رضوی

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गुरुवार, 12 जून 2025 17:34

ईदे ग़दीर

जिस वक़्त पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के पास ईश्वरीय संदेश वही लाने वाले फ़रिश्ते हज़रत जिबरईल मायदा सूरे की आयत नंबर 67 लेकर उतेर कि जिसमें ईश्वर कह रहा है, हे पैग़म्बर! जो बात आप तक पहुंचायी जा चुकी है उसे लोगों तक पहुंचा दीजिए, पैग़म्बरे इस्लाम किसी बात से बहुत चिंतित थे। उन्हें इस्लाम के भविष्य की ओर से चिंता थी। यही कारण था कि आयत नंबर 67 के संदेश को पहुंचाने में विलंब करते जा रहे थे ताकि उचित समय पर ईश्वर के इस संदेश को लोगों तक पहुंचाएं किन्तु ईश्वर का यह

ईदे ग़दीर

जिस वक़्त पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के पास ईश्वरीय संदेश वही लाने वाले फ़रिश्ते हज़रत जिबरईल मायदा सूरे की आयत नंबर 67 लेकर उतेर कि जिसमें ईश्वर कह रहा है, हे पैग़म्बर! जो बात आप तक पहुंचायी जा चुकी है उसे लोगों तक पहुंचा दीजिए, पैग़म्बरे इस्लाम किसी बात से बहुत चिंतित थे। उन्हें इस्लाम के भविष्य की ओर से चिंता थी। यही कारण था कि आयत नंबर 67 के संदेश को पहुंचाने में विलंब करते जा रहे थे ताकि उचित समय पर ईश्वर के इस संदेश को लोगों तक पहुंचाएं किन्तु ईश्वर का यह संदेश दुबारा कुछ और बातों के इज़ाफ़े के साथ आया। इस बार के संदेश में एक तरह की धमकी थी। ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम से दो टूक शब्दों में कहा कि अगर आपने यह संदेश नहीं पहुंचाया तो मानो आपने अपना दायित्व नहीं निभाया। उसके बाद ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम को यह भी संदेश भिजवाया कि वह उन्हें लोगों की ओर से ख़तरे से बचाएगा ।

   दसवीं हिजरी क़मरी का ज़माना था। पैग़म्बरे इस्लाम ने हज का एलान किया और लोगों को यह कहलवा भेजा कि जिस जिस व्यक्ति में हज करने की क्षमता है वह ज़रूर हज करे क्योंकि ईश्वर के दो संदेश अभी भी संपूर्ण रूप में लोगों तक नहीं पहुंचे थे। एक हज और दूसरा पैग़म्बरे इस्लाम के उत्तराधिकारी का विषय था। इस सार्वजनिक एलान के बाद ज़्यादातर मुसलमान हज के मौक़े पर मक्का पहुंचे ताकि हज के विषय को विस्तार से समझ सकें। इसके अलावा पैग़म्बरे इस्लाम ने सांकेतिक रूप में यह भी कहलवा दिया था कि यह उनका आख़िरी हज होगा। यही कारण था कि सन दस हिजरी क़मरी के हज के अवसर पर 120000 हाजी हज करने पहुंचे। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम हज के संस्कार एक के बाद एक अंजाम देते और उसके बारे में विस्तार से बताते जाते थे।

  मिना के मैदान में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ने एक बड़ा भाषण दिया। इस भाषण में पैग़म्बरे इस्लाम ने सबसे पहले मुसलमानों की जान, माल, और इज़्ज़त की नज़र से सामाजिक सुरक्षा का उल्लेख किया। उसके बाद अज्ञानता के काल में निर्दोष लोगों के बहाए गए ख़ून और छीने गए माल को क्षमा कर दिया ताकि लोगों के मन से एक दूसरे के प्रति द्वेष ख़त्म हो जाए और सामाजिक सुरक्षा के लिए माहौन बन जाए। उसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने मुसलमानों को आपस में मतभेद व फूट से दूर रहने की सिफ़ारिश की और एक प्रसिद्ध कथन सुनाया जो ‘हदीसे सक़लैन’ के नाम से मशहूर है।

 पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा, मैं दो मूल्यवान चीज़ें तुम्हारे बीच छोड़ कर जा रहा हूं अगर इन दोनों से जुड़े रहे तो मेरे बाद कभी भी सही राह से नहीं भटकोगे। एक ईश्वर की किताब क़ुरआन और दूसरे मेरे पवित्र परिजन हैं। मिना के मैदान में ठहराव के तीसरे दिन पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ने लोगों को ख़ीफ़ नामक मस्जिद में इकट्ठा होने का आदेश दिया। वहां भी पैग़म्बरे इस्लाम ने भाषण दिया। इस भाषण में लोगों को कर्म में शुद्धता, मुसलमानों के मार्गदर्शक के साथ हमदर्दी और आपस में मतभेद से दूर रहने की नसीहत की और इस बात पर बल दिया कि मुसलमान आपस में ईश्वरीय आदेश के अनुसार, अधिकार की दृष्टि से बराबर हैं। उसके बाद अपने उत्तराधिकरी जैसे महत्वपूर्ण विषय की ओर संकेत किया और हदीसे सक़लैन को दोहराया।  

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम अपनी जन्म भूमि मक्का से दस साल तक दूर रहने के बाद, मक्का लौटे थे। इसलिए लोग यह समझ रहे थे कि वह हज के संस्कार पूरे होने के बाद कुछ दिन वहां ठहरेंगे। लेकिन जैसे ही हज ख़त्म हुआ पैग़म्बरे इस्लाम ने हज़रत बेलाल से कहा कि वह लोगों तक यह संदेश पहुंचाए कि सबके सब मक्का से बाहर निकलें। लगभग सभी हाजी पैग़म्बरे इस्लाम के साथ थे। यहां तक कि यमन के वे हाजी भी उनके साथ थे जिनका मार्ग उत्तर की ओर था। जब हाजियों का यह कारवां कुराअल ग़मीम नामक क्षेत्र में पहुंचा जहां ग़दीरे ख़ुम स्थित है, तो पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा कि हे लोगो! मेरी बात को मानो कि ईश्वर का पैग़म्बर हूं। पैग़म्बर का यह वाक्य किसी बहुत बड़े संदेश की पृष्ठिभूमि था। उसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने सारे हाजियों को रुकने का आदेश दिया।

इस आदेश पर सारे हाजी रुक गए। जो हाजी आगे बढ़ गए थे वे पीछे लौटे यहां तक कि सारे हाजी ग़दीरे ख़ुम नामक इलाक़े में इकटठा हो गए। वहां पर मौजूद पत्थरों और ऊंटों के कजावे से लोगों के बीचो बीच बहुत ऊंचा मिम्बर बनाया गया ताकि पैग़म्बरे इस्लाम जब भाषण दें तो सबके सब उन्हें देख सकें और उनकी बात सुन सकें। लोगों की प्रतीक्षा की घड़ी ख़त्म हुयी। पहले अज़ान दी गयी और हाजियों ने ज़ोहर की नमाज़ पढ़ी। उसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम मिंबर पर खड़े हुए और हज़रत अली अलैहिस्सलाम को बुलवाया और उनसे मिंबर के दाहिने ओर एक पायदान नीचे खड़े होने के लिए कहा।

 उसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने दुनिया वालों के लिए अपना आख़िरी भाषण देना शुरु किया। उन्होंने ईश्वर की प्रशंसा व गुणगान के बाद कहा कि ईश्वर ने मुझे यह संदेश भेजा है, हे पैग़म्बर जो बात आप पर पहले भेजी जा चुकी है उसे लोगों तक पहुंचाइये। अगर ऐसा न किया तो मानो पैग़म्बरी का दायित्व नहीं निभाया और ईश्वर उन लोगों से आपकी रक्षा करेगा जो आपको नुक़सान पहुंचाना चाहते हैं। उसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने प्रेम व स्नेह से भरे स्वर में लोगों से कहा, हे लोगो! ईश्वर ने जो कुछ मुझ पर नाज़िल किया उसे पहुंचाने में मैंने तनिक लापरवाही नहीं की। मैं आप लोगों को इस आयत के उतरने का कारण बताना चाहता हूं। जिबरईल तीन बार मेरे पास आए और ईश्वर की ओर से मुझे यह आदेश दिया कि आप सबको यह बताऊं कि अली इब्ने अबी तालिब मेरे भाई मेरे बाद मुसलमानों पर मेरे उत्तराधिकारी व इमाम हैं। हे लोगो! मैंने जिबरईल से कहा कि ईश्वर से कहो कि मुझे यह संदेश पहुंचाने की ज़िम्मेदारी से माफ़ कर दें क्योंकि मैं जानता हूं कि ईश्वर से डरने वाले कम, मिथ्याचारी और इस्लाम का मज़ाक़ उड़ाने वालों तथा चालबाज़ों की संख्या ज़्यादा है लेकिन ईश्वर ने तीसरी बार मुझे यह धमकी दी कि अगर मैंने उसे नहीं पहुंचाया जिसके पहुंचाने का मुझे आदेश दिया गया है, तो मैने अपने दायित्व का निर्वाह नहीं किया। पैग़म्बरे इस्लाम ने ग़दीर में दिए गए अपने भाषण में अपने बाद अपने 12 उत्तराधिकारियों का आधिकारिक रूप से एलान किया और कहा कि इस तरह की भीड़ को मैं आख़िरी बार संबोधित कर रहा हूं। तो मेरी बात ध्यान से सुनो और उस पर अमल करो। ईश्वर के आदेश के सामने नत्मस्तक हो जाओ! वैध काम करने और अवैध व वर्जित काम से दूर रहने का आदेश देता हूं।

 मुझे यह आदेश दिया गया है कि तुम लोगों से मोमिनों के इमाम अली और उनकी नस्ल से जो इमाम आएंगे उनके आज्ञापालन का तुमसे वचन लूं। मेरे आख़िरी उत्तराधिकारी महदी होंगे जो अंतिम दौर में प्रकट होंगे। उसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने लोगों से आधिकारिक रूप से हज़रत अली के आज्ञापालन का वचन पैने के लिए कहा, हे लोगों तुम्हारा स्थान इस बात से कहीं ऊंचा है कि तुम लोग एक एक करके हमारे आज्ञापालन का वचन देने के लिए अपना हाथ हमारे हाथ में दो हालांकि ईश्वर की ओर से यह ज़िम्मेदारी मुझे दी गयी है कि तुममें से हर एक की ज़बान से इस बात का इक़रार करवाऊं कि मोमिनों पर हज़रत अली की हुकूमत को स्वीकार करते हे और इस बात की भी ज़िम्मेदारी दी गयी है कि मेरे कुटुंब और अली की नस्ल से आने वाले इमामों की इमामत और विलायत को मानने का तुमसे वचन लूं। अब जबकि ऐसा है तो तुम सबके सब एक आवाज़ में कहो, आपने जो कुछ अली और उनकी नस्ल से आने वाले इमामों की विलायत और असीमित नेतृत्व के बारे में ईश्वर की ओर से हम तक पहुंचाया, उसे हमने सुना और हम उसके पालन पर नत्मस्तक हैं और इससे प्रसन्न हैं।

 अब हम अपनी ज़बान, मन और पूरे वजूद से अली विलायत के बारे में आपका आज्ञापालन करते और इस बात का वचन देते हैं कि इसी आस्था के साथ ज़िन्दगी गुज़ारेंगे और इसी आस्था के साथ इस दुनिया से जाएंगे यहां तक कि प्रलय के दिन उठाए जाएं। यह सुनकर लोगों ने एक साथ कहा, जी हां हमने सुना और ईश्वर व उसके पैग़म्बर के आदेश के अनुसार अपनी ज़बान, मन और हाथ से पालन करेंगे। इसके बाद लोग पैग़म्बरे इस्लाम और हज़रत अली अलैहिस्सलाम के पास इकट्ठा होने लगे और उनके हाथ पर हाथ रख कर आज्ञापालन का वचन देना शुरु किया। जब पैग़म्बरे इस्लाम ने यह देखा तो हज़रत अली की विलायत के मामले को मज़बूत करने के लिए दो ख़ैमे लगाने का आदेश दिया ताकि लोग सुव्यवस्थित रूप से हज़रत अली अलैहिस्सलाम के आज्ञापालन का ले सकें। इस प्रकार एक ख़ैमे में पैग़म्बरे इस्लाम और दूसरे ख़ैमे में हज़रत अली अलैहिस्सलाम उपस्थित हुए। लोग छोटे-छोटे गुटों में पहले पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के ख़ैमे में जाते और उनके आज्ञापालन का वचन व बधाई देते। उसके बाद लोग हज़रत अली अलैहिस्सलाम के ख़ैमे में जाते।

 पैग़म्बरे इस्लाम के बाद उनके उत्तराधिकारी के रूप में उनकी आज्ञापालन का वचन देते और उन्हें मोमिनों के इमाम की उपाधि से संबोधित करके सलाम करते और बधाई देते। अभी भीड़ अपनी जगह पर थी कि ईश्वरीय संदेश वही लाने वाले फ़रिश्ते हज़रत जिबरईल पैग़म्बरे इस्लाम के पास मायदा सूरे की तीसरी आयत लेकर पहुंचे। इस आयत में ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम को इस बात की शुभसूचना दी, आज आपका धर्म परिपूर्ण हो गया। अपनी अनुकंपाएं आप पर पूरी कर दीं और इस्लाम को तुम्हारे लिए धर्म के रूप में पसंद किया। जी हां इस बार मरुस्थल में ग़दीर में पानी का छोटा सा स्रोत आस्था व पहचान का समुद्र बन गया ताकि आने वाली पीढ़ियां उससे अपनी आध्यात्म की प्यास को तृप्त करती रहें। ग़दीर, पैग़म्बरे इस्लाम के मन पर झरने की भांति उतरने वाले संदेश से छलकने लगा और पवित्र इस्लाम की स्थिरता का प्रतिबिंबन ग़दीरे ख़ुम के स्वच्छ पानी में दिखने लगा।

 

गुरुवार, 12 जून 2025 17:33

ईदे ग़दीर की इब्तेदा

तारीख़ की वरक़ गरदानी से यह मालूम होता है कि इस अज़ीम ईद की इब्तेदा पैग़म्बरे अकरम (स) के ज़माने से हुई है। इसकी शुरुआत उस वक़्त हुई जब पैग़म्बरे अकरम (स) ने ग़दीर के सहरा में ख़ुदा वंदे आलम की जानिब से हज़रत अली (अ) को इमामत व विलायत के लिये मंसूब किया। जिसकी बेना पर उस रोज़ हर मोमिन शाद व मसरुर हो गया और हज़रत अली (अ) के पास आकर मुबारक बाद पेश की। मुबारक बाद पेश करने वालों में उमर व अबू बक्र भी हैं जिनकी तरफ़ पहले इशारा किया जा चुका है और इस वाक़ेया को अहम क़रार देते हुए और उस मुबारक बाद की वजह से हस्सान बिन साबित और क़ैस बिन साद बिन ओबाद ए अंसारी वग़ैरह ने इस वाक़ेया को अपने अशआर में बयान किया है।

ग़दीर के पैग़ामात

उस ज़माने में बाज़ अफ़राद ग़दीर के पैग़मात को इस्लामी मुआशरे में नाफ़िज़ करना चाहते थे। लिहा़ज़ा मुनासिब है कि इस मौज़ू की अच्छी तरह से तहक़ीक़ की जाये कि ग़दीरे ख़ुम के पैग़ामात क्या क्या हैं? क्या उसके पैग़ामात रसूले अकरम (स) की हयाते मुबारक के बाद के ज़माने से मख़्सूस हैं या रोज़े तक उन पर अमल किया जा सकता है? अब हम यहाँ पर ग़दीरे पैग़ाम और नुकात की तरफ़ इशारा करते हैं जिनकी याद दहानी जश्न और महफ़िल के मौक़े पर कराना ज़रुरी है:

  1. हर पैग़म्बर के बाद एक ऐसी मासूम शख़्सियत को होना ज़रुरी है जो उसके रास्ते को आगे बढ़ाये और उसके अग़राज़ व मक़ासिद को लोगों तक पहुचाये और कम से कम दीन व शरीयत के अरकान और मजमूए की पासदारी करे जैसा कि रसूले अकरम (स) ने अपने बाद के लिये जानशीन मुअय्यन किया और हमारे ज़माने में ऐसी शख़्सियत हज़रत इमाम मेहदी अलैहिस्सलाम हैं।
  2. अंबिया (अ) का जानशीन ख़ुदा वंदे आलम की तरफ़ मंसूब होना चाहिये जिनका तआरुफ़ पैग़म्बर के ज़रिये होता है जैसा कि पैग़म्बरे अकरम (स) ने अपने बाद के लिये अपना जानशीन मुअय्यन किया, क्योकि मक़ामे इमामत एक इलाही मंसब है और हर इमाम ख़ुदा वंदे की तरफ़ से ख़ास ता आम तरीक़े से मंसूब होता है।
  3. ग़दीर के पैग़ामात में से एक मसअला रहबरी और उसके सिफ़ात व ख़ुसूसियात का मसअला है, हर कस न नाकस इस्लामी मुआशरे में पैग़म्बरे अकरम (स) का जानशीन नही हो सकता, रहबर हज़रत अली (अ) की तरह हो जो पैग़म्बरे अकरम (स) का रास्ते पर हो और आपके अहकाम व फ़रमान को नाफ़िज़ करे, लेकिन अगर कोई ऐसा न हो तो उसकी बैअत नही करना चाहिये, लिहाज़ा ग़दीर का मसअला इस्लाम के सियासी मसायल के साथ मुत्तहिद है।

चुँनाचे हम यमन में मुलाहिज़ा करते हैं कि चौथी सदी के वसत से जश्ने ग़दीर का मसअला पेश आया और हर साल अज़ीमुश शान तरीक़े पर यह जश्न मुनअक़िद होता रहा और मोमिनीन हर साल उस वाक़ेया की याद ताज़ा करते रहे और नबवी मुआशरे में रहबरी के शरायत से आशना होते रहे, अगरचे चंद साल से हुकूमते वक़्त उस जश्न के अहम फ़वायद और पैग़ामात की बेना पर उसमें आड़े आने लगी, यहाँ तक कि हर साल इस जश्न को मुनअक़िद करने की वजह से चंद लोग क़त्ल हो जाते हैं, लेकिन फिर भी मोमिनीन इस्लामी मुआशरे में इस जश्न की बरकतों और फ़वायद की वजह से इसको मुनअक़िद करने पर मुसम्मम हैं।

  1. ग़दीर का एक हमेशगी पैग़ाम यह है कि पैग़म्बरे अकरम (स) के बाद इस्लामी मुआशरे का रहबर और नमूना हज़रत अली (अ) या उन जैसे आईम्मा ए मासूमीन में से हो। यह हज़रात हम पर विलायत व हाकिमियत रखते हैं, लिहाज़ा हमें चाहिये कि उन हज़रात की विलायत को क़बूल करते हुए उनकी बरकात से फ़ैज़याब हों।
  2. ग़दीर और जश्ने ग़दीर, शिईयत की निशानी है और दर हक़ीक़त ग़दीर का वाक़ेया इस पैग़ाम का ऐलान करता है कि हक़ (हज़रत अली (अ) और आपकी औलाद की महवरियत में है) के साथ अहद व पैमान करें ता कि कामयाबी हासिल हो जाये।
  3. वाक़ेय ए ग़दीर से एक पैग़ाम यह भी मिलता है कि इंसान को हक़ व हकी़क़त के पहचानने के लिये हमेशा कोशिश करना चाहिये और हक़ बयान करने में कोताही से काम नही लेना चाहिये, क्योकि पैग़म्बरे अकरम (स) अगरचे जानते थे कि उनकी वफ़ात के बाद उनकी वसीयत पर अमल नही किया जायेगा, लेकिन लोगों पर हुज्जत तमाम कर दी और किसी भी मौक़े पर मख़ूससन हज्जतुल विदा में हक़ बयान करने में कोताही नही की।
  4. रोज़े क़यामत तक बाक़ी रहने वाला ग़दीर का एक पैग़ाम अहले बैत (अ) की दीनी मरजईयत है, इसी वजह से पैग़म्बरे अकरम (स) ने उन्ही दिनों में हदीस सक़लैन को बयान किया और मुसलमानों को अपने मासूम अहले बैत से शरीयत व दीनी अहकाम हासिल करने की रहनुमाई फ़रमाई।
  5. ग़दीर का एक पैग़ाम यह है कि बाज़ मवाक़े पर मसलहत की ख़ातिर और अहम मसलहत की वजह से मुहिम मसलहत को मनज़र अंदाज़ किया जा सकता है और उसको अहम मसलहत पर क़ुर्बान किया जा सकता है। हज़रत अली (अ) हालाकि ख़ुदा वंदे आलम की तरफ़ से और रसूले अकरम (स) के ज़रिये इस्लामी मुआशरे की रहबरी और मक़ामे ख़िलाफ़त पर मंसूब हो चुके थे, लेकिन जब आपने देखा कि अगर मैं अपना हक़ लेने के लिये उठता हूँ तो क़त्ल व ग़ारत और जंग का बाज़ार गर्म हो जायेगा और यह इस्लाम और मुसलमानों की मसलहत में नही है तो आपने सिर्फ़ वअज़ व नसीहत, इतमामे हुज्जत और अपनी मज़लूमीयत के इज़हार को काफ़ा समझा ताकि इस्लाम महफ़ूज रहे, क्योकि हज़रत अली (अ) अगर उशके अलावा करते जो आपने किया तो फिर इस्लाम और मुसलमानों के लिये एक दर्दनाक हादेसा पेश आता जिसकी तलाफ़ी मुमकिन नही थी, लिहाज़ा यह रोज़ क़यामत तक उम्मते इस्लामिया के लिये एक अज़ीम सबक़ है कि कभी कभी अहम मसलहत के लिये मुहिम मसलहत को छोड़ा जा सकता है।
  6. इकमाले दीन, इतमामे नेमत और हक़ व हक़ीक़त के बयान औप लोगों पर इतमामे हुज्जत करने से ख़ुदा वंदे आलम की रिज़ायत हासिल होती है जैसा कि आय ए शरीफ़ ए इकमाल में इशारा हो चुका है।
  7. तबलीग़ और हक़ के बयान के लिये आम ऐलान किया जाये और छुप कर काम न किया जाये जैसा कि पैग़म्बरे अकरम (स) ने हुज्जतुल विदा में विलायत का ऐलान किया और लोगों के मुतफ़र्रिक़ होने से पहले मला ए आम में विलायत को पहुचा दिया।
  8. ख़िलाफ़त, जानशीनी और उम्मते इस्लामिया की सही रहबरी का मसअला तमाम मासयल में सरे फैररिस्त है और कभी भी इसको तर्क नही करना चाहिये जैसा कि रसूले अकरम (स) हालाकि मदीने में ख़तरनाक बीमारी फैल गई थी और बहुत से लोगों को ज़मीन गीर कर दिया था लेकिन आपने विलायत के पहुचाने की ख़ातिर इस मुश्किल पर तवज्जो नही की और आपने सफ़र का आग़ाज़ किया और इस सफ़र में अपने बाद के लिये जानशीनी और विलायत के मसअले को लोगों के सामने बयान किया।
  9. इस्लामी मुआशरे में सही रहबरी का मसअला रुहे इस्लामी और शरीयत की जान की तरह है कि अगर इस मसअले को बयान न किया जाये तो तो फिर इस्लामी मुआशरे के सुतून दरहम बरहम हो जायेगें, लिहाज़ा ख़ुदा वंदे आलम ने अपने रसूल (स) से ख़िताब करते हुए फ़रमाया:

और अगर आप ने यह न किया तो गोया उसके पैग़ाम को नही पहुचाया।

( सूर ए मायदा आयत 67)

 ईरान के दक्षिण-पूर्व में मिर्जावा के सुन्नी समुदाय के इमाम जुमा मौलवी अब्दुर्रहीम रीगियानपुर ने कहा: कि ग़दीरे ख़ुम की घटना सुन्नी धर्म के मान्य किताबों में भी भी दर्ज है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम से मोहब्बत सुन्नी मुसलमानों के ईमान की पहचान है।

सुन्नी समुदाय का मानना है कि ग़दीर की घटना वास्तव में हुई थी और उसमें पैगंबर मोहम्मद ने हज़रत अली की बहादुरी, मोहब्बत, ईमान, परहेजगारी और न्याय के बारे में कहा था ताकि यह हमेशा के लिए और आख़िर तक इतिहास में दर्ज रहे।

 ईरान के सिस्तान व बलूचिस्तान प्रांत के मिर्जावा के सुन्नी इमाम जुमाह ने कहा: दुश्मन मोहब्बत के बीच सीमा बनाने की चाल चला रहा है ताकि शियाओं की हज़रत अली अलै. से मोहब्बत और सुन्नियों की मोहब्बत के बीच फ़र्क़ डाला जा सके और उन्हें केवल शियाओं तक सीमित कर दिया जाए। यहूदी और इस्लाम के दुश्मन इस्लाम के बढ़ते प्रभाव से डरते हैं। इसलिए वे उन बिंदुओं पर हमला करते हैं जो विवाद पैदा कर सकते हैं। ज़ायोनी और इस्लाम के दुश्मन इसी तरह के विभिन्न मतों के जरिए विवाद पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं और इसका फ़ायदा उठाने का मौका पा रहे हैं।

 इसी संदर्भ में ज़ाहदान जिले के इस्लामी प्रचार विभाग के प्रमुख हज्जतुल इस्लाम वल मुसलमीन जवाद हैरी ने कहा: सिस्तान व बलूचिस्तान में बड़े पैमाने पर मनाया जाने वाला ईद-ए-ग़दीर का त्योहार इस्लामी एकता और एकजुटता का भव्य रूप है। इस दिन शिया और सुन्नी पूरी शांति और अपने परिवारों के साथ ग़दीर के जश्न में एक साथ भाग लेते हैं। यह उपस्थिति इस क्षेत्र में सुरक्षा और गहरे जनसंपर्क का स्पष्ट प्रमाण है।

 ज़ाहदान इस्लामी प्रचार विभाग के प्रमुख ने कहा: ग़दीर का लंबा जश्न ईरानी राष्ट्र के लिए एक अवसर और अल्लाह की एक नेअमत है ताकि वे व्यापक भागीदारी के साथ अपनी इस्लामी एकजुटता पर मुहर लगाएं। जैसे कि अल्लाह ने फरमाया है: «और सब मिलकर अल्लाह की रस्सी को थामो और फूट मत डालो» हमारे लोग अल्लाह की रस्सी को थामकर और अहल-ए-बैत (अ.) से लगाव रखकर और प्रेम व मोहब्बत करके अपना धर्म पूरा करते हैं और अल्लाह की नेमत को समझते हैं।

 

 

 इराकी प्रतिरोध संगठन कताइब सय्यद अलशोहदा" के महासचिव ने संभावित क्षेत्रीय युद्ध के संदर्भ में अमेरिका को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा है कि यदि युद्ध भड़का तो हमारे सैकड़ों फिदाई मुजाहिदीन मैदान में उतरेंगे और अमेरिका को एक बार फिर अपमानजनक हार का सामना करना पड़ेगा।

इराकी प्रतिरोध संगठन "कताइब सय्यद अलशोहदा" के महासचिव अबू आला अलवलाई ने संभावित क्षेत्रीय युद्ध के मद्देनजर अमेरिका को सख्त चेतावनी देते हुए कहा है कि यदि युद्ध भड़की तो हमारे सैकड़ों फिदाई मुजाहिदीन मैदान में उतरेंगे और अमेरिका को एक बार फिर शर्मनाक हार का सामना करना पड़ेगा, जैसा कि वह अतीत में इराक से हारकर निकल चुका है। 

अबू आला अलवलाई ने अपने बयान में कहा कि इस चरण की शुरुआत के साथ ही मध्य पूर्व में अमेरिकी मौजूदगी और उसके सभी स्थानीय एजेंटों का अंत हो जाएगा, और वे सरकारें जो अमेरिकी समर्थन पर टिकी हैं, धराशायी हो जाएंगी। 

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि अंततः यह लड़ाई जब्ह ए मुक़ाविमत के पक्ष में समाप्त होगी, और सफलता अल्लाह और उसके वफादार बंदों का नसीब बनेगी।

 

 

अलमयादीन नेटवर्क ने बताया है कि पिछले कुछ घंटों में इजरायल शासन के हमलों में गाजा पट्टी में दर्जनों फिलिस्तीनियों की शहादत हो गई है।

अलमयादीन की रिपोर्ट में कहा गया है कि आज सुबह से इज़राईली शासन के बर्बर हमलों में कम से कम 47 लोग शहीद हो चुके हैं। 

इसके अलावा जायोनी शासन के लड़ाकू विमानों द्वारा गाजा शहर के पूर्वी इलाके अततुफ़ाह में अश-शुरफ़ा मैदान पर हवाई हमले जारी हैं। 

इससे पहले भी रिपोर्ट आई थी कि कल रात और आज सुबत हुए जायोनी शासन के हमलों में गाजा के विभिन्न इलाकों में दर्जनों फिलिस्तीनियों के शहीद और ज़ख्मी होने की खबर है। 

इनमें से एक हमला अलबुरेज शरणार्थी शिविर के प्रवेश द्वार के पास केंद्रीय गाजा पट्टी में हुआ, जहां जायोनी शासन के ड्रोन्स ने फिलिस्तीनी युवाओं पर मिसाइल दागे और गोलियां चलाईं। इस हमले में दर्जनों लोग ज़ख्मी हुए। 

 

 

विशेषज्ञों और सांस्कृतिक हस्तियों का कहना है कि ईद ग़दीर को गरिमापूर्ण तरीके से मनाने और ग़दीर की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए सामूहिक दृढ़ संकल्प और इच्छाशक्ति की आवश्यकता है।

विशेषज्ञों और सांस्कृतिक हस्तियों का कहना है कि ईद ग़दीर को गरिमापूर्ण तरीके से मनाने और ग़दीर की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए सामूहिक दृढ़ संकल्प और इच्छाशक्ति की आवश्यकता है। उनके अनुसार, धार्मिक अनुष्ठानों का सम्मान तभी किया जा सकता है जब सार्वजनिक भागीदारी और गरिमापूर्ण समारोह आयोजित किए जाएँ।

इमाम सादिक़ (अ) शोध संस्थान के डॉ. मेहदी इस्लाम के अनुसार, वर्षों से विदेशी मीडिया ने यह धारणा दी है कि शिया क्रांतिकारी आंदोलन सीमित है, हालाँकि, अरबाईन, नीमेह शाबान और ग़दीर समारोह जैसे समारोहों ने मीडिया के माध्यम से दुनिया के सामने शिया महानता को प्रस्तुत किया।

उन्होंने कहा कि हमें उन धार्मिक अनुष्ठानों को बढ़ावा देना चाहिए जो सार्वजनिक स्तर पर आयोजित किए जाते हैं और जिनमें लोग व्यापक रूप से भाग लेते हैं।

दूसरी ओर, सांस्कृतिक विश्लेषक जाफर हसन खानी ने इस धारणा को खारिज कर दिया कि शिया धर्म केवल मजलिस और मातम पर जोर देता है। उन्होंने कहा कि "गदीर उत्सव" न केवल इस आपत्ति का जवाब है, बल्कि समय की मांग के अनुरूप सचेत और न्यायशास्त्रीय आधार पर खुशी की अभिव्यक्ति भी है।

हुज्जतुल इस्लाम मुहम्मद रजा अबेदिनी ने कहा कि कुछ लोग सामूहिक रूप से ग़दीर मनाने पर आपत्ति करते हैं, हालांकि जिस तरह शुक्रवार की नमाज़ स्थानीय नमाज़ों को खत्म नहीं करती, उसी तरह सामूहिक उत्सव व्यक्तिगत उत्सवों को नकारते नहीं हैं। उन्होंने कहा कि यह कदम अभूतपूर्व है और क्रांति के नेता ने इसकी प्रशंसा की है।

हुज्जतुल इस्लाम कमाल खुदादादा ने कहा कि विभिन्न संस्थाएँ और प्रांतीय केंद्र सार्वजनिक रूप से जुलूस और ग़दीर समारोह आयोजित कर रहे हैं, जिसमें बच्चे, युवा, बुजुर्ग और यहाँ तक कि फ़िलिस्तीनी लोगों के समर्थक भी भाग लेते हैं। इन समारोहों को महान सांस्कृतिक अवसरों में बदलने का प्रयास किया जा रहा है।

 

गुरुवार, 12 जून 2025 17:26

ईद गदीर कैसे मनाएं?

ईदे गदीर एक बहुत ही महत्वपूर्ण इस्लामी ईद है इसे हज़रत अली इब्ने अबी तालिब (अ.स.) की विलायत और जानशीनी के ऐलान की याद में मनाया जाता है इस पाक दिन को ईद-ए-अकबर भी कहा जाता है।यह हैं ईद गदीर मनाने के मुख्य तरीके खूब इबादत करें और दुआएं मांगें ईद गदीर के दिन हमें अल्लाह की खूब इबादत करनी चाहिए और दुआएं मांगनी चाहिए।

,ईदे गदीर एक बहुत ही महत्वपूर्ण इस्लामी ईद है इसे हज़रत अली इब्ने अबी तालिब (अ.स.) की विलायत और जानशीनी के ऐलान की याद में मनाया जाता है इस पाक दिन को ईद-ए-अकबर भी कहा जाता है।यह हैं ईद गदीर मनाने के मुख्य तरीके खूब इबादत करें और दुआएं मांगें
ईद गदीर के दिन हमें अल्लाह की खूब इबादत करनी चाहिए और दुआएं मांगनी चाहिए।

क़ुरआन मजीद की तिलावत करें दुआ-ए-कुमेल, दुआ-ए-नुदबा और दुआ-ए-गदीर जैसी खास दुआऐ पढ़ें आमाल करें।

ज़ियारत अमीरुल मोमिनीन और ज़ियारत जामिया कबीरा पढ़ने की भी बहुत फ़ज़ीलत  है।जश्न और महफिलें आयोजित करें

इस मुबारक मौके पर जश्न और महफिलें  आयोजित की जानी चाहिए।

मस्जिदों और इमामबाड़ों में विशेष महफ़िलें और बयान आयोजित करें, जिनमें गदीर के वाकये की अहमियत और हज़रत अली (अ.स.) की फ़ज़ीलत पर रोशनी डाली जाए। उलमा और ज़ाकिरीन  इस अवसर पर लोगों को दीन की तालीमात और इमामों की सीरत से अवगत कराएं।

खुशी का इज़हार कैसे करें ,ईद गदीर के दिन खुशी का इज़हार इन तरीकों से करें मोमिनों को आपस में मुबारकबाद दें और एक-दूसरे को खुशी का पैगाम भेजें नए कपड़े पहनें और घरों को साफ करें और सजाएं।

खाना खिलाएं और सदक़ह दें। इस दिन खास तौर पर सादाते किराम को तोहफ़े दिए जाते हैं। गरीबों और ज़रूरतमंदों को खाना खिलाएं और सदक़ा व खैरात दें। ऐसे काम नेकी और हमदर्दी के जज़्बात को बढ़ावा देते हैं।सिलह-ए-रहमी (रिश्तेदारों से संबंध बनाए रखना) करें रिश्तेदारों और दोस्तों से अपने संबंध मज़बूत करें ईदे गदीर के दिन रिश्तेदारों और दोस्तों से मिलने जाएं।

आपस में एक-दूसरे को तोहफ़े दें ताकि मोहब्बत और इत्तेहाद (एकता) के जज़्बात मज़बूत हों। छोटी-छोटी वीडियो, ऑडियो से पैगाम भेजकर और लिखित तरीके के ज़रिए गदीर के वाकये को आम लोगों तक पहुंचाएं।सोशल मीडिया और अन्य साधनों से इस दिन की अहमियत को उजागर करें।

ईदे गदीर मनाने का मुख्य उद्देश्य हज़रत अली (अ.स.) की विलायत और अल्लाह के दीन के मुकम्मल होने को याद रखना और उस पर अमल करना है। यह दिन हमें इबादतों, खुशी, एहसान और इस्लामी तालीमात को बढ़ावा देने का एक बेहतरीन मौका देता है। इसे हरगिज़ हाथ से जाने न दें।

 

हौज़ा ए इल्मिया के निदेशक ने इस्लामी दुनिया की मौजूदा स्थिति और अविश्वास और अहंकार के छल-कपट का जिक्र करते हुए कहा: आज, मुस्लिम उम्माह को एकता और एकजुटता, विवेक, दूरदर्शिता और बुद्धिमत्ता को मजबूत करने की जरूरत है। इन अंतःक्रियाओं की धुरी निस्संदेह विद्वान हैं, और यह धुरी प्रमुख होनी चाहिए।

हौज़ा ए इल्मिया के प्रमुख आयतुल्लाह अली रजा आराफी ने अफगानिस्तान के कुछ बेहतरीन विद्वानों के साथ एक बैठक में कहा: मैंने हमेशा अफगानिस्तान की विशिष्ट स्थिति पर विश्वास किया है; यह एक ऐसी भूमि है जिसने विद्वानों, छात्रों और बुद्धिमान लोगों की एक बड़ा सरमाया परवान चढ़ाया है।

उन्होंने कहा: अफगानिस्तान के छात्र, विद्वान और बुजुर्ग चमक रहे हैं और यह उम्माह न केवल शैक्षणिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में बल्कि उपदेश के क्षेत्रों में भी प्रमुख है।

हौज़ा ए इल्मिया के निदेशक ने कहा: मेरा मानना ​​है कि जामेअतुल मुस्तफ़ा इस्लामी दुनिया में सबसे अच्छे और सबसे प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों में से एक है।

ईरान और अफगानिस्तान के बीच गहरे और मजबूत संबंधों की ओर इशारा करते हुए, आयतुल्लाह अराफी ने कहा: आज, अल्लाह का शुक्र है, दोनों देशों के बीच एकता, आम पहचान और सहानुभूति बहुत अधिक महसूस की जाती है।

मजलिसे खुबरेगान रहबरी के एक सदस्य ने इस्लामी उम्माह में अफगानिस्तान के शिया समुदाय की प्रभावी भूमिका पर जोर दिया और कहा: यह महान समुदाय वास्तव में आज इस्लामी दुनिया के प्रभावी स्तंभों में से एक है, और विद्वान, चाहे वे ईरान, अफगानिस्तान या विदेश में हों, अहले-बैत (अ) की शिक्षाओं के मानक-वाहक रहे हैं और इस्लामी आदर्शों को पूरा करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।

इस्लामी दुनिया के मौजूदा हालात और कुफ्र और अहंकार के छल-कपट की ओर इशारा करते हुए हौज़ा ए इल्मिया के निदेशक ने कहा: आज मुस्लिम उम्माह को दोगुनी सतर्कता, दूरदर्शिता और समझदारी की जरूरत है। निस्संदेह, विद्वान इन संवादों का केंद्र हैं और इस फोकस को और अधिक प्रमुख बनाया जाना चाहिए।

 

अशरा ए विलायत और इमामत के पवित्र दिनों के अवसर पर एक 24 वर्षीय रूसी युवक ने इमाम रज़ा (अ.स.) के हरम में शहादतैन पढ़कर इस्लाम धर्म स्वीकार किया।

अशरा ए विलायत और इमामत के पवित्र दिनों के अवसर पर एक 24 वर्षीय रूसी युवक ने इमाम रज़ा (अ.स.) के हरम में शहादतैन पढ़कर इस्लाम धर्म स्वीकार किया।

युवक ने आस्तान-ए क़ुद्स-ए रिज़वी के "विदेशी तीर्थयात्रियों के प्रबंधन विभाग की व्यवस्था में कई इस्लामिक विद्वानों के साथ चर्चा करने के बाद यह निर्णय लिया उसे इस्लामी शिक्षाओं से परिचित कराने के लिए विशेष सलाहकार सत्र आयोजित किए गए थे। 

यह समारोह इमाम रज़ा (अ.स.) के पवित्र मज़ार पर आध्यात्मिक माहौल में संपन्न हुआ।यह घटना आस्तान-ए क़ुद्स-ए रिज़वी के "अद्यान व मज़ाहिब विभाग" के प्रयासों का परिणाम है जो सत्य की तलाश करने वालों को इस्लाम की शिक्षाओं से जोड़ता है। 

यह घटना दशा-ए विलायत के पवित्र दिनों में हुई, जिसने इसकी आध्यात्मिक महत्ता और बढ़ा दी।यह घटना इमाम रज़ा (अ.स.) के मज़ार की उस भूमिका को दर्शाती है जो सत्य के खोजियों को मार्गदर्शन प्रदान करती है। 

 

फ्रांस की विधानसभा के वामपंथी सदस्यों ने एक बयान जारी कर कहा है कि गाज़ा के लोगों की सहायता ले जाने वाले जहाज पर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी अंतरराष्ट्रीय कानूनों का खुला उल्लंघन है।

फ्रांसीसी संसद के प्रगतिशील सदस्यों ने अपने बयान में स्पष्ट किया कि गाजा की घिरी हुई आबादी तक सहायता पहुंचाने वाले जहाज पर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को हिरासत में लेना मानवाधिकार और अंतरराष्ट्रीय कानून की स्पष्ट रूप से उलघंन है।

ब्रिटिश जहाज मिडिलिन ज़ायोनी सरकार के अमानवीय घेराबंदी को तोड़ने और गाजा के मजलूम लोगों तक सहायता पहुंचाने के लिए रवाना हुआ था। ज़ायोनी सरकार ने अक्टूबर 2023 से अब तक अपने बर्बर हमलों में 55 हजार से अधिक फिलिस्तीनियों को शहीद कर दिया है। 

जहाज पर मौजूद सहायता सामग्री में बच्चों और शिशुओं के लिए दूध और खाद्य सामग्री शामिल थी, जिसे गाजा के तट पर पहुंचने से एक रात पहले इजरायली सेना ने रोक लिया और जब्त कर लिया। बाद में इसे इजरायल के अशदोद बंदरगाह पर ले जाया गया। 

बयान में आगे कहा गया कि "सिर्फ जहाज को रोक लेना ही अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन है, जब्त करना तो और भी गंभीर अपराध है।

उन्होंने वैश्विक समुदाय से मांग की कि वह इस बड़े मानवीय अपराध की कड़े शब्दों में निंदा करे, साथ ही इजरायल से तत्काल और बिना शर्त उन सभी कार्यकर्ताओं को रिहा करने की मांग की जो जहाज पर सवार थे। 

फ्रांस की ग्रीन पार्टी ने भी इजरायली अत्याचारों की निंदा करते हुए जोर दिया कि मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के खिलाफ प्रतिक्रिया वैश्विक आंदोलन का रूप ले यह कार्रवाई फ्रांस की सरकार से शुरू होकर यूरोपीय संघ और संयुक्त राष्ट्र तक फैलनी चाहिए।

स्पष्ट रहे कि जहाज पर कुल 12 लोग सवार थे, जिनमें स्वीडन, फ्रांस, स्पेन और जर्मनी के 11 फील्ड कार्यकर्ता और एक पत्रकार शामिल थे।