सुप्रीम लीडर ने 8 फ़रवरी सन 1979 को एयरफ़ोर्स के विशेष दस्ते "हुमाफ़रान" की ओर से इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह की ‘बैअत’ (आज्ञापालन का एलान) किए जाने की घटना की सालगिरह के मौक़े पर हर साल की तरह इस साल भी इस्लामी गणराज्य ईरान की एयरफ़ोर्स और एयर डिफ़ेंस विभाग के कमांडरों और जवानों से शुक्रवार 7 फ़रवरी 2025 को तेहरान के इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में मुलाक़ात की और इस ऐतिहासिक दिन को कामयाब आत्मनिर्भर और पहचान से समृद्ध सेना का जन्म दिवस कहा।
सुप्रीम लीडर ने 8 फ़रवरी सन 1979 को एयरफ़ोर्स के विशेष दस्ते "हुमाफ़रान" की ओर से इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह की ‘बैअत’ (आज्ञापालन का एलान) किए जाने की घटना की सालगिरह के मौक़े पर हर साल की तरह इस साल भी इस्लामी गणराज्य ईरान की एयरफ़ोर्स और एयर डिफ़ेंस विभाग के कमांडरों और जवानों से शुक्रवार 7 फ़रवरी 2025 को तेहरान के इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में मुलाक़ात की और इस ऐतिहासिक दिन को कामयाब आत्मनिर्भर और पहचान से समृद्ध सेना का जन्म दिवस कहा।
हज़रत आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने वार्ता के संबंध में अख़बारों और सोशल मीडिया पर होने वाली बहसों और बातों और इस संदर्भ में कुछ लोगों की बयानों की ओर इशारा किया और कहा कि इन बातों का मुख्य बिंदु अमरीका से वार्ता का विषय है और वार्ता को एक अच्छी चीज़ के तौर पर याद करते हैं मानो कोई वार्ता के अच्छा होने का विरोधी भी है।
उन्होंने देश के विदेश मंत्रालय की वार्ता के मैदान में व्यस्तता और दुनिया के सभी देशों में आवाजाही और उनके साथ समझौते करने का ज़िक्र किया और बल दिया कि इस संबंध में सिर्फ़ एक अपवाद मौजूद है और वह अमरीका है। अलबत्ता ज़ायोनी शासन का नाम अपवाद में इसलिए नहीं है क्योंकि यह शासन अस्ल में सरकार नहीं बल्कि एक अपराधी और एक सरज़मीन पर नाजायज़ क़ब्ज़ा करने वाला गैंग है।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने वार्ता से अमरीका को अपवाद रखने की वजह को बयान करते हुए कहाः "कुछ लोग ऐसा ज़ाहिर करते हैं कि अगर वार्ता की मेज़ पर बैठेंगे तो मुल्क की फ़ुलां मुश्किल हल हो जाएगी लेकिन जिस हक़ीक़त को हमें सही तरह समझना चाहिए वह यह है कि अमरीका के साथ वार्ता मुल्क की मुश्किल को हल करने में कोई असर नहीं रखती।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने मौजूदा सदी के दूसरे दशक में अमरीका सहित कुछ दूसरे देशों से क़रीब दो साल वार्ता के नतीजे में होने वाले समझौते और इस समझौते के कड़वे अनुभव को, अमरीका के साथ वार्ता के बेफ़ायदा होने की दलील बताया और कहा कि हमारी तत्कालीन सरकार ने उनके साथ बैठक की, अधिकारी आए-गए, वार्ता की, हंसे, हाथ मिलाया, दोस्ती की, सभी काम किए और एक समझौता हुआ कि जिसमें ईरानी पक्ष ने सामने वाले पक्ष के साथ बहुत ज़्यादा उदारता दिखाई और उसे ज़्यादा कंसेशन दिए लेकिन अमरीकियों ने उस पर अमल नहीं किया।
उन्होंने अमरीका के मौजूदा राष्ट्रपति के, उनके इससे पहले वाले दौर में परमाणु समझौते जेसीपीओए को फाड़ने और उस पर अमल न करने से संबंधित बयान की ओर इशारा करते हुए कहा कि उनसे पहले वाली सरकार ने भी जिसने समझौते को क़ुबूल किया था, उस पर अमल नहीं किया, तय यह हुआ था कि पाबंदियां हटा ली जाएंगी, लेकिन नहीं हटायी गयीं और संयुक्त राष्ट्र संघ के संबंध में भी मुश्किल हल नहीं हुयी ताकि वह ईरान के सर पर ख़तरे के तौर पर हमेशा मौजूद रहे।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने 2 साल की वार्ता, उसमें कंसेशन देने और पीछे हटने के बावजूद उसका नतीजा न मिलने के अनुभव से फ़ायदा उठाने पर बल दिया और कहा कि अमरीका ने उस समझौते का कि जिसमें कमियां थीं, उल्लंघन किया और उससे निकल गया, इसलिए ऐसी सरकार से वार्ता अक़्लमंदी नहीं है,
समझदारी नहीं है, शराफ़तमंदाना नहीं है, उससे वार्ता नहीं करनी चाहिए। आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने मुल्क की भीतरी और अवाम के बड़े भाग की आर्थिक मुश्किलों की ओर इशारा करते हुए कहा कि जो चीज़ मुश्किल को हल करती है वह आंतरिक तत्व यानी प्रतिबद्ध अधिकारियों की हिम्मत और एकजुट राष्ट्र का सहयोग है कि जिसका प्रतीक 11 फ़रवरी की रैली है और इसमें इंशाअल्लाह इस साल भी हम इस एकता को देखेंगे।
उन्होंने अमरीकियों की दुनिया के नक़्शे को बदलने की कोशिश की ओर इशारा किया और कहा कि इस काम की कोई हक़ीक़त नहीं है बल्कि यह सिर्फ़ काग़ज़ पर है, अलबत्ता वे हमारे बारे में भी विचार व्यक्त करते हैं, बात करते हैं और धमकी देते हैं।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने बल देकर कहा कि अगर उन्होंने हमको धमकी दी तो हम भी उन्हें धमकी देंगे, अगर उन्होंने अपनी धमकी पर अमल किया तो हम भी अपनी धमकी पर अमल करेंगे और अगर हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा पर हमला हुआ तो निश्चित तौर पर हम भी उन पर हमला करेंगे।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने अपनी स्पीच के दूसरे भाग में 8 फ़रवरी सन 1979 को एक यादगार व शानदार दिन बताया और कहा कि उन जवानों के शौर्य से भरे क़दम ने, नई सेना के लिए मार्ग निर्धारित कर दिया जो इस बात का सबब बना कि सेना के मुख़्तलिफ़ तत्व और कैडर, उस आज्ञापलन से प्रेरित होकर राष्ट्र से मिल जाएं।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने अमरीका के सैन्य तंत्र के अधीन काम करने वाली देश की सेना की स्थिति के संबंध में पहलवी शासन की ओर से उठाए गए क़दम की ओर इशारा करते हुए कहा कि सैन्य संगठन, उसके हथियार और सैनिकों की ट्रेनिंग अमरीकियों के हाथ में थी।
अहम उपकरणों स्थापित करने और हथियारों को किस तरह इस्तेमाल करना है, इस संबंध में भी अमरीकियों की इजाज़त लेनी पड़ती थी और निर्भरता इस हद तक थी कि ईरानियों को कलपुर्ज़े खोलने और उसकी मरम्मत करने की भी इजाज़त नहीं थी।
उन्होंने अक्तूबर सन 1964 में कैप्चुलेशन क़ानून के विरोध में इमाम ख़ुमैनी के भाषण को, सेना और मुल्क पर अमरीका के अपमानजनक वर्चस्व पर किया गया एतेराज़ बताया और कहा कि कैप्चुलेशन क़ानून की बुनियाद पर कि जिसे राष्ट्रपति से लेकर पहलवी शासन के निचले अधिकारियों तक सबने क़ुबूल किया था, कोई भी अमरीकी जो भी जुर्म करता उसके ख़िलाफ़ ईरान में कोई भी न्यायिक कार्यवाही नहीं हो सकती थी।