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बुधवार, 15 अक्टूबर 2025 11:40

कुरआन मे महदीवाद (भाग -1)

क़ुरआन ने सामान्य तौर पर ज़ाहिर होने और हज़रत महदी (अ) के क़याम अर्थात आंदोलन के बारे में चर्चा की है और हुकूमत अदले जहानी की स्थापना तथा नेक लोगों की विजय की बधाई दी है। शिया मुफ़स्सिरों और कुछ सुन्नी मुफ़स्सिरों ने इस तरह की आयतों को हज़रत महदी (अ) से संबंधित बताया है।

आर्दश समाज की ओर" शीर्षक से महदीवाद से संबंधित विषयों की श्रृंखला, इमाम ज़मान (अ) से जुड़ी शिक्षाओं और ज्ञान के प्रसार के उद्देश्य से, आप प्रिय पाठको के समक्ष प्रस्तुत की जाती है।

इस्लाम में "महदीवाद" की अवधारणा का क़ुरआन में गहरा आधार है, और यह दिव्य पुस्तक पूरे मानव जाति को अंततः "सत्य" की "असत्य" पर पूर्ण विजय का वादा करती है।

क़ुरआन ने सामान्य तौर पर ज़ाहिर होने और हज़रत महदी (अ) के क़याम अर्थात आंदोलन के बारे में चर्चा की है और हुकूमत अदले जहानी की स्थापना तथा नेक लोगों की विजय की बधाई दी है। शिया मुफ़स्सिरों और कुछ सुन्नी मुफ़स्सिरों ने इस तरह की आयतों को हज़रत महदी (अ) से संबंधित बताया है।

इस अवसर पर, हम क़ुरआन की उन आयतों के समूह में से केवल कुछ आयतों को बयान करेंगे जो महदीवाद से संबंधित हैं और इस विषय पर अधिक स्पष्टता रखती हैं।

चर्चा में प्रवेश करने के लिए, पहले कुछ शब्दों की परिभाषा और अर्थ से परिचित होना ज़रूरी है:

1- तफ़सीर

"तफ़सीर" शब्द "फ़सरा" से लिया गया है, जिसका अर्थ है स्पष्ट करना और ज़ाहिर करना, और "संकेत" में इसका अर्थ है: "कठिन और मुश्किल शब्द से अस्पष्टता को दूर करना" और साथ ही "भाषण के अर्थ में मौजूद अस्पष्टता को दूर करना" भी शामिल है।

तफ़सीर तब होती है जब शब्द में कुछ अस्पष्टता होती है और यह अर्थ और भाषण के अर्थ में अस्पष्टता पैदा करती है, और उसे दूर करने के लिए बहुत प्रयास की आवश्यकता होती है।

चूंकि क़ुरआन की कुछ आयतों को समझना सामान्य लोगों के लिए छिपा हुआ है, इसलिए उनकी व्याख्या और पर्दा उठाने की आवश्यकता है, और यह ज़िम्मेदारी उन लोगों के पास है जिनके पास ऐसा करने की योग्यता और क्षमता है और जिन्हें अल्लाह ने मान्यता दी है।

2- तावील

"तावील" शब्द "अवला" से निकला है, जिसका अर्थ होता है किसी चीज़ को उसके मूल की ओर लौटाना। किसी चीज़ की तावील का मतलब है उसे उसके असल मक़ाम या स्रोत की तरफ़ लौटाना; और किसी मुश्किल भाषा (मुंशबह) की तावील का अर्थ है उसके ज़ाहिर को इस तरह से समझाना कि वह अपने असली और सही अर्थ पर वापस आ जाए।

यह शब्द क़ुरआन में तीन अर्थों में इस्तेमाल हुआ है:

- "मुताशाबेह" (जिनका अर्थ साफ़ नहीं) अल्फ़ाज़ या काम की तावील, ऐसे तरीके से जिसमें बुद्धि भी स्वीकार करे और हदीसों के मुताबिक़ भी हो। (आले इमरान: 7)

- "ख्वाब की ताबीर", इस अर्थ में यह सूर ए यूसुफ़ में आठ बार आया है।

- "अंजाम या नतीजा", यानी किसी चीज़ की तावील से मुराद उसका आख़िरी परिणाम है। (कहफ़: 78)

चौथा अर्थ – जो क़ुरआन में नहीं, बल्कि बुजुर्गों के कलाम में मिलता है – यह है कि किसी खास मौके के लिए आई आयत से एक आम और विस्तृत अर्थ लेना। इस तावील को कभी-कभी "बातिन" भी कहा जाता है, यानी वह दूसरा और छुपा हुआ अर्थ जो आयत के ज़ाहिर से नहीं मिलता। इसके मुक़ाबले में "ज़ाहिर" है, यानी वह मुख्य अर्थ जो आयत के ज़ाहिर से पता चलता है।

यह अर्थ बहुत व्यापक है और क़ुरआन की आम पहुंच का ज़माना है, जिससे यह साबित होता है कि क़ुरआन हर दौर और हर ज़माने के लिए है। अगर यह खुले अर्थ खास अवसरो से नहीं निकाले जाएं, तो काफ़ी आयतें अर्थहीन हो जाएंगी और सिर्फ़ पढ़ने का सवाब मिलेगा।

निश्चित तौर पर क़ुरआन में कुछ ऐसी मुताशाबेह आयतें हैं जिन्हें तावील किया जाना चाहिए, लेकिन उन्हें अल्लाह और रासेख़ून फ़िल इल्म के अलावा कोई नहीं जानता। (आले इमरान: 7)

तावील की अपनी कुछ शर्तें और मापदंड हैं, जिन्हें संबंधित किताबों में बताया गया है।

3- तत्बीक़

क़ुरआन की आयतों में बहुत सारी बातें आम शब्दों में बताई गई हैं जो हर ज़माने में किसी न किसी पर लागू हो सकती हैं। कभी-कभी आयत का शब्द "खास" होता है, लेकिन उसका अर्थ "आम" होता है और उन लोगों पर भी लागू होता है जिन्होंने उसी तरह का काम किया हो।

ऊपर बताए गए बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए, हम अब हज़रत महदी (अ) और उनके वैश्विक क्रांति से संबंधित कुछ आयतों पर चर्चा करेंगेः...

श्रृंखला जारी है ---

इक़्तेबास : "दर्स नामा महदवियत"  नामक पुस्तक से से मामूली परिवर्तन के साथ लिया गया हैलेखकखुदामुराद सुलैमियान

 

इमामज़ादा हज़रत मूसा मुबरक़ा अलैहिस्सलाम क़ुम (ईरान) के वाजिब-उल-तअज़ीम इमामज़ादों में से एक हैं। आप आलिम, फक़ीह और मुहद्दिस थे, आपने इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम से हदीसें और रवायतें नक़्ल की हैं। आपको “मुबरक़ा” (नक़ाबपोश) इसलिए कहा जाता है क्योंकि आप अपने चेहरे को नक़ाब से ढाँपते थे।

हज़रत मूसा मुबरक़ा अलैहिस्सलाम रिज़वी सादात के जद्द-ए-आला (पूर्वज) हैं और मशहूर है कि क़ुम और रय के इर्द-गिर्द के सादात-ए-बुरक़ई इन्हीं की औलाद में से हैं। आपका मज़ार मुबारक़ क़ुम के मोहल्ला “चेहल अख़्तरान” में है।

इमामज़ादा मूसा मुबरक़ा अलैहिस्सलाम साहिब-ए-करामात और फ़ज़ाइल-ए-कसीरा थे। बेशुमार ज़ायरीन ने उनके दर से अपनी हाजतें और मुरादें पाई हैं। उनकी करामतों में बीमारों को शिफ़ा देना, हाजतों का पूरा होना, बलाओं और मुश्किलों का दूर होना शामिल है।

कहा जाता है कि आप हमेशा नक़ाब इसलिए पहनते थे ताकि पहचाने न जाएँ। कुछ रवायतों के मुताबिक़ आपका चेहरा हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम की तरह बेहद हसीन और खूबसूरत था। जब आप बाज़ार से गुज़रते तो लोग अपनी दुकानें छोड़कर आपका चेहरा देखने लगते, इसलिए आपने नक़ाब ओढ़ना शुरू किया ताकि किसी के लिए परेशानी का सबब न बनें।

इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम से रवायत है कि जो शख्स (हज़रत) मूसा मुबरक़ा (अलैहिस्सलाम) की ज़ियारत करे, उसे इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम की ज़ियारत का सवाब मिलेगा।

हज़रत मूसा मुबरक़ा अलैहिस्सलाम इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम (इमाम जवाद अ.स.) के दूसरे बेटे थे। आपकी वालिदा माजिदा (मां) हज़रत समाना सलामुल्लाह अलैहा थीं। आप सन 214 हिजरी में मदीना मुनव्वरा में पैदा हुए और ख़ानदान-ए-इमामत में परवरिश पाई।

जब 220 हिजरी में इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम को बग़दाद बुलाया गया और वहाँ आप शहीद हो गए, तो उस वक़्त हज़रत मूसा मुबरक़ा अलैहिस्सलाम की उम्र तक़रीबन 6 साल थी। वालिद-ए-माजिद की शहादत के बाद आप अपने बड़े भाई इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की सरपरस्ती में फिक्री और रूहानी कमाल तक पहुँचे। हज़रत मूसा मुबरक़ा अलैहिस्सलाम अपने भाई के सच्चे पैरोकार (अनुयायी) और फ़रमाँबरदार थे और उनसे गहरी मोहब्बत रखते थे।

शिया उलमा और मुहद्दिसीन ने आपकी विसाक़त (सच्चाई) और एतबार की तस्दीक़ की है और आपसे कई रवायतें नक़्ल की हैं। जब अब्बासी हुकूमत का ज़ुल्म कुछ कम हुआ तो हज़रत मूसा मुबरक़ा अलैहिस्सलाम सन 256 हिजरी में क़ुम तशरीफ़ लाए। क़ुम में आपको अस्हाब-ए-अइम्मा (अ०स०), शिया रहनुमाओं और मोमिनीन की तरफ़ से बहुत मोहब्बत और एहतराम मिला।

आप क़ुम में 40 साल रहे और इस दौरान अहले क़ुम, उलमा और बुज़ुर्गों की तरफ़ से हमेशा इज़्ज़त व तक़रीम पाते रहे। आख़िरकार 22 रबीउस्सानी 296 हिजरी को 82 साल की उम्र में आप की वफ़ात हो गई। आपका जनाज़ा शियान-ए-क़ुम ने बड़े एहतराम से उठाया और आपको आपके ही घर में दफ़न किया गया।

हज़रत मूसा मुबरक़ा अलैहिस्सलाम ने अपनी पूरी ज़िंदगी, जान, माल और इज़्ज़त-ओ-आबरू को अपने इमाम और बड़े भाई इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की विलायत के दिफ़ा के लिए वक़्फ़ कर दिया और उनके ही हुक्म से आप ने क़ुम की तरफ़ हिजरत की।

हज़रत मूसा मुबरक़ा अलैहिस्सलाम वाजिब-उल-एहतराम इमामज़ादा, क़ाबिल-ए-एतबार आलिम और रावी थे। शिया उलमा और मुहद्दिसीन ने आपसे बहुत सी हदीसें नक़्ल की हैं। आपने अपनी पूरी पाकीज़ा ज़िंदगी में अपने वालिद इमाम मुहम्मद तकी अलैहिस्सलाम और भाई इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की इताअत की और इस राह में अपना सब कुछ क़ुर्बान कर दिया।

हज़रत अबू अहमद सैयद मूसा मुबरक़ा अलैहिस्सलाम ने शहर क़ुम को अपनी क़यामगाह के तौर पर चुन लिया और वहाँ दीनी, सकाफ़ती और तबलीगी सरगर्मियों में मसरूफ हो गए। आपने अपनी औलाद के साथ मकारिमे अख़लाक़ को आम किया और अहले बैत अलैहिमुस्सलाम की सकाफ़त को क़ुम और उसके इर्द-गिर्द में फैलाया। इसी तरह आपने समाजी ताल्लुक़ात और क़बाइल व अक़वाम के आपसी रिश्तों में भी अहम किरदार अदा किया।

हज़रत मूसा मुबरक़ा अलैहिस्सलाम की नस्ल के कुछ अफ़राद करीमा-ए-अहले बैत हज़रत फ़ातिमा मासूमा सलामुल्लाह अलैहा के रौज़ा ए मुबारक के मुतवल्ली रहे, और इसी तरह दूसरे रौज़ों, मस्जिदों और औक़ाफ़ के इंतेज़ामात के ज़िम्मेदार भी रहे।

इस ख़ानदान के बुज़ुर्गों ने तीसरी और चौथी सदी हिजरी में क़ुम, काशान, आबह और उनके नज़दीकी इलाक़ों में नक़ाबत-ए-सादात की ज़िम्मेदारी संभाली थी। इसी तरह “अमीरुल हाज” का ओहदा भी इन्हीं को सुपुर्द किया गया था। अहले क़ुम ने उनकी दीनी, तबलीगी और समाजी क़ियादत को दिल-ओ-जान से कबूल किया था।

क़ुम के रौज़ों और मस्जिदों, और मशहदे अर्दहाल (सुल्तान अली इब्ने इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के रौज़े) जैसे मक़ामात की तौलिएत के फरामीन बाद की सदियों में भी — मसलन तैमूरिया, सफ़विया और क़ाजारिया दौर में — इन्हीं सादात के नाम पर जारी होते रहे, जिनके दस्तावेज़ आज भी मौजूद हैं। इन हज़रात ने दूसरे मज़हबी ओहदे भी संभाले, जिनमें इमामत-ए-जमाअत और तबलीग़ व ख़िताबत शामिल हैं।

 

 इस्लामी संगठन हमास ने युद्धविराम होते ही गाज़ा पट्टी पर अपना नियंत्रण फिर से सँभाल लिया है और शांति एवं सुरक्षा बनाए रखने के लिए सात हज़ार सुरक्षा कर्मियों को तैनात किया है।

ब्रिटिश अख्बार फाइनेंशियल टाइम्स ने दावा किया है कि हमास ने ज़ालिम इज़राइली सरकार के साथ युद्धविराम समझौते के कुछ ही घंटों बाद गाज़ा पट्टी पर पुनः नियंत्रण पाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।

अरब मीडिया सूत्रों के मुताबिक़, हमास ने गाज़ा के विभिन्न इलाक़ों में, जहाँ से ज़ालिम यहूदी सैनिक पीछे हट चुके हैं, लगभग सात हजार सुरक्षा कर्मी तैनात किए हैं ताकि वहाँ शांति और सुरक्षा बनाए रखी जा सके।

रिपोर्ट में बताया गया है कि हमास के जवान गाज़ा की सड़कों पर गश्त कर रहे हैं ताकि ज़ालिम इज़राइली एजेंट या आतंकी तत्व मौजूदा हालात का गलत फायदा न उठा सकें।

यह ध्यान देने वाली बात है कि राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, युद्धविराम के तुरंत बाद हमास का यह कदम इस बात का संकेत है कि संगठन न केवल गाज़ा के आंतरिक प्रशासन को बनाए रखना चाहता है, बल्कि राजनीतिक रूप से भी अपना प्रभाव और पकड़ फिर से मजबूत कर रहा है।

 

आज ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के आह्वान पर जंतर-मंतर (नई दिल्ली) पर वक़्फ संशोधन विधेयक के खिलाफ धरना दिया गया, जिसमें बड़ी संख्या में लोगों ने हिस्सा लिया।

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का मानना है कि भारत सरकार द्वारा पारित वक़्फ संशोधन कानून 2025 देश के संविधान में मुसलमानों को दिए गए अधिकारों से उन्हें वंचित करता है, इसलिए यह मुसलमानों के लिए स्वीकार्य नहीं है।

बोर्ड ने इसके खिलाफ पूरे देश में विरोध प्रदर्शन, धरना, जनसभाएं, सेमिनार, गोलमेज सम्मेलन और अन्य कार्यक्रम आयोजित किए हैं। पहले चरण के पूरा होने के बाद, बोर्ड ने अब दूसरे चरण का रोडमैप जारी किया है, जिसके तहत जंतर-मंतर पर बोर्ड के सदस्यों ने पहला कार्यक्रम धरने के रूप में आयोजित किया।

बोर्ड के प्रवक्ता डॉ. कासिम रसूल इलियास ने कार्यक्रम की शुरुआत की और धरने का उद्देश्य बताया। इसके बाद प्रमुख हस्तियों ने संबोधित किया।

मुख्य वक्ताओं  मे तालिब रहमानी (पश्चिम बंगाल),  आरिफ मसूद (मध्य प्रदेश),  इब्न सऊद (तमिलनाडु), रफीउद्दीन (महाराष्ट्र), मोहम्मद सुलेमान (कर्नाटक), अनिसुर रहमान कासमी (बिहार), उबैदुल्लाह आज़मी (उत्तर प्रदेश), अब्दुल हफीज (एसआईओ अध्यक्ष), फज़लुर रहीम मुजद्दिदी (बोर्ड महासचिव), जॉन दयाल (क्रिश्चियन काउंसिल), असदुद्दीन ओवैसी (सांसद), मोहिबुल्लाह नदवी (सांसद), ज़ियाउद्दीन सिद्दीकी (विफाकुल मदारिस), मोहसिन तकवी (बोर्ड उपाध्यक्ष), अख्तर रिजवी (गुजरात), मौलाना असगर अली इमाम मेहदी (जमीयत अहले हदीस), सययद सादतुल्लाह हुसैनी (जमात-ए-इस्लामी), खालिद सैफुल्लाह रहमानी (बोर्ड अध्यक्ष) शामिल थे।

प्रमुख मांगें:

  • वक़्फ संशोधन कानून को तुरंत रद्द किया जाए
  • मुसलमानों के धार्मिक और संवैधानिक अधिकारों की रक्षा की जाए
  • वक़्फ संपत्तियों पर किसी तरह का हस्तक्षेप न किया जाए

वक्ताओं ने जोर देकर कहा कि यह कानून मुसलमानों को उनकी वक़्फ संपत्तियों से वंचित करने की साजिश है, और जब तक इसे रद्द नहीं किया जाता, वे इसके खिलाफ संघर्ष जारी रखेंगे।

 

यमन के रक्षा मंत्री मोहम्मद नासिर अलअताफी ने कहा है कि यमन अंतिम सांस तक फिलिस्तीनी जनता के न्यायसंगत संघर्ष का समर्थन जारी रखेगा।

यमन के रक्षा मंत्री मोहम्मद नासिर अल-अताफी ने अंसारुल्लाह के नेता अब्दुल मलिक अल-हौसी को 14 अक्टूबर की महान विजय की 62वीं वर्षगांठ पर बधाई देते हुए कहा है कि यमन फिलिस्तीनी राष्ट्र के न्यायसंगत संघर्ष में हमेशा उनके साथ खड़ा रहेगा।

अलअताफी ने अपने संदेश में कहा कि यमन अपनी नीतिगत प्रतिबद्धता दोहराएगा और फिलिस्तीनी भाइयों को अकेला नहीं छोड़ेगा बल्कि अंतिम सांस तक उनकी मदद और समर्थन जारी रखेगा।

उन्होंने 14 अक्टूबर के क्रांतिकारी रुख को मुक्तिदायक बताते हुए साम्राज्यवादी ताकतों और उनके समर्थकों को स्पष्ट चेतावनी दी कि किसी भी ऐसी योजना या प्रयास को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा जो न्यायसंगत और व्यापक शांति के अवसरों को नष्ट कर सके।

रक्षा मंत्री के अनुसार यमन ऐसे अवसरों को बर्बाद होने की अनुमति नहीं देगा और क्षेत्र में न्यायसंगत शांति की स्थापना के लिए उठाए जाने वाले कदमों के खिलाफ किसी भी साजिश को स्वीकार नहीं किया जाएगा।

 

मजलिस-ए-वहदत-ए-मुस्लिमीन पाकिस्तान के केंद्रीय महासचिव अल्लामा सय्यद हसन ज़फ़र नक़वी ने लाहौर, मुरीद के, इस्लामाबाद और अन्य शहरों में शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर राज्य द्वारा हिंसा की कड़ी निंदा करते हुए कहा है कि विरोध करना हर पाकिस्तानी का संवैधानिक और कानूनी अधिकार है, जबकि अपने ही नागरिकों पर बर्बर बल का प्रयोग सबसे खराब तानाशाही का प्रतीक है।

मजलिस-ए-वहदत-ए-मुस्लिमीन पाकिस्तान के केंद्रीय महासचिव अल्लामा सय्यद हसन ज़फ़र नक़वी ने लाहौर, मुरीद के, इस्लामाबाद और अन्य शहरों में शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर राज्य द्वारा हिंसा की कड़ी निंदा करते हुए कहा है कि विरोध करना हर पाकिस्तानी का संवैधानिक और कानूनी अधिकार है, जबकि अपने ही नागरिकों पर बर्बर बल का प्रयोग सबसे खराब तानाशाही का प्रतीक है।

"आज मतभेद को सबसे बड़ा अपराध और गुनाह बताया जा रहा है, जो किसी भी लोकतांत्रिक समाज के सिद्धांतों के खिलाफ है।" उन्होंने चेतावनी दी कि इस दमन और अत्याचार का अंत देश और राष्ट्र के लिए हानिकारक साबित होगा।

उन्होंने कहा कि तथाकथित लोकतांत्रिक शासकों को यह सच्चाई समझ लेनी चाहिए कि फॉर्म 47 पर खड़ी व्यवस्था ज्यादा दिन नहीं चल सकती। ऐसी कृत्रिम राजनीतिक संरचनाएं कभी भी टिकाऊ साबित नहीं होतीं।

अल्लामा हसन ज़फर नकवी ने आगे कहा: "जब अत्याचार और अन्याय का पहिया उल्टा चलेगा, तो यही हालात शासकों के दरवाजे पर भी दस्तक देंगे। और जब उन पर मुश्किल समय आएगा, तो उनके समर्थन में कोई आवाज नहीं उठेगी।"

उन्होंने राज्य संस्थाओं से मांग की कि वे राजनीतिक मतभेद रखने वाले नागरिकों के साथ बल के बजाय बातचीत और सहनशीलता का रवैया अपनाएं, क्योंकि राष्ट्रीय स्थिरता संवैधानिक सर्वोच्चता और लोकतांत्रिक सिद्धांतों के सम्मान पर निर्भर करती है।

 

ईरान ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के बेबुनियाद आरोपों को खारिज करते हुए वाशिंगटन को आतंकवाद का सबसे बड़ा संरक्षक करार दिया है।

डोनाल्ड ट्रम्प ने सोमवार को मिस्र के शहर शर्म अलशेख में होने वाली एक अंतरराष्ट्रीय शांति सम्मेलन में शामिल होने से पहले इजरायली संसद को संबोधित करते हुए कहा था कि ईरान, अमेरिका के साथ शांति समझौता करना चाहता है भले ही वह यह कहे कि हम कोई समझौता नहीं करना चाहते।

रिपोर्ट के मुताबिक, ईरानी विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया कि दुनिया में आतंकवाद का सबसे बड़ा जनक और आतंकवादी व नरसंहार करने वाली ज़ायोनी राज्य का समर्थक अमेरिका दूसरों पर आरोप लगाने का कोई नैतिक अधिकार नहीं रखता।

बयान में आगे कहा गया कि ईरान के शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम के बारे में झूठे आरोपों को बार-बार दोहराने से किसी भी तरह अमेरिका और इजरायली सरकार की ओर से ईरान की सीमा का उल्लंघन करके किए गए संयुक्त अपराधों को वैध नहीं ठहराया जा सकता।

गौरतलब है कि पिछले दिनों डोनाल्ड ट्रम्प ने इजरायली संसद को संबोधित करते हुए ईरान के साथ शांति समझौते की उम्मीद जताते हुए कहा कि अगर ईरान के साथ शांति समझौता हो जाए तो यह बहुत शानदार बात होगी।

ट्रम्प ने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की 2015 के ईरान परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर करने पर आलोचना करते हुए इसे 'एक तबाही' करार दिया था।

 

आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी आमोली ने कहा: यह लिबास पैगंबर-ए-इस्लाम (स) का लिबास है। हमें बहुत सावधान और पवित्र रहना चाहिए। हम केवल अपनी बात लोगों के कानों तक पहुँचा सकते हैं, लेकिन बात कान से दिल तक हमारे अच्छे कर्मों से पहुँचती है, हमारी तक़रीरो से नहीं।

आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी आमोली ने उलेमा के पवित्र लिबास के महत्व पर बात करते हुए कहा:

आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी आमोली ने कहा: यह लिबास पैगंबर-ए-इस्लाम (स) का लिबास है। हमें बहुत सावधान और पवित्र रहना चाहिए। हम केवल अपनी बात लोगों के कानों तक पहुँचा सकते हैं, लेकिन बात कान से दिल तक हमारे अच्छे कर्मों से पहुँचती है, हमारी तक़रीरो से नहीं।

अगर हम किताब लिखते हैं, तो बस इतना होता है कि हमारी बातें लोगों की आँखों तक पहुँच जाती हैं, ताकि वे पढ़ सकें। लेकिन देखने से समझने तक, बाहर से अंदर तक बात हमारे अच्छे कामों के जरिए पहुँचती है।"

हमें अपनी क़ीमत पहचाननी चाहिए, क्योंकि हम ईश्वर के पैगंबरों के वारिस बनना चाहते हैं, हम अली इब्न अबी तालिब (अ) के बेटे कहलाना चाहते हैं।"

 

वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलस मादुरो ने अपने साप्ताहिक टेलीविजन कार्यक्रम में कहा है कि फिलिस्तीन का मुद्दा मानवता का सबसे पवित्र मुद्दा है।

वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलस मादुरो ने अपने साप्ताहिक टेलीविजन कार्यक्रम में कहा है कि फिलिस्तीन का मुद्दा मानवता का सबसे पवित्र मुद्दा है।

उन्होंने प्रस्ताव दिया कि वेनेजुएला की निर्माण टीमों, किसानों और डॉक्टरों को गाजा भेजा जाए ताकि वे वहां के लोगों की मदद कर सकें और उनके साथ खड़े रह सकें। मादुरो ने आशा जताई कि मौजूदा युद्धविराय सिर्फ एक और औपचारिक समझौता साबित न हो, बल्कि नरसंहार के पीड़ितों के लिए वास्तविक न्याय लाए।

राष्ट्रपति मादुरो ने जोर देकर कहा कि अमेरिका मिस्र, तुर्की और कतर को चाहिए कि वे गाजा के पुनर्निर्माण, वेस्ट बैंक और यरूशलम को फिलिस्तीनी राज्य की राजधानी के रूप में मान्यता देने और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फिलिस्तीनी राज्य और निर्वाचित सरकार की मान्यता के व्यावहारिक कदमों को सुनिश्चित करें।

उन्होंने कहा कि अगर किसी समझौते के साथ न्याय नहीं होता है तो वह सिर्फ मलबे की शांति कहलाएगा। उन्होंने गाजा में हुई मौतों को नरसंहार बताते हुए कहा,क्या इस नरसंहार पर न्याय होगा? 65 हजार लोग मिसाइल हमलों में मारे गए, जिनमें 25 हजार से ज्यादा लड़के और लड़कियां शामिल हैं।

मादुरो ने कहा कि अमेरिका में जनता की राय फिलिस्तीनियों के पक्ष में बदल रही है। सर्वे के मुताबिक 60 फीसदी अमेरिकी जनता फिलिस्तीनी रुख का समर्थन करती है और गाजा की स्थिति को नरसंहार मानती है। उन्होंने वैश्विक स्तर पर विरोध प्रदर्शनों को जारी रखने की अपील की ताकि फिलिस्तीनी लोगों को न्याय जमीन और आजादी का अधिकार मिल सके।

राष्ट्रपति मादुरो ने अपने भाषण के दूसरे हिस्से में कहा कि अमेरिका की तरफ से वेनेजुएला पर हालिया हमले असल में एक मनोवैज्ञानिक युद्ध थे जिसका मकसद देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाना था।

उन्होंने स्पष्ट किया कि अगस्त सितंबर और अक्टूबर की शुरुआत में वाशिंगटन ने सैन्य धमकियों और मीडिया प्रचार के जरिए वेनेजुएला पर दबाव डाला, लेकिन सरकार ने इन सभी साजिशों का सफलतापूर्वक सामना किया और एक नई आर्थिक नीति अपनाते हुए उत्पादन और रोजगार के अवसरों को बनाए रखा।

अमेरिकी आरोपों के जवाब में मादुरो ने कहा:वेनेजुएला न नशीली दवाएं पैदा करता है और न ही उसका व्यापारी है।

उन्होंने अमेरिका पर आरोप लगाया कि वह झूठे और गंभीर आरोप लगाकर वेनेजुएला को बदनाम करने की कोशिश कर रहा है, खास तौर पर इस वक्त जब वह देश पर हथियारों के बहाने से हमला करने में नाकाम हो चुका है।

 

हौज़ा और यूनिवर्सिटी के मशहूर शिक्षक हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अली रज़ा पनाहियान ने कहा है कि धर्म इंसान को सिर्फ आज्ञापालक नहीं बनाता बल्कि उसे अक्ल, समझ और सही पहचान करने की क्षमता प्रदान करता है ताकि वह अच्छाई और बुराई में अंतर कर सके।

विस्तार से जानकारी देते हुए हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन पनाहियान ने तेहरान में प्रसारित होने वाले कार्यक्रम "सम्त ए ख़ुदा" में बात करते हुए कहा कि इंसान का दिल आसानी से नहीं बदलता, इसलिए जरूरी है कि इंसान अपनी रुझानों और इच्छाओं को पहचाने और उनका सही प्रबंधन करे। अगर इंसान अपनी इच्छाओं को "गनीमत" समझने लगे तो यही सोच उसे गलतियों गुनाहों और अफसोस की तरफ ले जाती है।

उन्होंने इमाम सादिक अलैहिस्सलाम की हदीस ازالة الجبال اهون من إزالة قلب का हवाला देते हुए कहा कि इंसान के दिल का रुख बदलना पहाड़ को हिलाने से भी ज्यादा मुश्किल है। इसलिए जरूरी है कि हम अपनी इच्छाओं को काबू में रखना सीखें।

हौज़ा और यूनिवर्सिटी के शिक्षक ने कहा कि ज्यादातर इंसान गुनाह इसलिए करते हैं क्योंकि वह कुछ मौकों या रिश्तों को "गनीमत" समझ लेते हैं, जबकि असल में वह उनके लिए नुकसानदेह साबित होता हैं। अगर इंसान सोचे कि "क्या यह मौका वास्तव में गनीमत है? तो वह कई गलत फैसलों से बच सकता है।

उन्होंने कहा कि धर्म सिर्फ आदेशों पर अमल करने का नाम नहीं है, बल्कि धर्म इंसान को अंतर्दृष्टि, जागरूकता और सही फैसला करने की ताकत देता है। खुदा हर मौके पर स्पष्ट आदेश नहीं देता बल्कि इंसान को सोच-विचार और पहचान करने का मौका मुहैया कराता है ताकि वह अक्ल और विवेक के जरिए सही रास्ते का चयन करे।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन पनाहियान ने आगे कहा,दीन इंसान को सिर्फ आज्ञाकारी नहीं बल्कि अंतर्दृष्टि संपन्न, जागरूक और निर्णय लेने वाला बनाना चाहता है। यह धारणा गलत है कि धर्म इंसान को सिर्फ आदेश मानने वाला चाहता है असल में धर्म का लक्ष्य ऐसे Individuals तैयार करना है जो मौके और जगह की पहचान रखते हों और अच्छाई के रास्ते को खुद तलाश करें।

उन्होंने अंत में हज़रत पैगंबर मोहम्मद स.ल.व. और इमाम मोहम्मद बाकिर अलैहिस्सलाम की हदीसें बयान करते हुए कहा कि भलाई के किसी भी मौके को खोना नहीं चाहिए, क्योंकि देरी शैतान को मौका देती है। "जो व्यक्ति भलाई के किसी दरवाजे को खुला देखे उसे तुरंत उससे फायदा उठाना चाहिए क्योंकि यह नहीं पता कि वह मौका दोबारा कब नसीब होगा।