رضوی
ईरान ने लेबनान पर इज़राईली आक्रामकता और युद्धविराम उल्लंघन की कड़ी निंदा की
ईरानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने दक्षिण लेबनान पर इज़राइल के हालिया हवाई हमलों को लेबनान की संप्रभुता का खुला उल्लंघन करार देते हुए फ्रांस और अमेरिका की चुप्पी की कड़ी निंदा की है।
ईरानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता इस्माईल बकाई ने पिछले 24 घंटों के दौरान दक्षिण लेबनान में इज़राइली हवाई हमलों की कड़ी आलोचना करते हुए उन्हें लेबनान की क्षेत्रीय अखंडता और राष्ट्रीय एकता के खिलाफ गंभीर उल्लंघन बताया।
उन्होंने कहा कि हाल के महीनों में इज़राइल ने युद्धविराम की बार-बार अवहेलना की है, और ये उल्लंघन लगभग 5,000 तक पहुँच चुके हैं। इन कार्रवाइयों के परिणामस्वरूप लेबनानी नागरिकों को नुकसान पहुँचा है, देश का बुनियादी ढांचा तबाह हुआ है, और पुनर्निर्माण व आर्थिक विकास की कोशिशें प्रभावित हुई हैं।
इस्माईल बकाई ने यह भी कहा कि मौजूदा स्थिति फ्रांस और अमेरिका जैसे युद्धविराम के गारंटर देशों की चुप्पी और लगातार अनदेखी का परिणाम है। उन्होंने ज़ायोनी शासन की इन लगातार उल्लंघनों की प्रत्यक्ष ज़िम्मेदारी इन्हीं देशों पर डाली।
रिश्तेदारों से मिलना जुलना
इस्लाम ने जिन समाजी और सोशली अधिकारों की ताकीद की है और मुसलमानों को उनकी पाबंदी का हुक्म दिया है उनमें से एक यह है कि वह अपने घर परिवार और रिश्तेदारों के साथ हमेशा अच्छे सम्पर्क बनाये रखें इसी को सिल-ए-रहेम अर्थात रिश्तेदारों से मिलना जुलना कहा जाता है।
इस्लाम ने जिन समाजी और सोशली अधिकारों की ताकीद की है और मुसलमानों को उनकी पाबंदी का हुक्म दिया है उनमें से एक यह है कि वह अपने घर परिवार और रिश्तेदारों के साथ हमेशा अच्छे सम्पर्क बनाये रखें इसी को सिल-ए-रहेम अर्थात रिश्तेदारों से मिलना जुलना कहा जाता है।
इसलिये एक मुस्लमान के लिए ज़रूरी है कि अपने घर परिवार और रिश्तेदारों से मुलाक़ात करता रहे और उनके हाल चाल पूछा करे उनके साथ अच्छा व्यवहार रखे अगर ग़रीब हों तो उनकी सहायता करे, परेशान हाल हों तो उनकी मदद के लिए पहुँचे और उनके साथ घुल मिल कर रहे और नेक कामों तथा सदाचार और तक़वे में उन्हें सहयोग दे अगर कोई किसी मुसीबत में ग्रस्त हो जाए तो ख़ुद उनका शरीक हो जाए और अगर किसी को किसी मुश्किल का सामना हो हो तो उसे हल करने की कोशिश करे और अगर उनकी तरफ़ से ग़लत व्यवहार या कोई अनुचित काम देखे तो ख़ुबसूरत तरीक़े से उन्हें नसीहत करे। क्योंकि हर इंसान के घर परिवार और रिश्तेदारों ही उसके समर्थक होते हैं यानी अगर हालात के उलट फेर से उसके ऊपर कोई भी मुश्किल आ पड़ती है तो उसकी निगाहें उन्हीं की तरफ़ उठती हैं।
इसी लिए उनका इतना महान अधिकार है। हज़रत अली अ. फ़रमाते हैः
ایھا الناس انہ لا یستغنی الرجل و ان کان ذاعن عشیرتہ و دفاعھم عنہ بایدیھم والسنتھم وھم اعظم الناس حیطۃً من ورائہ والھم لشعثہ واعطفھم علیہ عند نازلۃ اذا نزلت بہ
ऐ लोगो ! कोई आदमी चाहे जितना मालदार हो वह आपने घर परिवार और रिश्तेदारों और क़बीले की ज़बानी या अमली और दूसरे प्रकार की सहायता से विमुक्त नहीं हो सकता है और जब उस पर कोई मुश्किल और मुसीबत पड़ती है तो उसमें सबसे ज़्यादा यही लोग उसका समर्थन करते हैं। (नहजुल बलाग़ा ख़ुत्बा न0 23) आप ने यह भी फ़रमायाः जान लो कि तुम में कोई आदमी भी अपने रिश्तेदारों को मोहताज देख कर उस माल से उसकी ज़रूरत पूरी करने से हाथ न ख़ींचे जो बाक़ी रह जाए तो बढ़ नहीं जाएगा और ख़र्च कर दिया जाए तो कम नहीं होगा इस लिए कि जो आदमी भी अपने क़ौम और क़बीले से अपना हाथ रोक लेता है तो उस क़बीले से एक हाथ रुक जाता है और ख़ुद उससे अनगिनत हाथ रुक जाते हैं और जिसके व्यवहार में नरमी होती है वह क़ौम की मुहब्बत को हमेशा के लिए हासिल कर लेता है। (नहजुल बलाग़ा ख़ुत्बा न0 23)
मौला ने इस स्थान पर परिवार वालों या रिश्तेदारों से सम्बंध तोड़ लेने से नुक़सान की बेहतरीन मिसाल दी है कि उसके अलग हो जाने की वजह से घर परिवार और रिश्तेदारों को केवल एक आदमी का नुक़सान होता है मगर वह ख़ुद अपने अनगिनत हमदर्दों को खो बैठता है इस तरह आपने इस बात की तरफ़ भी इशारा फ़रमाया किः अच्छे व्यवहार द्वारा घर परिवार और रिश्तेदारों की मोहब्बतें हासिल होती हैं जिस में अनगिनत भलाईयाँ पाई जाती हैं। निश्चित रूप से हर बड़े ख़ानदान या क़बीले और समाज में बहुत सारे लोग पाए जाते हैं जिन की क्षमताएं, सम्भावनाएं और योग्यताएं भी भिन्न होती हैं, आप को उनके अंदर आलिम, जाहिल, मालदार, ग़रीब, स्वस्थ, शक्तिशाली, कमज़ोर, या बिल्कुल पिछड़े हुए, हर प्रकार के लोग मिल जाएंगे। तो आख़िर वह ऐसी कौन सी चीज़ है जो उस समाज को एक ताक़तवर, विकसित और बिल्कुल मॉडरेट समाज बना सकती है?
निश्चित रूप से आपसी सम्बंध और सम्पर्क का स्थिरता या ज़िम्मेदारी के एहसास जो एक दूसरे की सहायता तरक़्की और सहयोग से पैदा होते हैं यही वह चीज़ें हैं जिन के द्वारा हम उस नेक मक़सद तक पहुँच सकते हैं और उसका तरीक़ा यह है कि हर मालदार अपनी क़ौम के ग़रीबों का दामन थाम ले, ताक़तवर अपनी क़ौम के कमज़ोर तबक़े के अधिकारों का समर्थन करे और दुश्मनों के मुक़ाबले में उनके अधिकारों के लिए उनके साथ उठ ख़ड़ा हो।
बेशक किसी भी क़ौम और समाज में रिश्तेदारों से मिलने जुलने की की बदौलत एक मज़बूत ताक़तवर और समामानित समाज वजूद में आता है। यही वजह है कि इस्लाम ने मुसलमानों को आपसी भाई चारा और बरादरी को मज़बूत से मज़बूत बनाने की ताकीद की है और किसी भी हाल में उन से सम्पर्क को तोड़ने या उन्हें कमज़ोर करने के ख़तरों से उन्हे बख़ूबी आगाह कर दिया है। और हदीसे शरीफ़ा में तो रिश्तेदारों से मिलने जुलने को इस क़दर अहमियत और बुलंद दर्जा दिया गया है कि उसे दीन और ईमान बताया गया है जैसा कि इमाम-ए-मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने अपने पाक पूर्वजों के माध्यम से हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलिही वसल्लम की यह रेवायत नक़्ल फ़रमाई है कि आपने फ़रमायाः अपनी उम्मत के मौजूदा और ग़ैर मौजूदा यहां तक कि मर्दों के सुल्बों और औरतों के रहमों में मौजूद और क़्यामत तक आने वाले हर आदमी से मेरी वसीयत यह है कि अपने घर परिवार और रिश्तेदारों के साथ मिलना जुलना रखें, चाहे वह उससे एक साल की दूरी के फ़ासले पर क्यों न रहते हों क्योंकि यह दीन का हिस्सा है।
इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने भी हज़रत मुहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की यह रेवायत नक़ल फ़रमाई है कि आप ने फ़रमायाः जिसे यह ख़वाहिश है कि अल्लाह तआला उसकी उम्र में इज़ाफ़ा फ़रमा दे और उसके खुराक को वसी कर दे तो वह रिश्तेदारों से मिलना जुलना करे क्योंकि क़्यामत के दिन रहम को ज़बाले मानो दि जाएगी और वह अल्लाह की बारगाह में अरज़ करे गी, बारे इलाहा जिस ने मुझे जोड़ा तू उससे सम्पर्क क़ायम रखना और जिस ने मुझे क़ता किया तू भी उससे सम्पर्क तोड़ लेना। इमाम-ए-रज़ा अलैहिस्सलाम ने अपने पाक पूर्वजों के वास्ते से हज़रत मुहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की यह हदीसे शरीफ़ नक़ल फ़रमायी है कि अपने फ़रमाया जो आदमी मुझसे एक बात का वादा कर ले मैं उसके लिए चार चीज़ों की ज़मानत लूँगाः अपने घर परिवार और रिश्तेदारों से मिलना जुलना रखे तो अल्लाह तआला उसे अपना चहेता रखेगा, उसके खुराक को उस पर ज़्यादा कर देगा, उस की उम्र को बढ़ा देगा और उसको उस जन्नत में दाख़िल करेगा जिसका उससे वादा किया है। इमाम-ए-मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं रिश्तेदारों से मिलना जुलना, काम को पाक़ीज़ा और संपत्ति को ज़्यादा कर देता है बलाओं को दूर करता है और मौत को टाल देता है।
आपने एक ख़ुत्बे में इरशाद फ़रमायाः इस में दीन व ईमान, लम्बी उम्र, खुराक में वृद्धि, अल्लाह की मोहब्बत व रेज़ा और जन्नत किया कुछ मौजूद नहीं हैं यह रिश्तेदारों से मिलना जुलना ही है जो दुनिया में इंसान की अमीरी और आख़ेरत में उसकी जन्नत की गारंटी देता है और अल्लाह की मरज़ी तो सबसे बड़ी है। जिसके मानी यह हैं कि वह दुनिया में पाक ज़िंदगी और आख़ेरत में रौशन और ताबनाक ज़िंदगी का मालिक है। रिश्तेदारों से मिलने जुलने की इतनी अहमियत और महानता को पहचानने के बाद क्या अब भी यह बहाना बनाना सही है कि घर परिवार और रिश्तेदारों से हम बहुत फ़ासले पर हैं या काम की ज़्यादती की आधार पर हम बहुत ज़्यादा बिज़ी हैं इसलिये उनसे सम्पर्क नहीं रख पाते हैं? और ख़ास तौर से अगर किसी का कोई सम्बंधी किसी के ज़ुल्म का शिकार हो तो क्या उसके लिए यह कार्य विधि वस्तुतः जाएज़ है? पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम और अइम्मा-ए-ताहेरीन ने हर मोमिन के लिए एक ऐसा रौशन और स्पष्ट रास्ता बना दिया है जिस पर चलने वाले हर आदमी से अल्लाह राज़ी रहेगा। रिवायात में है कि पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम से किसी ने यह शिकायत की कि मुझे मेरी क़ौम वाले यातना पहुंचाते हैं इसलिये मैं ने यही बेहतर समझा है कि उनसे सम्बंध तोड़ लूँ तो पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ने इरशाद फ़रमायाः अल्लाह तआला तुम से नाराज़ हो जाएगा। उसने पूछा या रसूल अल्लाह फिर मैं किया करूँ ? आपने फ़रमायाः जो तुम्हें महरूम करे उसे अता कर दो, जो तुम से सम्पर्क तोड़े उससे सम्पर्क क़ायम रखो जो तुम्होरे ऊपर ज़ुल्म करे उसे माफ़ कर दो, अगर तुम ऐसा करोगे तो उनके मुक़ाबले के लिए अल्लाह तआला तुम्हारा यारो मदद गार है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः अपने घर परिवार और रिश्तेदारों से मिलना जुलना रखो चाहे वह तुम से सम्बंध तोड़ लें। हज़रत इमाम-ए-जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः रिश्तेदारों से मिलना जुलना और नेक व्यवहार हेसाब को आसान कर देता है, और गुनाहों से महफ़ूज़ रखता है, इसलिये अपने घर परिवार और रिश्तेदारों के साथ मिलना जुलना रखो और अपने भाईयों के साथ नेक व्यवहार करो चाहे अच्छे अंदाज़ में सलाम करके या उसका जवाब देकर ही क्यों ना हो। पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ने इरशाद फ़रमायाः अपने रिश्तेदारों से मिलना जुलना करो चाहे सलाम के द्वारा ही क्यों हो। आप ही से यह भी रिवायत हैः अपने घर वालों से, रिश्तेदारों से मिलना जुलना करो चाहे एक घूँट पानी के द्वारा हो और रिश्तेदारों से मिलने जुलने का सबसे बेहतरीन तरीक़ा यह है कि अपने घर परिवार वालों को यातना न दी जाए। उल्लिखित हदीस से बख़ूबी समझा जा सकता है कि अच्छे सम्बंध और सम्पर्क के स्थिरता पर और उनके बनाये रखने में रिश्तेदारों से मिलने जुलने की किया भूमिका है बहुत सम्भव है कि आप किसी से दूर होने कि वजह पर उससे मुलाक़ात ना कर सकें लेकिन उसके नाम आप का एक ख़त ही आप की तरफ से मुहब्बत के इज़हार और रिश्तेदारों से मेल मिलाप के लिए काफ़ी हो यानी जिस तरह आप अपने आस पास मौजूद घर परिवार और रिश्तेदारों को चहेक कर सलाम करते हैं यह ख़त भी उसी तरह एक रिश्तेदारों से मिलना जुलना है यहां तक कि कि किसी के लिए किसी बर्तन में पानी पेश करना, यहां तक कि अगर उन्हें कोई यातना ना पहुँचाए तो यह भी एक प्रकार का रिश्तेदारों से मिलना जुलना है बल्कि पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्मत्फ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ने उस को रिश्तेदारों से मिलने जुलने का सबसे अच्छा तरीक़ा बताया है।
शहादत, अल्लाह की ओर से सच्चे बंदों के लिए एक विशेष उपहार है
शहीदों की याद में आयोजित सम्मेलन के अवसर पर आयतुल्लाहिल उज़्मा हुसैन मज़ाहरी ने अपने एक संदेश में कहा कि शहादत अल्लाह की ओर से एक महान उपहार है जो केवल ईमानदार और अच्छे बंदों को ही प्राप्त होती है।
आयतुल्लाहिल उज़्मा हुसैन मज़ाहरी ने इस्फ़हान के जामे मस्जिद में शहीदों की याद में आयोजित सम्मेलन के अवसर पर अपने संदेश में कहा कि शहादत अल्लाह की ओर से एक महान उपहार है जो केवल ईमानदार और अच्छे बंदों को ही प्राप्त होती है।
उन्होंने कहा कि अल्लाह के रास्ते में शहादत वास्तव में ईश्वरीय और मानवीय मूल्यों की रक्षा में एक ऐसी कुर्बानी है जो इंसान को अल्लाह के निकट और शाश्वत खुशी तक पहुँचा देती है। शहीदों ने दुनियावी दिखावे से ऊपर उठकर जिहाद फी सबीलिल्लाह का रास्ता अपनाया और सर्वोच्च आध्यात्मिक स्थान प्राप्त किया।
आयतुल्लाह मज़ारी ने कहा कि शहीद अपनी कुर्बानियों के माध्यम से हमें यह सीख देते हैं कि मौत से डरना या दुनियावी सुखों के खत्म होने पर दुख करना मोमिन के लिए शोभा नहीं देता।
उन्होंने जोर देकर कहा कि जीवित लोगों को कुरआन और अहले बैत अ.स. की शिक्षाओं पर चलकर और लोगों की सेवा को अपना आदर्श बनाकर, शहीदों के रास्ते को जारी रखना चाहिए।
अंत में, उन्होंने ने शहीदों के परिवारों और इस स्मारक समारोह के आयोजकों की सराहना करते हुए दुआ की कि अल्लाह तआला सभी को अपने रास्ते में दृढ़ता, ईमानदारी और अच्छे कर्मों की तौफीक अता फरमाए।
हिज़बुल्लाह के महासचिव: लेबनान के युवाओं के रहते हुए हम हार नहीं मानेंगे
हिज़बुल्लाह लेबनान के महासचिव हुज्जतुल इस्लाम शेख नईम क़ासिम ने युवाओं के नाम एक संदेश में कहा है कि हिज़बुल्लाह, इजरायली और अमेरिकी साम्राज्य के सामने कभी हार नहीं मानेगी। शहीदों के खून से सींचा हुआ यह देश आज़ाद, सम्मानित और स्वतंत्र रहेगा।
शेख नईम कासिम ने बेरुत में आयोजित एक विशाल जनसमूह की सराहना करते हुए कहा कि यह इज्तेमाअ पवित्रता, विश्वास और प्रतिरोध का एक शानदार दृश्य था, जिसने समर्थकों को खुश कर दिया और विरोधियों को बेचैन कर दिया।
यह इज्तेाअ बेरुत के स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में शहीद सय्यद हसन नसरुल्लाह की पहली बरसी के दिनों में आयोजित किया गया था, जिसमें लगभग 80,000 से अधिक युवाओं ने भाग लिया था।
शेख नईम कासिम ने भाग लेने वालों विशेष रूप से युवाओं और उनके परिवारों की प्रशंसा करते हुए कहा कि इस उपस्थिति से प्रतिरोध के नेता (सय्यद हसन नसरुल्लाह) की पीढ़ी में एक नई शक्ति का संचार हुआ है।
उन्होंने हज़ारों की संख्या में उपस्थित लोगों को ताकत और उम्मीद का प्रतीक बताया और कहा कि उन्होंने भविष्य की ओर बढ़ने का संदेश दिया है।
हिज़बुल्लाह लेबनान के प्रमुख ने संगठन को युवाओं के प्रशिक्षण का आदर्श उदाहरण बताया और कहा कि हिज़बुल्लाह युवाओं की ताकत से जीत हासिल करेगी। यह जीत उन सभी लोगों तक पहुँचेगी जो अपनी ज़मीन की आज़ादी और मानवता के हित में हैं।
शेख नईम कासिम ने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा: "आपके होते हुए हम इजरायली बर्बरता और अमेरिकी साम्राज्य के सामने कभी हार नहीं मानेंगे।"
उन्होंने आगे कहा कि लेबनान की ज़मीन शहीदों के खून से सींची गई है, इसलिए लेबनान आज़ाद, सम्मानित और स्वतंत्र रहने का वादा निभाता रहेगा।
हिज़बुल्लाह प्रमुख के संदेश में यह भी कहा गया कि फिलिस्तीन और येरुशलम उनका स्थायी लक्ष्य और मार्गदर्शन का केंद्र हैं, और वे इसी दिशा में क्षेत्र और मानवता के लिए काम करते रहेंगे।
अंत में उन्होंने कहा कि हर चुनौती का सामना किया जाएगा, चाहे उसके लिए कितनी भी बड़ी कुर्बानी क्यों न देनी पड़े, और अल्लाह के आदेश से हिज़बुल्लाह का झंडा हमेशा ऊँचा लहराता रहेगा।
ग़ज़्ज़ा में युद्धविराम के बावजूद इजरायली हमले जारी, 86 फिलिस्तीनियों की शहादत
ग़ज़्ज़ा में इजरायल और हमास के बीच 10 अक्टूबर से लागू युद्धविराम के बावजूद इजरायली सेना की ओर से हमले जारी हैं, जिनमें अब तक 86 फिलिस्तीनी शहीद हो चुके हैं।
स्थानीय चिकित्सा सूत्रों के मुताबिक, शुक्रवार दोपहर से लागू युद्धविराम के बाद से इजरायली बमबारी और गोलीबारी के नतीजे में 86 लोग शहीद हो चुके हैं, जबकि सिर्फ कल सुबह से अब तक 7 फिलिस्तीनी अलग-अलग इलाकों में शहीद हुए हैं।
रिपोर्टों के मुताबिक, पिछले छह दिनों के दौरान मलबे के नीचे से 318 शहीदों की लाशें बरामद की गई हैं। इन हमलों का ज्यादातर निशाना ग़ज़्ज़ा के इलाके अश-शुजाईया और अल-फखारी बने, जहाँ नागरिक अपने तबाह हुए घरों का जायजा ले रहे थे।
ग़ज़्ज़ा के अल-अहली अरब हॉस्पिटल ने पुष्टि की है कि कल शहीद होने वालों में से पाँच आम नागरिक थे, जो अपने घरों को वापस जा रहे थे।
दूसरी ओर इजरायली सेना का दावा है कि गोलीबारी "संभावित खतरों" के जवाब में की गई, हालाँकि हमास ने इन कार्रवाइयों को युद्धविराम की खुली उल्लंघन बताया है।
इंसानी मदद की आपूर्ति भी गंभीर रुकावटों का सामना कर रही है। अमेरिका की मध्यस्थता में तय हुए 20-बिंदु समझौते के तहत रोजाना 600 ट्रक मदद ग़ज़्ज़ा में दाखिल होने थे, लेकिन इजरायल ने यह संख्या आधी करके 300 कर दी है, जबकि मिस्र से लगी राफाह सीमा अब भी बंद है।
उलेमा इकराम का सम्मान; युवा पीढ़ी को दीन की खिदमत का जज़्बा पैदा करता है
आयतुल्लाहिल उज़्मा नासिर मक़रिम शीराज़ी ने क़ुम में इस्लामी क्रांति के प्रमुख व्यक्तित्व, मरहूम आयतुल्लाह मुहम्मद यज़्दी की याद में आयोजित सम्मेलन के आयोजकों से मुलाकात के दौरान कहा कि उलेमा और इस्लामी व्यवस्था के सेवाकर्मियों की सराहना वास्तव में उनके अधिकारों की पूर्ति और नई पीढ़ी को धर्म की सेवा के रास्ते पर लगाने का साधन है।
आयतुल्लाहिल उज़्मा नासिर मक़रिम शीराज़ी ने क़ुम में इस्लामी क्रांति के प्रमुख व्यक्तित्व, मरहूम आयतुल्लाह मुहम्मद यज़्दी की याद में आयोजित सम्मेलन के आयोजकों से मुलाकात के दौरान कहा कि उलेमा और इस्लामी व्यवस्था के सेवाकर्मियों की सराहना वास्तव में उनके अधिकारों की पूर्ति और नई पीढ़ी को धर्म की सेवा के रास्ते पर लगाने का साधन है।
उन्होंने कहा कि इस तरह के समारोहों के तीन महत्वपूर्ण फायदे हैं:
- यह उलेमा इकराम और सेवाकर्मियों के अधिकारों की पूर्ति है जिन्होंने इस्लाम और क्रांति के लिए अनगिनत कुर्बानियाँ दीं,
- यह नई पीढ़ी के लिए एक व्यावहारिक सबक है, क्योंकि जब वे देखते हैं कि पिछले बड़े लोगों का सम्मान किया जाता है, तो वे भी उनके रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित होते हैं,
- यह काम अल्लाह के प्रति प्रेम प्राप्त करने का कारण बनता है, क्योंकि अल्लाह आभारी और सराहना करने वाले बंदों से प्यार करता है।
आयतुल्लाहिल मक़रिम शीराज़ी ने मरहूम आयतुल्लाह मुहम्मद यज़्दी की वैज्ञानिक, राजनीतिक और सामाजिक सेवाओं की सराहना करते हुए उन्हें इस्लामी व्यवस्था का एक प्रभावशाली और ईमानदार व्यक्तित्व बताया। उन्होंने कहा कि आयतुल्लाह यज़्दी ने अपना पूरा जीवन धर्म, क्रांति और राष्ट्र की सेवा के लिए समर्पित किया, और उनकी सेवाएं हमेशा इतिहास में जीवित रहेंगी।
शहीद मेजर जनरल मुहम्मद अब्दुल करीम अल-ग़मारी एक बुद्धिमान और बहादुर कमांडर थे
इस्लामी गणतंत्र ईरान के सशस्त्र बलों के प्रमुख जनरल मुसवी ने ज़ालिम इज़राईली आक्रमण के परिणामस्वरूप यमनी सशस्त्र बलों के प्रमुख जनरल मुहम्मद अब्दुल करीम अल-ग़मारी की शहादत पर संवेदना व्यक्त करते हुए इस महान शहीद के पवित्र रक्त को यमन की सच्चाई का एक और प्रमाण बताया है।
इस्लामी गणतंत्र ईरान के सशस्त्र बलों के चीफ ऑफ स्टाफ मेजर जनरल मुसवी ने एक संदेश जारी कर कहा है कि शहीद मेजर जनरल मुहम्मद अब्दुल करीम अलग़मारी एक बुद्धिमान और बहादुर कमांडर थे, जिन्होंने यमनी राष्ट्र की प्रतिष्ठा और स्वतंत्रता की रक्षा और फिलिस्तीनी कारण का समर्थन करने में विश्वास और साहस के साथ रणनीतिक भूमिका निभाई।
उन्होंने यमन के प्रतिरोधी राष्ट्र की सराहना करते हुए कहा कि यमनी राष्ट्र इस्लामी उम्माह और फिलिस्तीन की रक्षा के लिए मोर्चे पर है।
जनरल मूसवी ने कहा कि सियोनिस्ट सरकार को सबक सिखाने और यमन के खिलाफ हमलों का जवाब देने में शहीद जनरल मुहम्मद अब्दुल करीम अल-ग़मारी के कदमों ने निर्णायक और प्रभावशाली भूमिका निभाई।
ईरानी सशस्त्र बलों के प्रमुख ने अंत में शहीद जनरल मुहम्मद अब्दुल करीम अल-ग़मारी के परिवार और यमन के प्रतिरोधी राष्ट्र की सेवा में उनकी शहादत पर संवेदना व्यक्त करते हुए शहीदों के उच्च पद प्राप्त करने की दुआ की।
यमनी सशस्त्र बलों के प्रमुख जनरल मोहम्मद अब्दुल करीम अल-गमारी शहीद हो गए
यमनी सशस्त्र बलों ने कब्जाधारी इजरायली आक्रमण के परिणामस्वरूप जनरल मोहम्मद अब्दुल करीम अल-गमारी की शहादत की घोषणा करते हुए संवेदना व्यक्त की है।
यमनी सशस्त्र बलों ने एक आधिकारिक बयान में घोषणा की है कि चीफ ऑफ स्टाफ जनरल मोहम्मद अब्दुल करीम अल-गमारी कब्जाधारी इजरायली आक्रमण के खिलाफ रक्षात्मक कार्रवाइयों के दौरान शहीद हो गए हैं।
बयान में कहा गया है कि शहीद अल-गमारी ने अपनी जान जिहाद और धर्म की सेवा में कुर्बान कर दी और वह कुद्स (येरुशलम) के महान शहीदों के काफिले में शामिल हो गए।
यमनी बलों ने शहादत पर राष्ट्र को संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि शहीद अल-गमारी एक बहादुर, ईमानदार और जिम्मेदार कमांडर थे, जिन्होंने युद्ध के मैदान में नेतृत्व का फर्ज निभाया। उनकी शहादत के बावजूद यमनी सैन्य प्रणाली, मिसाइल और ड्रोन हमले किसी भी तरह प्रभावित नहीं होंगे, बल्कि दुश्मन के खिलाफ कार्रवाइयाँ और तेज होंगी।
बयान में आगे कहा गया है कि इजरायली दुश्मन के साथ युद्ध अभी खत्म नहीं हुआ है और अल्लाह के कृपा से उसे अपने अपराधों की सजा जरूर मिलेगी।
यमनी बलों ने स्पष्ट किया कि शहीदों का रास्ता किसी एक की शहादत से खत्म नहीं होता, बल्कि यह पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलने वाला एक मिशन है, जिसे हर युग के योद्धा आगे बढ़ाते रहेंगे।
यमनी सेना ने इस अवसर पर अपने संकल्प की पुनः पुष्टि करते हुए कहा कि हम शहीदों के खून से वफादारी का वादा करते हैं और उनकी जिहादी जीवन हमारे लिए मशाल का काम करेगी। हम अपने वादे पर कायम, अपने संकल्प पर डटे रहेंगे और अपने रास्ते पर चलते रहेंगे, जब तक कि अल्लाह हमें पूरी जीत नहीं दे देता।
पश्चिम; सांस्कृतिक और मीडिया साधनों के सहारे राष्ट्रों की पहचान मिटाने पर तुला हुआ है
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अब्बासी ने इस्लामी मानविकी विज्ञानों को सभ्यता-निर्माता बताते हुए चेतावनी दी कि पश्चिम की भौतिक सभ्यता, जो अब तक 130 से अधिक देशों पर उपनिवेशवाद का साधन रही है आज सांस्कृतिक और मीडिया जैसे हथियारों के माध्यम से राष्ट्रों की रूहानी व मानवी बुनियादों को निगल रही हैं।
जामिया अलमुस्तफा अलआलमिया के संरक्षक हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन डॉक्टर अब्बासी ने "मदरसा मआरफ़ी दराया" के शैक्षणिक वर्ष के आरंभ के कार्यक्रम को संबोधित करते हुए इस्लामी मानविकी विज्ञानों के महत्व पर जोर दिया और कहा,मानविकी विज्ञान सभ्यता का निर्माण करते हैं।
उन्होंने आगे कहा,पश्चिमी भौतिक सभ्यता जो पिछली कई शताब्दियों से दुनिया पर थोपी गई है, इन्हीं विज्ञानों के आधार पर खड़ी हुई है, लेकिन अपने भौतिकवादी आधारों के कारण उसने मानवता के लिए असंख्य विनाश पैदा किए हैं।
जामिया अलमुस्तफा अलआलमिया के संरक्षक ने पश्चिमी भौतिक सभ्यता के नकारात्मक प्रभावों की ओर इशारा करते हुए कहा,आज दुनिया के दो सौ से अधिक देशों में से लगभग 130 देशों ने पश्चिमी उपनिवेशवाद का स्वाद चखा है, जो दुनिया की आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं।केवल ब्रिटिश सरकार ने ही प्राचीन भारत लंबे समय तक अपने धोखेबाज़ प्रभुत्व में रखा।
उन्होंने अफ्रीका महाद्वीप को उपनिवेशवाद का सबसे बड़ा शिकार बताते हुए कहा: लगभग सभी अफ्रीकी देश किसी न किसी रूप में और किसी न किसी अवधि तक पश्चिमी उपनिवेशवाद का निशाना बने। प्राकृतिक संसाधनों से सबसे अधिक संपन्न दुनिया का यह क्षेत्र वर्षों तक यूरोपीय शक्तियों के प्रभुत्व में रहा।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अब्बासी ने आगे कहा,हालांकि हमारा देश सीधे तौर पर औपनिवेशिक प्रभुत्व का शिकार नहीं हुआ लेकिन पश्चिमी सरकारें हमेशा इस कोशिश में रहीं कि अपने अधीन शासकों को यहां थोपें। आज भी कुछ क्षेत्रों में यही स्थिति जारी है। हालांकि पश्चिमी सभ्यता का सबसे खतरनाक पहलू उसका सांस्कृतिक प्रभाव है जिसने दुनिया को बौद्धिक और आध्यात्मिक रूप से अपनी चपेट में ले रखा है।
उन्होंने हौज़ा ए इल्मिया क़ुम को एक महान दैवीय और सांस्कृतिक मिशन का धनी बताते हुए कहा, हमारे सभी बौद्धिक और शैक्षणिक केंद्रों को इसी उच्च लक्ष्य की राह में एकजुट होकर आगे बढ़ना चाहिए।
इंशाअल्लाह, अल्लाह की सहायता और कृपा हमारे साथ होगी। जब हम यह विश्वास कर लें कि ईश्वर हमारे साथ है, तो फिर बातिल की खोखली धमकियों से भयभीत नहीं होना चाहिए, क्योंकि हम सत्य के साथ हैं और बातिल नष्ट होने वाला है, उसके अस्थाई प्रभुत्व से परेशान नहीं होना चाहिए।
अमेरिका से समझौता वास्तव में अपमान और कमज़ोरी का संकेत है।आयतुल्लाह सईदी
क़ुम मुक़द्देसा के इमाम ए जुमआ आयतुल्लाह सैयद मोहम्मद सईदी ने कहा कि अमेरिका की बातों में आने का मतलब ज़िल्लत तसलीम करना है, क्योंकि वह शांति के नाम पर ईरान को कमजोर करना चाहता है। ईरान की वास्तविक ताकत ईमान, आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था और जन एकता में है।
आयतुल्लाह सैयद मोहम्मद सईदी ने क़ुम मुक़द्दसा में जुमे की नमाज़ के खुत्बे में कहा कि ईरान का मजबूत होना तभी संभव है जब अर्थव्यवस्था आंतरिक क्षमताओं, सक्रिय मानव पूंजी और क्षेत्रीय व वैश्विक स्तर पर अच्छे संबंधों पर आधारित हो।
उन्होंने कहा कि आज के दौर में किसी देश की ताकत उसके प्राकृतिक संसाधनों से अधिक उसकी आर्थिक स्वायत्तता और विकास की क्षमता से आंकी जाती है। उन्होंने कहा कि मजबूत अर्थव्यवस्था न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा की गारंटी है, बल्कि वैज्ञानिक प्रगति, राजनीतिक स्वतंत्रता और सांस्कृतिक उन्नति का साधन भी है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि मजबूत अर्थव्यवस्था का निर्माण जनभागीदारी, निजी क्षेत्र की सक्रियता, पारदर्शी वित्तीय प्रणाली और स्थायी आर्थिक नीति के बिना संभव नहीं है। आयतुल्लाह सईदी ने कहा कि ऐसी ही प्रणाली ईरान को बाहरी दबाव से सुरक्षित और दुश्मन के सामने प्रतिरोध करने में सक्षम बनाएगी।
अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प के संदर्भ में बात करते हुए उन्होंने कहा कि ट्रम्प ने बारजाम (परमाणु समझौता) से निकलने को अपनी सफलता बताया और अब फिर से वार्ता की बात कर रहा हैं, जबकि उन्होंने खुद इजराइल जैसे जंगली कुत्ते को ईरान पर हमला करने के लिए उकसाया। उनका कहना था कि अमेरिका के लिए "सहमति" और "शांति" का मतलब समर्पण और अपमान है, जिसकी ताजा मिसाल शर्म अल-शेख में होने वाली बैठक और इजराइल द्वारा युद्धविराम का उल्लंघन है।
उन्होंने कहा कि ईरान की राष्ट्र इन घमंडी ताकतों से भयभीत होने वाली नहीं है, बल्कि दुश्मन को पीछे धकेलने का संकल्प रखती है।
आयतुल्लाह सईदी ने पवित्र जीवन को एक दैवीय और सामाजिक कर्तव्य बताते हुए कहा कि पुरुष और महिला दोनों को शरई और नैतिक सीमाओं का पालन करते हुए समाज में भूमिका निभानी चाहिए। उनके अनुसार, पवित्रता और शर्म कोई व्यक्तिगत विकल्प नहीं बल्कि एक सामाजिक जिम्मेदारी है जो आशीर्वाद और स्थिरता का कारण बनती है।
उन्होंने शहीद यहया संवर को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि उन्होंने बहादुरी और ईमान के साथ सियोनिस्ट योजनाओं को विफल किया
आयतुल्लाह सईदी ने सूरह फ़तह की व्याख्या करते हुए कहा कि इस सूरह में हुदैबिया की शांति के पृष्ठभूमि में मुसलमानों को स्पष्ट विजय की खुशखबरी दी गई, जो बाद में मक्का की विजय के रूप में प्रकट हुई। उन्होंने कहा कि आज भी गाजा में जो प्रतिरोध दिख रहा है, वह उसी कुरआनी वादे की सहायता का प्रतीक है।
उन्होंने बताया कि सूरह फ़तह में सात मूल विषय हैं, जिनमें विजय की खुशखबरी, हुदैबिया की शांति, पैगंबर का स्थान, पाखंड, जिहाद और पैगंबर के सच्चे अनुयायियों के गुण शामिल हैं। यह सूरह मोमिनीन के लिए आध्यात्मिक दृढ़ता और ईमानी उत्साह का स्रोत है जो उन्हें कठिनाइयों में स्थिर रखती है।













