رضوی
हज़रत फातेमा ज़हरा स.अ. ईमान, पवित्रता, ज्ञान और संघर्ष का सही नमूना हैं
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मोहम्मद तकी रहबर ने कहा,मुस्लिम महिलाओं को चाहिए कि वे अपने जीवन के सभी पहलुओं में मकतब ए फातेमी से सबक लें हज़रत फातेमा ज़हरा स.अ. ईमान, पवित्रता, ज्ञान और संघर्ष का सही नमूना हैं और मुस्लिम महिलाओं के लिए हर क्षेत्र में सबसे अच्छा आदर्श हैं।
इस्लामिक सलाहकार परिषद के प्रतिनिधि हुजतुल इस्लाम वलमुस्लिमीन मोहम्मद तकी रहबर ने हज़रत फातेमा ज़हरा स.अ.के उच्च दर्जे की ओर इशारा करते हुए कहा,सभी इस्लामी स्रोत, चाहे शिया हों या अहले सुन्नत, इस महान हस्ती के दर्जे और हैसियत पर एकमत हैं। प्रामाणिक अहले सुन्नत स्रोतों जैसे सहीह बुखारी और सहीह मुस्लिम में फज़ाइल-ए-फातेमा के शीर्षक से अलग अध्याय मौजूद हैं जो हज़रत ज़हरा (स.अ.) के उच्च दर्जे का सबूत हैं।
उन्होंने कहा, हज़रत फातेमा ज़हेरा स.अ. का दर्जा इतना ऊंचा है कि पैगंबर-ए-इस्लाम (स.अ.व.) ने फरमाया,
إنما فاطمه بضعة منی یؤذینی ما آذاها
यानी फातिमा मेरा एक टुकड़ा हैं, जो उन्हें तकलीफ देता है वह मुझे तकलीफ देता है। एक और रिवायत में है,फातिमतु ज़हरा सैय्यदतु निसाइ अहलिल जन्नह" यानी फातिमा जन्नत की औरतों की सरदार हैं। सहीह बुखारी के पांचवें खंड में हज़रत ज़हरा (स.अ.) की नमाज़ों के बाद और सहर (सुबह) के समय की दुआएं और मुनाजात भी दर्ज हैं जिन्हें बाद में एक अलग किताब के रूप में छापा गया है।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मोहम्मद तकी रहबर ने कहां,हज़रत ज़हेरा (स.अ.) की शख्सियत के वैश्विक प्रभाव की ओर इशारा करते हुए कहा, सऊदी अरब के एक बुद्धिजीवी डॉक्टर अब्दुह यमानी ने "इन्नहा फातिमतुज़ ज़हरा" नाम से किताब लिखी है जिसका फारसी अनुवाद उन्होंने खुद "फातिमतुज़ ज़हेरा" नाम से प्रकाशित किया।
उन्होंने इस किताब के दो चुने हुए वाक्यों का जिक्र करते हुए कहा, फातेमा का इतिहास बयान करना असल में इस्लामी उम्मत के बुनियादी इतिहास को पेश करना है; शुरुआत की पीड़ा और मुसीबतें, रिसालत के शुरुआती दौर की जद्दोजहद, कुरैश के ज़ुल्म के दौर में पैगंबर-ए-इस्लाम (स.अ.व.) के साथ डटे रहना, बाप के साथ हर कदम पर खड़ी वह बाअ़िज़्ज़त, बहादुर, आज्ञाकारी, अमानतदार और अदब वाली बेटी, जो मुस्तफा (स.अ.व.) की झलक थी और मदरसा-ए-नबूवत में तरबियत पाकर ऊंचे अखलाकी फज़ाइल के साथ फरिश्तों के हमदर्जा बन गई। इस्लामी उम्मत खासकर महिलाएं इस महान खातून-ए-इस्लाम से सबक लेती हैं।
इस्लामिक सलाहकार परिषद के प्रतिनिधि ने कहा,इस्लामी उम्मत खासकर मुस्लिम महिलाएं और बेटियां अपने जीवन के हर पहलू में हज़रत फातेमा ज़हरा (स.अ.) से सीख लें।
इमाम ख़ुमैनी र.ह.एक महान हस्ती का नाम हैं
चार जून सन 1989 ईसवी को दुनिया एक ऐसी महान हस्ती से बिछड़ हो गई जिसने अपने चरित्र, व्यवहार, हिम्मत, समझबूझ और अल्लाह पर पूरे यक़ीन के साथ दुनिया के सभी साम्राज्यवादियों ख़ास कर अत्याचारी व अपराधी अमरीकी सरकार का डटकर मुक़ाबला किए
चार जून सन 1989 ईसवी को दुनिया एक ऐसी महान हस्ती से बिछड़ हो गई जिसने अपने चरित्र, व्यवहार, हिम्मत, समझबूझ और अल्लाह पर पूरे यक़ीन के साथ दुनिया के सभी साम्राज्यवादियों ख़ास कर अत्याचारी व अपराधी अमरीकी सरकार का डटकर मुक़ाबला किया और इस्लामी प्रतिरोध का झंडा पूरी दुनिया पर फहराया।
इमाम खुमैनी की पाक और इलाही ख़ौफ़ से भरी ज़िंदगी इलाही रौशनी फ़ैलाने वाला आईना है और वह पैगम्बरे इस्लाम (स) की जीवनशैली से प्रभावित रहा है। इमाम खुमैनी ने पैगम्बरे इस्लाम (स) की ज़िंदगी के सभी आयामों को अपने लिये आदर्श बनाते हुये पश्चिमी और पूर्वी समाजों के कल्चर की गलत व अभद्र बातों को रद्द करके आध्यात्म एंव अल्लाह पर यक़ीन की भावना समाजों में फैला दी और यही वह माहौल था जिसमें बहादुर और ऐसे जवानों का प्रशिक्षण हुआ जिन्होने इस्लाम का बोलबाला करने में अपने ज़िंदगी को क़ुरबान करने में भी हिचकिचाहट से काम नहीं लिया।
पैगम्बरे इस्लाम हजरत मोहम्मद (स) की पैगम्बरी के ऐलान अर्थात बेसत की तारीख़ भी जल्दी ही गुज़री है इसलिये हम इमाम खुमैनी के कैरेक्टर पर इस पहलू से रौशनी डालने की कोशिश करेंगे कि उन्होने इस युग में किस तरह पैगम्बरे इस्लाम (स) के चरित्र और व्यवहार को व्यवहारिक रूप में पेश किया।
पश्चिमी दुनिया में घरेलू कामकाज को महत्वहीन समझा जाता है। यही कारण है कि अनेक महिलायें अपने समय को घर के बाहर गुज़ारने में ज़्यादा रूचि रखती हैं। जबकि पैगम्बरे इस्लाम (स) के हवाले से बताया जाता है कि पैगम्बरे इस्लाम (स) ने एक दिन अपने पास मौजूद लोगों से पूछा कि वह कौन से क्षण हैं जब औरत अल्लाह से बहुत क़रीब होती है?
किसी ने भी कोई उचित जवाब नहीं दिया। जब हज़रत फ़ातिमा की बारी आई तो उन्होने कहा वह क्षण जब औरत अपने घर में रहकर अपने घरेलू कामों और संतान के प्रशिक्षण में व्यस्त होती है तो वह अल्लाह के बहुत ज़्यादा क़रीब होती है। इमाम खुमैनी र.ह भी पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पदचिन्हों पर चलते हुये घर के माहौल में मां की भूमिका पर बहुत ज़्यादा ज़ोर देते थे।
कभी-कभी लोग इमाम ख़ुमैनी से कहते थे कि औरत क्यों घर में रहे तो वह जवाब देते थे कि घर के कामों को महत्वहीन न समझो, अगर कोई एक आदमी का प्रशिक्षण कर सके तो उसने समाज के लिये बहुत बड़ा काम किया है। मुहब्बत व प्यार औरत में बहुत ज़्यादा होता है और परिवार का माहौल और आधार प्यार पर ही होता है।
इमाम खुमैनी अपने अमल और व्यवहार में अपनी बीवी के बहुत अच्छे सहायक थे। इमाम खुमैनी की बीवी कहती हैः चूंकि बच्चे रात को बहुत रोते थे और सवेरे तक जागते रहते थे, इस बात के दृष्टिगत इमाम खुमैनी ने रात के समय को बांट दिया था। इस तरह से कि दो घंटे वह बच्चों को संभालते और मैं सोती थी और फिर दो घंटे वह सोते थे और मैं बच्चों को संभालती थी।
अच्छी व चरित्रवान संतान, कामयाब ज़िंदगी का प्रमाण होती है। माँ बाप के लिये जो बात बहुत ज़्यादा महत्व रखती है वह यह है कि उनका व्यवसाय और काम तथा ज़िंदगी की कठिनाइयां उनको इतना व्यस्त न कर दें कि वह अपनी संतान के पालन पोषण एवं प्रशिक्षण की अनदेखी करने लगें।
पैगम्बरे इस्लाम (स) की हदीस हैः अच्छी संतान, जन्नत के फूलों में से एक फूल है इसलिये ज़रूरी है कि माँ-बाप अपने बच्चों के विकास और कामयाबियों के लिये कोशिश करते रहें।
इमाम ख़ुमैनी बच्चों के प्रशिक्षण की ओर से बहुत ज़्यादा सावधान रहते थे। उन्होने अपनी एक बेटी से, जिन्होंने अपने बच्चे की शैतानियों की शिकायत की थी कहा थाः उसकी शैतानियों को सहन करके तुमको जो सवाब मिलता है उसको मैं अपनी सारी इबादतों के सवाब से बदलने को तैयार हूं। इस तरह इमाम खुमैनी बताना चाहते थे कि बच्चों की शैतानियों पर क्रोधित न हों, और संतान के पालने पोसने में मायें जो कठिनाइयां सहन करती हैं वह अल्लाह की निगाह में भी बहुत महत्वपूर्ण हैं और परिवार व समाज के लिये भी इनका महत्व बहुत ज़्यादा है।
इमाम खुमैनी र.ह के क़रीबी संबंधियों में से एक का कहना है कि इमाम खुमैनी का मानना था कि बच्चों को आज़ादी दी जाए। जब वह सात साल का हो जाये तो उसके लिये सीमायें निर्धारित करो। वह इसी तरह कहते थे कि बच्चों से हमेशा सच बोलें ताकि वह भी सच्चे बनें, बच्चों का आदर्श हमेशा माँ बाप होते हैं। अगर उनके साथ अच्छा व्यवहार करें तो वह अच्छे बनेंगे। आप बच्चे से जो बात करें उसे व्यवहारिक बनायें।
हजरत मोहम्मद (स) बच्चों के प्रति बहुत कृपालु थे। उन्हें चूमते थे और दूसरों से भी ऐसा करने को कहते थे। बच्चों से प्यार करने के संबंध में वह कहते थेः जो भी अपनी बेटी को ख़ुश करे तो उसका सवाब ऐसा है जैसे हजरत इस्माईल पैगम्बर की संतान में से किसी दास को ग़ुलामी से आज़ाद किया हो और वह आदमी जो अपने बेटे को ख़ुश करे वह ऐसे आदमी की तरह है जो अल्लाह के डर में रोता रहा हो और ऐसे आदमी का इनाम व पुरस्कार जन्नत है।
पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की ज़िंदगी बहुत ही साधारण, बल्कि साधारण से भी नीचे स्तर की थी। हज़रत अली अलैहिस्सलाम उनके ज़िंदगी के बारे में बताते हैं कि पैग़म्बर (स) ग़ुलामों की दावत को स्वीकार करके उनके साथ भोजन कर लेते थे। वह ज़मीन पर बैठते और अपने हाथ से बकरी का दूध दूहते थे। जब कोई उनसे मिलने आता था तो वह टेक लगाकर नहीं बैठते थे लोगों के सम्मान में वह कठिन कामों को भी स्वीकार कर लेते और उन्हें पूरा करते थे।
इमाम ख़ुमैनी र.ह भी अपनी ज़िंदगी के सभी चरणों में चाहे वह क़ुम के फ़ैज़िया मदरसे में उनकी पढ़ाई का ज़माना रहा हो या इस्लामी रिपब्लिक ईरान की लीडरशिप का समय उनकी ज़िंदगी हमेशा, साधारण स्तर की रही है। वह कभी इस बात को स्वीकार नहीं करते थे कि उनकी ज़िंदगी का स्तर देश के साधारण लोगों के स्तर से ऊपर रहे।
इमाम ख़ुमैनी के एक साथी का कहना है कि जब वह इराक़ के पाक शहर नजफ़ में रह रहे थे तो उस समय उनका घर, किराये का घर था जो नया नहीं था। वह ऐसा घर था जिसमें साधारण स्टूडेंट्स रहते थे। इस तरह से कहा जा सकता है कि इमाम ख़ुमैनी की जीवन स्तर साधारण स्टूडेंट्स ही नहीं बल्कि उनसे भी नीचे स्तर का था। ईरान में इस्लामी इंक़ेलाब की कामयाबी के बाद हुकूमती सिस्टम का नेतृत्व संभालने के बाद से अपनी ज़िंदगी के अंत तक जमारान इमामबाड़े के पीछे एक छोटे से घर में रहे।
उनकी ज़िंदगी का आदर्श चूंकि पैग़म्बरे इस्लाम (स) थे इसलिये उन्होंने अपने घर के भीतर आराम देने वाला कोई छोटा सा परिवर्तन भी स्वीकार नहीं किया और इराक़ द्वारा थोपे गए आठ वर्षीय युद्ध में भी वह अपने उसी साधारण से पुराने घर में रहे और वहीं पर अपने छोटे से कमरे में दुनिया के नेताओं से मुलाक़ात भी करते थे।
पैग़म्बरे इस्लाम के आचरण, व्यवहार और शिष्टाचार के दृष्टिगत इमाम ख़ुमैनी ने इस्लामी इंक़ेलाब के नेतृत्व की कठिनाइयों को कभी बयान नहीं किया और कभी भी स्वयं को दूसरों से आगे लाने की कोशिश भी नहीं की। वह हमेशा यही मानते और कहते रहे कि “मुझे अगर जनता का सेवक कहो तो यह इससे अच्छा है कि मुझे नेता कहो।
इमाम ख़ुमैनी जब भी जंग के जियालों के बीच होते तो कहते थे कि मैं जेहाद और शहादत से पीछे रह गया हूं इसलिये आपके सामने लज्जित हूं। जंग में हुसैन फ़हमीदे नामक नौजवान के शहीद होने के बाद उसके बारे में इमाम ख़ुमैनी का यह कहना बहुत मशहूर है कि हमारा नेता बारह साल का वह किशोर है जिसने अपने नन्हे से दिल के साथ, जिसकी क़ीमत हमारी सैकड़ों ज़बानों और क़लम से बढ़कर है हैंड ग्रेनेड के साथ ख़ुद को दुश्मन के टैंक के नीचे डाल दिया, उसे उड़ा दिया और ख़ुद भी शहीद हो गया।
लोगों के प्यार का पात्र बनना और उनके दिलों पर राज करना, विभिन्न कारणों से होता है और उनकी अलग-अलग सीमाएं होती हैं। कभी भौतिक कारण होते हैं और कभी निजी विशेषताएं होती हैं जो दूसरों को आकर्षित करती हैं और कभी यह कारण आध्यात्मिक एवं इलाही होते हैं और आदमी की विशेषताएं अल्लाह और धर्म से जुड़ी होती हैं।
अल्लाह ने पाक क़ुरआन में वचन दिया है कि जो लोग अल्लाह पर ईमान लाए और भले काम करते हैं, अल्लाह उनका प्यार दिलों में डाल देता है। इस इलाही वचन को पूरा होते हम सबसे ज़्यादा हज़रत मुहम्मद (स) के कैरेक्टर में देखते हैं कि जिनका प्यार दुनिया के डेढ अरब मुसलमानों के दिलों में बसा हुआ है।
इमाम ख़ुमैनी भी पैग़म्बरे इस्लाम (स) के प्यार में डूबे हुए दिल के साथ इस ज़माने के लोगों के दिलों में बहुत बड़ी जगह रखते हैं। इमाम ख़ुमैनी के बारे में उनके संपर्क में आने वाले ईरानियों ने तो उनके कैरेक्टर के बारे में बहुत कुछ कहा और लिखा है ही, विदेशियों ने भी माना है कि इमाम ख़ुमैनी समय और स्थान में सीमित नहीं थे।
दुनिया के विभिन्न नेताओं यहां तक कि अमरीकियों में भी जिसने इमाम ख़ुमैनी से मुलाक़ात की वह उनके कैरेक्टर और बातों से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका। इमाम ख़ुमैनी पूरे संतोष के साथ साधारण शब्दों में ठोस और सुदृढ़ बातें करते थे। उनके शांत मन और ठोस संकल्प को बड़ी से बड़ी घटनाएं और ख़तरे भी प्रभावित नहीं कर पाते थे।
दुनिया को वह अल्लाह का दरबार मानते थे और अल्लाह की कृपा और मदद पर पूरा यक़ीन रखते थे तथा यह विषय, नेतृत्व संबन्धी उनके इरादों के बारे में बहुत प्रभावी था। इस बात को साबित करने के लिए बस यह बताना काफ़ी होगा कि जब सद्दाम की फ़ौज ने इस्लामी इंक़ेलाब की कामयाबी के फ़ौरन बाद ईरान पर अचानक हमला किया तो इमाम ख़ुमैनी ने जनता से बड़े ही सादे शब्दों में कहा था कि “एक चोर आया, उसने एक पत्थर फेंका और भाग गया”।
इमाम के यह सादे से शब्द, रौशनी और शांति का स्रोत बनकर लोगों में शांति तथा हिम्मत भरने लगे और चमत्कार दिखाने लगे। हमारी दुआ है कि उनकी आत्मा शांत और उनकी याद सदा जीवित रहे।
गहवारे का लशकर; बच्चों की तरबीयत और इमाम खुमैनी का बसीरत अफ़रोज़ पैग़ाम
हम इस घटना से बच्चों को शिक्षित करने के महत्व का अंदाज़ा लगा सकते हैं जब इमाम खुमैनी से पूछा गया: आपके पास न तो धन है, न ही शक्ति, न ही कोई सरकार, न ही कोई सेना, तो आप एक मजबूत सरकार के खिलाफ कैसे उठेंगे? इमाम खुमैनी ने जवाब दिया: मेरी सेना अभी भी गहवारे में है।
“बच्चों को पढ़ाने की अहमियत का अंदाज़ा हम इस घटना से लगा सकते हैं जब इमाम खुमैनी से पूछा गया: ‘तुम्हारे पास न तो पैसा है, न ताकत, न सरकार, न सेना, तो तुम एक मज़बूत सरकार के खिलाफ़ कैसे खड़े होगे?’ इमाम खुमैनी ने जवाब दिया: ‘मेरी सेना अभी भी पालने में है।’
बेशक, इमाम खुमैनी की यह बात सच साबित हुई; वही बच्चे उन्नीस साल बाद उस समय की सरकार के खिलाफ़ खड़े हुए, उन्हीं नौजवानों ने सेना बनाई और उनमें से कुछ बड़े अफ़सर और कमांडर बने।
इमाम खुमैनी ने खुद शहीद मोहम्मद हुसैन फ़हमीदा के बारे में कहा था: ‘फ़हमीदा उन लोगों की लीडर हैं जो खड़े हैं।’
आज भी दुश्मन हमारे बच्चों से डरता है और नहीं चाहता कि हमारे बच्चे पढ़ें, क्योंकि यही बच्चे कल धर्म का झंडा उठाएंगे।
ग़ज़्ज़ा में सबसे ज़्यादा बच्चों के शहीद होने की मुख्य वजह यह थी कि दुश्मन को इस खतरे का अंदाज़ा हो गया था। गाज़ा के वही बच्चे, जो कुछ साल पहले गोलियों और पत्थरों की बारिश कर रहे थे इज़राइली सेना ने ही ‘अल-अक्सा तूफ़ान’ बनाया था।
इसलिए, इमाम खुमैनी की इस सोच को समझने की ज़रूरत है और हमें उस राज़ को समझना चाहिए जो इमाम खुमैनी को पता था।
जब इमाम खुमैनी से फिर पूछा गया कि वह अकेले क्या कर सकते हैं, तो उन्होंने कहा: ‘माँ, मैं कई बार अकेले दरबार में गया हूँ और सच बताया है।’
अगर इमाम खुमैनी की स्थापना की फ़िलॉसफ़ी को समझा जाए, तो इमाम खुमैनी ने वही काम किया जिसके लिए हज़रत ज़हरा (स) दरबार में गई थीं। यानी ‘इमामत की दिखने वाली सरकार स्थापित करना।’ लेकिन अल्लाह ने सैय्यदा का यह काम इमाम खुमैनी के ज़रिए पूरा किया।
इमाम खुमैनी सैय्यदा को ‘उम्माह की माँ’ मानते थे। वह अक्सर कहते थे कि सैय्यदा के दुनिया में दो तरह के बच्चे हैं: एक नस्ली बच्चा, जो सआदत के रूप में है, और एक रूहानी बच्चा, जो उनके सच्चे मानने वालों के रूप में है।
ऐ फातेमियूं! आपको दुनिया के ज़ुल्म के खिलाफ़ आवाज़ उठानी चाहिए क्योंकि आपकी माँ फातिमा ने भी आवाज़ उठाई थी।
लेखक: अशरफ सिराज गुलतारी
हज़रत फ़ातेमा स.ल. का जीवन हर पहलू कामयाब जिंदगी का राज़ है
हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की सुपुत्री हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के शुभ जन्म दिवस के अवसर पूरे ईरान में कार्यक्रमों का सिलसिला जारी हैं।
20 जमादिउस्सानी सन 1447 हिजरी क़मरी को हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्ला अलैहा का शुभ जन्म दिवस है।वह पूरी दुनिया की महिलाओं के लिए आदर्श हैं।
ईरान में पैग़म्बरे इस्लाम (स.ल.) की सुपुत्री हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के शुभ जन्म दिवस को महिला दिवस और मदर डे के रूप में मनाया जाता है। बुधवार की रात अर्थात कल रात से ही ईरान में हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के शुभ जन्म दिवस से संबन्धित कार्यक्रम आरंभ हो चुके हैं।
बहुत से स्थानों पर मस्जिदों और इमामबाड़ों को सजाया गया है। बहुत से लोग अपने घरों पर उनके जन्म दिवस से संबन्धित कार्यक्रम कर रहे हैं। ईरान के सभी नगरों में हज़रत फ़ातेमा ज़हेरा का शुभ जन्म दिवस मनाया जा रहा है।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की महानता के बारे में कहते हैं कि उनका जीवन हर पहलू से एक मनुष्य के प्रयास, परिपूर्णता और आत्मिक उत्थान से भरा एक जीवन है।वह हमेशा मोर्चों पर और युद्ध के मैदानों में है लेकिन कठिनाइयों और समस्याओं के बावजूद हज़रत फ़ातेमा का घर और उनका जीवन आम लोगों और मुसलमानों की समस्याओं के समाधान के केंद्र की तरह है।
वह पैग़म्बरे इस्लाम की बेटी हैं और इन परिस्थितियों में भी जीवन को बड़े गौरवपूर्ण तरीक़े से आगे बढ़ाती हैं। इमाम हसन, इमाम हुसैन और हज़रत ज़ैनब जैसे बच्चों का प्रशिक्षण करती हैं, अली जैसे पति का ध्यान रखती हैं और पैग़म्बरे इस्लाम जैसे पिता को प्रसन्न रखती हैं।
युद्धों में इस्लाम की विजय का मार्ग खुल जाता है और बड़ी मात्रा में धन आने लगता है लेकिन पैग़म्बर की सुपुत्री सांसारिक आनंदों, ऐश्वर्य और दुनिया की चकाचौंध को तनिक भी अपने जीवन में आने नहीं देतीं। हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा की उपासना एक आदर्श उपासना है।
सैयद अब्दुल मलिक अलहौसी द्वारा तथाकथित जोलानी की कठोर आलोचना
यमन की इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन "अंसारूल्लाह" के प्रमुख ने "तहरीर अल-शाम" द्वारा कब्जाधारी सियोनीस्ट सरकार के साथ संबंध स्थापित करने के प्रयासों की कड़ी भाषा में निंदा करते हुए इसे अमेरिका-परस्ती, पाखंड और मुस्लिम उम्मत के हितों के साथ स्पष्ट विश्वासघात बताया है।
यमन की इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन "अंसारूल्लाह" के प्रमुख सैय्यद अब्दुल मलिक बदरुद्दीन अल-हौसी ने "तहरीर अल-शाम" द्वारा कब्जाधारी सियोनीस्ट सरकार के साथ संबंध स्थापित करने के प्रयासों की कड़ी भाषा में निंदा करते हुए इसे अमेरिका-परस्ती, पाखंड और मुस्लिम उम्मा के हितों से स्पष्ट विचलन बताया है।
अब्दुल मलिक अल-हौसी ने हज़रत फातिमा जहरा (स.अ.) के जन्मदिन और "महिला दिवस" के अवसर पर अपने एक संदेश में कहा कि सीरिया पर कब्जा जमाए बैठे तकफीरी एक ऐसी अपमानजनक और पीछे हटने वाली सोच का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो वाशिंगटन की खुशामद और सियोनीस्ट सरकार के करीब जाने पर आधारित है।
यह लोग इस तथ्य के बावजूद तेल अवीव के करीब जा रहे हैं कि इजरायल लगातार सीरियाई भूमि पर हमले कर रहा है और उसके कुछ हिस्सों पर कब्जा भी किया हुआ है।
उन्होंने सियोनीस्ट सरकार की आक्रामकता को स्पष्ट करते हुए कहा कि इजरायल वैश्विक शक्तियों की गारंटी से तय होने वाले अंतरराष्ट्रीय समझौतों का बार-बार उल्लंघन कर चुका है, जिसकी स्पष्ट मिसालें आज गाजा और लेबनान में जारी हत्याकांड और लूटपाट के रूप में पूरी दुनिया के सामने हैं। ये कार्रवाइयां इजरायल की आपराधिक मानसिकता और विस्तारवादी नीतियों का निर्विवाद सबूत हैं।
सैय्यद अब्दुल मलिक अल-हौसी ने मुस्लिम उम्मा को संबोधित करते हुए जोर दिया कि वह अत्याचारी और घमंडी ताकतों पर निर्भरता के बजाय अपने असली मिशन की ओर लौटे, जिसमें न्याय की स्थापना, मजलूमों की रक्षा और ताकतवर ताकतों के सामने दृढ़ता से खड़ा होना शामिल है।
उम्मा को अपनी बौद्धिक और नैतिक नींव को मजबूत करते हुए सम्मान, प्रतिष्ठा और वैश्विक भूमिका की बहाली के लिए गंभीर कदम उठाने होंगे।
उन्होंने सियोनीस्ट अत्याचारों का विशेष उल्लेख करते हुए कहा कि फिलिस्तीन में हजारों मुस्लिम महिलाएं, जिनमें गर्भवती महिलाएं, नाबालिग लड़कियां, युवतियां और बुजुर्ग महिलाएं शामिल हैं, सियोनीस्ट आक्रामकता का शिकार हो चुकी हैं।उन्होंने इस स्थिति को मानवीय मूल्यों और वैश्विक विवेक के लिए एक कठिन परीक्षा बताया।
हज़रत फातेमा स.अ. का जीवन सत्य और सच्चाई का सर्वोत्तम उदाहरण है
आयतुल्लाह अहमद जन्नती ने कहा कि इस्लाम ने महिला को सर्वोच्च स्थान दिया है, और इमाम ख़ुमैनी (र.ह.) और क्रांति के नेता ने भी अपने भाषणों में महिलाओं की शान और महानता के संबंध में बार बार उल्लेख किया है।
आयतुल्लाह जन्नती ने गार्जियन काउंसिल की बैठक में हज़रत फातिमा ज़हरा (स.अ.) के जन्मदिन के अवसर पर बोलते हुए कहा कि हज़रत ज़हेरा (स.अ.) का संपूर्ण जीवन सत्य, साहस और पवित्रता का अनुपम उदाहरण है।
उन्होंने बताया कि आज कुछ भौतिकवादी विचारधाराएं इस्लाम की पारिवारिक व्यवस्था को कमजोर कर रही हैं और वैश्विक शक्तियां इन्हीं विकृत विचारों को दुनिया भर में फैलाने की कोशिश कर रही हैं।
आयतुल्लाह जन्नती ने कहा कि पैगंबर हज़रत मुहम्मद (स.अ.व.) और इमामों (अ.स.) ने हज़रत ज़हरा (स.अ.) का जिस तरह सम्मान किया, वह इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि इस्लाम महिला को उच्च स्थान देता है।
उन्होंने कहा कि ईरान का संविधान भी इस्लामी शिक्षाओं के आधार पर महिलाओं के लिए सम्मान का पक्षधर है और मजबूत रुख रखता है।
उन्होंने हज़रत ज़हरा (स.अ.) के विशिष्ट गुणों का वर्णन करते हुए कहा कि आप (स.अ.) ईमान, सत्य की रक्षा, दृढ़ता, उत्तम तरीके से सत्य बात पहुंचाने और आशा के साथ संघर्ष करने की जीवंत मिसाल हैं।
आयतुल्लाह जन्नती ने कहा कि इस्लाम ने हमेशा महिला का सम्मान किया है, आज देश में बौद्धिक और विचारशील महिलाओं की संख्या बहुत अधिक है, क्रांति के महान नेता के अनुसार आज ईरान में जितनी शिक्षित, विचारशील और शोधकर्ता महिलाएं मौजूद हैं, उसकी इतिहास में मिसाल नहीं मिलती।
उन्होंने कहा कि भौतिकवादी विचारधारा वाली सभ्यताएं केवल विशेष समूहों के हित को देखती हैं, इसीलिए उनके समाज गंभीर समस्याओं में घिरे रहते हैं, जिनमें सबसे बड़ी समस्या परिवार की नींव का टूट जाना है।
उन्होंने कहा कि वैश्विक साम्राज्यवाद इन्हीं समस्याओं को दुनिया में फैलाना चाहता है और विशेष रूप से महिलाओं के बारे में गलत और विनाशकारी मॉडल थोप रहा है।
…………
इज़रायली बलों का (UNRWA) के कार्यालय पर धावा, संयुक्त राष्ट्र का झंडा हटाया
इज़रायली बलों ने पूर्वी येरुशलम में संयुक्त राष्ट्र की सहायता एजेंसी यूएनआरडब्ल्यूए के मुख्यालय पर छापा मारकर यूएन का झंडा जबरदस्ती हटा दिया और फिर इजराइल का झंडा लगाया।
इज़रायली बलों ने पूर्वी येरुशलम में संयुक्त राष्ट्र की सहायता एजेंसी यूएनआरडब्ल्यूए के मुख्यालय पर छापा मारकर यूएन का झंडा जबरदस्ती हटा दिया इज़राइली सेना ने संयुक्त राष्ट्र के फिलिस्तीन में मानवीय कार्यों में सक्रिय एजेंसी के मुख्य कार्यालय पर छापा मारा, छापे के दौरान इज़रायली बलों ने संपर्क के सभी साधनों को काट दिया ताकि कार्यालय की सीमा में हो रही इस कार्रवाई को दुनिया से छुपाया जा सके। छापे के बाद इज़रायली सेना ने कार्यालय की इमारत से संयुक्त राष्ट्र का झंडा हटा कर इज़रायली ध्वज लहरा दिया।
रायटर्स के अनुसार, सोमवार को इज़रायली अधिकारियों ने संयुक्त राष्ट्र की फिलिस्तीनी शरणार्थी एजेंसी (यूएनआरडब्ल्यूए) के पूर्वी येरुशलम स्थित कार्यालयों में प्रवेश किया और छापे के दौरान इज़रायल का झंडा फहराया। इज़रायली अधिकारियों ने दावा किया कि यह कार्रवाई करों का भुगतान न करने के कारण की गई।
यूएनआरडब्ल्यूए के कमिश्नर जनरल फिलिप लाज़ारिनी ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इस घटना के संबंध में बयान में कहा कि एक यूएन सदस्य देश के रूप में इज़रायल पर जिम्मेदारी है कि वह यूएन के अधिकार क्षेत्र में आने वाले कार्यालय की सुरक्षा सुनिश्चित करे और उसका सम्मान करे।
यह स्पष्ट है कि संयुक्त राष्ट्र की राहत और कार्य एजेंसी पर इज़रायल पक्षपात का आरोप लगाता रहा है। इस एजेंसी ने इस वर्ष की शुरुआत से इस इमारत का उपयोग नहीं किया, क्योंकि इज़रायल ने इसे सभी स्थान खाली करने और अपनी गतिविधियों को रोकने का आदेश दिया हुआ है।
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने इस छापे की कड़ी निंदा की और कहा कि, यह परिसर यूएन की संपत्ति है और इसे किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप से अपवाद प्राप्त है।
मैं इज़रायल से आग्रह करता हूं कि वह तुरंत सभी आवश्यक कदम उठाए ताकि यूएनआरडब्ल्यूए के परिसर की गरिमा को बहाल, सुरक्षित और बनाए रखा जा सके और इन परिसरों से संबंधित किसी भी और कार्रवाई से बचा जाए।यूएनआरडब्ल्यूए के प्रमुख फिलिप ला ज़ारिनी ने एक्स पर लिखा कि इज़रायल की यह कार्रवाई ख़तरनाक हो सकती है।
अमेरिकी लैटिन अमेरिका की ज़मीन पर कब्ज़ा करना चाहते हैंः आयतुल्लाह ख़ामेनई
हज़रत सिद्दीका ताहिरा फ़ातिमा ज़हरा (स) की जन्म जयंती के मौके पर अहलुल बैत (स) के चाहने वालों और शायरों के साथ एक मीटिंग में, इस्लामिक क्रांति के लीडर अयातुल्ला खामेनेई ने हज़रत ज़हरा की खूबियों और फ़ायदों को इंसानी समझ और समझ से परे बताया।
गुरुवार, 11 दिसंबर, 2025 की सुबह इमाम खुमैनी हुसैनिया में हुई इस मीटिंग में, इस्लामिक क्रांति के लीडर ने कहा कि हमें फ़ातिमी बनना चाहिए और हर तरह से हज़रत ज़हरा का अनुसरण करना चाहिए, जिसमें नेकी, इंसाफ़, समझाने और ज़ाहिर करने का जिहाद, पति का काम और बच्चों की परवरिश शामिल है।
उन्होंने नेशनल रेजिस्टेंस को हेजेमन्स के खिलाफ मजबूती से खड़े होने के तौर पर बताया, और कहा कि कभी-कभी प्रेशर मिलिट्री नेचर का होता है, और कभी-कभी यह इकोनॉमिक, प्रोपेगैंडा, कल्चरल और पॉलिटिकल नेचर का होता है।
इस्लामिक क्रांति के लीडर ने वेस्टर्न मीडिया एजेंट्स और पॉलिटिकल और मिलिट्री अधिकारियों द्वारा किए जा रहे आंदोलनों को दुश्मन के प्रोपेगैंडा प्रेशर का संकेत बताया, और कहा कि हेजेमन्स के देशों पर प्रेशर का मकसद, और उनमें सबसे आगे ईरानी देश, कभी ज्योग्राफिकल एक्सपेंशन होता है, जैसा कि आज अमेरिकी सरकार लैटिन अमेरिका में कर रही है, और कभी-कभी मकसद अंडरग्राउंड रिज़र्व पर कब्ज़ा करना होता है, और कभी-कभी मकसद लाइफस्टाइल बदलना होता है, और उससे भी ज़्यादा, पहचान बदलना होता है, जो हेजेमन्स के प्रेशर का असली मकसद है।
ईरानी राष्ट्र की धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान को बदलने के लिए दुनिया की ताकतवर ताकतों की 100 साल से ज़्यादा पुरानी कोशिशों की ओर इशारा करते हुए, अयातुल्ला खामेनेई ने कहा कि इस्लामी क्रांति ने इन सभी कोशिशों को बेकार कर दिया है, और हाल के दशकों में, ईरानी राष्ट्र ने भी अपने घुटने टेके बिना, अपनी मज़बूती और लगन से उन्हें कुचल दिया है।
उन्होंने ईरान से क्षेत्रीय देशों और कुछ दूसरे देशों में विरोध के विचार के फैलने को एक सच्चाई बताया, और कहा कि दुश्मन ने ईरान और ईरानी राष्ट्र के खिलाफ कुछ ऐसे काम किए हैं जो अगर उसने किसी दूसरे देश और राष्ट्र के खिलाफ किए होते, तो उसका नामोनिशान मिट जाता।
शहीदों की याद को ज़िंदा और अमर रखने और देश में विरोध के विचार को बढ़ावा देने और बढ़ाने में तारीफ़ के ज़ैनबी असर की ओर इशारा करते हुए, क्रांति के नेता ने कहा कि आज, आपने जो सैन्य झड़प देखी, उससे कहीं ज़्यादा हम एक प्रोपेगैंडा और मीडिया युद्ध के केंद्र में हैं क्योंकि दुश्मन समझ गया है कि इस पवित्र और आध्यात्मिक देश और ज़मीन को न तो सैन्य दबाव से जीता जा सकता है और न ही कब्ज़ा किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि हालांकि कुछ लोग बार-बार मिलिट्री झड़पों की संभावना जताते रहते हैं, और कुछ लोग जानबूझकर इस मुद्दे को हवा देते हैं ताकि लोग शक और हिचकिचाहट में रहें, लेकिन, अल्लाह ने चाहा तो वे कामयाब नहीं होंगे।
इस्लामिक क्रांति के लीडर ने दुश्मन के डायमेंशन, खतरे और टारगेट, क्रांति के लक्ष्यों, कॉन्सेप्ट और निशानों, और इमाम खुमैनी (र) की याद को मिटाने के बारे में बताया, और कहा कि अमेरिका इस बड़े और एक्टिव फ्रंट के सेंटर में है, और कुछ यूरोपियन देश इसका सपोर्ट कर रहे हैं, जबकि कुछ कायर, गद्दार और धोखेबाज यूरोप में चंद पैसे कमाने के लिए इस फ्रंट के मोहरे बन गए हैं।
उन्होंने कहा कि दुश्मन के टारगेट और उसकी फ्रंटलाइन की पहचान करना ज़रूरी है, और कहा कि मिलिट्री फ्रंट की तरह, इस प्रोपेगैंडा झड़प में भी, हमें दुश्मन की साज़िशों और लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए सही टकराव करना चाहिए, और उन चीज़ों पर पूरा ध्यान देना चाहिए जिन्हें दुश्मन ने टारगेट किया है, यानी इस्लामिक, शिया और क्रांतिकारी ज्ञान और शिक्षाएँ।
इस्लामी क्रांति के लीडर ने पश्चिम के प्रोपेगैंडा वॉर और मीडिया वॉर के सामने विरोध को मुश्किल लेकिन पूरी तरह मुमकिन बताया, और कहा कि इस तरह, अहल-उल-बैत के चाहने वालों और कवियों को अपने संगठनों को क्रांति के मूल्यों की रक्षा के सेंटर में बदलना चाहिए। चाहने वाले और संगठन आज विरोध साहित्य के कलेक्शन, प्रमोशन और ट्रांसमिशन के ज़रिए इस बहुत ही बुनियादी ज़रूरत को मज़बूत कर रहे हैं।
अपने भाषण के आखिरी हिस्से में, अयातुल्ला खामेनेई ने अहल-उल-बैत के चाहने वालों और कवियों को कुछ सलाह दीं, जिसमें सभी इमामों (उन पर शांति हो) की ज़िंदगी को ध्यान में रखते हुए धार्मिक शिक्षाओं और विरोध की शिक्षाओं की व्याख्या करना, दुश्मन की कमज़ोरियों पर हमला करना और साथ ही अपनी तरफ से शक पैदा होने से असरदार तरीके से बचाव करना, व्यक्तिगत, सामूहिक और राजनीतिक क्षेत्रों में कुरान की अवधारणाओं की व्याख्या करना, और दुश्मन से टकराव की प्रकृति शामिल है।
बच्चों को अपने माता-पिता की कद्र करना सीखना चाहिए
आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी अमोली ने अपने तफ़सीर के दर्स में माता-पिता का सम्मान करने की अहमियत समझाते हुए कहा कि बच्चों, खासकर बेटों और बेटियों को हमेशा अपने माता-पिता के बहुत बड़े त्याग और कोशिशों को ध्यान में रखना चाहिए।
आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी अमोली ने अपने तफ़सीर के दर्स में माता-पिता का सम्मान करने और उनकी सेवा करने की ज़रूरत पर बात करते हुए कहा कि हालांकि घर और खर्चों की ज़िम्मेदारी पिता की मुश्किलों को दिखाती है, लेकिन प्रेग्नेंसी, बच्चे के जन्म, बचपन और ब्रेस्टफीडिंग के दौरान एक माँ को जो मुश्किलें झेलनी पड़ती हैं, वे बहुत मुश्किल होती हैं।
उन्होंने कहा कि यह बात बच्चों को याद दिलाती है कि बेटों को भी शुक्रगुजार होना चाहिए और बेटियों को भी इस रास्ते को अपनी ज़िंदगी का हिस्सा मानना चाहिए। अयातुल्ला जवादी अमोली ने सूरह लुकमान की आयत 14 का ज़िक्र करते हुए कहा कि पवित्र कुरान खुद माँ की मुश्किलों को बताता है:
“«وَ وَصَّیْنَا الْإِنسَانَ بِوَالِدَیْهِ … حَمَلَتْهُ أُمُّهُ وَهْنًا عَلَىٰ وَهْنٍ وَفِصَالُهُ فِي عَامَيْنِ व वस्सयनल इंसाना बेवालेदैयह ... हमलतहू उम्मोहू वहनन अला वहनिन व फ़ेसालोहू फ़ी आमैने...”
यानी, हमने इंसान को उसके माता-पिता का हुक्म दिया है, उसकी माँ ने उसे कमज़ोरी पर कमज़ोरी उठाकर पाला, और हमने दो साल में उसे दूध छुड़ा दिया। तो उसे मेरा और अपने माता-पिता का शुक्रगुज़ार होना चाहिए, और मेरी ही तरफ़ लौटना है।”
उन्होंने कहा कि इस कुरानिक शिक्षा का मकसद यह है कि बेटे अपनी माँ की कीमत समझें और बेटियाँ इस आयत से माँ बनने का सबक सीखें, ताकि समाज में माता-पिता का सम्मान करने और उनकी सेवा करने की भावना मज़बूत हो।
अल्लाह के कलाम और तफ़सीर में हज़रत ज़हरा (स) की शान
हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) पैगंबरों के सरदार और दुनिया पर रहम करने वाले की बेटी हैं, सय्यद अल-औसिया इमाम अली (अ) की पत्नी और इमाम हसन और इमाम हुसैन अ) की माँ हैं। वह काबा की साथी हैं, पाँच मासूम में से एक हैं। ज़हरा, बतूल, सय्यदत अल-निसा, अज़रा, मुहद्देसा, मुअज़्ज़मा और उम्म अबिया उनके मशहूर उपाधीया हैं।
परिचय:
हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) पैगंबरों के सरदार और दुनिया पर रहम करने वाले की बेटी हैं, सय्यद अल-औसिया इमाम अली (अ) की पत्नी और इमाम हसन और इमाम हुसैन अ) की माँ हैं। वह काबा की साथी हैं, पाँच मासूम में से एक हैं। ज़हरा, बतूल, सय्यदत अल-निसा, अज़रा, मुहद्देसा, मुअज़्ज़मा और उम्म अबिया उनके मशहूर उपाधीया हैं।
हज़रत फ़ातिमा (स) इस्लाम की अकेली ऐसी महिला हैं जो नज़रान के ईसाइयों के खिलाफ़ उनसे मुबाहेला में पैगंबर (स) के साथ थीं। इसके अलावा, सूरह कौसर, आय ए तत्हीर, आय ए मवद्दा, आय ए इताम और हदीस बिज़्आ में उनकी शान और काबिलियत का ज़िक्र किया गया है। रिवायतों में बताया गया है कि पैगंबर (स) ने फ़ातिमा ज़हरा (स) को सैय्यदत-उल-निसा अल-आलमीन के तौर पर पेश किया और उनकी खुशी और नाराज़गी को अल्लाह की खुशी और नाराज़गी बताया। इस बारे में, हम कुरान की कुछ आयतों के ज़रिए उनकी शान का ज़िक्र करेंगे।
कुरान की आयतों की रोशनी में:
आय ए तत्हीर
"अल्लाह बस यही चाहता है कि ऐ अहलेबैत, तुमसे सारी गंदगी दूर रखे, और तुम्हें पाक व पाकीज़ा रखे" (अल-अहज़ाब: 33)
यहां, अहले बैत का मतलब इमाम अली (अ), हज़रत फातिमा ज़हरा (स) इमाम हसन और इमाम हुसैन (अ) से है। यह हदीस शिया और सुन्नी दोनों ने सुनाई है। उदाहरण के लिए, एक हदीस में, हज़रत उम्मे सलमा (स) बताती हैं:
यह आयत मेरे घर पर तब नाज़िल हुई, जब अल्लाह के रसूल (स) ने अली, फातिमा, हसन और हुसैन (अ) को बुलाया और उन्हें कंबल ओढ़ाया और फिर कहा:
अल्लाहुम्मा हाउलाए अहलोबैती
ऐ अल्लाह, ये मेरे अहले-बैत हैं।
आपसे एक रिवायत है कि हज़रत उम्मे सलमा ने पूछा: ऐ अल्लाह के रसूल (स), क्या मैं अहले-बैत में से नहीं हूँ? उन्होंने (स) फ़रमाया:
तुम ख़ैर पर हो, तुम पैगंबर (स) की पत्नियों में से हो।
इसके अलावा, अबू सईद अल-खदरी से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल (स) ने साफ-साफ कहा
यह आयत पंजतन की शान में है, यानी यह मेरी, अली, हसन, हुसैन और फातिमा की शान में नाज़िल हुई है।
आय ए मुबाहेला:
“और अगर वे तुमसे (यीशु के बारे में) ज्ञान आने के बाद झगड़ें, तो कहो: आओ, हम अपने बेटों को बुलाएँगे और तुम हमारे बेटों को बुलाओगे, हम अपनी बेटियों को बुलाएँगे और तुम हमारी बेटियों को बुलाओगे, हम अपने आपको बुलाएँगे और तुम अपने आपको बुलाओगे, फिर दोनों पक्ष अल्लाह से दुआ करें, कि अल्लाह की लानत झूठे पर हो।”
शिया और सुन्नी मुफ़स्सिर इस बात पर सहमत हैं कि यह आयत नज़रान के ईसाइयों और पैगंबर मुहम्मद (स) के बीच हुई बहस से जुड़ी है। ईसाई ईसा (अ) को तीन पवित्र लोगों में से एक मानते थे, उन्हें अल्लाह का दर्जा देते थे, और वे पवित्र कुरान में ईसा (अ ) के बारे में बताई गई बातों से सहमत नहीं थे, जिसमें उन्हें अल्लाह का नेक बंदा और पैगंबर बताया गया था। जब पैगंबर (स) की बातें और तर्क ईसाइयों पर असरदार नहीं हुए, तो उन्होंने उन्हें मुबाहला में बुलाया।
हदीस के जानकार, मुफ़स्सिर इतिहासकार और जीवनी लिखने वाले इस बात पर सहमत हैं कि पैगंबर (स) मुबाहला के मौके पर हसनैन, फातिमा और अली (अ) को अपने साथ ले गए थे।
कोई भी जीवनी लिखने वाला और इतिहासकार इस बात से सहमत नहीं था कि पैगंबर (स) ने हसन, हुसैन, फातिमा और अली (अ) का हाथ थामकर ईसाइयों को मुबाहला में बुलाया था। (अल-कौसर, तफ़सीर अल-कुरान, आल-इमरान: 61)
आय ए मवद्दा
कहो: मैं तुमसे इसके लिए (नबूवत का संदेश फैलाने के लिए) कोई इनाम नहीं माँगता सिवाय रिश्तेदारों से प्यार के।
पैगंबर (स) के मदीना हिजरत करने और इस्लामिक समाज की स्थापना के बाद, अंसार उनके पास आए और इस्लामिक सिस्टम के मैनेजमेंट के लिए उनसे कहा, “अगर आपको अपना नया समाज बनाने के लिए पैसे की ज़रूरत है, तो हमारी सारी दौलत और सारे रिसोर्स आपके पास हैं। आप जो भी खर्च करेंगे और हमारी दौलत का जो भी इस्तेमाल करेंगे, वह हमारे लिए इज़्ज़त और गर्व की बात होगी।” फिर फ़रिश्ते ने मवद्दह की आयत उतारी।
सईद बिन जुबैर से रिवायत है कि जब मवद्दह की आयत उतरी, तो हमने पैगंबर (स) से पूछा कि आपके करीबी रिश्तेदार कौन हैं? यानी वो लोग जिनकी हम पर मोहब्बत ज़रूरी है। आप (स) ने कहा, “इसका मतलब अली, फातिमा और उनके दो बेटे हैं।” (तफ़सीर अल-नमूना, सूर ए शूरा: 23)
सूर ए कौसर
बेशक, हमने तुम्हें कौसर दिया है।
कौसर शब्द का मतलब तफ़सीर करने वालों ने अलग-अलग तरह से निकाला है। कई बातों पर बात हुई है। इस बारे में, कौसर शब्द के मतलब को लेकर तफ़सीर करने वालों में मतभेद है। शिया विद्वान "कौसर" का मतलब हज़रत फातिमा (स) मानते हैं क्योंकि इस सूरह में इन लोगों का ज़िक्र है।
कुछ लोग ऐसे भी हैं जो पैगंबर (स) को बिना औलाद और नाजायज़ मानते थे, हालांकि पैगंबर (स) के वंशज उनकी इकलौती बेटी हज़रत फातिमा (स) के खानदान से भी आगे थे, जिन्होंने इमामत का बड़ा पद संभाला और इस्लाम धर्म को आगे बढ़ाया, जिसकी वजह से आज इस्लाम का यह हरा-भरा पेड़ पूरी ताकत से अपना सफ़र जारी रखे हुए है। (तफ़सीर नमूना, सूर ए कौसर)
आय ए क़ुर्बा
और सबसे करीबी रिश्तेदार को उसका हक़ दो।
"ज़ुल-कुर्बा" के बारे में, तफ़सीर करने वालों के बीच सवाल उठते हैं कि क्या इसका मतलब सभी रिश्तेदारों से है या सिर्फ़ पैगंबर (स) के रिश्तेदारों से। मिसाल के मतलब के मुताबिक, शिया इमामों से सुनाई गई हदीसों के मुताबिक, सिर्फ़ पैगंबर (स) के अहले बैत को ही "ज़ुल कुर्बा" (सबसे करीबी रिश्तेदार) कहा गया है। लेकिन, ये हदीसें आयत के उदाहरणों को अहले बैत तक सीमित नहीं करतीं, बल्कि अहले बैत को उसका पूरा उदाहरण मानती हैं। इसलिए, हर इंसान से उसके रिश्तेदारों के बारे में पूछा जाएगा।
शिया और सुन्नी हदीसों के अनुसार, इस आयत के नाज़िल होने के बाद पैगंबर (स) ने हज़रत फातिमा (स) को फदक तोहफ़े में दिया। हदीस में।
जब आयत “वाते ज़ुल कुर्बा” नाज़िल हुई, तो अल्लाह के रसूल (स) ने फातिमा (स) को बुलाया और उन्हें फदक दिया। (अल-कौसर, तफ़सीर अल-कुरान, अल-इसरा: 26)
आय ए इत्आम
और वे प्यार से ज़रूरतमंदों, अनाथों और बंदी लोगों को खाना खिलाते हैं। हम तुम्हें सिर्फ़ अल्लाह के लिए खिलाते हैं। हमें तुमसे कोई इनाम या शुक्रगुज़ारी नहीं चाहिए।” (धर)
यह आयत इस मशहूर घटना के बाद आई। जब इमाम हसन और इमाम हुसैन (अ) बीमार पड़े, तो घर में सभी ने उनके ठीक होने के लिए तीन दिन रोज़ा रखने की कसम खाई। जब वे दोनों ठीक हो गए, तो पूरे परिवार ने रोज़ा रखा, और रोज़ा खोलते समय, एक भिखारी ने दरवाज़े पर आवाज़ दी: “ऐ अहले बैत ए रसूल (अ)! क्या कोई है जो भूखे को खाना खिलाएगा?" उसने उसे खाना खिलाया। उसने अपना पूरा खाना भिखारी को दे दिया। यह घटना तीन दिनों तक चली, इसलिए अल्लाह तआला ने उसके सम्मान में यह आयत उतारी।
कुछ सुन्नी जानकारों के अनुसार, आय ए इत्आम अहले बैत (अ) के सम्मान में उतारी गई थी। अल्लामा अमीनी ने अपनी किताब अल-ग़दीर में 34 सुन्नी विद्वानों के नाम बताए हैं जिन्होंने लगातार इस बात की पुष्टि की है कि ये आयतें अहले-बैत (अ) के सम्मान और इमाम अली (अ), फ़ातिमा (स), हसन (अ), और हुसैन (अ) के गुणों का वर्णन करती हैं। शिया विद्वानों के अनुसार, सूर ए इंसान की पूरी अठारह आयतें अहले-बैत (अ) के सम्मान में उतारी गईं, और तफ़सीर या हदीस की किताबों में इस घटना से जुड़ी कहानी को अली के सम्मान और महत्वपूर्ण गुणों में से एक माना गया है। (तफ़सीर अल-नमूना, सूर ए इंसान 9,8)
लेखक: सय्यद हादियान हैदर













