मदरसा ए इल्मिया हज़रत नरजिस स.अ. सारी की तालीमी उमूर की सरपरस्त ने कहा, वहाबियत, अहले सुन्नत का एक भटका हुआ फिरक़ा है जो तवस्सुल और शफ़ाअत को शिर्क समझता है।
मदरसा ए इल्मिया हज़रत नरजिस स.ल. सारी के शैक्षणिक कार्यों की सरपरस्त माननीया सकीना रिज़ाई ने 'तख़रीब-ए-क़बूर-ए-अइम्मा-ए-मज़लूम-ए-बक़ीअ.के अवसर पर बीते दिन छात्राओं की एक सभा को संबोधित करते हुए वहाबियत की अकीदती गुमराहियों की ओर इशारा किया और इस दुखद घटना के ऐतिहासिक, अकीदती और सियासी पहलुओं पर रौशनी डाली।
उन्होंने कहा वहाबियत अहले सुन्नत का एक भटका हुआ फिरका है, जो केवल दो ही काम नहीं कर सका एक, क़ुरआन को मिटाना और दूसरा, काबा को गिराना। लेकिन इसने बक़ीअ के इमामों की क़ब्रों पर हमला करके शिया अकीदे को निशाना बनाने की कोशिश की।
यह गिरोह तवस्सुल (सिफ़ारिश) और शफ़ाअत (सिफ़ारिश व मदद) को शिर्क (अल्लाह के साथ किसी और को जोड़ना) समझता है, जबकि शिया अकीदे के अनुसार इमामों की क़ब्रों की ज़ियारत और उनसे तवस्सुल का मक़सद यही है कि उन्हें अल्लाह के दरबार में अपना सिफ़ारिशी बनाएं क्योंकि वे अल्लाह के नेक और मक़र्रब (क़रीबी) बंदे हैं।
माननीया सकीना रिज़ाई ने क़ब्रों की ज़ियारत से जुड़े कुछ सतही और नासमझी वाले व्यवहारों की आलोचना करते हुए कहा — कभी-कभी कुछ लोगों की ग़फ़लत या नासमझी इस्लाम के दुश्मनों को मौका दे देती है, जबकि इस्लाम एक मुकम्मल (सम्पूर्ण) दीन है जो इंसानी जिंदगी के व्यक्तिगत, सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और इल्मी (शैक्षणिक) हर पहलू को शामिल करता है।
उन्होंने ईरान के शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम की चर्चा करते हुए कहा दुश्मनों की समस्या परमाणु बम या हथियार नहीं है, बल्कि ईरान की तरक्की है क्योंकि वे जानते हैं कि इल्म (ज्ञान) और खुदमुख्तारी (आत्मनिर्भरता) हमें ताकतवर बनाती है।