अली (अ) की मुहब्बत, कुफ़्र और ईमान की पहचान

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अली (अ) की मुहब्बत, कुफ़्र और ईमान की पहचान

करगिल के हौज़ा-ए-इल्मिया में जमीयत-उल-उलमा ए-इमामिया के तत्वावधान में हज़रत अली (अ) की पैदाइश की खुशी में जश्न-ए-मोलूद-ए-काबा का भव्य आयोजन हुआ। यह कार्यक्रम न सिर्फ धार्मिक आस्था बल्कि अली (अ) के प्रति गहरी श्रद्धा और प्रेम का प्रतीक था।

करगिल के हौज़ा-ए-इल्मिया में जमीयत-उल-उलमा ए-इमामिया के तत्वावधान में हज़रत अली (अ) की पैदाइश की खुशी में जश्न-ए-मोलूद-ए-काबा का भव्य आयोजन हुआ। यह कार्यक्रम न सिर्फ धार्मिक आस्था बल्कि अली (अ) के प्रति गहरी श्रद्धा और प्रेम का प्रतीक था। कड़ाके की सर्दी के बावजूद करगिल और आसपास के इलाकों से बड़ी संख्या में लोगों, विशेष रूप से उलमा और अली (अ) के चाहने वालों ने इस जश्न में हिस्सा लिया। आयोजन स्थल और उसके आसपास के इलाकों को खूबसूरती से सजाया गया था, जिसे एक दुल्हन की तरह सजाने में कई दिनों की मेहनत लगी।

कार्यक्रम की शुरुआत पवित्र कुरान की तिलावत से हुई, जिसके बाद तकरीरें, मन्कबत और कसीदाख्वानी का सिलसिला चला। वक्ताओं ने हज़रत अली (अ) की ज़िंदगी, उनके चरित्र और उनकी शिक्षाओ पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि अली (अ) की मोहब्बत ईमान और कुफ्र के बीच की पहचान है और उनकी शिक्षाए इंसानियत के लिए हर दौर में मार्गदर्शक हैं। वक्ताओं ने इस बात पर ज़ोर दिया कि हमें अली (अ) के बताए रास्ते पर चलते हुए उनके सच्चे अनुयायी बनने की कोशिश करनी चाहिए।

जमीयत-उल-उलमा के अध्यक्ष शेख नाज़िर मेहदी मोहम्मदी ने अपनी मुख्य तकरीर में पैगंबर मोहम्मद (स) की हदीसों का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि "अली (अ) से मोहब्बत करना ईमान की निशानी है, और अली (अ) से दुश्मनी रखना निफाक की पहचान है।" उन्होंने इस बात पर बल दिया कि अली (अ) की मोहब्बत के बिना जन्नत में दाखिल होना मुमकिन नहीं। साथ ही उन्होंने मुसलमानों को आगाह किया कि वे उन विचारों और तकरीरों से बचें, जो उनके ईमान को कमजोर कर सकती हैं।

शेख नाज़िर ने यह भी कहा कि हज़रत अली (अ) का जन्म खान-ए-काबा में हुआ, जो इस्लाम का सबसे बड़ा चमत्कार है। यह उनकी महानता और अल्लाह के नज़दीक उनकी खास जगह को दर्शाता है। उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि कुछ लोग अली (अ) के पैगाम और उनकी महानता को समझने से आज भी दूर हैं।

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