ईरान के दक्षिण-पूर्व में मिर्जावा के सुन्नी समुदाय के इमाम जुमा मौलवी अब्दुर्रहीम रीगियानपुर ने कहा: कि ग़दीरे ख़ुम की घटना सुन्नी धर्म के मान्य किताबों में भी भी दर्ज है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम से मोहब्बत सुन्नी मुसलमानों के ईमान की पहचान है।
सुन्नी समुदाय का मानना है कि ग़दीर की घटना वास्तव में हुई थी और उसमें पैगंबर मोहम्मद ने हज़रत अली की बहादुरी, मोहब्बत, ईमान, परहेजगारी और न्याय के बारे में कहा था ताकि यह हमेशा के लिए और आख़िर तक इतिहास में दर्ज रहे।
ईरान के सिस्तान व बलूचिस्तान प्रांत के मिर्जावा के सुन्नी इमाम जुमाह ने कहा: दुश्मन मोहब्बत के बीच सीमा बनाने की चाल चला रहा है ताकि शियाओं की हज़रत अली अलै. से मोहब्बत और सुन्नियों की मोहब्बत के बीच फ़र्क़ डाला जा सके और उन्हें केवल शियाओं तक सीमित कर दिया जाए। यहूदी और इस्लाम के दुश्मन इस्लाम के बढ़ते प्रभाव से डरते हैं। इसलिए वे उन बिंदुओं पर हमला करते हैं जो विवाद पैदा कर सकते हैं। ज़ायोनी और इस्लाम के दुश्मन इसी तरह के विभिन्न मतों के जरिए विवाद पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं और इसका फ़ायदा उठाने का मौका पा रहे हैं।
इसी संदर्भ में ज़ाहदान जिले के इस्लामी प्रचार विभाग के प्रमुख हज्जतुल इस्लाम वल मुसलमीन जवाद हैरी ने कहा: सिस्तान व बलूचिस्तान में बड़े पैमाने पर मनाया जाने वाला ईद-ए-ग़दीर का त्योहार इस्लामी एकता और एकजुटता का भव्य रूप है। इस दिन शिया और सुन्नी पूरी शांति और अपने परिवारों के साथ ग़दीर के जश्न में एक साथ भाग लेते हैं। यह उपस्थिति इस क्षेत्र में सुरक्षा और गहरे जनसंपर्क का स्पष्ट प्रमाण है।
ज़ाहदान इस्लामी प्रचार विभाग के प्रमुख ने कहा: ग़दीर का लंबा जश्न ईरानी राष्ट्र के लिए एक अवसर और अल्लाह की एक नेअमत है ताकि वे व्यापक भागीदारी के साथ अपनी इस्लामी एकजुटता पर मुहर लगाएं। जैसे कि अल्लाह ने फरमाया है: «और सब मिलकर अल्लाह की रस्सी को थामो और फूट मत डालो» हमारे लोग अल्लाह की रस्सी को थामकर और अहल-ए-बैत (अ.) से लगाव रखकर और प्रेम व मोहब्बत करके अपना धर्म पूरा करते हैं और अल्लाह की नेमत को समझते हैं।