आयतुल्लाह ख़ामेनेई का आंदोलन कर रहे अमेरिकी छात्रों के नाम खुला ख़त

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आयतुल्लाह ख़ामेनेई का आंदोलन कर रहे अमेरिकी छात्रों के नाम खुला ख़त

मैं यह खत उन जवानों को लिख रहा हूँ जिनके बेदार ज़मीरों ने उन्हें ग़ज़्ज़ा के मजलूम बच्चों और औरतों की रक्षा के लिए उत्साहित किया। संयुक्त राज्य अमेरिका के नौजवान छात्रों ! यह आपसे हमारी हमदिली और एकजुटता का पैग़ाम है।  इतिहास बदल रहा है और इस समय आप सही पक्ष में खड़े हो !

आज आपने प्रतिरोध का एक छोटा सा मोर्चा बनाया है। और अतिक्रमणकारी ज़ायोनी शासन का खुल्लम-खुल्ला समर्थन कर रही अपनी सरकार के अन्यायपूर्ण दबाव के बावजूद प्रतिरोध का बिगुल फूंका है। 

प्रतिरोध का एक बड़ा मोर्चा आपकी इन्ही भावनाओ और जज़्बात के साथ आपसे दूर क्षेत्र  में संघर्ष कर रहा है। इस प्रतिरोध का मक़सद उस ज़ुल्म और अत्याचार को रोकना है जो ज़ायोनी दहशतगर्द नेटवर्क वर्षों से फिलिस्तीन पर कर रहा है और उनके देश पर क़ब्ज़ा करने के बाद से उन्हें गंभीर दबाव और उत्पीड़न का शिकार बना रहा है। रंगभेदी ज़ायोनी शासन के हाथों आज का नरसंहार दशकों की क्रूरता का ही सिलसिला है। फ़िलिस्तीन एक संप्रभु भूमि है जहाँ मुसलमान, ईसाई और यहूदियों का एक लंबा इतिहास है। 

विश्व युद्ध के बाद, ज़ायोनी लॉबी के पूंजीपतियों ने ब्रिटिश सरकार की मदद से धीरे-धीरे हजारों आतंकवादियों को इस धरती पर भेजा जिन्होंने फिलिस्तीन के शहरों और गांवों पर हमला किया, हजारों लोगों को मार डाला या घायल कर दिया, उन्हें पड़ोसी देशों की तरफ भगा दिया,  उनके घरों, बाज़ारों और कृषि भूमियों को छीन लिया और फ़िलिस्तीन की हड़पी हुई भूमि पर इस्राईल नामक अवैध राष्ट्र का गठन किया। 

अंग्रेज़ों की शुरूआती मदद के बाद इस अवैध शासन का सबसे बड़ी मददगार अमेरिका की सरकार है जिसने इस सरकार को लगातार राजनैतिक, आर्थिक और यहाँ तक की सैन्य मदद जारी रखी है।  यहाँ तक कि नाक़ाबिले मुआफी लापरवाही करते हुए इस सरकार के लिए परमाणु हथियार बनाने के रास्ते भी खोल दिए और इस मामले में उसकी भरपूर मदद भी की। 

ज़ायोनी शासन ने पहले दिन से ही निहत्थे असहाय फिलिस्तनी लोगों के विरुद्ध आक्रमक और हिंसक रवैया अपनाया और तमाम मानवीयय और धार्मिक मूल्यों और इंसानी भावनाओं को रौंद डाला जो गुज़रते समय के साथ बढ़ता ही गया। 

अमेरिकी सरकार और उसके घटक देशों ने राज्य प्रायोजित इस आतंकवाद और ज़ुल्म पर ज़रा सी नाराज़गी का इज़हार भी नहीं किया आज भी ग़ज़्ज़ा के दिल दहला देने वाले जघन्य अपराधों पर अमेरिकी सरकार के बयान सच्चाई पर आधारित न होकर बस औपचारिक होते हैं।  

प्रतिरोधी मोर्चा ऐसे अंधेर और उदासीन माहौल के बीच से उभरा, ईरान की इस्लामी क्रांति ने इस आंदोलन को बढ़ावा और ताक़त दी। 

अमेरिका और यूरोप के अधिकांश मीडिया संसाधनों के मालिक या उन्हें अपनी आर्थिक शक्ति के अधीन रखने वाले ज़ायोनी लॉबी के सरग़नाओं ने इस प्रतिरोध को आतंकवाद के नाम से बदनाम किया। क्या अतिक्रमणकारी अत्याचारियों से अपने देश और अपनी मातृभूमि की रक्षा करना आतंकवाद है ? क्या ऐसी क़ौम और ऐसे राष्ट्र की मानवीय सहायता और उसके बाज़ुओं को मज़बूत करना आतंकवाद की मदद कहा जा सकता है ?

 दुनिया पर दमनकारी प्रभाव रखने वाले सरगना मानवीय मूल्यों की भी परवाह नहीं करते। वह इस्राईल की अतिक्रमणकारी अत्याचारी सरकार के आतंक को आत्मरक्षा बताते हैं और अपनी आज़ादी, सुरक्षा और भविष्य के लिए संघर्ष कर रहे फिलिस्तीनियों को दहशतगर्द कहते हैं। 

मैं आपको यक़ीन दिलाना चाहता हूँ कि आज माहौल बदल रहा है।  एक नया भविष्य पश्चिमी एशिया के संवेदनशील इलाक़े का इंतेज़ार कर रहा है   विश्व स्तर पर बहुत से ज़मीर बेदार हो चुके हैं और हक़ीक़त खुल कर सामने आ चुकी है। प्रतिरोधी मोर्चा भी शक्तिशाली हो चुका है जो अभी और ताक़तवर और मज़बूत होगा। इतिहास बदल रहा है। तारीख़ के पन्ने भी पलटने वाले हैं।  

संयुक्त राज्य अमेरिका के दर्जनों विश्वविद्यालयों में आप जैसे छात्रों के अलावा, अन्य देशों के विश्वविद्यालय और वहां के लोग भी उठ खड़े हुए हैं। विश्वविद्यालय के शिक्षकों द्वारा आप जैसे विद्यार्थियों का सहयोग एवं समर्थन एक महत्वपूर्ण एवं निर्णायक घटना है। इस से सरकार का दमनकारी रवैया और आप पर पड़ने वाला दबाव कुछ हद तक कम हो सकता है।  मैं भी आप नौ जवानों के प्रति सहानुभूति रखता हूं आप से हमदर्दी का इज़हार करता हूँ और आपकी दृढ़ता की सराहना करता हूं।

हम मुसलमानों और दुनिया के सभी लोगों के लिए पवित्र क़ुरआन की सीख यह है कि सच्चाई के रास्ते पर डटे रहो "استقم کما اُمرت۔"

मानवीय रिश्तों के बारे में भी क़ुरआने मजीद का साफ़ साफ़ दर्स है कि " न ज़ुल्म कर और न ही ज़ुल्म सहो" لاتَظلمون و لاتُظلمون۔"

प्रतिरोधी मोर्चा इन अहकाम और आदेश तथा इन जैसी सैंकड़ों तालीम और सिद्धांतों को सीख कर और इन पर अमल करते हुए आगे बढ़ रहा है और एक दिन अल्लाह की मर्ज़ी से कामयाब भी होगा। 

मैं अपील करता हूँ कि क़ुरआन को जानने की कोशिश कीजिये। 

सय्यद अली ख़ामेनई 25 मई 2024

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