ज़ायोनी शासन के अतिक्रमण के विरुद्ध हिज़्बुल्लाह का ठोस दृष्टिकोण

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ज़ायोनी शासन के अतिक्रमण के विरुद्ध हिज़्बुल्लाह का ठोस दृष्टिकोण

ज़ायोनी शासन के अतिक्रमण के विरुद्ध हिज़्बुल्लाह का ठोस दृष्टिकोण

हिज़्बुल्लाह महासचिव सय्यद हसन नसरुल्लाह (फ़ाइल फ़ोटो)

लेबनान के विरुद्ध ज़ायोनी शासन की बढ़ती धमकियां और इस विस्तारवादी शासन द्वारा लेबनान की संप्रभुता के निरंतर उल्लंघन के पश्चात लेबनान के जनप्रतिरोध आंदोलन हिज़्बुल्लाह के महासचिव सय्यद हसन नसरुल्लाह ने ज़ायोनी शासन को लेबनान की धरती पर हर प्रकार के अतिक्रमण के ख़तरनाक परिणाम की ओर से सचेत किया है।

सय्यद हसन नसरुल्लाह ने शनिवार को ज़ायोनी शासन के विरुद्ध लेबनान के हिज़्बुल्लाह संगठन के शहीद नेताओं की याद में आयोजित सभा में भाषण देते हुए कहा कि ज़ायोनी शासन के हवाई अड्डे, बंदरगाहें और बिजली प्रतिष्ठान हिज़्बुल्लाह के मीसाइलों व राकेटो के निशाने पर हैं और ज़ायोनी शासन के अधिकारियों की ओर से हर प्रकार के ग़लत हिसाब का इस शासन के सर्वनाश के रूप में परिणाम निकलेगा।

हिज़्बुल्लाह के महासचिव ने फ़िलिस्तीन के प्रतिरोध के प्रति समर्थन के बारे में भी कहा कि लेबनान में फ़िलिस्तीनी जनता के प्रभावशाली समर्थक हैं और दसियों वर्षों के अतिग्रहण के पश्चात ज़ायोनी शासन का सर्वनाश निकट है।

उन्होंने बल दिया कि लेबनान में प्रतिरोध की बहुत उपलब्धियां रही हैं और उसने गत तीस वर्षों में उन समीकरणों को परिवर्तित कर दिया जो वर्षों से वर्चस्ववादी शक्तियों की ओर से क्षेत्र पर थोपे गए थे।

गत कुछ वर्षों में ज़ायोनी शासन को निरंतर पराजित करने में लेबनान के जनप्रतिरोध आंदोलन के क्रियाकलाप से उन समीकरणों के बदल जाने की पुष्टि होती है जो ज़ायोनी शासन और उसके समर्थकों ने क्षेत्र पर थोप रखा था।

हिज़्बुल्लाह के मुक़ाबले में ज़ायोनी शासन की नाकामी वर्ष 2000 में लेबनान के अतिग्रहित क्षेत्र के बड़े भाग से ज़ायोनी सेना के लज्जानक ढंग फ़रार होने के रूप में सामने आयी। उसके बाद ज़ायोनी शासन को 2006 में लेबनान पर थोपे गए 33 दिवसीय युद्ध में घोर पराजय का सामना हुआ और इस पराजय ने ज़ायोनी सेना के अजेय होने के दावे की क़लई खोल दी और इस पराजय से अमरीका की वृहत्तर मध्यपूर्व की योजना भी विफल हो गयी जो उसने मध्यपूर्व पर वर्चस्व जमाने के लिए तय्यार की थी।

हिज़्बुल्लाह के प्रतिरोध ने फ़िलिस्तीनियों में ज़ायोनी शासन के सामने डट जाने के मनोबल को कई गुना बढ़ा दिया जिसका पहला परिणाम 2005 में ग़ज़्ज़ा से ज़ायोनी शासन के पीछे हटने के रूप में सामने आया और फिर 2009 के 22 दिवसीय युद्ध तथा 2012 के 8 दिवसीय युद्ध में फ़िलिस्तीन के प्रतिरोध आंदोलन हमास की विजय ने ज़ायोनी शासन और उसकी सेना की रही सही पोल भी खोल दी।

अनुभव ने यह दर्शा दिया है कि ज़ायोनी शासन की वर्चस्ववादी नीतियों और अतिग्रहित भूमि को स्वतंत्र कराने का एकमात्र मार्ग प्रतिरोध है जबकि इस शासन से साठगांठ वार्ता का परिणाम ज़ायोनी शासन की वर्चस्ववादी कार्यवाहियों में तेज़ी आने के सिवा और कुछ नहीं निकला इसलिए क्षेत्र की संवेदनशील स्थिति के दृष्टिगत सय्यद हसन नसरुल्लाह ने ज़ायोनी शासन और उसके समर्थकों के विरुद्ध प्रतिरोध जारी रखने पर बल दिया है।

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