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ईरान-अफ्रीका आर्थिक सहयोग शिखर सम्मेलन में 50 अफ्रीकी अधिकारी शामिल हुए
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने वैश्विक आर्थिक विकास में मंदी की चेतावनी दी है, विशेष रूप से अमेरिका में, जिसका कारण देश के राष्ट्रपति द्वारा अनिवार्य टैरिफ़ लागू किया जाना है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प की अप्रत्याशित टैरिफ नीति और देश के व्यापारिक साझेदारों की ओर से जवाबी कार्रवाई से वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं को भारी झटका लग सकता है।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने मंगलवार को अंदाज़ा लगाया है कि इस वर्ष वैश्विक आर्थिक वृद्धि दर धीमी होकर 2.8 प्रतिशत रह जाएगी, जो पिछले वर्ष की 3.3 प्रतिशत से कम है जो ऐतिहासिक औसत से काफी नीचे है।
अमेरिका में अपेक्षित आर्थिक मंदी और भी अधिक गंभीर होती जा रही है, जहां इसकी अर्थव्यवस्था केवल 1.8 प्रतिशत की दर से बढ़ने की संभावना है।
इंग्लैंड, ट्रेड वॉर के सबसे ज़्यादा शिकारों में
दूसरी ओर, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने अपने ताज़ा अंदाज़ों में चेतावनी दी है कि ब्रिटिश अर्थव्यवस्था वैश्विक व्यापार युद्ध के सबसे बड़े पीड़ितों में से एक होगी और देश की आर्थिक वृद्धि अन्य उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अधिक गंभीर रूप से प्रभावित होगी।
ईरान और ब्रिक्स के सदस्यों के बीच उच्च मात्रा में व्यापार
दूसरी ओर, ईरान के कृषि मंत्री ग़ुलाम रज़ा नूरी क़िज़िलजा ने कहा: इस्लामी गणतंत्रर ईरान और ब्रिक्स के सदस्यों के बीच कृषि और खाद्य के क्षेत्रों में व्यापार की मात्रा 13 अरब डॉलर से अधिक है जबकि नूरी क़िज़िलजेह के अनुसार, इस क्षेत्र में ब्रिक्स के सदस्य देशों के बीच व्यापार की मात्रा लगभग 160 बिलियन डॉलर है।
ईरान-अफ़्रीक़ा आर्थिक सहयोग शिखर सम्मेलन में 50 अफ़्रीक़ी अधिकारी शामिल हुए
ईरान के व्यापार विकास संगठन के अफ़्रीक़ा कार्यालय के प्रमुख मोहम्मद रजा सफ़री ने मंगलवार को अफ़्रीक़ी महाद्वीप के साथ व्यापार विकसित करने के महत्व की ओर इशारा करते हुए तीसरे ईरान-अफ़्रीक़ा शिखर सम्मेलन के आयोजन और मेहमानों की उपस्थिति का ब्योरा प्रदान किया।
उन्होंने कहा: 38 से अधिक अफ़्रीक़ी देशों के 700 से अधिक व्यापारियों ने इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए पंजीकरण कराया। यह भी उम्मीद है कि इस शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए 29 अफ़्रीक़ी देशों के 50 से अधिक अधिकारी ईरान आएंगे। तीसरा ईरान- अफ़्रीक़ा आर्थिक सहयोग शिखर सम्मेलन रविवार, 27 अप्रैल को समिट हॉल में आयोजित किया जाएगा।
अफ़्रीक़ा, वैश्विक अर्थव्यवस्था का भावी गंतव्य
इस संबंध में, इस्लामी गणतंत्र ईरान की सरकार की प्रवक्ता फ़ातेमा मोहाजेरानी ने अफ्रीकी महाद्वीप को दुनिया के सबसे बड़े और सबसे आशाजनक बाजारों में से एक बताया, जो ईरान के ग़ैरपेट्रोलियम निर्यात को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
इमाम जाफ़र सादिक़ अ.स. का अख़लाक़
हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ (अ.स) पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद (स.अ) के छठे उत्तराधिकारी और आठवें मासूम हैं आपके वालिद इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ.) थे और माँ जनाबे उम्मे फ़रवा बिंतें क़ासिम इब्ने मुहम्मद थीं। आप अल्लाह की तरफ़ से मासूम थे। अल्लामा इब्ने ख़लक़ान लिखते हैं कि आप अहलेबैत (स.अ.) में से थे और आपकी फ़ज़ीलत, बड़ाई और आपकी अनुकम्पा, दया और करम इतना मशहूर है कि उसको बयान करने की ज़रूरत नहीं है।
आपका अख़लाक़
अल्लामा इब्ने शहर आशोब लिखते हैं कि एक दिन हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) ने अपने एक नौकर को किसी काम से बाज़ार भेजा। जब उस की वापसी में बहुत देर विलंब हुआ तो आप उस की तलाश में निकल पड़े, देखा कि वह एक जगह पर लेटा हुआ सो रहा है, आप उसे जगाने के बजाए उस के सरहाने बैठ गये और पंखा झलने लगे जब वह जागा तो आप ने उस से कहा कि यह तरीक़ा सही नही है। रात सोने के लिये और दिन काम करने के लिये है। आईन्दा ऐसा न करना। (मनाक़िब जिल्द 5 पेज 52)
आप उसी मासूम सिलसिले की एक कड़ी हैं जिसे अल्लाह तआला ने इंसानों के लिये आईडियल और नमूना ए अमल बना कर पैदा किया है। उन के सदाचार और आचरण जीवन के हर दौर में मेयारी हैसियत रखते हैं। उनकी ख़ास विशेषताएँ जिन के बारे में इतिकारों ने ख़ास तौर पर लिखा है वह मेहमान की सेवा, ख़ौरातो ज़कात, ख़ामोशी से ग़रीबों की मदद करना, रिश्तेदारों के साथ अच्छा बर्ताव करना, सब्र व हौसले के काम लेना आदि है।
एक बार एक हाजी मदीने आया और मस्जिदे रसूल (स) में सो गया। आँख खुली तो उसे लगा कि उस की एक हज़ार की थैली ग़ायब है उसने इधर उधर देखा, किसी को न पाया एक कोने इमाम सादिक़ (अ) नमाज़ पढ़ रहे थे वह आप के पहचानता नही था आप के पास आकर कहने लगा कि मेरी थैली तुम ने ली है, आप ने पूछा उसमें क्या था, उसने कहा एक हज़ार दीनार, आपने कहा कि मेरे साथ आओ, वह आप के साथ हो गया, घर आने के बाद आपने एक हज़ार दीनार उस के हवाले कर दिये वह मस्जिद में वापस आ गया और अपना सामान उठाने लगा तो उसे अपने दीनारों की थैली नज़र आई। यह देख वह बहुत शर्मिन्दा हुआ और दौड़ता हुआ इमाम की सेवा में उपस्थित हुआ और माँफ़ी माँगते हुए वह थैली वापस करने लगा तो हज़रत ने उससे कहा कि हम जो कुछ दे देते हैं वापस नही लेते।
इस ज़माने में तो यह हालात सब के देखे हुए है कि जब यह ख़बर होती है कि फलां सामान मुश्किल से मिलेगा तो जिस के लिए जितना संभव होता है वह ख़रीद कर रख लेता है। मगर इमाम सादिक़ (अ) के किरदार का एक पहलु यह है कि एक बार आप के वकील मुअक़्क़िब ने कहा कि हमें इस मंहगाई और क़हत में कोई परेशानी नही होगी, हमारे पास अनाज का इतना ज़खीरा है कि जो बहुत दिनों तक हमारे लिये काफ़ी होगा। आपने फ़रमाया कि यह सारा अनाज बेच डालो, उसके बाद जो हाल सबका होगा वही हमारा भी होगा। जब अनाज बिक गया तो कहा कि आज से सिर्फ़ गेंहू की रोटी नही पकेगी बल्कि उसमें आधा गेंहू और आधा जौ मिला होना चाहिये और जहाँ तक हो सके हमें ग़रीबों की सहायत करनी चाहिये।
आपका क़ायदा था कि आप मालदारों से ज़्यादा ग़रीबों की इज़्ज़त किया करते थे, मज़दूरों की क़द्र किया करते थे। ख़ुद भी व्यापार किया करते थे और अकसर बाग़ों में ख़ुद भी मेहनत किया करते थे। एक बार आप फावड़ा हाथ में लिये बाग़ में काम कर रहे थे, सारा बदन पसीने से भीग चुका था, किसी ने कहा कि यह फ़ावड़ा मुझे दे दीजिये मैं यह कर लूँगा तो आपने फ़रमाया कि रोज़ी कमाने के लिये धूप और गर्मी की पीड़ा सहना बुराई की बात नही है।
इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ग़ैरों की ज़बानी
शियों के छठे इमाम का नाम, जाफ़र कुन्नियत (उपनाम), अबू अब्दुल्लाह, और लक़ब (उपाधि) सादिक़ है। आपके वालिद इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम और माँ जनाबे उम्मे फ़रवा हैं। आप 17 रबीउल् अव्वल 83 हिजरी में पैदा हुए और 114 हिजरी में इमाम बने। आपके ज़माने में बनी उमय्या के बादशाहों में हेशाम, वलीद, यज़ीद बिन वलीद, इब्राहीम इब्ने वलीद और मरवान हेमार थे। इसी तरह बनी अब्बास के बादशाहों में अब्दुल्लाह बिन मोहम्मद सफ़्फ़ाह और मंसूर दवानिक़ी थे। इन बादशाहों में इमाम पर सबसे ज़्यादा ज़ुल्म मंसूर ने किया है।
उसके सिपाही कभी कभी आपके घर पर हमला करते थे और आपको खींचते हुए मंसूर के पास ले जाते थे। मंसूर इतना बदतमीज़ हो गया था कि एक दिन उसने आपके घर में आग लगवा दी जबकि आप घर से बाहर थे और आपके बीवी बच्चे घर के अन्दर ही थे। आख़िर कार 25 शव्वाल 148 हिजरी को मदीने मुनव्वरा में इमाम को अंगूर में ज़हर देकर शहीद कर दिया जबकि उस समय आपकी आयु 65 साल थी। आपको मदीने में बक़ीअ के क़ब्रिस्तान में दफ़्न कर दिया गया। यहाँ हम आपके सामने इस्लामी इतिहास और इस्लामी दुनिया के बड़े-बड़े उल्मा की निगाह में इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम का इल्मी मक़ाम (स्थान) बयान करना चाहते हैं।
इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम की बड़ाई, महानता और आपका बुलंद मक़ाम आपके शियों और शिया उल्मा की नज़र में बिल्कुल साफ़ है और इस बारे में उन्हे कोई शक नहीं है। शियों की नज़र में आप इतने महान हैं कि उनका मज़हब ही आपके नाम से जाना जाता है और उसे मकतबे जाफ़री या फ़िरक़ए जाफ़रिया कहा जाता है। अगर अपने उनकी तारीफ़ में कोई बात कहें तो कहा जाएगा कि यह तो उनके अपने हैं उन्हें तो उनकी तारीफ़ करना ही है, बात तो तब है जब दूसरे भी उनकी महानता बयान करें। इमाम को जहाँ अपने महान मानते हैं वहीं दूसरे सम्प्रदाय के मानने वालों, यहाँ तक कि आपके विरोधियों ने भी आपकी महानता को स्वीकार किया है। हम उनमें से कुछ उदाहरण पेश करते हैं।
- मंसूर दवानीक़ीः
वह इमाम की जान का जानी दुश्मन था लेकिन उनकी महानता और बुलंद मक़ाम को क़ुबूल करता था, उसका कहना हैः अल्लाह की क़सम जाफ़र इब्ने मोहम्मद (अलैहिमस्सलाम) उन लोगों में से हैं जिनके बारे में क़ुरआने मजीद में आया हैः फिर हमनें इस किताब (क़ुरआने मजीद) का वारिस अपने ख़ास लोगों को बनाया। वह (इमामे सादिक़) उन लोगों में से थे जो ख़ुदा के ख़ास बन्दे थे और अच्छे काम अंजाम देने वालों में सबसे आगे थे। ( तारीख़े याक़ूबी- जि.3 पेज 17)
- मालिक इब्ने अनसः
मालकी फ़िरक़े के इमाम कहते हैं, मैं एक समय तक जाफ़र इब्ने मोहम्मद (अलैहिस्सलाम) के पास जाता था और हमेशा उन्हें तीन हालतों में पाता था- या नमाज़ पढ़ रहे होते थे, या रोज़े की हालत में होते थे, या क़ुरआने मजीद की तिलावत कर रहे होते थे। मैंने उन्हे कभी बिना वुज़ू के कोई हदीस बयान करते हुए नहीं देखा। (इब्ने हजर अस्क़लानी, तहज़ीबुल तहज़ीब, बैरूत दारुल फ़क्र, जि.1 पेज 88) फिर वह कहते हैः इल्म, इबादत और तक़वे में इस आँख ने जाफ़र इब्ने मोहम्मद (अलैहिस्सलाम) से अफ़ज़ल व श्रेष्ठ इन्सान नहीं देखा, इस कान नें उनसे ज़्यादा किसी के बारे में अच्छा नहीं सुना और इस दिल उनसे ज़्यादा किसी की महानता को क़ुबूल नहीं किया। (अल इमामुस सादिक़ वल मज़ाहिबुल अरबआ, हैदर असद, बैरूत, दारुल कुतुबुल अरबी, जि.1 पेज 53)
- इब्ने ख़लकानः
यह मशहूर इतिहासकार लिखता हैः वह शियों के एक इमाम, पैग़म्बर (स.) के घराने के एक अज़ीम इन्सान हैं और अपनी बात और अमल में सच्चा होने की वजह से उन्हे सादिक़ कहा जाता है। वह इतने ज़्यादा बड़ाई और अच्छाइयों के मालिक हैं कि उसे बयान करने की ज़रूरत नहीं है। (वफ़यातुल आयान, डाक्टर एहसान अब्बास, क़ुम, मंशूरात शरीफ़ुर्रज़ी, जि.1 पेज 328)
- अब्दुर्रहमान इब्ने अबी हातिम राज़ीः
वह कहते हैं कि मेरे पिता हमेशा कहा करते थे, जाफ़र इब्ने मोहम्मद (अ.) इतने क़ाबिले ऐतबार व विश्वसनीय इन्सान हैं कि वह जो भी कहते हैं उस बारे में कोई सवाल नहीं किया जा सकता, यानी वह जो भी कहते हैं या बयान करते हैं वह सही होता है। (अल जरह वत तादील, जि.2, पेज 487)
- अबू हातिम मोहम्मद इब्ने हय्यानः
वह कहते हैः अहलेबैत (अ.) में जाफ़र इब्ने मोहम्मद (अ.) फ़िक़्ह, इल्म और फ़ज़ीलत में बहुत अज़ीम इन्सान थे। (आलामुल हिदायः, जि. 1 पेज 22)
- अबू अब्दुर्रहमान असलमी कहते हैंः
जाफ़र इब्ने मोहम्मद (अ.) अपने परिवार वालों में सबसे अफ़ज़ल व श्रेष्ठ थे, उनके पास बहुत ज़्यादा इल्म था, एक ज़ाहिद (सन्यासी) इन्सान थे, इच्छाओं से बिल्कुल दूर और हिकमत (ज्ञान एंव नीत) में संपूर्ण अदब के मालिक थे। (अल इमामुस् सादिक़ वल मज़ाहिबुल अरबआ, हैदर असद, बैरूत, दारुल कुतुबुल अरबी, जि.1 पेज 58)٫
- मोहम्मद इब्ने तलहा शाफ़ेईः
उन्होंने इमाम जाफ़र सादिक़ अ. की महानता और उनके मरतबे के बारे में बहुत ख़ूबसूरत बात कही है, वह कहते हैः जाफ़र इब्ने मोहम्मद (अ.) अहलेबैत के बुज़ुर्गों और उनके सरदारों में से थे, बहुत ज़्यादा क़ुरआन पढ़ा करते थे, उसकी आयतों के बारे में सोचते थे और इस दरिया से क़ीमती ख़ज़ाने निकालते थे और क़ुरआने करीम के छुपे हुए राज़ों और मोजिज़ों (रहस्यों और चमत्कारों) को सबके सामने बयान करते थे। उन्होंने अपने समय को इताअत, बन्दगी (आज्ञापालन व भक्ति) और दूसरे कामों के लिये बांटा हुआ था और उसका हिसाबो किताब भी करते थे। उन्हे देख कर इन्सान को क़यामत की याद आती थी और उनकी बातें सुन कर इन्सान का दुनिया से मुँह मोड़ने का दिल चाहता था।
जो उनके बताये रास्ते का अनुसरण करेगा उसके लिये जन्नत है। उनकी पेशानी में एक ऐसा नूर था जिससे मालूम होता था कि वह नुबूव्वत के पाक ख़ानदान से हैं और उनके नेक अमल से इस बात का अंदाज़ा होता था कि वह रिसालत की नस्ल से हैं। इस्लामी मज़हबों के इमामों और बुज़ुर्गों के एक गुट ने उनसे हदीसें नक़्ल की हैं और उनकी शागिर्दी की है और वह सब इस शागिर्दी पर गर्व करते थे और उसे अपने लिये एक फ़ज़ीलत और शरफ़ (सम्मान) समझते थे। उनके चमत्कार और उनकी विशेषताएं इतनी ज़्यादा हैं कि इन्सान उन्हे गिन नहीं सकता और इन्सान की अक़्ल उन तक पहुँच नहीं सकती। (अल इमामुस् सादिक़ वल मज़ाहिबुल अरबआ, हैदर असद, बैरूत, दारुल कुतुबुल अरबी, जि.1 पेज 23)
- बुख़ारीः
वह लिखते हैं, पूरी उम्मत उनकी बुज़ुर्गी और सरदारी पर सहमत है। (आलामुल हिदाया, जि.1, पेज 24- यनाबीउल मवद्दा क़न्दौज़ी, जि. 3, पेज 160)
इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) की उपाधि पहले से ही सादिक़ थी।
इमाम जाफ़र सादिक़ का नाम जाफ़र, आपकी कुन्नियत अबू अब्दुल्लाह, अबू इस्माईल और आपकी उपाधियां, सादिक़, साबिर व फ़ाज़िल और ताहिर हैं, अल्लामा मज़लिसी लिखते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. कि पैग़म्बरे इस्लाम स.अ ने अपनी ज़िंदगी में हज़रत इमाम जाफ़र बिन मोहम्मद (अ) को सादिक़ की उपाधि दी और उसका कारण यह था कि आसमान वालों के नज़दीक आप की उपाधि पहले से ही सादिक़ थी।
हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ 17 / रबीउल अव्वल 83 हिजरी में मदीना में पैदा हुए।
इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) की विलादत की तारीख को खुदा वंदे आलम ने बड़ा सम्मान और महत्व दिया है हदीसों में है कि इस तारीख़ को रोज़ा रखना एक साल रोज़ा रखने के बराबर है आपके जन्म के बाद एक दिन हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया कि मेरा यह बेटा उन कुछ ख़ास लोगों में से है कि जिनके वुजूद से ख़ुदा ने लोगों पर एहसान फ़रमाया और यह मेरे बाद मेरा जानशीन व उत्तराधिकारी होगा।
अल्लामा मज़लिसी ने लिखा है कि जब आप मां के पेट में थे तब कलाम फरमाया करते थे जन्म के बाद आप ने कल्मा-ए-शहादतैन ज़बान पर जारी फ़रमाया।
हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम की शहादत
उल्मा के अनुसार 15 या 25 / शव्वाल 148 हिजरी में 65 साल की उम्र में मंसूर ने आपको ज़हर देकर शहीद कर दिया।
अल्लामा इब्ने हजर, अल्लामा इब्ने जौज़ी, अल्लामा शिब्लन्जी, अल्लामा इब्ने तल्हा शाफ़ेई लिखते हैं कि
مات مسموما ایام المنصور
मंसूर के समय में आप ज़हेर से शहीद हुए हैं। (1)
उल्मा-ए-शिया सहमत हैं कि आप को मंसूर दवानेक़ी ने ज़हर से शहीद कराया था, और आप की नमाज़ हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने पढ़ाई थी अल्लामा कुलैनी और अल्लामा मज़लिसी का फ़रमाते हैं कि आप अच्छा कफ़न दिया गया और आपको जन्नतुल बक़ीअ में उन्हें दफ़्न किया गया।
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(सवाएक़े मुहरेक़ा पेज 121, तज़केरा-ए-ख़वासुल उम्मः, नूरूल अबसार पेज 133, अर्जहुल मतालिब पेज 450
इमाम सादिक़ (अ) की नज़र में सब्र का महत्व
मदरसा इल्मिया महदिया खंदाब के शिक्षक ने एक अखलाक़ी निशिस्त मे सब्र का अर्थ और उसके गुणों को समझाया, इमाम जाफर सादिक (अ) की रिवायत के प्रकाश में शिययो के बीच धैर्य के गुण को समझाया।
मदरसा इल्मिया महदिया ख़नदाब की शिक्षिक सुश्री मरज़िया चगिनी ने मदरसा इल्मिया में आयोजित एक नैतिक सत्र में सब्र के विषय पर चर्चा करते हुए इमाम सादिक़ (अ) की एक रिवायत का हवाला दिया, जिसमें उन्होंने (अ.) कहा: "हम धैर्यवान हैं, लेकिन हमारे शिया हमसे ज़्यादा धैर्यवान हैं, क्योंकि हमे जानते हैं और सब्र रखते हैं भले ही वे नहीं जानते कि क्या होने वाला है।"
उन्होंने कहा: यद्यपि सब्र अपने आप में एक सद्गुण है, यह हदीस सब्र की मात्रा की ओर ध्यान आकर्षित करती है, जबकि सद्गुण हमेशा मात्रा पर निर्भर नहीं करता है।
मदरसा महदिया खंदाब की शिक्षक ने आगे कहा: कई शिया अज्ञानता के कारण ऐसी कठिनाइयों में पड़ जाते हैं, जिनमें उन्हें अपने विश्वास की रक्षा करने और खुद को बचाने के लिए सब्र रखने की आवश्यकता होती है। हालाँकि, वास्तविक गुण ईमानदारी में निहित है, और कोई भी पैगंबर, औलिया और इमामों से अधिक ईमानदार नहीं हो सकता है।
उन्होंने इमाम जाफ़र सादिक (अ) की हदीस की ओर इशारा करते हुए कहा, "वास्तव में, बुद्धि के स्तर के अनुसार पुरस्कार दिया जाता है," और कहा: अच्छे कर्मों का पुरस्कार भी बुद्धि के स्तर से संबंधित है, और जिस व्यक्ति के कार्य बुद्धि पर आधारित होते हैं, उसके कार्य बेहतर माने जाते हैं। इसलिए, जो व्यक्ति बुद्धि और जागरूकता के साथ धैर्य रखता है, वह उस व्यक्ति से अधिक गुणवान होता है जो केवल अज्ञानता के आधार पर धैर्य रखता है।
हिज़्बुल्लाह के कार्यकारी परिषद के उपाध्यक्ष का ऐलान,फतह हमारा मुक़द्दर है
हिज़्बुल्लाह लेबनान की कार्यकारी परिषद के उपाध्यक्ष शेख अब्दुल करीम ओबीद ने कहा, चाहे हमें कितनी भी कुर्बानियाँ देनी पड़ें हम शहीदों के रास्ते पर कायम रहेंगे और इंशाअल्लाह फतह हमारे सहयोगियों का मुक़द्दर होगी।
दक्षिणी लेबनान के शहर अलशर्किया में शहीद कमांडर अहमद अली शुऐब की बरसी के मौके पर आयोजित भव्य समारोह को संबोधित करते हुए शेख ओबैद ने आगे कहा,हम अपनी जान के साथ-साथ हर चीज़ को हक़ की राह में कुर्बान करने को तैयार हैं।
अगर कोई यह कहे कि तुम्हारा वक्त खत्म हो चुका है, तो हम साफ कह देंगे कि इज़राइल की मौजूदा हालत के मद्देनज़र ऐसी बातों का न तो कोई अमली फायदा है और न ही यह हमारी जद्दोजहद को रोक सकती हैं।
उन्होंने ज़ोर देकर कहा, दुश्मन को हमारी सरज़मीन से निकालने की ज़िम्मेदारी हम सब पर आती है। यह रास्ता वाज़ेह है और यह मिशन हम सबका है।
अपने जज़्बाती संबोधन के अंत में शेख ओबीद ने ऐतिहासिक शब्दों में कहा,हमारी कुर्बानियाँ चाहे जितनी भी हों, हम शहीदों के नक्शे कदम पर चलते रहेंगे। अल्लाह के फज़्ल से आखिरी और निहायत फतह हमारे सहयोगियों के लिए ही होगी।
हमारा मक़सद रज़वान ए इलाही का होसुल होना चाहिए
लखनऊ, भारत,शिया शाही जामा मस्जिद के प्रमुख जनाब सैयद रिज़वान हैदर नक़वी रिटायर्ड डीएसपी के इंतिकाल पर मस्जिद की जानिब से नमाज़े मग़रिबैन के बाद एक ताज़ियती जलसा और मजलिस-ए-अज़ा का आयोजन किया गया, जिसमें उलमा कराम समेत बड़ी तादाद में मोमिनीन ने शिरकत की।
इस ताज़ियती प्रोग्राम की शुरुआत तिलावत-ए-क़ुरआन से हुई। उसके बाद जनाब अब्बास निगार, जनाब वफ़ा अब्बास (चेयरमैन अंबर फाउंडेशन लखनऊ), जनाब रज़ा इमाम, जनाब अली आगा, जनाब अफ़सर जाह, मौलाना वासिक रज़ा नक़वी, मौलाना सैयद मोहम्मद आरिफ़ रिज़वी, मौलाना सैयद हैदर अब्बास रिज़वी, मौलाना सैयद जावेद मुस्तफ़वी, मौलाना अख्तर अब्बास जून, मौलाना सैयद मोहम्मद हुसैन बाक़री, मौलाना सैयद अली हाशिम आबदी, मौलाना सैयद वसी रज़ा आबदी और मौलाना सैयद रज़ा हुसैन ने ख़िताब किया।
मुतकल्लिमीन ने मरहूम जनाब सैयद रिज़वान हैदर नक़वी की शख़्सियत और उनके ख़िदमात के मुख़्तलिफ़ पहलुओं को उजागर किया।आख़िर में हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मौलाना सैयद सफ़ी हैदर साहब (सेक्रेटरी, तंज़ीमुल मकातिब) ने मजलिस-ए-अज़ा से ख़िताब किया।
मौलाना सफ़ी हैदर ने अपने ख़िताब में कहा कि हर नेक अमल का सिला आख़िरत में जन्नत के रूप में मिलेगा, लेकिन उसका असर दुनिया में भी ज़रूर दिखाई देता है।
उन्होंने कहा कि नेक कामों में हमारा मक़सद सिर्फ़ दुनियावी नतीजा नहीं होना चाहिए, बल्कि अल्लाह की रज़ा (रज़वान-ए-इलाही) होनी चाहिए, क्योंकि जिसे रज़वान-ए-इलाही मिल जाए, उसे जन्नत और दूसरी तमाम नेमतें भी हासिल होंगी।
इस ताज़ियती जलसे की निज़ामत जनाब सैयद शाहकार ज़ैदी ने अंजाम दी।इस मौके पर बड़ी तादाद में उलमा और मोमिनीन मौजूद रहे।
यमन के तीन प्रांतों पर अमेरिकी हमला
यमनी मीडिया सूत्रों ने बताया है कि अमेरिकी सैन्य विमानों ने पिछली रात यमन के तीन प्रांतों पर हमले करके सैन्य और गैर-सैन्य लक्ष्यों को निशाना बनाया हैं।
यमनी मीडिया सूत्रों ने कहा है कि अमेरिकी सैन्य विमानों ने पश्चिमी यमन के प्रांत "अल-हुदैदा" में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे सहित शहर के विभिन्न क्षेत्रों पर चार बार बमबारी की। इसी तरह, प्रांत "ताइज़" के जिले "मक़बना" में स्थित क्षेत्र "अल-बरह" और प्रांत "मारिब" के जिले "मज्ज़ार" पर भी तीन बार हमले किए गए।
सूत्रों के अनुसार, अमेरिका ने 15 मार्च से ज़ायोनी राज्य (इज़राइल) से जुड़े जहाजों का समर्थन करने के बहाने यमन पर हवाई हमलों की तीव्रता बढ़ा दी है।
यमनी अधिकारियों का कहना है कि अमेरिका सैन्य सुविधाओं के बजाय आवासीय भवनों और नागरिकों को निशाना बना रहा है, जिससे आम नागरिकों की मौत हो रही है।
यमनी लोगों ने अमेरिकी हमलों की निंदा करते हुए ज़ायोनी राज्य और अमेरिका के खिलाफ अपना प्रतिरोध जारी रखने का संकल्प दोहराया है।
पोप फ्रांसिस मानवाधिकारों के व्यावहारिक समर्थक थे
ईसाई आध्यात्मिक नेता पोप फ्रांसिस के निधन पर भारत में आयतुल्लाह सय्यद अली हुसैनी सिस्तानी के वकील मौलाना सय्यद अशरफ अली ग़रवी ने एक शोक बयान में कहा है कि पोप फ्रांसिस के निधन से एक बड़ा खालीपन पैदा हो गया है।
ईसाई आध्यात्मिक नेता पोप फ्रांसिस के निधन पर भारत में आयतुल्लाह सय्यद अली हुसैनी सिस्तानी के वकील हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मौलाना सय्यद अशरफ अली ग़रवी ने एक शोक बयान में कहा है कि पोप फ्रांसिस के निधन ने एक बड़ा खला पैदा कर दिया है; यह वीर व्यक्ति, जिसने उत्पीड़ितों के समर्थन, एकजुटता और मानवाधिकारों के सम्मान की खुलकर वकालत की, जबकि धर्मों और संप्रदायों के तथाकथित विद्वान नफरत और हिंसा के अलावा कुछ नहीं बोलते, काश ये लोग भी दो महान नेताओं की ऐतिहासिक मुलाकात के सबसे महत्वपूर्ण बिंदुओं पर विचार करते और उन पर अमल करते, तो दुनिया में बहुत से लोग शांति और व्यवस्था से रहने लगते और नफरत, पूर्वाग्रह, हत्या और विनाश का बाजार ठंडा पड़ जाता।
उन्होंने कहा कि नजफ अशरफ में मरजा ए आली के साथ ऐतिहासिक बैठक में दोनों हस्तियों ने इस युग में मानवता के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियों पर काबू पाने में अल्लाह और उसके संदेशों में विश्वास की मौलिक भूमिका के साथ-साथ उच्च नैतिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता पर जोर दिया।
मौलाना सय्यद अशरफ अली ग़रवी ने आगे कहा कि दोनों नेताओं ने शांति और व्यवस्था तथा आपसी संस्कृति को बढ़ावा देने, हिंसा और घृणा को अस्वीकार करने तथा विभिन्न धर्मों और बौद्धिक प्रवृत्तियों के अनुयायियों के बीच आपसी सम्मान और अधिकारों की सुरक्षा के आधार पर लोगों के बीच सद्भाव के मूल्यों को मजबूत करने के प्रयासों को संयोजित करने की आवश्यकता पर भी बल दिया है।
मौलाना ने ईसाई समुदाय के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त की और कहा कि हम आशा करते हैं कि उनके बाद जो भी आएगा, वह अपना मिशन जारी रखेगा और दुनिया के उत्पीड़ितों का खुलकर समर्थन करेगा।
पोप फ्राँसिस ने मुस्लिम ईसाई एकता का एक मंच प्रदान किया
पोप फ्राँसिस का फ़िलिस्तीन के मज़लूम लोगों के समर्थन में आवाज़ उठाना उनके इंसाफ़पसंद स्वभाव और मानवीय सहानुभूति का एक चमकता हुआ सबूत था।
कैथोलिक ईसाइयों के धार्मिक प्रमुख पोप फ्राँसिस के निधन पर मेलबर्न, ऑस्ट्रेलिया के इमामे जुमा और शिया उलमा काउंसिल के अध्यक्ष, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मौलाना सैयद अबुल क़ासिम रज़वी ने गहरा दुःख व्यक्त करते हुए कहा,पोप फ्राँसिस एक वैश्विक व्यक्तित्व थे।
जिन्होंने मज़हबी सद्भाव, मानवता और विश्व शांति के प्रसार में अहम भूमिका निभाई। उनकी नेतृत्व में मुस्लिम-ईसाई एकता को मज़बूती मिली और एक ऐसा मंच तैयार हुआ जिसने विभिन्न धर्मों के बीच संवाद और पारस्परिक सम्मान को बढ़ावा दिया।
पोप फ्राँसिस का फ़िलिस्तीन के पीड़ित लोगों के समर्थन में हमआवाज़ होना उनके न्यायप्रिय स्वभाव और इंसानियत की भावना का साफ़ संकेत था।
मौलाना अबुल क़ासिम रिज़वी ने आगे कहा,पोप फ्राँसिस की आयतुल्लाह उज़मा सैयद अली हुसैनी सिस्तानी से मुलाक़ात एक ऐतिहासिक मील का पत्थर है जिसे वर्षों तक याद रखा जाएगा और जिसके सकारात्मक परिणाम समय के साथ और अधिक स्पष्ट होंगे।
निस्संदेह पोप फ्राँसिस का निधन एक बड़ा वैश्विक नुक़सान है लेकिन हमें उम्मीद है कि आने वाले नए पोप इसी रास्ते को आगे बढ़ाते हुए विश्व में शांति, न्याय और आपसी सम्मान को बढ़ावा देने में अपनी प्रभावी भूमिका निभाएंगे।
हम इस दुखद अवसर पर ईसाई समुदाय के साथ संवेदना और शोक प्रकट करते हैं और प्रार्थना करते हैं कि परमात्मा मानवता के इस सेवक पर अपनी अनंत रहमतें बरसाए।
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