शरीअत के सभी वाजिब हुक्म और सभी हराम कामों से दूरी के हुक्म, इंसान की आत्मिक जड़ों को मज़बूत करने और लोक-परलोक के सभी मामलों को सुधारने के लिए हैं, चाहे वह व्यक्तिगत स्तर पर सुधार हो या सामाजिक स्तर पर सुधार हो।
हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने फरमाया,शरीअत के सभी वाजिब हुक्म और सभी हराम कामों से दूरी के हुक्म, इंसान की आत्मिक जड़ों को मज़बूत करने और लोक-परलोक के सभी मामलों को सुधारने के लिए हैं।
चाहे वह व्यक्तिगत स्तर पर सुधार हो या सामाजिक स्तर पर सुधार हो, ये अल्लाह की तरफ़ से निर्धारित दवाओं का पैकेज है, हाँ इतना ज़रूर है कि इस पैकेज में कुछ तत्व निर्णायक हैसियत रखते हैं और नमाज़ इन तत्वों में शायद सबसे बुनियादी तत्व है।
मुल्क के नौजवान तबक़े में दूसरों से ज़्यादा नमाज़ को अहमियत दी जानी चाहिए।नमाज़ से नौजवान का दिल रौशन हो जाता है, उम्मीदों के दरीचे खुल जाते हैं,आत्मा में ताज़गी आ जाती है, सुरूर की कैफ़ियत आ जाती हैऔर यह स्थिति ज़्यादातर नौजवानों से मख़सूस है।