रसूले इस्लाम (स.अ.) और आपका सादा जीवन

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रसूले इस्लाम (स.अ.) और आपका सादा जीवन

पैग़म्बर हज़रत मुहम्मदे मुस्तफ़ा (स.अ.व.स) जिनको अल्लाह ने सभी मुसलमानों के लिए उस्वतुल हस्ना (आइडियल) बनाकर भेजा है और हम सब की ज़िम्मेदारी है कि पैग़म्बरे अकरम (स) की सीरत और उनके जीवन को आइडियल बनाते हुए उस पर अमल करें ताकि हमारा जीवन कामयाब हो सकें।

हम इस लेख में पैग़म्बर (स) के साधारण जीवन की कुछ मिसालों को शिया और सुन्नी किताबों से पेश कर रहे हैं ताकि सभी मुसलमान पैग़म्बर (स) की रोज़ाना की ज़िंदगी को देखते हुए अपनी ज़िंदगी को उसी तरह बना सकें।

सबसे पहले तो इस्लाम में साधारण जीवन किसे कहते हैं इसको समझना होगा। इस्लाम की निगाह में साधारण जीवन और सादा ज़िंदगी का मतलब है दुनिया की चमक धमक से मोहित होकर उसके पीछे न भागे और दुनिया, दौलत और दुनिया के पदों को हासिल करने के लिए ही सारी कोशिश न हो, ऐसा नहीं है कि इस्लाम ने पैसा कमाने या अच्छा जीवन बिताने पर रोक लगाई है, बल्कि आप ख़ूब कमाइये अच्छा जीवन बिताइये लेकिन साथ साथ अल्लाह के हुक्म पर भी अमल कीजिए और उसके ग़रीब बंदों का भी ख़याल कीजिए।

  आप (स) का खाना पीना

  हज़रत उमर का बयान है कि एक दिन मैं पैग़म्बरे इस्लाम (स) से मिलने गया देखा आप एक बोरी पर लेटे आराम कर रहे हैं और आप का खाना भी जौ की रोटी ही हुआ करती थी, मैं आपको बोरी पर लेटे हुए देखकर रोने लगा, पैग़म्बर (स) ने पूछा: ऐ उमर! क्यों रो रहे हो? मैंने कहा: या रसूल अल्लाह! (स) मैं कैसे न रोऊं, आप अल्लाह के ख़ास बंदे होकर बोरी पर लेटते हैं और जौ की रोटी खाते हैं जबकि ख़ुसरू और क़ैसर (दोनों ईरानी बादशाह थे) अनेक तरह की नेमतें और खाने खाते, नर्म बिस्तर पर सोते। पैग़म्बर (स) ने मुझ से कहा कि ऐ उमर! क्या तुम राज़ी नहीं हो कि वह लोग दुनिया के मालिक रहें और आख़ेरत पर हमारा अधिकार रहे, मैं उनके जवाब से सहमति जताते हुए चुप हो गया। (सुननुल कुबरा, बैहक़ी, जिल्द 7, पेज 46, सहीह इब्ने हब्बान, जिल्द 9, पेज 497)

  पैग़म्बर (स) के खाने के बारे में बहुत सारी हदीसें बयान हुई हैं, जैसे यह कि आपने पूरे जीवन में कभी भी तीन रात लगातार भर पेट खाना नहीं खाया। (अल-एहतजाज तबरसी, जिल्द 1, पेज 335, सुननुल कुबरा, जिल्द 2, पेज 150)

  कभी कभी तो तीन महीने गुज़र जाते थे आपके घर खाना पकाने के लिए चूल्हा तक नहीं जलता था क्योंकि अधिकतर आपका खाना खजूर और पानी हुआ करता था और कभी कभी आपके पड़ोसी आपके लिए भेड़ का दूध भेज देते थे वही आपका खाना होता था। (तबक़ातुल कुबरा, जिल्द 1, पेज 307, सुननुल कुबरा, जिल्द 7, पेज 47)

  कुछ रिवायतों में इस तरह भी नक़्ल हुआ है कि आप लगातार दो दिन जौ की रोटी भी नहीं खाते थे। (मुसनदे अहमद इब्ने हंबल, जिल्द 6, पेज 97, अल-बिदाया वल-निहाया, इब्ने कसीर, जिल्द 6, पेज 58)

  अनस इब्ने मालिक से रिवायत नक़्ल हुई है कि एक बार हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स.अ) आपके लिए रोटी लेकर आईं, आपने पूछा बेटी क्या लाई हो? हज़रत ज़हरा (स.अ) ने फ़रमाया: बाबा रोटी बनाई थी दिल नहीं माना आपके लिए भी ले आई, आपने फ़रमाया बेटी तीन दिन बाद आज रोटी खाऊंगा। (तबक़ातुल कुबरा, इब्ने असाकिर, जिल्द 4, पेज 122)

  यह रिवायत भी अनस से नक़्ल हुई है कि मेहमान के अलावा कभी भी आपके खाने में रोटी और गोश्त एक साथ नहीं देखा गया। (तबक़ातुल कुबरा, जिल्द 1, पेज 404, सहीह इब्ने हब्बान, जिल्द 14, पेज 274)

  अबू अमामा से नक़्ल है कि कभी भी पैग़म्बर (स) के दस्तरख़ान से रोटी का एक भी टुकड़ा बचा हुआ नहीं देखा गया। (वसाएलुश-शिया, हुर्रे आमुली, जिल्द 5, पेज 54, अल-नवादिर, फ़ज़्लुल्लाह रावंदी, पेज 152)

  आप (स.अ) का लिबास

  पैग़म्बर (स) कपड़े पहनने में भी सादगी का ध्यान रखते थे, आप कभी पैवंद लगे कपड़े भी पहनते थे। (अमाली, शैख़ सदूक़, पेज 130, मकारिमुल अख़लाक़, पेज 115) इसी तरह कभी कभी आपको ऊन के मामूली कपड़े पहने भी देखा गया। (तबक़ातुल कुबरा, जिल्द 1, पेज 456, मीज़ानुल एतदाल, जिल्द 3, पेज 128) अनस इब्ने मालिक से रिवायत है कि रोम के बादशाह ने एक बड़ी क़ीमती रिदा आपको तोहफ़े के रूप में भेजी, पैग़म्बर (स) उसको पहनकर जब लोगों के बीच आए तो लोगों ने पूछा, ऐ रसूले ख़ुदा! (स) क्या यह रिदा आसमान से आई है? आपने फ़रमाया: तुम लोगों को यह रिदा देखकर आश्चर्य हो रहा है जबकि ख़ुदा की क़सम! जन्नत में साद इब्ने मआज़ का रूमाल इस से ज़ियादा क़ीमती है, फिर आपने वह रिदा जाफ़र इब्ने अबी तालिब को देकर रोम के बादशाह को वापस भेज दी। (सहीह बुख़ारी, जिल्द 7, पेज 28, तबक़ातुल कुबरा, जिल्द 1, पेज 457) आप अपने सोने के लिए जिस बिस्तर का प्रयोग करते थे वह खजूर के पेड़ की छाल से बना हुआ था (तारीख़े दमिश्क़, जिल्द 4, पेज 105)

हज़रत आयेशा से रिवायत है कि एक दिन किसी अंसार की बीवी किसी काम से पैग़म्बर (स) के घर आई, उसने मेरे घर में पैग़म्बर (स) का बिस्तर देखा और जब वापस गई तो उसने ऊन से बने बिस्तर को आपके लिए भेजवाया, पैग़म्बर (स) जब घर आए तो उन्होंने उस बिस्तर के बारे में पूछा, मैंने बताया अंसार के घराने की एक औरत ने आपके मामूली बिस्तर को देखने के बाद यह ऊनी बिस्तर भेजा है, आपने उसी समय कहा कि इसको वापस करवा दो, फिर मुझ से फ़रमाया कि अगर मैं चाहता तो अल्लाह सोने और चांदी के पहाड़ को मेरे क़ब्ज़े में दे देता। (तबक़ातुल कुबरा, जिल्द 1, पेज 465, सीरए हलबी, जिल्द 3, पेज 454)

  एक और रिवायत में है कि कभी कभी पैग़म्बर (स) रिदा बिछाकर ही सोते थे और अगर कोई चाहे उसकी जगह कुछ और बिछा दे तो आप मना करते थे। (तबक़ातुल कुबरा, जिल्द 1, पेज 467, अल-बिदाया वल-निहाया, जिल्द 6, पेज 56)

  अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद से नक़्ल की गई रिवायत में मिलता है कि एक दिन पैग़म्बर (स) खजूर की चटाई पर सो रहे थे, चटाई पर सोने की वजह से आपके बदन पर निशान पड़ गए थे, जब आप उठे तो मैंने पैग़म्बर (स) से कहा, या रसूल अल्लाह! (स) अगर आपकी अनुमति हो तो इस चटाई के ऊपर बिस्तर बिछा दिया जाए ताकि आपके बदन पर इस तरह के निशान न बनें, आपने फ़रमाया: मुझे इस दुनिया की आराम देने वाली चीज़ों से क्या लेना देना, मेरी और दुनिया की मिसाल एक सवारी की तरह है जो थोड़ी देर आराम करने के लिए एक पेड़ के नीचे रुकती है और उसके बाद तेज़ी से अपनी मंज़िल की ओर बढ़ जाती है। (तारीख़े दमिश्क़, जिल्द 3, पेज 390, तबक़ातुल कुबरा, जिल्द 1, पेज 363)

  आप (स) का मकान

  वाक़ेदी ने अब्दुल्लाह इब्ने ज़ैद हज़ली से रिवायत की है कि जिस समय उमर इब्ने अब्दुल अज़ीज़ के हुक्म से पैग़म्बर (स) और उनकी बीवियों के घर वीरान किए गए मैंने वह मकान देखे थे, आंगन की दीवारें कच्ची मिट्टी की थीं और कमरे, लकड़ी, खजूर की छाल और कच्ची मिट्टी से बने हुए थे, आपका कहना था कि मेरी निगाह में सबसे बुरा यह है कि मुसलमानों का पैसा घरों के बनवाने में ख़र्च हो। (तबक़ातुल कुबरा, जिल्द 1, पेज 499, अमताउल असमाअ, जिल्द 10, पेज 94)

वलीद इब्ने अब्दुल मलिक के दौर में उसके हुक्म के बाद पैग़म्बर (स) और आपकी बीवियों के कमरों को तोड़कर मस्जिद में शामिल कर लिया गया, सईद इब्ने मुसय्यब का कहना है कि ख़ुदा की क़सम! मैं चाहता था कि पैग़म्बर (स) का पूरा घर वैसे ही बाक़ी रहे ताकि मदीने के लोग आपके घर को देखकर समझ सकें कि आप कितना साधारण जीवन बिताते थे और फिर लोग दौलत और अच्छे मकानों की आरज़ू को छोड़कर सादगी की ओर आकर्षित होते। (अमाली, पेज 130, मकारिमुल अख़लाक़, पेज 115)

  इंसान की बुनियादी ज़रूरते यही तीन हैं एक उसका खाना, दूसरा उसके कपड़े और तीसरा उसका घर, हम इस लेख में देख सकते हैं कि इन तीनों में अल्लाह के बाद सबसे महान शख़्सियत का जीवन कितना सादा और साधारण था।

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