رضوی

رضوی

आजकल ऐसे लोग कम नहीं हैं जो कुछ कारणों से उस इमाम ए ग़ायब  में विश्वास नहीं करते और उनकी याद को सामने नहीं रखते तथा इस रास्ते में हर तरह का काम करते हैं। चूँकि संकटों और मुसीबतों में धैर्य रखना दीन की एक महत्वपूर्ण शिक्षा है, इसलिए इस दौर में हमें इन संकटों और मुसीबतों के आगे अन्य किसी समय की तुलना में अधिक धैर्य रखना चाहिए।

"आर्दश समाज की ओर" शीर्षक से महदीवाद से संबंधित विषयों की श्रृंखला, इमाम ज़मान (अ) से जुड़ी शिक्षाओं और ज्ञान के प्रसार के उद्देश्य से, आप प्रिय पाठको के समक्ष प्रस्तुत की जाती है।

विशेष कर्तव्य वे कर्तव्य हैं जो किसी तरह इमाम महदी (अ) की ग़ैबत से संबंधित हैं। इस तरह के कर्तव्य जैसे:

1- इमाम महदी (अ) के दोस्तों के साथ दोस्ती और उनके दुश्मनों के साथ दुश्मनी

पैग़म्बर अकरम (स) की बहुत सी हदीसो में अहले बैत (अ) के प्रति प्रेम और उनके दुश्मनों के प्रति दुश्मनी पर जोर दिया गया है और यह सभी समयों से संबंधित है; लेकिन कुछ हदीसो में विशेष रूप से इमाम महदी (अ) के दोस्तों के साथ दोस्ती और उनके दुश्मनों के साथ दुश्मनी की सिफारिश की गई है।

इमाम बाक़िर (अ) पैग़म्बर अकरम (स) से इस प्रकार रिवायत बयान करते हैं:

طُوبی لِمَنْ اَدْرَکَ قائِمَ اَهْلِ بَیتی وَهُوَ یأتَمُّ بِهِ فی غَیْبَتِهِ قَبْلَ قِیامِهِ وَیَتَوَلّی اَوْلِیاءَهُ وَیُعادِی اَعْداءَهُ، ذلِکَ مِنْ رُفَقایی وَ ذَوِی مَوَدَّتی وَاَکْرَمُ اُمَّتی عَلَی یَوْمَ القِیامَةِ तूबू लेमन अदरका क़ाएमा अहले बैती व होवा यातम्मो बेहि फ़ी ग़ैबतेहि क़ब्ला क़यामेहि व यतवल्ला ओलेयाअहू व योआदी आदाअहू, ज़ालेका मिन रोफ़क़ाई व ज़वी मवद्दती व अकरमो उम्मति अला यौमल क़यामते
खुशी है उसके लिए जो मेरे अहले-बैत के क़ाएम को पाए और उनकी ग़ैबत में और उनके क़याम से पहले उनके पीछे चले; उनके दोस्तों को दोस्त बनाए और उनके दुश्मनों का दुश्मन बने; वह मेरे साथियों और मेरे प्रियजनों में से होगा और क़यामत के दिन मेरी उम्मत में सबसे महान होगा। (कमालुद्दीन व तमामुन नेअमत, भाग 1, पेज 286)

2- ग़ैबत की कठिनाइयों पर धैर्य

 आजकल ऐसे लोग कम नहीं हैं जो कुछ कारणों से उस इमाम ए ग़ायब  में विश्वास नहीं करते और उनकी याद को सामने नहीं रखते तथा इस रास्ते में हर तरह का काम करते हैं। चूँकि संकटों और मुसीबतों में धैर्य रखना दीन की एक महत्वपूर्ण शिक्षा है, इसलिए इस दौर में हमें इन संकटों और मुसीबतों के आगे अन्य किसी समय की तुलना में अधिक धैर्य रखना चाहिए

अब्दुल्लाह बिन सिनान इमाम सादिक़ (अ) से रिवायत बयान करते हैं कि उन्होंने फ़रमाया: पैग़म्बर अक़रम (स) ने फ़रमाया:

سَیَأْتِی قَوْمٌ مِنْ بَعْدِکُمْ الرَّجُلُ الْوَاحِدُ مِنْهُمْ لَهُ أَجْرُ خَمْسِینَ مِنْکُمْ. قَالُوا: یَا رَسُولَ اللَّهِ نَحْنُ کُنَّا مَعَکَ بِبَدْرٍ وَ أُحُدٍ وَ حُنَیْنٍ وَ نَزَلَ فِینَا الْقُرْآنُ. فَقَالَ: إِنَّکُمْ لَوْ تحملوا [تحملونَ] لِمَا حُمِّلُوا لَمْ تَصْبِرُوا صَبْرَهُمْ सयाती क़ौमुन मिन बादेकोमुर रज्लुल वाहेदो मिन्हुम लहू अज्रो खम्सीना मिन्कुम । क़ालूः या रसूलुल्लाहे नहनो कुन्ना मअका बेबद्रिन व ओहोदिन व हुनैनिन व नज़ला फ़ीनल क़ुरआनो। फ़क़ालाः इन्नकुम लो तहमलू [तहमलूना] लेमा हुम्मलू लम तस्बेरू सबरहुम
तुम्हारे बाद एक ऐसी पीढ़ी आएगी जिसमें से हर व्यक्ति को आप में से पचास व्यक्तियों के बराबर सवाब मिलेगा।" लोगों ने कहा: "ऐ पैगंबर ए खुदा! हम बद्र, ओहोद और हुनैन के युद्धों में आपके साथ लड़े हैं और हमारे बारे में कुरान की आयतें नाज़िल हुई हैं।" तो आपने फ़रमाया: "अगर आप उस बोझ को उठाते जो उन पर डाला जाएगा, तो उनके जैसा धैर्य नहीं रख पाते।" (शेख तूसी, किताब अल ग़ैबा, पेज 456)

इमाम हुसैन बिन अली (अ) ने भी फ़रमाया:

اِنَّ الصَّابِرَ فِی غَیبَتِهِ عَلَی الاَذی وَالتَّکْذِیبِ بِمَنزِلَةِ المُجاهِدِ بِالسَّیْفِ بَیْنَ یَدَی رَسُولِ اللَّهِ صلی‌الله‌علیه‌وآله‌وسلم इन्नस साबेरा फ़ी ग़ैबतेहि अलल अज़ा वत तक़ज़ीबे बेमंज़ेलतिल मुजाहेदे बिस सैफ़े बैना यदय रसूलिल्लाहे सल्लल्लाहो अलैहे व आलेहि वसल्लम
जो व्यक्ति उनकी ग़ैबत के दौरान आहत करने और अस्वीकार करने पर धैर्य रखता है, वह उस व्यक्ति के समान है जो पैग़म्बर ए ख़ुदा (स) की रिकाब मे तलवार के साथ दुशनो से जिहाद करता है।" (कमालुद्दीन व तमामुन नेअमत, भाग 1, पेज 317)

3- इमाम महदी (अ) के फ़रज के लिए दुआ
इस्लामी संस्कृति में दुआ और प्रार्थना का उच्च स्थान है। दुआ का एक उदाहरण सभी मनुष्यों की परेशानियों को दूर करना हो सकता है। शिया दृष्टिकोण में, यह महत्वपूर्ण कार्य तभी संभव होगा जब अंतिम इलाही जख़ारी ग़ैबत के पर्दे से बाहर आएगा और अपने नूर से दुनिया को रोशन करेगा। इसलिए कुछ रिवायतो में फ़रज और राहत के लिए दुआ करने की सिफारिश की गई है।

हाँ, जो व्यक्ति अपने मालिक के आने की प्रतीक्षा में जी रहा है, वह अल्लाह से उनके मामले की जल्दी और फ़रज की मांग करेगा; विशेष रूप से तब जब वह जानता है कि उनके फ़रज और ज़ुहूर होने से मानव समाज के मार्गदर्शन, विकास और पूर्णता के लिए पूरी तरह से अनुकूल वातावरण तैयार होगा। एक रिवयत के अनुसार, खुद आनहज़रत ने अपनी तौक़ीअ में फ़रमाया:

وَاَکثِرُوا الدُّعاء بِتَعجیلِ الفَرَجِ व अकसेरुद दुआ ए बेतअजीलिल फ़रजे
फ़र्ज की जल्दी के लिए अधिक दुआ करो। (कमालुद्दीन व तमामुन नेअमत, भाग 2, पेज 483)

मरहूम आयतुल्लाह अली पहलवानी तेहरानी (1926-2004 ईस्वी), जिन्हें अली सआदतपुर के नाम से जाना जाता है, शिया आरिफ थे जिन्होंने आयतुल्लाह सय्यद मुहम्मद हुसैन तबातबाई (तफ़्सीर अल-मीज़ान के लेखक) के पास सैर व सुलूक के चरणों को पूरा किया था। उन्होंने इस संबंध में कहा:

"निश्चित रूप से हर कोई जानता है कि इमाम की दुआ और अनुरोध के लिए सिफारिश का उद्देश्य केवल शब्दों को बोलना और जीभ को हिलाना नहीं है; हालांकि दुआ पढ़ने का भी एक विशेष सवाब है; बल्कि उद्देश्य इस दुआ के अर्थ और अवधारणा के प्रति निरंतर हृदय से ध्यान देना है और इस बात पर ध्यान देना है कि ग़ैबत की दौरान दीन का मामला, धार्मिकता और ग़ैबत तथा इमामत में सही विश्वास एक कठिन कार्य है जो केवल यकीन और दृढ़ता वाले व्यक्ति से ही संभव है।" (ज़ुहूर ए नूर, पेज 103)

4-हमेशा तत्परता
ग़ैबत के दौरान सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्यों में से एक निरंतर और वास्तविक तत्परता है। इस विषय में बुहत सी रिवायते हैं।

इमाम बाक़िर (अ) ने (اصْبِرُوا وَ صابِرُوا وَ رابِطُوا; इस्बेरू व साबेरू व राबेतू धैर्य रखो और दुश्मनों के खिलाफ भी दृढ़ रहो और अपनी सीमाओं की रखवाली करो।) आयत के अंतर्गत फ़रमाते हैं:

اصْبِرُوا عَلَی أَدَاءِ الْفَرَائِضِ وَ صَابِرُوا عَدُوَّکُمْ وَ رَابِطُوا إِمَامَکُمْ المنتظر इस्बेरू अला अदाइल फ़राइज़े व साबेरू अदुव्वेकुम व राबेतू इमामकुम अल मुंतज़र
वाजिब कार्यों के निर्वहन पर धैर्य रखो, अपने दुश्मन के खिलाफ धैर्य रखो और अपने प्रतीक्षित इमाम के लिए सहायता के लिए हमेशा तैयार रहो। (नौमानी, अल ग़ैबा, पेज 199)

कुछ लोगों की धारणा के विपरीत, जो «राबेतू» का अर्थ उस हुजूर से संपर्क स्थापित करना और मिलना मानते हैं, यह शब्द संघर्ष के लिए तैयार रहने का अर्थ है। (लेसानुल अरब, भाग 7, पेज 303, मजमउल बहरैन, भाग 4, पेज 248)

5- आन हज़रत के नाम और याद का सम्मान

इस दौर में शिया के लिए इमाम महदी (अ) के प्रति उनके नाम और याद का सम्मान करना उनके कर्तव्यों में से एक है। यह सम्मान कई रूप ले सकता है। दुआ और मुनाजात की बैठकों का आयोजन से लेकर सांस्कृतिक और प्रचारात्मक कार्यों तक, चर्चा और वार्तालाप के मंडलों के गठन से लेकर मौलिक और उपयोगी शोध तक, सभी उस हुजूर के नाम के सम्मान में योगदान दे सकते हैं।

6- विलायत के मक़ाम के साथ संबंध बनाए रखना
इमाम जमान (अ) के साथ हृदय के संबंध को बनाए रखना और मजबूत करना तथा निरंतर वचन और प्रतिज्ञा को नवीनीकृत करना, ग़ैबत के दौर में हर इंतेज़ार करने वाले शिया के लिए एक अन्य महत्वपूर्ण कर्तव्य है।

इमाम बाक़िर (अ) विलायत के काम में दृढ़ रहने वालों के बारे में फ़रमाते हैं:

یَأْتِی عَلَی اَلنَّاسِ زَمَانٌ یَغِیبُ عَنْهُمْ إِمَامُهُمْ فَیَا طُوبَی لِلثَّابِتِینَ عَلَی أَمْرِنَا فِی ذَلِکَ اَلزَّمَانِ إِنَّ أَدْنَی مَا یَکُونُ لَهُمْ مِنَ اَلثَّوَابِ أَنْ یُنَادِیَهُمُ اَلْبَارِئُ جَلَّ جَلاَلُهُ فَیَقُولَ عِبَادِی وَ إِمَائِی آمَنْتُمْ بِسِرِّی وَ صَدَّقْتُمْ بِغَیْبِی فَأَبْشِرُوا بِحُسْنِ اَلثَّوَابِ مِنِّی فَأَنْتُمْ عِبَادِی وَ إِمَائِی حَقّاً مِنْکُمْ أَتَقَبَّلُ وَ عَنْکُمْ أَعْفُو وَ لَکُمْ أَغْفِرُ وَ بِکُمْ أَسْقِی عِبَادِیَ اَلْغَیْثَ وَ أَدْفَعُ عَنْهُمُ اَلْبَلاَءَ وَ لَوْلاَکُمْ لَأَنْزَلْتُ عَلَیْهِمْ عَذَابِی  याति अलन नासे ज़मानुन यग़ीबो अंहुम इमामोहुम फ़या तूबा लिस साबेतीना अला अम्रेना फ़ी ज़ालेकज़ ज़माने इन्ना अद्ना मा यकूनो लहुम मेनस सवाबे अय युनादेयहोमुल बारेओ जल्ला जलालोहू फ़यक़ूला ऐबादी व इमाई आमंतुम बेसिर्रे व सद्दक़तुम बेग़ैबी फ़अब्शेरू बेहुस्निस सवाबे मिन्नी फ़अंतुम एबादी व इमाई हक़्क़न मिंकुम अतक़ब्बलो व अंक़ुम आअफ़ू व लकुम अग़फ़ेरू व बेकुम अस्क़ी ऐबादयल ग़ैयसे व अदफ़ओ अंहोमुल बलाआ व लोलाकुम लअंज़लतो अलैहिम अज़ाबी
लोगों पर एक समय ऐसा आएगा जब उनका इमाम उनसे ग़ायब हो जाएगा। उन लोगों के लिए खुशी है जो उस समय हमारे आदेश पर दृढ़ रहेंगे! उनके लिए इनाम का न्यूनतम स्तर यह होगा कि निर्माता, जिसकी महिमा महान है, उन्हें पुकारेगा और कहेगा: 'मेरे बंदे और मेरी कनीज़ो! तुमने मेरे गुप्त तत्व में विश्वास किया और मेरे ग़ैब में सच्चाई मानी; तो मेरे पास से अच्छे इनाम की खुशखबरी सुन लो। तुम मेरे वास्तविक बंदे और कनीज़ हो। मैं तुम्हारे कार्य स्वीकार करता हूँ, तुम्हारे लिए क्षमा करता हूँ । तुम्हारे कारण मैं अपने बंदों पर वर्षा बरसाता हूँ और उनसे मुसीबत को दूर करता हूँ। और अगर तुम नहीं होते तो मैं उन पर अपना अज़ाब उतार देता। (कमालुद्दीन व तमामुन नेअमत, भाग 1, पेज 330)

और ...

श्रृंखला जारी है ---

इक़्तेबास : "दर्स नामा महदवियत"  नामक पुस्तक से से मामूली परिवर्तन के साथ लिया गया हैलेखकखुदामुराद सुलैमियान

 

अमीरुल मोमेनीन अली (अ) ने एक रिवायत में उन लोगों की ओर इशारा किया हैं जो गुनाहो के प्रति उदासीन हैं।

निम्नलिखित रिवायत "तोहफ़ुल उकूल" पुस्तक से ली गई है। इस रिवायत का पाठ इस प्रकार है:

امیرالمؤمنین علی علیه‌السلام:

عَجِبتُ لأقوامٍ یَحتَمُونَ الطَّعامَ مَخافَةَ الأذی، کَیفَ لا یَحتَمُونَ الذُّنوبَ مَخافَةَ النّارِ؟

अमीरुल मोमेनीन अली (अ) ने फ़रमाया:

मैं उन लोगों पर आश्चर्य करता हूँ जो नुकसान के डर से भोजन से तो बचते हैं; लेकिन आग के डर से पापों से क्यों नहीं बचते?!

तोहफ़ुल उक़ूल, पेज 204

 

आयतुल्लाह काबी ने नोबेल शांति पुरस्कार के मक़सद से इंहेराफ़ की ओर इशारा करते हुए वैश्विक स्तर पर शहीद नसरुल्लाह एवार्ड स्थापित करने का प्रस्ताव रखा है।

जामेअ मुदर्रेसीन हौज़ा ए इल्मिया क़ुम उप-प्रमुख आयतुल्लाह अब्बास काबी ने नोबेल शांति पुरुस्कार के मक़सद से इंहेराफ़ और प्रतिरोध गठबंधन के खिलाफ इस इंहेराफ़ के जवाब में, तथा "अल-अक़्सा तूफान" के दौरान अल्लाह के वादे की पूर्ति के सिलसिले में, वैश्विक स्तर पर शहीद नसरुल्लाह एवार्ड स्थापित करने का प्रस्ताव रखा है।

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्राहीम
ग़ज़्ज़ा की जनता और इस्लामी फिलिस्तीनी प्रतिरोध द्वारा यहूदी राज्य पर विजय और दो साल के युद्ध अपराधों, नरसंहार और अमानवीयता के बाद आक्रमण को बंद करने के लिए मजबूर किए जाने के अवसर पर एक बड़ी सच्चाई स्पष्ट हुई है:

इस्लामी क्रांति के महान नेता के ऐतिहासिक विश्लेषण की पुष्टि हुई है। यहूदी राज्य "अल-अक़्सा तूफान" के भारी जानकारी, राजनीतिक, सैन्य, सुरक्षा और पराजय के बावजूद अपना उद्देश्य पूरा नहीं कर सका। आज हमास पहले की तुलना में सुरक्षा और सैन्य दृष्टि से कहीं अधिक मजबूत, जीवित और प्रभावशाली है।

कब्जा करने वाला राज्य बेमिसाल अपराधों के बावजूद बंधकों को मुक्त नहीं करा सका और उसे मजबूरन प्रतिरोध धुरी के साथ बातचीत करनी पड़ी। ग़ज़्ज़ा जनता और जिहादी दृढ़ संकल्प के साथ पुनर्निर्माण के मार्ग पर अग्रसर होगा और यहूदी राज्य रणनीतिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक संकटों से ग्रस्त है। यह एक घायल भेड़िये के समान है जो मृत्यु से डर रहा है और अपने अस्तित्व के लिए अपराध कर रहा है।

नोबेल शांति पुरुस्कार, जिसे कभी अल्फ्रेड नोबेल ने शांति के लिए प्रयासों की सराहना के लिए स्थापित किया था, अब तक 105 से अधिक पुरुस्कार दे चुका है और यह साबित कर चुका है कि यह न्याय के मार्ग से इंहेराफ वैश्विक अहंकारी व्यवस्था और अंतर्राष्ट्रीय ज़योनवाद के लिए प्रचार का साधन बन गया है।

यह पुरुस्कार उन लोगों को दिया जाता है जिन्होंने कभी मज़लूमों के खिलाफ युद्ध, कब्जा, नाकाबंदी या जबरदस्ती में सीधे भूमिका निभाई है। हेनरी किसिंजर से लेकर शिमोन पेरेस तक, बराक ओबामा से लेकर यूरोपीय संघ तक, और आंग सान सू की तक, जो म्यांमार में नस्लीय सफाई में शामिल रही, नोबेल शांति की सूची में ऐसे नाम शामिल हैं जिनमें से हर एक कम से कम एक युद्ध या कब्जे में शामिल रहा है।

हालांकि इस साल यहूदी राज्य के अपराधों का समर्थक और साथी ट्रम्प नोबेल पुरस्कार से वंचित रहा, लेकिन यह पुरुस्कार उन लोगों को दिया गया जो कब्जा और राष्ट्रों के उखाड़ फेंकने को औचित्य प्रदान करते हैं। इस साल मारिया कोरिना मचादो, एक ज़योनवाद-समर्थक वेनेजुएला की राजनेत्री, जो अपनी कानूनी सरकार की विरोधी है, ने जीत हासिल की है। यह चयन शांति की सराहना नहीं, बल्कि राज्य के उखाड़ फेंकने की योजना, राष्ट्रों की अपमान और कब्जे को औचित्य देने की घोषणा थी।

इस स्पष्ट इंहेराफ के जवाब में, वैश्विक स्तर पर शहीद नसरुल्लाह अवार्ड स्थापित करने का प्रस्ताव रखा जाता है। यह पुरस्कार उन लोगों के लिए होगा:

  • वे मुजाहिद जो युद्ध के मैदान में अत्याचारियों को पीछे धकेलते हैं।
  • मीडिया के वे कर्मचारी जो मलबे के नीचे से सच्चाई बयान करते हैं।
  • वे माताएं जो अपने शहीद बच्चों को गर्व के साथ विदा करती हैं।
  • वे युवा जो विश्वविद्यालयों, सड़कों और वैश्विक नेटवर्क पर सिद्दीक़-ए-शुहदा (अलैहिस्सलाम) के झंडे को ऊंचा रखते हैं।
  • वे बुद्धिजीवी जो कलम के जरिए प्रतिरोध की कहानी को वैश्विक बनाते हैं।
  • और वैश्विक धैर्य के कारवां के वे सक्रिय सदस्य जो विभिन्न मोर्चों पर सांस्कृतिक और मीडिया जिहाद को आगे बढ़ाते हैं।

वैश्विक शहीद नसरुल्लाह अवार्ड केवल एक पुरस्कार नहीं, बल्कि सांस्कृतिक, मीडिया और ईमानी जिहाद के मार्ग में एक आंदोलन है।

अब सवाल यह है कि यह पुरस्कार किसे दिया जाएगा?
यह पुरस्कार उन लोगों को दिया जाएगा जो वैश्विक तानाशाही धुरी के विरोध में, सांस्कृतिक जिहाद के माध्यम से हर पहलू से मज़लूमों और वंचितों की मानवीय सहायता करते हैं।

इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता के नोबेल पुरस्कार के बारे में फ़रमान के अनुसार:
(म्यांमार): इस (बर्मी) सरकार की प्रमुख भी एक महिला (आंग सान सू की) है जिसने (शांति) का नोबेल (पुरस्कार) लिया है। उन्होंने इस पुरस्कार के साथ ही गोया (शांति के) नोबेल पुरस्कार और नोबेल की फातेहा पढ़ दी है। इतने निर्दयी इंसान को शांति का नोबेल पुरस्कार देना! महिला होकर और इतनी निर्दयी! इंसान वाकई उस स्थिति पर हैरान होता है जिसमें दुनिया की मानवता आज डूबी हुई है। 12/09/2017 ई

وَفَضَّلَ اللَّهُ الْمُجَاهِدِینَ عَلَی الْقَاعِدِینَ أَجْرًا عَظِیمًا (۹۵) دَرَجَاتٍ مِنْهُ وَمَغْفِرَةً وَرَحْمَةً وَکَانَ اللَّهُ غَفُورًا رَحِیمًا

(النساء: ۹۶)

وَالْحَافِظُونَ لِحُدُودِ اللَّهِ وَبَشِّرِ الْمُؤْمِنِینَ

(التوبة: ۱۱۲)

अब्बास काबी
10 अक्टूबर 2025 ईस्वी

 

फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध आंदोलन हमास के बीच हाल ही में हुए समझौते के मसौदे में ट्रम्प की योजना में शामिल कुछ बिंदुओं का उल्लेख नहीं है, जिसमें हमास का निरस्त्रीकरण और गाजा पर शासन करने के लिए डोनाल्ड ट्रम्प की अध्यक्षता में एक अंतरिम अंतर्राष्ट्रीय प्रशासन की स्थापना शामिल है।।

फिलिस्तीनी प्रतिरोध आंदोलन हमास के एक वरिष्ठ सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि निरस्त्रीकरण का अनुरोध, जो ग़ज़ज़ा में युद्ध समाप्त करने की अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की योजना में शामिल है, पर वार्ता में चर्चा नहीं की गई।

उन्होंने अपनी पहचान प्रकट न करते हुए समाचार एजेंसी "एएफपी" को बताया कि हथियारों के हस्तांतरण के मुद्दे पर बातचीत अस्वीकार्य है।

यह ध्यान देने योग्य है कि ये बयान ग़ज़्ज़ा में जारी दो साल के युद्ध को समाप्त करने के लिए इजरायल और इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हमास के बीच हुई युद्ध विराम वार्ता के दूसरे दिन सामने आए हैं।

यह याद रखना चाहिए कि इजरायल और हमास ने पिछले गुरुवार को मिस्र के शर्म अल-शेख में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे; जिसने ग़ज़्ज़ा पट्टी पर जारी दो साल के युद्ध को समाप्त करने का रास्ता प्रशस्त किया।

इस समझौते में युद्ध विराम और इजरायली कैदियों के बदले फिलिस्तीनी कैदियों की रिहाई शामिल है; हालांकि समझौते के मसौदे में ट्रम्प की योजना में शामिल कुछ बिंदुओं का कोई उल्लेख नहीं है, जिनमें हमास को निरस्त्र करना और ग़ज़्ज़ा पर शासन के लिए डोनाल्ड ट्रम्प के नेतृत्व में एक अंतरिम अंतर्राष्ट्रीय प्रशासन की स्थापना शामिल थी।

यह बात ध्यान देने योग्य है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने पहले ही कहा था कि शांति योजना के दूसरे चरण में, हमास के हथियारों के हस्तांतरण के मुद्दे पर विचार किया जाएगा, लेकिन हमास ने आधिकारिक तौर पर घोषणा की है कि प्रतिरोध के हथियारों का मुद्दा बातचीत के लिए उपलब्ध नहीं है और जब तक इजरायल का कब्जा बना रहेगा वे अपने हथियार जमीन पर नहीं रखेंगे।

 

हज़रत मुहम्मद मुस्तफा (स) की महान शान में गुस्ताखी करने वाले गोशल महल के एमएलए और बीजेपी नेता टी. राजा सिंह की तेलंगाना सरकार से तुरंत और सख्त कानूनी कार्रवाई की मांग करते हुए हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन डॉ. सैयद निसार हुसैन हैदर आगा ने इसकी कड़ी निंदा की है।

कुल हिंद मुस्लिम उलेमा और ज़ाकेरीन हैदराबाद के अध्यक्ष हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन डॉ. सैयद निसार हुसैन हैदर आगा ने गोशल महल के एमएलए और बीजेपी नेता टी. राजा सिंह की ओर से हज़रत मुहम्मद मुस्तफा (स) की महान शान में की गई गुस्ताखी की कड़ी निंदा करते हुए तेलंगाना सरकार से मांग की है कि उनके खिलाफ तुरंत और सख्त कानूनी कार्रवाई की जाए।

बयान में कहा गया है कि टी. राजा सिंह के इस्लाम और मुसलमानों के खिलाफ नफरत भरे भाषण और उकसाऊ बयान कोई नई बात नहीं है, लेकिन हाल के दिनों में उन्होंने रसूल-ए-रहमत (स) के खिलाफ ऐसे अनुचित और अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया है जिससे सभी मुसलमानों और न्यायप्रिय लोगों के दिलों को गहरा झटका लगा है।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन डॉ. सैयद निसार हुसैन हैदर आगा ने कहा कि सरकार को चाहिए कि ऐसे लोगों के खिलाफ मिसाल कायम करे ताकि भविष्य में कोई भी व्यक्ति इस महान व्यक्तित्व की महान शान में गुस्ताखी करने की हिम्मत न करे और तेलंगाना में शांति व सौहार्द्र का माहौल बना रहे।

अंत में उन्होंने दुआ की कि अल्लाह तआला मुस्लिम उम्मा को एकता और जागरूकता दे और रसूल (स) के गुस्ताखों के बुराई से उन्हें सुरक्षित रखे।

 

कुछ लोगों का यह ख्याल है कि हिजाब औरत के लिए एक क़ैद और कमजोरी का प्रतीक है, जबकि कुरान के नजरिए से हिजाब न तो महिला का व्यक्तिगत अधिकार है, न पुरुष या परिवार से जुड़ा कोई मामला। बल्कि हिजाब एक "इलाही हक़" है, जिसका पालन करना महिला की इज्जत और सम्मान की रक्षा तथा खुदा के हुक्म की इताअत का प्रतीक है।

आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी आमोली ने अपनी एक रचना मे "हिजाब: एक इलाही हक़" शीर्षक के तहत एक महत्वपूर्ण बिंदु प्रस्तुत किया है, जिसका सारांश निम्नलिखित है:

शुबाह
कुछ लोगों का मानना है कि हिजाब महिला के लिए एक क़ैद है, एक ऐसी दीवार जो परिवार या पति ने उस पर थोप दी है, इसलिए वे इसे महिला की कमजोरी और सीमितता का प्रतीक मानते हैं।

जवाब
कुरान पाक के नजरिए से यह सोच पूरी तरह गलत है।

महिला को यह सच्चाई समझनी चाहिए कि:

उसका हिजाब केवल व्यक्तिगत इच्छा का मामला नहीं है कि वह कहे: "मैं अपने अधिकार से दस्तबरदार होती हूँ।"

यह पुरुष का अधिकार भी नहीं है कि वह अनुमति दे या सहमत हो जाए।

यह परिवार का अधिकार भी नहीं है कि वह सामूहिक रूप से फैसला करे।

बल्कि, हिजाब एक "इलाही हक़" है। यह खुदा का आदेश और उसकी अमानत (जिम्मेदारी) है, जिसका पालन सभी पर वाजिब (अनिवार्य) है।

स्रोत: किताब "ज़न दर आइने जलाल व जमाल", पेज 437, आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी आमोली

 

जामिया मुदर्रेसीन हौज़ा ए इल्मिया क़ुम के प्रमुख आयतुल्लाह सैयद हाशिम हुसैनी बुशहरी ने जुमआ की नमाज़ के खुत्बे में इस्लामी देशों को आगाह करते हुए कहा है कि सियोनिस्ट सरकार पर कभी भरोसा नहीं किया जा सकता, वह युद्धविराम के नाम पर भी गज़्ज़ा और फिलिस्तीन पर हमले जारी रखेगा। हमास के फैसले पूरी तरह से स्वतंत्र हैं और उम्मत ए इस्लामिया का समर्थन का हक़दार हैं।

जामिया मुदर्रेसीन हौज़ा ए इल्मिया क़ुम के प्रमुख आयतुल्लाह सैयद हाशिम हुसैनी बुशहरी ने अपने जुमआ के ख़ुतबे में कहा कि फिलिस्तीनी मुजाहिदीन के फ़ैसले स्वतंत्र हैं और इस्लामी दुनिया को उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि भले ही हमास और सायोनी हुकूमत के बीच युद्धविराम की बातें हो रही हैं, लेकिन अब भी रोज़ाना ग़ाज़ा और फ़िलिस्तीन में निर्दोष लोग शहीद हो रहे हैं। उन्होंने इस्लामी मुल्कों से अपील की कि वे ऐसे किसी भी समझौते के बाद इज़राइल को फिर से ग़ाज़ा पर हमला करने की इजाज़त न दें।

आयतुल्लाह हुसैनी बुशहरी ने गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल और यूरोपीय यूनियन के हाल के बयानों को दुखद बताया और कहा कि उन्होंने ईरान के खिलाफ रुख अपनाकर दुश्मन के मोर्चे को मजबूत किया है।

उन्होंने कहा,इस्लामी मुल्कों को समझना चाहिए कि अगर वे ईरान के साथ हैं, तो ईरान की रक्षा शक्ति उनके सुरक्षा का जरिया बनेगी नुकसान का नहीं।

उन्होंने कहा कि कुछ मुल्कों ने तेल की दौलत से अपने देशों को हथियारखाना तो बना लिया है, लेकिन उनके पास उन हथियारों के इस्तेमाल की इजाज़त तक नहीं है।

क़ुम के इमाम जुमआ ने अपने ख़ुतबे के एक हिस्से में उम्मत-ए-मुस्लिमा के इत्तेहाद पर जोर देते हुए कहा कि क़ुरआन मजीद के मुताबिक़, इत्तेफ़ाक़ न होना और दिलों की बीमारियाँ नज़रअंदाज़ी की सबसे बड़ी बाधा हैं।

उन्होंने कहा,ये वही लोग हैं जो कभी ग़ाज़ा के लिए नौका भेजते हैं और कभी इज़राइल को ईंधन मुहैया कराते हैं। ऐसे दोहरे रवैये उम्मत की ताक़त को खत्म कर देते हैं।

उन्होंने युवाओं, माता-पिता और शिक्षकों से अपील की कि वे नमाज़, ईमान और नैतिक शिक्षा को समाज में फैलाएं ताकि दुश्मन के सांस्कृतिक हमलों का मुकाबला किया जा सके।

 

क़ुम मुक़द्देसा में डिजिटल युग के इस्लामी व मानवीय उलूम पर आयोजित पहली राष्ट्रीय कांफ्रेंस में धार्मिक व बौद्धिक हस्तियों ने इस बात पर जोर दिया कि आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंसस (Artificial Intelligence) के बढ़ते प्रभाव के सामने बौद्धिक व नैतिक नेतृत्व केवल हौज़ा ए इल्मिया व इस्लामी केंद्र ही निभा सकते हैं। मुक़र्रेरीन ने कहा कि मानवीय रचनात्मकता व इज्तेहादी दूरदृष्टि का कोई कृत्रिम विकल्प संभव नहीं है।

क़ुम मुक़द्देसा में डिजिटल युग के इस्लामी व मानवीय उलूम पर आयोजित पहली राष्ट्रीय कांफ्रेंस में हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मुर्तज़ा जवादी आमोली, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन अहमद वाएज़ी और हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन बहरामी ने बौद्धिक केंद्रों की ज़िम्मेदारियों व चुनौतियों पर प्रकाश डाला।

बैतुल-इसरा अंतर्राष्ट्रीय फाउंडेशन के प्रमुख हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मुर्तज़ा जवादी आमोली ने अपने भाषण में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के क्रांति को इतिहास की औद्योगिक व संचार क्रांतियों से कहीं अधिक व्यापक बताते हुए कहा कि यह बदलाव शिक्षा, संस्कृति, ज्ञान व उद्योग की मूल संरचना को प्रभावित कर रहा है। उनके अनुसार, इस तेज गति वाले बदलाव के दौर में हौज़ा ए इल्मिया की ज़िम्मेदारी है कि वह इस्लामी विचार को बनाए रखे और जिहाद जैसी पवित्र अवधारणाओं को विकृति से बचाते हुए उनकी मानवीय व नैतिक आयाम को दुनिया के सामने प्रस्तुत करे।

उन्होंने कहा कि इस्लामी बौद्धिक केंद्रों को वैश्विक स्तर पर विचार व ज्ञान की नई दिशा निर्धारित करने की आवश्यकता है ताकि इस्लामी फ़लसफ़ा व शऊर अपनी वास्तविक क्षमता के साथ दुनिया में उभर सके।

मरकज़े तहक़ीक़ात कंप्यूटरी उलूम इस्लामी (नूर) के प्रमुख हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन बहरामी ने इस अवसर पर कहा कि ईरान के शैक्षणिक संस्थानों को "सृजनशील" बनना चाहिए। उनके अनुसार, पश्चिमी दुनिया ने डिजिटल ह्यूमैनिटीज के क्षेत्र में विभिन्न केंद्रों के माध्यम से मजबूत बुनियादी ढांचा बना लिया है, इसलिए हौज़ा व विश्वविद्यालय को भी अपनी इस्लामी संरचना तैयार करनी चाहिए। उन्होंने घोषणा की कि नूर जल्द ही "आर्टिफ़िशियाल इंटेलीजेंस" के लिए एक अकादमी की स्थापना पर काम शुरू करेगा ताकि आने वाली पीढ़ी के छात्र आधुनिक तकनीक से सीधे परिचित हो सकें।

इस्लामी प्रचार विभाग के प्रमुख हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन अहमद वाएज़ी ने अपने भाषण में कहा कि आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस हालांकि जानकारी व विश्लेषण के स्तर पर इंसान की मदद कर सकता है, लेकिन जिन विज्ञानों की नींव मानवीय रचनात्मकता, चिंतन व इज्तेहाद पर है, वहाँ यह कभी भी इंसान की जगह नहीं ले सकता। उन्होंने स्पष्ट किया कि धार्मिक व मानवीय विज्ञान के "क्रांतिकारी" पहलू, जैसे नैतिकता, फ़िक़्ह व फ़लसफ़ा, मानवीय चेतना व अंतरात्मा से जुड़े हैं जिन्हें कोई मशीन नकल नहीं कर सकती।

 

मरकज़ी जामिया मस्जिद स्कर्दू बल्तिस्तान में आयोजित होने वाली नैतिकता की लगातार पढ़ाई की महफिल में अंजुमन-ए-इमामिया बल्तिस्तान के उपाध्यक्ष ने कहा कि क़ुरआन-ए-क़रीम हमें बार-बार सुनने, समझने और फिर सुनकर अच्छी बातों पर अमल करने की ताकीद करता है; सिर्फ सुन लेना ही काफी नहीं होता, बल्कि अमल ही मोमिन की असल पहचान है।

मरकज़ी जामिया मस्जिद स्कर्दू बल्तिस्तान में आयोजित होने वाली नैतिकता की लगातार पढ़ाई की इस हफ्ते की महफिल में अंजुमन-ए-इमामिया बल्तिस्तान के उपाध्यक्ष हुज्जतुल इस्लाम शैख ज़ाहिद हुसैन ज़ाहिदी ने कहा कि क़ुरआन-ए-क़रीम हमें बार-बार सुनने, समझने और फिर सुनकर अच्छी बातों पर अमल करने की ताकीद करता है; सिर्फ सुन लेना ही काफी नहीं होता, बल्कि अमल ही मोमिन की असल पहचान है।

उन्होंने आगे कहा कि इंसान के आसपास हर पल अलग-अलग आवाजें गूंजती हैं। बाजार, गली-कूचों या सफर के दौरान कभी गानों की आवाजें सुनाई देती हैं, कभी बेकार बातें; लेकिन मोमिन की शान यह है कि वह इन बातिल आवाजों से दिल व दिमाग को सुरक्षित रखता है। मोमिन की नजर अगर अचानक नामहरम पर पड़ जाए तो वह तुरंत नजर फेर लेता है, अपने कानों को हराम से बचाता है, अपनी आँखों को नापाक नजारों से सुरक्षित रखता है।

उन्होंने कहा कि हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ) फरमाते हैं: मोमिन इंफ़ाक़ करने वाला होता है, भले ही खुद के पास कुछ न हो, लेकिन वह दूसरों की जरूरत का ख्याल रखता है। यही इंफ़ाक़ होने की निशानी है। अल्लाह ने जिस चीज से रोका है उससे रुक जाना और जिस काम का हुक्म दिया है उसे अंजाम देना; यही असली इताअत है। मोमिन हराम से बचता है, फराइज को अंजाम देता है और अमीरुल मोमेनीन हज़रत अली (अ) के क़दमों पर चलने को अपना गौरव समझता है।

उन्होंने कहा कि पैगंबर-ए-इस्लाम (स) और अइम्मा-ए-मअसूमीन (अ) हमारे लिए पूर्ण नमूना-ए-अमल हैं, उनकी सीरत और क़िरदार ही वह आईना हैं जिसमें हम अपनी ज़िंदगी का प्रतिबिंब देख सकते हैं।

शैख ज़ाहिद हुसैन ज़ाहिदी ने यह कहते हुए कि इंसान की पहचान दो पहलुओं से होती है, कहा कि पहली पहचान जाहिरी है; उसकी शक्ल-सूरत, बोलने का अंदाज, शारीरिक बनावट और व्यक्तित्व के जाहिरी पहलू, ये सब अल्लाह की दी हुई नेमतें हैं, इंसान का व्यक्तिगत कमाल नहीं। खालिक-ए-काइनात ने क़ुरआन में फरमाया: "लक़द ख़लक़नल इंसान फ़ी अहसने तक़वीम" (सूरह तीन, आयत 4) "बेशक हमने इंसान को सबसे अच्छी सूरत में पैदा किया।"

और एक अन्य जगह फरमाया: "व नफ़ख़तु फीहे मिन रूही" (सूरह साद, आयत 72) "मैंने उसमें अपनी रूह से फूंक दी।" यह दर्शाता है कि इंसान की खलकत में अल्लाह ने अपनी क़ुदरत और करम का प्रतिबिम्ब रखा है। 

उन्होंने इंसान की दूसरी पहचान को इंसान की सीरत और क़िरदार बताया और कहा कि इंसान की सीरत व क़िरदार वास्तव में इंसान की असल पहचान है। अल्लाह के नजदीक शक्ल-सूरत की उतनी अहमियत नहीं जितनी अख़लाक, तक़वा और क़िरदार की है। जैसा कि क़ुरआन में फरमाया गया: "इन्ना अक्रमकुम इंदल्लाह अतक़ाकुम" (सूरह हुजरात, आयत 13) "बेशक तुममें सबसे ज्यादा इज्जत वाला वह है जो सबसे ज्यादा परहेजगार है।"

उन्होंने आगे कहा कि हम सब पर अल्लाह का यह एहसान है कि हमारे दिल मुहम्मद व आले मुहम्मद (अ)  के प्यार से मुनव्वर हैं। यही प्यार हमें क़िरदार, सहनशीलता, सब्र और इत्तिफाक का सबक देता है। जब हम अपनी ज़िंदगी को अहले- बैत (अ) की सीरत के आईने में देखते हैं तो हमें अपनी कमियाँ और कमजोरियाँ साफ नजर आती हैं; यह प्यार सिर्फ जज़्बात नहीं, बल्कि अमली तरबियत का जरिया है।

शैख ज़ाहिद हुसैन ज़ाहिदी ने कहा कि इमाम हसन अस्करी (अ) की तालीमात हमें सिखाती हैं कि: मोमिन अपनी ख्वाहिशात पर काबू पाता है, दूसरों के लिए इत्तिफाक करता है और अपने क़िरदार से दीन का प्रतिनिधि बनता है। जो शख्स सीरत-ए-अहले-बैत (अ) को अपना आईना बनाएगा उसका जाहिर भी खूबसूरत होगा और बातिन भी खूबसूरत होगा और ऐसा इंसान अल्लाह के नजदीक महबूब और बंदों के लिए रहमत का कारण बनता है।

 

इमाम ऐ  ज़माना  (अ.स) के  ज़हूर  की  दुआ  बिना  तैयारी  के कोई मायने नहीं  रखती  और तैयारी  ऐसी  हो  की  हमारा  मकसद  समाज  में  अच्छाइयों को बढ़ाना और बुराइयों से  लोगों को  रोकना होना चाहिए और इन सबका मकसद अल्लाह के दीं की हिफाज़त  करना और उसे बढ़ाना हो |

इमाम सादिक़ अ. के ज़माने के बादशाहों के विरुद्ध होने वाले अक्सर आंदोलनों में इमाम सादिक़ अ. की मर्ज़ी शामिल नहीं थी। और आप  अहलेबैत अलैहिस्सलाम की शिक्षाओं को प्रचलित करने को प्राथमिकता देते थे। इसलिए चूँकि वह लोग जो बनी हाशिम को आंदोलन के लिए उकसाते थे और उनकी मदद का वादा करते थे सबके सब या उनमें से अधिकतर समय के हाकिमों की हुकूमत को पसन्द नहीं करते थे या हुकूमत को अपने हाथ में लेना चाहते थे और हरगिज़ बिदअत को मिटाना और अल्लाह के दीन को प्रचलित करना या पैग़म्बरे इस्लाम के अहलेबैत की सहायता उनका उद्देश्य नहीं था।

लेकिन कभी कभी सच्चाई यहाँ तक कि इमाम के ख़ास शियों के लिए भी संदिग्ध हो जाती थी और इमाम सादिक़ अ. से आंदोलन में शामिल होने की अपील करने लगते थे|

कुलैनी र.अ. ने सुदैरे सहरफ़ी के हवाले से लिखा है: मैं इमाम सादिक़ अ. के पास गया और उनसे कहा ख़ुदा की क़सम जाएज़ नहीं है कि आप आंदोलन न करें! क्यों? इसलिए कि आपके दोस्त शिया और मददगार बहुत ज़्यादा हैं। अल्लाह की क़सम अगर अली अ. के शियों और दोस्तों की संख्या इतनी ज़्यादा होती तो कभी भी उनके हक़ को न छीना जाता। इमाम अ. ने पूछा सुदैर उनकी संख्या कितनी है? सुदैर ने जवाब दिया एक लाख। इमाम ने फ़रमाया एक लाख? सुदैर ने कहा जी बल्कि दो लाख। इमाम ने आश्चर्य से पूछा दो लाख? सुदैर ने कहा जी दो लाख बल्कि आधी दुनिया आपके साथ है।

इमाम ख़ामोश हो गए सुदैर कहते हैं कि इमाम उठ खड़े हुए मैं भी उनके साथ चल पड़ा रास्ते में बकरी के एक झुँड के बग़ल से गुज़र हुआ इमाम सादिक़ अ. ने फ़रमाया   :-

ऐ सुदैर अल्लाह की क़सम अगर इन बकरियों भर भी हमारे शिया होते तो आंदोलन न करना मेरे लिए जाएज़ नहीं था फिर हमने वहीं पर नमाज़ पढ़ी और नमाज़ के बाद हमने बकरियों को गिना तो उनकी संख्या 17 से ज़्यादा नहीं थी। (यानी सच्चे शियों और इमाम सादिक़ अ. के जमाने के हबीब इब्ने मज़ाहिर जैसे दोस्तों की संख्या 17 भी नहीं थी।) अल -काफ़ी जिल्द 2 पेज 243

इसलिए अम्र  बिल मारूफ  व नहया अनिल  मुनकर  करते  रहे और इमाम ऐ  ज़माना  (अ.स) के ज़हूर की दुआ करें दिल से | इंशाल्लाह जल्द  से जल्द  ज़हूर  होगा और हमारी  परेशानियां ख़त्म होंगी |