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इराकी विदेश मंत्री फुआद हुसैन ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव के विशेष प्रतिनिधि मोहम्मद अल हसन के साथ बैठक की इस मौके पर उन्होंने कई अहम बातों पर चर्चा की और संयुक्त राष्ट्र की सहायता को और बढ़ने पर जोर दिया

इराकी विदेश मंत्री फुआद हुसैन ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव के विशेष प्रतिनिधि मोहम्मद अल हसन के साथ बैठक की इस मौके पर उन्होंने कई अहम बातों पर चर्चा की और संयुक्त राष्ट्र की सहायता को और बढ़ने पर जोर दिया

इराकी विदेश मंत्रालय के एक बयान के अनुसार, बैठक में अल हसन ने हुसैन को इराक के लिए संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन के कार्यों और इस वर्ष के अंत तक मिशन के कार्यों की समाप्ति के लिए उठाए गए कदमों के बारे में जानकारी प्रदान की।

मई 2024 में जारी किए गए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव में इराकी सरकार के अनुरोध के बाद 31 दिसंबर, 2025 तक यूएनएएमआई की इराक से वापसी आवश्यक है।

इसके अलावा, दोनों पक्षों ने इराक की संयुक्त राष्ट्र के साथ भागीदारी को मजबूत करने और संगठन में इसकी उपस्थिति को बढ़ाने पर चर्चा की, विशेष रूप से इराक द्वारा संयुक्त राष्ट्र में विकासशील देशों का सबसे बड़ा अंतर-सरकारी संगठन ‘जी-77’ की अध्यक्षता संभालने के बाद।

बयान के अनुसार, हुसैन ने पिछले वर्षों में इराक की सहायता करने में यूएनएएमआई की भूमिका की सराहना की और विभिन्न क्षेत्रों में संयुक्त राष्ट्र के साथ उत्पादक सहयोग जारी रखने के लिए इराक की इच्छा पर बल दिया।

हज़रत आयतुल्लाहिल बशीर हुसैन नजफ़ी ने रमज़ान के पवित्र महीने की मुनासिबत से मुबल्लिगीन के नाम एक संदेश जारी करते हुए कहा कि वे अपनी मजालिस को हज़रत इमाम हुसैन अ.स. के ज़िक्र से रौशन करें।

आयतुल्लाहिल उज़्मा हाफिज़ बशीर हुसैन नजफ़ी ने पिछले वर्ष रमज़ान मुबारक की शुरुआत में मुबल्लिगीन के नाम एक संदेश जारी किया था जिसे हम दोबारा प्रकाशित कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि अपनी धार्मिक सभाओं (मजलिस) को हज़रत अबा अब्दुल्लाह हुसैन (अ.स. के ज़िक्र से रौशन करें अपने संदेश के एक भाग में उन्होंने धर्म की तब्लिग़ में महिलाओं की अहम भूमिका पर बात करते हुए कहा कि महिलाओं के प्रभाव को नज़रअंदाज नहीं किया जाना चाहिए और हमें उनकी हर संभव सहायता करनी चाहिए।

उनके संदेश का सारांश निम्नलिखित है:

1- मजलिस-ए-हुसैनी (अ.स.) का महत्व:

मजलिस-ए-हुसैनी (अ.स.) पर ध्यान दें और लोगों को इसमें भाग लेने के लिए आमंत्रित करें ताकि वे अहले बैत (अ.स.) के फाज़यल से लाभान्वित हों और उनके मसायब पर आंसू बहाकर ईश्वर का सामीप्य प्राप्त कर सकें।

2- बुजुर्गों की संगत:

बुजुर्गों की बैठकों में शामिल हों उनके अनुभवों से सीखें। इससे आपसी प्रेम एकजुटता और विश्वास बढ़ेगा।

3- समाज पर नज़र रखना:

मुबल्लिगीन को आम लोगों के पास जाना चाहिए और उनकी स्थिति पर ध्यान देना चाहिए इससे रोज़ा न रखने वालों और रमज़ान के अपमान करने वालों को सबक मिलेगा जिनके पास शरीयत का वैध कारण हो, उन्हें भी सार्वजनिक रूप से खाने-पीने से बचना चाहिए।

4- युवाओं को मजलिस से जोड़ना:

युवाओं को मजलिस में भाग लेने के लिए प्रेरित करें ताकि उनके दिलों में ईमान, नैतिकता और धार्मिक सिद्धांतों की मज़बूती आए और वे दुश्मनों के वैचारिक और सांस्कृतिक हमलों से सुरक्षित रहें।

5- महिलाओं की भूमिका:

मुस्लिम महिलाओं पर विशेष ध्यान दें और धर्म प्रचार (तब्लिग़) में उनकी सहायता करें क्योंकि समाज में महिलाओं का गहरा प्रभाव होता है।

6- शहीदों के परिवारों की देखभाल:

प्रवचनकर्ताओं को चाहिए कि वह शहीदों के परिवारों की भौतिक और आध्यात्मिक सहायता करें शहीदों के अनाथ बच्चों का विशेष ध्यान रखें और उनका सम्मान करें।

हर साल रमज़ान का महीना ईश्वर की ओर से एक बहुमूल्य उपहार है, जिसके माध्यम से हमें उसकी दया और कृपा प्राप्त होती है। हम प्रार्थना करते हैं कि ईश्वर हमें इस पवित्र महीने में नमाज़, रोज़ा और पैगंबर (स.) व अहले बैत (अ.) के अनुसरण की तौफ़ीक़ प्रदान करे।

इस्राईल के ख़ुफ़िया विभाग का एक पूर्व अफ़सर और ईरानी मामलों का विश्लेषक व विशेषज्ञ ने स्वीकार किया है कि ईरान का यहूदी समाज अपने सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पहचान पर गर्व करता है।

यद्यपि पश्चिमी संचार माध्यमों ने विस्तृत व बड़े पैमाने पर इस्लामी गणतंत्र ईरान पर प्रचारिक हमला कर रखा है और वे इस प्रकार की ख़बरें प्रकाशित करते हैं कि ईरानी यहूदियों के साथ बुरा व्यवहार किया जाता है परंतु वास्तविकता कुछ और है और ईरानी यहूदी दूसरे ईरानियों के साथ घुलकर शांतिपूर्ण ढंग से ज़िन्दगी गुज़ार रहे हैं और वे अपनी धरोहरों पर गर्व करते हैं।

यहूदियों के संचार माध्यम JNS ने यहूदियों और इस्लामी गणतंत्र ईरान के साथ उनके संबंधों के बारे में लिखा है कि पश्चिमी संचार माध्यम ईरान में रहने वाले यहूदी समाज के बारे में नकारात्मक ख़बरें प्रकाशित करते- रहते हैं परंतु ईरान में रहने वाले यहूदी समाज में किसी प्रकार का कोई तनाव नहीं है।

पार्सटुडे ने ऑनलाइन न्यूज़ एजेन्सी के हवाले से बताया है कि एक यहूदी विश्लेषक और इस्राईली खुफ़िया सेवा का एक पूर्व अफ़सर डेविड नीसान कहता है कि इस विषय को समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि ईरानी यहूदियों की पहचान ईरान से जुड़ी हुई है।

ज्ञात रहे कि डेविड नीसान नामक यहूदी का जन्म तेहरान में हुआ है और वह तेहरान ही में पला-बढ़ा है और उसने गत 16 महीनों के दौरान ईरान में रहने वाले यहूदी समाज के हालात पर नज़र डाली है।

वह ईरान में रहने वाले यहूदी समाज के बारे में लिखता है कि वर्ष 1979 में ईरान में इस्लामी क्रांति की सफ़लता से लेकर अब तक काफ़ी यहूदी ईरान से जा चुके हैं परंतु उसके बावजूद ईरान में रहने वाला यहूदी समाज पूरी तरह यहूदी शैली को सुरक्षित किये हुए है और सरकार की ओर से उनके ख़िलाफ़ किसी प्रकार की कोई कार्यवाही नहीं की जाती है।

ईरान में यहूदियों के 30 उपासना स्थल और स्कूल व शिक्षाकेन्द्र हैं और उन्हें किसी प्रकार से कष्ट का सामना नहीं है और उन्हें किसी प्रकार के हस्तक्षेप के बिना अपनी शैली में ज़िन्दगी करने का पूरा अधिकार है। ईरानी संविधान में उनके मौलिक व बुनियादी अधिकार सुरक्षित हैं और ईरानी संसद में उनका प्रतिनिधि भी है।

  लंबा व पुराना इतिहासः ईरान का यहूदी समाज दुनिया का एक प्राचीनतम समाज है और उसके इतिहास का संबंध 2500 साल से अधिक है। ईरान में रहने वाले यहूदी विभिन्न ईरानी सरकारों में ईरानी समाज के महत्वपूर्ण भाग व हिस्सा रहे हैं और उनमें से बहुत से यहूदियों का सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से विशेष स्थान था।

 2- धार्मिक आज़ादीः लगभग समस्त कालों और सरकारों में ईरान के यहूदियों को धार्मिक अल्पसंख्यक के रूप में पहचाना जाता था परंतु उनकी धार्मिक आज़ादी पूरी तरह सुरक्षित थी।

 

 3- सांस्कृतिक और आर्थिक विकासः ईरानी यहूदी दूसरी संस्कृतियों और समाजों के साथ लेनदेन के कारण आर्थिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक क्षेत्रों सहित विभिन्न भागों व क्षेत्रों में सक्रिय रहे हैं और आज भी वे ईरानी समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

4- धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान की सुरक्षाः ईरानी यहूदी अब भी अपने धार्मिक मूल्यों व परम्पराओं के प्रति कटिबद्ध हैं और ईरान के बहुत से शहरों और गांवों में यहूदी समाज मौजूद है और यहूदियों ने अपनी परम्पराओं को सुरक्षित कर रखा है।

5- सामाजिक और राजनीतिक स्थितिः बहुत से यहूदी ईरान की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति के उचित व अच्छी होने की वजह से ईरान से पलायन के इच्छुक नहीं हैं।

सारांश यह कि ईरानी यहूदी समाज किसी प्रकार की चुनौती के बिना देश में शांतिपूर्ण ढंग से रह रहा है और उसे ईरानी इतिहास और संस्कृति का एक भाग समझा जाता है

हसद व जलन एक बुरी नैतिक बुराई है। हसद का अर्थ यह है कि इंसान उस इंसान से नेअमत के ख़त्म होने की तमन्ना करे जिसे अल्लाह ने कोई नेअमत दे रखी है।

जो इंसान जलता या ईर्ष्या करता है वह दूसरों को खुश नहीं देख सकता है। वह उस चीज़ के ख़त्म होने की आकांक्षा करता है जिसकी वजह से सामने वाला ख़ुश होता है। इसी तरह हसद करने वाला व्यक्ति नेअमत के ही ख़त्म होने की तमन्ना करता है ताकि कोई भी उससे लाभ न उठा सके।

हसद ऐसी बीमारी है जो इंसान की पूरी ज़िन्दगी को प्रभावित करती है और इंसान से आराम व सुकून छीन लेती है। यहां पर हम हसद के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों के कुछ कथनों का वर्णन कर रहे हैं।

पैग़म्बरे इस्लाम फ़रमाते हैं

हसद करने वाला इंसान सबसे कम आनंद उठाता है।

पैग़म्बरे इस्लाम के उत्तराधिकारी हज़रत अली अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं

हसद शैताना का सबसे बड़ा जाल है।

इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम इरशाद फ़रमाते हैं

हसद करने वाला इंसान जिससे हसद करता है उसे नुक़सान पहुंचाने से पहले ख़ुद को नुक़सान पहुंचाता है।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम इरशाद फ़रमाते हैं

हसद करने वाला इंसान हमेशा बीमार रहता है यद्यपि वह शारीरिक दृष्टि से स्वस्थ ही क्यों न हो।

इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम इरशाद फ़रमाते हैं

हसद करने वाले इंसान की तीन अलामते हैं" जिससे जलता है उसके पीठ पीछे उसकी ग़ीबत करता है और जब वह सामने होता है तो उसकी चापलूसी करता है और मुसीबत के वक़्त उसकी आलोचना व निंदा करता है।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम इरशाद फ़रमाते हैं

जो व्यक्ति हसद करना छोड़ दे तो लोग उससे मोहब्बत करने लगेंगे।

इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम इरशाद फ़रमाते हैं"

हसद करने से परहेज़ करो और यह जान लो कि हसद करने का असर ख़ुद तुम्हारे अंदर ज़ाहिर होगा और तुम्हारे दुश्मन के अंदर उसका कुछ असर नहीं हो

शायरे अहलेबैत डाक्टर शऊर आज़मी साहब का मुम्बई में हार्ट अटैक से इन्तेकाल हो गया है।

हिंदुस्तान के मशहूर शायरे अहलेबैत डाक्टर शऊर आज़मी साहब का मुम्बई  में हार्ट अटैक से इन्तेकाल हो गया है।

आम आदमी पार्टी ने नगरायुक्त को पत्र लिखकर रमजान के महीने में मस्जिदों और मुस्लिम बस्तियों में सफाई, प्रकाश और जलापूर्ति सुनिश्चित करने की मांग की है।

आम आदमी पार्टी (AAP) ने रमजान के पवित्र महीने के दौरान मस्जिदों और मुस्लिम बस्तियों में सफाई, प्रकाश और जलापूर्ति जैसी बुनियादी सुविधाओं को सुनिश्चित करने के लिए नगरायुक्त को पत्र लिखा है।

पार्टी के प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य, शानू करैशी, ने बताया कि रमजान मुस्लिम समुदाय के लिए इबादत का महत्वपूर्ण महीना है और इस दौरान नगर निगम को मुस्लिम बस्तियों और गली मोहल्लों में आवश्यक व्यवस्थाओं को दुरुस्त करना चाहिए।

इस मांग के पीछे मुख्य उद्देश्य यह है कि रमजान के दौरान मुस्लिम समुदाय को किसी भी असुविधा का सामना न करना पड़े, और वे अपनी धार्मिक गतिविधियों को सुचारू रूप से संपन्न कर सकें।

आम आदमी पार्टी ने नगर निगम से विशेष ध्यान देने की अपील की है ताकि मस्जिदों और मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में साफ-सफाई, पर्याप्त रोशनी और पानी की आपूर्ति सुनिश्चित हो सके।

भारत के प्रसिद्ध खतीब के निधन पर मौलाना मोहम्मद असलम रिजवी पुणे भारत ने गहरे दु:ख और अफसोस का इज़हार करते हुए ताज़ियत पेश की है।

भारत के प्रसिद्ध खतीब के निधन पर शिया उलेमा बोर्ड महाराष्ट्र के अध्यक्ष मौलाना मोहम्मद असलम रिजवी ने गहरे दुख और अफसोस का इज़हार करते हुए ताज़ियत पेश की है।

उन्होंने कहा कि आलम ए जलील,खतीब ए आले मुहम्मद मौलाना सैयद नईम अब्बास आबदी ने दुनिया ए इल्म और खिताबत को मघमूम और सूगवार कर दिया।

उन्होंने आगे कहा कि मौलाना मरहूम की बेबाक शख्सियत पर जिस तरह कुछ नादान लोगों ने तन्क़ीद की उसी तरह साहीब-ए-फ़िक़्र ओ शऊर ने उनकी शख्सियत को हमेशा सराहा हैं।

मौलाना मोहम्मद असलम रिजवी ने कहा कि मरहूम विलायत-ए-फक़ीह के हिमायती थे इसलिए रहबर-ए-इन्कलाब के दुश्मनों के ख़ार-ए-चश्म बन चुके थे।

उन्होंने कहा कि हम इस सानहे पर इमाम ए ज़माना रहबर-ए-इन्कलाब-ए-इस्लामी आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली हुसैनी खामनेई और तमाम आशिक़ान-ए-मोहम्मद व आल-ए-मोहम्मद की खिदमत में ताज़ियत पेश करते हैं।

 

ईरान के शहर दीवंदरह के अहले सुन्नत इमाम ए जुमआ ने कहा,शोहद ए मुक़ावमत की शहादत के बाद मुक़ावमत का महवर और भी ताकतवर होकर सामने आया और खबीस यहूदी राज्य को बातचीत पर मजबूर कर दिया।

शहर दीवंदरह के अहले सुन्नत इमामे जुमा मौलवी जलाल मुरादी ने शहदा ए मुक़ावमत (प्रतिरोध के शहीदों) की याद में आयोजित एक कार्यक्रम में भाषण देते हुए शहीद सैयद हसन नसरल्लाह और शहीद सैयद हाशिम सफीउद्दीन के भव्य जनाज़े का ज़िक्र किया और कहा,शहीद सैयद नसरल्लाह, हनिया, सनवार, और सरदार मुक़ावमत हाजी क़ासिम सुलेमानी क़ुद्स के शहीद हैं जिन्होंने अपनी जानों का नज़्राना बैतुल मुक़द्दस (यरुशलम) की आज़ादी के लिए पेश किया।

उन्होंने और कहा,दुश्मन यह समझ रहा था कि इन महान शख्सियतों और नेताओं की शहादत से यह तहरीक (आंदोलन) कमजोर या खत्म हो जाएगी लेकिन दुनिया ने देखा कि ऐसा बिल्कुल नहीं हुआ।

इमाम ए जुमा दीवंदरह ने कहा,शहदा ए मुक़ावमत की शहादत के बाद, मुक़ावमत का महवर और भी ताकतवर होकर सामने आया और खबीस ज़ायोनी राज्य को बातचीत पर मजबूर कर दिया।

मौलवी जलाल मुरादी ने कहा,ज़ायोनी राज्य ने मुक़ावमत की सभी शर्तों को स्वीकार कर लिया और यह इस मुक़ावमत की सबसे बड़ी कामयाबी है।

 

हमास ने कहां, जब तक पूरा फ़िलिस्तीनी इलाक़ा आज़ाद नहीं हो जाता तब तक प्रतिरोध जारी रहेगा जिसमें सशस्त्र प्रतिरोध भी शामिल है प्रतिरोध का हथियार हमारे लोगों है और इसका मकसद हमारे लोगों और हमारे पवित्र स्थलों की सुरक्षा है।

हमास ने एक बयान में कहा है कि न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित डॉ. मूसा अबू मरज़ूक़ के बयान सही नहीं हैं यह बयान कल रात ‘क़ुद्स प्रेस’ में प्रकाशित हुआ। बयान के अनुसार, “यह इंटरव्यू कुछ दिन पहले लिया गया था, लेकिन प्रकाशित किए गए अंश हमारे जवाबों को सही तरह से पेश नहीं करते हैं। उन्हें उनके संदर्भ से बाहर निकालकर इस तरह प्रस्तुत किया गया है कि वे इंटरव्यू की असली भावना को नहीं दर्शाता हैं।

हमास के बयान में कहा गया कि डॉ. अबू मरज़ूक़ ने इस बात पर जोर दिया कि 7 अक्टूबर का ऑपरेशन हमारे लोगों के प्रतिरोध, नाकाबंदी, क़ब्ज़े और बस्तियों के खिलाफ उनके अधिकार का प्रतीक है। बयान में यह भी कहा गया कि इस इंटरव्यू में उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इज़रायली क़ब्ज़ाधारी युद्ध-अपराध और नरसंहार के ज़िम्मेदार हैं जो ग़ाज़ा पट्टी में हमारे लोगों के खिलाफ हो रहे हैं। ये अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन हैं और पूरी दुनिया के लिए झटका हैं।

हमास के अनुसार, अबू मरज़ूक़ ने इस इंटरव्यू में यह भी दोहराया कि हमास अपने स्थायी रुख पर अडिग है और जब तक पूरा फ़िलिस्तीनी इलाक़ा आज़ाद नहीं हो जाता तब तक प्रतिरोध जारी रहेगा जिसमें सशस्त्र प्रतिरोध भी शामिल है।

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि प्रतिरोध का हथियार हमारे लोगों का है और इसका मकसद हमारे लोगों और हमारे पवित्र स्थलों की सुरक्षा है। जब तक हमारी ज़मीन पर क़ब्ज़ा है तब तक इसे त्यागना संभव नहीं है।

इज़रायली शासन के विदेश मंत्री गिदोन सार ने दावा किया है कि सीरिया की नई सरकार इदलिब के एक इस्लामी चरमपंथी समूह से बनी है, जिसने जबरन दमिश्क़ पर क़ब्ज़ा कर लिया है नई सीरियाई सरकार एक आतंकवादी समूह है।

इज़रायली शासन के विदेश मंत्री गिदोन सार ने दावा किया है कि सीरिया की नई सरकार इदलिब के एक इस्लामी चरमपंथी समूह से बनी है, जिसने जबरन दमिश्क़ पर क़ब्ज़ा कर लिया है। नई सीरियाई सरकार एक आतंकवादी समूह है।उन्होंने कहा कि बशर अलअसद के सत्ता से हटने पर इज़रायल को खुशी है लेकिन कुर्दों को नुकसान पहुंचा रही है।

गिदोन सार ने चेतावनी देते हुए कहा कि इज़रायल अपनी सीमाओं की सुरक्षा से कोई समझौता नहीं करेगा उन्होंने दावा किया कि सीरिया में हमास और इस्लामिक जिहाद इज़रायल के खिलाफ नया मोर्चा बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

इससे पहले इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इज़रायली सेना के एक कार्यक्रम में कहा था कि उनकी सेना गोलान हाइट्स और बफर ज़ोन में बनी रहेगी।

उन्होंने यह भी कहा कि हयात तहरीर अलशाम और सीरिया की नई सेना को दमिश्क़ के दक्षिण में घुसने नहीं दिया जाएगा। नेतन्याहू ने धमकी दी थी कि, इज़रायल दक्षिणी सीरिया में द्रूज़ समुदाय के खिलाफ किसी भी खतरे को बर्दाश्त नहीं करेगा।

इज़रायली हस्तक्षेप के खिलाफ विरोध प्रदर्शन इज़रायली नेताओं के इन बयानों के बाद, सीरिया के दारा और सुवैदा प्रांतों में इज़रायली हस्तक्षेप के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन हुए।

स्थानीय नागरिकों और समुदायों ने मांग की कि इज़रायल सीरिया के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करे। कुछ प्रदर्शनकारियों ने इज़रायल पर आरोप लगाया कि वह सीरिया में अस्थिरता फैलाने और विभाजन की राजनीति करने की कोशिश कर रहा है।