पुर्तगाल में “फ़ात्मा नगर” की अद्भुत कहानी

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पुर्तगाल में “फ़ात्मा नगर” की अद्भुत कहानी

8 मार्च 2017 का दिन था, मुझे एक संक्षिप्त धार्मिक दौरे के उद्देश्य से पुर्तगाल की राजधानी लेस्बन जाना हुआ। पुर्तगाल में धार्मिक मामलों में व्यस्तता के साथ विभिन्न ऐतिहासिक स्थलों और शहरों में घूमने का भी अवसर मिला।

मुझे यह सुनकर बहुत आश्चर्य हआ कि इस देश में एक ऐसा शहर भी है जिसका नाम “फ़ात्मा” है और इस शहर में एक ऐसा स्थल है जहां फ़ात्मा नाम की पवित्र हस्ती से संबंधित एक दर्शनस्थल भी है, इस पवित्र स्थल का निर्माण ईसाई धर्म के अनुयायियों ने किया है।

इन सब बातों के बाद भला कैसे संभव था कि मैं इस शहर और स्थल को निकट से न देखूं, इसीलिए लेस्बन में मौजूद स्थानीय धर्म गुरु मौलाना आबिद हुसैन साहब जिन से कई वर्षों से विभिन्न मामलों से निकट पहचान हो गयी थी, के साथ 11 मार्च की सुबह हम राजधानी से फ़ात्मा शहर की ओर से रवाना हुए।

यात्रा के दौरान हम “फ़ात्मा शहर में स्वागत” के बड़े बड़े साइन बोर्ड को देख सकते थे, इन साइन बोर्डस के सहारे जब हम शहर के भीतर प्रविष्ट हुए तो हमको एक ऐसा बोर्ड नज़र आया जिस पर लिखा हुआ था (shrine of Fatima)।

इसी यागदार स्थल के निकट गाड़ियों से खचा खच पार्किंग एरिए में हमने भी अपनी गाड़ी पार्क की, लोगों की एक बड़ी संख्या पवित्र स्थल की ओर बढ़ रही थी, हम भी लोगों के साथ उस स्थल की ओर चल पड़े, जैसे ही हम उस स्थल के भीतर पहुंच तो हमने अपने सामने एक बड़ा दालान देखा जिसके चारों ओर दीवारें दीं और दोनों ओर दो बड़ी बड़ी इमारतें बनी हुई थीं जबकि प्रांगड़ के बीच में चबूतरा बना हुआ था जहां बहुत से लोग खड़े होकरर किसी पादरी का लेक्चर सुन रहे थे।

प्रांगड़ के दूसरी ओर चबूतरे की ओर से जाते हुए संगे मरमर की उस पगडंडी ने हमारा ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर लिया जिस पर एक व्यक्ति घुटनों के बल आगे बढ़ रहा था, पता चला कि संगे मरमर का यह विशेष रास्ता उन लोगों के लिए बनाया गया है जो आत्मा की शांति या दूसरी धार्मिक आस्थाओं को प्रकट करने के लिए घुटने या कोहनियों के बल चलकर इस पवित्र प्रांगड़ को पार करते हैं।

हमने एक ऐसे नेपाली व्यक्ति को देखा जो घुटनों के बल चलते हुए उस प्रांगड़ के अंतिम छोर के निकट पहुंच चुका था, हमारे पूछने पर पता चला कि यह व्यक्ति न तो मुसलमान है और न ही ईसाई बल्कि इस का संबंध हिन्दु धर्म से है। हमारे पूछने पर उस व्यक्ति का कहना था कि आत्मिक शांति के लिए यह काम किया जाता है और इससे पहले भी कई बार यह काम कर चुका है। जब हम आगे बढ़े तो हमने चबूतरे पर एक पादर को देखा जो धार्मिक शिक्षाओं के अनुसार प्रार्थना में व्यस्त था। लोगों की एक बड़ी संख्या उसके इर्द गिर्द खड़ी प्रार्थना में व्यस्त थी।

कुछ देर हम यह दृश्य देखते रहे और फिर आगे बढ़ गये, आगे बढ़ने के बाद हमें किसी प्रकार का कोई धार्मिक स्थल या मज़ार नज़र नहीं आया कि जिसकी कल्पना हम कर रहे थे कि शायद यहां किसी का मज़ार होगा। दूर तक फैली इस जगह पर बहुत अधिक प्रयास के बाद भी हमें कोई साइन बोर्ड या चिन्ह नज़र नहीं आया जो उस स्थल के बारे में विस्तार से बताए, ढूंढते ढूंढते जब हम पादरी के विशेष कार्यालय के भीतर गये तो गेट के अंदर घुसते हुए लंबे चौड़े पादरी साहब हमारे सामने थे जो भीतर की इमारत से बाहर निकल रहे थे, अधेड़ उम्र के पादरी को देखकर हमने सम्मान में उन्हें स्थानीय भाषा और अंग्रेज़ी में सलाम किया और उनसे पूछा कि क्या आप को अंग्रेज़ी बोल सकते हैं? पादरी ने बड़े संतोष से सिर हिलाया और हल्की सी आवाज़ में कहा यस- यस।

आरंभिक बातचीत के बाद हमने उनसे इस स्थान के इतिहास और धार्मिक महत्व के बारे में पूछा तो हमें बहुत आश्चर्य हुआ कि हमारे प्रश्न पर उनके चेहरे का रंग बदल गया, इसी बीच उन्होंने अंग्रेज़ी में बड़े रुखे अंदाज़ में केवल इतना कहा कि (I DON,T KNOW ANY THING) मैं कुछ नहीं जानता। हमें एक ईसाई पवित्र स्थल पर एक ईसाई पादरी से इस प्रकार के रवैये की तनिक भी आशा नहीं थी। इसके बाद वहां एक उनके प्रोटोकोल गार्ड मेंबर्स में से किसी एक ने बड़े सम्मान के साथ हमारा मार्ग दर्शन करते हुए एक छोटे से इन्फ़ार्मेश्न सेन्टर की ओर हमारा मार्गदर्शन किया जहां एक मध्य आयु की एक महिला मौजूद थीं जिनके काउंटर पर बहुत से ब्रोशर्ज़ पड़े हुए थे।

महिला से बातचीत के दौरान हमें इस विस्तृत स्थान के बारे में जो कुछ पता चला वह इस प्रकार हैः (जारी है)  

 

 

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