ईरान में इस्लामी लोकतांत्रिक व्यवस्था में इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण और निर्णायक है।
इस समय जब ईरान के संबंध में अमरीका ने दुस्साहसी क़दम उठाया है और परमाणु समझौते से बाहर निकल कर ईरान पर प्रतिबंध लगाने का एलान कर दिया है तो वरिष्ठ नेता ने अपने भाषण में बड़े ही स्पष्ट शब्दो में अनेक तथ्यों को बयान किया और अमरीका से निपटने और साथ ही यूरोप के बारे में बड़े महत्वपूर्ण बिंदुओं को रेखांकित किया।
अमरीका के बारे में इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने महत्वपूर्ण बिंदुओं को रेखांकित कियाः
- इस बात की संभावना ही नहीं है कि इस्लामी गणतंत्र ईरान, अमरीका से इंटरैक्शन कर सकेः अमरीका अपनी प्रतिबद्धताओं का भी ध्यान नहीं रखता। आप यह न कहिए कि यह तो इस सरकार ने किया है, ट्रम्प ने किया है, नहीं, पिछली सरकार भी जिसने हमसे वार्ता की, जिसके विदेश मंत्री दस दिन पंद्रह दिन तक यूरोप में बड़ी तनमयता से इस वार्ता में लगे रहे, उस सरकार ने भी एक अलग अंदाज़ से उल्लंघन किया। उसने भी प्रतिबंध लगाए और उसने भी अपनी प्रतिबद्धताओं के ख़िलाफ़ काम किया।
- ईरान से अमरीका की गहरी दुशमनीः यह दुशमनी मामूली नहीं है। विरोध परमाणु कार्यक्रम जैसी चीज़ों के कारण नहीं है। बहस यह है कि वह इस शासन व्यवस्था के ही विरोधी हैं जो इस संवेदनशील क्षेत्र में मज़बूत से खड़ी है, विकास कर रही है, अमरीका के अत्याचारों का विरोध करती है, अमरीका को कोई भी ग़ुंडा टैक्स देने के लिए तैयार नहीं है, जिसने पूरे इलाक़े में प्रतिरोध की भावना में नई जान डाल दी है, अमरीका इस शासन व्यवस्था के ख़िलाफ़ है।
- यदि अमरीका के सामने नर्मी बरती जाए तो वह और दुस्साहसी हो जाता हैः हम जिस मामले में भी ज़रा सा पीछे हटे उस मामले में अमरीका अधिक दुस्साहसी हो गया। वह दुष्ट राष्ट्रपति जो दुष्टता की प्रतिमा था अर्थात बुश जूनियर उसने उस समय की ईरानी सरकार की ओर से दिखाई गई नर्मी और ढील के जवाब में ईरान की दुष्टता की धुरी कहा था।
- यदि डट जाया जाए तो अमरीका पीछे हटने पर मजबूर हो जाता हैः संयुक्त राष्ट्र संघ और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने यूरेनियम के संवर्धन के ईरान के अधिकार को स्वीकार किया तो इसका कारण वार्ता नहीं थी। कोई भी इस भूल में न रहे। इसकी वजह थी हमारी प्रगति। चूंकि हम प्रगति कर चुके थे। चूंकि हम आगे बढ़ चुके थे। चूंकि हम 20 प्रतिशत के ग्रेड तक पहुंच चुके थे तो वह स्वीकार करने पर मजबूर हुए, वरना अगर वार्ता से हमें यह अधिकार मिलने की बात होती तो हमें कभी भी यह अधिकार नहीं मिल पाता।
- महत्वपूर्ण मामलों में यूरोप अमरीका के साथ खड़ा होता हैः हम यूरोप से झगड़ा करने का इरादा नहीं रखते लेकिन सच्चाई से हमें अवगत होना चाहिए। इन तीनों देशों ने साबित कर दिया है कि संवेदनशील मामलों में वह अमरीका का साथ देते हैं और अमरीका के पदचिन्हों पर चलते हैं। परमाणु वार्ता के दौरान फ़्रांस के विदेश मंत्री की घटिया हरकत सबको याद है। अच्छे पुलिस मैन और बुरे पुलिस मैन के खेल में फ़्रांस को बुरे पुलिस मैन का रोल दिया गया था अलबत्ता अमरीका के समन्वय से।
- देश के महत्वपूर्ण मामलों के समाधान को विदेशी मामलों और परमाणु समझौते पर निर्भर करना बड़ी ग़लती हैः देश के महत्वपूर्ण मुद्दों को, आर्थिक विषयों को, देश के दूसरे महत्वपूर्ण विषयों को एसी चीज़ से जोड़ देना जो हमारे अपने हाथ में नहीं है देश के बाहर है, उसका फ़ैसला देश के बाहर होता है, उचित नहीं है। यदि हम अपने आर्थिक मामलों को, रोज़गार के मामलों को परमाणु समझौते से जोड़ेंगे तो नतीजा यह होगा कि सबको कई महीना इंतेज़ार करना पड़ेगा कि यह पता चले कि विदेशी क्या फ़ैसला करते हैं।
अमरीका ने तो परमाणु समझौते से बाहर निकलने की घोषणा कर दी है लेकिन यूरोपीय संघ बार बार कह रहा है कि वह परमाणु समझौते का पालन करता रहेगा। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता का कहना है कि यूरोप के साथ भी यदि परमाणु समझौते को जारी रखना है तो उससे ठोस गैरेंटी हासिल कर ली जाए क्योंकि यूरोपीय देशों पर भी भरोसा नहीं किया जा सकता।
इस्लामी क्रान्ति का कहना है कि यूरोप गैरेंटी के रूप में छह क़दम उठाएः
- यूरोप अमरीका के हाथों परमाणु समझौते के उल्लंघन पर अपनी ख़ामोशी की भरपाई करे।
- सुरक्षा परिषद में अमरीका के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पेश करे कि उसने प्रस्ताव 2231 का उल्लंघन किया है।
- मिसाइली ताक़त और क्षेत्र में इस्लामी गतणंत्र ईरान की उपस्थिति को यूरोप न उठाए।
- इस्लामी गणतंत्र ईरान पर लगने वाले हर प्रतिबंध का मुक़ाबला करे।
- इस्लामी गणतंत्र ईरान जितना चाहे उतना तेल बेचे।
- यूरोपीय बैंक ईरान से व्यापार से संबंधित पैसे का ट्रांज़ैक्शन करें।
- अगर यूरोप ने इन मांगों को पूरा करने में टालमटोल किया तो रोकी जा चुकी परमाणु गतिविधियों को शुरू करने का ईरान को पूरा अधिकार होगा।