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लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हिज़्बुल्लाह के महासचिव ने कहा: अगर प्रतिरोध की दृढ़ता न होती, तो ज़ायोनी शासन अपना आक्रमण जारी रखता।

हिज़्बुल्लाह के महासचिव शैख़ नईम क़ासिम ने शुक्रवार रात को एक भाषण में कहा कि दक्षिणी सीमाओं (मक़बूज़ा फिलिस्तीनी क्षेत्रों की सीमाओं) पर लेबनानी प्रतिरोध ने इज़राइल को रोक दिया और इज़राइल को अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने से रोक दिया।

उन्होंने कहा: हिज़्बुल्लाह ने इज़राइली सेना को आगे बढ़ने से रोका और इज़राइल को सहमत होने के लिए मजबूर किया और अगर प्रतिरोध की दृढ़ता नहीं होती, तो ज़ायोनी शासन ने (दक्षिणी लेबनान पर) अपना आक्रमण जारी रखा होता।

लेबनान के हिजबुल्लाह के महासचिव ने कहा: "इजराइली शासन विस्तारवादी है और वह फिलिस्तीन पर क़ब्ज़े से संतुष्ट नहीं है, बल्कि लेबनान पर भी कब्जा करना चाहता है।

उन्होंने कहा कि हिज़्बुल्लाह ने युद्ध विराम समझौते का पूरी तरह पालन किया है। उन्होंने कहा, युद्ध विराम समझौते के बाद से ज़ायोनी शासन ने लेबनान पर 2 हज़ार 700 से अधिक बार हमला किया है।

लेबनान के हिज़्बुल्लाह के महासचिव ने कहा: "जब तक लेबनानी सेना और जनता के साथ प्रतिरोध खड़ा रहेगा, ज़ायोनी शासन अपने लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर पाएगा।"

शैख़ नईम कासिम का यह बयान ऐसे समय में आया है जब लेबनान में हिज़्बुल्लाह की कार्यकारी परिषद के उपाध्यक्ष अली दामूश ने शुक्रवार को एक भाषण में इस बात पर ज़ोर दिया कि लेबनान और क्षेत्र को तोड़ने वाला "कैंसर" इज़राइल है, जिसका समर्थन अमेरिका भी कर रहा है।

दामुश ने कहा: लेबनान में अमेरिका की उपस्थिति का मुख्य उद्देश्य इज़राइल की रक्षा करना और इस शासन को अपना प्रभुत्व मजबूत करने और क्षेत्र में अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करना है।

उन्होंने कहा कि "इज़राइल" लगातार युद्धविराम समझौते का उल्लंघन कर रहा है और लेबनानी नागरिकों पर हमला कर रहा है, जबकि अमेरिका लेबनान पर दबाव बनाने और अपनी मांगें थोपने के लिए इन हमलों का पूरा समर्थन करता है।

हिज़्बुल्लाह की कार्यकारी परिषद के डिप्टी ने इस बात पर जोर दिया कि जो कोई भी इज़राइली धमकियों के अंत और इस्राईल के हमलों को रोकने से पहले प्रतिरोध के निरस्त्रीकरण का आह्वान करता है, वह व्यावहारिक रूप से दुश्मन के लक्ष्यों को पूरा कर रहा है।

उन्होंने कहा: इस समय प्रतिरोध के निरस्त्रीकरण पर चर्चा करना लेबनान के हितों के विरुद्ध है और इससे देश की स्थिति और शक्ति कमज़ोर होगी।

लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हिज़्बुल्लाह की कार्यकारी परिषद के उपाध्यक्ष ने कहा: हम दिखावे और दबाव से प्रभावित नहीं होंगे और हम ऐसी धमकियों के आगे आत्मसमर्पण नहीं करेंगे।

 

मरहूम व मग़फ़ूर विनम्र स्वभाव और अत्यंत सादगी के साथ अपना जीवन दीन-ए-मुबीन की सेवा मकतब-ए-अहलेबैत अ.स. के प्रचार-प्रसार, समाज के सुधार और किताबें लिखने में व्यतीत किया उनका अस्तित्व ज्ञान, सहनशीलता और निष्ठा का एक सुंदर संगम था।

आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली हुसैनी सिस्तानी के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मौलाना सैयद अशरफ अली ग़रवी का शोक संदेश

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलाही राजी'उन

बेहद दुख और गहरे मातम के साथ यह खबर मिली कि अमल करने वाले आलिम, हुज्जतुल इस्लाम वाल मुस्लिमीन जनाब सैयद बाकिर अलमूसवी इस दुनिया से परलोक की ओर चले गए।

 

मरहूम बेहद विनम्र स्वभाव, मधुर भाषी और अत्यंत सादगी भरी ज़िंदगी जीने वाले थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन दीन-ए-मुबीन की सेवा, मकतब-ए-अहलेबैत (अ.स.) के प्रचार-प्रसार, समाज की सुधार और किताबें लिखने में बिताया।उनका अस्तित्व इल्म, तक़्वा, हिल्म (सहनशीलता) और इख़्लास (ईमानदारी) का एक सुंदर मिश्रण था।

मिम्बर-ए-हुसैनी पर उनकी गरजती आवाज़, मजलिस-ए-अज़ा में उनके प्रभावशाली भाषण और अहलेबैत (अ.स.) के इल्म को फैलाने वाली उनकी लेखनी हमेशा याद रखी जाएगी। उनके रहन-सहन से नजफ के उलेमा की खुशबू महसूस होती थी।

हुज्जतुल इस्लाम वाल मुस्लिमीन आलिमा आक़ा सैयद बाकिर अल-मूसवी (रहमतुल्लाह अलैह) की रिहलत न सिर्फ खानवादा-ए-इल्म बल्कि पूरी मिल्लत-ए-शिया के लिए एक बड़ा नुकसान है।

हम अल्लाह तआला से दुआ करते हैं कि वह मरहूम को मासूमीन अ.स. की सोहबत में बुलंद मकाम अता करे और उनके परिवार, शागिर्दों, मुरीदों व चाहने वालों को सब्र-ए-जमील व अज्र-ए-जज़ील अता फरमाए।

सैयद अशरफ अली अल ग़रवी

बाब-ए-नजफ, सज्जाद बाग कॉलोनी, लखनऊ

विश्व के 20 देशों के शिक्षकों, धार्मिक विद्वानों और गैरईरानी छात्रों की उपस्थिति में, मशहद स्थित जामिया अलमुस्तफा अलआलमिया के प्रतिनिधि कार्यालय में विश्व इस्लामी मदरसों के छात्रों का ग़ाज़ा के मज़लूम लोगों और प्रतिरोध मोर्चे के समर्थन तथा ज़ायोनी शासन के अत्याचारों के खिलाफ विरोध सम्मेलन आयोजित किया गया।

विश्व के 20 देशों के शिक्षकों, धार्मिक विद्वानों और गैरईरानी छात्रों की उपस्थिति में, मशहद स्थित जामिया अलमुस्तफा अलआलमिया के प्रतिनिधि कार्यालय में विश्व इस्लामी मदरसों के छात्रों का ग़ाज़ा के मज़लूम लोगों और प्रतिरोध मोर्चे के समर्थन तथा ज़ायोनी शासन के अत्याचारों के खिलाफ विरोध सम्मेलन आयोजित किया गया। 

आज शनिवार को जामिया अल-मुस्तफा खुरासान के प्रार्थना कक्ष में हुए इस सम्मेलन में अफ्रीका, पूर्वी एशिया, दक्षिण अमेरिका, अरब देशों और भारतीय उपमहाद्वीप के छात्र-छात्राओं ने भाग लिया विभिन्न भाषाएं बोलने वाले इन छात्रों ने एकजुट होकर फिलिस्तीनी जनता के प्रति अपना अटूट समर्थन व्यक्त किया। 

कुरान, किबला और न्याय के प्रति प्रेम ने विभिन्न संस्कृतियों, नस्लों और रंगों के छात्रों के दिलों को जोड़ा इस्राइल मुर्दाबाद और अमरीका मुर्दाबाद के नारों से पूरा हॉल गूंज उठा। छात्रों ने ज़ायोनी शासन के बच्चों को मारने वाले अत्याचारों की निंदा की और मुस्लिम व गैर-मुस्लिम देशों की खामोशी की कड़ी आलोचना की। 

समारोह के अंत में छात्र प्रतिनिधियों ने एक प्रस्ताव पढ़ा, जिसमें,प्रतिरोध मोर्चे, इस्लामी जागृति और  जिहाद-ए-तब्यीन (सत्य का प्रचार) के समर्थन को सभी मुसलमानों का वैश्विक कर्तव्य बताया गया ज़ायोनी शासन द्वारा ग़ज़ा के निर्दोष लोगों, विशेषकर महिलाओं, बच्चों और अस्पतालों पर हमलों को युद्ध अपराध और नरसंहार करार दिया गया।अंतरराष्ट्रीय संगठनों से इन अत्याचारों को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने की मांग की गई । 

बयान में वैश्विक समुदाय से ग़ाज़ा की घेराबंदी हटाने, चिकित्सा सहायता भेजने और अमेरिकी-इजरायली उत्पादों का बहिष्कार करने का आग्रह किया गया । 

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन हुसैनी ने कहा,वार्ताएं विदेश मंत्रालय के दर्जनों अन्य साधनों में से सिर्फ़ एक ज़मीनी साधन हैं, और परमाणु समझौते में जो पहले ग़लतियाँ हुई थीं उन्हें दोबारा नहीं दोहराया जाएगा।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद सईद हुसैनी ने मस्जिदे बक़ियतुल्लाहुल आज़म काशान में नमाज़े जुमा के खुतबों (उपदेशों) के दौरान भाषण देते हुए कहा,इस्लामी क्रांति की शुरुआत में मुनाफिक़ों और इस्लाम व व्यवस्था के दुश्मनों ने भी सेना को ख़त्म करने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी थी।

उन्होंने आगे कहा,इस्लामी क्रांति की जीत के सिर्फ़ एक दिन बाद ही सेना ने अमेरिका द्वारा ईरान में पैदा किए गए फित्नों (साज़िशों) का डटकर मुक़ाबला किया और एक अहम व बुनियादी भूमिका निभाई।

काशान के इमामे जुमा ने रहबर-ए-मआज़म (आयतुल्लाह ख़ामेनेई) के नौरोज़ के मौके पर सरकारी अधिकारियों से मुलाक़ात में ग़ज़्ज़ा को लेकर दिए गए अहम बयानों का ज़िक्र करते हुए कहा,दुश्मन ने निर्दयता की सभी हदें पार कर दी हैं और जब फसाद अपनी चरम सीमा तक पहुँचता है तो अल्लाह की ‘कोड़े वाली परंपरा’ लागू होती है।

हुज्जतुल इस्लाम हुसैनी ने कहा,इस्लामी दुनिया को आर्थिक, राजनीतिक और ज़रूरत पड़ने पर व्यवहारिक स्तर पर एकता और सामूहिक कदम उठाने की आवश्यकता है।

उन्होंने अमेरिका में ट्रंप की नीतियों और ईरान को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति की सोच का हवाला देते हुए कहा,हालिया बातचीत के बाद, अमेरिकी वित्त मंत्री ने दावा किया है कि ईरान पर अधिकतम दबाव डाला जाएगा ताकि उसकी ऊर्जा की निर्यात को शून्य तक पहुंचाया जा सके।हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन हुसैनी ने कहा,

आज अमेरिका की अपनी 50 रियासतों के साथ-साथ फ्रांस, कनाडा, जर्मनी, मैक्सिको, पुर्तगाल और तक़रीबन 1200 इलाक़ों में ट्रंप के ख़िलाफ़ जन आंदोलन (प्रदर्शन) हो रहे हैं।

गाज़ा में शुक्रवार तड़के इजराइली हवाई हमले में बच्चों सहित कम से कम 17 लोग मारे गए चिकित्सा कर्मियों ने यह जानकारी दी।

गाज़ा में शुक्रवार को इजराइली हवाई हमले में बच्चों सहित कम से कम 17 लोग मारे गए चिकित्सा कर्मियों ने यह जानकारी दी।

इंडोनेशियाई अस्पताल के चिकित्सा कर्मियों ने बताया कि मृतकों में शामिल 10 लोग जबालिया शरणार्थी शिविर से हैं। वहीं नासिर अस्पताल के कर्मियों ने बताया कि दक्षिणी शहर खान यूनिस में सात लोग मारे गए, जिनमें एक गर्भवती महिला भी शामिल है ये सातों शव इस अस्पताल में लाये गए थे।

इजराइली हमले तेज होने के बाद गाजा में एक दिन पहले दो दर्जन से अधिक लोग मारे गए थे।इजराइल में नियुक्त अमेरिका के राजदूत माइक हकाबी शुक्रवार को ‘वेस्टर्न वाल’ पहुंचे जो यरूशलम के पुराने शहर में यहुदियों का एक प्रमुख प्रार्थना स्थल है।

हकाबी ने दीवार पर एक प्रार्थना पत्र को भी संलग्न किया जिस बारे में उन्होंने बताया कि इसे अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने हाथों से लिखा है।

हकाबी ने बताया कि ट्रंप ने उन्हें यरूशलम में शांति के लिए उनके प्रार्थना पत्र को लेकर जाने को कहा था। हकाबी ने यह भी कहा कि हमास की गिरफ्त में मौजूद शेष सभी बंधकों को वापस लाने के लिए हर कोशिश की जा रही है।

गाजा में 18 महीने से जारी युद्ध के महत्वपूर्ण समय में हकाबी का आगमन हुआ है। अमेरिका सहित अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थ युद्ध विराम को फिर से पटरी पर लाना चाहते हैं।इजराइल की मांग है कि हमास कोई युद्ध विराम शुरू होने से पहले और भी बंधकों की रिहाई करे और आखिरकार क्षेत्र को खाली करने के लिए सहमत हो।

इजराइल ने कहा है कि उसकी योजना गाजा के अंदर बड़े ‘‘सुरक्षा क्षेत्रों पर अपना नियंत्रण स्थापित करने की है।हमास के वार्ता प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख खलील अलहय्या ने बृहस्पतिवार को कहा था कि समूह ने इजराइल के नवीनतम प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया है।

 हुज्जतुल इस्लाम इज़दी ने कहा, अगर अमेरिका का समर्थन न होता तो कई साल पहले ही इस्राइली ग़ासिब हुकूमत का नापाक वजूद खत्म हो चुका होता इस्लामी ईरान, जब और जहां भी ज़रूरत पड़ी, मजलूमों की हिमायत समर्थन में सबसे आगे रहा है।

कोहबनान के इमामे जुमआ हुज्जतुल इस्लाम हसन इज़दी ने इस शहर में जुमा के खुतबों के दौरान ग़ज़्ज़ा की स्थिति की तरफ़ इशारा करते हुए कहा,ग़ज़्ज़ा की अवाम तन्हा (अकेले) और मजलूमियत के साथ अपना बचाव कर रही है।

उन्होंने कहा,अमेरिका और ज़ायोनी हुकूमत पूरी दुनिया को जंगल के क़ानून और वहशियत (दरिंदगी) की तरफ़ ले जा रहे हैं, जबकि हम देख रहे हैं कि ये ग़ासिब और ज़ालिम ज़ायोनी ग़ज़्ज़ा के बच्चों और औरतों को खून में नहला रहे हैं।

इमामे जुमा ने आगे कहा अगर अमेरिका का समर्थन न होता, तो कई साल पहले ही ज़ायोनी हुकूमत का नासूर मिट चुका होता। इस्लामी ईरान हमेशा मजलूमों की हिमायत में जहां ज़रूरत पड़ी, वहां मौजूद रहा है।

उन्होंने रहबर-ए-मुअज़्ज़म की हिदायतों का हवाला देते हुए कहा,इस्लामी देशों के बीच आपसी सहयोग और एतबार (भरोसा), दूसरों पर निर्भरता से बेहतर है। हमें अपने विरोधियों से बदगुमानी (संदेह) जरूर है, लेकिन अपनी काबिलियतों पर पूरा भरोसा भी है।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन शाबानी ने कहा: यदि अमेरिकी राष्ट्रपति ईरान पर अपने रुख से पीछे हटते हैं, तो यह इस राष्ट्र के उत्साही बेटों के संघर्ष का परिणाम होगा। आज देश की ताकत दुश्मन को किसी भी तरह का अतिक्रमण करने की इजाजत नहीं देती।

हमादान के इमाम जुमा हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन हबीबुल्लाह शाबानी ने हमादान प्रांत में तैनात सशस्त्र बलों की परेड के अवसर पर "सेना दिवस" ​​की बधाई देते हुए कहा: आज देश की ताकत सभी सैन्य और सुरक्षा संस्थानों के निरंतर प्रयासों का परिणाम है जो लोगों और देश की सुरक्षा के लिए दिन-रात काम कर रहे हैं।

उन्होंने कहा: यदि अमेरिकी राष्ट्रपति ईरान के संबंध में अपने शब्दों को वापस लेते हैं, तो यह ईरान के बहादुर बेटों के जिहादी प्रयासों का परिणाम होगा। आज देश की ताकत दुश्मन को किसी भी तरह का आक्रमण करने की इजाजत नहीं देती।

हमदान के इमाम जुमा ने कहा: ईरान की वर्तमान शक्ति और अधिकार ने दुश्मन के दांत खट्टे कर दिए हैं। दुश्मन को अच्छी तरह पता है कि वह इस देश की सेना, सैनिकों और लोगों के दृढ़ संकल्प का मुकाबला नहीं कर सकता।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन शाबानी ने कहा: आज हम इस शक्ति को परमाणु वार्ता के क्षेत्र में भी देख रहे हैं। दूसरे पक्ष की कुछ मांगों और दावों के बावजूद, यह केवल इस्लामी गणराज्य ईरान ही था जिसने वार्ता के लिए समय, स्थान और प्रक्रिया निर्धारित की।

फ़िलिस्तीनी स्वायत्त प्रशासन के विदेश मंत्रालय ने इब्रानी मीडिया में ज़ायोनी बस्तियों से जुड़ी संगठनों द्वारा मस्जिद ए अक़्सा को ढहाने और उसकी जगह जाली हैकल ए सुलेमान बनाने की योजनाओं को लेकर चेतावनी दी है।

फ़िलिस्तीनी विदेश मंत्रालय ने चेतावनी दी है कि यह योजनाएँ बहुत ही खतरनाक हैं और यह यहूदी उग्रपंथी संगठनों से जुड़े मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर जानबूझकर फैलाई जा रही उकसावे वाली बातों का हिस्सा हैं।

फ़िलिस्तीनी समाचार एजेंसी "वफ़ा" के मुताबिक़, मंत्रालय ने शनिवार को कहा कि इस तरह की घोषणाएँ एक सोची-समझी उकसावे की कोशिश हैं, जिनका उद्देश्य कब्ज़े वाले यरूशलेम (बैतुल-मक़दिस) में इस्लामी और ईसाई पवित्र स्थलों को निशाना बनाना है।

खास तौर पर, इस समय जब ग़ाज़ा में हो रहे नरसंहार पर वैश्विक प्रतिक्रिया कमज़ोर दिख रही है, इसराइल में सत्ता में बैठे अतिदक्षिणपंथी गुट इस अवसर का फायदा उठाकर अपने विस्तारवादी और नस्लभेदी 'यहूदीकरण' के एजेंडे को तेज़ी से आगे बढ़ा रहे हैं।

फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय और वैश्विक संगठनों से अपील की है कि वे इन भड़काऊ कार्रवाइयों को गंभीरता से लें और (यहूदी उग्रपंथी) सरकार को अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत रोकेँ, जो फिलिस्तीनी जनता के खिलाफ अत्याचार कर रही है।

ग़ौरतलब है कि पिछले गुरुवार को हज़ारों यहूदी उग्रवादियों ने यहूदी त्योहार 'पेसह' के पाँचवें दिन मस्जिद ए अक्सा और बाबुर्रहमा (रहमत का द्वार) पर हमला बोला था।

शादी का मतलब दो वजूदों का एक साथ ज़िन्दगी में एक दूसरे को समझना और आपस में मोहब्बत है।

हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने फरमाया,शादी का मतलब दो वजूदों का एक साथ ज़िन्दगी में एक दूसरे को समझना और आपस में मोहब्बत है।

अलबत्ता यह एक स्वाभाविक सी बात है लेकिन इस्लाम ने जो तरीक़े, रस्म रवाज और उसूल तय किए हैं और शादी के लिए जो हुक्म बयान किए हैं उनके ज़रिए इस रिश्ते में बर्कत और मज़बूती दी है।मियां बीवी को एक दूसरे को समझना चाहिए।

एक दूसरे के जज़्बात को महसूस करना चाहिए। यूरोप वालों की यह समझ है लेकिन अच्छी समझ है कि हर एक को एक दूसरे के दर्द और इच्छाओं को महसूस करना चाहिए और उसके अनुकूल व्यवहार करना चाहिए।

इसी को कहते हैं सामने वाले को समझना, यानी आम लोगों की ज़बान में एक दूसरे को समझना ज़रूरी है, ये चीज़ें मोहब्बत को बढ़ा देती हैं।

शुक्रवार, 18 अप्रैल 2025 18:26

शफाअत के नियम (2)

जैसा कि संकेत किया गया शफाअत करने या शफाअत पाने के लिए मूल शर्त ईश्वर की अनुमति है जैसा कि सूरए बक़रा की आयत 255 में कहा गया हैः

और कौन है जो उसकी अनुमति के बिना उसके पास सिफारिश करता हैं।

इसी प्रकार सूरए युनुस की आयत 3 में कहा जाता हैः

कोई भी सिफारिश करने वाला नही है सिवाए उसकी अनुमति के बाद।

इसी प्रकार सूरए ताहा की आयत 109 मे आया हैः

और उस दिन किसी की सिफारिश का लाभ नही होगा सिवाएं उसकी कृपालु ईश्वर ने अनुमति दी होगी और जिस बात को पसन्द करता होगा।

और सूरए सबा की आयत हैं

उसके निकट सिफारिश का लाभ नही होगा सिवाए उसकी जिसे उसन अनुमति दी।

इन आयतों से सामूहिक रूप से ईश्वर की अनुमति की शर्त सिध्द होती है किंतु जिन लोगो की अनुमति प्राप्त होगी उनकी विशेषताओ का पता नही चलता.

किंतु ऐसी बहुत सी आयत है जिनकी सहायता से सिफारिश पाने और करने वालो की कुछ विशेषताओं का पता लगाया जा सकता हैं। जैसा कि सूरए ज़ोखरूफ की आयत 86 मे आया हैः

और वे ईश्वर को छोड़ कर जिन लोगो को बुलाते है वे सिफारिश के स्वामी नही हैं सिवाए उसके जिसने सत्य की गवाही दी और वे लोग जानकारो मे से हैं।

शायद सत्य की गवाही देने वाले से यहॉ आशय, कर्मो की गवाही देने वाले वह लोग हों जिन्हे मनुष्य के दिल की बातो का ज्ञान होता हैं और मनुष्य के व्यवहार और उसके महत्व  व सत्यता के बारे मे गवाही दे सकता हो। इस से यह भी समझा जा सकता हैं कि सिफारिश करने वाले पास ऐसा ज्ञान होना चाहिए कि जिस के बल पर वह सिफारिश पाने की योग्यता रखने वाले लोगो को जान सके और इस प्रकार की विशेषता रखने वालो मे निश्चित रूप से जिन लोगो का नाम लिया जा सकता हैं वह ईश्वर के वह विशेष दास हैं जिन्हे पापों से पवित्र बताया हैं।

दूसरी ओर, बहुत सी आयतो से यह समझा जा सकता हैं कि जिन लोगो को सिफारिश प्राप्त होनी होगी, उन से प्रसन्न होना भी आवश्यक हैं। जैसा कि सूरए अंबिया की आयत 28 में कहा गया हैः

और वे किसी की सिफारिश नही करेगें सिवाए उसकी जिस से ईश्वर प्रसन्न होगा।

इसी प्रकार सूरए अन्नज्म में आया हैः

और आकाशो मे कितने ऐसे फरिश्ते हैं जिन की सिफारिश का कोई लाभ नही होगा सिवाए इसके कि ईश्वर ने उन्हे जिस के लिए चाहा अनुमति दी हो और जिस से प्रसन्न हुआ हो।

स्पष्ट है कि सिफारिश पाने वालो से ईश्वर के प्रसन्न होने का अर्थ यह नही है कि उन लोगो के सारे काम अच्छे होगें क्योकि अगर ऐसा होगा तो फिर उन्हे सिफारिश की आवश्यकता ही न होती बल्कि इस का आशय यह हैं कि ईश्वर धर्म व ईमान की दृष्टि से उन से प्रसन्न हो जैसा कि हदीसों मे भी इस विचार की पुष्टि की गई है।

इसके साथ ही कुछ आयतो मे उन लोगों की विशेषताओ का भी वर्णन किया गया हैं जिन्हे सिफारिश मिल नही सकती हैं जैसा कि सुरए शोअरा की आयत 100 में अनेकेश्वादियों की इस बात का वर्णन है कि हमारी सिफारिश करने वाला कोई नही हैं। इसी प्रकार सूरए मुद्दस्सिर की आयत 40 से लेकर 48 तक में वर्णन किया गया है कि पापियों से नर्क में जाने का कारण पूछा जाएगा और वे उत्तर में नमाज़ छोड़ने, निर्धनों की सहायता न करने तथा क़यामत जैसे विश्वासो के इन्कार का नाम लेगें और फिर कुरआन में कहा गया है कि उन्हे सिफारिश करने वालो की सिफारिशों से भी कोई लाभ नही होगा। इस आयत से समझा जा सकता है कि अनेकेश्वरवादी और प्रलय व कयामत का इन्कार करने वाले कि जो  ईश्वर की उपासना नही करते और आवश्यकता रखने वालो की सहायता नही करते तथा सही सिध्दान्तो का पालन नही करते, वे किसी भी स्थिति मे सिफारिश के पात्र नही बनेगें। और इस बात के दृष्टिगत कि संसार में पैगम्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व सल्लम द्वारा अपने अनुयाईयो के पापो को माफ करने कि ईश्वर से प्रार्थना भी एक प्रकार की शफाअत व सिफारिश है तो फिर पैगम्बरे इस्लाम (स.अ.व.व) की शिफाअत व सिफारिश में विश्वास रखने वाले के लिए उनकी सिफारिश का कोई प्रभाव वही होगा, यह समझा जा सकता है कि शिफाअत का इन्कार करने वाला भी सिफारिश का पात्र नही बन सकता और इस बात की पुष्टि हदीसों से भी होती हैं।

निष्कर्ष यह निकला की मुख्य सिफारिश करने वाले के लिए ईश्वर की अनुमति के साथ ही साथ स्वंय पवित्र होना भी आवश्यक है तथा इसी प्रकार उसमे इस बात की योग्यता हो कि वह लोगो की वास्तविकता तथा अवज्ञा व कर्तव्य पालन की भावना का ज्ञान प्राप्त कर सके और इस प्रकार के लोग ही ईश्वर की अनुमति से लोगो की सिफारिश कर सकते है जो निश्चित रूप से ईश्वर के योग्य व चयनित दास ही होगें दूसरी ओर यह सिफारिश उन्ही लोगों को प्राप्त होगी जो सिफारिश की योग्यता रखते होगे जिस के लिए ईश्वर की अनुमति के साथ, इस्लाम के आवश्यक व मूल सिध्दान्तो मे मृत्यु तक विश्वास व आस्था आवश्यक है।