رضوی

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मलेशिया के प्रधान मंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि मुसलमानों को हमेशा दृढ़ रहना चाहिए और एकता के अर्थ और आवश्यकता को समझना चाहिए, एकता विकास के लिए एक महत्वपूर्ण शर्त है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,एक रिपोर्ट के अनुसार, मलेशिया के प्रधान मंत्री अनवर इब्राहीम ने कुआलालंपुर वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में देश की 64वीं कुरान हिफ़्ज़ और क़िराअत प्रतियोगिता के उद्घाटन पर कहा, इस्लामी देशों के बीच भ्रम और विभाजन हमलों, अपमान और दुश्मनों का प्रभुत्व का एक कारक बन सकता है। जैसा कि हम गाजा, फ़िलिस्तीन और अब लेबनान में देख रहे हैं।

उन्होंने जोर दिया, मुसलमानों को हमेशा दृढ़ रहना चाहिए और एकता के अर्थ और आवश्यकता को समझना चाहिए जो एक स्थायी अर्थव्यवस्था के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण शर्त है।

उन्होंने कहा मुसलमानों को किसी भी कार्य को करने में समझ धैर्य और चातुर्य होना चाहिए क्योंकि योजना ही अगले कदम का आधार होगी यही कारण है कि हमने अपनी सरकार में मजबूत एकता बनाकर और अपने देश में मुसलमानों और गैर-मुसलमानों के बीच समझ और शांति सुनिश्चित करके शुरुआत की है।

उन्होंने कहा, यह न केवल स्थिर बल्कि मजबूत अर्थव्यवस्था के लिए एक शर्त है शहरी, ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों और अन्य समुदायों के गरीबों को जो खुद को हाशिए पर महसूस करते हैं आराम और आत्मविश्वास मिलना चाहिए।

इसके अलावा मलेशिया के प्रधान मंत्री ने लोगों से उनकी सरकार द्वारा सामने रखी गई नागरिक राष्ट्र की अवधारणा को समझने के लिए कहा क्योंकि कई देशों में ऐसा दृष्टिकोण नहीं है।

अनवर ने मुसलमानों को नए विज्ञान और प्रौद्योगिकियों को सीखने के लिए भी आमंत्रित किया क्योंकि इससे अब और भविष्य में उनकी शक्ति मजबूत होगी।

उन्होंने कहा,यही कारण है कि सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है कि अब देश भर में कुरान कंठस्थ स्कूलों के लगभग 200,000 छात्रों को ऊर्जा, डिजिटल और कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसे विभिन्न क्षेत्रों में तकनीकी कौशल से परिचित कराया जाए।

प्रधानमंत्री ने यह भी उम्मीद जताई कि इस देश की 64वीं कुरान प्रतियोगिता मुस्लिम समुदाय के स्तर को ऊंचे और सराहनीय स्तर पर पहुंचाएगी।

 

गाजा पर क्रूर इजरायली बमबारी की एक साल पर संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, स्पेन, तेल अवीव और लंदन में फिलिस्तीनियों के समर्थन में और इजरायल के खिलाफ प्रदर्शन आयोजित किए गए। वहीं, विरोध प्रदर्शनों में संघर्ष विराम की भी जोरदार मांग उठी।

गाजा पर क्रूर इजरायली बमबारी की एक साल  पर संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, स्पेन, तेल अवीव और लंदन में फिलिस्तीनियों के समर्थन में और इजरायल के खिलाफ प्रदर्शन आयोजित किए गए। सूत्रों के मुताबिक लंदन में करीब 40,000 लोगों के साथ इजरायली आक्रामकता पर एक बड़ा विरोध प्रदर्शन किया गया और गाजा में तत्काल युद्धविराम की मांग की गई. इसके अलावा, फ्रांस में प्रदर्शनकारियों ने गाजा और लेबनान में इजरायली आक्रामकता के खिलाफ विरोध मार्च निकाला, पेरिस में लोगों ने फिलिस्तीनी और लेबनानी झंडे लहराते हुए इजरायली अत्याचारों को समाप्त करने की मांग की। दूसरी ओर, स्वीडन में सैकड़ों लोगों ने फिलिस्तीनियों के साथ अपनी एकजुटता व्यक्त की और स्टॉकहोम की सड़कों पर फिलिस्तीनी झंडा उठाया और युद्धविराम की मांग की।

नेतन्याहू के खिलाफ बड़ा प्रदर्शन

उधर, इजराइल में भी प्रधानमंत्री नेतन्याहू की सरकार के खिलाफ बड़ा प्रदर्शन हुआ, जिसमें हजारों लोग तेल अवीव की सड़कों पर उतरे और बंधकों की रिहाई के लिए गाजा युद्धविराम समझौते की मांग की। प्रदर्शनकारियों ने इज़रायली हमलों की निंदा करते हुए तख्तियां ले रखी थीं। प्रदर्शनकारी लगातार 'शांति नहीं युद्ध' के नारे लगा रहे थे। प्रदर्शनकारियों ने संयुक्त राष्ट्र सहित अंतरराष्ट्रीय समुदाय से गाजा में युद्धविराम के लिए अपनी भूमिका निभाने की मांग की। अन्यायपूर्ण हत्याएं रोकी जाएंगी और गलियारे खोले जाएंगे ताकि जरूरी सामान पहुंचाया जा सके। विरोध प्रदर्शन में नागरिक समाज और मानवाधिकार संगठनों समेत बड़ी संख्या में छात्र शामिल हुए। प्रदर्शनकारियों ने एकजुटता दिखाने के लिए फ़िलिस्तीनी स्कार्फ पहने। प्रदर्शनकारियों ने लेबनान के बाद गाजा और वेस्ट बैंक पर इजरायल के हमलों की भी कड़ी निंदा की। वहीं, तेल अवीव में प्रदर्शनकारियों ने नेतन्याहू की कड़ी आलोचना की और युद्धविराम समझौता न होने के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया।

 

 

 

 

 

जामेआतुल मुस्तफा के प्रमुख, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अब्बासी ने इराकी कुर्दिस्तान के सुन्नी उलेमा से मुलाकात के दौरान कहा कि इसराइल के अत्याचारों में पश्चिमी ताकतें भी शामिल हैं उन्होंने फिलिस्तीन और लेबनान में इसराइल के अपराधों पर वैश्विक चुप्पी की निंदा की और मुसलमानों की शैक्षणिक और आपसी विभाजन को उम्मत ए इस्लामीया की कमज़ोरी का कारण बताया हैं।

एक रिपोर्ट के अनुसार, जामेआतुल मुस्तफा के प्रमुख,हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अब्बासी ने इराकी कुर्दिस्तान के सुन्नी उलेमा से मुलाकात के दौरान कहा कि इसराइल के अत्याचारों में पश्चिमी ताकतें भी शामिल हैं

उन्होंने फिलिस्तीन और लेबनान में इसराइल के अपराधों पर वैश्विक चुप्पी की निंदा की और मुसलमानों की शैक्षणिक और आपसी विभाजन को उम्मत ए इस्लामीया की कमज़ोरी का कारण बताया हैं।

उन्होंने कहा इजरायल शासन के अपराध केवल पिछले एक साल तक सीमित नहीं हैं, बल्कि पिछले 75 सालों से जारी हैं।

उन्होंने इस्लामी दुनिया में आपसी विभाजन और शैक्षणिक पिछड़ेपन को मुसलमानों की कमजोरी का कारण बताया और उपनिवेशवाद की साजिशों का इतिहास बयान किया। उन्होंने आगे कहा कि ज़ायोनी शासन पश्चिमी ताकतों की इस्लाम के खिलाफ एक साज़िश है।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अब्बासी ने अपनी बातचीत में, इसराइल के अपराधों पर वैश्विक समुदाय की चुप्पी की निंदा की और कहा कि इसराइल का गठन पश्चिमी शक्तियों की एक साज़िश थी ताकि मुसलमानों को कमजोर किया जा सके।

उन्होंने फिलिस्तीनी जनता के समर्थन और पश्चिमी साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष के महत्व को भी उजागर किया अब्बासी ने कहा कि इसराइल के अपराधों के पीछे 75 साल का लंबा इतिहास है और अरब देशों की कोशिशें पश्चिमी ताकतों के समर्थन के कारण नाकाम हुई हैं।

उन्होंने पश्चिमी देशों को इसराइल के अपराधों में साझेदार ठहराया और कहा कि वैश्विक समुदाय की चुप्पी ने इन अपराधों को और बढ़ावा दिया है। इसी कारण इसराइल की हिम्मत बढ़ी है और अमेरिका तथा उसके सहयोगियों के समर्थन की वजह से आज इसराइल पूरी दुनिया के लिए एक बड़ा खतरा बन चुका है।

 

हज़रत मासूमा (स) के मुतवल्ली आयतुल्लाह सय्यद मुहम्मद सईदी ने कहा कि एक सच्चा विद्वान वह है जो लोगों के साथ रहता है ताकि लोग अपनी समस्याओं के समाधान के लिए उसकी ओर रुख करें ताकि वे खुद को पाप से बचा सकें और खुशी पा सकें एक विद्वान का प्रयास स्वयं को, अपने आस-पास के लोगों और पूरे समाज को बचाना और उनके भाग्य को व्यवस्थित करना है।

आयतुल्लाह सय्यद मुहम्मद सईदी ने दिवंगत आयतुल्लाह महफ़ूज़ी (र) के परिवार के सदस्यों के साथ एक बैठक में कहा: "ज्यादातर लोग इस दुनिया में अपने निजी जीवन के लिए रहते हैं, लेकिन एक विद्वान और मरजा तकलीद के लिए हैं वह लोगों के लिए जीता है, और यही कारण है कि उसे मार्जा कहा जाता है, वह व्यक्ति जिसकी ओर लोग मुड़ते हैं।

उन्होंने आगे कहा कि एक विकसित समाज की बुनियादी जरूरतों में से एक विद्वान का होना है और एक विद्वान का मुख्य लक्षण लोगों के साथ रहना और उनकी कठिनाइयों में हिस्सा लेना है। लोगों के जीवन की विभिन्न समस्याओं, शरीयत मामलों और मतभेदों को हल करने के लिए विद्वानों से संपर्क किया जाता है और यह कभी-कभी एक विद्वान के जीवन को कठिन बना देता है।

मासूमा (अ) के हरम के मुतवल्ली ने कहा, "आम लोग नरक की आग से बचने और खुद को बचाने की कोशिश करते हैं, लेकिन एक विद्वान की जिम्मेदारी इस कारण से खुद को, अपने रिश्तेदारों और समाज को बचाना है। लोगों के बीच उलेमा का हमेशा सम्मान किया गया है।"

हज़रत पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने अपने दोनों नवासों हज़रत इमाम हसन और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के बारे में यह प्रसिद्ध वाक्य फ़रमायाः

_اَلْحَسَنُ وَ الْحُسَیْنُ سَیِّدا شَبابِ أَهْلِ الْجَنَّةِ _

  हसन और हुसैन जन्नत के जवानों के सरदार हैं।(1)

  एक दूसरी हदीस में बयान हुआ है किः कुछ लोग पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद (स) के साथ एक मेहमानी में गये, आप (स) इस सारे लोगों से आगे आगे चल रहे थे। आपने रास्ते में इमाम हुसैन (अ) को देखा। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने चाहा कि अपनी गोद में उठा लें, लेकिन हुसैन (अ) एक तरफ़ से दूसरी तरफ़ भाग जाते थे, पैग़म्बर (स) यह देखकर मुस्कुराए और आप को गोद में उठा लिया, एक हाथ को आप के सर के पीछे और दूसरे हाथ को ठुड्डी के नीचे लगाया और अपने पवित्र होठों को हुसैन के होठों पर रखा और चूमा फिर फ़रमायाः

«حُسَینٌ مِنّی وَ أَنَا مِنْ حُسَین أَحَبَّ اللهُ مَنْ أَحَبَّ حُسَیناً»؛

  हुसैन मुझ से हैं और मैं हुसैन से हूँ जो भी हुसैन को दोस्त रखता है, अल्लाह उसको दोस्त रखता है।(2)

*पैग़म्बरे इस्लाम (स) की पत्नी और इमाम हुसैन (अ)*

  शिया और सुन्नी रिवायतों में बयान हुआ है कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) की पत्नी जनाबे उम्मे सलमा कहती हैं: एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम (स) आराम कर रहे थे कि मैंने देखा इमाम हुसैन (अ) ने प्रवेश किया और पैग़म्बर (स) के सीने पर बैठ गये, पैगम़्बरे इस्लाम (स) ने फ़रमायाः शाबाश मेरी आंखों के नूर, शाबाश मेरे दिल के टुकड़े, जब हुसैन (अ) को पैग़म्बर (स) के सीने पर बैठे बहुत देर हो गई तो मैंने स्वंय से कहा कि शायद पैगम़्बर (स) को परेशानी हो रही हो और मैं आगे बढ़ी ताकि हुसैन को आप के सीने से उतार दूँ। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने फ़रमायाः उम्मे सलमा! जब तक मेरा हुसैन स्वंय जब तक चाहता है उसे मेरे सीने पर बैठने दो और जान लो कि जो भी एक बाल के बराबर भी मेरे हुसैन को दुख दे वह ऐसा ही है जैसे उसने मुझे दुख दिया हो।

  जनाबे उम्मे सलमा कहती है: मैं घर से बाहर चली गई और जब वापस आई और पैग़म्बर (स) के कमरे में पहुँची तो मैंने देखा कि पैग़म्बर रो रहे हैं, मुझे बहुत आश्चर्य हुआ! और मैंने कहा: ऐ अल्लाह के रसूल! अल्लाह कभी आप को न रुलाए, आप क्यों दुखी हैं? मैंने देखा कि पैग़म्बर (स) के हाथ में कोई चीज़ है और उसको देख रहें हैं और रो रहे हैं। मैं आगे गईं तो देखा एक मुट्ठी ख़ाक़ आपके हाथ में है। मैंने सवाल किया: ऐ अल्लाह के रसूल! यह कौन सी ख़ाक है जिसने आपको इतना दुखी कर दिया। पैग़म्बर ने फ़रमायाः ऐ उम्मे सलमा! अभी जिब्रईल मुझ पर नाज़िल हुए और कहा कि यह करबला की मिट्टी है और यह मिट्टी वहां की है जहां आप का बेटा हुसैन दफ़्न होगा। ऐ उम्मे सलमा! इस मिट्टी को लो और एक शीशी में रख दो, जब भी देखों कि इस ख़ाक का रंग ख़ून हो गया है, तब समझ जाना कि मेरा बेटा हुसैन शहीद कर दिया गया है।

  जनाबे उम्मे सलमा कहती हैं: मैंने उस ख़ाक को पैग़म्बर (स) से ले लिया जिसमें से एक अजीब तरह की सुगंध आ रही थी, जब इमाम हुसैन (अ) ने करबला की तरफ़ यात्रा आरंभ की तो मैं बहुत परेशान थी और हर दिन उस ख़ाक को देखती थी, यहां तक कि एक दिन मैंने देखा कि पूरी ख़ाक ख़ून में बदल गई है और मैं समझ गई इमाम हुसैन शहीद कर दिये गये हैं। इसलिये मैंने रोना शुरू कर दिया और उस दिन रात तक हुसैन (अ) पर रोती रही, उस दिन मैंने खाना नहीं खाया, यहां तक की रात हो गई और मैं दुख के साथ सो गई। मैंने स्वप्न में पैग़म्बरे इस्लाम (स) को देखा कि वह आये हैं लेकिन आप का सर और चेहरा मिट्टी से अटा है! मैंने आपके चेहरे से मिट्टी और ख़ाक को साफ करना शुरू कर दिया और कहने लगी: ऐ अल्लाह के रसूल! मैं आप पर क़ुरबान, यह मिट्टी और ख़ाक कहा की है जो आप पर लगी है? पैग़म्बर ने फ़रमायाः ऐ उम्मे सलमा! अभी अभी मैंने अपने हुसैन को दफ़्न किया है!(3)

*हज़रते फ़ातिमा ज़हरा (स) और इमाम हुसैन (अ)*

  इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) से रिवायत है कि क़यामत के दिन हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) नूर के एक गुंबद में बैठी होंगी। उसी समय इमाम हुसैन (अ) महशर में आएंगे, इस हालत में कि उनका कटा सर उनके हाथ में होगा, फ़ातिमा (स) इस दृश्य को देखकर चीख़कर रोती हैं और गिर जाती है और सारे नबी और दूसरे लोग इस दृश्य को देखकर रोने लगते हैं फिर इमाम हुसैन (अ) के हत्यारे आएंगे और उन पर मुक़द्दमा चलेगा और फिर उनको भयानक अज़ाब दिया जाएगा...(4)

*हज़रत अली (अ) और इमाम हुसैन (अ)*

  एक दिन हज़रत अली (अ) करबला की तरफ़ से गुज़रे और फ़रमायाः

قال على (عليه السلام): هذا... مصارع عشاق شهداء لا يسبقهم من كان قبلهم و لا يلحقهم من كان بعدهم.

  यह आशिक़ों की क़त्लगाह और शहीदों के शहीद होने का स्थान है पर वह शहीद जिनके बराबर ना पिछले शहीद हो सकते हैं और ना आने वाले शहीद हो सकेंगे।(5)

*इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और रोना*

امام حسين عليه السلام: أنَا قَتيلُ العَبَرَةِ لايَذكُرُني مُؤمِنٌ إلاّ استَعبَرَ؛

  इमाम हुसैन (अ) ने फ़रमायाः मैं आँसूओं का मारा हूँ, जो भी मोमिन मुझे याद करे, उसके आँसू जारी हो जाएंगे। (6)

*इमाम सज्जाद (अ) और इमाम हुसैन (अ) पर गिरया*

  इमाम सज्जाद ज़ैनुल आबिदीन (अ) जिन्होंने स्वंय करबला के मैदान में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके वफ़ादार साथियों पर होने वाले भयानक अत्याचारों और मसाएब को देखा था, आशूरा की घटना के बाद आप जब तक जीवित रहे आपने कभी भी इस दिल दहला देने वाली घटना को नहीं भुलाया और सदैव इन शहीदों पर रोते रहते थे और जब भी आप पानी पीने चलते तो पानी को देखते ही आपकी आँखों से आँसू जारी हो जाते, जब लोगों ने आपसे इसका कारण पूछा तो आप फ़रमाते थे: मैं कैसे न रोऊँ जब कि यज़ीदियों ने पानी को जानवरों और दरिंदों पर तो खोल रखा था लेकिन मेरे पिता पर बंद कर दिया और उनको प्यासा शहीद कर दिया।

  इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम कहते हैं: जब भी मैं फ़ातिमा (स) के बेटे की शहादत को याद करता हूँ मुझे रोना आ जाता है। जब लोग आपको सात्वना देते थे तो आप फ़रमाते थे:

«كيف لا أبكي؟ و قد منع أبى من الماء الذى كان مطلقا للسباع والوحوش».

  मैं कैसे न रोऊँ जब कि मेरे पिता पर पानी बंद किया गया जब कि जानवर और दरिंदे वही पानी पी रहे थे।(7)

  इमाम सज्जाद (अ) अपने पिता पर इतना रोए कि उनको इतिहास के पाँच रोने वालों में रखा गया और जब भी आप से इतना अधिक रोने के बारे में पूछा जाता तो आप करबला के मसाएब को याद करते और फ़रमातेः मुझे ग़लत न कहो, याक़ूब अलैहिस्सलाम ने अपना एक बेटा युसूफ़ अलैहिस्सलाम खोया था लेकिन इतना रोए थे कि ग़म से उनकी आँखें सफ़ेद हो गईं थी, जब कि उनको विश्वास था कि उनका बेटा जीवित है जब कि मैंने अपनी आँखों से देखा कि आधे दिन में मेरे परिवार के चौदह लोगों का गला काट दिया गया, फिर भी तुम कहते हो कि मैं उनके ग़म को दिल से निकाल दूँ?!(8)

  आप न केवल यह कि स्वयं इमाम हुसैन (अ) के ग़म में आँसू बहाया करते थे बल्कि मोमिनों को भी आप पर रोने और अज़ादारी करने के लिये कहा करते थे।

«ايما مؤمن دمعت عيناه لقتل الحسين حتى تسيل على خده بواه الله بها فى الجنة غرفا يسكنها احقابا».

  हर मोमिन जो इमाम हुसैन (अ) की शहादत पर इतना रोए कि आँसू उसके गाल पर बहने लगें तो अल्लाह उसके लिये स्वर्ग में महल बनाता है जिसमें वह सदैव रहेगा।(9)

  इमाम सज्जाद ज़ैनुल आबेदीन (अ) फ़रमाते हैं:

أنَا ابنُ مَنَ بَكَت عَلَيهِ مَلائِكَةُ السَّماءِ أنَا ابنُ مَن ناحَتْ عَلَيهِ الجِنُّ فِي الأرضِ و الطِّيرُ فِي الهَواءِ؛

  मैं उसका बेटा हूँ जिस पर आसमान के फ़रिश्तों ने आँसू बहाए। मैं उसका बेटा हूँ जिस पर जिन्नातों ने ज़मीन पर और पक्षियों ने हवा में आँसू बहाए।(10)

*इमाम हुसैन (अ) और इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ)*

  इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ) इमाम हुसैन (अ) पर आँसू बहाते थे और जो भी घर में होता था उस को भी रोने का आदेश दिया करते थे।(11)

  और आपके घर में इमाम हुसैन (अ) की मजलिस और अज़ादारी हुआ करती थी और उपस्थित होने वाले इमाम हुसैन (अ) के मुसीबतों पर एक दूसरे के सामने शोक प्रकट किया करते थे।

*इमाम मूसा काज़िम (अ) और इमाम हुसैन (अ)*

  इमाम अली रज़ा (अ) फ़रमाते हैं:

كان ابى اذا دخل شهر المحرم لا يرى ضاحكا و كانت الكابة تغلب عليه حتى يمضى منه عشرة ايام، فاذا كان اليوم العاشر كان ذلك اليوم يوم مصيبته و حزنه و بكائه...

  मेरे पिता इमाम मूसा काज़िम (अ) की रविश यह थी कि जब भी मोहर्रम आता था हमेशा दुखी रहते थे यहां तक कि आशूरा के दस दिन पूरे हो जाए, आशूरा का दिन उनके रोने और मातम का दिन था... और आप फ़रमाते थे:

 «هو اليوم الذى قتل فيه الحسين. (12)

*इमाम अली रज़ा (अ) और इमाम हुसैन (अ)*

  इमाम अली रज़ा (अ) ने फ़रमायाः

إن بَكَيتَ عَلَى الحُسَينِ حَتّى تَصيرَ دُموعُكَ عَلى خدَّيكَ غَفَرَاللّه ُ لَكَ كُلَّ ذَنبٍ أذنَبتَهُ

  अगर तुम हुसैन (अ) पर रोओ, इस प्रकार कि तुम्हारे आँसू तुम्हारे गालों पर जारी हो जाएं, तो अल्लाह तुम्हारे सारे पापों को क्षमा कर देता है।(13)

  इमाम अली रज़ा (अ) ने फ़रमायाः मोहर्रम वह महीना है कि जिसमें जाहेलियत के ज़माने में लोग युद्ध को वर्जित समझते थे, लेकिन शत्रुओं ने इस महीने में हमारा रक्त बहाया और हमारे सम्मान को ठेस पहुँचाई और हमारी संतान को बंदी बनाया और हमारे ख़ैमों में आग लगाई, हमारी सम्पत्ति लूटी और हमारे हक़ में पैग़म्बर (स) के सम्मान का ख़याल नहीं किया।(14)

«ان يوم الحسين اقرح جفوننا و أسبل دموعنا و أذل عزيزنا بأرض كربلا.... على مثل الحسين (عليه السلام) فليبك الباكون، فان البكاء عليه يحط الذنوب العظام.»

  इमाम हुसैन (अ) की शहादत ने हमारे आँसूओं को जारी कर दिया और हमारी आँखों की पलकों को घायल कर दिया और करबला में हमारे मान मर्यादा का अपमान किया... रोने वालों को हुसैन पर रोना चाहिये, उन पर रोना बड़े पापों को समाप्त कर देता है।(15)

  इमाम अली रज़ा (अ) ने रय्यान बिन शबीब से फ़रमायाः

«ان كنت باكيا لشى‏ ء فابك للحسين بن على فانه ذبح كما يذبح الكبش و قتل معه من أهل بيته ثمانية عشر رجلا ما لهم فى الارض شبيهون...».

  अगर किसी चीज़ पर रोना चाहो तो हुसैन (अ) पर गिरया करो क्योंकि उनकी गर्दन को भेड़ की गर्दन की तरह काट दिया गया और उनके साथ उनके अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम (परिवार वालों) के अट्ठारह मर्द शहीद हुए जिनके जैसा दुनिया में कोई नहीं था।

  फिर इब्ने शबीब से फ़रमायाः अगर चाहते हो कि स्वर्ग में हमारे साथ ऊँचे दर्जे पर रहो, तो दुखी रहो हमारे दुख में और प्रसन्न रहों हमारी ख़ुशी में।(16)

*हज़रत इमाम महदी (अ) और इमाम हुसैन (अ)*

  इमाम महदी (अ) पवित्र ज़ियारते नाहिया में फ़रमाते हैं:

 لأَندُبَنَّكَ صَباحا و مَساءً و لأَبكِيَنَّ عَلَيكَ بَدَلَ الدُّمُوعِ دَما؛

  मैं हर सुबह शाम आप पर रोता हूँ और आपकी मुसीबत पर आँसू की जगह ख़ून रोता हूँ।(17)

  इमाम हुसैन (अ) पर रोने के बारे में आने वाली बहुत सी रिवायतों से पता चलता है कि इमाम हुसैन (अ) पर इस संसार की सारी चीज़ें रोती हैं।

  ज़मीन रोती है आसमान रोता है। ग़मे हुसैन में सारा जहान रोता है।

(1) सुनने तिरमिज़ी, जिल्द 5, पेज 426

(2) सुनने तिरमिज़ी, जिल्द 5, पेज 424 / अल इरशाद शेख़ मुफ़ीद, जिल्द 2, पेज 127

(3) तोहफ़तुज़्ज़ाएर, मरहूम मजलिसी, पेज 168

(4) सवाबुल आमाल, जलाउल उयून के हवाले से जिल्द 1, पेज 227

(5) अबसारुल ऐन फ़ी अनसारिल हुसैन, पेज 22 /  बिहारुल अनवार, जिल्द 44, पेज 298

(6) बिहारुल अनवार जिल्द 44, पेज 284

(7) बिहारुल अनवार जिल्द 46, पेज 108

(8) अमाली, शेख़ सदूक़, मजलिस 29, पेज 121

(9) तफ़सीरे क़ुम्मी, पेज 616

(10) मनाक़िबे आले अबी तालिब, जिल्द 3, पेज 305

(11) वसाएलुश्शिया, जिल्द 10, पेज 398

(12) बिहारुल अनवार, जिल्द 44, पेज 293

(13) बिहारुल अनवार, जिल्द 44, पेज 286

(14) बिहारुल अनवार, जिल्द 44, पेज 283

(15) अमाली, शेख़ सदूक़, जिल्द 1, पेज 225

(16) वसाएलुश्शिया, जिल्द 14, पेज 502

(17) बिहारुल अनवार, जिल्द 101, पेज 238

अमेरिका के राष्ट्रपति ने फ़िलिस्तीनी और लेबनानी जनता के ख़िलाफ मानवता के विरुद्ध अपराधों को जारी रखने के लिए ज़ायोनी शासन को हरी झंडी देना जारी रखा है और स्वीकार किया कि अमेरिका में किसी भी सरकार ने इज़राइल की उतनी मदद नहीं की है जितनी उनकी सरकार ने की है।

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने हाल ही में ज़ायोनियों को संबोधित करते हुए एक बयान में कहा कि मेरी सरकार से ज्यादा किसी सरकार ने इज़राइल की मदद नहीं की है।

बाइडन ने, जो स्वयं स्वीकार करते हैं कि ज़ायोनी शासन और उसके युद्ध समर्थकों के सबसे बड़े समर्थक हैं, आगे दावा किया कि उनका महत्वपूर्ण मुद्दा, पश्चिम एशियाई क्षेत्र में पूर्ण पैमाने पर युद्ध को रोकना है।

पश्चिम एशिया में शांति और अम्न स्थापित करने के अमेरिका के दावे, ज़ायोनी शासन के समर्थन में उसकी कार्यवाहियों से मेल नहीं खाते। लंबे समय से, अमेरिका, घरेलू और वैश्विक जनमत के दबाव में, ग़ज़ा और लेबनान में युद्ध रोकने के लिए युद्धविराम स्थापित करने और पक्षों के बीच एक समझौते पर पहुंचने की कोशिश करने का दावा भी कर रहा है।

यह दावा तब किया गया है कि जब अमेरिकी सरकार, पश्चिम एशिया में युद्ध और हत्यारी लॉबी की इच्छा के अनुरूप, हमेशा कई और विरोधाभासी रुख़ अपना रही है, वह मुद्दा जिसके कारण ज़ायोनी प्रधानमंत्री को निडर होकर अपने अपराध जारी रखने पड़े और अब युद्ध का दायरा लेबनान तक बढ़ गया है।

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के समय में तेल अवीव और वाशिंगटन के बीच हुए समझौते के अनुसार यह निर्णय लिया गया था कि अमेरिका, ज़ायोनी शासन को सालाना 3.8 बिलियन डॉलर का सैन्य पैकेज देगा।

दूसरी ओर, 7 अक्टूबर, 2023 को हमास के साथ इज़राइल के युद्ध की शुरुआत के बाद से, अमेरिका ने इज़राइल को कम से कम 12.5 बिलियन डॉलर की सैन्य सहायता प्रदान करने वाला कानून बनाया है जिसमें मार्च 2024 के बिल से 3.8 बिलियन डॉलर (वर्तमान समझौते के आधार पर) और अप्रैल 2024 के समझौते के आधार पर  8.7 बिलियन डॉलर की सैन्य सहायता देगा।

इसी रिपोर्ट के अनुसार, 1946 से 2024 तक इज़राइल को अमेरिकी सैन्य सहायता की राशि 2022 में डॉलर की क़ीमत के आधार पर 230 बिलियन डॉलर से अधिक हो गई है।

दूसरी ओर अमेरिकी विदेशमंत्रालय ने हाल ही में एक बयान जारी कर लेबनान और अन्य क्षेत्रों में प्रभावित आबादी की मदद के लिए 157 मिलियन डॉलर के मानवीय सहायता पैकेज को विशेष करने का दावा किया है।

 मानवीय सुधार के लिए इस पैकेज के विशेष करने के जवाब में, अल जज़ीरा चैनल ने एलान किया है कि: यह अमेरिका द्वारा दिए गए हथियार ही हैं जो लेबनानी नागरिकों पर टूट पड़े हैं।

वाशिंगटन के व्यापक राजनयिक समर्थन ने भी तेल अवीव के अधिकारियों को पश्चिम एशिया में और अधिक अत्याचार करने के लिए प्रोत्साहित किया है। फिर भी, अमेरिका अभी भी लोकतांत्रिक दिखावे को बनाए रखने की कोशिश करता है।

इस संबंध में, अमेरिकी सीनेट सशस्त्र बल समिति के वरिष्ठ सदस्य, डेमोक्रेटिक सीनेटर मार्क केली ने स्वीकार किया कि ज़ायोनी शासन ने लेबनान में हालिया अपराध में अमेरिका निर्मित गाइडेड बमों का इस्तेमाल किया था।

वाशिंगटन पोस्ट अखबार ने ज़ायोनी शासन द्वारा प्रकाशित तस्वीरों की समीक्षा करने के बाद लिखा: इज़राइल ने बैरूत पर अपने हमले में संभवतः अमेरिका में बने 2000 पाउंड के बमों का इस्तेमाल किया जिसकी वजह से हिज़्बुल्लाह के महासचिव सैयद हसन नसरुल्लाह की शहादत हुई।

 

 

ग़ज़ापट्टी और लेबनान पर ज़ायोनी शासन के हमलों का विरोध करने वाले प्रदर्शनकारियों में से एक ने वाइट हाउस के सामने ख़ुद को आग लगा ली। वॉशिंगटन में वाइट हाउस के सामने फिलिस्तीन और लेबनान के समर्थकों के सामूहिक प्रदर्शन के दौरान एक अमेरिकी प्रदर्शनकारी ने ख़ुद को आग लगा ली।

इस प्रदर्शनकारी ने ख़ुद को आग लगाते हुए फिलिस्तीन की आजादी के लिए नारे लगाए।

वाशिंगटन में प्रदर्शनकारियों ने वाइट हाउस के सामने एक बड़ा प्रदर्शन करके ग़ज़ा पट्टी और लेबनान में ज़ायोनी शासन के अपराधों को जारी रखने और इन अपराधों के लिए अमेरिका के समर्थन का विरोध किया।

प्राप्त अंतिम रिपोर्टों के अनुसार ज़ायोनी सरकार के पाश्विक हमलों में अब तक 41 हज़ार से अधिक फ़िलिस्तीनी शहीद और 95 हज़ार से अधिक घायल हो चुके हैं।

ज्ञात रहे कि ब्रिटेन की साम्राज्यवादी नीति के तहत ज़ायोनी सरकार का ढांचा वर्ष 1917 में ही तैयार हो गया था और विश्व के विभिन्न देशों व क्षेत्रों से यहूदियों व ज़ायोनियों को लाकर फ़िलिस्तीनियों की मातृभूमि में बसा दिया गया और वर्ष 1948 में ज़ायोनी सरकार ने अपने अवैध अस्तित्व की घोषणा कर दी। उस समय से लेकर आजतक विभिन्न बहानों से फ़िलिस्तीनियों की हत्या, नरसंहार और उनकी ज़मीनों पर क़ब्ज़ा यथावत जारी है।

इस्लामी गणतंत्र ईरान सहित कुछ देश इस्राईल की साम्राज्यवादी सरकार के भंग व अंत किये जाने और इसी प्रकार इस बात के इच्छुक हैं कि जो यहूदी व ज़ायोनी जहां से आये हैं वहीं वापस चले जायें।

हिजबुल्लाह ने शनिवार को कहा कि शुक्रवार आधी रात से शनिवार सुबह तक इस्लामिक प्रतिरोध के समूहों और लेबनान के एक सीमावर्ती शहर में घुसपैठ करने की कोशिश कर रहे इजरायली बलों के बीच हुई झड़पों के दौरान 20 से अधिक इजरायली मारे गए और कई घायल हुए।

हिजबुल्लाह ने शनिवार को कहा कि शुक्रवार आधी रात से शनिवार सुबह तक इस्लामिक प्रतिरोध के समूहों और लेबनान के एक सीमावर्ती शहर में घुसपैठ करने की कोशिश कर रहे इजरायली बलों के बीच हुई झड़पों के दौरान 20 से अधिक इजरायली मारे गए और कई घायल हुए।

हिजबुल्लाह ने एक बयान में कहा,तोपखाने और हवाई कवर के सहारे इजरायली दुश्मन सेना के कुलीन सैनिकों ने दो कुल्हाड़ियों से मारून अलरस और यारून के गांवों की ओर बढ़ने की कोशिश की हैं।

इसमें कहा गया पहले से तैयार घात बिंदुओं पर बलों के पहुंचने पर, इस्लामिक प्रतिरोध सेनानियों ने कई विस्फोटक उपकरणों को विस्फोटित किया और हल्के और मध्यम हथियारों और नजदीक से रॉकेटों के साथ कुलीन अधिकारियों और सैनिकों से भिड़ गए।

हिजबुल्लाह ने बताया कि घात लगाकर किए गए हमले में इजरायली बलों के कई लोग मारे गए और घायल हुए आंदोलन ने कहा कि बचे हुए लोगों ने कब्जे वाले क्षेत्रों के भीतर इजरायली ठिकानों से तोपखाने की आग की आड़ में मृतकों और घायलों को निकाला।

एक बयान के अनुसार, हिजबुल्लाह के लड़ाके कब्जे वाले क्षेत्रों में सीमा रेखा के साथ अपने ठिकानों और पीछे के बैरकों में इजरायली दुश्मन सैनिकों का तोपखाने के गोले और रॉकेट से पीछा कर रहे थे।

लेबनानी सैन्य सूत्र ने कहा कि लगभग 25 सैनिकों की एक इजरायली सेना गांवों के बाहरी इलाकों में लगभग 200 मीटर तक घुस गई। 23 सितंबर से इजरायली सेना हिजबुल्लाह के साथ एक खतरनाक वृद्धि में लेबनान पर गहन हवाई हमला कर रही है।

 

 

 

 

 

मजलिस-ए-उलमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना सय्यद कल्बे जवाद नकवी ने पवित्र पैगंबर मुहम्मद (स) की महिमा का अपमान करने के लिए डासना मंदिर के महंत, कुख्यात यति नरसिंहानंद सरस्वती की निंदा की है।चूंकि उपद्रवी देश में उत्पात मचाना चाहते हैं, ऐसे लोगों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई की जानी चाहिए।

मजलिस-ए-उलेमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना सैयद कल्ब जवाद नकवी ने पैगंबर मुहम्मद की महिमा का अपमान करने के लिए डासना मंदिर के महंत कुख्यात यति नरसिंहानंद सरस्वती की निंदा करते हुए कहा कि यति नरसिंहानंद जैसे उपद्रवी देश में तबाही मचाना चाहते हैं, इसलिए ऐसे लोगों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई की जानी चाहिए।

मौलाना ने कहा कि हाल ही में 'यूएस कमीशन फॉर इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम' (यूएससीआईआरएफ) ने एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें कहा गया है कि भारत में मुसलमानों की जान-माल सुरक्षित नहीं है, जिसके आधार पर यति नरसिंहानंद जैसे लोगों के बयान हैं समय रहते कार्रवाई नहीं होने पर ऐसे लोग पूरी दुनिया में भारत की बदनामी का कारण बनते हैं और उनके बयानों के आधार पर अमेरिका जैसे देशों से भारत के खिलाफ ऐसी खबरें प्रकाशित होती हैं, जिससे भारत की छवि खराब होती है, इसलिए ऐसे लोगों को गिरफ्तार किया जाना चाहिए जेल भेज दिया गया।

अपने बयान में मौलाना ने कहा कि हम पैगम्बर की शान में गुस्ताखी बर्दाश्त नहीं कर सकते, इसलिए हम सरकार से मांग करते हैं कि यति नरसिंहानंद के खिलाफ तुरंत कानूनी कार्रवाई की जाए।

बांग्लादेश में बिजली गिरने से करीब 300 लोगों की मौत हुई है जिनमें ज़्यादातर ग्रामीण किसान हैं।

एक रिपोर्ट के अनुसार ,इस साल फरवरी से सितंबर के बीच बिजली गिरने से 242 पुरुषों और 55 महिलाओं समेत कुल 297 लोगों की मौत हुई है, यह जानकारी समाचार एजेंसी ने दी है।

स्थानीय संगठन सेव द सोसाइटी और थंडरस्टॉर्म अवेयरनेस फोरम (SSTF) ने शनिवार को ढाका में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में मरने वालों की संख्या प्रकाशित की हैं।

इसने कहा कि बिजली गिरने से होने वाली मौतों की ज़्यादातर घटनाएं ग्रामीण इलाकों में हुईं, जहां लोग अपने खेतों में काम कर रहे थे।

SSTF ने कहा कि बिजली गिरने से होने वाली मौतों के आंकड़े राष्ट्रीय दैनिक समाचार पत्रों, स्थानीय दैनिक समाचार पत्रों, ऑनलाइन समाचार पोर्टलों और टेलीविजन चैनलों से एकत्र किए गए हैं।

 

मई में 96 से ज़्यादा मौतें हुईं, जून में 77, जुलाई में 19, अगस्त में 17 और सितंबर में 47 मौतें हुईं।

बांग्लादेश में बिजली गिरने से होने वाली मौतें उन महीनों में आम बात है जब मौसम शुष्क मौसम से बदलकर बरसाती गर्मी के मौसम में बदल जाता है।

लेकिन दक्षिण एशियाई देश में हाल के वर्षों में बिजली गिरने से होने वाली मौतों में उछाल देखा गया है और देश के कुछ विशेषज्ञों ने इस स्थिति के लिए सीधे तौर पर जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहराया है।

बांग्लादेश में हाल के वर्षों में बिजली गिरने से होने वाली मौतों की संख्या में वृद्धि हुई है, जो जलवायु परिवर्तन के कारण हुई है। देश में हर साल बिजली गिरने से औसतन 300 मौतें दर्ज की जाती हैं।