनुसार ,स्थानीय मीडिया और एक युद्ध मॉनिटर के अनुसार विस्फोटों की एक श्रृंखला ने सीरिया के दक्षिणी अलेप्पो प्रांत को हिलाकर रख दिया क्योंकि इजरायली युद्धक विमानों ने वहां रक्षा कारखानों और एक अनुसंधान केंद्र पर हमले किया।

अलसफीरा शहर जहां रक्षा सुविधाएं स्थित हैं में कई विस्फोट हुए इस हमले में शहर के बाहरी इलाके में एक वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्र को निशाना बनाया गया।

ब्रिटेन स्थित युद्ध निगरानीकर्ता सीरियन ऑब्जर्वेटरी फॉर ह्यूमन राइट्स ने कम से कम सात बड़े विस्फोटों की पुष्टि की और कहा कि इजरायली विमानों ने अलसफिरा रक्षा कारखानों और एक अनुसंधान केंद्र दोनों पर बमबारी की।

वेधशाला ने बताया कि नवीनतम हमले से पिछले साल दिसंबर की शुरुआत में पूर्व सीरियाई राष्ट्रपति बशर अलअसद की सरकार के पतन के बाद से सीरियाई क्षेत्र पर इजरायली हवाई हमलों की कुल संख्या 498 हो गई है।

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहु अलैहे व आलेही वसल्लम के परिजनों ने धर्म से दिगभ्रमित करने वाले विचारों और अत्याचारी शासनों के अंधकारमयी कालों में, चमकते हुए सूर्य की भांति अत्याचार व अज्ञानता के अंधकार को मिटाया और मिटाना सिखाया ताकि उन मूल्यों को जनता के सामने लाएं जिनका पालन मानवता के लिए आवश्यक है परन्तु जिनकी अनदेखी की जा रही है। वे धर्म से संबंधित बातों के सही उत्तर देने वाले थे। उन्होंने इस्लामी शिक्षाओं की व्याख्या और उनकी रक्षा की तथा लोगों का सही मार्गदर्शन किया। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के शुभ जन्म दिवस से रजब की पहली तारीख़ सुशोभित हो उठी। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने 57 हिजरी क़मरी में मदीना नगर में आंखें खोलीं। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहु अलैहे व आलेही वसल्लम ने बहुत पहले जाबिर इबने अब्दुल्लाह अंसारी नामक अपने एक साथी को इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के जन्म की शुभ सूचना देते हुए कहा थाः हे जाबिर! तुम उस समय जीवित रहोगे और मेरे पुत्रों में से एक पुत्र का दर्शन करोगे कि जिनका उपनाम बाक़िर होगा। तो मेरा सलाम उन तक पहुंचा देना। इस प्रकार पैग़म्बरे इस्लाम ने पांचवे इमाम को बाक़िर की उपाधि दी। इमाम को बाक़िरुल उलूम कहा जाता था जिसका अर्थ होता है ज्ञान की गुत्थियों को सुलझाने और उसका विस्तार करने वाला। जाबिर इबने अब्दुल्लाह अंसारी जीवित रहे और वृद्धावस्था में उन्होंने इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के दर्शन किए और पैग़म्बरे इस्लाम का सलाम उन तक पहुंचाया। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम का एक प्रसिद्ध कथन जो उन्होंने अपने एक मित्र को संबोधित करते हुए जिनका नाम जाबिर इबने यज़ीदे जोअफ़ी था कहाः हे जाबिर! क्या किसी के लिए केवल मित्रता का दावा करना पर्याप्त है? ईश्वर की सौगंध कोई व्यक्ति हमारा अनुयायी नहीं मगर यह कि वह ईश्वर से डरे और उसके आदेश का पालन करे। हमारे अनुयाइयों की पहचान है कि वे विनम्र और ईमानदार होते हैं तथा ईश्वर को बहुत अधिक याद करते हैं। रोज़ा रखते हैं और नमाज़ पढ़ते हैं। माता पिता के साथ भलाई करते हैं, सच बोलते हैं और क़ुरआन की तिलावत करते हैं। निर्धन पड़ोसियों की सहायता करते हैं और दूसरों से अच्छे ढंग से अच्छी बात करते हैं। तो ईश्वर के प्रकोप से डरो और जो कुछ ईश्वर के पास है उसे प्राप्त करने के लिए प्रयास करो। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने लगभग 19 वर्षों तक इमामत अर्थात जनता के मार्गदर्शन का ईश्वरीय दायित्व संभाला। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के व्यवहार में दो बातें सबसे अधिक दिखायी देती हैं। एक ज्ञान के विस्तार के लिए अथक प्रयास और दूसरे इस्लामी समाज में इमामत के विषय की व्याख्या। इमामत का विषय ऐसा है जो इस्लामी जगत के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। इस बात में संदेह नहीं कि इस्लामी समाजों के सांसारिक मामलों का बेहतर ढंग से संचालन और एक आदर्श जीवन की प्राप्ति, एक ओर इन समाजों के नेताओं के व्यवहार तो दूसरी ओर देश के ज्ञान, संस्कृति एवं अर्थव्यवस्था संबंधी प्रगति पर निर्भर है। आज विभिन्न ज्ञानों का उत्पादन और उनमें विस्तार तथा उनका स्थानांतरण देशों की सबसे मूल्यवान संपत्ति है। यदि मानव समाज की आवश्यकताओं को शैक्षिक, वैज्ञानिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और सुरक्षा संबंधी क्षेत्रों में विभाजित किया जाए तो वही समाज ऐश्वर्य एवं शांति प्राप्त कर सकता है जो इन आवश्यकताओं को पूरा करने में सफल हो जाए। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने इस बात के दृष्टिगत कि व्यापक ज्ञान और उच्च संस्कृति से संपन्न मुसलमान सफलता की उच्च चोटियों पर पहुंच सकते हैं, इस्लामी शिक्षाओं की व्याख्या की और उनके प्रसार के लिए अथक प्रयास किया और मदीना नगर में एक बड़े विद्यालय की स्थापना की। इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम के वैज्ञानिक व सांस्कृतिक आंदोलन में ज्ञान की विभिन्न शाखाएं शामिल थीं और इमाम ने इस्लामी समाज की निहित क्षमताओं को निखारा। सभी विद्वानों का यह मानना है कि इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने इस्लामी धर्मशास्त्र की एक शाखा उसूले फ़िक़्ह अर्थात ज्यूरिसप्रूडेन्स के सिद्धांतों का आधार रखा और इस प्रकार इस्लामी विद्वानों के लिए इजतेहाद अर्थात धार्मिक नियमों में शोध का द्वार खोला। जिस समय अत्याचारी उमवी शासक धार्मिक शिक्षाओं में चिंतन से मना करते थे, इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने अपनी चर्चाओं भाषणों और क्लासों में बुद्धि के महत्व का उल्लेख करते हुए लोगों को चिंतन मनन की ओर बुलाया। जैसा कि इस सदंर्भ में इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम का एक कथन हैः ईश्वर लोगों को उनकी बुद्धि के आधार पर परखेगा और उनसे पूछताछ करेगा। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम, विद्वानों, विचारकों और धर्मगुरुओं को राष्ट्रों के कल्याण और दुर्भाग्य के लिए ज़िम्मेदार मानते थे। क्योंकि यही लोग अपने वैचारिक व सांस्कृतिक मार्गदर्शन से समाज को परिपूर्णतः या पतन की ओर ले जाते हैं। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की दृष्टि में सत्ता के ध्रुव के रूप में शासक की भी राष्ट्रों के कल्याण या उनकी पथभ्रष्टता में भूमिका होती है। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के एक स्वर्ण कथन का हवाला देते हुए कहते थेः जब भी हमारे समुदाय के दो गुट अच्छे होंगे तो समुदाय के सभी मामले सही दिशा में होंगे और यदि वे दोनों गुट पथभ्रष्ट हो जाएं तो हमारे पूरे समुदाय को पथभ्रष्टता की ओर ले जाएंगे एक धर्मगुरुओं व विद्वानों का गुट और दूसरा शासकों व अधिकारियों का। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम धार्मिक शिक्षाओं को अंधविश्वास व भ्रांतियों से शुद्ध करने के लिए दो महत्वपूर्ण स्रोतों अर्थात क़ुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम के व्यवहार व शिष्टाचार पर बल देते हुए इन दोनों को शिक्षाओं व विचारों का मानदंड बताते थे। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम क़ुरआन के सर्वश्रेष्ठ व्याखयाकार के रूप में क़ुरआनी आयतों की सही व पथप्रदर्शक व्याख्या कर विरोधियों व अवसरवादियों को लाजवाब कर देते थे। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम अपनी बात के तर्क के रूप में सदैव ईश्वर के कथन को पेश करते और अपने साथियों से कहा करते थेः जब भी मैं कोई बात कहूं तो पवित्र क़ुरआन से उसका संबंध हमसे पूछो ताकि उससे संबंधित आयत की मैं तुम्हारे सामने तिलावत करूं। इमाम चाहते थे कि जो भी बात इस्लाम के हवाले से कही जाए उसका मापदंड क़ुरआन हो और समाज में सत्य और असत्य के बीच अंतर करने वाली किताब के रूप में क़ुरआन का स्थान हो। इमाम मोहम्म बाक़िर अलैहिस्सलाम सत्य और असत्य के बीच अंतर के लिए दूसरा मापदंड पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम और उनके पवित्र परिजनों के शिष्टाचार व व्यवहार को बताते थे। इमाम मोहम्म बाक़िर अलैहिस्सलाम इस बात पर बहुत बल देते थे कि पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजन ही मार्गदर्शक हैं। इमाम मोहम्म बाक़िर अलैहिस्सलाम इस्लामी एक इस्लामी समाज में मार्गदर्शक की आवश्यकता को बयान करते हुए एक तुल्नात्मक बयान में इमाम व मार्गदर्शक के महत्व का इन शब्दों में उल्लेख करते हैः जब भी कोई व्यक्ति किसी लंबे मार्ग पर चलता है तो उसका प्रयास होता है कि उसे मार्गदर्शन करने वाली कोई ऐसी चीज़ मिल जाए जो उसे ग़लत मार्ग पर जाने से बचा ले अब जबकि मनुष्य के सामने ईश्वरीय मूल्यों व आध्यात्मिक मार्गों की पहचान के मार्ग में बहुत सी समस्याएं व जटिल स्थिति होती है और उसे परिपूर्णतः तक पहुंचने के लिए एक ऐसे मार्गदर्शक की आवश्यकता होती है जिससे वह संतुष्ट रहे तो प्रयास करो कि धर्म के मार्ग और आध्यात्मिक वास्तविकताओं को समझने के लिए अपने लिए एक मार्गदर्शक चुन लो। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम इमामत अर्थात जनता के ईश्वरीय मार्गदर्शन के महत्व के बारे में कहते हैः इस्लाम पांच खंबो पर टिका हैः नमाज़, रोज़ा, ज़कात हज और विलायत और विलायत इन सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। विलायत का अर्थ होता है इस्लामी नियमों के अनुसार चलायी जाने वाली व्यवस्था का प्रमुख और स्पष्ट है कि यह काम पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के पश्चात उनके पवित्र परिजनों और उनके प्रतिनिधियों के अतिरिक्त कोई नहीं कर सकता था। यदि समाज का संचालक व मार्गदर्शक सही न होगा तो बहुत से इस्लामी आदेशों का पालन नहीं हो सकेगा या यह कि उनके मुख्य बिन्दुओं की अनदेखी की जाएगी। यदि इस्लामी समाज के उपासना संबंधी, आर्थिक, सैन्य और राजनैतिक मामलों में से हर एक का सही निरीक्षण न होगा तो उसके सही पालन की गारेंटी नहीं दी जा सकती और इस बात में संदेह नहीं कि एक सदाचारी व समझदार नेता समाज में न्याय के व्यवहारिक होने की भूमि प्रशस्त करते हैं। इस संदर्भ में इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैः न्याय का विभूतियों भरा मैदान कितना व्यापक है कि जब शासक लोगों पर न्याय के साथ शासन करते हैं तो आम लोग को आर्थिक समृद्धता व शांति प्राप्त होती है। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम संसार में चमक रहे सूर्य की भांति ज्ञान के क्षितिज पर चमके और उनके महान स्थान की व्याख्या के लिए इस इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि इस्लामी स्रोतों में सबसे अधिक कथन इमाम मोहम्मद बाक़िर और उनके सुपुत्र हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम के हैं। एक बार फिर इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के शुभ जन्म दिन पर हार्दिक बधाई के साथ कार्यक्रम का अंत उनके एक स्वर्ण कथन से कर रहे हैः

इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैः परिपूर्णतः तीन चीज़ों में निहित हैः धर्म का ज्ञान और उसमें सोच विचार, समस्याओं के समय धैर्य और जीवन की आवश्यकताओं की प्राप्ति के लिए सुनियोजित कार्यक्रम में।

गुरुवार, 02 जनवरी 2025 07:02

इमाम बाक़िर और ईसाई पादरी

एक बार इमाम बाक़िर (अ.स.) ने अमवी बादशाह हश्शाम बिन अब्दुल मलिक के हुक्म पर अनचाहे तौर पर शाम का सफर किया और वहा से वापस लौटते वक्त रास्ते मे एक जगह लोगो को जमा देखा और जब आपने उनके बारे मे मालूम किया तो पता चला कि ये लोग ईसाई है कि जो हर साल यहाँ पर इस जलसे मे जमा होकर अपने बड़े पादरी से सवाल जवाब करते है ताकि अपनी इल्मी मुश्किलात को हल कर सके ये सुन कर इमाम बाकिर (अ.स) भी उस मजमे मे तशरीफ ले गऐ।

थोड़ा ही वक्त गुज़रा था कि वो बुज़ुर्ग पादरी अपनी शानो शोकत के साथ जलसे मे आ गया और जलसे के बीच मे एक बड़ी कुर्सी पर बैठ गया और चारो तरफ निगाह दौड़ाने लगा तभी उसकी नज़र लोगो के बीच बैठे हुऐ इमाम (अ.स) पर पड़ी कि जिनका नूरानी चेहरा उनकी बड़ी शख्सीयत की गवाही दे रहा था उसी वक्त उस पादरी ने इमाम (अ.स )से पूछा कि हम ईसाईयो मे से हो या मुसलमानो मे से?????

इमाम (अ.स) ने जवाब दियाः मुसलमानो मे से।

पादरी ने फिर सवाल कियाः आलिमो मे से हो या जाहिलो मे से?????

इमाम (अ.स) ने जवाब दियाः जाहिलो मे से नही हुँ।

पादरी ने कहा कि मैं सवाल करूँ या आप सवाल करेंगे

 

 इमाम (अ.स) ने फरमाया कि अगर चाहे तो आप सवाल करें।

पादरी ने सवाल कियाः तुम मुसलमान किस दलील से कहते हो कि जन्नत मे लोग खाऐंगे-पियेंगे लेकिन पैशाब-पैखाना नही करेंगे? क्या इस दुनिया मे इसकी कोई दलील है?

इमाम (अ.स) ने फरमायाः हाँ, इसकी दलील माँ के पेट मे मौजूद बच्चा है कि जो अपना रिज़्क़ तो हासिल करता है लेकिन पेशाब-पेखाना नही करता।

पादरी ने कहाः ताज्जुब है आपने तो कहा था कि आलिमो मे से नही हो।

इमाम (अ.स) ने फरमायाः मैने ऐसा नही कहा था बल्कि मैने कहा था कि जाहिलो मे से नही हुँ।

उसके बाद पादरी ने कहाः एक और सवाल है।

इमाम (अ.स) ने फरमायाः बिस्मिल्लाह, सवाल करे।

पादरी ने सवाल कियाः किस दलील से कहते हो कि लोग जन्नत की नेमतो फल वग़ैरा को इस्तेमाल करेंगें लेकिन वो कम नही होगी और पहले जैसी हालत पर ही बाक़ी रहेंगे।

क्या इसकी कोई दलील है?

 

इमाम (अ.स) ने फरमायाः बेशक इस दुनिया मे इसका बेहतरीन नमूना और मिसाल चिराग़ की लौ और रोशनी है कि तुम एक चिराग़ से हज़ारो चिराग़ जला सकते हो और पहला चिराग़ पहले की तरह रोशन रहेगा ओर उसमे कोई कमी नही होगी।

पादरी की नज़र मे जितने भी मुश्किल सवाल थें सबके सब इमाम (अ.स) से पूछ डाले और उनके बेहतरीन जवाब इमाम (अ.स) से हासिल किये और जब वो अपनी कम इल्मी से परेशान हो गया तो बहुत गुस्से आकर कहने लगाः

ऐ लोगों एक बड़े आलिम को कि जिसकी मज़हबी जानकारी और मालूमात मुझ से ज़्यादा है यहा ले आऐ हो ताकि मुझे ज़लील करो और मुसलमान जान लें कि उनके रहबर और इमाम हमसे बेहतर और आलिम हैं।

खुदा कि क़सम फिर कभी तुमसे बात नही करुगां और अगर अगले साल तक ज़िन्दा रहा तो मुझे अपने दरमियान (इस जलसे) मे नही देखोंगे।

इस बात को कह कर वो अपनी जगह से खड़ा हुआ और बाहर चला गया।।।।।

(ये आरटीकल जनाब मेहदी पेशवाई की किताब "सीमाये पीशवायान" से लिया गया है।)

हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर अ.स. का जन्म 1 रजब अल-मुरज्जब 57 हिजरी को मदीना में हुआ था। आपका परिवार पवित्रता की पहली कड़ी है, जिसका वंश माता और पिता दोनों की ओर से हज़रत अली इब्न अबी तालिब अ.स. से मिलता है।

हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ) का जन्म 1 रजब अल-मुरज्जब 57 हिजरी को मदीना में हुआ था। आपका परिवार पवित्रता की पहली कड़ी है, जिसकी वंशावली माता और पिता दोनों की ओर से हज़रत अली इब्न अबी तालिब (अ) तक मिलती है, क्योंकि आपकी माँ इमाम हसन से हैं और आपके पिता इमाम हुसैन (अ) से है।

उनका उपनाम अबू जाफ़र है और उनकी उपाधियाँ हादी और शाकिर हैं। बाकिर उनकी सबसे प्रसिद्ध उपाधि है।

आपकी इस उपाधि के बारे में जाबिर इब्ने अब्दुल्ला अंसारी की रिवायत है कि अल्लाह के रसूल ने आपको यह उपाधि प्रदान की और मुझसे कहा कि इसका नाम मेरे नाम से मिलता जुलता है और यह लोगों में सबसे ज्यादा मेरे जैसा है। आप उन्हें मेरा सलाम कहना (याकूबी, खंड 2 पृष्ठ 320)।

आपकी शैक्षणिक स्थिति का ज्ञान यह है कि आपको इतिहास में ऐसे शब्द मिलते हैं कि "कुरान की व्याख्या, हलाल और हराम के शब्द और नियम केवल आप ही थे" (इब्न शहर आशोब, मनाकिब आले अबी तालिब, भाग 4, पेज 195) ) और विभिन्न धर्मों के प्रमुखों से शास्त्रार्थ किया।

यह आपके ज्ञान के स्तर के लिए पर्याप्त है कि "इस्लाम की दुनिया के सहाबा, ताबेईन और तबे ताबेईन और महान न्यायविदों ने आपसे धार्मिक शिक्षाओं और आदेशों की नकल की है, आपके परिवार में ज्ञान के आधार पर उत्कृष्टता होगी अकेले।" (शेख मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 155)

उन्होंने अपने जीवन के चार धन्य वर्ष अपने दादा इमाम हुसैन (अ) की छाया में बिताए और 38 वर्ष अपने पिता अली इब्न अल हुसैन सैयद सज्जाद (अ) की छाया में बिताए। उनकी इमामत की कुल अवधि इसमें 19 वर्ष शामिल हैं।

आप कर्बला की घटना के एकमात्र युवा मासूम गवाह हैं, जिन्होंने कर्बला की दर्दनाक घटनाओं को अपनी आंखों से देखा है जब आप चार साल के थे, तो आप खुद एक जगह कहते हैं, जब मेरे दादा हुसैन बिन अली कर्बला मे शहीद हुए थे तो मैं चार साल का था । आपकी शहादत के समय जो कुछ हुआ वह मेरी आंखों के सामने है (याकूबी, भाग 2, पेज 320)।

आपकी जीवनी

वह लोगों के साथ घुल-मिल जाते थे, लोगों के बीच सादिक और अमीन के नाम से जाने जाते थे, अपने पूर्वजों की तरह कड़ी मेहनत करते थे, इसलिए इतिहास में पाया जाता है कि एक दिन कड़ी धूप में वह खेतों में थे। किसी ने तुम्हें गर्मी में फावड़ा चलाते देखा और कहा, "तुम भी इतनी गर्मी में दुनिया के लिए निकले हो?" ऐसे में अगर आपकी मौत हो जाये तो क्या होगा? आपने उत्तर दिया कि यदि मैं इसी अवस्था में मर जाऊँ तो मैं ईश्वर की आज्ञाकारिता की अवस्था में इस संसार से चला जाऊँगा क्योंकि मैं इस कठिन परिश्रम के द्वारा स्वयं को लोगों से स्वतंत्र कर रहा हूँ।

 वह हमेशा ईश्वर के स्मरण में लगे रहते थे और उनके देने-देने की कोई मिसाल नहीं थी (शेख मुफीद, अल-अरशद, खंड 2, पृष्ठ 161)।

इमाम बाकिर (अ.स.) के समय की स्थितियाँ।

इमाम मुहम्मद बाक़िर (एएस) के शासनकाल के दौरान जिन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, वे बहुत जटिल और आत्मा को कुचलने वाली थीं, कुछ सबसे महत्वपूर्ण कठिनाइयाँ हैं:

  1. राजनीतिक भ्रष्टाचार: उनकी इमामत के दौरान अल मारवान का शासन था, जिन्होंने अपने शासन के दौरान इस्लामी समाज पर जाहिली रीति-रिवाज और जाहिली विचार थोपे थे और पूरे सरकारी ढांचे में राजनीतिक भ्रष्टाचार था।
  2. सांस्कृतिक विचलन:

अल-मारवान ने पूरे इस्लामी समाज के जीवन को संस्कृति और संस्कृति के आधार पर विभाजित कर दिया था और किसी को भी समाज में इस्लामी और मुहम्मदी संस्कृति को बढ़ावा देने की अनुमति नहीं थी और विचलित विचारों की दूरी थी।

  1. सामाजिक दंगे:

सामूहिक रूप से उस समय के इस्लामी समाज में इतना भ्रष्टाचार था कि जातीय श्रेष्ठता, अन्याय के कीड़े सर्वत्र दिखाई देते थे और उनसे लड़ने की क्षमता किसी में नहीं थी।

इमाम मुहम्मद बाक़िर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने इन परिस्थितियों में धीरे-धीरे लोगों को इस्लाम की सच्ची शिक्षाओं से अवगत कराया और संस्कृति और संस्कृति के क्षेत्र में परिवर्तन को अपना नारा बनाकर चुपचाप समाज की बौद्धिक और बौद्धिक नींव पर काम किया। क्या

इसलिए, मस्जिद-उल-नबी में मुसनद दर बिछाकर, उन्होंने कुरान की आयतों की रोशनी में इस्लामी ज्ञान की प्यास को सींचा और पैगंबर की मस्जिद को इस्लामी संस्कृति के एक शानदार महल में बदल दिया।

उन्होंने जिदु-जिहाद के 19 वर्षों के दौरान गांव-गांव जाकर असंख्य शिष्यों को प्रशिक्षित किया, जिन्होंने इस्लाम की सच्ची छवि पेश की, उनके द्वारा प्रशिक्षित शिष्यों में से 467 लोगों के नाम आज भी स्रोतों में उपलब्ध हैं। शेख तुसी, रिज़ल, 102) जिनमें ज़रारा बिन आयिन, अबू बसीर मोरादी, बारिद बिन मुआविया बिजली, मुहम्मद बिन मुस्लिम थकाफ़ी, फ़ाज़िल बिन यासर, जाबिर बिन यज़ीद जाफ़ी और अन्य अपने आप में एक समूह के रूप में पहचाने जाते हैं।

यह आपके शैक्षणिक और सांस्कृतिक आंदोलन का ही परिणाम है कि आज इमामी स्कूल एक समृद्ध और व्यापक स्कूल के रूप में जाना जाता है।

आज अगर इमामिया स्कूल दुनिया में एक मजबूत अवधारणा वाले धर्म के रूप में जाना जाता है तो यह आपके प्रयासों और कोशिशों का ही नतीजा है।

अकादमिक और बौद्धिक हलकों में जब भी शिया की बात होती है तो आपको कभी भुलाया नहीं जा सकता क्योंकि शिया की बुनियाद और बुनियाद आपकी ही कोशिशों का नतीजा है।

आपअगर अंधेरे और अज्ञानता के अंधेरे में मस्जिद-ए-नबवी में ज्ञान का दीपक नहीं जलाया गया होता, तो शायद आज मुहम्मदी शिक्षाओं के बजाय जाहिली रीति-रिवाजों को पवित्रता मिल गई होती। बाकिर अल मुहम्मद की शहादत जब तक दुनिया में ज्ञान रहेगा दुनिया आपको सलाम करती रहेगी।

हुकूमत इमाम बाकिर अ.स. से हर कुछ दिन पर पूछताछ करके उनको तकलीफ़ देने और उनका ध्यान भटकाने की कोशिश में लगी हुई थी, ज़ाहिर है इमाम अ.स. अपनी ज़िम्मेदारी से पीछे नहीं हट सकते थे, ऐसे घुटन के माहौल में इमाम अ.स. ने दीन के अहकाम और इस्लामी वैल्यूज़ को बाक़ी रखने के लिए कई कामयाब रास्ते अपनाए

 हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , इमाम बाक़िर अ.स. के दौर में कैसे कैसे ज़ालिम हाकिम थे और इमाम अ.स. और आपके शियों के लिए हालात कितने सख़्त थे आपने पढ़ा, यहां तक कि इमाम अ.स. से मिलने पर पाबंदी थी, इमाम अ.स. को हर कुछ दिन पर पूछताछ कर के उनको तकलीफ़ देने और उनका ध्यान भटकाने की कोशिश में लगे हुए थे, ज़ाहिर है इमाम अ.स. अपनी ज़िम्मेदारी से पीछे नहीं हट सकते थे, ऐसे घुटन के माहौल में इमाम अ.स. ने दीन के अहकाम और इस्लामी वैल्यूज़ को बाक़ी रखने के लिए कई कामयाब रास्ते अपनाए जिनको हम इस भाग में आपके सामने पेश कर रहे हैं।

 तक़य्या

 तक़य्या की अहमियत के बारे में इमाम बाक़िर अ.स. फ़रमाते हैं कि तक़य्या मेरे और मेरे वालिद के दीन का हिस्सा है जो तक़य्या पर ईमान नहीं रखता उसका ईमान ही कामिल नहीं। (बिहारुल अनवार, जिल्द 75, पेज 431)

 तक़य्या करने की परिस्तिथियां भी बयान की गई हैं जैसे जान का ख़तरा, अपनी कमाई के लुटने का ख़तरा, इस्लामी वैल्यूज़ की नाबूदी का ख़तरा वग़ैरह...  इन हालात में इंसान तक़य्या पर अमल करते हुए इन ख़तरों से ख़ुद को बचा सकता है।

 रिवायत में है कि हमरान ने इमाम बाक़िर अ.स. की इस हदीस को सुन कर आपसे सवाल किया कि आपका इमाम अली अ.स. और इमाम हसन अ.स. और इमाम हुसैन अ.स. के बारे में क्या कहना है? इमाम अ.स. ने फ़रमाया ऐ हमरान, अल्लाह ने उन लोगों के लिए उसी तरह ही शहादत लिखी थी और अल्लाह ने पैग़म्बर स.अ. द्वारा उन सभी घटनाओं का इल्म इन पाक हस्तियों तक पहुंचा दिया था इसलिए वह जानते हुए उन तमाम घटनाओं पर सब्र के साथ उसी राह में डटे हुए थे क्योंकि अल्लाह की यही मर्ज़ी थी। (उसूले काफ़ी, जिल्द 2, पेज 30)

 इस्लामी हाकिमों को उनकी ज़िम्मेदारी बताना

 इमाम अ.स. की यही कोशिश थी कि वह इस्लामी हाकिमों को उनकी ज़िम्मेदारी याद दिलाएं, और आप उनके ग़लत फ़ैसले और उनके ज़ुल्म पर उनकी आलोचना भी करते थे और उनको याद दिलाते रहते थे कि उन्होंने ख़िलाफ़त और हुकूमत को अहलेबैत अ.स. से छीना है, जैसे आपने फ़रमाया पांच चीज़ों पर इस्लाम की बुनियाद रखी गई है, नमाज़, ज़कात, रोज़ा, हज और विलायत, ज़ोरारह ने पूछा इनमें से कौन बेहतर है? इमाम अ.स. ने फ़रमाया विलायत सबसे बेहतर है क्योंकि इमाम ही वह है जो इन चारों की ओर लोगों की हिदायत करेगा। (उसूले काफ़ी, जिल्द 2, पेज 18)

ज़ालिम हुकूमत के सहयोग से रोकना

इमाम अ.स. हमेशा मोमेनीन को ज़ालिम हुकूमत के हर तरह के सहयोग से रोकते, और अपने इस पैग़ाम को हर कुछ समय पर उम्मत तक पहुंचाते, अक़बा इब्ने बशीर असदी का बयान है कि मैंने इमाम बाक़िर अ.स. से कहा कि मैं अपनी क़ौम में से सबसे अच्छे ख़ानदान से हूं, मेरी क़ौम के मामलों को हल करने वाला अब इस दुनिया में नहीं रहा और क़ौम वालों ने अब मुझे उसकी जगह क़ौम के मामलों की देखभाल का ज़िम्मेदार बनाने का इरादा किया है इस बारे में आपका क्या विचार है?

इमाम अ.स. ने फ़रमाया अगर जन्नत में जाना पसंद नहीं तो जाओ क़ौम के मामलों के ज़िम्मेदार बन जाओ, क्योंकि कभी कभी ज़ालिम हाकिम मुसलमानों पर हुकूमत ही इसी लिए करता है ताकि उनका ख़ून बहा सके, तुम हुकूमत के एक छोटे पद को ही स्वीकार करने की बात कर रहे हो लेकिन फिर भी उन्हीं ज़ालिम हाकिमों के जुर्म और अपराध में शामिल रहोगे, ऐसा तो हो सकता है उनकी हुकूमत से तुमको थोड़ा सा भी फ़ायदा न मिले लेकिन उनकी जुर्म की दुनिया के हिस्सेदार ज़रूर कहलाओगे, तभी वहीं बैठे एक शख़्स ने सवाल किया कि मैं हज्जाज के दौर से अब तक (किसी इलाक़े का) हाकिम रहा हूं क्या मेरे लिए तौबा का कोई रास्ता है? इमाम अ.स. उसके सवाल को सुन कर चुप हो गए उसने अपना सवाल फिर दोहराया, इमाम अ.स. ने फ़रमाया जिस जिस का हक़ छीना गया है (चाहे ज़ुल्म किया हो चाहे माल लूटा हो चाहे किसी और तरह से हक़ छीना गया हो) उन सब को उनका हक़ वापस लौटा कर ही तौबा क़ुबूल हो सकती है। (बिहारुल अनवार, जिल्द 75, पेज 377)

इमाम अ.स. के शियों में से अब्दुल ग़फ़्फ़ार इब्ने क़ासिम नाम के एक शख़्स का बयान है कि मैंने इमाम बाक़िर अ.स. से कहा मेरे हाकिम से क़रीब होने और उसके दरबार में आने जाने के बारे में आपका क्या कहना है? इमाम अ.स. ने फरमाया मेरी नज़र में सही नहीं है, मैंने कहा कभी शाम जाना होता है तो इब्राहीम इब्ने वलीद के पास भी चला जाता हूं? इमाम अ.स. ने फ़रमाया ऐ अब्दुल ग़फ़्फ़ार तुम्हारा हाकिमों के साथ उठने बैठने और उनके दरबार में आने जाने से तीन नुक़सान हैं, पहला यह कि तुम्हारे दिल में दुनिया की मोबब्बत बढ़ेगी दूसरा यह कि मौत को भूल जाओगे और तीसरा यह कि अल्लाह ने जो तुम्हारे मुक़द्दर में रखा है उससे नाराज़ रहोगे।

अब्दुल ग़फ़्फ़ार कहते हैं मैंने कहा मेरा वहां जाने का मक़सद केवल व्यापार करना रहता है, इमाम अ.स. ने फ़रमाया ऐ अल्लाह के बंदे मैं दुनिया से पूरी तरह मुंह मोड़ लेने के लिए नहीं कह रहा बल्कि मेरे कहने का मतलब यह है कि हराम कामों और गुनाहों से बचो, दुनिया की चकाचौंध से मुंह मोड़ लेना फ़ज़ीलत है लेकिन गुनाह को छोड़ना वाजिब है, और इस समय तुम्हारे लिए फ़ज़ीलत हासिल करने से ज़्यादा गुनाहों से बचना ज़रूरी है। (बिहारुल अनवार, जिल्द 75, पेज 377)

इसी तरह जब लोग मदीने के नए हाकिम के पास मुबारकबाद के लिए जा रहे थे इमाम अ.स. ने फ़रमाया मदीने के नए हाकिम का घर जहन्नम के दरवाज़ों में से एक दरवाज़ा है। (उसूल काफ़ी, जिल्द 5, पेज 105)

खुलेआम विरोध करना

 

इमाम बाक़िर अ.स. ने एक ओर से ज़ालिम हुकूमत के विरुध्द हज़रत ज़ैद और हज़रत मुख़्तार जैसों के आवाज़ उठाने का समर्थन किया दूसरी ओर आपने ख़ुद जब भी सही समय देखा ज़ालिम हुकूमत का विरोध कर उनकी आलोचना की, आप फ़रमाते थे कि जो भी किसी ज़ालिम और पापी हाकिम के पास जा कर उसको तक़वा की ओर दावत देगा और उसके नेक रास्ते पर चलने की नसीहत करेगा उसको सारे इंसानों और जिन्नातों के बराबर सवाब मिलेगा। (बिहारुल अनवार, जिल्द 75, पेज 375, वसाएलुश शिया, जिल्द 11, पेज 406)

इसी तरह आपने सभी ज़ालिम हाकिमों की हुकूमत को हराम बताते हुए उनके ख़िलाफ़ विरोध करने को सही ठहराया था। (उसूले काफ़ी, जिल्द 1, पेज 184)

इराक़ के पूर्व प्रधानमंत्री और कानून राज्य गठबंधन के प्रमुख ने कहा,हम विशेष रूप से हश्शुद शआबी को भंग करने के बारे में किसी भी पक्ष की बात को स्वीकार नहीं करेंगे क्योंकि यह एक आधिकारिक संस्था है और सशस्त्र बलों के कमांडर इन चीफ के साथ जुड़ी हुई है हथियारों पर नियंत्रण और उन्हें सरकार के अधीन रखना आवश्यक है।

,एक रिपोर्ट के अनुसार ,इराक़ के पूर्व प्रधानमंत्री और कानून राज्य गठबंधन के प्रमुख ने कहा कि संसद की छुट्टियों के बाद चुनावी कानून में सुधार पर चर्चा की जाएगी उन्होंने कहा,राजनीतिक प्रक्रिया में सद्र आंदोलन की भागीदारी आवश्यक है।

गठबंधन बनाने को लेकर हमारे पास कोई लाल रेखा नहीं है, लेकिन अब तक कोई गठबंधन नहीं बना है और समन्वय फ्रेमवर्क ने आगामी चुनावों में एकल सूची के रूप में भाग लेने पर सहमति नहीं बनाई है।

शफ़क़ना और इराक की आधिकारिक समाचार एजेंसी के अनुसार अलमालिकी ने कहा कि बगदाद सीरिया के विभाजन में कोई मदद नहीं करेगा। उन्होंने कहा,सीरिया में जो कुछ हुआ, वह अप्रत्याशित नहीं था बल्कि इसकी पहले से तैयारी की गई थी।

उन्होंने कहा,सीरिया में असद सरकार के पतन के बाद इज़रायली शासन ने दमिश्क़ तक बढ़त हासिल की लेबनान की नाकाबंदी कर दी गई और फिलिस्तीन के मुद्दे को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है तुर्की भी आगे बढ़ेगा। हम उम्मीद करते हैं कि बदलावों की यह आंधी संयुक्त अरब अमीरात, मिस्र और सऊदी अरब तक पहुंचेगी।

इराक़ के पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा,राष्ट्रीय एकता और राजनीतिक ताकतों की समझदारी राजनीतिक प्रक्रिया को बनाए रखने की मजबूत दीवार होगी इस बीच प्रतिबंधित ‘बाथ पार्टी’ फितना और साजिश फैलाने की कोशिश कर रही है। उन्हें समाज और सुरक्षा एजेंसियों द्वारा कड़ी निगरानी में रखा जाना चाहिए।

कानून राज्य गठबंधन के प्रमुख ने कहा,मैं 7 अक्टूबर की घटना में साजिश होने की संभावना को खारिज करता हूं। इस्राइली शासन को अपने इतिहास में पहली बार अपमान का सामना करना पड़ा है।

अंत में अल मालिकी ने कहा,हम विशेष रूप से हश्सुद अलशाबी को भंग करने के बारे में किसी भी पक्ष की बात को स्वीकार नहीं करेंगे क्योंकि यह एक आधिकारिक संस्था है और सशस्त्र बलों के कमांडर-इन-चीफ के साथ जुड़ी हुई है। हथियारों पर नियंत्रण और उन्हें सरकार के अधीन रखना आवश्यक है।

गुरुवार, 02 जनवरी 2025 06:55

शहीद जनरल कासिम सुलेमानी

शहीद जनरल कासिम सुलेमानी शहादत के इस सफर में अकेले नहीं थे और उनके साथ ईरान के सबसे करीबी लोगों में से एक अबू महदी अल-मुहंदिस भी शहीद हुए थे।

शहादत के इस सफर में शहीद जनरल कासिम सुलेमानी अकेले नहीं थे और उनके साथ ईरान के सबसे करीबी लोगों में से एक अबू महदी अल-मुहंदिस भी शहीद हुए थे। अबू महदी, जिसने इराक में बाअसी शासन के खिलाफ युद्ध के बाद से ईरान का समर्थन कर रहे थे, उन्होने हाल के वर्षों में आईएसआईएस के खिलाफ लड़ाई में कासिम सुलेमानी का पक्ष लिया था।