
رضوی
ग़दीर के संदेश के प्रचार और व्याख्या के लिए हर संभव प्रयास आवश्यक है
हौज़ा एल्मिया के शिक्षक हुज्जतुल इस्लाम वाल मुस्लिमीन हबीब यूसुफी ने ग़दीर के संदेश के प्रचार और व्याख्या की आवश्यकता पर ज़ोर दिया उन्होंने कहा कि ग़दीर के दिनों को बहुत महत्व देना चाहिए और इस संदेश की व्याख्या के लिए हर संभव तरीके अपनाना ज़रूरी है।
हौज़ा एल्मिया के शिक्षक हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन हबीब यूसुफी ने ग़दीर के संदेश के प्रचार और व्याख्या की आवश्यकता पर बल दिया उन्होंने कहा कि ग़दीर के दिनों को विशेष महत्व दिया जाना चाहिए और इस संदेश की व्याख्या के लिए हर संभव उपाय अपनाया जाना चाहिए।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन हबीब यूसुफी ने सूरए माइदा की आयत 67 का हवाला देते हुए बताया कि अल्लाह ने पैग़म्बर-ए-अकरम (स.अ.व.व.) को आदेश दिया था कि वह अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अ.स.) की विलायत और नेतृत्व का संदेश लोगों तक पहुँचाएँ।
उन्होंने स्पष्ट किया कि अगर यह संदेश नहीं पहुँचाया जाता, तो रिसालत का उद्देश्य पूरा नहीं होता। और अगर यह विलायत और नेतृत्व स्थापित हो जाती, तो मानवता दुनिया और आख़िरत में कल्याण प्राप्त करती।
हौज़ा के शिक्षक ने ग़दीर के ख़ुत्बे के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि पैग़म्बर-ए-अकरम (स.अ.व.व.) ने इस ख़ुत्बे में अमीरुल मोमिनीन और उनकी मासूम संतान को क़ुरआन के बराबर स्थान दिया और फरमाया कि यह दोनों क़यामत तक मार्गदर्शक रहेंगे।
यूसुफी ने बताया कि यह रिवायत शिया और अहले सुन्नत दोनों की किताबों में मौजूद है, हालाँकि कुछ अहले सुन्नत इसका अर्थ सिर्फ़ दोस्ती समझते हैं जबकि इसका वास्तविक अर्थ नेतृत्व और हुकूमत है।
उन्होंने याद दिलाया कि यह ख़ुत्बा हज्जतुल विदा के कुछ दिन बाद हिजरत के दसवें साल में ग़दीर-ए-ख़ूम के मैदान में दिया गया था, और इसके प्रचार का आदेश आयत-ए-तबलीग़ के नाज़िल होने के बाद हुआ था। उन्होंने कहा कि 1400 साल बाद भी इस ख़ुत्बे की व्याख्या आज की पीढ़ी के लिए बेहद ज़रूरी है, ताकि पैग़म्बर का उद्देश्य और मानवता की सुख-शांति बनी रहे।
हुज्जतुल इस्लाम यूसुफी ने आगे कहा कि ग़दीर की हक़ीकत को उजागर करने के लिए बड़े सम्मेलन, वैज्ञानिक कॉन्फ्रेंस, विभिन्न भाषाओं में शोध पत्र और धर्मों के बीच वैज्ञानिक बहसें आवश्यक हैं, ताकि इस संदेश को दुनिया भर में फैलाया जा सके अंत में उन्होंने कहा कि ग़दीर के संदेश के प्रसार के लिए हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए।
ईदे ग़दीर शियओ की महान धरोहर है। सैयदा ज़हेरा बोरकई
जामियतुल ज़हेरा की प्रबंधक सैयदा ज़हेरा बोरकई ने एक समारोह में संबोधन करते हुए ईद-ए-ग़दीर को अहल-ए-बैत (अ.स.) के शिया मुसलमानों की गौरवशाली और गर्व करने योग्य विरासत बताया हैं।
जामिया अज़ ज़हेरा (स.अ.) की प्रबंधक ने कहा कि ईद-ए-ग़दीर हमें अहल-ए-बैत (अ.स.) की मोहब्बत के उस संदेश की याद दिलाती है, जो इंसान की नजात का एकमात्र साधन है उन्होंने कहा कि जामिया अज़-ज़हरा (स.अ.) का स्थापित होना अल्लाह की एक बड़ी नेमत है, जो अहल-ए-बैत (अ.स.) के चाहने वालों की तरबियत और विलायत के प्रचार का केंद्र है।
सैय्यदा बोरकई ने कहा कि इस नेमत की शुक्रगुज़ारी का तकाज़ा है कि हम ख़ालिस नीयत के साथ अहल-ए-बैत (अ.स.) की सेवा में जुटे रहें उन्होंने अपने संबोधन में इख़लास हौसला और दीन की सेवा को कामयाबी की कुंजी बताया और कहा कि निराशा दरअस्ल दीनी अक़्दार की अहमियत को न समझने का नतीजा होता है।
उन्होंने जोर देकर कहा कि जामिया अज़ज़हरा स.अ. से फ़ारिग़ होने वाली तालिबात (छात्राएँ) दुनिया के अलग-अलग मुल्कों में इल्मी, सामाजिक और सियासी मैदानों में उल्लेखनीय सेवाएँ अंजाम दे रही हैं उन्होंने रहबर-ए-मोअज़्ज़म इंक़िलाब-ए-इस्लामी (ईरान के सुप्रीम लीडर) का हवाला देते हुए कहा कि इमाम ख़ुमैनी (र.अ.) का यह महान इल्मी और दीनी इदारा आज भी अपनी बरकतों के साथ जारी है।
अंत में, उन्होंने जामिया अज़-ज़हरा (स.अ.) के सभी कर्मचारियों को संस्था की तरक्की के लिए लगातार कोशिश करने की नसीहत की और कहा कि हर इदारे में चुनौतियाँ होती हैं, लेकिन जामिया अज़-ज़हरा (स.अ.) की कामयाबी उसकी विलायती बुनियादों में छुपी है।
इज़राइल ने यमनी तटीय शहर पर हमला किया
इज़राइली सेना ने यमन के तटीय शहर अलहुदैदाह पर हमला किया है।
यमनी चैनल अलमसीरा की रिपोर्ट के अनुसार, इज़राइली युद्धक विमानों और नौसेना ने अल-हुदैदाह को निशाना बनाया है।
वहीं इज़राईली सेना ने भी इस ऑपरेशन की पुष्टि करते हुए कहा है कि जायोनी नौसेना ने यमन के पश्चिमी तट पर स्थित अल-हुदैदाह बंदरगाह में विशिष्ट लक्ष्यों पर हमला किया है।
गौरतलब है कि पिछली रात जायोनी सरकार ने अल-हुदैदाह, अल-सलीफ और रास इस्सा बंदरगाहों पर हमले की घोषणा की थी।
ये हमले यमन की सशस्त्र सेनाओं की उन कार्रवाइयों का जवाब हैं, जो फिलिस्तीनी जनता के समर्थन में इज़राइल के ख़िलाफ़ की जा रही हैं। इनमें लाल सागर में इज़राइली हितों पर बार-बार किए गए हमले शामिल हैं।
इज़राइल के इन हमलों से क्षेत्र में तनाव और बढ़ गया है। आशंका जताई जा रही है कि अदन की खाड़ी, लाल सागर और बाब-अलमंदेब जलडमरूमध्य में तनाव किसी बड़े युद्ध का रूप ले सकता है।
इज़राइल के गुप्त परमाणु केंद्र ईरानी सशस्त्र बलों के रेंज में हैं
ईरान की राष्ट्रीय सुरक्षा उच्च परिषद में मौजूद इमाम-ए-ज़माना अ.ज. के गुमनाम सिपाहियों की ओर से एक जटिल खुफिया ऑपरेशन की सफलता पर जारी बयान में कहा गया,अगर इज़राईल सरकार किसी भी तरह की आक्रामकता करती है तो उसके गुप्त परमाणु प्रतिष्ठानों को इस्लामी गणतंत्र ईरान के सशस्त्र बलों के लक्ष्यों में शामिल किया जाएगा और उन्हें तुरंत निशाना बनाया जाएगा।
ईरान की राष्ट्रीय सुरक्षा उच्च परिषद के बयान के एक हिस्से में कहा गया है,इस खुफिया सफलता और कीमती दस्तावेज़ों तक पहुँचना दुश्मनों के शोर शराबे के मुकाबले में इस्लामी व्यवस्था की शांत, बुद्धिमान और समझदारी भरी योजना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
उन्होंने आगे कहा,इसका दूसरा महत्वपूर्ण पहलू यह है कि सियोनिस्ट कब्ज़ाकर सरकार और उसके समर्थकों की कमजोरियों और ताकतों को ध्यान में रखते हुए सशस्त्र बलों की रात-दिन की निस्वार्थ और जिहादी कोशिशों के ज़रिए प्रभावी ऑपरेशनल क्षमता हासिल की गई है।
ईरान की राष्ट्रीय सुरक्षा उच्च परिषद के बयान में आगे कहा गया, आज इन खुफिया दस्तावेज़ों तक पहुँच और ऑपरेशन की सफलता ने इस्लामी मुजाहिदीन को इस काबिल बना दिया है कि अगर सियोनिस्ट सरकार ईरानी परमाणु स्थलों पर किसी भी संभावित हमले की कोशिश करती है तो उसके गुप्त परमाणु केंद्रों को तुरंत निशाना बनाया जा सकेगा। साथ ही, किसी भी आर्थिक या सैन्य शरारत का जवाब भी उसकी आक्रामकता के अनुरूप ही दिया जाएगा।
ईरान ने साफ़ किया है कि अगर इजरायल कोई आक्रामक कार्रवाई करता है, तो उसके गुप्त परमाणु साइट्स ईरानी सेना के निशाने पर होंगे। ईरान ने इजरायल की संवेदनशील जानकारियाँ हासिल कर ली हैं और उन्हें ऑपरेशनल रूप से इस्तेमाल करने में सक्षम है।
हमास के हाथों इजरायली सेना की शर्मनाक हार/ एक इज़राईली जनरल का स्वीकार
एक पूर्व इज़राईली जनरल ने गाज़ा युद्ध में कब्ज़ाकारी सेना के खराब प्रदर्शन की कड़ी आलोचना करते हुए अपमानजनक हार को स्वीकार किया है।
पूर्व इज़राईली जनरल इसहाक ब्रिक ने कहा कि इजरायल में अब और लड़ने की आर्थिक क्षमता नहीं बची है और यह सच्चाई जल्द ही पूरी दुनिया के सामने आ जाएगी।
उन्होंने कहा कि जो सेना खुद को पश्चिमी एशिया की सबसे मजबूत सेना समझती थी वह एक छोटे से समूह हमास के हाथों हार गई और पूरी दुनिया में हमारा मजाक बनाया गया है।
उन्होंने आगे कहा कि सेना हमास को निशाना बनाने में ज्यादा सफल नहीं रही जबकि वह फिलिस्तीनी नागरिकों पर बमबारी कर रही है।
इसहाक ब्रिक ने कहा कि इजरायली नेताओं ने झूठ बोला था कि हमास कुछ ही दिनों में आत्मसमर्पण कर देगा और उसकी सरकार खत्म हो जाएगी, लेकिन हमास आज भी मैदान में डटा हुआ है।
उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि कब्ज़ीकारी सेना गाज़ा पट्टी के साथ सीमावर्ती इलाकों में लड़ रही है, जबकि वायु सेना भारी हमलों के जरिए नागरिकों को बेघर और विस्थापित करने की कोशिश कर रही है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि गाजा की सुरंगों में कैदी मर रहे हैं। लेकिन शासकों के लिए जो चीज महत्वपूर्ण है, वह उनकी अपनी व्यक्तिगत और राजनीतिक सत्ता का अस्तित्व है और वे जनता को सामूहिक आत्महत्या की ओर धकेल रहे हैं। सेना जल्द ही अपने रिज़र्व सैनिकों को रिहा करने और नियमित सैनिकों को छुट्टी देने के लिए मजबूर हो जाएगी।
रज्अत शिया मुसलमानो का एक मुसल्लम अक़ीदा
यह सही है कि इंसानों के लिए असली इनाम और सजा का स्थान आख़िरत है, लेकिन खुदा ने यह इरादा किया है कि उनका कुछ इनाम और सजा इसी दुनिया में भी दिया जाए।
ज़ुहूर के समय एक अहम घटना रज्अत है, जिसमें नेक और बुरे लोग इस दुनिया में वापस पलटाए जाऐंगे। यह शिया मुसलमानो का एक मुसल्लम अक़ीदा है।
रज्अत की परिभाषा
शब्दकोश में रजआत का मतलब है "वापसी"। धार्मिक संस्कृति में इसका मतलब है कि अल्लाह के हुक्म से, इलाही हुज्जत और मासूम इमाम (अ) और कुछ सच्चे मोमिन और काफ़िर और मुनाफ़िक इस दुनिया में वापस लौटेंगे। इसका मतलब यह है कि वे फिर से ज़िंदा होंगे और दुनिया में आएंगे। यह एक तरह से क़यामत का एक पहलू है, जो क़यामत से पहले इसी दुनिया में होगा।
रज्अत का फ़लसफ़ा
यह सही है कि इंसानों के लिए असली इनाम और सजा का असली स्थान आख़िरत है, लेकिन खुदा ने यह इरादा किया है कि उनका कुछ इनाम और सजा इसी दुनिया में भी दिया जाए।
इस बारे में इमाम बाकर (अलैहिस्सलाम) ने फ़रमाया है:
... أَمَّا اَلْمُؤْمِنُونَ فَیُنْشَرُونَ إِلَی قُرَّةِ أَعْیُنِهِمْ وَ أَمَّا اَلْفُجَّارُ فَیُنْشَرُونَ إِلَی خِزْیِ اَللَّهِ إِیَّاهُمْ ... ... अम्मल मोमेनूना फ़युंशरूना एला क़ुर्रते आयोनेहिम व अम्मल फ़ज्जारो फ़युंशरूना एला ख़िज़्इल्लाहे इय्याहुम ...
मोमिन वापस आते हैं ताकि वे सम्मानित हों और उनकी आँखें रोशन हों, और बुरे लोग वापस आते हैं ताकि अल्लाह उन्हें अपमानित करे। (बिहार उल अनवार, भाग 53, पेज 64)
रज्अत का एक और मकसद यह भी है कि मोमिन, हज़रत वली-ए-अस्र (अ) की मदद और साथ पाने की खुशी का अनुभव करें।
उदाहरण के तौर पर, इमाम अस्र (अ) की एक ज़ियारत में हम उनसे इस तरह दुआ करते हैं:
... مَوْلاَیَ فَإِنْ أَدْرَکَنِیَ اَلْمَوْتُ قَبْلَ ظُهُورِکَ فَإِنِّی أَتَوَسَّلُ بِکَ وَ بِآبَائِکَ اَلطَّاهِرِینَ إِلَی اَللَّهِ تَعَالَی وَ أَسْأَلُهُ أَنْ یُصَلِّیَ عَلَی مُحَمَّدٍ وَ آلِ مُحَمَّدٍ وَ أَنْ یَجْعَلَ لِی کَرَّةً فِی ظُهُورِکَ وَ رَجْعَةً فِی أَیَّامِکَ لِأَبْلُغَ مِنْ طَاعَتِکَ مُرَادِی وَ أَشْفِیَ مِنْ أَعْدَائِکَ فُؤَادِی ... ... मौलाया फ़इन अदरकनिल मौतो क़ब्ला ज़ुहूरेका फ़इन्नी अतवस्सलो बेका व बेआबाएकत ताहेरीना इलल्लाहे तआला व अस्अलोहू अय योसल्लेया अला मोहम्मदिव वा आले मोहम्मदिन व अन यज्अला ली कर्रतन फ़ी ज़ोहूरेका व रज्अतन फ़ी अय्यामेका ले अबलोग़ा मिन ताअतेका मुरादी व अशफ़ेया मिन आदाएका फ़ोआदी ...
मेरे मालिक! यदि आपकी ज़ाहिर (उदय) से पहले मेरी मौत हो जाए, तो मैं आप और आपके पाक बाप-दादाओं के ज़रिए अल्लाह तआला से दुआ करता हूँ कि वह मुहम्मद और उनके परिवार पर सलाम भेजे, और मुझे आपकी ज़ाहिर के समय और आपके दौर में वापसी का मौका दे ताकि मैं आपकी इबादत में अपनी मुराद (इच्छा) पूरी कर सकूँ और आपके दुश्मनों से अपने दिल को ठीक कर सकूँ। (बिहार उल अनवार, भाग 99, पेज 116)
रज्अत का स्थान
रज्अत शिया मुसलमानो के मुसल्लम अक़ाइद में से एक है, जिसका आधार क़ुरआन की दर्जनों आयतें और पैग़बर मुहम्मद (स) और मासूम इमाम (अलैहिमुस्सलाम) की सैकड़ों हदीसें हैं।
अज़ीम मुहद्दिस, मरहूम शेख हुर्रे आमोली ने अपनी किताब «अल ईक़ाज़ो मिनल हज्اअते बिल बुरहाने अलर रजअत» के अंत में लिखा है:
"इस किताब में हमने रज्अत के बारे में 620 से अधिक हदीसें, आयतें और सबूत पेश किए हैं, और मुझे नहीं लगता कि किसी भी अन्य फिक़्ही (इस्लामी कानून) या उसूल (मूल सिद्धांत) के मसले में इतनी अधिक प्रमाण सामग्री मिलती हो।"
इक़्तेबास: किताब "नगीन आफरिनिश" से (मामूली परिवर्तन के साथ)
ग़दीर, रसूल स.ल.व.की रिसालत की मेराज और दीन-ए-इस्लाम के तकमील होने का दिन
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मोहम्मद अली लबखंदान ने ईद-ए-ग़दीर खुम की अज़मत पर ज़ोर देते हुए कहा,यह वाक़िया नबूवत और इमामत के पायदार रब्त की अलामत है।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मोहम्मद अली लबखंदान ने कहा, ईद-ए-ग़दीर, बे'असत-ए-रसूल-ए-अकरम स.अ.व.के बाद तारीख-ए-बशरियत का सबसे अज़ीम दिन है, जो नबूवत और इमामत के दरमियान नाक़ाबिल-ए-इन्कार रब्त का मज़हर है। रसूलुल्लाह (स.अ.व.) ने 23 साल की तबलीग़ी जद्दोजहद के बाद ग़दीर खुम के मौक़े पर एक इलाही मिशन को मुकम्मल किया, ऐसा मिशन जो क़यामत तक दीन के तसल्सुल की ज़मानत बन गया।
उन्होंने आगे कहा,यह तारीखी वाक़िया रसूल-ए-अकरम (स.अ.व.) की रिहलत से सिर्फ़ 70 दिन पहले अल्लाह तआला के सरीह हुक्म से अंजाम पाया, जैसा कि इरशाद हुआ या अय्युहर रसूलु बल्लिग़ मा उंज़िला इलैका मिन रब्बिका व इन लम तफ़अल फ़मा बल्लग़ता रिसालतहु य ऐ रसूल! जो कुछ आपके रब की तरफ़ से नाज़िल किया गया है, पहुँचा दीजिए और अगर आपने ऐसा न किया तो गोया आपने रिसालत को पहुँचाया ही नहीं यह आयत इस अज़ीम हक़ीकत को वाज़ेह करती है कि दीन की बक़ा और कमाल इमामत से वाबस्ता है।
इस दीनी माहिर ने कहा, जिस तरह दूसरे अंबिया ने अपनी रिसालत के हिफ़ाज़त के लिए जानशीन मुक़र्रर किए, रसूल-ए-गरामी (स.अ.व.) ने भी अमीरुल मोमिनीन अली इब्ने अबी तालिब (अ.स.) को अपने बाद वली और जानशीन के तौर पर बा-ज़ाब्ता ग़दीर के दिन मुतारिफ़ कराया।
यह एलान न कोई शख़्सी और न ही सियासी फ़ैसला था, बल्कि बे'असत के समर की हिफ़ाज़त और तौहीद के तसल्सुल को यक़ीनी बनाने के लिए एक इलाही हुक्म था।
उन्होंने कहा,ग़दीर, रिसालत-ए-नबवी (स.अ.व.) की मेराज और दीन-ए-इस्लाम की तकमील का दिन है ग़दीर में अमीरुल मोमिनीन अली (अ.स.) की विलायत का एलान, आनहज़रत (स.अ.व.) के 23 साल की अथक जद्दोजहद का नुक़्ता-ए-अरूज था, जिसका मक़सद इस्लाम को सरबुलंद करना था।
ग़़दीर से अलग होना विनाश और तबाही हैं।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मोहम्मद हसन साफ़ी गुलपायगानी ने कहा,ग़दीर से अलग होना तबाही है और इससे जुड़ाव इंसान के लिए सुख और सफलता का स्रोत है।
मरहूम हज़रत आयतुल्लाह साफ़ी गुलपायगानी के बेटे हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मोहम्मद हसन साफ़ी गुलपायगानी ने इमामत और विलायत के दिनों के आगमन पर मदरसा खातमुल औसिया अ.स. का दौरा किया और वहाँ मौजूद तालिबे इल्म और ग़दीर के प्रचारकों से मुलाकात की।
उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत कुरआन की आयत یَا أَیُّهَا الرَّسُولُ بَلِّغْ مَا أُنْزِلَ إِلَیْکَ مِنْ رَبِّک... से करते हुए कहा,अल्लाह ने अपने नबी को संबोधित करते हुए फरमाया कि जो कुछ भी उनकी तरफ से नाज़िल हुआ है, उसे पूरी तरह लोगों तक पहुँचाएँ।
यहाँ तक कहा गया कि अगर आपने यह संदेश नहीं पहुँचाया, तो मानो आपने रिसालत का हुक्म ही अदा नहीं किया इससे स्पष्ट होता है कि यह महत्वपूर्ण संदेश हज़रत अली अ.स.की विलायत और इमामत की घोषणा थी और अगर यह न होता, तो रिसालत अधूरी रह जाती।
उन्होंने कहा,यह सिर्फ़ उस ज़माने तक सीमित नहीं था, बल्कि आज भी हज़रत अली (अ.स.) की विलायत का संदेश लोगों तक पहुँचाना हर शिया की, खासकर दीनी तालिबे इल्म की ज़िम्मेदारी है। दुश्मन की साजिशों से डरने की ज़रूरत नहीं क्योंकि अल्लाह ने फरमाया है कि वह विलायत के प्रचारकों की हिफाज़त करेगा।
आयतुल्लाह साफ़ी गुलपायगानी ने आज के दौर में प्रचार की सुविधाओं की ओर इशारा करते हुए कहा,आज हमारे पास आधुनिक साधन मौजूद हैं, अगर हम इनका फायदा न उठाएँ, तो हमसे सख्त पूछताछ होगी।
अतीत में उलमाए दीन ने कितनी मुश्किलें झेली, कितने उलमा शहीद हुए, कितने लोग शहरों और देशों से हिजरत करके हदीसों को बचाने निकले। उनके पास न साधन थे, न सुविधाएँ, सिर्फ़ अहले बैत (अ.स.) का इश्क था, जो उन्हें प्रेरित करता था।
उन्होंने अल्लामा अमीनी (किताब अलग़दीर" के लेखक) का उदाहरण देते हुए कहा,जब वह भारत में तेज गर्मी में किताबों के दुकानों में अध्ययन करते थे, तो कहते थे कि अली (अ.स.) की मोहब्बत की गर्मी ने मौसम की गर्मी को भुला दिया। वह अपनी जान भी अली (अ.स.) पर कुर्बान कर देते थे।
उन्होंने आयत یَا أَیُّهَا الرَّسُولُ بَلِّغْ مَا أُنْزِلَ إِلَیْکَ مِنْ رَبِّک... की तरफ इशारा करते हुए कहा,यह वही रिसालत है जिसे आयते ग़दीर में बयान किया गया और अल्लाह ने इसे नबी (स.अ.व.) की रिसालत का पूरा होना बताया। प्रचारकों को किसी से डरना नहीं चाहिए, सिर्फ़ अल्लाह का डर काफ़ी है।
उन्होंने आगे कहा,हौज़ए इल्मिया, खासकर हौज़ए इल्मिया क़ुम, की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी अमीरुल मोमिनीन (अ.स.) की विलायत का प्रचार है। हमने अभी तक ग़दीर को दुनिया तक वैसे नहीं पहुँचाया जैसा पहुँचाना चाहिए था। आज नौजवान तालिबे इल्म को चाहिए कि अपनी जवानी जैसी अज़ीम नेमत का फायदा उठाएँ और विलायत के प्रचार में आगे बढ़ें।
उन्होंने ग़दीर के प्रचारकों को मुबारकबाद देते हुए कहा,जब खुद नबी-ए अकरम (स.अ.व.) पहली बार मुबल्लिग़-ए ग़दीर थे, तो आप भी उसी सिलसिले की कड़ी बनने पर फख्र करें।
उन्होंने कहा,ग़दीर का रास्ता सारे अंबिया (अ.स.) की रिसालत से जुड़ा हुआ है। ग़दीर से अलग होना मानो दीन से अलग होना है दीन के बहुत से अरकान हैं, लेकिन अमीरुल मोमिनीन (अ.स.) की विलायत दीन का सबसे बुनियादी रुक्न है।
उन्होंने ईदे ग़दीर के महत्व को बताते हुए कहा, नबी (स.अ.व.) ने हाजियों को रोका, लौटने वालों को वापस बुलाया, रास्ते वालों को रोका, और तेज गर्मी में हज़ारों लोगों को इकट्ठा करके विलायत का ऐलान किया। फिर फरमायाआल-यौम अकमल्तु लकुम दीनकुम...' यानी अली (अ.स.) की विलायत दीन की तकमील है।
उन्होंने नबी (स.अ.व.) का यह कथन बयान किया,अगर सारे पेड़ कलम बन जाएँ, सारे समय स्याही बन जाएँ, जिन्न और इंसान सब लिखने लगें, तो भी अली (अ.स.) के फज़ाइल को पूरा नहीं लिखा जा सकता।
ईरान कभी भी दबाव, धमकी और जबरदस्ती की नीति को स्वीकार नहीं करेगा। ईरान के राष्ट्रपति
ईरानी राष्ट्रपति ने कज़िकिस्तान के विदेश मंत्री से मुलाकात के दौरान कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान हमेशा तर्कसंगत बातचीत के लिए तैयार है, लेकिन दबाव धमकी और जबरदस्ती को कभी स्वीकार नहीं करेगा।
ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेिज़ेश्कियान ने कजाकिस्तान के विदेश मंत्री मुराद नूरतिलो से मुलाकात में उन्हें ईदुल अज़हा की बधाई दी।
उन्होंने कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान की परमाणु गतिविधियाँ पूरी तरह से पारदर्शी हैं और अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) ने बार बार इसकी पुष्टि की है।
राष्ट्रपति पिज़ेश्कियान ने कहा कि हम निरीक्षण के लिए तैयार हैं, लेकिन वैज्ञानिक प्रौद्योगिकी और उपलब्धियों से किसी भी राष्ट्र को वंचित करने को अस्वीकार्य मानते हैं।
उन्होंने जोर देकर कहा कि हम यह स्वीकार नहीं करेंगे कि अन्य लोग हमारे राष्ट्र के भविष्य के बारे में निर्णय लें। ईरान हमेशा तर्कसंगत वार्ता के लिए तैयार है, लेकिन वह कभी भी दबाव धमकी या जबरदस्ती को स्वीकार नहीं करेगा।
इस मुलाकात में कजाकिस्तान के विदेश मंत्री मुराद नूरतिलो ने ईरान के साथ संबंधों को मजबूत करने के लिए अपने देश की गंभीर प्रतिबद्धता की घोषणा की है।
उन्होंने शांतिपूर्ण परमाणु गतिविधियों के मामले में इस्लामी गणतंत्र ईरान के सिद्धांतित रुख का समर्थन करते हुए कहा कि हम परमाणु प्रौद्योगिकी के शांतिपूर्ण उपयोग के ईरान के वैध अधिकार का समर्थन करते हैं और मुझे विश्वास है कि आपकी सरकार के प्रयास विभिन्न क्षेत्रों में असाधारण प्रगति का मार्ग प्रशस्त करेंगे।
इस्लामी क्रांति, हौज़ ए इल्मिया क़ुम की बरकतों में से एक है
फ़ुक़्हा की गार्डियन काउंसिल के सदस्य ने उलमा ए इकराम के इस्लाम और मकतब-ए-तशय्यु के मआरिफ़ की हिफ़ाज़त और इशाअत में ऐतिहासिक और तहज़ीबी भूमिका का ज़िक्र करते हुए हौज़-ए-इल्मिया क़ुम को इंक़ेलाब-ए-इस्लामी की तासीस और हिमायत का सरचश्मा बताया।
फ़ुक़हा की गार्डियन काउंसिल के सदस्य आयतुल्लाह सैयद मोहम्मद रज़ा मदर्रसी यज़्दी ने हौज़-ए-इल्मिया क़ुम के क़याम (स्थापना) की सदी (शताब्दी) के मौक़े पर कहा, इमाम ख़ुमैनी (रह॰) जो इस इंक़ेलाब की क़यादत कर रहे थे, आयतुल्लाह हाएरी यज़्दी (रह॰) के मुमताज़ (प्रतिष्ठित) शागिर्दों (शिष्यों) में से थे और यह उसी हौज़ा की बरकतों का नतीजा था।
उन्होंने कहा, उलमा-ए-इस्लाम दरअस्ल दुनिया तक इस्लाम का पैग़ाम पहुँचाने वाले हैं और मकतब-ए-तशय्यु और उसकी तहज़ीबी फ़िक्र को भी इन्हीं उलमा ने दुनिया तक पहुँचाया है।
आयतुल्लाह मदर्रसी यज़्दी ने कहा, उलमा-ए-किराम ग़ैबत-ए-सुग़रा के आग़ाज़ से लेकर ग़ैबत-ए-कुबरा के दौरान, बल्कि उससे भी पहले से इस्लाम और अहल-ए-बैत (अ॰स॰) की ख़िदमत में मसरूफ़ रहे। उन्होंने अहल-ए-बैत (अ॰स॰) के उलूम (ज्ञान) को समाज तक मुंतक़िल किया और इल्मी व अमली दोनों मैदानों में दीन और मआरिफ़ के मुबल्लिग (प्रचारक) रहे।
आयतुल्लाह मदर्रसी यज़्दी ने आगे कहा, नजफ़ अशरफ़, उससे पहले कूफ़ा और दूसरे उन इलाक़ों में जहाँ शिया मौजूद थे, बड़े-बड़े उलमा ने दीनी सरगर्मियाँ (गतिविधियाँ) अंजाम दीं।
यहाँ तक कि कुछ ऐसे इलाक़ों में जहाँ शिया अक़्सरियत (बहुमत) में नहीं थे, उलमा ने बड़ी मुश्किलात के बावजूद मआरिफ़-ए-अहल-ए-बैत को महफ़ूज़ रखा, हालाँकि उनकी क़द्र व मंज़िलत आज भी पूरी तरह शिनाख़्ता (पहचानी) नहीं है।
उन्होंने दौर-ए-मोआसिर में उलमा के किरदार की तरफ़ इशारा करते हुए कहा, जैसा कि रहबर-ए-मोअज़्ज़म क्रांति बार-बा इरशाद फ़रमा चुके हैं, मरहूम आयतुल्लाह शेख़ अब्दुल करीम हाएरी यज़्दी (रह॰) बड़ी दुश्वार (कठिन) ऐतिहासिक हालात में इराक़ से ईरान आए और हौज़-ए-इल्मिया क़ुम की अज़ीम बुनियाद को दोबारा इस्तिवार (मजबूत) किया।
आयतुल्लाह मदर्रसी यज़्दी ने कहा, हाज़ शेख़ अब्दुल करीम हाएरी यज़्दी (रह॰) ने सख़्तियों और महरूमियों को बर्दाश्त करते हुए अपने शागिर्दों के हमराह (साथ) इस मुबारक शजर को क़ुम में लगाया, जो अल्लाह के फ़ज़्ल से दिन-ब-दिन मज़बूततर हुआ और मराजय ए सलासा (तीन मरजा) के दौर में तरक्की पाया।