इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने ईरानी राष्ट्र की महानता व गौरव की रक्षा की आवश्यकता पर बल दिया है।
वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने बुधवार की सुबह देश के शिक्षाविदों से होने वाली मुलाक़ात में देश व विश्व स्तर पर कई ज्वलंत मुद्दों पर अपने विचार प्रकट किये।
वरिष्ठ नेता ने परमाणु वार्ता के आयोजन के समय अमरीकी अधिकारियों के धमकी भरे बयानों का उल्लेख करते हुए कहा कि हम धमकी के साथ वार्ता का समर्थन नहीं करते और देश के अधिकारियों और विदेशमंत्रालय को रेड लाइनों पर ध्यान देना चाहिए।
वरिष्ठ नेता ने अमरीकी अधिकारियों की ओर से सैन्य हमले की धमकियों के बारे में कहा कि हम ने पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति के समय में भी कहा था और आज फिर कह रहे हैं कि ईरानी राष्ट्र हर ख़तरे का मज़बूती के साथ मुक़सबला करेगा और उसका जवाब देगा।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि विभिन्न देशों के नेताओं के बयानों के आधार पर यह एक वास्तविकता है कि जिस प्रकार के प्रतिबंध ईरान पर लगाए गये अगर किसी और देश पर लगाए गये होते तो उस देश को गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ता किंतु इस्लामी गणंतत्र ईरान अबतक सिर उठाए खड़ा है।
उन्होंने कहा कि अमरीकियों को वार्ता की यदि ईरान से ज़्यादा नहीं तो ईरान से कम ज़रूरत नहीं है और हम यह चाहते हैं कि परमाणु मामले का समाधान हो किंतु इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि यदि प्रतिबंध नहीं हटाए गये तो हम देश नहीं चला पांएगे।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि थोपे गए आठ वर्षीय युद्ध के दौरान विश्व की सभी शक्तियों ने ईरानी राष्ट्र को घुटने टेकने पर विवश करने का भरसक प्रयास किया किंतु वह एसा कर नहीं पाए इसलिए इस राष्ट्र की महानता की रक्षा की जानी चाहिए।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि आज विश्व की सब से घृणित सरकार, अमरीका की है और उसका एक कारण, यमन में सऊदी अरब के अपराधों का समर्थन है।
उन्होंने कहा कि आले सऊदी सरकार, बिना किसी कारण के और सिर्फ इसलिए कि यमन के लोग उस व्यक्ति को सत्ता में नहीं देखना चाहते जिसका सऊदी समर्थन करते हैं, यमनी जनता और महिलाओं व बच्चों का नरसंहार कर रही है और अमरीका भी इस महाअपराध का समर्थन करता है।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने कहा कि यमन की संघर्षकर्ता जनता को हथियारों की आवश्यकता नहीं है क्योंकि इस देश की सारी सैन्य छावनियां उसके हाथ में हैं बल्कि इस देश की जनता को घेराबंदी के कारण दवाओं और ईधंन की आवश्यकता है किंतु इस देश में राहत संस्थाओं को भी नहीं जाने दिया जा रहा है।