बग़ैर विलायत के कोई अमल क़बूल नहीं

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बग़ैर विलायत के कोई अमल क़बूल नहीं

मौलाना सय्यद रज़ा हैदर ज़ैदी ने जुमआ के ख़ुत्बे में कहा कि अगर आज हम लोगों के ऐबों कमज़ोरियों/ख़ामियों को ज़ाहिर कर रहे हैं और बयान कर रहे हैं तो क़यामत के दिन अगर ख़ुदा ने हमारे ऐबों से पर्दा उठा दिया तो हम किसे मुंह दिखाएंगे? वहां तो सब लोग जमा होंगे।

एक रिपोर्ट के अनुसार,लखनऊ/शाही आसिफी मस्जिद,13 दिसंबर 2024 को शाही आसिफी मस्जिद में जुमे की नमाज़ हुज्जतुल इस्लाम मौलाना सैयद रज़ा हैदर ज़ैदी प्रिंसिपल हौज़ा इल्मिया हज़रत ग़ुफ़रानमाब, लखनऊ की इमामत में अदा की गई।

मौलाना ने नमाज़ियों को तक़वा अपनाने की नसीहत करते हुए तक़वा की फ़ज़ीलत और अहमियत को बयान किया।

मौलाना ने हज़रत अली अ.स. की एक मशहूर हदीस का हवाला देते हुए कहा,तुम्हारा सच्चा भाई वही है जो तुम्हारी ग़लतियों को नज़रअंदाज़ करे तुम्हारी ज़रूरत को पूरा करे तुम्हारे उज़्र को क़बूल करे, तुम्हारे ऐबों को छुपाए, तुम्हारे डर को दूर करे और तुम्हारी उम्मीदों को पूरा करे।

उन्होंने कहा कुछ लोग दूसरों के ऐब उजागर करते हैं और बड़े गर्व से कहते हैं कि उन्होंने कुछ ग़लत नहीं कहा। जैसे मैंने उसे शराबख़ाने में देखा है। भले ही देखा हो लेकिन यह ऐब है और ऐब पर पर्दा डालना चाहिए।

अगर आज हम दूसरों के ऐब छुपाएंगे तो क़यामत के दिन अल्लाह हमारे ऐब छुपाएगा लेकिन अगर हम दूसरों के ऐब जाहिर करेंगे तो क़यामत के दिन हमारे ऐब सबके सामने आएंगे और हम किसे मुंह दिखाएंगे?

मौलाना ने इमाम जाफ़र सादिक़ अ.स.की हदीस का ज़िक्र करते हुए कहा,मेरे भाइयों में सबसे अज़ीज़ भाई वह है जो मेरे ऐबों को मुझे तोहफ़े के तौर पर बताए।

उन्होंने समझाया कि सबसे अच्छा और बेहतरीन भाई वह है जो तुम्हारे ऐबों को सीधे तुमसे बताए। लेकिन इसे सार्वजनिक तौर पर चौराहे या होटल में नहीं कहना चाहिए।

एक मोमिन दूसरे मुमिन का आइना होता है। जैसे आइना सच्चाई दिखाता है वैसे ही एक भाई को दूसरे भाई का सही किरदार आदत और नैतिकता बतानी चाहिए।

मौलाना ने आगाह किया कि जो इंसान सच्चाई से ज़्यादा तारीफ़ करता है वह चापलूस है, और जो सच्चाई से कम बताता है वह हसद करने वाला है। दोनों से बचना चाहिए।

मौलाना ने सूरह मायदा की आयत 6 की रौशनी में तहारत (पाकीज़गी) का मकसद बयान करते हुए कहा कि तहारत का मकसद अल्लाह की नेमतों का एहसास और उनका शुक्र अदा करना है।

उन्होंने कहा कि ग़दीर-ए-ख़ुम में विलायत-ए-अमीर-उल-मोमिनीन हज़रत अली अ.स. के ऐलान के बाद जो आयत नाज़िल हुई, उसमें नेमतों के पूरा होने की बात कही गई इससे साफ़ ज़ाहिर है कि जिस तरह तहारत के बिना नमाज़ नहीं हो सकती उसी तरह अमीर-उल-मोमिनीन की विलायत के बिना कोई अमल क़बूल नहीं हो सकता

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