رضوی

رضوی

इज़राइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू के कार्यालय में सुरक्षा बैठक के दौरान बहस और हंगामे की खबर हैं नेतन्याहू ने हमास के साथ बंधकों की रिहाई के लिए एक समझौते की घोषणा की थी इस समझौते के तहत, गाजा पट्टी में युद्धविराम लागू किया गया और दर्जनों बंधकों की रिहाई सुनिश्चित हुई।

इज़रायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू प्रमुख रोनीन बार तथा इज़रायली सेना में बंधकों के मामले के प्रभारी जनरल नित्सान एलोन के बीच अविश्वास का संकट जारी है। नेतन्याहू लगातार इन दोनों अधिकारियों की विश्लेषणात्मक क्षमताओं पर संदेह और अपमानजनक टिप्पणियाँ कर रहे हैं। यह तब हो रहा है जब नेतन्याहू ने एक अभूतपूर्व कदम उठाते हुए वार्ता दल को बदल दिया है।

रविवार रात इज़रायली चैनल 13 ने अब तक के सबसे लंबे युद्ध के संचालन, खासकर बंधकों की रिहाई और हमास के खिलाफ जारी युद्ध जैसे संवेदनशील मुद्दों पर नई जानकारी दी बैठक के दौरान, रोनीन बार ने इस मामले के प्रबंधन को लेकर अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा,जनमत को गुमराह किया जा रहा है।

मैं यह मानना चाहता हूँ कि यह केवल अज्ञानता है। यह असंभव है कि हम अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से कहें कि वह इस युद्ध को समाप्त कर दें क्योंकि यह कभी भी एजेंडा का हिस्सा नहीं रहा है और न ही ऐसा होगा।

इसके विपरीत, नेतन्याहू के करीबी और वार्ता का नेतृत्व संभाल रहे मंत्री रॉन डर्मर ने इस विचार का विरोध करते हुए कहा,हम एक दिन के लिए भी हमास को सत्ता में नहीं रहने देंगे। हम इसे एक मिनट भी बर्दाश्त नहीं कर सकते तुम हकीकत को नहीं समझ रहे हो। हमास एक समूह’ है जिसने 7 अक्टूबर को हम पर हमला किया था।

दूसरी ओर जनरल नित्सान एलोन, जो युद्ध की शुरुआत से ही बंधकों के मामले की देखरेख कर रहे हैं ने अलग दृष्टिकोण पेश करते हुए मंत्रियों से कहा,अगर हमास की शर्तों पर चर्चा करने से इनकार करेंगे तो बंधकों की रिहाई के मामले में कोई प्रगति नहीं होगी और न ही कोई बंधक रिहा होगा हमें कुछ बंधकों को छुड़ाने के लिए यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाना होगा अमेरिकी मध्यस्थों के जरिए द्वितीय चरण की वार्ता को आगे बढ़ाने के लिए दबाव बना रहे हैं।

इज़रायली सेना के प्रवक्ता ने इस बैठक पर कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया और कहा,हम बंद कमरों में होने वाली बैठकों की चर्चाओं पर टिप्पणी नहीं करते वहीं नेतन्याहू के कार्यालय ने एक संक्षिप्त बयान जारी कर कहा कि इस मुद्दे पर वह कोई टिप्पणी नहीं करेगा

हज़रत इमाम हसन मुजdतबा (अ) ने रमज़ान उल मुबारक के महीने को विश्वासियों के लिए अच्छे कर्मों को प्राप्त करने में एक दूसरे से आगे निकलने का साधन बताया है।

निम्नलिखित रिवायत "तोहफ़ अल-उक़ूल" पुस्तक से ली गई है। इस रिवायत का पाठ इस प्रकार है:

قال الامام المجتبیٰ علیه السلام:

إنَّ اللّه َجَعَلَ شَهرَ رَمضانَ مِضمارا لِخَلقِهِ فَیستَبِقونَ فیهِ بِطاعَتِهِ إلى مَرضاتِهِ

हज़रत इमाम हसन मुज्तबा (अ) ने फ़रमाया:

अल्लाह तआला ने रमज़ान उल मुबारक के महीने को अपनी सृष्टि के लिए (अच्छे कर्मों को प्राप्त करने के संदर्भ में) एक प्रतियोगिता बनाया है, ताकि वे अपने रब की आज्ञाकारिता में एक-दूसरे से आगे निकल जाएं और उसकी प्रसन्नता की तलाश करें।

तोहफ़ उल उक़ूल, पेज  236

रमज़ान का महीना अपनी विशेषताओं की वजह से ख़ास अहमियत रखता है, जिसमें इंसान की ज़िंदगी और आख़ेरत दोनों को संवारा जाता है, इसलिए अगर कोई इस मुबारक महीने के आदाब को नहीं जानेगा तो वह इसकी बरकतों और नेमतों से फ़ायदा भी हासिल नहीं कर सकेगा।

रमज़ान का महीना अपनी विशेषताओं की वजह से ख़ास अहमियत रखता है, जिसमें इंसान की ज़िंदगी और आख़ेरत दोनों को संवारा जाता है, इसलिए अगर कोई इस मुबारक महीने के आदाब को नहीं जानेगा तो वह इसकी बरकतों और नेमतों से फ़ायदा भी हासिल नहीं कर सकेगा।

जिस तरह कुछ जगहें होती हैं जहां इंसान के आने जाने के लिए कुछ आदाब होते हैं जिनका वह ख़याल रखता है जैसे मासूमीन अलैहिमुस्सलाम के रौज़े, मस्जिदें, मस्जिदुल हराम, मस्जिदुन नबी और दूसरी जगहें, इसी तरह माहे रमज़ान के भी कुछ आदाब हैं जिनका ख़याल रखना बेहद ज़रूरी है, विशेषकर उन लोगों के लिए जो रमज़ान की बरकतों और रहमतों से फ़ायदा हासिल करना चाहते है।

 माहे रमज़ान अपनी विशेषताओं की वजह से ख़ास अहमियत रखता है, जिसमें इंसान की ज़िदगी और आख़ेरत दोनों को संवारा जाता है, इसलिए अगर कोई इस मुबारक महीने के आदाब को नहीं जानेगा तो वह इसकी बरकतों और नेमतों से फ़ायदा भी हासिल नहीं कर सकेगा।

 ध्यान रहे ग़फ़लत वह बीमारी है जो हमारे हर तरह के मानवी और रूहानी फ़ायदे को हम तक पहुंचने से रोक देती है या कम से कम पूरी तरह से फ़ायदा हासिल नहीं करने देती है। इसीलिए हमारे इमामों ने इस मुबारक महीने की तैयारी के सिलसिले में कुछ आदाब बयान किए हैं जिनको हम यहां पेश कर रहे हैं।

दुआ, तौबा, इस्तेग़फ़ार, क़ुरआन की तिलावत, अमानतों की वासपी, दिलों से नफ़रतों का दूर करना

अब्दुस-सलाम इब्ने सालेह हिरवी जो अबा सलत के नाम से मशहूर हैं उनका बयान है कि मैं माहे शाबान आख़िरी जुमे में इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम की ख़िदमत में हाज़िर हुआ, उन्होंने फ़रमाया: ऐ अबा सलत! माहे शाबान का महीना लगभग गुज़र चुका है और आज आख़िरी जुमा है इसलिए अब तक जो कमियां रह गई हैं उन्हें दूर करो ताकि बाक़ी बचे हुए दिनों में इस महीने की बरकत से फ़ायदा हासिल कर सको, बहुत ज़ियादा दुआ पढ़ो, इस्तेग़फ़ार करो, क़ुरआन पढ़ो, गुनाहों से तौबा करो ताकि जब अल्लाह का मुबारक महीना आए तो तुम उसकी बरकतों और रहमतों से फ़ायदा हासिल करने के लिए पूरी तरह तैयार रहो और किसी भी तरह की कोई अमानत भी तुम्हारे ज़िम्मे न हो और ख़बरदार! किसी मोमिन के लिए तुम्हारे दिल में नफ़रत बाक़ी न रह जाए, ख़ुद को हर किए गए गुनाह से दूर कर लो, तक़वा अपनाओ और अकेले में हो या सबके सामने केवल अल्लाह पर भरोसा करो क्योंकि उसका फ़रमान है कि जिसने अल्लाह पर भरोसा किया अल्लाह उसके लिए काफ़ी है।

इस मख़सूस दुआ को पढ़ना:

 जिसमें बंदा अल्लाह से इस तरह दुआ करता है कि ख़ुदाया! अगर इस मुबारक महीने शाबान में अगर अब तक मुझे माफ़ नहीं किया है वह आने वाले दिनों में मेरी मग़फ़ेरत फ़रमा, क्योंकि अल्लाह माहे रमज़ान के सम्मान में अपने बंदों को जहन्नम से आज़ाद कर देता है।

रोज़ा रखना

एक और अहम चीज़ जो इंसानों को माहे रमज़ान की बरकतों और रहमतों से फ़ायदा हासिल करने के क़ाबिल बनाता है वह रोज़ा रखना है, ख़ास तौर से माहे शाबान के आख़िरी दस दिनों में रोज़ा रखने पर बहुत ज़ोर दिया गया है।

पैग़म्बरे इस्लाम (स) से सवाल किया गया कि कौन से रोज़े का सबसे ज़ियादा सवाब है? आपने फ़रमाया: जो रोज़े शाबान के महीने में माहे रमज़ान के सम्मान में रखे जाते हैं वह सबसे ज़ियादा अहमियत रखते हैं।

इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) फ़रमाते हैं: जो शख़्स माहे शाबान के आख़िरी तीन दिनों में रोज़ा रखते हुए माहे रमज़ान से मिला दे तो अल्लाह उसे दो महीनों के रोज़े का सवाब देता है। (जिन लोगों पर पिछले रमज़ान के क़ज़ा रोज़े हैं वह अगर क़ज़ा की नीयत से रखेंगे फिर भी उन्हें यह सवाब मिलेगा)

हराम निवाले से परहेज़

माहे रमज़ान की बरकतों और नेमतों से फ़ायदा हासिल करने के लिए ख़ुद को तैयार करने के लिए एक और अहम बात यह है कि इंसान ख़ुद को हराम निवाले से बचाकर रखे, क्योंकि हराम निवाला इंसान की सारी इबादत और आमाल को बर्बाद कर देता है।

पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने फ़रमाया: क़यामत के दिन एक गिरोह आएगा जिसकी नेकियां पहाड़ की तरह होंगी लेकिन अल्लाह किसी एक नेकी को भी क़ुबूल नहीं करेगा और फिर अल्लाह हुक्म देगा कि इसके आमाल नामे में नेकी न होने की वजह से इसे जहन्नम में डाल दो! जनाबे सलमान फ़ारसी ने पूछा या रसूलल्लाह (स) यह कौन लोग होंगे? आपने फ़रमाया कि यह वह लोग होंगे जिन्होंने रोज़े रखे, नमाज़ें पढ़ीं और रातों को जाग कर अल्लाह की इबादत भी की लेकिन जब कभी हराम निवाला दिखाई देता तो ख़ुद को रोक नहीं पाते हैं। (यानी खाने पीने में हलाल हराम का ख़याल नहीं करते हैं)

आयतुल्लाह मोहसिन क़राती के अनुसार हवाई जहाज़ हर पेट्रोल से नहीं चल सकता बल्कि उसके लिए विशेष तरह का पेट्रोल होता है उसी तरह हमारे नेक आमाल भी हैं जिन्हें हर हराम निवाला अल्लाह की बारगाह तक पहुंचने से रोकता है इसीलिए अगर कोई अपनी इबादतों और नेक आमाल का सवाब चाहता है तो उसे पाक और हलाल निवाले की तरफ़ ही हाथ बढ़ाना चाहिए।

ख़ुम्स और ज़कात का अदा करना अपनी दौलत को पाक करने के साथ साथ हराम निवाले से भी बचाता है। आज समाज की बहुत बड़ी मुश्किल माली हुक़ूक़ का अदा न करना है, यानी ख़ुम्स और ज़कात अदा करने से फ़रार करना जबकि ख़ुम्स और ज़कात का अदा करना न केवल हमारे माल को पाक करता है बल्कि हमें हराम निवाले से भी बचाता है।

लोगों को माफ़ करना ताकि अल्लाह हम सबको माफ़ करे

तौबा और इस्तेग़फ़ार के महीने के आने से पहले बेहतर है कि दूसरे सभी लोगों की ग़लतियों को माफ़ कर के ख़ुदा की मग़फ़ेरत के लिए ख़ुद को तैयार करें क्योंकि अगर हम किसी की ग़लतियों को माफ़ नहीं कर सकते तो अल्लाह से कैसे अपने लिए मग़फ़ेरत की उम्मीद कर सकते हैं। इसीलिए माहे रमज़ान के आदाब में से है कि उसके आने से पहले हम सभी की ग़लतियों को माफ़ कर के अल्लाह की रहमत और मग़फ़ेरत के मुंतज़िर रहें

ईरान के उत्तरी खुरासान प्रांत के एक मदरसे के शिक्षक ने कहा, "रमज़ान उल मुबारक का महीना अच्छे शिष्टाचार सीखने का सबसे अच्छा अवसर है।" हमें रमज़ान उल मुबारक के महीने में पैगम्बर (स) की इस दुआ को शामिल करने का प्रयास करना चाहिए: "اَللّهُمَّ حَسِّنْ خُلْقی ...  ऐ अल्लाह, हमें अच्छा चरित्र प्रदान कर..."

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन हुसैन अब्दुल्लाही ने हौजा न्यूज़ एजेंसी से बात करते हुए इस महीने से आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करने के महत्व पर जोर दिया और कहा: यह महीना व्यक्तिगत और सामूहिक अच्छे नैतिकता का अभ्यास करने का सबसे अच्छा अवसर है।

उन्होंने आगे कहा: यदि कोई व्यक्ति अच्छे चरित्र के मूल्य और महत्व को जानता है, तो उसे आश्चर्य नहीं होगा कि हज़रत इमाम अली (अ) ने इतना स्पष्ट रूप से क्यों कहा है: "حُسْنُ الْخُلْقِ رَأْسُ کُلِّ بِرٍّ हुस्नुल ख़ुल्क़े रासो कुल्ले बिर्रिन" (यानी, अच्छा चरित्र सभी अच्छाई और सद्गुणों की नींव है), और इससे भी अधिक, " الإْسْلامُ حُسْنُ الْخُلْقِ अल इस्लामो हुस्नुल ख़ुल्क़े" (यानी, इस्लाम अच्छे चरित्र का नाम है)।

हुज्जतुल इस्लाम हुसैन अब्दुल्लाही ने कहा: मनुष्य को अनैतिकता की बुराई से ईश्वर की शरण लेनी चाहिए, क्योंकि हदीस में कहा गया है: "إِنَّ سُوءَ اَلْخُلُقِ لَیُفْسِدُ اَلْإِیمَانَ... इन्ना सूअल ख़ुल्के लायुफ़सेदुल ईमाना..." अनैतिकता ईमान को नष्ट कर देती है।

उन्होंने कहा: ईमान इंसानियत की बुनियाद है और इसे नुकसान पहुंचाना बहुत खतरनाक है। इसीलिए जब नबी (स) को एक ऐसी औरत के बारे में बताया गया जो रात में इबादत करती है और दिन में रोज़ा रखती है, लेकिन बदचलन है और अपनी ज़बान से अपने पड़ोसियों को नुकसान पहुँचाती है, तो नबी (स) ने फरमाया: "उसमें कोई अच्छाई नहीं है, वह जहन्नम वालों में से है।" यानी इस औरत में कोई अच्छाई या भलाई नहीं है और वह जहन्नम वाली है।

हुज्जतुल इस्लाम अब्दुल्लाही ने कहा: रिवायतों में वर्णित है कि एक आदमी अल्लाह के रसूल (स) के पास आया, उनके सामने खड़ा हुआ और पूछा: धर्म क्या है? हज़रत ने कहा: अच्छे आचरण। यह व्यक्ति पैगम्बर के दाहिनी ओर से आया और पूछा: धर्म क्या है? पैगम्बर ने कहा: "अधिमान्य नैतिकता।" फिर वह पैगम्बर के बायीं ओर से आया और पूछा: धर्म क्या है? हज़रत ने कहा: अच्छा चरित्र क्या है? फिर वह पैगम्बर के पीछे से आया और पूछा: धर्म क्या है? पैगम्बर ने उसकी ओर मुड़कर कहा: धर्म का अर्थ है अपने क्रोध और गुस्से पर नियंत्रण रखना।

उन्होंने कहा: जब इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) से अच्छे चरित्र और अच्छे व्यवहार की सीमा के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा: "अपने पक्ष में नरमी बरतो, अपने भाषण में दयालुता बरतो, और अपने भाई को शुभ सूचना के साथ बधाई दो।" अच्छा चरित्र लोगों के साथ दयालुता और नम्रता से व्यवहार करना है। उनसे अच्छे लहजे में बात करो और अपने भाइयों से प्रसन्न मुख से मिलो।

धार्मिक अध्ययन शिक्षक ने निष्कर्ष निकाला: "ईश्वर का यह महीना अच्छे नैतिक मूल्यों का अभ्यास करने का सबसे अच्छा अवसर है।" इस महीने के दौरान, हमें पवित्र पैगंबर (स) की दुआ को अपने जीवन में शामिल करने का प्रयास करना चाहिए: "اَللّهُمَّ حَسِّنْ خُلْقی ...  ऐ अल्लाह, हमें अच्छा चरित्र प्रदान कर..."।

लेबनान के राष्ट्रपति अपनी पहली विदेशी यात्रा के तहत सऊदी अरब जाएंगे और इसके बाद अरब देशों के नेताओं के आपातकालीन शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए मिस्र की यात्रा करेंगे।

लेबनान के राष्ट्रपति जोसेफ आउन  सोमवार आधिकारिक यात्रा पर सऊदी अरब जाएंगे और इसके बाद काहिरा में होने वाले अरब नेताओं के आपातकालीन शिखर सम्मेलन में शामिल होंगे।

यह लेबनान के राष्ट्रपति की पहली आधिकारिक विदेश यात्रा होगी जो सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के निमंत्रण पर की जा रही है।मिस्र के विदेश मंत्रालय ने भी घोषणा की है कि 4 मार्च को फिलिस्तीन की स्थिति पर चर्चा के लिए अरब नेताओं का आपातकालीन शिखर सम्मेलन आयोजित किया जाएगा।

गौरतलब है कि 9 जनवरी को लेबनान की संसद ने देश की सेना के कमांडर जोसेफ आउन को नया राष्ट्रपति चुना। यह निर्णय तब लिया गया जब पूर्व राष्ट्रपति मिशेल आउन का कार्यकाल अक्टूबर 2022 में समाप्त हो गया था जिसके बाद 14 महीनों तक देश राजनीतिक अस्थिरता और आधिकारिक सरकार के अभाव में था। अब, नए राष्ट्रपति के चयन के साथ लेबनान में एक नई सरकार का गठन हो चुका है।

सीरिया में स्थानीय सूत्रों ने बताया कि हमा प्रांत के एक मस्जिद के सामने गोलीबारी हुई जिसमें 6 लोगों की मौत जबकि 12 अन्य घायल हो गए।

अलमयादीन ने बताया कि हमा के ग्रामीण क्षेत्र में स्थित हियालीन गांव की एक मस्जिद के सामने कल रात गोलीबारी की घटना हुई।

इस हमले में कम से कम 6 लोगों की मौत हो गई जबकि 12 अन्य घायल हो गए बताया जा रहा है कि बशर अलअसद सरकार को गिराने के बाद से सीरिया में सशस्त्र झड़पें तेज हो गई हैं।

इसके अलावा बीते दिन सूत्रों ने जानकारी दी कि आतंकवादी गुट अलजोलानी ने 32 आतंकवादियों को रिहा कर दिया जिनमें से आधे विदेशी नागरिक थे।

एक रिपोर्ट के अनुसार, यह आतंकवादी पांच सीरियाई शहरों में अलवी समुदाय के नरसंहार में शामिल थे लेकिन पिछले तीन दिनों में इन्हें रिहा कर दिया गया है।

आयतुल्लाहिल उज़्मा वहीद ख़ुरासानी ने कहा: जो लोग उच्च पद प्राप्त करते हैं वे वह होते हैं जो शिक्षा को तक़वा के साथ जोड़ते हैं। जितना अधिक तक़वा होगा, ग़ैब से उतनी ही अधिक सहायता मिलेगी।

आयतुल्लाहिल उज़्मा वहीद खुरासनी ने एक लेख में "उच्च पदों पर पहुंचने" के विषय पर बात की और कहा:

धार्मिक ज्ञान सशर्त है। शर्तें क्या हैं? हर तकनीक मुफ़्त है, वह सशर्त है। आप डॉक्टर बनना चाहते हैं। एक यहूदी, एक ईसाई, या एक मजूसी जो चिकित्सा का अध्ययन करता है वह चिकित्सक बन जाता है। यदि आप गणित का अध्ययन करते हैं, तो आप गणितज्ञ बन जाते हैं। जब आप गणित, फ़ीजिक और रसायन शास्त्र का अच्छी तरह अध्ययन करते है, तो विज्ञान का मास्टर बन जाते है। लेकिन दीन का ज्ञान शर्तों पर निर्भर है। "ذلِکَ الْکِتَابُ لَا رَیْبَ فِیهِ هُدًی لِلْمُتَّقِینَ ज़ालेकल किताबो ला रैबा फ़ीहे हुदन लिल मुत्तकीन" यही वह किताब है, जिसमें कोई संदेह नहीं, यह नेक लोगों के लिए मार्गदर्शन है। (सूरा बक़रा: 2) और यह मार्गदर्शन है मुत्तकी के लिए।

जो लोग शिक्षा को तक़वा के साथ जोड़ते हैं वे उच्च पदों पर पहुंचते हैं। जितना अधिक तक़वा होगा, ग़ैब से उतनी ही अधिक सहायता मिलेगी। शेख अंसारी जो सबसे शेख आज़म और ताज उल फ़ुक़्हा वल मुजतहेदीन बन गए, कैसे शेख, शेख अंसारी बन गए। परिश्रम, प्रयास और तक़वा को जोड़ा गया और शेख अंसारी का जन्म हुआ।

रमज़ान के पवित्र महीने के पहले दिन, फ़िलिस्तीनी जमा हुए और ज़ायोनी शासन के नरसंहार से नष्ट हुए घरों के पास उन्होंने अपना रोज़ा खोला।

रमज़ान के पवित्र महीने की शुरुआत और जॉर्डन नदी के पश्चिमी तट में जेनिन शिविर में रहने वाले फ़िलिस्तीनियों की घेराबंदी की वजह से पैदा कठिन आर्थिक और सामाजिक स्थिति के साए में, इस कैंप पर ज़ायोनी हमले और जॉर्डन नदी के पश्चिमी तट में फ़िलिस्तीनी घरों का विनाश जारी है।

ज़ायोनी शासन के बुलडोज़रों ने वेस्ट बैंक में जेनिन कैंप की मुख्य और छोटी मोटी सड़कों को भी नष्ट कर दिया। पार्सटुडे के अनुसार, फ़िलिस्तीनी सूत्रों के अनुसार, इस हमले के बाद लगभग 40 हज़ार फ़िलिस्तीनी विस्थापित हो गए हैं।

एक फ़िलिस्तीनी शरणार्थी ने अल-आलम न्यूज़ चैनल से बात करते हुए कहा: हम अपने घर लौटने का इंतजार कर रहे हैं। ज़ायोनी शत्रु सोचता है कि वह विस्थापन से फ़िलिस्तीनियों की इच्छा को कुचल सकता है, लेकिन यह ग़लत है। ज़ायोनी शासन के हमलों के बावजूद हम अपनी मातृभूमि में रहना चाहते हैं, जेनिन उनका नहीं, बल्कि फ़िलिस्तीनियों का है।

दूसरी ओर शनिवार से ज़ायोनी शासन ने वेस्ट बैंक के उत्तर में तूलकर्म शहर के पूर्व में स्थित नूर अल-शम्स कैंप में आवासीय घरों को नष्ट करना जारी रखा और इस शासन के बुलडोज़रों ने इस शिविर के अंदर लगभग 30 आवासीय इकाइयों को नष्ट कर दिया।

हमास ने वेस्ट बैंक पर हमले की निंदा की

फ़िलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन "हमास" ने ज़ायोनी शासन द्वारा नूर अल- शम्स कैंप में फ़िलिस्तीनी घरों को नष्ट करने की निंदा की, और इस कार्रवाई को अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का स्पष्ट उल्लंघन और युद्ध अपराध क़रार दिया।

हमास ने इस बात पर जोर दिया कि अतिग्रहणकारी सेना की कार्रवाई उसके प्रधानमंत्री और युद्धमंत्री सहित ज़ायोनी शासन के नेताओं के दस्तावेज़ी बयानों से मेल खाती है, जो वेस्ट बैंक के उत्तरी हिस्से में स्थित कैंपों से फिलिस्तीनियों को स्थानांतरित करने की एक योजनाबद्ध योजना का संकेत देते हैं।

युद्ध के खंडहरों पर ग़ज़ा के लोगों की इफ्तार मेज़

दूसरी ख़बर यह है कि ग़ज़ापट्टी में रहने वाले फ़िलिस्तीनी भी रमजान के पवित्र महीने के पहले शनिवार को अपने नष्ट हुए घरों के खंडहरों के बीच और अपने प्रियजनों को खोने के असहनीय दर्द के साथ इफ्तार की मेज पर जमा हुए।

ग़ज़ापट्टी के उत्तर में, जहां सभी आवासीय क्षेत्र नष्ट हो गए हैं, फिलिस्तीनियों ने उन कैंप्स में शरण ली है जिनमें सबसे बुनियादी सुविधाएं तक नहीं हैं और उन्होंने साधारण भोजन, मुख्य रूप से डिब्बाबंद भोजन के साथ अपना रोज़ा खोला।

ग़ज़ा पट्टी के दक्षिण में स्थित ख़ान यूनिस शहर में हालात इससे बहुत अलग नहीं हैं, जहां हजारों फिलिस्तीनी शरणार्थियों को पानी और भोजन की कमी के बीच कैंप में इफ्तार के लिए मजबूर होना पड़ा।

ग़ज़ा में नरसंहार और जातीय सफ़ाए के युद्ध से बचे लोगों ने कुछ जरूरतमंदों को भोजन वितरित किया और जवानों ने स्वेच्छा से रोज़ा खोलने वालों को खजूर और पानी भी दिया।

रफ़ा शहर में, ग़ज़ापट्टी के दक्षिण में और शुजाइया के पड़ोस में, एक सामूहिक इफ्तार की मेज रखी गई थी और सैकड़ों फिलिस्तीनी अपने घरों के खंडहरों के बीच एकत्र हुए थे जो नरसंहार और जातीय सफ़ाए के युद्ध के परिणामस्वरूप नष्ट हो गए थे।

विनाश के बावजूद, ग़ज़ा के लोग एक आशाजनक जीवन बनाने की कोशिश कर रहे हैं और अपने घरों की नष्ट हो चुकी दीवारों पर लालटेन लटकाकर, वे विनाश के बीच आशा की एक किरण जगाने करने की कोशिश कर रहे हैं

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने रविवार 2 मार्च 2025 को रमज़ान मुबारक के पहले दिन, तेहरान में "क़ुरआन से उंस" नामक महफ़िल में जिसमें मुल्क के बड़े क़ारियों, हाफ़िज़ों और क़ुरआन के नुमायां उस्तादों ने शिरकत की, व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर क़ुरआन की शिक्षाओं को अहम ज़रूरत बताया जो इंसान की बीमारियों का इलाज करने वाली हैं और ताकीद की कि क़ुरआनी समाज इस तरह व्यवहार करे कि अल्लाह की किताब का अध्यात्मिक सोता सभी लोगों के दिलों, विचारों और फिर नतीजे के तौर पर व्यवहार और अमल में रच बस जाए।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने ढाई घंटे से ज़्यादा देशी और विदेश क़ारियों, सामूहिक तिलावत करने वाली टीमों और 'तवाशीह' पढ़ने वाले ग्रुप्स को सुना और मोमिनों की सच्ची और बड़ी ईद के तौर पर रमज़ानुल मुबारक की बधाई दी और मुल्क में क़ुरआन के क़ारियों की लगातार बढ़ती हुयी तादाद पर अल्लाह का शुक्र अदा किया। उन्होंने मुख़्तलिफ़ मुश्किलों के हल के लिए समाज को क़ुरआन के अमर सोते की ज़रूरत को वास्तविक और अहम ज़रूरत बताया।

 इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने व्यक्तिगत रूप से अल्लाह की इस किताब की ज़रूरत की व्याख्या में कहा कि एक एक इंसान की मानसिक और नैतिक बीमारियों जैसे ईर्ष्या, कंजूसी, दूसरों के बारे में बुरे विचार, सुस्ती, आत्ममुग्धता, इच्छाओं का अंधा अनुसरण और व्यक्तिगत हितों को सामूहिक हितों पर प्राथमिकता देने का इलाज क़ुरआन में है।

इसी तरह उन्होंने समाज के भीतर आपसी संपर्क के संबंध में कहा कि तौहीद के बाद सबसे अहम विषय सामाजिक न्याय सहित सामाजिक मुश्किलों के हल के लिए भी हमें क़ुरआन की ज़रूरत है।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने दूसरे देशों से संपर्क के संबंध में भी क़ुरआन को रहनुमा कितबा बताया जो सटीक तौर पर रहनुमाई करती है। उन्होंने कहा कि ईरानी क़ौम को दूसरी क़ौमों के साथ कोई मुश्किल नहीं है लेकिन आज उसे काफ़िरों या मुनाफ़िक़ों पर आधारित दुनिया की ताक़तों का सामना है, जिनसे निपटने का तरीक़ा क़ुरआन सिखाता है। उन्होंने कहा कि क़ुरआन हमको बताता है कि हमें कब उनसे बात करनी चाहिए, कब किस चरण में हम सहयोग करें, किस वक़्त उन्हें मुंहतोड़ जवाब दें और किस वक़्त तलवार निकाल लें।

उन्होंने सही तरीक़े से तिलावत और सही तरीक़े से सुनने को मानवता की बीमारियों के दूर होने का सबब बताया और कहा कि जिस वक़्त क़ुरआन की अच्छी तरह तिलावत हो और उसे सही तरह से सुना जाए तो इंसान में सुधार और निजात का जज़्बा पैदा होता है।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने क़ुरआन की एक आयत का हवाला देते हुए पैग़म्बरे इस्लाम का क़ुरआन की आयतों की तिलावत का मक़सद सभी मानसिक बीमारियों से शिफ़ा देना; किताब की शिक्षा का मक़सद व्यक्तिगत और सामाजिक ज़िंदगी के मूल ढांचे कि शिक्षा देना और हिकमत की शिक्षा का मतलब इस सृष्टि की हक़ीक़तों को पहचानने कि शिक्षा देना बताया और कहा कि तिलावत, पैग़म्बरों का काम है और क़ारी हक़ीक़त में पैग़म्बर का काम कर रहे हैं।

उन्होंने क़ुरआन के अर्थ के एक एक शख़्स के वैचारिक आधारों में रच बस जाने को सही तिलावत की उपयोगिता में गिनवाया और क़ुरआन मजीद के सही प्रभाव के लिए उसको सही 'तरतील' से पढ़ने पर ताकीद की। उन्होंने तरतील के सही मानी की व्याख्या में कहा कि तरतील एक आध्यात्मिक चीज़ है, इसका मानी समझकर और ग़ौर व फ़िक्र के साथ तिलावत करना और ठहर ठहर कर पढ़ना है।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने क़ुरआन के मानी की समझ को तिलावत के प्रभावी होने में अहम बताया और कहा कि आज इंक़ेलाब के आग़ाज़ के दिनों की तुलना में हमारे क़ारी, अल्लाह के इस कलाम को अच्छी तरह समझते हैं लेकिन आयतों के मानी की समझ आम जनता स्तर पर फैलनी चाहिए।

उन्होंने मुल्क में क़ुरआन के अच्छे कंटेन्ट बनाए जाने की ओर इशारा किया और कहा कि ख़ुशी की बात है कि मुल्क में क़ुरआन के मैदान में तेज़ी से तरक़्क़ी हुयी है और इंक़ेलाब से पहले की तुलना में कि जब क़ुरआन नज़रअंदाज़ कर दिया गया था और उसकी तिलावत गिने चुने क़ारियों तक सीमित थी, आज पूरे मुल्क यहाँ तक कि छोटे शहरों और कुछ गावों में अच्छे और नुमायां क़ारी मौजूद हैं।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने अंत में उम्मीद जतायी कि इन सूक्ष्म बिंदुओं के पालन से, क़ुरआन का आध्यात्मिक सोता, आम लोगों के दिलों, विचारों और व्यवहार में रच बस जाएगा।

 

 

इजराइल ने रविवार को कहा कि वह गाजा पट्टी में किसी भी वस्तु को प्रवेश करने की अनुमति नहीं देगा।

इजराइल ने रविवार को कहा कि वह गाजा पट्टी में किसी भी वस्तु को प्रवेश करने की अनुमति नहीं देगा।

प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस निर्णय के बारे में विस्तार से नहीं बताया लेकिन चेतावनी दी कि यदि हमास ने संघर्ष विराम के विस्तार के लिए अमेरिकी प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया तो उसे अतिरिक्त परिणाम भुगतने होंगे।

इजराइल हमास के बीच संर्घष विराम का पहला चरण शनिवार को समाप्त हो गया इसमें मानवीय सहायता में वृद्धि शामिल थी। दोनों पक्षों के बीच अभी दूसरे चरण पर बातचीत होनी बाकी है जिसमें इजराइल के अपनी सेना वापस बुलाने और स्थायी युद्ध विराम के बदले में हमास दर्जनों शेष बंधकों को रिहा करेगा।

इजराइल ने रविवार को कहा कि वह पासओवर या 20 अप्रैल तक संघर्ष विराम को आगे बढ़ाने के पक्ष में है इसने कहा कि यह प्रस्ताव अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के पश्चिम एशिया के दूत स्टीव विटकॉफ की ओर से आया है।