अमेरिका के सप्ताहिक समाचार पत्र बारून ने ईरान विरोधी अमेरिकी प्रतिबंधों के नए चरण का हवाले देते हुए कहा है कि बीजिंग और वॉशिंग्टन के बीच भविष्य में युद्ध, तेल पर होगा।
प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका के सप्ताहिक समाचार पत्र बारून ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि चीन, जो ईरान के कच्चे तेल के एक चौथाई का ख़रिदार है वह इस समय ईरान के ख़िलाफ़ अमेरिका द्वारा लगाए गए एकपक्षीय प्रतिबंधों का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिरोध का धुरी बन गया है। “पीडब्ल्यूएम ऑयल” इंस्टीट्यूट में तेल के बाज़ार के जानकार “स्टफ़ान बर्नूक” का कहना है कि अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते तनाव को देखते हुए इस बात की संभावना कम ही दिखाई देती है कि बीजिंग, वॉशिंग्टन की मांगों को स्वीकार करेगा।
अमेरिकी समाचार पत्र ने ईरान विरोधी अमेरिकी प्रतिबंधों के आरंभ होने और उसके बाद अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में उत्पन्न हुई अस्थिरता की ओर इशारा करते हुए लिखा है कि, ईरान के तेल के सबसे बड़े ख़रीदार देश, तेहरान पर लगाए जाने वाले प्रतिबंधों के ख़िलाफ़ हैं। लेकिन वित्तीय मामलों में अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार को डॉलर की ज़रूरत है और साथ ही यूरोप, तेल के व्यापार में निजी कंपनियों पर निर्भर है और अमेरिका के मुक़ाबले में अपने हितों की सुरक्षा की आवश्यकता के मद्देनज़र यूरोपीय संघ ईरान विरोधी अमेरिकी प्रतिबंधों समक्ष भरपूर मुक़ाबला करने की स्थिति में नहीं है।
थिंक टैंक, सेंटर फ़ॉर न्यू अमेरिकन सेक्युरिटी संस्था के विशेषज्ञ पीटर हार्ल, जो बराक ओबामा के राष्ट्रपति कार्यकाल में ईरान के ख़िलाफ़ प्रतिबंध लगाने के संबंध में कार्य करते थे और अब भी ट्रम्प सरकार में अमेरिका के सुरक्षा केंद्र के सदस्य हैं, उन्होंने इस संबंध में कहा है कि चीन दूसरे देशों के मुक़ाबले में अमेरिकी प्रतिबंधों का मुक़ाबला करने में अधिक सक्षम है। हार्ल ने कहा कि चीन के पास बहुत सी छोटी ऑयल रिफ़ाइनरियां हैं जिनके बारे में अमेरिकी सरकार को पता ही नहीं है और दूसरी ओर चीन के पास अपनी राष्ट्रीय मुद्रा युआन से तेल आयात करने का अनुभव भी है। उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि चीन अपनी बड़ी सरकारी तेल रिफ़ाइनरियों के माध्यम से तेल आयात को कम करने का इच्छुक है।
एक अन्य टीकाकार माइकल हेरिसून का मानना है कि चीन द्वारा अमेरिका के मुक़ाबले में उठाए जा रहे क़दमों का मुख्य उद्देश्य अमेरिका द्वारा चीनी वस्तुओं पर लगाए गए अधिक करों का जवाब देना है। उन्होंने कहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प का धैर्य, सऊदी अरब के तेल के उत्पादन में वृद्धि से जुड़ा हुआ है। हेरिसून का कहना है कि ट्रम्प के लिए तेल उत्पादन में वृद्धि, ईरानी तेल के ख़रीदारों पर और अधिक दबाव डालने के बराबर है लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति को इस बारे में कोई जल्दबाज़ी नहीं है।
अमेरिका के सप्ताहिक समाचार पत्र बारून ने अपनी रिपोर्ट के अंत में लिखा है कि ईरान और चीन के सामने ट्रम्प द्वारा उठाए जा रहे कड़े क़दमों का एक ख़ास उद्देश्य है जिस तक ट्रम्प पहुंचना चाहते हैं, जबकि अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा ईरान के ख़िलाफ़ की जा रही सभी कार्यवाहियां तेहरान पर किसी तरह का कोई प्रभाव नहीं डाल सकती हैं।