رضوی

رضوی

शिया उलेमा काउंसिल ऑस्ट्रेलिया के सदर और इमाम जुमा मेलबर्न हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मौलाना सय्यद अबू अल-क़ासिम रिज़वी ने मलाइशिया की मार्कज़ी व कदीम तरीन इमाम बारगाह बाब अल-हिदायत में अय्याम-ए-अज़ा-ए-फातिमिया की मजलिसों से खिताब करते हुए कहा कि जनाब फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की सीरत दुनिया की तमाम खवातीन के लिए बेहतरीन नमूना-ए-अमल है।

मलाइशिया की ऐतिहासिक इमाम बारगाह बाब अल-हिदायत में अय्याम-ए-अज़ा-ए-फातिमिया की मजलिसें जारी हैं, जिनमें हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मौलाना सय्यद अबू अल-क़ासिम रिज़वी, सदर शिया उलेमा काउंसिल ऑस्ट्रेलिया और इमाम जुमा मेलबर्न "फातिमा की जिंदगी: दुनिया की तमाम महिलाओं के लिए नमूना-ए-अमल" के शीर्षक से संबोधित कर रहे हैं।

मौलाना अबू अल-क़ासिम रिज़वी ने अपने भाषण में ज़ोर देते हुए कहा कि "जनाब फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की सीरत पर बातचीत करना काफी नहीं है, बल्कि हमें उनकी तालीमात पर अमल करके अपनी दुनिया को जन्नत बनाना चाहिए।"

उन्होंने अफ़सोस का इज़हार करते हुए कहा कि "आज रिश्तों का एहतराम खत्म हो रहा है, तलाकें आम हो गई हैं, हुक़ूक़ पामाल किए जा रहे हैं, फिर भी हम खुद को फातिमी समाज कहते हैं।"

मौलाना ने वज़ाहत की कि "फातिमी समाज वही है जो दीन्दार और जिम्मेदार हो, जहां किसी का हक न पामाल हो। हम फदक की बात करते हैं मगर अपनी बहनों और बेटियों को उनके हकूक़ नहीं देते, ये रवैया फातिमी तर्ज़-ए-जिंदगी के खिलाफ है।"

उन्होंने आखिर में कहा कि "जनाब फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा पहली शहीदा-ए-राह-ए-विलायत हैं, जिन्होंने अपने अमल और इस्तेक़ामत के ज़रिए मुनाफिक़ों को बेनकाब किया और विलायत के दिफ़ा की लाजवाल मिसाल क़ायम की।"

 

इस्लामी गणतंत्र ईरान की राष्ट्रीय सभा के अध्यक्ष डॉक्टर बाक़िर क़ालीबाफ़ इन दिनों पाकिस्तान की आधिकारिक यात्रा पर हैं।

पाकिस्तान की राष्ट्रीय सभा के अध्यक्ष अयाज़ सादिक़ ने ईरानी संसद के अध्यक्ष मोहम्मद बाक़िर क़ालीबाफ़ से मुलाकात के दौरान ईरान की मिसाइल रक्षा प्रणाली और सैन्य क्षमताओं की सराहना करते हुए कहा कि ईरान ने 'आयरन डोम' की कहानी का अंत कर दिया है, और युद्ध के अंतिम दिन ईरान ने जो कुछ किया, वह इज़राइल के लिए विनाशकारी साबित हुआ।

एक रिपोर्ट के अनुसार, ईरानी संसद के अध्यक्ष मोहम्मद बाक़िर क़ालीबाफ़ आधिकारिक यात्रा पर पाकिस्तान में हैं।

ईरानी संसद के अध्यक्ष की इस यात्रा में पाकिस्तान की राष्ट्रीय सभा और सीनेट के अध्यक्षों और सदस्यों, प्रधानमंत्री मोहम्मद शहबाज शरीफ़ सहित उच्च-स्तरीय राजनीतिक नेताओं के साथ बातचीत शामिल है।

प्रतिनिधिमंडल में फ़दाहुसैन मालिकी, मोहम्मद नूर दहानी, रहमदल बामरी, मेहरदाद गूदरज़वंद और फ़ज़लुल्लाह रंजबर भी मोहम्मद बाक़ेर क़ालीबाफ़ के साथ हैं।

एमडब्ल्यूएम कराची डिवीजन के अध्यक्ष मौलाना सादिक जाफरी ने सूडान में जारी गृहयुद्ध, मानवीय त्रासदी और मजलूम लोगों पर हो रहे भीषण अत्याचारों पर गहरी चिंता और अफसोस जताया है। उन्होंने कहा कि पिछले दो साल से सूडान के विभिन्न शहरों, विशेष रूप से दारफुर और अल-फाशिर में सैन्य गुटों के बीच जारी खूनी संघर्षों ने पूरे देश को तबाही के कगार पर पहुँचा दिया है।

मौलाना सादिक जाफरी ने कहा कि हज़ारों निर्दोष नागरिक, महिलाएं और बच्चे मारे गए हैं या विस्थापित हुए हैं; लाखों लोग भूख, प्यास और बिना चिकित्सा सुविधाओं के शिविरों में जीवन बिताने को मजबूर हैं। अस्पताल,इबादत स्थल और आवासीय क्षेत्र निशाना बनाए जा रहे हैं।

उन्होंने कहा कि यह स्थिति स्पष्ट रूप से मानवाधिकारों, अंतरराष्ट्रीय कानूनों और इस्लामी मूल्यों की स्पष्ट उल्लंघन है।

मौलाना सादिक जाफरी ने कहा कि मजलिस-ए-वहदत-ए-मुस्लिमीन वैश्विक संस्थाओं, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र, ओआईसी, अफ्रीकी यूनियन और मानवाधिकार संगठनों से मांग करती है कि वे तुरंत युद्धविराम के लिए दबाव डालें और मानवीय आधार पर सहायता के रास्ते खोलें।

उनका कहना था कि निर्दोष नागरिकों के नरसंहार और युद्ध अपराधों की पारदर्शी जांच की जाए, प्रभावित क्षेत्रों में संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में शांति मिशन तैनात किया जाए, ताकि नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके, वैश्विक विवेक को जगाया जाए, ताकि दुनिया सूडान के मजलूम लोगों के साथ खड़ी हो, न कि चुप दर्शक बनी रहे।

उन्होंने कहा कि मजलिस-ए-वहदत-ए-मुस्लिमीन इस बात पर विश्वास रखती है कि दुनिया के किसी भी क्षेत्र में अत्याचार और आक्रामकता के खिलाफ आवाज उठाना ईमान की मांग है, सूडान के मजलूम लोग आज मुस्लिम उम्मा की सामूहिक समर्थन के मुंतज़िर हैं।

हम हर स्तर पर उनकी आवाज बनने और मानवीय सहानुभूति के आधार पर मदद और एकजुटता जारी रखने के संकल्प को दोहराते हैं। हम सूडान के मजलूम लोगों के साथ हैं, इंशाअल्लाह जुल्म के महल एक दिन जरूर लरजेंगे और न्याय की सुबह जरूर होगी।

अमेरिकी दबाव के तहत गूगल ने इज़राइली युद्ध अपराधों से संबंधित 700 से अधिक वीडियो इंटरनेट से हटा दीं, जिनमें पत्रकार शिरीन अबू अक़िला की हत्या की वीडियो भी शामिल थीं।

अमेरिकी टेक कंपनी गूगल पर आरोप लगाया गया है कि उसने फिलिस्तीन के खिलाफ इज़राइली युद्ध अपराधों की दस्तावेजी वीडियो इंटरनेट से हटा दी हैं।

मीडिया स्रोतों के अनुसार, मिडिल ईस्ट स्पेक्टेटर ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में खुलासा किया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की सरकार के दबाव पर गूगल ने अक्टूबर की शुरुआत से अब तक 700 से अधिक वीडियो हटाई हैं, जिनमें इज़राइली सेना के अपराधों को स्पष्ट रूप से दिखाया गया था।

रिपोर्ट में बताया गया है कि इन हटाई गई वीडियो में अलजजीरा की प्रसिद्ध फिलिस्तीनी मूल की अमेरिकी पत्रकार शिरीन अबू अक़िला की हत्या की फुटेज भी शामिल है। अमेरिकी जांच एजेंसियां इस बात को मानती हैं कि उन्हें इज़राइली सेना ने जानबूझकर निशाना बनाया था।

गूगल ने इज़राइली प्रचार को बढ़ावा देने के लिए 45 मिलियन डॉलर का समझौता भी किया, जिसके तहत गाजा में अकाल के इनकार और ईरान के खिलाफ युद्ध प्रचार से संबंधित विज्ञापनों को प्रमोट किया गया।

रिपोर्ट के अनुसार, गूगल के आंतरिक ईमेल्स से यह बात भी सामने आई है कि कंपनी ने बार-बार इस बात से इनकार किया कि इज़राइली विज्ञापन उनकी नीतियों का उल्लंघन करते हैं, हालांकि इन विज्ञापनों में गाजा की मानवीय तबाही को झुठलाया जा रहा था।

रिपोर्ट के अंत में कहा गया है कि यह कदम अमेरिकी टेक कंपनियों की ओर से इज़राइल की लगातार समर्थन और फिलिस्तीनी लोगों के खिलाफ जारी अत्याचारों पर पर्दा डालने की एक और कोशिश है।

इज़राईली सेना ने गाज़ा के पूर्वी क्षेत्रों पर लगातार हमले करते हुए कई फिलिस्तीनी घरों को तबाह कर दिया, जबकि खान यूनिस और अन-नसीरात भी भारी गोलाबारी की चपेट में आए।

इजरायली कब्जे वाली सेना ने गाजा पट्टी पर हवाई और तोपखाने से हमले जारी रखते हुए पूर्वी गाजा में फिलिस्तीनी नागरिकों के घरों को पूरी तरह से नष्ट कर दिया है।

समाचार एजेंसी शहाब के अनुसार, कब्जाधारी इजरायली तोपखाने ने पिछली रात और आज सुबह पूर्वी खान यूनिस के इलाकों को निशाना बनाया, जबकि इन हमलों के साथ-साथ हवाई बमबारी भी की गई।

जायोनी सैन्य इकाइयों ने पूर्वी गाजा शहर में फिलिस्तीनी घरों को विस्फोटों से उड़ा दिया और तबाही फैलाई, जबकि जायोनी लड़ाकू वाहनों ने अन-नुसेरात के मध्य इलाके की ओर भी फायरिंग की।

इसी तरह, गाजा शहर के अत-तुफ़ाह इलाके के पूर्वी हिस्से में भी कब्जाधारी इजरायली सेना ने कई फिलिस्तीनी घरों को गिरा दिया, जिससे नागरिकों में भारी डर और दहशत फैल गई है।

 ईरान के ख़ुरासान रज़वी प्रांत में वली-ए-फ़क़ीह के प्रतिनिधि आयतुल्लाह सय्यद अहमद अल्मुलहुदा ने कहा कि हज़रत फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की सीरत, इस्तिकबार के मुक़ाबले में मोमिनाना मज़ाहमत का वाज़ेह और अमली नमूना है, और उम्मत-ए-इस्लामी को अपनी मज़ाहिती हिकमत-ए-अमली इसी मंतिक-ए-जिहाद से अख़ज़ करनी चाहिए।

आयतुल्लाह सय्यद अहमद अल्मुलहुदा ने मशहद-ए-मुक़द्दस में वाक़े जामिया उलूम-ए-इस्लामी रज़वी में अय्याम-ए-फातिमिया की अवसर पर आयोजित मजलिस-ए-अज़ा में ख़िताब करते हुए कहा कि हज़रत फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की ज़ात तमाम कमालात व फज़ायल का मज़हर है। रसूल-ए-अकरम सल्लल्लाहो अलैहि वा आलेहि वसल्लम ने फ़रमाया कि अगर तमाम नेकियों को एक शख्सियत में समो दिया जाए तो वो फातिमा (सलामुल्लाह अलैहा) होंगी।

उन्होंने कहा कि हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा न सिर्फ़ फज़ीलत का मज़हर हैं बल्कि तमाम मोमिनीन ख़ुसूसन मुहिब्बान-ए-अहले बैत अलैहिमुस्सलाम के लिए तर्बियत और रहनुमाई का सरचश्मा हैं।

आयतुल्लाह अल्मुलहुदा ने वाज़ेह किया कि हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की जिद्दोजहद का मकसद सिर्फ़ फदक का मुतालिबा नहीं था बल्कि उनका अस्ल हद्फ़ नज़ाम-ए-इमामत को तहरीफ़ से बचाना और क़ियादत को वही के रास्ते पर बाक़ी रखना था। उनके मुताबिक अगर फातिमी क़ियाम का मुहर्रिक सिर्फ़ मादी मफ़ाद होता तो वो ख़ुत्बा-ए-फदक और जानिसाराना मुक़ावमत क़ाबिल-ए-फ़हम न होती।

उन्होंने मज़ीद कहा कि फदक अहले बैत अलैहिमुस्सलाम के लिए एक समाजी और ख़ैराती हैसियत रखता था लेकिन सैय्यदा की जिद्दोजहद का महवर दिफ़ा-ए-विलायत था। उनके नज़दीक इमामत दरअसल वही के तसल्सुल का नज़ाम है, और उम्मत की क़ियादत को अपनी क़ानूनी हैसियत हमेशा इसी वही के रास्ते से हासिल होती है।

आयतुल्लाह अल्मुलहुदा ने आखिर में कहा कि हज़रत फातिमा सलामुल्लाह अलैहा ने अमली तौर पर इस्तेक़ामत दिखाई, अपने मौक़िफ पर डटी रहीं और आख़िरकार शहादत तक सब्र व ससबात का मज़हर किया। यही सिद्दीका ताहिरा की सीरत है जो उम्मत को हर ताग़ूती क़ुव्वत के मुक़ाबले में जिहाद व मज़ाहमत का दरस देती है।

आयतुल्लाह हसनजादे अमोली (र) ने अल्लामा तबातबाई की असाधारण नैतिक ऊंचाई का वर्णन किया और कहा कि उन्होंने कभी भी व्यक्तिगत लाभ के लिए दुआ नहीं की।

आयतुल्लाह हसन ज़ादा आमोली (र) अपनी किताब हज़ार व यक नुक़्ता में अल्लामा तबातबाई (र) के एक वाकये का ज़िक्र करते हुए लिखते हैं: "मैंने इमामत के विषय पर एक रिसाला लिखा और उसे अपने उस्ताद अल्लामा तबातबाई की खिदमत में पेश किया। वो कुछ अरसे तक उस रिसाले को अपने पास रखे रहे और पूरा अध्ययन किया।"

आयतुल्लाह हसन ज़ादा आमिली मजीद लिखते हैं: "इस रिसाले में मैंने अपने लिए एक दुआ लिखी थी: 'ख़ुदाया! मुझे ख़िताब-ए-मुहम्मदी (स.) के फहम की सआदत अता फ़रमा।'

जब अल्लामा तबातबाई ने रिसाला वापस किया तो फ़रमाया: 'आका! जब से मैंने खुद को पहचाना है, मैंने कभी अपनी ज़ात के लिए दुआ नहीं की, मेरी तमाम दुआएं हमेशा उम्मत के लिए आम रही हैं।'"

आयतुल्लाह हसन ज़ादा आमोली के अनुसार, यह अख़लाक़ी नसीहत उनके दिल पर गहरा असर छोड़ गई और उनके लिए एक अज़ीम दर्स-ए-अख़लाक़ बन गई।

स्रोत: हज़ार व यक नुक़्ता, भाग 2, पेज 621, अज़ आयतुल्लाह हसन ज़ादा आमेली (र)

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन हुसैन रफीई ने कहा: विलायत-ए-फक़ीह किसी एक गिरोह से नहीं जुड़ी है बल्कि पूरी इंसानियत के लिए भलाई और सुधार का स्रोत है। हमें कोशिश करनी चाहिए कि हम सुप्रीम लीडर की हिदायतों के अनुयायी रहें और उनके रास्ते के सच्चे सिपाही बनें।

हौज़ा इल्मिया में तबलीगी व सांकृतिक मामलों के प्रमुख हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन हुसैन रफीई ने मदरसा मासूमिया क़ुम में आयोजित तुलेबा और हौज़ा इल्मिया के फारिग़-उत्तहसील छात्रो से खिताब करते हुए कहा: आज हम एक अज़ीम तहज़ीबी जंग के मरहले में हैं, जिसकी एक जानिब मग़रिबी तहज़ीब खड़ी है और दूसरी जानिब इस्लामी तहज़ीब। दोनों तहज़ीबें अपने तईं एक-दूसरे के मुकाबले में मआना रखती हैं।

उन्होंने हज़रत फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की अज़मत और रूहानी मरकज़ियत की तरफ़ इशारा करते हुए कहा: इमाम ज़माना अजलल्लाहु तआला फरजहुश्शरीफ़ फर्माते हैं: "ली फी बिन्ति रसूलिल्लाह उस्वतुन हसना" यानी "हज़रत फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा मेरे लिए उस्वा-ए-हसना हैं"। मालूम हुआ कि दुनिया की अस्ल महवरियत सय्यदा सलामुल्लाह अलैहा की है क्योंकि उनकी रज़ामंदी अल्लाह की रज़ामंदी और उनका ग़ज़ब खुदा के ग़ज़ब के बराबर है।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन रफीई ने सुप्रीम लीडर की सेहत व तुल-उम्र के लिए दुआ करते हुए कहा: विलायत-ए-फ़क़ीह किसी एक गिरोह से मुताल्लिक़ नहीं, बल्कि पूरी बशरीयत के लिए भलाई व सलाई का सरचश्मा है। हमारी कोशिश होनी चाहिए कि हम रहबर मुअज़्ज़म की हिदायतों के पैरवी रहें और उनके रास्ते के हकीकी सिपाही बनें।

उन्होंने कहा: हकीकत यह है कि हम अब भी जंग में हैं। जंग का लफ़्ज़ शऊरी ज़िम्मेदारियों के साथ आता है। जब जंग की बात होती है तो यह भी तय करना ज़रूरी होता है कि दुश्मन किस मैदान को निशाना बना रहा है और हमारा दिफाई व फिक्री सफ़ बंदी का निजाम क्या है? लिहाज़ा उसके लिए हमें हर वक्त तैयार रहना चाहिए।

हमारे मौजूदा काम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हमारे जीवनशैली, धार्मिक और सामाजिक समस्याओं के क्षेत्र में ऐसे बेहतरीन सहायक बनाना है जो इस्लामी सिद्धांतों पर आधारित हों और हमारे लक्षित लोगों को सही दिशा में मार्गदर्शन करें, क्योंकि पारंपरिक तरीके से संदेश देने का तरीका धीरे-धीरे खत्म हो रहा है।

नूर इस्लामिक कंप्यूटर रिसर्च सेंटर के प्रमुख हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन बहरामी ने कहा कि आधुनिक तकनीक, खासकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) ने धार्मिक प्रचार के तरीकों में बुनियादी बदलाव ला दिया है। उन्होंने बताया कि आज लोग अपने सवालों के जवाब सीधे डिजिटल माध्यमों और चैट बॉट्स से प्राप्त करते हैं और अक्सर उन्हीं जवाबों पर निर्भर रहते हैं। ऐसे में हौज़ा ए इल्मिया की जिम्मेदारी है कि वह इस माहौल को समझे और इस क्षेत्र में प्रभावी मौजूदगी बनाए।

संरक्षक ने यह भी कहा कि नए दौर के धर्म प्रचारक को डिजिटल टूल्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) से लैस होना चाहिए ताकि वह मजबूत और ठोस तरीके से अपना संदेश पहुंचा सके, बशर्ते उसे अपने श्रोताओं की भाषा, सोच और मानसिकता की समझ हो।

उन्होंने यह भी कहा कि आधुनिक युग में धार्मिक प्रचार के लिए आधुनिक तकनीक विशेषकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का उपयोग अनिवार्य है क्योंकि अब ज्ञान का बड़ा हिस्सा पारंपरिक संस्थानों से नहीं बल्कि डिजिटल प्लेटफार्मों से आ रहा है। इसलिए, यह जरूरी है कि धर्म प्रचारक उन जगहों पर मौजूद हों जहां आज का श्रोता रहता, सोचता और जानकारी प्राप्त करता है। इसी संदर्भ में, इस्लामी आधारों पर स्मार्ट धार्मिक सहायक विकसित करना आवश्यक है।

उन्होंने बताया कि इस दिशा में कार्य आरंभ हो चुका है। पहले से एक हदीस चैट बूट सक्रिय है जो सवालों के जवाब में धार्मिक परंपराओं की रोशनी में मदद करता है, और हाल ही में एक कुरआनी चैट बूट भी लॉन्च किया गया है जो कुरआन की व्याख्या और ज्ञान के अनुसार मार्गदर्शन करता है।

नूर इस्लामिक कंप्यूटर रिसर्च सेंटर का विजन है कि जल्द ही यह एक समग्र इस्लामी ज्ञान का श्रेष्ठ सहायक बनकर उभरे।

हुज्‍जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन हुसैन अन्सारियान ने कहा है कि हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) का मक़ाम बहुत बुलंद और अज़मत वाला है, जो क़यामत के दिन खुदा की इजाज़त से अपने शियाओं की शफ़ाअत करेंगी।

क़ुरआन और अख़लाक़ के प्रसिद्ध अध्यापक, हुज्‍जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन हुसैन अन्सारियान ने कहा है कि हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) का मक़ाम बहुत बुलंद और अज़मत वाला है, जो क़यामत के दिन खुदा की इजाज़त से अपने शियाओं की शफ़ाअत करेंगी।

उन्होंने हुसैनियह आयतुल्लाह अलवी में ख़िताब करते हुए कहा कि खुदा के तीन हज़ार नामों में से एक हज़ार नाम बंदगानों के लिए ज़ाहिर किए गए हैं, और ये तमाम नाम दरअसल उसी एक ज़ात की तजल्ली हैं। अगर कोई सिफ़ात को ज़ात से अलग समझे, तो वह हक़ीक़तन शिर्क का मुर्तकिब होता है।

उस्तादे अख़लाक़ ने कहा कि नबी ए अक़रम (स) के अनुसार उन हज़ार नामों में से 99 “अस्मा-ए-हुस्ना” हैं, जो अहले ईमान में भी झलक सकते हैं। इमाम बाक़िर (अ) और अमीरुल मोमेनीन (अ) दोनों ने फ़रमाया कि खुदा की सबसे बड़ी निशानी हम हैं, और पैग़म्बर ए अक़रम (स) ने फ़रमाया: “मैं और अली एक ही दरख़्त के दो तने हैं।” विलायत-ए-अली के बिना नबूवत का तसव्वुर एक सुखा दरख़्त है।

उन्होंने तारीख़ में दीन के मफ़हूम को बदलने वालों पर तनक़ीद करते हुए कहा कि बनी उमय्या और बनी अब्बास ने लोगों के लिए खुदा का झूठा तसव्वुर पेश किया, जबकि अहले बैत (अ) का खुदा वही है जिसे क़ुरआन ने पहचानवाया है बे-मिस्ल और बे-नज़ीर खुदा।

हुज्‍जतुल इस्लाम अन्सारियान ने बयान किया कि नामों के निर्धारण में भी खुदा का ख़ास इख़्तियार है, और हज़रत फ़ातिमा (स) के नाम के बारे में खुद खुदा ने रसूल (स) को हुक्म दिया कि अपनी बेटी का नाम “फ़ातिमा” रखें। इस नाम का मतलब है “अलग करने वाली”, यानी वो बुराइयों और आलूदगियों से पूरी तरह पाक और मुनज़्ज़ह हैं। आयत-ए-ततहीर इस हक़ीक़त की पुष्ठि करती है।

उन्होंने इमाम बाक़िर (अ) से नक़्ल किया कि जब हज़रत ख़दीजा (स) हज़रत फ़ातिमा (स) को दूध से अलग करना चाहती थीं, तो खुदा ने उनके वजूद को इल्म और मा’रिफ़त से भर दिया, यहाँ तक कि दो साल की उम्र में ही उन्हें दूध की ज़रूरत न रही। बाद में उनके दो ख़ुत्बे ऐसे हैं जिन पर सदियों से उलमा गुफ़्तगू कर रहे हैं।

आख़िर में उन्होंने कहा कि आइम्मा (अ) के अनुसार, रोज़े क़यामत हज़रत फ़ातिमा (स) खड़ी होंगी और शियाने अली (अ) को जहन्नम से नजात देती हुई फ़रमायेंगी: “ये मेरे शिया हैं, ये आग का ईंधन नहीं।” यह बात साबित करती है कि हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) मज़हर-ए-इस्मत-ए-मुतलक और निजात देने वाली हस्ती हैं।