رضوی
गहवारे का लशकर; बच्चों की तरबीयत और इमाम खुमैनी का बसीरत अफ़रोज़ पैग़ाम
हम इस घटना से बच्चों को शिक्षित करने के महत्व का अंदाज़ा लगा सकते हैं जब इमाम खुमैनी से पूछा गया: आपके पास न तो धन है, न ही शक्ति, न ही कोई सरकार, न ही कोई सेना, तो आप एक मजबूत सरकार के खिलाफ कैसे उठेंगे? इमाम खुमैनी ने जवाब दिया: मेरी सेना अभी भी गहवारे में है।
“बच्चों को पढ़ाने की अहमियत का अंदाज़ा हम इस घटना से लगा सकते हैं जब इमाम खुमैनी से पूछा गया: ‘तुम्हारे पास न तो पैसा है, न ताकत, न सरकार, न सेना, तो तुम एक मज़बूत सरकार के खिलाफ़ कैसे खड़े होगे?’ इमाम खुमैनी ने जवाब दिया: ‘मेरी सेना अभी भी पालने में है।’
बेशक, इमाम खुमैनी की यह बात सच साबित हुई; वही बच्चे उन्नीस साल बाद उस समय की सरकार के खिलाफ़ खड़े हुए, उन्हीं नौजवानों ने सेना बनाई और उनमें से कुछ बड़े अफ़सर और कमांडर बने।
इमाम खुमैनी ने खुद शहीद मोहम्मद हुसैन फ़हमीदा के बारे में कहा था: ‘फ़हमीदा उन लोगों की लीडर हैं जो खड़े हैं।’
आज भी दुश्मन हमारे बच्चों से डरता है और नहीं चाहता कि हमारे बच्चे पढ़ें, क्योंकि यही बच्चे कल धर्म का झंडा उठाएंगे।
ग़ज़्ज़ा में सबसे ज़्यादा बच्चों के शहीद होने की मुख्य वजह यह थी कि दुश्मन को इस खतरे का अंदाज़ा हो गया था। गाज़ा के वही बच्चे, जो कुछ साल पहले गोलियों और पत्थरों की बारिश कर रहे थे इज़राइली सेना ने ही ‘अल-अक्सा तूफ़ान’ बनाया था।
इसलिए, इमाम खुमैनी की इस सोच को समझने की ज़रूरत है और हमें उस राज़ को समझना चाहिए जो इमाम खुमैनी को पता था।
जब इमाम खुमैनी से फिर पूछा गया कि वह अकेले क्या कर सकते हैं, तो उन्होंने कहा: ‘माँ, मैं कई बार अकेले दरबार में गया हूँ और सच बताया है।’
अगर इमाम खुमैनी की स्थापना की फ़िलॉसफ़ी को समझा जाए, तो इमाम खुमैनी ने वही काम किया जिसके लिए हज़रत ज़हरा (स) दरबार में गई थीं। यानी ‘इमामत की दिखने वाली सरकार स्थापित करना।’ लेकिन अल्लाह ने सैय्यदा का यह काम इमाम खुमैनी के ज़रिए पूरा किया।
इमाम खुमैनी सैय्यदा को ‘उम्माह की माँ’ मानते थे। वह अक्सर कहते थे कि सैय्यदा के दुनिया में दो तरह के बच्चे हैं: एक नस्ली बच्चा, जो सआदत के रूप में है, और एक रूहानी बच्चा, जो उनके सच्चे मानने वालों के रूप में है।
ऐ फातेमियूं! आपको दुनिया के ज़ुल्म के खिलाफ़ आवाज़ उठानी चाहिए क्योंकि आपकी माँ फातिमा ने भी आवाज़ उठाई थी।
लेखक: अशरफ सिराज गुलतारी
हज़रत फ़ातेमा स.ल. का जीवन हर पहलू कामयाब जिंदगी का राज़ है
हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की सुपुत्री हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के शुभ जन्म दिवस के अवसर पूरे ईरान में कार्यक्रमों का सिलसिला जारी हैं।
20 जमादिउस्सानी सन 1447 हिजरी क़मरी को हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्ला अलैहा का शुभ जन्म दिवस है।वह पूरी दुनिया की महिलाओं के लिए आदर्श हैं।
ईरान में पैग़म्बरे इस्लाम (स.ल.) की सुपुत्री हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के शुभ जन्म दिवस को महिला दिवस और मदर डे के रूप में मनाया जाता है। बुधवार की रात अर्थात कल रात से ही ईरान में हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के शुभ जन्म दिवस से संबन्धित कार्यक्रम आरंभ हो चुके हैं।
बहुत से स्थानों पर मस्जिदों और इमामबाड़ों को सजाया गया है। बहुत से लोग अपने घरों पर उनके जन्म दिवस से संबन्धित कार्यक्रम कर रहे हैं। ईरान के सभी नगरों में हज़रत फ़ातेमा ज़हेरा का शुभ जन्म दिवस मनाया जा रहा है।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की महानता के बारे में कहते हैं कि उनका जीवन हर पहलू से एक मनुष्य के प्रयास, परिपूर्णता और आत्मिक उत्थान से भरा एक जीवन है।वह हमेशा मोर्चों पर और युद्ध के मैदानों में है लेकिन कठिनाइयों और समस्याओं के बावजूद हज़रत फ़ातेमा का घर और उनका जीवन आम लोगों और मुसलमानों की समस्याओं के समाधान के केंद्र की तरह है।
वह पैग़म्बरे इस्लाम की बेटी हैं और इन परिस्थितियों में भी जीवन को बड़े गौरवपूर्ण तरीक़े से आगे बढ़ाती हैं। इमाम हसन, इमाम हुसैन और हज़रत ज़ैनब जैसे बच्चों का प्रशिक्षण करती हैं, अली जैसे पति का ध्यान रखती हैं और पैग़म्बरे इस्लाम जैसे पिता को प्रसन्न रखती हैं।
युद्धों में इस्लाम की विजय का मार्ग खुल जाता है और बड़ी मात्रा में धन आने लगता है लेकिन पैग़म्बर की सुपुत्री सांसारिक आनंदों, ऐश्वर्य और दुनिया की चकाचौंध को तनिक भी अपने जीवन में आने नहीं देतीं। हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा की उपासना एक आदर्श उपासना है।
सैयद अब्दुल मलिक अलहौसी द्वारा तथाकथित जोलानी की कठोर आलोचना
यमन की इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन "अंसारूल्लाह" के प्रमुख ने "तहरीर अल-शाम" द्वारा कब्जाधारी सियोनीस्ट सरकार के साथ संबंध स्थापित करने के प्रयासों की कड़ी भाषा में निंदा करते हुए इसे अमेरिका-परस्ती, पाखंड और मुस्लिम उम्मत के हितों के साथ स्पष्ट विश्वासघात बताया है।
यमन की इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन "अंसारूल्लाह" के प्रमुख सैय्यद अब्दुल मलिक बदरुद्दीन अल-हौसी ने "तहरीर अल-शाम" द्वारा कब्जाधारी सियोनीस्ट सरकार के साथ संबंध स्थापित करने के प्रयासों की कड़ी भाषा में निंदा करते हुए इसे अमेरिका-परस्ती, पाखंड और मुस्लिम उम्मा के हितों से स्पष्ट विचलन बताया है।
अब्दुल मलिक अल-हौसी ने हज़रत फातिमा जहरा (स.अ.) के जन्मदिन और "महिला दिवस" के अवसर पर अपने एक संदेश में कहा कि सीरिया पर कब्जा जमाए बैठे तकफीरी एक ऐसी अपमानजनक और पीछे हटने वाली सोच का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो वाशिंगटन की खुशामद और सियोनीस्ट सरकार के करीब जाने पर आधारित है।
यह लोग इस तथ्य के बावजूद तेल अवीव के करीब जा रहे हैं कि इजरायल लगातार सीरियाई भूमि पर हमले कर रहा है और उसके कुछ हिस्सों पर कब्जा भी किया हुआ है।
उन्होंने सियोनीस्ट सरकार की आक्रामकता को स्पष्ट करते हुए कहा कि इजरायल वैश्विक शक्तियों की गारंटी से तय होने वाले अंतरराष्ट्रीय समझौतों का बार-बार उल्लंघन कर चुका है, जिसकी स्पष्ट मिसालें आज गाजा और लेबनान में जारी हत्याकांड और लूटपाट के रूप में पूरी दुनिया के सामने हैं। ये कार्रवाइयां इजरायल की आपराधिक मानसिकता और विस्तारवादी नीतियों का निर्विवाद सबूत हैं।
सैय्यद अब्दुल मलिक अल-हौसी ने मुस्लिम उम्मा को संबोधित करते हुए जोर दिया कि वह अत्याचारी और घमंडी ताकतों पर निर्भरता के बजाय अपने असली मिशन की ओर लौटे, जिसमें न्याय की स्थापना, मजलूमों की रक्षा और ताकतवर ताकतों के सामने दृढ़ता से खड़ा होना शामिल है।
उम्मा को अपनी बौद्धिक और नैतिक नींव को मजबूत करते हुए सम्मान, प्रतिष्ठा और वैश्विक भूमिका की बहाली के लिए गंभीर कदम उठाने होंगे।
उन्होंने सियोनीस्ट अत्याचारों का विशेष उल्लेख करते हुए कहा कि फिलिस्तीन में हजारों मुस्लिम महिलाएं, जिनमें गर्भवती महिलाएं, नाबालिग लड़कियां, युवतियां और बुजुर्ग महिलाएं शामिल हैं, सियोनीस्ट आक्रामकता का शिकार हो चुकी हैं।उन्होंने इस स्थिति को मानवीय मूल्यों और वैश्विक विवेक के लिए एक कठिन परीक्षा बताया।
हज़रत फातेमा स.अ. का जीवन सत्य और सच्चाई का सर्वोत्तम उदाहरण है
आयतुल्लाह अहमद जन्नती ने कहा कि इस्लाम ने महिला को सर्वोच्च स्थान दिया है, और इमाम ख़ुमैनी (र.ह.) और क्रांति के नेता ने भी अपने भाषणों में महिलाओं की शान और महानता के संबंध में बार बार उल्लेख किया है।
आयतुल्लाह जन्नती ने गार्जियन काउंसिल की बैठक में हज़रत फातिमा ज़हरा (स.अ.) के जन्मदिन के अवसर पर बोलते हुए कहा कि हज़रत ज़हेरा (स.अ.) का संपूर्ण जीवन सत्य, साहस और पवित्रता का अनुपम उदाहरण है।
उन्होंने बताया कि आज कुछ भौतिकवादी विचारधाराएं इस्लाम की पारिवारिक व्यवस्था को कमजोर कर रही हैं और वैश्विक शक्तियां इन्हीं विकृत विचारों को दुनिया भर में फैलाने की कोशिश कर रही हैं।
आयतुल्लाह जन्नती ने कहा कि पैगंबर हज़रत मुहम्मद (स.अ.व.) और इमामों (अ.स.) ने हज़रत ज़हरा (स.अ.) का जिस तरह सम्मान किया, वह इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि इस्लाम महिला को उच्च स्थान देता है।
उन्होंने कहा कि ईरान का संविधान भी इस्लामी शिक्षाओं के आधार पर महिलाओं के लिए सम्मान का पक्षधर है और मजबूत रुख रखता है।
उन्होंने हज़रत ज़हरा (स.अ.) के विशिष्ट गुणों का वर्णन करते हुए कहा कि आप (स.अ.) ईमान, सत्य की रक्षा, दृढ़ता, उत्तम तरीके से सत्य बात पहुंचाने और आशा के साथ संघर्ष करने की जीवंत मिसाल हैं।
आयतुल्लाह जन्नती ने कहा कि इस्लाम ने हमेशा महिला का सम्मान किया है, आज देश में बौद्धिक और विचारशील महिलाओं की संख्या बहुत अधिक है, क्रांति के महान नेता के अनुसार आज ईरान में जितनी शिक्षित, विचारशील और शोधकर्ता महिलाएं मौजूद हैं, उसकी इतिहास में मिसाल नहीं मिलती।
उन्होंने कहा कि भौतिकवादी विचारधारा वाली सभ्यताएं केवल विशेष समूहों के हित को देखती हैं, इसीलिए उनके समाज गंभीर समस्याओं में घिरे रहते हैं, जिनमें सबसे बड़ी समस्या परिवार की नींव का टूट जाना है।
उन्होंने कहा कि वैश्विक साम्राज्यवाद इन्हीं समस्याओं को दुनिया में फैलाना चाहता है और विशेष रूप से महिलाओं के बारे में गलत और विनाशकारी मॉडल थोप रहा है।
…………
इज़रायली बलों का (UNRWA) के कार्यालय पर धावा, संयुक्त राष्ट्र का झंडा हटाया
इज़रायली बलों ने पूर्वी येरुशलम में संयुक्त राष्ट्र की सहायता एजेंसी यूएनआरडब्ल्यूए के मुख्यालय पर छापा मारकर यूएन का झंडा जबरदस्ती हटा दिया और फिर इजराइल का झंडा लगाया।
इज़रायली बलों ने पूर्वी येरुशलम में संयुक्त राष्ट्र की सहायता एजेंसी यूएनआरडब्ल्यूए के मुख्यालय पर छापा मारकर यूएन का झंडा जबरदस्ती हटा दिया इज़राइली सेना ने संयुक्त राष्ट्र के फिलिस्तीन में मानवीय कार्यों में सक्रिय एजेंसी के मुख्य कार्यालय पर छापा मारा, छापे के दौरान इज़रायली बलों ने संपर्क के सभी साधनों को काट दिया ताकि कार्यालय की सीमा में हो रही इस कार्रवाई को दुनिया से छुपाया जा सके। छापे के बाद इज़रायली सेना ने कार्यालय की इमारत से संयुक्त राष्ट्र का झंडा हटा कर इज़रायली ध्वज लहरा दिया।
रायटर्स के अनुसार, सोमवार को इज़रायली अधिकारियों ने संयुक्त राष्ट्र की फिलिस्तीनी शरणार्थी एजेंसी (यूएनआरडब्ल्यूए) के पूर्वी येरुशलम स्थित कार्यालयों में प्रवेश किया और छापे के दौरान इज़रायल का झंडा फहराया। इज़रायली अधिकारियों ने दावा किया कि यह कार्रवाई करों का भुगतान न करने के कारण की गई।
यूएनआरडब्ल्यूए के कमिश्नर जनरल फिलिप लाज़ारिनी ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इस घटना के संबंध में बयान में कहा कि एक यूएन सदस्य देश के रूप में इज़रायल पर जिम्मेदारी है कि वह यूएन के अधिकार क्षेत्र में आने वाले कार्यालय की सुरक्षा सुनिश्चित करे और उसका सम्मान करे।
यह स्पष्ट है कि संयुक्त राष्ट्र की राहत और कार्य एजेंसी पर इज़रायल पक्षपात का आरोप लगाता रहा है। इस एजेंसी ने इस वर्ष की शुरुआत से इस इमारत का उपयोग नहीं किया, क्योंकि इज़रायल ने इसे सभी स्थान खाली करने और अपनी गतिविधियों को रोकने का आदेश दिया हुआ है।
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने इस छापे की कड़ी निंदा की और कहा कि, यह परिसर यूएन की संपत्ति है और इसे किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप से अपवाद प्राप्त है।
मैं इज़रायल से आग्रह करता हूं कि वह तुरंत सभी आवश्यक कदम उठाए ताकि यूएनआरडब्ल्यूए के परिसर की गरिमा को बहाल, सुरक्षित और बनाए रखा जा सके और इन परिसरों से संबंधित किसी भी और कार्रवाई से बचा जाए।यूएनआरडब्ल्यूए के प्रमुख फिलिप ला ज़ारिनी ने एक्स पर लिखा कि इज़रायल की यह कार्रवाई ख़तरनाक हो सकती है।
अमेरिकी लैटिन अमेरिका की ज़मीन पर कब्ज़ा करना चाहते हैंः आयतुल्लाह ख़ामेनई
हज़रत सिद्दीका ताहिरा फ़ातिमा ज़हरा (स) की जन्म जयंती के मौके पर अहलुल बैत (स) के चाहने वालों और शायरों के साथ एक मीटिंग में, इस्लामिक क्रांति के लीडर अयातुल्ला खामेनेई ने हज़रत ज़हरा की खूबियों और फ़ायदों को इंसानी समझ और समझ से परे बताया।
गुरुवार, 11 दिसंबर, 2025 की सुबह इमाम खुमैनी हुसैनिया में हुई इस मीटिंग में, इस्लामिक क्रांति के लीडर ने कहा कि हमें फ़ातिमी बनना चाहिए और हर तरह से हज़रत ज़हरा का अनुसरण करना चाहिए, जिसमें नेकी, इंसाफ़, समझाने और ज़ाहिर करने का जिहाद, पति का काम और बच्चों की परवरिश शामिल है।
उन्होंने नेशनल रेजिस्टेंस को हेजेमन्स के खिलाफ मजबूती से खड़े होने के तौर पर बताया, और कहा कि कभी-कभी प्रेशर मिलिट्री नेचर का होता है, और कभी-कभी यह इकोनॉमिक, प्रोपेगैंडा, कल्चरल और पॉलिटिकल नेचर का होता है।
इस्लामिक क्रांति के लीडर ने वेस्टर्न मीडिया एजेंट्स और पॉलिटिकल और मिलिट्री अधिकारियों द्वारा किए जा रहे आंदोलनों को दुश्मन के प्रोपेगैंडा प्रेशर का संकेत बताया, और कहा कि हेजेमन्स के देशों पर प्रेशर का मकसद, और उनमें सबसे आगे ईरानी देश, कभी ज्योग्राफिकल एक्सपेंशन होता है, जैसा कि आज अमेरिकी सरकार लैटिन अमेरिका में कर रही है, और कभी-कभी मकसद अंडरग्राउंड रिज़र्व पर कब्ज़ा करना होता है, और कभी-कभी मकसद लाइफस्टाइल बदलना होता है, और उससे भी ज़्यादा, पहचान बदलना होता है, जो हेजेमन्स के प्रेशर का असली मकसद है।
ईरानी राष्ट्र की धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान को बदलने के लिए दुनिया की ताकतवर ताकतों की 100 साल से ज़्यादा पुरानी कोशिशों की ओर इशारा करते हुए, अयातुल्ला खामेनेई ने कहा कि इस्लामी क्रांति ने इन सभी कोशिशों को बेकार कर दिया है, और हाल के दशकों में, ईरानी राष्ट्र ने भी अपने घुटने टेके बिना, अपनी मज़बूती और लगन से उन्हें कुचल दिया है।
उन्होंने ईरान से क्षेत्रीय देशों और कुछ दूसरे देशों में विरोध के विचार के फैलने को एक सच्चाई बताया, और कहा कि दुश्मन ने ईरान और ईरानी राष्ट्र के खिलाफ कुछ ऐसे काम किए हैं जो अगर उसने किसी दूसरे देश और राष्ट्र के खिलाफ किए होते, तो उसका नामोनिशान मिट जाता।
शहीदों की याद को ज़िंदा और अमर रखने और देश में विरोध के विचार को बढ़ावा देने और बढ़ाने में तारीफ़ के ज़ैनबी असर की ओर इशारा करते हुए, क्रांति के नेता ने कहा कि आज, आपने जो सैन्य झड़प देखी, उससे कहीं ज़्यादा हम एक प्रोपेगैंडा और मीडिया युद्ध के केंद्र में हैं क्योंकि दुश्मन समझ गया है कि इस पवित्र और आध्यात्मिक देश और ज़मीन को न तो सैन्य दबाव से जीता जा सकता है और न ही कब्ज़ा किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि हालांकि कुछ लोग बार-बार मिलिट्री झड़पों की संभावना जताते रहते हैं, और कुछ लोग जानबूझकर इस मुद्दे को हवा देते हैं ताकि लोग शक और हिचकिचाहट में रहें, लेकिन, अल्लाह ने चाहा तो वे कामयाब नहीं होंगे।
इस्लामिक क्रांति के लीडर ने दुश्मन के डायमेंशन, खतरे और टारगेट, क्रांति के लक्ष्यों, कॉन्सेप्ट और निशानों, और इमाम खुमैनी (र) की याद को मिटाने के बारे में बताया, और कहा कि अमेरिका इस बड़े और एक्टिव फ्रंट के सेंटर में है, और कुछ यूरोपियन देश इसका सपोर्ट कर रहे हैं, जबकि कुछ कायर, गद्दार और धोखेबाज यूरोप में चंद पैसे कमाने के लिए इस फ्रंट के मोहरे बन गए हैं।
उन्होंने कहा कि दुश्मन के टारगेट और उसकी फ्रंटलाइन की पहचान करना ज़रूरी है, और कहा कि मिलिट्री फ्रंट की तरह, इस प्रोपेगैंडा झड़प में भी, हमें दुश्मन की साज़िशों और लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए सही टकराव करना चाहिए, और उन चीज़ों पर पूरा ध्यान देना चाहिए जिन्हें दुश्मन ने टारगेट किया है, यानी इस्लामिक, शिया और क्रांतिकारी ज्ञान और शिक्षाएँ।
इस्लामी क्रांति के लीडर ने पश्चिम के प्रोपेगैंडा वॉर और मीडिया वॉर के सामने विरोध को मुश्किल लेकिन पूरी तरह मुमकिन बताया, और कहा कि इस तरह, अहल-उल-बैत के चाहने वालों और कवियों को अपने संगठनों को क्रांति के मूल्यों की रक्षा के सेंटर में बदलना चाहिए। चाहने वाले और संगठन आज विरोध साहित्य के कलेक्शन, प्रमोशन और ट्रांसमिशन के ज़रिए इस बहुत ही बुनियादी ज़रूरत को मज़बूत कर रहे हैं।
अपने भाषण के आखिरी हिस्से में, अयातुल्ला खामेनेई ने अहल-उल-बैत के चाहने वालों और कवियों को कुछ सलाह दीं, जिसमें सभी इमामों (उन पर शांति हो) की ज़िंदगी को ध्यान में रखते हुए धार्मिक शिक्षाओं और विरोध की शिक्षाओं की व्याख्या करना, दुश्मन की कमज़ोरियों पर हमला करना और साथ ही अपनी तरफ से शक पैदा होने से असरदार तरीके से बचाव करना, व्यक्तिगत, सामूहिक और राजनीतिक क्षेत्रों में कुरान की अवधारणाओं की व्याख्या करना, और दुश्मन से टकराव की प्रकृति शामिल है।
बच्चों को अपने माता-पिता की कद्र करना सीखना चाहिए
आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी अमोली ने अपने तफ़सीर के दर्स में माता-पिता का सम्मान करने की अहमियत समझाते हुए कहा कि बच्चों, खासकर बेटों और बेटियों को हमेशा अपने माता-पिता के बहुत बड़े त्याग और कोशिशों को ध्यान में रखना चाहिए।
आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी अमोली ने अपने तफ़सीर के दर्स में माता-पिता का सम्मान करने और उनकी सेवा करने की ज़रूरत पर बात करते हुए कहा कि हालांकि घर और खर्चों की ज़िम्मेदारी पिता की मुश्किलों को दिखाती है, लेकिन प्रेग्नेंसी, बच्चे के जन्म, बचपन और ब्रेस्टफीडिंग के दौरान एक माँ को जो मुश्किलें झेलनी पड़ती हैं, वे बहुत मुश्किल होती हैं।
उन्होंने कहा कि यह बात बच्चों को याद दिलाती है कि बेटों को भी शुक्रगुजार होना चाहिए और बेटियों को भी इस रास्ते को अपनी ज़िंदगी का हिस्सा मानना चाहिए। अयातुल्ला जवादी अमोली ने सूरह लुकमान की आयत 14 का ज़िक्र करते हुए कहा कि पवित्र कुरान खुद माँ की मुश्किलों को बताता है:
“«وَ وَصَّیْنَا الْإِنسَانَ بِوَالِدَیْهِ … حَمَلَتْهُ أُمُّهُ وَهْنًا عَلَىٰ وَهْنٍ وَفِصَالُهُ فِي عَامَيْنِ व वस्सयनल इंसाना बेवालेदैयह ... हमलतहू उम्मोहू वहनन अला वहनिन व फ़ेसालोहू फ़ी आमैने...”
यानी, हमने इंसान को उसके माता-पिता का हुक्म दिया है, उसकी माँ ने उसे कमज़ोरी पर कमज़ोरी उठाकर पाला, और हमने दो साल में उसे दूध छुड़ा दिया। तो उसे मेरा और अपने माता-पिता का शुक्रगुज़ार होना चाहिए, और मेरी ही तरफ़ लौटना है।”
उन्होंने कहा कि इस कुरानिक शिक्षा का मकसद यह है कि बेटे अपनी माँ की कीमत समझें और बेटियाँ इस आयत से माँ बनने का सबक सीखें, ताकि समाज में माता-पिता का सम्मान करने और उनकी सेवा करने की भावना मज़बूत हो।
अल्लाह के कलाम और तफ़सीर में हज़रत ज़हरा (स) की शान
हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) पैगंबरों के सरदार और दुनिया पर रहम करने वाले की बेटी हैं, सय्यद अल-औसिया इमाम अली (अ) की पत्नी और इमाम हसन और इमाम हुसैन अ) की माँ हैं। वह काबा की साथी हैं, पाँच मासूम में से एक हैं। ज़हरा, बतूल, सय्यदत अल-निसा, अज़रा, मुहद्देसा, मुअज़्ज़मा और उम्म अबिया उनके मशहूर उपाधीया हैं।
परिचय:
हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) पैगंबरों के सरदार और दुनिया पर रहम करने वाले की बेटी हैं, सय्यद अल-औसिया इमाम अली (अ) की पत्नी और इमाम हसन और इमाम हुसैन अ) की माँ हैं। वह काबा की साथी हैं, पाँच मासूम में से एक हैं। ज़हरा, बतूल, सय्यदत अल-निसा, अज़रा, मुहद्देसा, मुअज़्ज़मा और उम्म अबिया उनके मशहूर उपाधीया हैं।
हज़रत फ़ातिमा (स) इस्लाम की अकेली ऐसी महिला हैं जो नज़रान के ईसाइयों के खिलाफ़ उनसे मुबाहेला में पैगंबर (स) के साथ थीं। इसके अलावा, सूरह कौसर, आय ए तत्हीर, आय ए मवद्दा, आय ए इताम और हदीस बिज़्आ में उनकी शान और काबिलियत का ज़िक्र किया गया है। रिवायतों में बताया गया है कि पैगंबर (स) ने फ़ातिमा ज़हरा (स) को सैय्यदत-उल-निसा अल-आलमीन के तौर पर पेश किया और उनकी खुशी और नाराज़गी को अल्लाह की खुशी और नाराज़गी बताया। इस बारे में, हम कुरान की कुछ आयतों के ज़रिए उनकी शान का ज़िक्र करेंगे।
कुरान की आयतों की रोशनी में:
आय ए तत्हीर
"अल्लाह बस यही चाहता है कि ऐ अहलेबैत, तुमसे सारी गंदगी दूर रखे, और तुम्हें पाक व पाकीज़ा रखे" (अल-अहज़ाब: 33)
यहां, अहले बैत का मतलब इमाम अली (अ), हज़रत फातिमा ज़हरा (स) इमाम हसन और इमाम हुसैन (अ) से है। यह हदीस शिया और सुन्नी दोनों ने सुनाई है। उदाहरण के लिए, एक हदीस में, हज़रत उम्मे सलमा (स) बताती हैं:
यह आयत मेरे घर पर तब नाज़िल हुई, जब अल्लाह के रसूल (स) ने अली, फातिमा, हसन और हुसैन (अ) को बुलाया और उन्हें कंबल ओढ़ाया और फिर कहा:
अल्लाहुम्मा हाउलाए अहलोबैती
ऐ अल्लाह, ये मेरे अहले-बैत हैं।
आपसे एक रिवायत है कि हज़रत उम्मे सलमा ने पूछा: ऐ अल्लाह के रसूल (स), क्या मैं अहले-बैत में से नहीं हूँ? उन्होंने (स) फ़रमाया:
तुम ख़ैर पर हो, तुम पैगंबर (स) की पत्नियों में से हो।
इसके अलावा, अबू सईद अल-खदरी से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल (स) ने साफ-साफ कहा
यह आयत पंजतन की शान में है, यानी यह मेरी, अली, हसन, हुसैन और फातिमा की शान में नाज़िल हुई है।
आय ए मुबाहेला:
“और अगर वे तुमसे (यीशु के बारे में) ज्ञान आने के बाद झगड़ें, तो कहो: आओ, हम अपने बेटों को बुलाएँगे और तुम हमारे बेटों को बुलाओगे, हम अपनी बेटियों को बुलाएँगे और तुम हमारी बेटियों को बुलाओगे, हम अपने आपको बुलाएँगे और तुम अपने आपको बुलाओगे, फिर दोनों पक्ष अल्लाह से दुआ करें, कि अल्लाह की लानत झूठे पर हो।”
शिया और सुन्नी मुफ़स्सिर इस बात पर सहमत हैं कि यह आयत नज़रान के ईसाइयों और पैगंबर मुहम्मद (स) के बीच हुई बहस से जुड़ी है। ईसाई ईसा (अ) को तीन पवित्र लोगों में से एक मानते थे, उन्हें अल्लाह का दर्जा देते थे, और वे पवित्र कुरान में ईसा (अ ) के बारे में बताई गई बातों से सहमत नहीं थे, जिसमें उन्हें अल्लाह का नेक बंदा और पैगंबर बताया गया था। जब पैगंबर (स) की बातें और तर्क ईसाइयों पर असरदार नहीं हुए, तो उन्होंने उन्हें मुबाहला में बुलाया।
हदीस के जानकार, मुफ़स्सिर इतिहासकार और जीवनी लिखने वाले इस बात पर सहमत हैं कि पैगंबर (स) मुबाहला के मौके पर हसनैन, फातिमा और अली (अ) को अपने साथ ले गए थे।
कोई भी जीवनी लिखने वाला और इतिहासकार इस बात से सहमत नहीं था कि पैगंबर (स) ने हसन, हुसैन, फातिमा और अली (अ) का हाथ थामकर ईसाइयों को मुबाहला में बुलाया था। (अल-कौसर, तफ़सीर अल-कुरान, आल-इमरान: 61)
आय ए मवद्दा
कहो: मैं तुमसे इसके लिए (नबूवत का संदेश फैलाने के लिए) कोई इनाम नहीं माँगता सिवाय रिश्तेदारों से प्यार के।
पैगंबर (स) के मदीना हिजरत करने और इस्लामिक समाज की स्थापना के बाद, अंसार उनके पास आए और इस्लामिक सिस्टम के मैनेजमेंट के लिए उनसे कहा, “अगर आपको अपना नया समाज बनाने के लिए पैसे की ज़रूरत है, तो हमारी सारी दौलत और सारे रिसोर्स आपके पास हैं। आप जो भी खर्च करेंगे और हमारी दौलत का जो भी इस्तेमाल करेंगे, वह हमारे लिए इज़्ज़त और गर्व की बात होगी।” फिर फ़रिश्ते ने मवद्दह की आयत उतारी।
सईद बिन जुबैर से रिवायत है कि जब मवद्दह की आयत उतरी, तो हमने पैगंबर (स) से पूछा कि आपके करीबी रिश्तेदार कौन हैं? यानी वो लोग जिनकी हम पर मोहब्बत ज़रूरी है। आप (स) ने कहा, “इसका मतलब अली, फातिमा और उनके दो बेटे हैं।” (तफ़सीर अल-नमूना, सूर ए शूरा: 23)
सूर ए कौसर
बेशक, हमने तुम्हें कौसर दिया है।
कौसर शब्द का मतलब तफ़सीर करने वालों ने अलग-अलग तरह से निकाला है। कई बातों पर बात हुई है। इस बारे में, कौसर शब्द के मतलब को लेकर तफ़सीर करने वालों में मतभेद है। शिया विद्वान "कौसर" का मतलब हज़रत फातिमा (स) मानते हैं क्योंकि इस सूरह में इन लोगों का ज़िक्र है।
कुछ लोग ऐसे भी हैं जो पैगंबर (स) को बिना औलाद और नाजायज़ मानते थे, हालांकि पैगंबर (स) के वंशज उनकी इकलौती बेटी हज़रत फातिमा (स) के खानदान से भी आगे थे, जिन्होंने इमामत का बड़ा पद संभाला और इस्लाम धर्म को आगे बढ़ाया, जिसकी वजह से आज इस्लाम का यह हरा-भरा पेड़ पूरी ताकत से अपना सफ़र जारी रखे हुए है। (तफ़सीर नमूना, सूर ए कौसर)
आय ए क़ुर्बा
और सबसे करीबी रिश्तेदार को उसका हक़ दो।
"ज़ुल-कुर्बा" के बारे में, तफ़सीर करने वालों के बीच सवाल उठते हैं कि क्या इसका मतलब सभी रिश्तेदारों से है या सिर्फ़ पैगंबर (स) के रिश्तेदारों से। मिसाल के मतलब के मुताबिक, शिया इमामों से सुनाई गई हदीसों के मुताबिक, सिर्फ़ पैगंबर (स) के अहले बैत को ही "ज़ुल कुर्बा" (सबसे करीबी रिश्तेदार) कहा गया है। लेकिन, ये हदीसें आयत के उदाहरणों को अहले बैत तक सीमित नहीं करतीं, बल्कि अहले बैत को उसका पूरा उदाहरण मानती हैं। इसलिए, हर इंसान से उसके रिश्तेदारों के बारे में पूछा जाएगा।
शिया और सुन्नी हदीसों के अनुसार, इस आयत के नाज़िल होने के बाद पैगंबर (स) ने हज़रत फातिमा (स) को फदक तोहफ़े में दिया। हदीस में।
जब आयत “वाते ज़ुल कुर्बा” नाज़िल हुई, तो अल्लाह के रसूल (स) ने फातिमा (स) को बुलाया और उन्हें फदक दिया। (अल-कौसर, तफ़सीर अल-कुरान, अल-इसरा: 26)
आय ए इत्आम
और वे प्यार से ज़रूरतमंदों, अनाथों और बंदी लोगों को खाना खिलाते हैं। हम तुम्हें सिर्फ़ अल्लाह के लिए खिलाते हैं। हमें तुमसे कोई इनाम या शुक्रगुज़ारी नहीं चाहिए।” (धर)
यह आयत इस मशहूर घटना के बाद आई। जब इमाम हसन और इमाम हुसैन (अ) बीमार पड़े, तो घर में सभी ने उनके ठीक होने के लिए तीन दिन रोज़ा रखने की कसम खाई। जब वे दोनों ठीक हो गए, तो पूरे परिवार ने रोज़ा रखा, और रोज़ा खोलते समय, एक भिखारी ने दरवाज़े पर आवाज़ दी: “ऐ अहले बैत ए रसूल (अ)! क्या कोई है जो भूखे को खाना खिलाएगा?" उसने उसे खाना खिलाया। उसने अपना पूरा खाना भिखारी को दे दिया। यह घटना तीन दिनों तक चली, इसलिए अल्लाह तआला ने उसके सम्मान में यह आयत उतारी।
कुछ सुन्नी जानकारों के अनुसार, आय ए इत्आम अहले बैत (अ) के सम्मान में उतारी गई थी। अल्लामा अमीनी ने अपनी किताब अल-ग़दीर में 34 सुन्नी विद्वानों के नाम बताए हैं जिन्होंने लगातार इस बात की पुष्टि की है कि ये आयतें अहले-बैत (अ) के सम्मान और इमाम अली (अ), फ़ातिमा (स), हसन (अ), और हुसैन (अ) के गुणों का वर्णन करती हैं। शिया विद्वानों के अनुसार, सूर ए इंसान की पूरी अठारह आयतें अहले-बैत (अ) के सम्मान में उतारी गईं, और तफ़सीर या हदीस की किताबों में इस घटना से जुड़ी कहानी को अली के सम्मान और महत्वपूर्ण गुणों में से एक माना गया है। (तफ़सीर अल-नमूना, सूर ए इंसान 9,8)
लेखक: सय्यद हादियान हैदर
हज़रत फ़ातेमा ज़हरा उम्महातुल मोमिनीन की नज़र में
ख़ुदावन्दे आलम ने बज़्मे इंसानी के अंदर हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम से बेहतर किसी को ख़ल्क नहीं फरमाया। आप सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की ज़ात क़ुरआन के आईने में अख़्लाक़े करीमा का मुजस्समा है।
हज़रत फ़ातेमा ज़हरा उम्महातुल मोमिनीन की नज़र में
ख़ुदावन्दे आलम ने बज़्मे इंसानी के अंदर हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम से बेहतर किसी को ख़ल्क नहीं फरमाया।
आप सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की ज़ात क़ुरआन के आईने में अख़्लाक़े करीमा का मुजस्समा है।
जिसकी गवाही क़ुरआने मजीद ने यह कह कर दी है (इन्नका लअला खुलुक़िन अज़ीम) परवरदिगारे आलम ने आप सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की ख़िलक़त को
कायनात की ख़िलक़त का सबब क़रार दिया है। चुनाँचे एक मशहूर हदीस क़ुद्सी में आप सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की क़द्रो मंज़ेलत यूं बयान की गई है।
(लौ लाक लमा ख़लक्तुल अफलाक) ऐ मेरे हबीब अगर आप न होते तो मैं कायनात को ख़ल्क़ न करता।
इंसान अल्लाह की बेहतरीन मख़लूक है और अल्लाह ने उसे मर्दो ज़न के क़ालिब में ख़ल्क़ करने के बाद मुख्तलिफ़ ख़ानदान और क़बीले और रँगो नस्ल में ढाला है।
साथ ही उसकी हिदायत के लिए नबीयों और रसूलों का एक तूलानी सिलसिला क़ायम किया। राहे नूर की तरफ़ हिदायत
करने वाले ये अम्बिया व मुरसलीन इन्सानों को जेहालत की तारीकियों से निकाल कर इल्म और नूर की फिज़ा में लाते रहे और उन्हें खुदा से करीब करते रहे।
लेकिन उन्हीं के साथ साथ कुछ ऐसे अनासिर भी थे जो शैतान के फ़रेब में मुब्तला होकर गुमराह होते रहे या खुद शैतान बन कर दूसरे इन्सानों को गुमराहियों और तरीकियों में ढ़केलते रहे।
खुदावन्दे आलम ने मर्दो ज़न को अपनी इलाही फित्रत पर पैदा किया है और उनमें से हर एक के फरायज़ व वज़ायफ़ मुअय्यन किऐ हैं जो उनकी तबीयत,
मेज़ाज और जिस्मानी साख़्त से हम आहँगी रखते हैं। घर की साख़्त और पुर अम्न ख़ान्वादे की तश्कील के लिए बाज़ जेहतों से मर्द को फ़ौक़ीयत
देकर फरमाया कीः (अर रेजालो क़व्वामूना अलन निसा) और बाज़ जेहतों से दोनों की एक दूसरे पर सरपरस्ती को बयान किया।
(अल मोमेनूना वल मोमेनाते बाज़ो हुम अवलियाओ बाज़) इस तरह से ज़ेहन से ये बात दूर कर दी कि औरत मर्द से पस्त और हक़ीर कोई मख्लूक़ है।
जब आँ हज़रत सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की रेसालत का ज़हूर होने वाला था उस दौरान जाहिल अरबों के दरमियान औरत इन्तेहाई पस्त और हक़ीर वुजुद थी।
लूट मार और क़त्लो ग़ारत की ज़िन्दगी बसर करने वाले अरब अपनी शिकस्त के बाद झूठी बे इज़्ज़ती और बे आबरुई से बचने के लिए घरों में पैदा होने वाली लड़कियों को ज़िन्दा दफ्न कर देते थे।
परवरदिगारे आलम ने ऐसे माहौल में अपने हबीब रहमतुल लिल आलमीन और खुल्क़े अज़ीम पर फायज़ पैग़म्बर को मुरसले आज़म बना कर भेजा और अपनी ख़ास हिक्मत
के तहत आप सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम को बेटी अता फ़रमाई और उसके लिए आला हस्बो नस्ब से आरास्ता मक्का की
अज़ीम ख़ातून जनाबे ख़दीजा की आगोश का इन्तेख़ाब किया। आँ हज़रत सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की मशहूर व मारुफ़ हदीस जिसे
तमाम उलमा ए इस्लाम ने अपनी किताबों में नक्ल किया है यानी (फ़ातेमतो बज़अतो मिन्नी) फ़ातेमा मेरा टुकड़ा हैं।
मुम्किन है इसी हकीक़त के तहत हो की एक तरफ़ तो बेटी बाप के वुजुद का हिस्सा होती है
उस ऐतेबार से भी क़ाबिले ऐहतेराम है और दूसरी तरफ़ हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा,
आँ हज़रत सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम के वुजुद का हिस्सा होने के सबब पूरी उम्मत के लिए मोहतरत हैं।
इसलिए की क़ुरआने करीम पूरी वज़ाहत के साथ आँ हज़रत सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम को आम इन्सान के बजाय सिर्फ़ रसूल जानता है।
(वमा मुहम्मद इल्ला रसूल) ----- मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम रसूल के अलावा और कुछ नहीं हैं।
लेहाज़ा इस आयत की रौशनी में हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा जुज़् ए रेसालत हैं।
बहरहाल बेटी की हैसियत से औरत के मरतबे और उसकी मन्ज़ेलत को बज़्मे इन्सानी और ख़ुसुसन दुनिया ए इस्लाम में नुमायाँ करने के लिए क़ुदरत ने
आँ हज़रत सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम को फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा की शक्ल में ये गौहरे आबदार अता फरमाया था।
अब हम देखते हैं कि ये अज़ीम अतीया जो अल्लाह ने पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम को बख्शा कितना क़ीमती था।
हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा कितने सेफ़ात व कमालात की हामिल थीं और खुद पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ने इस्लामी और कुरआनी
तालीम के गहवारे में अपनी बेटी की कैसी तरबीयत फरमाई थी।
सरेदस्त इस मक़ाले में उस ग्रान क़द्र शख्सीयत की अज़मत का जाएज़ा उम्महातुल मोमिनीन के अक़वाल में लेते हैं और ये देखते हैं कि हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा
अज़्वाजे पैग़म्बर की निगाह में किस फज़्लो शरफ़ की हामिल थीं।
जन्नत का मेवा
दामने इस्लाम में परवान चढ़ने वाली इस नौ मौलूद दुख्तर की अज़्मत और करामत के लिए हम यहाँ सबसे पहले उम्मुल मोमेनीन आयशा से हस्बे ज़ैल रिवायत नक्ल करते हैं जिसे शिया और अहले सुन्नत दोनों उलमा ने नक्ल किया है कि रसूले खुदा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम शफ़क़त और मुहब्बत से अपनी बेटी फ़ातेमा का बोसा लिया करते थे।
आयशा इस हालत को देख कर तअज्जुब किया करती थीं आख़िर उन्होंने आँ हज़रत सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम से सवाल कर लिया कि आप अपनी बेटी
फ़ातेमा से इस तरह मुहब्बत का बर्ताव करते हैं जैसे किसी से नहीं करते। मैंने नहीं देखा की कोई इस तरह अपनी बेटी से शफ़क़त व मुहब्बत का बर्ताव करता हो।
फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा रहमे मादर में
इमाम जाफ़रे सादिक अलैहिस्सलाम ने मुफज़्ज़ल बिन उमर से एक हदीस ब्यान करते हुऐ फरमाया कि जब पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम
ने जनाबे खदीजा से शादी की तो मक्का की औरतों ने जनाबे ख़दीजा से राब्ता तोड़ लिया। न उनके घर जाती थीं और न उनको सलाम करती थी।
जब जनाबे ख़दीजा के बत्न में जनाबे फ़ातेमा आईं तो आप अपनी माँ से बातें करती थीं और उन्हें सब्र दिलाती थीं,
जनाबे ख़दीजा इस बात को पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम से छुपाती थीं।
एक रोज़ पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम घर में दाख़िल हुए तो आपने ख़दीजा को किसी से बात करते हुए सुना।
हज़रत ने दरयाफ्त फ़रमाया कि ऐ खदीजा आप किस से बातें कर रही थीं तो उन्होंने कहाः या रसूलल्लाह मेरे शिक्म में जो बच्चा है वह मेरी तन्हाई का मुनीस है और मुझसे बातें करता है।
पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ने फरमायाः ऐ खदीजा ये जिब्रईल हैं और मुझे ख़बर दे रहे हैं कि ये बच्चा दुख्तर है।
उससे पाकीज़ा नस्ल वुजुद में आयेगी और मेरी नस्ल भी उसी बेटी से होगी और उसकी नस्ल से अईम्मा पैदा होंगे।
मज़कूरा रिवायत से कई बातें मालूम होती हैं
एक यह की जनाबे ख़दीजा जैसी मक्का की बा अज़मत ख़ातून ने जब अख़लाक़ व किरदार के अज़ीम पैकर और बज़ाहीर माद्दी ऐतेबार से कमदर्जे के इंसान
हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम से शादी की तो दुनिया के ज़ाहरी शॉनो शौकत पर मरने वाली ख़्वातीन ने जनाबे ख़दीजा से रॉब्ता तोड़ लिया,
लेकिन जनाबे ख़दीजा ने इसका कोई मलाल न किया और अपने अज़ीम अख्लाक़ व किरदार के हामिल शौहर की वफादार रहीं। ये बात जनाबे ख़दीजा के आला किरदार की अक्कासी करती है।
दूसरे यह की ख़ुदा वन्दे आलम ने ऐसी पाकीज़ा ख़ातून की तन्हाई और अफ्सुर्दगी को दूर करने के लिए जनाबे फ़ातेमा
सलामुल्लाह अलैहा को उस वक्त उनका मूनिस बना दिया जब आप माँ के शिक्म में थीं।
तीसरी बात यह की जिब्रईल ने पैग़म्बर सलल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम को बेटी की बशारत दी जो खुदा की नज़र में औरत के मरतबे को ज़ाहिर करती है।
उसका ऐहसास बेटी या औरत के सिलसिले में आँ हज़रत सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम के हर उम्मती को होना चाहिए।
चौथी बात यह की अगरचे आँ हज़रत सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम को ख़ुदा ने एक बेटी दी लेकिन उससे आपकी पाकीज़ा नस्ल का सिल्सिला जारी है
और इस सिलसिले में उलमा ए इस्लाम ने बेशुमार रिवायतें नक्ल की हैं कि पैग़म्बर सलल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की नस्ल हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाहे अलैहा के
ज़रीऐ सुल्बे हज़रते अली अलैहिस्सलाम से चली।
और आख़िरी बात यह है की आप ही नस्ल से रूए ज़मीन पर अइम्मा और ख़ुलफ़ा ए इलाही वुजुद में आये।
वेलादते हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा
जब हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की वेलादत के ऑसार ज़ाहिर हुए तो हज़रत ख़दीजा ने मक्के की औरतों को मदद के लिए बुलाया लेकिन उन्होंने आने से इन्कार कर दिया,
जिस पर जनाबे ख़दीजा बहुत ग़मज़दा हुईं। उस वक्त परवरदिगारे आलम ने चार जन्नती औरतें ग़ैबी इम्दाद की शक्ल में जनाबे ख़दीजा के पास भेजीं,
उन ख़्वातीन ने आकर अपना तआरुफ़ कराया कि ऐ ख़दीजा आप परेशान न हों हम खुदावन्दे आलम की तरफ़ से आपकी मदद को आये हैं।
मैं सारा ज़ौजए हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम हूँ, ये आसीया बिन्ते मुज़ाहीम हैं जो जन्नत में आपकी हम नशीन हैं, वह मरियम बिन्ते इमरान हैं और वह कुलसूम ख़्वाहरे हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम हैं। इस तरह उन ख़्वातीन की मदद से हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की वेलादत के मराहिल तय हुए।
आपको आबे कौसर से ग़ुस्ल दिया गया और जन्नत का लिबास पहनाया गया, फिर वह ख़्वातीन आपसे हम कलाम हुईं। उस वक्त हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा ने फरमायाः
(मैं गवाही देती हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई और माबूद नहीं है और मेरे पेदरे बुज़ुर्गवार अल्लाह के रसूल और तमाम अम्बिया के सय्यदो सरदार हैं
मेरे शौहर सय्यदुल औसिया हैं और मेरे बेटे अम्बिया के बेहतरीन नवासे हैं। फिर आपने उन तमाम ख़्वातीन को सलाम किया और एक एक करके सब का नाम लिया...)
हज़रत महदी (अलैहिस्सलाम) की तौक़ीआत
मसलों को तय करने और शक दूर करने का एक तरीका गाइडेंस लेना और हज़रत महदी (अलैहिस्सलाम) के भरोसेमंद लोगों को लिखे गए साइन और मैन्युस्क्रिप्ट से फ़ायदा उठाना है।
महदीवाद पर चर्चाओं का कलेक्शन, जिसका टाइटल "आदर्श समाज की ओर" है, आप सभी के लिए पेश है, जिसका मकसद इस समय के इमाम से जुड़ी शिक्षाओं और ज्ञान को फैलाना है।
इमाम महदी (अलैहिस्सलाम) तौक़ीआत
इसमें कोई शक नहीं कि धरती कभी भी अल्लाह की हुज्जत से खाली नहीं होगी, और लोगों में हमेशा कोई ऐसा इंसान होगा जो हुज्जत पूरी करेगा और अल्लाह के आदेशों और अहकाम को समझाएगा। इमाम महदी (अ) की ग़ैबत काल के दौरान, भले ही लोगों और समुदायों के बीच उनकी कोई जानी-पहचानी मौजूदगी न हो, लेकिन उनकी दुआएँ और अच्छे काम लोगों तक पहुँचते रहेंगे।
मसलों को तय करने और शक दूर करने का एक तरीका है गाइडेंस का इस्तेमाल करना और उन पत्रो और मैन्युस्क्रिप्ट्स से फ़ायदा उठाना जो उन्होंने भरोसेमंद लोगों को लिखे थे।
तौक़ीअ क्या है?
तौक़ीअ का मतलब है एनोटेशन, और टर्मिनोलॉजी में इसका मतलब खलीफाओं और राजाओं के उन आदेशों और चिट्ठियों से है जो उन्होंने अलग-अलग लोगों को लिखे थे, लेकिन शिया विद्वानों की किताबों में इसका मतलब उन चिट्ठियों और आदेशों से है जो इमाम महदी (अलैहिस्सलाम) ने अपने शियो को गुप्तकाल के दौरान भेजे थे, और यही हमारा तौक़ीअ से मतलब हैं।
तौक़ीअ के प्रकार
इमाम महदी (अलैहिस्सलाम) की तौक़ीअ को दो कैटेगरी में बांटा जा सकता है:
अ) ग़ैबत ए सुग़रा की तौक़ीआत
ग़ैबत ए सुग़रा के सीमित समय के दौरान, इमाम के चार प्रतिनिधि (उसमान बिन सईद, मुहम्मद बिन उस्थन, हुसैन बिन रूह, और अली बिन मुहम्मद समरी) के माध्यम से सवालों और शक के जवाब में तौक़ीअ जारी करते थे। ऐसी तौक़ीअ का मुख्य मक़सद शियो के लिए ज़िम्मेदारियां तय करना था, और इमाम उन्हें कन्फ्यूजन से बचाने की कोशिश करते थे।
ब) ग़ैबत ए कुबरा की तौक़ीआत
ग़ैबत ए कुबरा के दौरान, इसमें कोई शक नहीं है कि शियो का इमाम के साथ एक इनडायरेक्ट कनेक्शन है, और इस कनेक्शन का एक तरीका इमाम द्वारा एलीट और जाने-माने शिया लोगों को नेक तौक़ीअ जारी करना है। गैबत ए क़ुबरा मे इमाम द्वारा लिखे गए पत्रो (तौक़ाआत) में दो ज़रूरी बातें हैं:
- ऐसी तौक़ीअ (पत्र) को ज़रूरत के समय के अलावा ज़ाहिर नहीं किया जा सकता था, और हर कोई ऐसे पत्रो का कंटेंट नहीं पढ़ सकता था।
- शक का जवाब देना, शख्सियत की जरह और तादील करना और मौजूदा मुद्दों का एनालिसिस करना आदि ऐसे तौक़ीअ के मुख्य टॉपिक हैं।
क्या इमाम महदी (अलैहिस्सलाम) की तौक़ीअ उनकी अपनी हैंडराइटिंग में लिखे थे?
जवाब यह है कि न तो सभी तौक़ीआत (पत्रो) को इमाम (अलैहिस्सलाम) की हैंडराइटिंग माना जा सकता है, और न ही इस बात से इनकार किया जा सकता है कि उनमें से कुछ इमाम (अलेहिस्सलाम) की हैंडराइटिंग में थे। कुछ का मानना है कि उन तौक़ीआत (पत्रो) को लिखने वाले खुद इमाम थे, और उनकी हैंडराइटिंग भी उस समय के खास साथियों और जानकारों के बीच मशहूर थी, और वे इसे अच्छी तरह जानते थे। इस दावे के सबूत मौजूद हैं:
उदाहरण के लिए, इस्हाक बिन याकूब कहते हैं: سألت محمد بن عثمان العمری أن یوصل لی کتاب قد سألت فیه عن مسائل أشکلت علی فوقع التوقیع بخط مولانا صاحب الدار साअलतो मुहम्मद बिन उस्मान अल अमरि अय यूसेला ली किताबुन क़द सअलतो फ़ीहे अन मसाइेला अशकलतो अला फ़वक़अत तौक़ीअ बेखत्ते मौलाना साहेबद दार “मुझे कुछ दिक्कतें हुईं और मैंने एक चिट्ठी लिखकर मुहम्मद इब्न उसमान के ज़रिए इमाम महदी (अ.स.) को भेजी, और जवाब खुद इमाम की हैंडराइटिंग में था।” (बिहार उल अनवार, भाग 51, पेज 349)
दूसरी तरफ, दूसरे सबूतों के अनुसार, तौक़ीअ इमाम (अलैहिस्सलाम) की हैंडराइटिंग में नहीं थे।
उदाहरण के लिए, अबू नस्र हैबातुल्लाह कहते हैं: وکانت توقیعات صاحب الامر علیهالسلام تخرج علی یدی عثمان بن سعید وابنه أبی جعفر محمد بن عثمان إلی شیعته ... بالخط الذی کان یخرج فی حیاة الحسن علیهالسلام वकानत तौक़ीआत साहेबल अम्र अलैहिस्सलामो तखरोजो अला यदी उस्मान बिन सईद व इब्नोहू अबि जाफ़र मुहम्मद बिन उस्मान ऐला शीअतेहि ... बिल खत्तिल लज़ी काना यखरोजो फ़ी हयातिल हसन अलैहिस्सलाम “साहेब अस्र (अलैहिस्सलाम) की तौक़ीअ (पत्र) शियो को उस्मान बिन सईद और मुहम्मद बिन उथमान के माध्यम से उसी हैंडराइटिंग में जारी किए थे जो इमाम हसन अस्करी (अलैहिस्सलाम) के समय में जारी की गई थी।” (बिहार उल अनवार, भाग 51, पेज 346)
तौक़ीआत का कंटेंट
तौक़ीअ में हज़रत महदी (अलैहिस्सलाम) के शब्दों और बयानों के कई पहलू और खासियतें हैं, जिनका हम ज़िक्र करेंगे:
ग़ैबत ए कुबरा की ख़बर और ज़ोहूर के संकेत
उन्होंने तौक़ीअ (पत्र) में अली बिन मुहम्मद समरी से यह कहा:
فَقَدْ وَقَعَتِ الْغَیْبَةُ الثَّانِیَةُ فَلَا ظُهُورَ إِلَّا بَعْدَ إِذْنِ اللَّهِ عَزَّ وَ جَلَّ وَ ذَلِکَ بَعْدَ طُولِ الْأَمَدِ وَ قَسْوَةِ الْقُلُوبِ وَ امْتِلَاءِ الْأَرْضِ جَوْراً फ़क़द वक़अतिल ग़ैबतुस सानीयतो फ़ला ज़ोहूरा इल्ला बादा इज़्निल्लाहे अज़्ज़ा व जल्ला व ज़ालेका बादा तूलिल अमदे व क़स्वतिल क़ोलूबे वमतेला इल अर्ज़े जौरन
यह सच है कि ग़ैबत ए कुबरा शुरू हो गई है और इसके दोबारा दिखने की कोई खबर नहीं है, सिवाय अल्लाह तआला की इजाज़त के और लंबे साल बीतने और लोगों के दिलों के बेरहम होने और धरती के ज़ुल्म से भर जाने के बाद। (कमालुद्दीन, भाग 2, पेज 516)
शियाो के हालात के बारे में पूरी जानकारी
इमाम (अलैहिस्सलाम) ने शेख मुफ़ीद से फ़रमाया:
فَإِنَّا یُحِیطُ عِلْمُنَا بِأَنْبَائِکُمْ وَ لاَ یَعْزُبُ عَنَّا شَیْءٌ مِنْ أَخْبَارِکُمْ وَ مَعْرِفَتُنَا بِالزَّلَلِ اَلَّذِی أَصَابَکُمْ مُذْ جَنَحَ کَثِیرٌ مِنْکُمْ إِلَی مَا کَانَ اَلسَّلَفُ اَلصَّالِحُ ... إِنَّا غَیْرُ مُهْمِلِینَ لِمُرَاعَاتِکُمْ وَ لاَ نَاسِینَ لِذِکْرِکُمْ وَ لَوْ لاَ ذَلِکَ لَنَزَلَ بِکُمُ اَللَّأْوَاءُ وَ اِصْطَلَمَکُمُ اَلْأَعْدَاءُ فَاتَّقُوا اَللَّهَ جَلَّ جَلاَلُهُ फ़इन्ना योहीतो इल्मोना बेअम्बाएकुम वला यअज़ोबो अन्ना शैउन मिन अख़बारेकुम व मारेफ़तोना बिज़्ज़ललिल लज़ी असाबकुम मुज़ जनहा कसीरुम मिन्कुम ऐला मा कानस्सलफ़ुस सालेहो... इन्ना ग़ैरा मोहमेलीना ले मुराआतेकुम वला नासीना लेज़िकरेकुम वलो ला ज़ालेका लनज़ाला बेकोमुल लावाओ व इस्तलमकमुल आदाओ फ़त्तक़ुल्लाहा जल्ला जलालोह
"हम तुम्हारी जिंदगी से पूरी तरह अवगत है, और तुम्हारे दुश्मनों से तुम्हें मिलने वाली खबरों और नुकसान के बारे में भी हमे पता है जैसा कि पुराने नेक लोगों के साथ हुआ था; हम तुम्हारा ख्याल रखने में कोताही नहीं करते और हम तुम्हें नहीं भूलते। अगर ऐसा होता, तो तुम पर मुसीबतें आ जातीं और तुम्हारे दुश्मन तुम्हें उखाड़ फेंकते, इसलिए अल्लाह तआला से डरना अपना शैवा बना लो। (बिहार उल अनवार, भाग 53, पेज 174)
हज़रत से इरतेबात का दावा करने वालों का इनकार
अली बिन मुहम्मद समरी को लिखे एक पत्र में इमाम ने उन लोगों के बारे में बताया है जो इमाम से मिलने और उन्हें रिप्रेजेंट करने का दावा करते हैं, और वे कहते हैं:
وَ سَیَأْتِی شِیعَتِی مَنْ یَدَّعِی اَلْمُشَاهَدَةَ أَلاَ فَمَنِ اِدَّعَی اَلْمُشَاهَدَةَ قَبْلَ خُرُوجِ اَلسُّفْیَانِیِّ وَ اَلصَّیْحَةِ فَهُوَ کَاذِبٌ مُفْتَرٍ व सयाती शीअति मय यद्दइल मुशाहदता अला फ़मन इद्दअल मुशाहदता क़ब्ला ख़ोरूजिस सुफ़्यानिय्ये वस्सयहते फ़होवा काज़ेबुन मुफ़तरिन
और जल्द ही मेरे कुछ शिया लोग मुझे देखने का दावा करेंगे। ध्यान रहे कि जो कोई भी यह दावा करता है कि उसने मुझे सूफ़यानी और आसमानी आवाज़ के आने से पहले देखा है, वह झूठा और बदनाम करने वाला है। (कमालुद्दीन, भाग 2, पेज 516)
आइम्मा (अलैहेमुस्सलाम) के बारे में शक और शंका दूर करना
शियो के एक ग्रुप को लगा कि इमाम हसन अस्करी (अलैहिस्सलाम) का कोई वारिस नहीं है, इसके जवाब में आप (अलैहिस्सलाम) ने एक तौक़ीअ जारी की और फ़रमाया:
أنه أنهی إلی ارتیاب جماعة منکم فی الدین، وما دخلهم من الشک والحیرة فی ولاة أمرهم، فغمنا ذلک لکم لا لنا، وساءنا فیکم لا فینا، لأن الله معنا अन्नहू अन्हा एला इरतियाबे जमाअतुन मिनकुम फ़िद दीन, वमा दख़लोहुम मिनश शक्के वल हैरते फ़ी वुलाते अम्रेहिम, फ़ग़मना ज़ालेका लकुम ला लना, व साअना फ़ीकुम ला फ़ीना, लेअन्नल्लाहा माअना
” मुझे बताया गया है कि तुममें से एक ग्रुप धर्म, मामलों के रखवाले और तुम्हारे समय के इमाम के बारे में शक और उलझन से परेशान है। हमें इससे दुख हुआ है, लेकिन अपने लिए नहीं, बल्कि आपके लिए, और हमें दुख हुआ है, बेशक आपके लिए, अपने लिए नहीं, क्योंकि अल्लाह तआला हमारे साथ है। (एहतेजाज, तबरसी, भाग 2, पेज 278)
विशेष शियो की पुष्ठि और परिचय
शेख मुफ़ीद को एक तौक़ीअ में, इमाम उनका परिचय इस तरह कराते हैं:
لِلْأَخِ اَلسَّدِیدِ وَ اَلْوَلِیِّ اَلرَّشِیدِ اَلشَّیْخِ اَلْمُفِیدِ ... سَلاَمٌ عَلَیْکَ أَیُّهَا اَلْوَلِیُّ اَلْمُخْلِصُ فِی اَلدِّینِ اَلْمَخْصُوصُ فِینَا بِالْیَقِینِ लिलअखिस सदीदे व अल वलियिर रशीदिश शैखिल मुफ़ीदे ... सलामुन अलैका अय्योहल वलियुल मुख़लेसो फ़िद्दीनिल मख़सूसो फ़ीना बिल यक़ीने
एक भाई और एक हिम्मत वाले दोस्त, शेख मुफ़ीद को... आप पर सलाम हो, धर्म में एक सच्चे दोस्त, जो हमारे ईमान में ज्ञान और पक्के तौर पर खास है। (एहतेजाज, भाग 2, पेज 495)
दुआ सिखाना और तवस्सुल का तरीक़ा
यह बताया गया है कि अब्दुल्लाह बिन जाफ़र अल-हुमैरी ने इमाम से ध्यान देने और तवस्सुल करने के तरीके के बारे में पूछा। इमाम ने तौक़ीअ के ज़रिए कहा:
... بعد صلاة اثنتی عشرة رکعة تقرأ قل هو الله أحد فی جمیعها رکعتین رکعتین ثم تصلی علی محمد وآله ، وتقول قول الله جل اسمه: سلام علی آل یاسین ... ... बादा सलाते इस्नता अशरता रकअतन तक़्राओ क़ुल होवल्लाहो अहद फ़ी जमीऐहा रकअतैन रकअतैन सुम्मा तोसल्ली अला मुहम्मद वा आलेहि, व तक़ूलो क़ौलुल्लाहे जल्ला इस्मोहूः सलामुन अला आले यासीन ...
(जब इमाम वक़्त से तवस्सुल कर रहे हों तो ) बारह रकअत (छ नमाज़ दो रकअती) नमाज़ के बाद, सभी में कुल हौवल्लाहो अहद पढ़ें उन्हें, फिर मुहम्मद और उनके परिवार पर दुरूद पढ़ो, और अल्लाह के कलाम को कहो: सलामुन आले यासीन...." (बिहार उल अनवार, भाग 53, पेज 174) (سلامٌ عَلی آلِ یاسینَ، اَلسّلامُ عَلیکَ یا داعِیَ اللهِ وَ رَبّانی آیاتِه، اَلسّلامُ عَلیکَ یا بابَ اللهِ وَ دَیّانَ دینهِ ... सलामुन अला आले यासीन, अस्सलामो अलैका या दाईयल्लाहे व रब्बानीया आयातेह, अस्सलामो अलैका या बाबल्लाहे व दय्याने दीनेह ... यह दुआ ज़ियारते आले यासीन मे आई है)
ज़ोहूर और फ़रज के लिए दुआ की गुज़ारिश
इमाम (अलैहिस्सलाम) ने इसहाक बिन याकूब से एक तौक़ीअ मे फ़रमाया:
إِنِّی لَأَمَانٌ لِأَهْلِ اَلْأَرْضِ کَمَا أَنَّ اَلنُّجُومَ أَمَانٌ لِأَهْلِ اَلسَّمَاءِ فَأَغْلِقُوا بَابَ اَلسُّؤَالِ عَمَّا لاَ یَعْنِیکُمْ وَ لاَ تَتَکَلَّفُوا عِلْمَ مَا قَدْ کُفِیتُمْ وَ أَکْثِرُوا اَلدُّعَاءَ بِتَعْجِیلِ اَلْفَرَجِ فَإِنَّ ذَلِکَ فَرَجُکُمْ इन्नी लअमानुन लेअहलिल अर्ज़े कमा अन्नन नुजूमा अमानुन लेअहलिस समाए फ़अग़लेक़ू बाबस सवाले अम्मा ला याअनीकुम वला तताकल्लफ़ू इल्मा मा क़द कुफ़ीतुम व अक्सेरुद दुआ बेतअजीलिल फ़रज़े फ़इन्ना जालेका फ़रजोकुम
मैं धरती के लोगों की सुरक्षा हूँ, जैसे तारे आसमान के लोगों की सुरक्षा हैं। उन चीज़ों के बारे में मत पूछो जिनसे तुम्हें कोई फ़ायदा नहीं है, और जो करने के लिए तुमसे नहीं कहा गया है, उसे सीखने का बोझ खुद पर मत डालो, और फ़रज की जल्दी के लिए दुआ अधिक करो, बेशक यही तुम्हारी फ़रज है। (कमालुद्दीन, भाग 2, पेज 483)
विरोधियों और बिद्अत गुज़ारो का इंकार और उनका खंडन करना,
शक और फ़िक़्ही मसाइल का जवाब,
अहले-बैत से प्यार और तक़वा की सिफ़ारिश, आदि इन पत्रो (तौक़ीआत) मे पाई जाने वाली दूसरी बातें हैं।
श्रृंखला जारी है ---
इक़्तेबास : "दर्स नामा महदवियत" नामक पुस्तक से से मामूली परिवर्तन के साथ लिया गया है, लेखक: खुदामुराद सुलैमियान













