ईरानी कैलेंडर के आख़िरी महीने इसफ़ंद के आख़िरी दिन को ईरान मे तेल के राष्ट्रीयकरण के दिन के रूप में मनाया जाता है।
इस दिन ईरान की संसद से पूरे ईरान में तेल उद्योग के राष्ट्रीय करण का क़ानून पास हुआ और देश की जनता के अधिकारों व हितों की रक्षा की दिशा में महत्वपूर्ण क़दम उठाया गया। इसके बाद से तेल उद्योग साम्राज्यवादी ताक़तों के चंगुल से आज़ाद हो गया।
यह क़ानून 20 मार्च 1951 को पास हुआ था। उस समय पश्चिमी एशिया में ईरान सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश था जबकि विश्व स्तर पर अमरीका, वेनेज़ोएला और सोवियत संघ के बाद चौथा सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश था। अमरीका और रूस दोनों की नज़रें ईरान के तेल पर थीं और दरअस्ल ईरान के तेल पर साम्राज्यवादी ताक़तों के बीच मुक़ाबला था।
इस मुक़ाबले में एक दूसरे को पीछे छोड़ने और अपने अपने हित साधने के लिए यह ताक़तें ईरान के राजनैतिक और आर्थिक मंचों पर हर प्रकार का प्रभाव इस्तेमाल करती थीं। बाहरी ताक़तों की यह कोशिश होती थी कि दरबार में और संसद में उनकी पाठ रहे। इसके लिए तानाशाह को अलग अलग तरीक़ों से दबाव में लाया जाता था।
स्थिति यह हो गई थी कि दरबार से जुड़े लोगों के अनुसार संसद में कि जो एक दिखावटी संस्थान था वही लोग सदस्य बनते थे जिनके नामों पर बाहरी ताक़तों की मुहर लगती थी। यह हालत हो गई थी कि विदेशी दूतावासों में सांसदों और अधिकारों के नामों की सूची तैयार की जाने लगी थी।
ईरान में प्रधानमंत्री मुहम्मद मुसद्दिक़ की सरकार ने तेल उद्योग के राष्ट्रीय करण के क़ानून को अप्रैल 1951 में लागू करने के लिए अपने एजेंडे में शामिल किया तो मुसद्दिक़ सरकार के ख़िलाफ़ साज़िश शुरू हो गई। अगस्त 1953 में मुसद्दिक़ की सरकार के ख़िलाफ़ अमरीका और ब्रिटेन ने मिलकर बग़ावत करवा दी।
बग़ावत के बाद सरकार गिर गई और ईरान के तेल उद्योग के दरवाज़े एक बार फिर विदेशी कंपनियों के लिए खुल गए। शेल, ब्रिटिश पेट्रोलियम और केलीफ़ोर्निया और टेक्सास की कंपनियों ने ईरान के तेल के कुंओं पर अपना नियंत्रण और भी बढ़ा लिया।
ईरान में 1979 में इस्लामी क्रांति सफल हुई तो उसके बाद ईरान के तेल संसाधनों पर विदेशी कंपनियों के नियंत्रण से संबंधित समझौते रद्द कर दिए गए। अब तेल के संसाधन खोजने और तेल निकालने और रिफ़ाइन करने क ठेके ईरान की नेशनल आयल कंपनी के हाथ में आ गए।
इस्लामी क्रांति की सफलता और अमरीका के दूतावास पर छात्रों के नियंत्रण के बाद जो जासूसी और साज़िश का केन्द्र बन गया था ईरान के ख़िलाफ़ अमरीका की पाबंदियों का सिलसिला शुरू हो गया। अमरीका को अच्छी तरह पता था कि ईरान की अर्थ व्यवस्था को ध्वस्त करने के लिए तेल उद्योग को निशाना बनाया जाना ज़रूरी है।
पाबंदियां लगाने के पीछे अमरीका का लक्ष्य यह था कि ईरान आर्थिक रूप से बेबस हो जाए वह न तो तेल का उत्पादन कर सके और न तेल की आमदनी उसे हासिल हो। क्योंकि इससे पहले तक ईरान का तेल उद्योग उन उपकरणों पर निर्भर था जो पश्चिमी देशों से इम्पोर्ट किए जाते थे।
मगर व्यवहारिक रूप से यह हुआ कि ईरान तेल और गैस के उद्योग में धीरे धीरे आत्म निर्भर होता गया। दोनों उद्योगों में इस्तेमाल होने वाले जटिल उपकरण और बड़ी मशीनों भी ईरान के भीतर ही बनाई जाने लगीं। इससे जहां एक तरफ़ तेल व गैस उद्योग में ईरान आत्म निर्भरता की तरफ़ बढ़ा वहीं मशीनों के निर्माण के मैदान में भी उसे अनुभव हासिल होने लगे।
यह तो वास्तविकता है कि तेल और गैस को ईरान की अर्थ व्यवस्था में बहुत बुनियादी पोज़ीशन हासिल है लेकिन ईरान ने इस बीच यह भी किया है कि देश की अर्थ व्यवस्था के स्रोतों में विविधता लाने के लिए भी बड़ी परियोजनाओं पर काम किया है। ईरान इसके लिए प्राइवेट सेक्टर को लगातार सक्रिय करता जा रहा है और उसकी क्षमता बढ़ाने के लिए प्रोग्राम बनाए और लागू किए जा रहे हैं।