
رضوی
युवा पीढ़ी को हिजाब के लाभों और बरकात के बारे में बताना महत्वपूर्ण
प्रसिद्ध सांस्कृतिक और क्रांतिकारी व्यक्ति सरदार अब्दुल हुसैन अल्लाह करम ने वर्तमान युग में हिजाब की बिगड़ती स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि आज का वातावरण न तो इस्लामी व्यवस्था के योग्य है और न ही ईरानी सभ्यता और संस्कृति के योग्य है। उनके अनुसार, हिजाब हमेशा ईरानी राष्ट्र के अभिजात वर्ग द्वारा समर्थित मूल्यों में से रहा है और ईरानी राष्ट्र की विनम्रता और शुद्धता को इतिहास में एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
प्रसिद्ध सांस्कृतिक और क्रांतिकारी व्यक्ति सरदार अब्दुल हुसैन अल्लाह करम ने वर्तमान युग में हिजाब की बिगड़ती स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि आज का वातावरण न तो इस्लामी व्यवस्था के योग्य है और न ही ईरानी सभ्यता और संस्कृति के योग्य है। उनके अनुसार हिजाब हमेशा से ईरानी राष्ट्र के अभिजात वर्ग द्वारा समर्थित मूल्यों में से एक रहा है, और ईरानी राष्ट्र की विनम्रता और शुद्धता को इतिहास में एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के संवाददाता से बात करते हुए उन्होंने कहा: "मौजूदा स्थिति में सुधार की ज़रूरत है। अगर हमारे देश के संविधान और कानूनों को सही तरीके से लागू किया जाए, तो इस्लामी हिजाब को बढ़ावा देना संभव है। ईरानी लोग खुद एक मज़बूत सभ्यता और धार्मिक सभ्यता के उत्तराधिकारी हैं। जब हिजाब के धार्मिक, नैतिक और सामाजिक आशीर्वाद उन्हें स्पष्ट हो जाएँगे, तो वे निश्चित रूप से इस कर्तव्य में आगे बढ़ेंगे।"
सरदार अल्लाहकरम ने इस्लामी क्रांति की नींव रखने वाले महान व्यक्तियों के बलिदानों का उल्लेख करते हुए कहा: "यह क्रांति हजरत इमाम खुमैनी (र), विद्वानों, शहीदों और ईरानी राष्ट्र की निस्वार्थता का फल है। अधिकांश शहीदों की वसीयत में दो बातें बार-बार दोहराई गई हैं: एक सर्वोच्च नेता की आज्ञाकारिता, और दूसरी इस्लामी हिजाब का पालन। हमें इन तथ्यों को नई पीढ़ी, खासकर हमारी बेटियों और बहनों तक पहुंचाना चाहिए। अनुभव से पता चलता है कि जब भी लोग शहीदों के जीवन से अवगत होते हैं, तो उनकी धार्मिक प्रतिबद्धता बढ़ जाती है।" सरदार अल्लाहकरम के अनुसार, अगर इस्लामी हिजाब को युवा पीढ़ी के सामने सिर्फ एक बाहरी दायित्व के रूप में नहीं बल्कि एक सम्मानजनक मानवीय और धार्मिक व्यवस्था के हिस्से के रूप में पेश किया जाए, तो वे खुद इसे अपनाने की पहल करेंगे।
फिलिस्तीनी मुजाहिदीन ने TBG रॉकेट से इज़राईली सैनिकों पर किया हमला
फिलिस्तीनी प्रतिरोधी लड़ाकों ने दक्षिणी ग़ाज़ा के शहर खान यूनुस में ज़ायोनी फौज पर अत्याधुनिक रॉकेटों से हमला कर एक और ज़बरदस्त झटका दिया है।
फिलिस्तीनी प्रतिरोधी लड़ाकों ने दक्षिणी ग़ाज़ा के शहर खान यूनुस में ज़ायोनी फौज पर अत्याधुनिक रॉकेटों से हमला कर एक और ज़बरदस्त झटका दिया है। यह हमला खान यूनुस के पूर्वी क्षेत्र में किया गया, जहाँ ज़ायोनी सैनिकों को निशाना बनाया गया।
अलजज़ीरा की रिपोर्ट के मुताबिक, ह़मास की सैन्य शाखा अलक़स्साम ने एक बयान में बताया कि अल-क़ुद्स ब्रिगेड के साथ मिलकर एक संयुक्त ऑपरेशन में उनके मुजाहिदीनों ने एक रिहायशी मकान में छिपे ज़ायोनी सैनिकों की मौजूदगी की पहचान के बाद TBG रॉकेट और एंटी-पर्सनल रॉकेट से हमला किया।
बयान में यह भी कहा गया कि ये सैनिक एक मकान में छिपे हुए थे और उन्हें सीधे निशाना बनाकर भारी नुकसान पहुंचाया गया।
इस हमले से कुछ घंटे पहले ही अल-क़ुद्स ब्रिगेड ने एक और अभियान का दावा करते हुए बताया था कि उनके लड़ाकों ने एक अन्य मकान में मौजूद 10 ज़ायोनी सैनिकों पर घात लगाकर हमला किया, जिसमें कई सैनिक मारे गए और कई घायल हो गए।
दमिश्क में ISIS के झंडे की खुलेआम बिक्री/ सरकारी संस्थाएं मूक दर्शक
सीरिया की राजधानी दमिश्क में ISIS (दाइश) का प्रसिद्ध काला झंडा सार्वजनिक स्थानों और दुकानों पर खुलेआम बिकते हुए देखा जा रहा है, और इस पर सरकार की ओर से कोई रोक टोक नज़र नहीं आती।
सीरिया की राजधानी दमिश्क में आतंकी संगठन ISIS का काला झंडा खुलेआम दुकानों और सार्वजनिक स्थानों पर बिकते हुए देखा गया है। इस पर सरकार की कोई रोक-टोक नज़र नहीं आती।
सीरियन ऑब्जर्वेटरी फॉर ह्यूमन राइट्स नामक एक मानवाधिकार निगरानी संस्था ने शनिवार की रात एक रिपोर्ट में खुलासा किया कि ISIS का प्रसिद्ध झंडा "अल उक़ाब", जो इस आतंकी समूह की पहचान बन चुका है दमिश्क के कुछ बाज़ारों में संबंधित नारों और स्टिकर्स के साथ खुलेआम बेचा जा रहा है।
एक रिपोर्ट के अनुसार, यह झंडे और प्रतीक हथियारों की दुकानों और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर बिना किसी प्रतिबंध के उपलब्ध हैं, और सरकारी एजेंसियों द्वारा कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया है।
इस संगठन ने चेतावनी दी है कि सरकारी बेरुखी और चुप्पी से ऐसे प्रतीकों की सार्वजनिक स्वीकृति और आदत बढ़ सकती है, जो आने वाले समय में गंभीर और खतरनाक परिणामों का कारण बन सकती है।
यह खबर ऐसे समय सामने आई है जब इस साल की शुरुआत में कुछ स्थानीय मीडिया ने ऐसी तस्वीरें प्रकाशित की थीं, जिनमें देखा गया कि शामी विद्रोही नेता अबू मोहम्मद अलजौलानी के समर्थक दमिश्क के उपनगर "सहनाया" में प्रवेश करते समय बाज़ू पर ISIS का झंडा लगाए हुए थे।
अबू मोहम्मद अलजोलानी, जो पहले अलकायदा की सीरियाई शाखा "जभात अलनुसरा" का संस्थापक था और बाद में "हयात तहरीर अलशाम" का नेतृत्व करता रहा, अब दमिश्क में अपनी प्रभावी स्थिति बना चुका है।
2024 के अंत में उसने अपना राजनीतिक चेहरा बदलते हुए अहमद अल-शराअ नाम अपनाया, और कुछ ही समय बाद उसका नाम अमेरिका समेत कुछ देशों की प्रतिबंध सूची से हटा दिया गया।
विशेषज्ञों का मानना है कि ISIS जैसे आतंकी समूह के झंडे की खुलेआम बिक्री सीरिया की आंतरिक स्थिति में एक नई और चिंताजनक दिशा की ओर इशारा करती है, जो भविष्य के लिए बहुत ख़तरनाक साबित हो सकती है।
ग़ज़्ज़ा में हर 20 मिनट में एक बच्चा शहीद या घायल हो रहा हैः यूनिसेफ़
संयुक्त राष्ट्र की बाल संरक्षण एजेंसी यूनिसेफ़ ने जानकारी दी है कि ग़ाज़ा पट्टी में 7 अक्टूबर 2023 से अब तक 50,000 से ज़्यादा फ़िलिस्तीनी बच्चे शहीद या घायल हो चुके हैं। यह आँकड़ा इस बात की गवाही देता है कि हर 20 मिनट में एक बच्चा या तो मारा जा रहा है या घायल हो रहा है।
संयुक्त राष्ट्र की बाल संरक्षण एजेंसी यूनिसेफ़ ने जानकारी दी है कि ग़ाज़ा पट्टी में 7 अक्टूबर 2023 से अब तक 50,000 से ज़्यादा फ़िलिस्तीनी बच्चे शहीद या घायल हो चुके हैं। यह आँकड़ा इस बात की गवाही देता है कि हर 20 मिनट में एक बच्चा या तो मारा जा रहा है या घायल हो रहा है।
यूनिसेफ़ द्वारा जारी आंकड़े यह दिखाते हैं कि इस समय ग़ाज़ा पट्टी में बच्चे किस भयावह संकट का समाना कर रहे हैं।18 मार्च 2025 को युद्धविराम के उल्लंघन के बाद से 309 बच्चे शहीद और 3,738 घायल हुए हैं।
यूनिसेफ़ ने यह भी बताया कि ग़ाज़ा इस समय भुखमरी،मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन,मानवीय सहायता की भारी कमी,और स्कूलों व अस्पतालों की तबाही जैसे हालात से गुजर रहा है।
यूनिसेफ़ के कार्यकारी निदेशक पहले ही इस बात पर ज़ोर दे चुके हैं कि अमेरिका और इस्राईल की ओर से तैयार किया गया ग़ाज़ा को मदद पहुंचाने का नया प्लान ग़ाज़ा के लिए विनाशकारी है।
ग़ाज़ा के बच्चों की हालत दुनिया के सामने एक गंभीर मानवीय त्रासदी बन चुकी है, और ज़रूरत इस बात की है कि वैश्विक समुदाय तुरंत हस्तक्षेप करे ताकि बच्चों की जानें बचाई जा सकें और उन्हें एक सुरक्षित भविष्य मिल सके।
माता-पिता का सम्मान, आध्यात्मिक विकास का एक मार्ग है
आसमानी किताब क़ुरआन में बार-बार माता-पिता के सम्मान पर ज़ोर दिया गया है, इस विषय का महत्व इतना अधिक है कि ख़ुदा ने इसे एक महत्वपूर्ण सिद्धांत "तौहीद" (एकेश्वरवाद) के साथ रखा और बयान किया है।
महान ईश्वर पवित्र क़ुरआन में कहता हैः और तुम्हारे पालनहार ने आदेश दिया है कि तुम केवल उसी की उपासना करो और माता-पिता के साथ अच्छा व्यवहार करो। यदि उनमें से एक या दोनों तुम्हारे पास वृद्धावस्था को पहुँच जाएँ, तो उन्हें 'उफ़' तक न कहो और न ही उन्हें झिड़को, बल्कि उनसे आदरपूर्ण और नम्रता से बात करो।"
(सूरे इस्रा, आयत 23)
माता-पिता के साथ भलाई और उपकार करना, नबियों अर्थात ईश्दूतों की प्रमुख विशेषताओं में से एक है। इसका तौहीद अर्थात एकेश्वरवाद और अल्लाह की आज्ञापालन के साथ उल्लेख इस बात का प्रमाण है कि यह न केवल एक मानवीय और बौद्धिक कर्तव्य है, बल्कि एक धार्मिक दायित्व भी है।
कभी-कभी हम यह सोचते हैं कि माता-पिता के साथ अच्छा व्यवहार करना केवल हमारी ओर से एक कृपा है जबकि वास्तविकता यह है कि यह कर्तव्य निभाना हमारी उम्र को लंबा करता है और यह भी कारण बनता है कि हमारे बच्चे भी भविष्य में हमारे साथ भलाई करें।
माता-पिता का सम्मान हमारे भीतर विनम्रता और कृतज्ञता की भावना को मज़बूत करता है, क्योंकि वही हमारे जीवन के पहले शिक्षक होते हैं। उनके साथ सहानुभूति और प्रेम न केवल आंतरिक शांति लाते हैं बल्कि आत्मिक प्रगति का भी मार्ग प्रशस्त करते हैं, क्योंकि विशेष रूप से वृद्धावस्था में माता-पिता की देखभाल करना, धैर्य और सहनशीलता का एक अभ्यास है जो हमारे आध्यात्मिक विकास और नैतिक परिपक्वता में सहायता करता है। साथ ही, उनका आशीर्वाद और संतोष हमारे जीवन में आध्यात्मिक सफलता और बरकत को बढ़ाता है।
इसलिए, माता-पिता के साथ भलाई करना कोई बोझिल कर्तव्य नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि, आत्मा की उन्नति और जीवन के गहरे अर्थ को समझने का एक सुनहरा अवसर है।
इस्लाम में ज़ीनत और सजावट का क्या स्थान है?
चूँकि पवित्र धर्म इस्लाम स्वयं सौंदर्य और सजावट के अनुरूप है, यह अपने अनुयाइयों को आदेश देता है कि वे सदैव कुरूपता और गंदगी के सभी स्वरूपों को स्वयं से और अपने जीवन-पर्यावरण से दूर रखें और जब दूसरों से मिलें तो सुसज्जित और सुंदर स्वरूप में दिखाई दें।
इस लेख में इस्लाम की दृष्टि से ज़ीनत और साज-सज्जा के महत्व पर चर्चा करता है।
ज़ीनत व सज्जा की परिभाषा
ज़ीनत का अर्थ है- सुसज्जित होना और अमल के आरास्ता होने का शाब्दिक अर्थ सजाना और श्रृंगार करना है लेकिन इसके दूसरे अर्थ भी बताए गए हैं जैसे क्रमबद्ध और व्यवस्थित होना, तालमेल और सामंजस्य होना, तथा तैयार और सक्षम होना।
क़ुरआन में आरास्ता और ज़ीनत का स्थान
क़ुरआन की दृष्टि में, सौंदर्य को समझने की क्षमता मनुष्य की प्रकृति में निहित ईश्वरीय वरदानों में से एक है। संसार में सुंदर वस्तुओं की उपस्थिति, मनुष्य की इसी स्वाभाविक इच्छा का उत्तर है और यह परम बुद्धिमान सृष्टिकर्ता की मूल्यवान नेमतों में से एक है।
अल्लाह पवित्र क़ुरआन में कहता है:
"إِنَّا زَیَّنَّا السَّمَاءَ الدُّنْیا بِزِینَةٍ الْکَوَاکِبِ"
हमने ज़मीन के आकाश को तारों की सजावट से सुसज्जित किया है
इस आयत के अनुसार, ईश्वर ने तारों को आकाश की ज़ीनत बनाया है और उसका वर्णन एक नेमत व वरदान के रूप में किया है।
मासूम इमामों (अ.स.) की दृष्टि में आरास्तगी व सजावट का महत्व
हमारे इमामों ने भी ज़ीनत और आरास्तगी के महत्व की ओर संकेत किया है और उन्होंने स्वयं सबसे पहले इस पर अमल किया है। वे फ़रमाते हैं कि यह अल्लाह के निकट एक प्रिय व अच्छी विशेषता है।
पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद (स.अ.) इस सुंदर और नैतिक परंपरा के महत्व को स्पष्ट करते हुए फ़रमाते हैं:
"बेशक अल्लाह पाक है और पाक चीज़ों को पसंद करता है; वह स्वच्छ है और स्वच्छता को पसंद करता है।"
(إنَّ اللّه طَيِّبٌ يُحِبُّ الطَّيِّبَ، نَظيفٌ يُحِبُّ النَّظافَةَ)
हज़रत अली (अ.स.) ने जो अत्यंत परहेज़गार और सादगी से जीवन व्यतीत करने वाले थे, आरास्तगी और सलीके में लापरवाही को उचित नहीं समझा। उनसे एक रिवायत है जो यह दर्शाती है कि मित्रता, आत्मीयता और रिश्तेदारी के कारण भी सज्जा और आरास्तगी में कोताही से काम नहीं लिया जाना चाहिए।
उन्होंने फ़रमाया: तुममें से हर एक को चाहिए कि वह अपने मुसलमान के लिए भाई के लिए उसी तरह सुसज्जित होकर पेश आये जैसे वह किसी अजनबी के सामने अच्छी हालत में दिखना चाहता है। (لِیَتَزَیَّنَ اَحَدُکُم لأَخیهِ الْمُسْلِمِ کما یَتَزَیِّنَ لِلْغَریبِ الَّذی یُحِبُّ أَنْ یراه فی احسن الهَیئهْ
सौंदर्य या सजावट के प्रकार
सौंदर्य दो प्रकार का होता है:
(अ) आत्मिक सौंदर्य
(ब) बाह्य या दिखावटी सौंदर्य
आत्मिक सौंदर्य को तीन भागों में बाँटा जा सकता है:
विचारों का सौंदर्य, जिसमें ज्ञान, बुद्धिमत्ता और शिष्टाचार शामिल हैं।
वाणी का सौंदर्य
आचरण का सौंदर्य
बाह्य सौंदर्य
बाह्य सौंदर्य और सजावट का व्यक्ति की व्यक्तिगत और सामाजिक सेहत पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यह मनुष्य की स्वाभाविक इच्छाओं में से एक है और उसकी प्रकृति में समाया हुआ है।
पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (स.अ.) ने फ़रमाया है: "النظافة من الإيمان" पवित्रता,स्वच्छता और साफ़-सफ़ाई ईमान का एक हिस्सा है।
ट्रम्प को एटम बम से नहीं ईरान की एटमी तकनीक से डर हैः आयतुल्लाह खातमी
आयतुल्लाह खातमी ने कहा कि दुश्मनों ने कहा था कि ईरान को एक प्रतिशत भी यूरेनियम संवर्धन की इजाज़त नहीं होनी चाहिए, लेकिन ईरानी क़ौम ने उनकी आंखों में आंखें डालकर संवर्धन किया है और आगे भी करती रहेगी।
आयतुल्लाह सैयद अहमद खातमी ने तेहरान यूनिवर्सिटी में नमाज़-ए-जुमआ के खुत्बे में कहा कि ट्रम्प और उसके जैसे दूसरे दुश्मनों को ईरान के एटम बम से नहीं, बल्कि ईरान द्वारा स्थानीय रूप से हासिल की गई परमाणु तकनीक से डर है।उनके अनुसार, दुश्मन जानते हैं कि ईरान के पास एटम बम नहीं है और हम धार्मिक व नैतिक आधार पर ऐसे खतरनाक हथियारों के विरोधी हैं।
उन्होंने कहा कि पैग़म्बर-ए-अकरम ने फरमाया कि ऐसा हथियार जो अंधाधुंध तबाही मचाए और सूखी-गीली हर चीज़ को जला डाले, इंसान के पास नहीं होना चाहिए हम परमाणु हथियार नहीं चाहते, लेकिन परमाणु ऊर्जा चिकित्सा और औद्योगिक क्षेत्रों के लिए ज़रूरी है और आने वाले समय में यही दुनिया की मूल ऊर्जा बन जाएगी।
आयतुल्लाह खातमी ने कहा कि दुश्मनों ने कहा था कि ईरान को एक प्रतिशत भी यूरेनियम संवर्धन की अनुमति नहीं होनी चाहिए, लेकिन ईरानी जनता ने उनकी आंखों में आंखें डालकर संवर्धन किया है और आगे भी करती रहेगी। अल्हम्दुलिल्लाह, हमने 20 प्रतिशत तक यूरेनियम संवर्धन किया है और अपनी ज़रूरत के अनुसार करते रहेंगे, और दुश्मन इसमें कुछ भी नहीं कर सकते।
उन्होंने आगे कहा कि परमाणु तकनीक हमारी राष्ट्रीय स्वतंत्रता और आत्मविश्वास का प्रतीक है, और दुश्मन इसी आत्मविश्वास से डरे हुए हैं।
आयतुल्लाह खातमी ने इमाम खुमैनी (रह.) की क्रांति के सात सिद्धांतों पर भी रौशनी डाली, जिनमें शामिल हैं:ईश्वर केंद्रित सोच,दूरदर्शिता व योजना,इस्लामी शासन की स्थापना और रक्षा,
एकता,आत्मनिर्भरता,जन सहभागिता,अत्याचारियों से नफ़रत
उनका कहना था कि इमाम की क्रांति जनता के भरोसे से सफल हुई थी और आज भी सुप्रीम लीडर उसी राह पर चल रहे हैं।
फ्रांस में मस्जिद पर शैतान परस्तो का हमला/ आगज़नी की कोशिश
उत्तर पूर्वी फ्रांस में स्थित एक प्राचीन मस्जिद पर शरारती तत्वों ने हमला किया जिसमें मस्जिद को नुकसान पहुँचाने के साथ-साथ क़ुरआन मजीद की भी बेहुरमती की गई इस हमले ने फ्रांसीसी मुस्लिम समुदाय में गहरा आक्रोश और दुख की लहर पैदा कर दी है।
उत्तर पूर्वी फ्रांस में स्थित एक प्राचीन मस्जिद पर शरारती तत्वों ने हमला कर न सिर्फ मस्जिद को नुकसान पहुँचाया, बल्कि क़ुरआन मजीद की भी बेहुरमती की। इस घटना ने फ्रांस के मुस्लिम समुदाय को गहरे दुख और गुस्से में डाल दिया है और इस्लामोफोबिया के बढ़ते रुझान को लेकर चिंताएं और ज़्यादा बढ़ा दी हैं।
यह हमला मोस्ले क्षेत्र के सैंत-आउल्ड (Saint-Avold) के पास स्थित एक पुरानी मस्जिद पर किया गया, जो पहले एक मुस्लिम संगठन के अधीन थी। स्थानीय सूत्रों के अनुसार, मस्जिद की फ़र्श, कालीन और फर्नीचर को बुरी तरह नुकसान पहुँचाया गया, और दीवारों पर शैतानी चिन्ह और तोड़ी हुई क्रॉस (ईसाई प्रतीकों की बेअदबी) के निशान पेंट किए गए थे। मस्जिद में आंशिक आगज़नी के संकेत भी मिले हैं।
इस्लामी संगठन के ज़िम्मेदारों ने बताया कि घटनास्थल से जले हुए टायरों के अवशेष और विस्फोटक पदार्थ से भरी हुई बोतलें भी बरामद हुई हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि हमलावर मस्जिद को पूरी तरह से आग के हवाले करना चाहते थे।
क्षेत्रीय नगरपालिका परिषद के सदस्य त्रिस्तान अतमानिया ने इस हमले को नस्लीय नफ़रत पर आधारित अपराध क़रार देते हुए कहा,यह अपराध हमारे सामाजिक एकता के दिल पर सीधा हमला है।
इलाके के मेयर इमैनुएल शूलर ने भी घटना को अस्वीकार्य और असहनीय" बताया।यह हमला ऐसे समय हुआ है जब महज़ एक महीने पहले फ्रांस में ही 22 वर्षीय एक मुस्लिम युवक को मस्जिद में नमाज़ के दौरान चाकू से हमला कर के शहीद कर दिया गया था।
अब तक फ्रांसीसी अधिकारी इन हमलावरों की पहचान और गिरफ़्तारी में सफल नहीं हो पाए हैं।फ्रांस के मुसलमानों ने इस हमले पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है और सरकार से मांग की है कि इस्लाम विरोधी घटनाओं पर सख़्ती से रोक लगाई जाए,और धार्मिक स्थलों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।
फिलिस्तीन को एक राज्य के रूप में मान्यता देना एक राजनीतिक आवश्यकता है
ग़ज़्जा पर ज़ायोनी सरकार के हमलों के तेज़ होने के बाद, फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रोन ने फिलिस्तीन को एक राज्य के रूप में मान्यता दिए जाने की आवश्यकता पर बल दिया।
ग़ज़्ज़ा पर ज़ायोनी सरकार के हमलों के तेज़ होने के बाद, फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रोन ने फिलिस्तीन को एक राज्य के रूप में मान्यता दिए जाने की आवश्यकता पर बल दिया।
उन्होंने आज (शुक्रवार) सिंगापुर की यात्रा के दौरान घोषणा की कि यूरोपीय देशों को इज़राइल के खिलाफ़ अपने सामूहिक रुख को और मज़बूत करना चाहिए, और फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देने के लिए कुछ शर्तें रखीं।
इस अवसर पर मैक्रोन ने कहा: "फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देना न केवल एक नैतिक दायित्व है, बल्कि एक राजनीतिक आवश्यकता भी है।"
हालाँकि, उन्होंने इस कदम के लिए कुछ शर्तें भी बताईं।
सिंगापुर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बोलते हुए, मैक्रोन ने कहा कि यूरोपीय देशों को "इज़राइल के खिलाफ़ अपने सामूहिक रुख को और मज़बूत करना चाहिए", लेकिन अगर "आने वाले घंटों और दिनों में गाजा में मानवीय स्थिति के लिए एक स्वीकार्य प्रतिक्रिया सामने आती है, तो स्थिति बदल सकती है।"
जबकि यूरोपीय सहयोगियों ने अतीत में इजरायल के "आत्मरक्षा के अधिकार" को मान्यता दी है, गाजा में फिलिस्तीनी लोगों के खिलाफ जारी इजरायली अपराधों ने हाल के हफ्तों में "संयुक्त राज्य अमेरिका को छोड़कर" इजरायल के कुछ पश्चिमी समर्थकों को दूर कर दिया है। कुछ ने इजरायल के संभावित अंतर्राष्ट्रीय अलगाव के बारे में भी चिंता व्यक्त की है।
नवीनतम रिपोर्टों के अनुसार, गाजा में मानवीय सहायता की पहुँच को गंभीर रूप से प्रतिबंधित कर दिया गया है। इज़राइल ने सभी सीमा पारियों को बंद कर दिया है और केवल "फिलिस्तीनी राहत कोष" के माध्यम से सीमित सहायता की अनुमति दे रहा है;
यह एक ऐसी संस्था है जिसकी निष्पक्षता के बारे में अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को गंभीर चिंताएँ हैं, और इस कारण से वे इसके साथ सहयोग करने में अनिच्छुक हैं।
ये प्रतिबंध गाजावासियों को खाद्य सहायता प्राप्त करने के लिए लंबी दूरी की यात्रा करने के लिए मजबूर करते हैं, अक्सर सैन्य क्षेत्रों के माध्यम से, जिससे उनकी जान जोखिम में पड़ जाती है।
हश्दुश शअबी के ख़िलाफ़ अमरीकी मांग एक संगठित साज़िश है।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद सद्रुद्दीन कबानची ने अपने हालिया जुमआ के ख़ुत्बे में इराक़ में हश्दुश-शअबी के खिलाफ अमेरिका की मांगों की कड़ी आलोचना करते हुए इसे इराक़ के आंतरिक मामलों में खुली दखलअंदाज़ी और इराक़ी शियों के खिलाफ एक संगठित साज़िश क़रार दिया है।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद सद्रुद्दीन कबानची ने अपने हालिया जुमआ के ख़ुत्बे में इराक़ में हश्दुश शअबी के खिलाफ अमेरिका की मांगों की कड़ी आलोचना करते हुए इसे इराक़ के आंतरिक मामलों में खुली दखलअंदाज़ी और इराक़ी शियाओं के खिलाफ एक संगठित साज़िश करार दिया।
उन्होंने हुसैनिया-ए-आज़म फातमिया, नजफ़ अशरफ़ में भाषण देते हुए कहा कि अमेरिका लगातार हश्दुश शअबी, हिज़्बुल्लाह, अंसारुल्लाह और इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड्स (सिपाह-ए-पासदारान) जैसे प्रतिरोधी (मुक़ावमत) संगठनों को निशाना बना रहा है, जबकि दाइश (ISIS) और जबहतुन्नुसरा जैसी आतंकवादी संगठनों के खिलाफ चुप है उनके अनुसार,यह दोहरा रवैया दिखाता है कि असली निशाना प्रतिरोधी ताक़तें और इराक़ी जनता की ताक़त हैं।
उन्होंने कहा कि हश्दुश-शअबी केवल एक हथियारबंद संगठन नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय ज़रूरत और इराक़ की सुरक्षा की गारंटी है, जो सरकार की कमज़ोरी के वक्त जनता की रक्षा के लिए खड़ा हुआ।
चुनाव की तैयारियों पर बात करते हुए इमामे जुमा ने लोगों से अपील की कि वे अपने इलेक्शन कार्ड की नवीनीकरण (रिन्यूअल) करें। साथ ही उन्होंने चेतावनी दी कि पश्चिमी इराक़ के इलाक़ों में चुनावी तैयारियों में असामान्य गतिविधियाँ एक सुनियोजित योजना का हिस्सा हैं।जिसका मक़सद शिया बहुमत से राजनीतिक ताक़त छीनना है।
उन्होंने कहा,हमें अपने वोट के ज़रिए बहुमत वाली राजनीतिक ताक़त को मज़बूत बनाना है ताकि संविधान के अनुसार सरकार बनाई जा सके।
उन्होंने स्पष्ट किया कि सत्ता परिवर्तन का एकमात्र रास्ता चुनाव है, ना कि विरोध प्रदर्शन या बग़ावत। उनके अनुसार,लोकतांत्रिक तरीक़े से ही परिवर्तन देश की स्थिरता और अस्तित्व की गारंटी है।
आख़िर में, उन्होंने इमाम जवाद (अ.स.) की शहादत की मुनासिबत से आयोजित ज़ियारत में 4 लाख 70 हज़ार ज़ायरीनों की भागीदारी को आहलेबैत (अ.स.) से जनता की गहरी मोहब्बत और लगाव का प्रतीक बताया और इस सफल आयोजन के लिए जनता, सुरक्षा बलों और अन्य विभागों का आभार व्यक्त किया।