
رضوی
हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम का जीवन परिचय
नाम व लक़ब (उपाधियां)
आपका नाम मुहम्मद व आपका मुख्य लक़ब बाक़िरूल उलूम है।
जन्म तिथि व जन्म स्थान
हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम का जन्म सन् 57 हिजरी मे रजब मास की प्रथम तिथि को पवित्र शहर मदीने मे हुआ था।
माता पिता
हज़रत इमाम बाकिर अलैहिस्सलाम के पिता हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम व आपकी माता हज़रत फ़ातिमा पुत्री हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम हैं।
पालन पोषण
इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम का पालन पोषण तीन वर्षों की आयु तक आपके दादा इमाम हुसैन व आपके पिता इमाम सज्जाद अलैहिमुस्सलाम की देख रेख मे हुआ। जब आपकी आयु साढ़े तीन वर्ष की थी उस समय कर्बला की घटना घटित हुई। तथा आपको अन्य बालकों के साथ क़ैदी बनाया गया। अर्थात आप का बाल्य काल विपत्तियों व कठिनाईयों के मध्य गुज़रा।
इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम का शिक्षण कार्य़
इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने अपनी इमामत की अवधि मे शिक्षा के क्षेत्र मे जो दीपक ज्वलित किये उनका प्रकाश आज तक फैला हुआ हैं। इमाम ने फ़िक़्ह व इस्लामी सिद्धान्तो के अतिरिक्त ज्ञान के अन्य क्षेत्रों मे भी शिक्षण किया। तथा अपने ज्ञान व प्रशिक्षण के द्वारा ज्ञानी व आदर्श शिष्यों को प्रशिक्षित कर संसार के सम्मुख उपस्थित किया। आप अपने समय मे सबसे बड़े विद्वान माने जाते थे। महान विद्वान मुहम्मद पुत्र मुस्लिम ,ज़ुरारा पुत्र आयुन ,अबु नसीर ,हश्शाम पुत्र सालिम ,जाबिर पुत्र यज़ीद ,हिमरान पुत्र आयुन ,यज़ीद पुत्र मुआविया अजःली ,आपके मुख्यः शिष्यगण हैं।
इब्ने हज्रे हीतमी नामक एक सुन्नी विद्वान इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम के ज्ञान के सम्बन्ध मे लिखता है कि इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने संसार को ज्ञान के छुपे हुए स्रोतो से परिचित कराया। उन्होंने ज्ञान व बुद्धिमत्ता का इस प्रकार वर्नण किया कि वर्तमान समय मे उनकी महानता सब पर प्रकाशित है।ज्ञान के क्षेत्र मे आपकी सेवाओं के कारण ही आपको बाक़िरूल उलूम कहा जाता है। बाक़िरूल उलूम अर्थात ज्ञान को चीर कर निकालने वाला।
अब्दुल्लाह पुत्र अता नामक एक विद्वान कहता है कि मैंने देखा कि इस्लामी विद्वान जब इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम की सभा मे बैठते थे तो ज्ञान के क्षेत्र मे अपने आपको बहुत छोटा समझते थे। इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम अपने कथनो को सिद्ध करने के लिए कुऑन की आयात प्रस्तुत करते थे। तथा कहते थे कि मैं जो कुछ भी कहूँ उसके बारे मे प्रश्न कर ?मैं बताऊँगा कि वह कुरआन मे कहाँ पर है।
इमाम बाक़िर और ईसाई पादरी
एक बार इमाम बाक़िर (अ.स.) ने अमवी बादशाह हश्शाम बिन अब्दुल मलिक के हुक्म पर अनचाहे तौर पर शाम का सफर किया और वहा से वापस लौटते वक्त रास्ते मे एक जगह लोगो को जमा देखा और जब आपने उनके बारे मे मालूम किया तो पता चला कि ये लोग ईसाई है कि जो हर साल यहाँ पर इस जलसे मे जमा होकर अपने बड़े पादरी से सवाल जवाब करते है ताकि अपनी इल्मी मुश्किलात को हल कर सके ये सुन कर इमाम बाकिर (अ.स) भी उस मजमे मे तशरीफ ले गऐ।
थोड़ा ही वक्त गुज़रा था कि वो बुज़ुर्ग पादरी अपनी शानो शोकत के साथ जलसे मे आ गया और जलसे के बीच मे एक बड़ी कुर्सी पर बैठ गया और चारो तरफ निगाह दौड़ाने लगा तभी उसकी नज़र लोगो के बीच बैठे हुऐ इमाम (अ.स) पर पड़ी कि जिनका नूरानी चेहरा उनकी बड़ी शख्सीयत की गवाही दे रहा था उसी वक्त उस पादरी ने इमाम (अ.स )से पूछा कि हम ईसाईयो मे से हो या मुसलमानो मे से ?????
इमाम (अ.स) ने जवाब दियाः मुसलमानो मे से।
पादरी ने फिर सवाल कियाः आलिमो मे से हो या जाहिलो मे से ?????
इमाम (अ.स) ने जवाब दियाः जाहिलो मे से नही हुँ।
पादरी ने कहा कि मैं सवाल करूँ या आप सवाल करेंगे ?????
इमाम (अ.स) ने फरमाया कि अगर चाहे तो आप सवाल करें।
पादरी ने सवाल कियाः तुम मुसलमान किस दलील से कहते हो कि जन्नत मे लोग खाऐंगे-पियेंगे लेकिन पैशाब-पैखाना नही करेंगे ?क्या इस दुनिया मे इसकी कोई दलील है ?
इमाम (अ.स) ने फरमायाः हाँ ,इसकी दलील माँ के पेट मे मौजूद बच्चा है कि जो अपना रिज़्क़ तो हासिल करता है लेकिन पेशाब-पेखाना नही करता।
पादरी ने कहाः ताज्जुब है आपने तो कहा था कि आलिमो मे से नही हो।
इमाम (अ.स) ने फरमायाः मैने ऐसा नही कहा था बल्कि मैने कहा था कि जाहिलो मे से नही हुँ।
उसके बाद पादरी ने कहाः एक और सवाल है।
इमाम (अ.स) ने फरमायाः बिस्मिल्लाह ,सवाल करे।
पादरी ने सवाल कियाः किस दलील से कहते हो कि लोग जन्नत की नेमतो फल वग़ैरा को इस्तेमाल करेंगें लेकिन वो कम नही होगी और पहले जैसी हालत पर ही बाक़ी रहेंगे।
क्या इसकी कोई दलील है ?
इमाम (अ.स) ने फरमायाः बेशक इस दुनिया मे इसका बेहतरीन नमूना और मिसाल चिराग़ की लौ और रोशनी है कि तुम एक चिराग़ से हज़ारो चिराग़ जला सकते हो और पहला चिराग़ पहले की तरह रोशन रहेगा ओर उसमे कोई कमी नही होगी।
पादरी की नज़र मे जितने भी मुश्किल सवाल थें सबके सब इमाम (अ.स) से पूछ डाले और उनके बेहतरीन जवाब इमाम (अ.स) से हासिल किये और जब वो अपनी कम इल्मी से परेशान हो गया तो बहुत गुस्से आकर कहने लगाः
ऐ लोगों एक बड़े आलिम को कि जिसकी मज़हबी जानकारी और मालूमात मुझ से ज़्यादा है यहा ले आऐ हो ताकि मुझे ज़लील करो और मुसलमान जान लें कि उनके रहबर और इमाम हमसे बेहतर और आलिम हैं।
खुदा कि क़सम फिर कभी तुमसे बात नही करुगां और अगर अगले साल तक ज़िन्दा रहा तो मुझे अपने दरमियान (इस जलसे) मे नही देखोंगे।
इस बात को कह कर वो अपनी जगह से खड़ा हुआ और बाहर चला गया।
हज़रते इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) के कथन
१. जो शख़्स किसी मुसलमान को धोका दे या सताये वह मुसलमान नहीं।
२. यतीम बच्चों पर माँ बाप की तरह मेहरबानी करो।
३. खाने से पहले हाथ धोने से फ़ख़्र (निर्धनता) कम होता है और खाने के बाद हाथ धोने से ग़ुस्सा (क्रोध) ।
४. क़र्ज़ कम करो ताकि आज़ाद रहो और गुनाह (पाप) कम करो ताकि मौत में आसानी हो।
५. हमेशा नेक काम करो ताकि फ़ायदा उठाओ बुरी बातों से परहेज़ (बचो) करो ताकि हमेशा महफ़ूज़ (सुरक्षित) रहो।
६. ताअत (अनुसरण) व क़नाअत (आत्मसंतोष) बे नियाज़ी (बे परवाही) और इज़्ज़त का बायस है और गुनाह व लालच बदबख़्ती (अभाग्य) और ज़िल्लत का मोजिब (कारण) है।
७. जिस लज़्ज़त में अन्जाम कार पशेमानी हो नेकी नहीं।
८. दुनिया फ़क़त दो आदमियों के लिये बायसे ख़ैर (शुभ होने का कारण) है एक वह जो नेक आमाल में रोज़ इज़ाफ़ा करे ,दूसरा वह जो गुज़िश्ता गुनाहों (भूतकालीन पाप) की तलाफ़ी तौबा (प्रायश्चित) के ज़रिये करे।
९. अक़लमन्द वह है जिसका किरदार (चरित्र) उसकी गुफ़्तार (कथन) की तसदीक़ (प्रमाणित) करे और लोगों से नेकी का बर्ताव (व्यवहार) करे।
१०. बदतरीन शख़्स वह जो अपने को बेहतरीन (अच्छा) शख़्स ज़ाहिर करे।
११. अपने दोस्त के दुश्मनों से रफ़ाक़त (मित्रता) मत करो वरना अपने दोस्त को गवाँ (खो) दोगे।
१२. हर काम को उसके वक़्त (समय) पर अन्जाम (पूरा करो) दो जल्दबाज़ी से परहेज़ (बचो) करो।
१३. बड़े गुनाहों का कफ़्फ़ारा (रहजाना) बेकसों की मदद और ग़मज़दो की दिलजूई में है।
१४. जो दिन गुज़र गया वह तो पलट कर आयेगा नहीं और आने वाले कल पर भरोसा किया नहीं जा सकता।
१५. हर इन्सान अपनी ज़बान के नीचे पोशीदा (छिपा) है जब बात करता है तो पहचाना जाता है।
१६. माहे मुबारक रमज़ान के रोज़े अज़ाबे इलाही के लिये ढाल हैं।
१७. काहिली से बचो (क्योंकि) काहिल अपने हुक़ूक़ (हक़ का बहु वचन) अदा नहीं कर सकता।
१८. तुम में सबसे ज़्यादा अक़्लमन्द (बुध्दिमान) वह है जो नादानों (अज्ञानियों) से फ़रार ( दूर भागे) करे।
१९. बुज़ुर्गों (अपने से बड़ों का) का एहतेराम (आदर) करो क्योंकि उनका एहतेराम (आदर) ख़ुदा की इबादत (तपस्या) के मानिन्द (तरह) है।
२०. सिल्हे रहम (अच्छा सुलूक) घरों की आबादी और तूले उम्र (दीर्घायु) का बायस (कारण) है।
२१. इसराफ़ (अपव्यय) में नेकी (अच्छाई) नहीं और नेकियों में इसराफ़ का वुजूद (अस्तित्व) नहीं।
२२. जिस मामले में पूरी वाक़्फ़ियत (जानकारी) नहीं उसमें दख़्ल मत दो वरना (मौक़े की ताक में रहने वाले) बुरे और बदकिरदार (दुष्कर्मी) लोग तुमकों मलामत का निशाना बनायेंगे।
२३. हमेशा लोगों से सच बोलो ताकि सच सुनों (याद रखो) सच्चाई तलवार से भी ज़्यादा तेज़ है।
२४. लोगों से मुआशेरत (अच्छा रहन सहन) निस्फ़ (आधा) ईमान है और उनसे नर्म बर्ताव आधी ज़िन्दगी।
२५. ज़ुल्म (अन्याय) फ़ौरी (तुरन्त) अज़ाब का बायस है।
२६. नागहानिए हादसात (अचानक घटनायें) से बचाने वाली कोई चीज़ दुआ से बेहतर नहीं ।
२७. मुनाफिक़ (जिसका अन्दरुनी और बाहरी व्यवहार में अन्तर हो ) से भी ख़ुश अख़लाक़ी से बात करो ।
२८. मोमिन से दोस्ती में ख़ुलूस पैदा करो ।
२९. हक़ (सत्य) के रास्ते (पथ) पर चलने के लिए सब्र का पेशा इख़्तियार करो ।
३०. ख़ुदावन्दे आलम मज़लूमों (जिनके साथ अन्याय किया गया हो) की फ़रयाद को सुनता है और सितमगारों (जिन्होंने ज़ुल्म किया हो) के लिए कमीनगाह में है ।
३१. सलाम और ख़ुश गुफ़्तारी गुनाहों से बख़्शिश (मुक्ति) का बायस (कारण) है।
३२. इल्म (ज्ञान) हासिल (प्राप्त) करो ताकि लोग तुम्हें पहचानें और उस पर अमल करो ताकि तुम्हारा शुमार ओलमा (ज्ञानियों) में हो।
३३. इबादते इलाही में ख़ास ख़्याल रखो आमाले ख़ैर (शुभकार्य) में जल्दी करो और बुराईयों से इज्तेनाब (बचो) करो।
३४. जब कोई मरता है तो लोग पूछते हैं क्या छोड़ा लेकिन जब फ़रिश्ते (ईश्वरीय दूत) सवाल करते हैं क्या भेजा ?
३५. बेहतरीन इन्सान वह है जिसका वजूद दूसरों के लिये फ़ायदा रसां (लाभकारी) हो।
३६. क़ायम आले मोहम्मद (अ.स.) वह इमाम हैं जिनको ख़ुदावन्दे आलम तमाम मज़ाहब पर ग़लबा ऐनायत (प्रदान) करेगा।
३७. खाना ख़ूब चबाकर खाओ और सेर होने से पहले खाना छोड़ दो।
३८. ख़ालिस इबादत (सच्चे मन से तपस्या) यह है कि इन्सान ख़ुदा के सिवा किसी से उम्मीदवार न हो और अपने गुनाहों के अलावा किसी से डरे नहीं।
३९. उजलत (जल्दी) हर काम में नापसन्दीदा मगर रफ़े शर (बुराई को दूर करने में) में।
४०. जिस तरह इन्सान अपने लिये तहक़ीराना (अनादर) लहजा नापसन्द करता है दूसरों से भी तहक़ीराना (अनादर) लहजे में गुफ़्तगू (बात चीत) न करे।
शहादत (स्वर्गवास)
हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम की शहादत सन् 114 हिजरी मे ज़िलहिज्जा मास की सातवीँ (7) तिथि को सोमवार के दिन हुई। बनी उमैय्या के ख़लीफ़ा हश्शाम पुत्र अब्दुल मलिक के आदेशानुसार एक षड़यन्त्र के अन्तर्गत आपको विष पान कराया गया। शहादत के समय आपकी आयु 57 वर्ष थी।
समाधि
हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम की समाधि पवित्र शहर मदीने के जन्नातुल बक़ी नामक कब्रिस्तान मे है। प्रत्येक वर्ष लाखो श्रृद्धालु आपकी समाधि पर सलाम व दर्शन हेतू जाते हैं।
हौजा इल्मिया सिर्फ दर्स व तदरीस का मरकज़ नहीं है, बल्कि एक बौद्धिक और नैतिक क्रांति की नींव
हुज्जतुल-इस्लाम वा मुस्लेमीन सय्यद अकील अल-गरवी ने मरकजी इमाम बाड़ा बडगाम में चेहलुम सभा को संबोधित करते हुए कहा कि हौजा इल्मिया सिर्फ दर्स व तदरीस का केंद्र नहीं है, बल्कि बौद्धिक और नैतिक क्रांति की नींव भी है। शिक्षकों को छात्रों के दिमाग और चरित्र के विकास को अपना आदर्श वाक्य बनाना चाहिए।
जम्मू-कश्मीर राज्य के धर्म प्रचारक, धर्म रक्षक और प्रमुख धर्मगुरू आयतुल्लाह आगा सैयद मुहम्मद बाकिर अल-मूसवी अल-सफ़वी अल-नजफ़ी के चेहलुम के अवसर पर मरकज़ी इमाम बाड़ा बडगाम में मजलिस का आयोजन किया गया, जिसमें हज़ारों लोगों ने भाग लिया। जलसे की शुरुआत पवित्र कुरान की तिलावत से हुई, जिसके बाद मुख्य ज़ाकिरीन ने मरसिया पढ़ा। इसके बाद बा जमाअत ज़ुहर की नमाज़ अदा की गई। नमाज़ के बाद एक मजलिस का आयोजन किया गया, जिसमें भारत के प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित धार्मिक विद्वान हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद अकील अल-ग़रवी ने मजलिस को संबोधित किया। उन्होंने “ज्ञान, अस्तित्व और मानव विकास” विषय पर गहन और व्यावहारिक बिंदु प्रस्तुत किए।
उन्होंने कहा: “आप जीवित रहने के लिए बनाए गए हैं, विनाश के लिए नहीं।” उन्होंने स्पष्ट किया कि जीवित रहने की शर्त गति है, और एक व्यक्ति या राष्ट्र जो ठहराव का शिकार हो जाता है, वह जीवित रहने की अपनी क्षमता खो देता है। उन्होंने जोर दिया: “ज्ञान ठहराव से परिचित नहीं है; यह निरंतर गति और विस्तार का नाम है।”
पवित्र कुरान का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा: “कुरान कहता है कि एक दिल है जिसके लिए हमें भेजा गया है।” यह इस बात का प्रमाण है कि रहस्योद्घाटन उन दिलों में आता है जो शुद्ध, जागृत और सक्रिय हैं।
शिक्षा के प्रचार में शब्दावली के महत्व पर प्रकाश डालते हुए मौलाना अल-ग़रवी ने कहा: “ज्ञान और शिक्षा के विकास के लिए स्पष्ट शब्दावली आवश्यक है। जब तक अवधारणाएँ व्यवस्थित नहीं होती हैं, ज्ञान आगे नहीं बढ़ता है।”
उन्होंने कहा: "ज्ञान में ठहराव नहीं आता। व्यक्ति को शैक्षणिक और व्यावहारिक दोनों स्तरों पर निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए।" उन्होंने युवाओं और बुद्धिजीवियों को संदेश दिया कि ज्ञान को सैद्धांतिक स्तर तक सीमित न रखें, बल्कि इसके सिद्धांतों को व्यावहारिक जीवन में भी लागू करें।
मजलिस चेहलुम में भाग लेने से पहले, हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लिमीन सैयद अकील अल-गरवी ने अंजुमन शरई शिया के अध्यक्ष हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लिमीन आगा सैयद हसन अल-मूसवी अल-सफवी के निमंत्रण पर मदरसा जामिया बाब-उल-इल्म मीरगुंड, बडगाम का संक्षिप्त लेकिन महत्वपूर्ण दौरा किया। इस अवसर पर मौलाना अल-गरवी का जामिया बाब-उल-इल्म के शिक्षकों और मकतबा अल-जहरा, हसनाबाद, श्रीनगर के प्रशासकों द्वारा गर्मजोशी से स्वागत किया गया।
इस अवसर पर हुज्जतुल इस्लाम आगा सैयद मुजतबा अब्बास अल-मूसवी अल-सफवी ने मौलाना अल-गरवी के समक्ष बड़गाम के मूसवी परिवार के महान विद्वानों की धार्मिक एवं सामाजिक सेवाओं पर एक व्यापक प्रस्तुति दी। इसके साथ ही अंजुमन शरिया शिया की धार्मिक, कल्याणकारी, शैक्षिक एवं सामाजिक पहलों एवं सेवाओं पर एक दृश्य एवं बौद्धिक रेखाचित्र भी प्रस्तुत किया गया, जिसकी मौलाना अल-गरवी ने सराहना की। इस दौरान मौलाना अल-गरवी ने शिक्षकों एवं वर्तमान विद्वानों के साथ एक प्रभावी एवं व्यावहारिक चर्चा की। उन्होंने धार्मिक एवं शैक्षिक क्षेत्रों में कार्यरत विद्वानों को नसीहत देते हुए कहा: "हौज़ा ए -इल्मिया केवल दर्स व तदरीस का केंद्र ही नहीं है, बल्कि बौद्धिक एवं नैतिक क्रांति की नींव भी है, यहीं से राष्ट्रों की नियति का निर्माण होता है।"
कुरान की शिक्षाओं के प्रचार-प्रसार पर जोर देते हुए उन्होंने कहा: "शिक्षकों को छात्रों के मन एवं चरित्र निर्माण को अपना आदर्श वाक्य बनाना चाहिए।" मौलाना अलगघरवी ने अंजुमन शरई शिया एसोसिएशन के प्रयासों की सराहना की और कहा: "धार्मिक संस्थाओं का विकास और जमीनी स्तर पर उनका प्रभाव तभी मजबूत होगा जब वे शिक्षा, सेवा और नेतृत्व के सिद्धांतों को एक साथ अपनाएंगे।"
तलाक़ से बड़ी कोई मुसीबत और कोई घातक बीमारी नहीं
आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी आमोली ने अपने एक लिखित बयान में इस्लामी समाजों पर तलाक़ के ख़तरनाक प्रभावों को रेखांकित किया है।
आयतुल्लाहिल उज़मा जवादी आमोली ने अपने एक लिखित बयान में इस्लामी समाजों में तलाक़ के खतरनाक प्रभावों पर प्रकाश डालते हुए फरमाया,तलाक़ से बढ़कर कोई मुसीबत और कोई जानलेवा बीमारी (नासूर) नहीं है।
आप तलाक़ से संबंधित रिवायतों का अध्ययन कीजिए, उनमें कहा गया है कि वह घर जो तलाक़ की वजह से बर्बाद हो जाए, वह आसानी से दोबारा आबाद नहीं होता।
(वसायल शिया जिल्द 18, पृष्ठ 30)
उन्होंने तलाक़ के बढ़ते रुझान का दोष बाहरी (गैर-इस्लामी) सांस्कृतिक प्रभावों को देते हुए कहा,इस पराई संस्कृति ने तलाक़ को आम बना दिया है! आइए, निकाह की ओर रुख कीजिए, परिवार बनाईए, बाप बनिए, माँ बनिए और औलाद की नेमत प्राप्त कीजिए।
क्या आप नहीं चाहते कि आप हमेशा बाक़ी रहें?! तो फिर एक नेक सुलूक औलाद, जो आपके लिए दुआ करेगा, वह आपको हमेशा ज़िंदा रखेगा।"
(अल-काफी, जिल्द 7, पृष्ठ 56)
आयतुल्लाह जवादी आमली ने ज़ोर देते हुए कहा,ख़ुदा की हिकमतभरी मर्ज़ी यही है कि वह समाज को पारिवारिक उसूलों की बुनियाद पर महफूज़ रखे।
किताब "ईमान बह राहे इमाम खुमैनी रह." की रूनुमाई
क़ुम में आयोजित एक सभा इमाम खुमैनी रह.की सोच में ईमान और उम्मीद इमाम ख़ामेनेई की दृष्टि से" के अवसर पर किताब "ईमान बह राहे इमाम खुमैनी (रह.) और चुनिंदा मक़ालात का लोकार्पण किया गया।
क़ुम के मदरसा आली दारुलशिफा में आयोजित सम्मेलन के पहले दिन किताब ईमान बह राहे इमाम खुमैनी (रह.) का लोकार्पण
मदरसा आली दारुलशिफा क़ुम में आयोजित एक सम्मेलन इमाम खुमैनी (र.ह.) में ईमान और उम्मीद इमाम ख़ामेनेई की सोच में के पहले दिन किताब "ईमान बह राहे इमाम खुमैनी (रह.) और इस सम्मेलन में चयनित वैज्ञानिक (इल्मी) लेखों का औपचारिक लोकार्पण किया गया।
इस अवसर पर सम्मेलन की केंद्रीय समिति के प्रमुख हुज्जतुल इस्लाम मुस्तफा निगारशी ने कहा,इस शैक्षणिक सम्मेलन में 30 से अधिक लेख अंतिम समीक्षा के चरण तक पहुँचे हैं, जो इस बात का प्रमाण है कि विद्वान और बौद्धिक वर्ग इमाम खुमैनी (रह.) और इमाम ख़ामेनेई के विचारों की गहराई को कितनी गंभीरता से ले रहा है।
उन्होंने आगे कहा,क़ुम की वैज्ञानिक क्षमता इमाम राहिल (रह.) और रहबर-ए-मुअज़्ज़म इंक़ेलाब के विचारों की व्याख्या और विस्तार के लिए एक बहुमूल्य पूंजी है। इस समय क़ुम में लगभग 40 शैक्षणिक और शोध संस्थान इमामे इंक़ेलाबैन (दोनों इमामों) के विचारों के प्रसार और विश्लेषण में सक्रिय रूप से कार्य कर रहे हैं।
इमाम राहिल (र.ह.) का चरित्र और जीवनशैली
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन हुसैनज़ादेह ने कहा कि इस्लामी क्रांति की निरंतर प्रगति के लिए इमाम खुमैनी (र.ह.) के विचारधारा की स्पष्ट व्याख्या बेहद आवश्यक है।
क़ुरआनी शोधकर्ता और लेखक हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद मोहम्मद मेहदी हुसैनज़ादेह ने तेहरान में हौज़ा न्यूज़ से बातचीत के दौरान कहा,इमाम खुमैनी (रह.) एक बहुआयामी और संपूर्ण व्यक्तित्व के मालिक थे, जिनके विभिन्न पहलुओं का अध्ययन एक गंभीर शैक्षणिक और शोध कार्य की मांग करता है।
जिसे दिनी मदरसों और विश्वविद्यालयों में दीर्घकालिक योजनाओं के अंतर्गत अंजाम दिया जाना चाहिए।इमाम रहमतुल्लाह अलैह की याद, जीवनी और जीवनशैली का परिचय समाज में धर्मपरस्ती और क्रांतिकारी भावना को ज़िंदा रखने का एक प्रभावशाली माध्यम है।
उन्होंने इमाम खुमैनी र.ह.के क़ुरआनी व्यक्तित्व पर ज़ोर देते हुए कहा,इस्लामी क्रांति के महान नेता क़ुरआन के एक व्याख्याकार (मुफस्सिर) थे, और विलायत-ए-फक़ीह जैसे विषय की विद्वत्तापूर्ण व्याख्या भी उनकी इसी क़ुरआनी सोच का प्रतीक है।
इमाम खुमैनी (र.ह.) की तफ़सीरी कृतियाँ उनके गंभीर और गहरे क़ुरआनी ज्ञान की स्पष्ट मिसाल हैं।इस्लामी गणराज्य की प्रणाली में उनकी लोकप्रियता का कारण भी उनका क़ुरआनी व्यक्तित्व ही था।
हुज्जतुल इस्लाम हुसैनज़ादा ने आगे कहा,इमाम खुमैनी (रह.) ने हमेशा क़ुरआन के आधार पर जनता को विशेष महत्व दिया और उन्हें "वली-ए-नेमत समझा वे शासन और चुनाव की हर प्रक्रिया में जनता की उपस्थिति को निर्णायक मानते थे।इसी कारण इमाम खुमैनी (रह.) ने संसद मजलिस को सभी मामलों की बुनियाद और मूल करार दिया।
उन्होंने कहा,इमाम खुमैनी (रह.) के मकतब की व्याख्या इस्लामी क्रांति की निरंतर प्रगति के लिए बहुत ज़रूरी है।इस सिलसिले में सबसे अच्छा रास्ता यह है कि हम रहबर-ए-मुअज़्ज़म आयतुल्लाह ख़ामेनेई के बयानों और भाषणों का गहराई से अध्ययन करें।
ख़ासकर वे भाषण जो इमाम खुमैनी (रह.) की सालाना बरसी के अवसर पर दिए जाते हैं, क्योंकि उनमें इमाम खुमैनी (रह.) के विचारों और मकतब की एक संपूर्ण और गहन व्याख्या मौजूद होती है।
हमास अब भी शक्ति की स्थिति में जबकि इज़राइल पहले जैसा सशक्त नहीं रहा
कुछ ज़ायोनी अधिकारियों का कहना है कि फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध पर अभूतपूर्व दबाव है जबकि ज़ायोनी मीडिया के विश्लेषक एक अलग नजरिए से जोर देते हैं कि हमास अभी भी ज़ोरदार तरीके से लड़ाई जारी रखे हुए है और उसमें गिरावट या आत्मसमर्पण के कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं।
यदीओत अहारोनोत अखबार के विश्लेषक अविव यिसाखरोफ ने अमेरिका के पश्चिम एशिया क्षेत्र के विशेष दूत स्टीव व्हिटकॉफ़ द्वारा दिए गए प्रस्ताव के बारे में हमास की हालिया प्रतिक्रिया पर कहा: हमास का जवाब स्पष्ट रूप से दिखाता है कि इज़राइल के अंदर कुछ दावों के विपरीत, जिनमें कहा जाता है कि हमास भारी दबाव में है और गिरावट के करीब है, ऐसा कुछ अभी तक नहीं हुआ है।
उन्होंने स्वीकार किया कि हमास ने अभी तक आत्मसमर्पण करने या अपने हथियार छोड़ने का कोई संकेत नहीं दिखाया है।
इसी संदर्भ में, इस अखबार के एक अन्य विश्लेषक "असाओ मीडानी" ने इज़राइली शासन की आंतरिक स्थिति को बेहद नाज़ुक बताया और कहा:
समस्या यह है कि इज़राइल अब और महीनों तक इस गतिरोध को सहन करने में सक्षम नहीं है न सैन्य क्षेत्र में, न दक्षिणी और उत्तरी इलाक़ों के पुनर्निर्माण में, न आंतरिक राजनीतिक मोर्चे पर और न ही पश्चिमी दबावों के सामने।
उन्होंने आगे कहा: ये सभी समस्याएँ तब और गहरी हो गई हैं जब इज़राइल के प्रधानमंत्री बिनयामिन नेतन्याहू का एकमात्र लक्ष्य अपनी राजनीतिक सत्ता की स्थिरता बनाए रखना है।
ये आकलन ऐसे समय में सामने आए हैं जब हमास और इज़राइली शासन के बीच संघर्ष विराम और बंधकों के आदान-प्रदान को लेकर वार्ता का गतिरोध जारी है और अमेरिका की मध्यस्थता अभी तक कोई ठोस परिणाम नहीं ला सकी है। इसी बीच, हमास ने अमेरिका के हालिया प्रस्ताव का जवाब देते हुए अपनी मुख्य मांगों पर दृढ़ता दिखाई है, खासकर स्थायी संघर्ष विराम और घेराव व प्रतिबंध हटाने की जबकि तेल अवीव ने अब तक ऐसी शर्तें मानने से इंकार किया है।
हमास ने शनिवार की शाम घोषणा की कि उसने ग़ज़ा में संघर्ष विराम स्थापित करने के लिए विटकॉफ़ के प्रस्ताव का जवाब दिया है।
वहीं, स्टीव विटकॉफ़ ने हमास के जवाब को "पूरी तरह अस्वीकार्य" बताया और दावा किया कि इस जवाब ने वार्ताओं को पिछली स्थिति में वापस लौटा दिया है।
फिर भी, हमास ने प्रस्ताव अस्वीकार करने के आरोप को खारिज करते हुए कहा है: "हमारा जवाब बिल्कुल चर्चा के तहत समझौते के दायरे में था, लेकिन इज़राइली शासन ने ऐसे जवाब दिया जो समझौते की शर्तों के विपरीत था।"
हमास ने एक आधिकारिक बयान में स्पष्ट किया कि "विटकॉफ़ का हमास के प्रति रुख़ अन्यायपूर्ण और पूरी तरह पक्षपाती रहा है और उसने मध्यस्थ के रूप में आवश्यक निष्पक्षता का उल्लंघन किया है।
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम के नज़दीक सआदत के चार राज़
हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने नहजुल बलाग़ा की हिकमत नंबर 44 में चार अहम सिफ़ात को सआदत और कामयाबी की बुनियाद क़रार दिया है यह मुख़्तसर मगर बलीग़ जुमले किसी भी मोमिन की ज़ेहनी और अमली ज़िंदगी के लिए मुकम्मल रहनुमाई करते हैं।
हज़रत इमाम अली (अ.स.) ने नहजुल बलाग़ा की हिकमत नंबर 44 में चार ख़ास सिफ़तों (गुणों) को इंसान की खुशबख़्ती और कामयाबी की बुनियाद बताया है। ये मुख़्तसर लेकिन असरदार जुमले एक मोमिन की सोच और अमल दोनों के लिए मुकम्मल रहनुमाई करते हैं:
«طُوبَی لِمَنْ ذَکَرَ الْمَعَادَ، وَ عَمِلَ لِلْحِسَابِ، وَ قَنِعَ بِالْکَفَافِ، وَ رَضِیَ عَنِ اللَّهِ»
बशारत है उस इंसान के लिए जो आख़िरत को याद रखता है,हिसाब के लिए अमल करता है,कम में क़नाअत करता है,और अल्लाह के फैसले से राज़ी रहता है।
- याद-ए-मआद (आख़िरत की याद):
जो शख़्स हमेशा आख़िरत को याद रखता है और यह यक़ीन रखता है कि एक दिन उसके तमाम आमाल का हिसाब लिया जाएगा, वह गुनाहों से बचता है और नेकी की तरफ़ झुकता है।
आख़िरत का यक़ीन इंसान के दिल में अल्लाह का डर पैदा करता है और उसे किरदार वाला इंसान बनाता है।
- हिसाब के लिए अमल करना:
यानि इंसान अपने हर काम को इस नीयत से करे कि कल क़यामत के दिन इसका जवाब देना होगा।यह ईमान केवल ज़बानी इक़रार नहीं, बल्कि अमल पर आधारित होता है।इमाम जाफ़र सादिक़ (अ.स.) फ़रमाते हैं:ईमान सिर्फ़ बोलने का नाम नहीं, बल्कि पूरा का पूरा अमल है।
- क़नाअत (संतोष):
खुशक़िस्मत इंसान वह है जो अपनी बुनियादी ज़रूरतों के मुताबिक़ जो कुछ मिल जाए, उसी में संतुष्ट रहे।क़नाअत दिल का सुकून है और इंसान को लालच और तामाअ से बचाती है।
रसूल-ए-अकरम स.अ. ने फ़रमाया:थोड़ा हो लेकिन काफ़ी हो, ये बेहतर है उस दौलत से जो ज़्यादा हो मगर इंसान को ग़ाफ़िल बना दे।
- रज़ा बिल क़ज़ा (अल्लाह के फैसले पर राज़ी रहना):
अल्लाह के हर फैसले पर दिल से राज़ी रहना, चाहे वो हमारे हक़ में हो या खिलाफ़।
इमाम सादिक़ (अ.स.) ने इसे फ़रमाया:अल्लाह की इताअत (आज्ञा पालन) की सबसे ऊँची मंज़िल, अल्लाह के फैसलों पर राज़ी रहना है।
नतीजा:यह चार बुनियादी उसूल,आख़िरत की याद,हिसाब के लिए अमल,क़नाअत,और रज़ा बिल क़ज़ा,एक इंसान को न केवल दुनिया में सुकून और तसल्ली देते हैं, बल्कि उसे आख़िरत में भी कामयाबी दिलाते हैं।
जो इंसान इन उसूलों पर अमल करता है, वही असली मायनों में "खुशबख़्त" है।
वाशिंग्टन की पुरानी चाल: चीन को ख़तरा बताकर देकर एशिया को ज़्यादा हथियार बेचना
अमेरिकी रक्षा मंत्री पिट हेगस्ट ने एशिया में हथियारों की बिक्री बढ़ाने के अपने देश के इरादे को ज़ाहिर करते हुए कहा है कि चीन के खतरों का सामना करने के लिए अमेरिका के एशियाई सहयोगियों को अपनी रक्षा और सैन्य खर्च बढ़ाना चाहिए।
पिट हेगस्ट ने शनिवार को चेतावनी दी कि चीन का ख़तरा वास्तविक और निकट भविष्य में हो सकता है। उन्होंने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका के सहयोगियों को अपनी रक्षा जरूरतों के लिए अधिक खर्च करने के लिए प्रोत्साहित किया।
पहली बार सिंगापुर में आयोजित शांगरि-ला समिट में बोलते हुए हेगस्ट ने जोर देकर कहा कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की सरकार के लिए प्राथमिकता वाला क्षेत्र है।
चीन के खिलाफ अपने एक कड़े बयान में उन्होंने कहा: "इस ख़तरे को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने की जरूरत नहीं है। चीन द्वारा उत्पन्न ख़तरा वास्तविक है और निकट भविष्य में हो सकता है।"
उन्होंने आगे कहा कि चीन की ताइवान पर कब्ज़ा करने की कोई भी कोशिश हिंद-प्रशांत क्षेत्र और दुनिया के लिए विनाशकारी परिणाम लेकर आएगी।
चीन ताइवान को अपनी भूमि का हिस्सा और अपना अंग मानता है और उसने वादा किया है कि जरूरत पड़ी तो बल का इस्तेमाल करके इस स्वायत्त द्वीप को "फिर से एकीकृत" करेगा। बीजिंग ने ताइवान के आस-पास युद्ध अभ्यासों की संख्या और तीव्रता भी बढ़ा दी है।
ताइवान की सरकार बीजिंग के क्षेत्रीय दावों को अस्वीकार करती है और कहती है कि इस द्वीप के भविष्य के बारे में केवल इसके निवासी ही निर्णय ले सकते हैं।
हेगस्ट ने कहा: "यह सभी के लिए स्पष्ट होना चाहिए कि बीजिंग विश्वसनीय रूप से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सैन्य बल के संभावित इस्तेमाल की तैयारी कर रहा है ताकि शक्ति संतुलन को बदला जा सके।"
उन्होंने इससे पहले यूरोपीय सहयोगियों की आलोचना की थी कि वे अपनी रक्षा के लिए अधिक खर्च नहीं कर रहे हैं। फरवरी में, उन्होंने ब्रसल्स में नाटो मुख्यालय में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यूरोप को चेतावनी दी थी कि अमेरिका के साथ मूर्खतापूर्ण व्यवहार न करें।
इसी बीच, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रां ने शुक्रवार को शांगरी-ला समिट में कहा कि हेगस्ट ने सही कहा है कि यूरोप को अपने रक्षा खर्च बढ़ाने चाहिए
अमेरिका ने भले ही 1979 में आधिकारिक तौर पर तीन संयुक्त घोषणाओं के तहत बीजिंग के साथ एक-चीन नीति को स्वीकार किया और ताइवान के साथ अपने राजनयिक संबंध तोड़ दिए, लेकिन हाल के वर्षों में अमेरिकी राष्ट्रपतियों ने इस नीति के विपरीत कदम उठाए हैं। उन्होंने ताइवान को सैन्य हथियार बेचे हैं, राजनयिक संपर्क बढ़ाए हैं और इस द्वीप के साथ संबंधों का विकास कर रहे हैं।
लेबनान की उच्च शिया परिषद के उपाध्यक्ष की लेबनानी सरकार पर कड़ी प्रतिक्रिया
लेबनान की उच्च शिया परिषद के उपाध्यक्ष हज़रत हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन शेख अली अलखतीब ने हालिया सरकारी कार्रवाइयों पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि शिया समुदाय लेबनान का एक बुनियादी और अटल हिस्सा है जो तत्व उन्हें हवाई अड्डों, बंदरगाहों और अन्य स्थानों से बाहर निकालने की कोशिश कर रहे हैं, वे वास्तव में देश को एक खतरनाक अंजाम की ओर धकेल रहे हैं।
लेबनान की उच्च शिया परिषद के उपाध्यक्ष हज़रत हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन शेख अली अलखतीब ने हालिया सरकारी कार्रवाइयों पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि शिया समुदाय लेबनान का एक बुनियादी और अटल हिस्सा है जो तत्व उन्हें हवाई अड्डों, बंदरगाहों और अन्य स्थानों से बाहर निकालने की कोशिश कर रहे हैं, वे वास्तव में देश को एक खतरनाक अंजाम की ओर धकेल रहे हैं।
उन्होंने कहा कि आज लेबनान की सरकार देश की असल समस्याओं जैसे सियोनी कब्ज़ा, लगातार हो रही आक्रामकता, और संयुक्त राष्ट्र की प्रस्ताव 1701 के लागू करने से आंखें मूंदे हुए है, लेकिन पूरा ध्यान केवल प्रतिरोध और उसके हथियारों पर केंद्रित है। उनका कहना था कि सरकार दक्षिणी लेबनान के लोगों को निशाना बना रही है और यात्रियों के बहाने शिया समुदाय को सीमित कर रही है, जो कि बिलकुल अस्वीकार्य है।
शेख अलखतीब ने उन लोगों की भी कड़ी आलोचना की जो जानबूझकर प्रतिरोध और आतंकवाद के बीच अंतर को नज़रअंदाज़ करते हैं या बाहरी ताकतों को खुश करने के लिए ऐसा करते हैं।
उन्होंने कहा कि जो लोग शिया समुदाय को राजनीतिक और सामाजिक समीकरण से बाहर करना चाहते हैं, वे या तो भटकाव में हैं या जानबूझकर लेबनान को बर्बादी की ओर ले जा रहे हैं, क्योंकि शिया न तो झुकेंगे न चुप रहेंगे।
उन्होंने कहा कि शिया समुदाय कर्बला के अनुयायी हैं और अपनी शान और सम्मान पर कभी समझौता नहीं करेंगे।हम सब मर सकते हैं, लेकिन कभी भी हार नहीं मानेंगे।
शेख अलखतीब ने सरकार को चेतावनी दी कि बाहरी ताकतों की मदद लेकर दबाव डालने, घेराव करने और शिया समुदाय को हाशिए पर डालने की जो नीति पहले असफल रही है, वह अब भी सफल नहीं होगी। अंत में उन्होंने जोर देकर कहा कि अगर देश को बचाना है तो शिया समुदाय को बाहर निकालने की बजाय उनके साथ न्याय और सम्मान से पेश आना होगा।
यूरेनियम को जमा करना हमारा राष्ट्रीय अधिकार है। उच्च अधिकारी
ईरान की परमाणु ऊर्जा एजेंसी के प्रमुख ने कहा कि देश और अमेरिका के बीच अप्रत्यक्ष परमाणु वार्ताओं में कुछ हद तक प्रगति हुई है लेकिन यूरेनियम को जमा करने में हम अपने राष्ट्र का पालन करेंगे
ईरान की परमाणु ऊर्जा एजेंसी के प्रमुख मोहम्मद इस्लामी ने कहा कि अमेरिका के साथ चल रही अप्रत्यक्ष बातचीत में कुछ सकारात्मक प्रगति देखने को मिली है।
उन्होंने यूरेनियम संवर्धन को देश की राष्ट्रीय नीति करार देते हुए कहा कि यह विषय वार्ताओं के एजेंडे का हिस्सा नहीं है। इस्लामी ने कहा कि इस मुद्दे पर अमेरिकी बयानों के पीछे यहूदी लॉबी का प्रभाव हो सकता है, जो वार्ताओं की प्रक्रिया को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहा है।
इससे पहले शनिवार को ईरानी विदेश उप मंत्री अब्बास अराक़ची ने कहा था कि वाशिंगटन के साथ परमाणु वार्ताओं में तेहरान का रुख 'दबाव और वर्चस्व की राजनीति को अस्वीकार करना' है।
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि केवल अपने संदेहों के आधार पर कोई भी ईरानी जनता को उसके वैध अधिकारों से वंचित नहीं कर सकता।
इस्लामी ने कहा कि ईरान, देश के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई के मार्गदर्शन में दृढ़ता के साथ आगे बढ़ता रहेगा।ईरान और अमेरिका के बीच शुक्रवार को इटली की राजधानी रोम में ओमान की मध्यस्थता से बातचीत का पांचवां दौर आयोजित हुआ।