رضوی

رضوی

उम्मुल मोमिनीन हज़रत खदीजा (र.अ) को जो फज़ल व कमाल अल्लाह तआला ने अता फ़रमाया था, उस में कयामत तक कोई खातून शरीक नहीं हो सकती, उन्होंने सब से पहले हुजूर (ﷺ) की नुबुव्वत की तसदीक करते हुए ईमान कबूल किया।

सख्त आज़माइश में आप (ﷺ) का साथ देना, इस्लाम के लिए हर एक तकलीफ़ को बर्दाश्त करना, रंज व गम के मौके पर आप (ﷺ) को तसल्ली देना, यह उन की वह सिफ़ात हैं, जो उन्हें दीगर उम्महातुल मोमिनीन से मुमताज कर देती हैं।

अल्लाह तआला ने (फ़रिश्ते) जिब्रईले अमीन के जरिए उन्हें सलाम भेजा। खुद पैगंबर (ﷺ) ने फ़रमाया “अल्लाह की कसम! मुझे खदीजा से अच्छी बीवी नहीं मिली”, वह उस वक्त मुझ पर ईमान लाई जब लोगों ने इन्कार किया। उस ने उस वक्त मेरी नुबुव्वत की तसदीक की जब लोगों ने मुझे झुटलाया, उसने मुझे अपना माल व दौलत अता किया जब के दूसरे लोगों ने महरूम रखा। हकीकत यह है के इब्तिदाए इस्लाम में उन्होंने दीन की इशाअत व तबलीग में अपनी जानी व माली खिदमात अंजाम देकर पूरी उम्मत पर बड़ा एहसान किया है।

अल्लाह तआला उन्हें इस का बेहतरीन बदला अता फरमाए। (आमीन), सन १० नब्वी में ६५ साल की उम्र में (वफ़ात पाई और मक्का के हुजून नामी कब्रस्तान (यानी जन्नतुल माला) में दफन की गई।

आख़िरकार बुज़ुर्गाने बनी हाशिम और अशराफ़े कु़रैश के हुज़ूर में जश्ने शादी बरपा किया गया। हज़रत अबू ताबिल (अलैहिस्सलाम ) ने पैग़म्बरे इस्लाम (सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम ) की अज़मत व शराफ़त में फ़सीह व बलीग़ ख़ुतबा पढ़ा और फ़रमाया : मेरा भतीजा और ख़दीजा एक दूसरे से शादी पर राज़ी हैं। हम हज़रत ख़दीजा (सलामुल्लाहि अलैहा ) की दरख़्वास्त पर आये हैं और उनका महर मैं ख़ुद अदा करूँगा। रब्बे काबा की क़सम वह बहुत बड़ी शख़्सियत की मालिका है और इल्म व दिरायत में भी किसी से कम नही है। [ 1] हज़रत ख़दीजा (स ) के पिदरे बुज़ुर्गवार ने जवाब दिया कि आप हमारे दरमियान सब से अज़ीज़ हैं फिर हज़रत खदीजा (स ) के बारे में कहा कि वह मुझ से ज़्यादा अक़्लमंद और साहिबे इख़्तियार हैं। [ 2] हज़रत ख़दीजा (स ) ने अपने चचा अम्र बिन असद से इजाज़त तलब की और अपनी रिज़ायत का ऐलान करते हुए कहा कि मेरा मेहर मेरे माल से होगा। उसके बाद अम्र बिन असद ने बेहतरीन अंदाज़ में ख़ुतबा पढ़ कर कहा : व ज़व्वजनाहा व रज़ीना बिही , हम ने ख़दीजा (स ) को पैग़म्बर (स ) की ज़ौजा बनने का शरफ़ दिया है और इस मुक़द्दस बंदिश से राज़ी हैं। [ 3] फ़िर वाज़ेह तौर पर ऐलान किया मन ज़ल लज़ी फ़िन मिसला मुहम्मद , लोगों में कौन है जो मुहम्मद (स ) का हम रुतबा बन सके ?[4]

अक़ील ए क़ुरैश का मेहर

जब जश्ने शादी इख़्तेताम पज़ीर हुआ तो हज़रत खदीजा (स) के चचा ज़ाद भाई वरक़ा बिन नौफ़ल ने कहा: ख़दीजा का मेहर चार हज़ार दीनार है। हज़रत अबू तालिब (अ) ने शादमानी से उसे क़बूल किया लेकिन हज़रत ख़दीजा (स) ने मेहर की रक़्म अपने ज़िम्मे ली और चार हज़ार दीनार की शक्ल में पूरी रक़्म पैग़म्बरे इस्लाम (स) के चचा हज़रत अब्बास के पास भेज दी ताकि उस रक़्म को जश्न में आपके पिदरे बुज़ुर्गवार ख़ुवैलद को अता किया जाये।[ 5] जब मेहर की रक़्म हज़रत ख़दीजा (स) की ख़िदमत में पहुची तो आपने वरक़ा को हुक्म दिया कि इसे पैग़म्बर (स) की ख़िदमत में पेश किया जाये और यह भी अर्ज़ किया जाये कि मेरा सारा माल आप से मुतअल्लिक़ हैं। वरक़ा बिन नौफ़ल ने आबे ज़मज़म व मक़ामे इब्राहीम के दरमियान खड़ो होकर बुलंद आवाज़ से ऐलान किया: ऐ उम्मते अरब हज़रत ख़दीजा (स) मेहर की रक़्म समेत तमाम अमवाल ग़ुलाम और कनीज़ों को पैग़म्बरे इस्लाम (स) की ख़िदमत में पेश कर रही हैं और इस सिलसिले में आप को गवाह बना रही है।[ 6] तब हज़रत ख़दीजा (स) ने अपने तमाम माल व मनाल , सरवत व दौलत यहाँ तक कि इत्र व लिबास को भी हज़रत अबू तालिब (अ) के हवाले कर दिया ता कि वलीमे की शक्ल में इस शादी की रुसूम अंजाम दीं। हज़रत अबू तालिब (अ) ने तीन दिन के लिये दस्तर ख्वान बिछा दिया। जिस मे मक्का और अतराफ़े मक्का के सब लोगों को दावत दी गई।[ 7] यह सब से पहला वलीमा था जिस का बंदोबस्त पैग़म्बर (स) की जानिब से अंजाम पाया।[ 8] सीर ए हलबिया में लिखा है कि हज़रत अबू तालिब (अ) ने मज़कूरा मेहर की रक़्म के अलावा बीस अदद ऊँट को अपने माल से हज़रत खदीजा (स) के मेहर मं इज़ाफ़ा किया लेकिन तबरसी अर्ज़ करते हैं कि हज़रत खदीजा (स) का मेहर बक़िया अज़वाज की तरह साढ़े बारह सिक़्ल था। (जो सुन्नती मेहर है।)[ 9]

हज़रत खदीजा की दौलत

कई सालों से क़ुरैश का सब से बड़ा तिजारती कारवाँ हज़रत ख़दीजा (स) के इख़्तियार में था जिस की वजह से आप मालामाल हो गई। आपने वह सब सरवत व दौलत पैग़म्बरे इस्लाम (स) के हवाले कर दिया ताकि आप अपनी मर्ज़ी से उसे ख़र्च करें। उसके बाद भी जो कुछ दुनियावी माल में से आप के पास आता था उसे पैग़म्बर (स) के हवाले कर देती थीं लिहाज़ा जब आपका भतीजा हकीम बिन हिज़ाम आपसे मिलने आया तो ज़ैद बिन हारेसा को ग़ुलाम की शक्ल में उसे बख़्श दिया उसने फ़ौरन पैग़म्बर (स) को बख़्श दिया। पैग़म्बर (स) ने उसे आज़ाद करना चाहा लेकिन उसने ख़ानदाने वही का ख़िदमत गुज़ार बन कर रहने तरजीह दी।[ 10] ज़ोहरी कहता है कि हज़रत खदीजा (स) अपने अमवाल को चालीस हज़ार , चालीस हज़ार में तक़सीम करके पैग़म्बर (स) की ख़िदमत में पेश किया करती थीं।[ 11] अल्लामा मामक़ानी लिखते हैं कि तारीख़ के मुतावातिरात में से हैं कि इस्लाम का मुक़द्दस आईन हज़रत अली (अ) की तलवार और हज़रत खदीजा (स) की दौलत का मरहूने मिन्नत हैं।[ 12]

हज़रत खदीजा (स) की अक़्ल व ज़िहानत

हज़रत खदीजा (स) की फिक्रे सालिम व अक़्लमंदी के बारे में सिर्फ़ इतना ही काफ़ी है कि मुवर्रेख़ीन ने लिखा है कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) अपने तमाम उमूर में हज़रत ख़दीजा (स) से मशविरा करते थे।[ 13] हज़रत ख़दीजा (स) ब उनवाने मुशाविरे पैग़म्बर (स) ज़िन्दगी की तमाम मुश्किलात में पैग़म्बर (स) के साथ रहें और ज़िन्दगी के नागवार हवादिस में आपको तसल्ली बख़्शती थीं , इस्लाम की दावत के दौरान आपकी ज़िन्दगी में जो मुश्किलात और मशक़्क़तें पेश आ रही थीं। हज़रत खदीजा (स) ने आप की ख़ातिर उन्हे तहम्मुल किया।[ 14] पैग़म्बरे इस्लाम (स) चाहते थे कि क़ुरैश इस्लाम को तसलीम कर लें और ख़ुदा वंदे आलम के ग़ज़ब से महफ़ूज़ हो जायें लेकिन जब उनकी दुश्मनी और हट धर्मी का मुशाहिदा करते थे तो आप के क़ल्ब पर ग़म व अंदोह तारी हो जाता था ऐसी हालत में जब घर तशरीफ़ लाते थे और अपने दिल का राज़ हज़रत ख़दीजा (स) से बयान करते थे तो हज़रत ख़दीजा (स) अपनी हकीमाना बातों और आराम बख़्श निगाहों से आप के दिल को तसकीन पहुचाती थीं।[ 15] शेअबे अबी तालिब (अ) में माली व इक़्तेसादी मुहासरे में सख़्ती व मशक़्क़त से ज़िन्दगी बसर करने में हज़रत ख़दीजा (स) का माल था जिसने उस इक़्तेसादी मुहासरे को तोड़ा , उस दौरान ग़म व अंदोह से मुक़ाबिला करने में आप का बहुत हिस्सा रहा है। अगरचे ख़ुदा वंदे आलम अपनी बे पायाँ इनायात के साथ पैग़म्बरे इस्लाम (स) की हिफ़ाज़त कर रहा था लेकिन हज़रत खदीजा (स) ने अपने शादाब चेहरे और निशात बख़्श निगाहों के ज़रिये आप की ज़िन्दगी के सख़्त लम्हात में आप के इरादे को पुख़्ता करने में नुमायाँ किरदार अदा किया है।

कौसर का सदफ़

दुनिया की सैक़ड़ों बा फ़ज़ीलत ख़्वातीन में सिर्फ़ एक ऐसी ख़ातून मिलती हैं जिस ने इस दुनिया के नफ़ीस मोती , ख़ुदावंदे आलम के बे मिसाल मोती के एक दाने , दुनिया की शहज़ादियों की शहज़ादी , पैग़म्बरे ख़ातम (स) की आली मर्तबा बेटी , ख़्वातीने बनी आदम की सरदार , हज़रते ज़हरा ए अतहर (स) को अपनी गोद में परवरिश दी , उस ख़ातून का नाम हज़रत खदीजा (स) है। हज़रत ख़दीजा (स) के ज़रिये पैग़म्बरे इस्लाम (स) साहिबे औलाद बने। जिन में दो बेटे और एक बेटी थी। बेटे तो बचपने में इस दुनिया से रुख़सत हो गये लेकिन बेटी इस कायनात का चश्म ए जारी , गयारह इमामों की माँ , हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) हैं। तमाम मुवर्रेख़ीन लिखते हैं कि पैग़म्बरे अकरम (स) सिर्फ़ अपनी दो बीबियों से साहिबे औलाद हुए। जिन में एक हज़रत खदीजा (स) और दूसरी मारिया थीं। मारिया क़िबतिया से पैग़म्बर इस्लाम (स) के यहाँ इब्राहीम जैसा बेटा पैदा हुआ। जो सिर्फ़ तीन साल की उम्र में दुनिया से चला गया। हज़रत खदीजा (स) से दो बेटे और एक बेटी पैदा हुई।

 क़ासिम , जो पैग़म्बरे इस्लाम (स) के सबसे बड़े बेटे हैं। जिनकी विलादत बेसत से पहले हुई थी।

 अब्दुल्लाह , जो बेसत के बाद पैदा हुए। इसी वजह से उन्हे तैय्यब व ताहिर के लक़्ब से याद किया जाता है।[ 16] क़ासिल चार साला ज़िन्दगी में दुनिया से रुख़्सत हो गये और अब्दुल्लाह भी एक महीने के बाद शीर ख़्वारगी के दौरान इस दुनिया से रुख़सत हो गये।[ 17] चूँकि पैग़म्बरे इस्लाम (स) के दोनो बेटे मुख़्तसर से अरसे में दुनिया से रुख़सत हो गये। लिहाज़ा आस बिन वायल ने आप को अबतर कह कर पुकारा। क़ासिदे वही पैग़म्बर पर नाज़िल हुआ और सूर ए मुबारक ए कौसर की पैग़म्बर (स) के क़ल्बे मुबारक पर वही के उनवान से तिलावत की कि ख़ुदा वंदे आलम हज़रत फ़ातेमा (स) जैसी शख़्सियत को चश्म ए जारी बना कर अता कर रहा है। इस तरह से पैग़म्बरे अकरम (स) की पाक व ताहीर नस्ल सफ़ह ए गेती पर जारी हुई।

 

(आप इस किताब को अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क पर पढ़ रहे है।)

 

अभी हज़रत ज़हरा (स) शिकमे मादर में थीं कि पैग़म्बरे रहमत ने फ़रमाया: ऐ ख़दीजा (स) , तुझे तेरी बेटी मुबारक हो। ख़ुदा वंदे आलम उसे मेरे गयारह जानशीनों की माँ क़रार देगा जो मेरे और अली (अ) के बाद मंसबे इमामत पर फ़ायज़ होगें।[ 18]

 

हज़रत ख़दीजा (स) की सीरत पर एक नज़र

हज़रत खदीजा (स) की सीरत को उनको उन चंद सफ़हात में नही समेटा जा सकता , आपकी सीरते मुबारका के एक पहलू को पैग़म्बरे अकरम (स) की ज़बानी , पहले हमने यहाँ बयान किया है अब हम आपकी ज़िन्दगी के क़ीमती सफ़हात में कुछ की तरफ़ इशारा कर रहे हैं। जब अक़ील ए क़ुरैश और अमीने क़ुरैश की मुशतरक ज़िन्दगी का आग़ाज़ हुआ तो हज़रत अबू तालिब (स) अपने भतीजे की सर नविश्त से परेशान नज़र आ रहे थे। लिहाज़ा जब पैग़म्बरे इस्लाम (स) हज़रत ख़दीजा (स) के घर की जानिब तशरीफ़ ले जा रहे थे तो हज़रत अबू तालिब (अ ने एक कनीज़ को भेजा ता कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) और हज़रत खदीजा (स) की मुशतरका ज़िन्दगी का मुशाहिदा करे। उस कनीज़ का नाम नबआ था वह जब हज़रत अबू तालिब (अ) की ख़िदमत में आई तो यूँ अर्ज़ किया: जब मुहम्मद अमीन (स) घर की चौखट पर पहुचे तो हज़रत ख़दीजा (स) आप के इस्तिक़बाल के लिये चौखट पर तशरीफ़ लायीं। पैग़म्बर (स) का हाथ पकड़ कर अपने सीने पर रखा और अर्ज़ करने लगीं: मेरे माँ बाप आप पर क़ुरबान जायें। मैंने यह अमल इस लिये अंजाम दिया है कि उम्मीद रखती हूँ कि आप वही पैग़म्बरे मौऊद हैं जो इस सर ज़मीन के लिये इंतेख़ाब होगा , बस अगर ऐसा ही हुआ तो मेरे तवाज़ो और ख़ुलूस की बेना पर मेरे हक़ में दुआ ए ख़ैर कीजियेगा। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने भी जवाब में फ़रमाया: अगर ऐसा हुआ तो तुम्हारा यह अमल हरगिज़ बर्बाद न होगा और मैं उसे हरगिज़ न भूलूँगा।[ 19]

 हज़रत खदीजा (स) ज़िन्दगी के तमाम तल्ख़ व शीरीं हवादिस में बेसत के बाद पैग़म्बरे इस्लाम (स) की शरीके ग़म रहीं , हमेशा आपकी सलामती की ख़्वाहाँ थी , अपने ग़ुलामों व ख़िदमतगारों को पैग़म्बरे इस्लाम (स) की तलाश में भेजा करती थीं। यहाँ तक कि बाज़ मवारिद में ख़ुद पैग़म्बर (स) की तलाश में निकल पड़ती थीं और कभी कभी ग़ारे हिरा तक पैग़म्बर (स) के हमराह रहा करती थीं।[ 20] एक मर्तब आप गज़ा की शक्ल में ज़ादे सफ़र लिये हुए जबलुन नूर के मुश्किल रास्ते तय करती हुईं पहाड़ की चोटी पर ग़ारे हिरा में पैग़म्बर (स) की ख़िदमत में शरफ़याब हुईं , पैग़म्बरे इस्लाम (स) को सही सालिम पाकर बहुत ख़ुश हुईं और अपनी थकावट को भूल गई , क़ासिदे वही नाज़िल हुआ और आपकी ज़हमात का शुक्रिया अदा करते हुए गोया हुआ: ऐ अल्लाह के रसूल , ख़ुदावंदे आलम और मुझ जिबरईल का सलाम हज़रत ख़दीजा (स) की ख़िदमत में पहुचाईये और उन्हे जन्नत में मोतियों के महल की बशारत दीजिये। जिस में किसी क़िस्म का रन्ज व अंदोह न होगा।[ 21] एक मरतबा जब कुछ अरसे तक क़ासिदे वही पैग़म्बरे इस्लाम (स) पर नाज़िल न हुआ हो तो आप का क़ल्बे मुबारक परेशान हो रहा था कि हज़रत खदीजा (स) ने पैग़म्बर (स) को तसल्ली दी और कहने लगीं: ख़ुदा की क़सम , ख़ुदावंदे आलम हरगिज़ आपको ख़्वार न करेगा , आप सिल ए रहम के पाबंद हैं , आप लोगों की मुश्किलात को बर तरफ़ किया है , बेकसों और लाचारों की मदद की है लोगों के ग़मख़्वार रहे हैं , गुफ़तार में सच्चे और किरदार में पाक रहे हैं।[ 22] अबू लहब और उस की ज़ौजा उम्मे जंगल से काँटे उठा कर पैग़म्बर (स) के रास्ते में डाल देते थे , हज़रत ख़दीजा (स) अपने ग़ुलामों को हुक्म देती थीं कि रास्ते से काँटों को हटा कर दूर फेका जाये।[ 23] शेअबे अबी तालिब में तीन साल तक माली व इक़्तेसादी मुहासरे में ज़िन्दगी बसर हो रही है जिसमें किसी को रफ़्त व आमद की इजाज़त न थी। अगर हज़रत ख़दीजा (स) का माल व दौलत न होता तो शायद सब के सब भूखे मर गये होते। आप खाने पीने का सामान अपने भतीजे हकीम बिन हेज़ाम के ज़रिये कई गुना क़ीमत पर मुहय्या करती थीं और ज़हमात बर्दाश्त करके शेबे में पहुचाती थीं ताकि भूख व प्यास दूर की जा सके।[ 24] हज़रत ख़दीजा (स) पूरे 25 साल रिसालत के घर का चमकता हुआ सितारा रहीं। आप की दिलकश और निशात बख़्श निगाहें पैग़म्बरे रहमत (स) के लिये घर में तसल्ली बख़्श थीं लेकिन सद अफ़सोस कि आप की रेहलत से रंज व ग़म के दरिया अपनी मौजें लिये हुए पैग़म्बर (स) के दिल पर टूट पड़े। यह जान लेवा वाक़ेया हिजरत से तीन साल पहले बेसत के दसवें साल दस रमज़ान को पेश आया।[ 25]

 हज़रत ख़दीजा (स) की तारीख़े वफ़ात

ज़ाहिरी तौर पर इस में कोई इख़्तिलाफ़ नही है कि हज़रत खदीजा (स) की वफ़ात माहे रमज़ान हुई।[ 26] तबरी ने हज़ार साल क़ब्ल हज़रत खदीजा (स) के वफ़ात की दक़ीक़ तारीख़ बेसत के दसवें साल दस रमज़ानुल मुबारक बताई है।[ 27] अहले सुन्नत की बरजस्ता शख़्सियत सबरावी और शेख़ुल अज़हर बारहवीं सदी में इस बारे में लिखते हैं: हज़रत ख़दीजा (स) दसवीं रमज़ान को बेसत के दसवें साल हिजरत से (तीन साल) पहले इस दारे फ़ानी से रुख़सत हुईं और हजून में मदफ़ून हैं। पैग़म्बरे इस्लाम (स) आप की क़ब्र में उतरे और अपने हाथों से आप के जिस्मे मुबारक को क़ब्र में रखा। उस वक़्त तक नमाज़े मय्यत शरीयत में नही थी। हज़रत ख़दीजा की वफ़ात हज़रत अबू तालिब (अ) की वफ़ात के तीन माह बाद वाक़े हुई। जिसकी वजह से पैग़म्बर (स) बहुत ज़्यादा महज़ून हुए।[ 28] हज़रत खदीजा (स) की तारीख़े वफ़ात जिस किताब में भी ज़िक्र हुई है दस रमज़ान बताई गई है।[ 29]

 

हज़रत अबू तालिब (अ) व हज़रत ख़दीजा (स) की वफ़ात का फ़ासला

तारीख़ के मुसल्लमात में से है कि हज़रत अबू तालिब (अ) व हज़रत ख़दीजा (स) की वफ़ात बेसत के दसवें साल शेबे अबी तालिब से निकलने के कुछ अरसे बाद हुई लेकिन आप दोनो की वफ़ात का फ़ासला 3 दिन ,[30] 35 दिन ,[31] 55 दिन ,[32] और तीन माह[ 33] तक का बताया गया है , हज़रत अबू तालिब (अ) की वफ़ात के बारे में मशहूर क़ौल 26 रजब बेसत का दसवाँ साल बताया गया है।[ 34] इस वजह से बाज़ ने आप की वफात और हज़रत ख़दीजा (स) की वफ़ात में सिर्फ़ तीन दिन का फ़ासला बताया है और हज़रत ख़दीजा (स) की वफ़ात को 29 रजब तसव्वुर किया है जब कि तारीख़े के मनाबे दस रमज़ान पर इत्तेफ़ाक़ रखते हैं , जैसा कि आपने मज़कूरा सुतूर में मुलाहिज़ा किया है , इन दो ग़म अंगेज़ वाक़ेयात का फ़ासला तीन दिन से तीन माह तक बताया गया है। अगर हज़रत अबू तालिब (अ) की वफ़ात 26 रजब और हज़रत ख़दीजा (स) की दस रमज़ान मानी जाये तो दोनो की वफ़ात का फ़ासला 45 दिन होगा।

 

मुसीबत के पहाड़

हज़रत ख़दीजा (स) की रेहलत का जानलेवा वाक़ेया इतना सख़्त था कि मुसलमान पैग़म्बर (स) की सलामती के बारे में फ़िक्र मंद हो गये। सारे मुसलमान पैकरे सब्र व इस्तेक़ामत को इस वाक़ेया के बारे में तसल्ली देने की कोशिश कर रहे थे।[ 35] हकीम बिन हेज़ाम की बेटी हौला ने जब पैग़म्बरे इस्लाम (स) को तसलीयत पेश की तो आपने जवाब में फ़रमाया: ख़दीजा (स) मेरे लिये माय ए सुकून थीं , वह मेरी औलाद की माँ और मेरे ख़ानदान की सर परस्त थीं। सब से बड़ा आमिल जो इस मुसीबत में पैग़म्बरे इस्लाम (स) के सब्र व इस्तेक़ामत के सामने हायल था वह हज़रत ख़दीजा (स) की यादगार , ग़मों और मुसीबतों से भरा हज़रत ज़हरा (स) का चेहरा था , आप अश्कबार आँखों से अर्ज़ कर रही थीं बाबा , मेरी माँ कहाँ है ? बाबा , मेरी माँ कहाँ हैं ? यहाँ तक क़ासिदे वही नाज़िल हुआ और कहने लगा: फ़ातेमा से कह दीजिये कि ख़ुदा वंदे आलम ने तुम्हारी माँ ख़दीजा (स) के लिये जन्नत में ऐसा महल तैयार किया है जिस में किसी क़िस्म का रंज व ग़म न होगा।[ 36]

 चूँ कि हज़रत ख़दीजा (स) की रेहलत हज़रत अबू तालिब (अ) की ग़म अंग़ेज़ रेहलत के कुछ अरसे बाद वाक़े हुई लिहाज़ा पैग़म्बरे अकरम (स) ने इस साल को आमुल हुज़्न (ग़म व अंदोह का साल) का नाम दिया। गोया हक़ीक़त में एक साल अज़ा ए उमूमी का ऐलान किया।[ 37]

 पैग़म्बरे अकरम (स) फ़रमाया करते थे कि जब तक अबू तालिब (अ) व ख़दीजा (स) ज़िन्दा थे तो मुझ पर कभी भी ग़म व अंदोह तारी व हुआ।[ 38] पैग़म्बरे अकरम (स) जनाबे ख़दीजा (स) के साथ मुशतरेका ज़िन्दगी के तल्ख़ व शीरीं लम्हात कभी न भूले। यहाँ तक कि जब घर से निकलते थे तो हज़रत खदीजा (स) को याद करते थे। जिस के नतीजे में कभी कभी अपनी बक़िया अज़वाज के लिये पैग़म्बर (स) का यह तरीक़ा रश्क व हसद का सबब बन जाता था और ऐतेराज़ात का अंबार लग जाता था लेकिन आप तहे दिल से हज़रत खदीजा (स) की हिमायत करते हुए फ़रमाते थे: हाँ , ख़दीजा (स) ऐसी ही थीं और ख़ुदा वंदे आलम ने मेरी नस्ल की बक़ा का ज़रिया उन्हे बनाया है।[ 39] जब कभी पैग़म्बर (स) के घर भेड़ , बकरी ज़िब्ह की जाती थी तो हज़रत ख़दीजा (स) के चाहने वालों में ज़रुर तक़सीम करते थे।[ 40]

 हज़रत ख़दीजा (स) की वसीयतें

हज़रत ख़दीजा (स) ने पैग़म्बरे इस्लाम (स) को अपनी ज़िन्दगी के आख़िरी लम्हात में कुछ वसीयतें कीं जिन की तरफ़ हम इशारा कर रहे हैं:

 मेरे लिये दुआ ए ख़ैर करना।

 

  1. मुझे अपने हाथों से क़ब्र में दफ़्न करना।

 

  1. दफ़्न से क़ब्ल क़ब्र में दाख़िल होना।

 

  1. वह अबा जो नुज़ूले वही के वक़्त आप के कंधों पर रहती थी उसे मेरे कफ़न पर डाल देना।[ 41]

 

हज़रत खदीजा (स) ने अपना सारा माल व मनाल पैग़म्बरे इस्लाम (स) को बख़्श दिया लेकिन उसके एवज़ में सिर्फ़ एक अबा का मुतालेबा किया वह भी हज़रत ज़हरा (स) के तुफ़ैल।[ 42] यह हालत देखते ही फ़रिश्त ए वही नाज़िल हुआ और जन्नत से परवरदिगार की जानिब से जन्नती कफ़न ले कर आया , उम्मे ऐमन और उम्मुल फ़ज़्ल (अब्बास की ज़ौजा) ने हज़रत ख़दीजा (स) क पैकरे मुतह्हर को ग़ुस्ल दे कर विदा कर दिया।[ 43] पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने पहले अपनी अबा से आप को कफ़न पहनाया फिर जन्नती कफ़न को उस के ऊपर डाला। हज़रत ख़दीजा (स) ने अपनी ज़िन्दगी के आख़िरी लम्हात में हज़रत ज़हरा (स) के बारे में फ़िक्र मंदी का इज़हार किया लेकिन असमा बिन्ते उमैस ने वादा किया कि मैं आप की जगह हक़्क़े मादरी अदा करुँगी।[ 44]

 हज़रत खदीजा (स) की तदफ़ीन

हज़रत ख़दीजा (स) के पाक मुक़द्दस पैकर को कफ़न पहनाने के बाद हजून नामी पहाड़ी के दामन में ले जा कर हज़रत अबू तालिब (अ) के मरक़दे मुतह्हर के पास दफ़्न किया गया। पैग़म्बरे अकरम (स) ने हज़रत खदीजा (स) की वसीयत के मुताबिक़ क़ब्र में उतर कर आप के पैकरे मुतह्हर को अपने हाथों से ख़ाक के सुपुर्द कर दिया।[ 45] चौदह सदियाँ गुज़रने के बाद भी सैकड़ों की तादाद में ज़ायरीन , हज़रत ख़दीजा (स) की कब्र की ज़ियारत के लिये हज व उमरे के अय्याम में जाते हैं। शियों के बाज़ बुज़ुर्ग मराजे ए तक़लीद ने आपकी क़ब्रे मुतह्हर की ज़ियारत के मुसतहब होने का फ़तवा दिया है।[ 46] आप की क़ब्रे मुतहहर के ऊपर एक पुर शिकोह गुँबद हमेशा रहा है लेकिन 1344 हिजरी में वहाबियों के हाथों वह गुँबद ख़ाक में मिल गया।

 

हज़रत ख़दीजा (स) की रेहलत के बाद हज़रत ज़हरा (स) परवाने की तरह पैग़म्बर (स) के वुजूद के गिर्द घूमती थीं और आप से सवाल किया करती थीं: ऐ बाबा , मेरी माँ कहाँ हैं ? पैग़म्बरे इस्लाम (स) हज़रत ख़दीजा (स) के जन्नत में बुलंद मक़ाम को बयान करते हुए अपनी लख़ते जीगर को तसल्ली देते थे।[ 47]

 

पेशवाओं के पेशवा , अमीरे बयान , हज़रत अमीरुल मोमिनीन अली अलैहिस्सलाम ने हज़रत ख़दीजा (स) के ग़म में एक क़सीदा पढ़ा है जिस में आप के फ़ज़ायल व मनाक़िब पर रौशनी डाली है।[ 48]

हज़रत ख़दीजा (स) का मैदाने महशर में तशरीफ़ लाना

पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने हज़रत खदीजा (स) के मैदाने महशर में तशरीफ़ आवरी को यूँ बयान किया है: सत्तर हज़ार फ़रिश्ते आप के इस्तिक़बाल में दौड़ते हुए आयेगें। इस हाल में कि हाथों में परचम लिये हुए होगें और उन परचमों पर अल्लाहो अकबर लिखा हुआ होगा।[ 49]

हज़रत ख़दीजा (स) की ख़िदमात की क़द्रदानी

पैग़म्बरे अकरम (स) हमेशा हज़रत ख़दीजा (स) की बेनज़ीर ख़िदमात को याद करते थे और हज़रत ख़दीजा (स) को बक़िया अज़वाज पर तरजीह देते थे।[ 50] जब पैग़म्बरे इस्लाम (स) दस हज़ार जंगी लश्कर लेकर मक्क ए मुअज़्ज़ा में दाख़िल हुए और उसे फ़तह कर लिया तो अशराफ़े मक्का गिरोह दर गिरोह आप की ख़िदमत में आये और बहुत ज़्यादा इसरार करने लगे कि हमारे घर तशरीफ़ लायें लेकिन पैग़म्बर (स) ने उन की बातों की मुवाफ़िक़त न की और सीधे जन्नतुल मुअल्ला आ गये। वहाँ पहुच कर हज़रत ख़दीजा (स) के मरक़दे मुतह्हर के क़रीब ख़ैमा लगाया और जितने दिन मक्के मे रहे अपनी गुमशुदा अज़ीज़ा के पास रहे और उस दिन पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने ज़ुबैर बिन अवाम को हुक्म दिया कि जो परचम तुम्हारे हाथ में है उसे हज़रत ख़दीजा (स) की क़ब्रे मुतह्हर के पास नस्ब करो और उसे वहाँ से न उठाना।

फिर हुक्म दिया कि लश्कर के कमान्डर का ख़ैमा हज़रत ख़दीजा (स) के मरक़दे मुतह्हर के क़रीब लगाया जाये जब ख़ैमा लग गया तो आप ख़ैमे तशरीफ़ लाये और वहाँ से अहकाम सादिर किये और वाक़ेयात का जायज़ा लिया और आख़िरकार उसी मक़ाम से शहर में दाख़िल हुए।[ 51] पैग़म्बर (स) का यह अहम काम एक तो हज़रत ख़दीजा (स) के ईसार व क़ुर्बानियों की हक़ीक़ी पहचान था और दूसरे हज़रत ख़दीजा (स) के नाम अहम पैग़ाम था कि ऐ ख़दीजा , ऐ सब्र की पैकर , ऐ मेरी वा वफ़ा ज़ौजा , चूँ कि ज़िन्दगी के सख़्त दिनों में , कुरैश की जान लेवा घबराहट के दौर में , इक़्तेसादी मुहासरों के दौरान और पुर आशोब दिनों में तुम ने मेरा साथ दिया और तमाम क़िस्म के रंज व मशक़्क़त को तहम्मुल किया लिहाज़ा अब मैं निफ़ाक़ व कुफ़्र के तमाम क़िलों को फ़तह करते हुए फ़तहे मक्का के बाद तुम्हारी पाक तुरबत के पास इसलिये आया हूँ कि ता कि ख़ुशी के दिनों को हम आपस में बाँट लें।

हसद व किनह की इंतेहा

इस तरह पैग़म्बर (स) की तंहा हम रुतबा , ताहा की ज़ौजा , हज़रत ज़हरा (स) की वालिदा , इसस दुनिया से रुख़सत हो गई और हमेशा के लिये हासेदीन की नज़रों से ओझल हो गयीं। हज़रत खदीजा (स) तो इस दारे फ़ानी से रुख़सत हो गयीं और ख़ुदा वंदे आलम के जवार में अपना ठिकाना बना लिया लेकिन आप की रेहलत से हासेदीन के हसद में कोई कमी नही आई। जिस तरह ज़िन्दगी में हसद था वैसे ही मौत के बाद भी बाक़ी रहा।

हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) पैग़म्बर (स) की अज़वाज में से एक के बारे में कहती हैं कि उसने जब भी मुझे देखा मेरी वालिद ए मोहतरमा को बुरा भला कहना शुरु कर दिया। बहुत सी हदीसों में नक़्ल हुआ है कि जब हज़रत बक़ीय्यतुल्लाह (अ) का ज़हूर होगा तो ख़ुदा वंदे आलम उस को ज़िन्दा करेगा और हज़रत मेहदी (अ) उस पर हद्दे क़ज़फ़ जारी करेगें। चूँ कि उसने हज़रत मारिया क़िबतिया , इब्राहीम की वालिदा पर नाजायज़ तोहमत लगाई थी और इसी तरह हज़रत बक़ीय्यतुल्लाह (अ) अपनी माँ हज़रत ज़हरा (स) का इंतेक़ाम भी लेगें।[ 52] सही बुख़ारी में आयशा से रिवायत नक़्ल हुई है कि मैं ने अज़वाजे पैग़म्बर (स) में हज़रत ख़दीजा (स) से जितना हसद किया उतना किसी से नही किया। जब कि मैं ने उसे देखा नही था लेकिन जब भी पैग़म्बर (स) उसे याद करते थे तो मैं कहती थी गोया ख़दीजा (स) के अलावा इस कायनात में कोई ख़ातून नही है ?। पैग़म्बर (स) फ़रमाते थे: हाँ , खदीजा (स) ऐसी ख़ातून थीं जिन से मैं साहिबे औलाद बना लेकिन बक़िया अज़वाज इस से महरुम रहीं।

आयशा कहती हैं: एक दिन मैं ने ख़दीजा (स) के बारे में हद से बढ़ कर हसद किया , मैं ने पैग़म्बर (स) से कहा कि खदीजा (स) के बारे में कितना कहियेगा , क्या ख़ुदा वंदे आलम ने उससे बेहतर आप को अता नही किया ? पैग़म्बर (स) ने फ़रमाया: ख़ुदा की क़सम ख़ुदा वंदे आलम ने उन से बेहतर मुझे अता नही किया। वह उस वक़्त मुझ पर ईमान लायीं जब सब कुफ़्र में ग़ोतावर थे , उन्होने उस वक़्त अपनी तमाम सरवत व दौलत को मेरे क़दमों में डाल दिया जब सब इंकार कर रहे थे और ख़ुदा वंदे आलम ने मुझे उन के तुफ़ैल साहिबे औलाद बनाया लेकिन दूसरी अज़वाज को उस से महरुम रखा।[ 53]

हज़रत ख़दीजा (स) का घर

हज़रत ख़दीजा (स) की वफ़ात के बाद आप का घर मशाहिदे मुशर्रफ़ा के उनवान से ख़ान ए काबा के हुज्जाज में से हज़ारों चाहने वाले ज़ायरीन के लिये पूरे साल ज़ियारत गाह बन गया।

इब्ने बतूता लिखते हैं कि मशाहिदे मुशर्रफ़ा में मस्जिदुल हराम के नज़दीक एक जगह है जिसे क़ुब्बतुल वही कहते हैं और वह हज़रत ख़दीजा (स) का घर है।[ 54]

शेख अंसारी मनासिके हज में लिखते हैं कि मक्क ए मुअज़्ज़ा में सब हाजियों के मुसतहब है कि हज़रत ख़दीजा (स) के घर तशरीफ़ ले जाये।[ 55]

(आप इस किताब को अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क पर पढ़ रहे है।)

सद अफ़सोस कि आले सऊद के मुजरिम हाथों ने क़ुब्बतुल वही को भी बाक़ी इस्लामी इमारतों की तरह ख़ाक में मिला दिया। इंशा अल्लाह एक दिन ऐसा आयेगा कि जब हज़रत क़ायम का ज़हूर होगा और ग़ैबत की आस्तीन से इलाही हाथ बाहर आयेगा जो आले मुहम्मद (अ) के पामाल शुदा हुक़ूक़ को पलटायेगा और ख़ानदाने वही के बुलंद मरतबे व मक़ाम को दुनिया के सामने आशकार करेगा। इंशा अल्लाह।

[1]. तारीख़े याक़ूबी जिल्द 2 पेज 16

[2]. इब्ने हिशाम , अस सीरतुन नबविया जिल्द 1 पेज 204

[3]. इब्ने अबिल हदीद , शरहे नहजुल बलाग़ा जिल्द 14 पेज 70

[4]. अल्लामा मजलिसी बिहारुल अनवार जिल्द 16 पेज 59

[5]. इब्ने शहरे आशोब , मनाक़िबे आले अबी तालिब जिल्द 1 पेज 41

[6]. कुलैनी , अल काफ़ी जिल्द 5 पेज 374

[7]. सैयद अब्दुर रज़्ज़ाक़ मुक़र्रम , वफ़ातुज़ ज़हरा (स) पेज 7

[8]. शेख़ तूसी , मन ला यहज़ोरोहुल फ़क़ीह जिल्द 3 पेज 397

[9]. अब्दुल मुनईम , उम्मुल मोमिनीन ख़दीजा पेज 40

[10]. तबरसी , आलामुल वरा जिल्द 1 पेज 275

[11]. इब्ने हजर , अल इसाबा जिल्द पेज 598

[12]. दख़ील , उम्मुल मोमिनीन ख़दीजा पेज 23

[13]. सिब्ते इब्ने जौज़ी , तज़किरतुल ख़वास पेज 314

[14]. मामक़ानी , तंक़ीहुल मक़ाल जिल्द 3 पेज 77

[15]. इब्ने जौज़ी , तज़किरतुल ख़वास पेज 312

[16]. क़ाज़ी नोमान , शरहुल अख़बार जिल्द 3 पेज 17

[17]. इब्ने कलबी , जमहरतुन नसब पेज 30, इब्ने अब्दुर बर , अल इसतिआब जिल्द 4 पेज 1819, इब्ने हजर अल इसाबा जिल्द 2 पेज 237

[18]. याक़ूबी , अत तारीख़ी जिल्द 2 पेज 26

[19]. इब्ने असीर , उस्दुल ग़ाबा जिल्द 5 पेज 437

[20]. इब्ने हजर , फ़तहुल बारी जिल्द 7 पेज 134

[21]. इब्ने हेशाम , अस सीरतुन नबविया जिल्द 1 पेज 219

[22]. इब्ने हेशाम , अस सीरतुन नबविया जिल्द 1 पेज 219

[23]. अब्दुल नईम , उम्मुल मोमिनी ख़दीजा (स) पेज 60

[24]. अब्दुल नईम , उम्मुल मोमिनी ख़दीजा (स) पेज 78

[25]. ज़हबी , सीयरे आलामुन नुबला जिल्द 4 पेज 235

[26]. तबरी , अलायलुल इमामह पेज 8

[27]. ज़हबी तारीख़ुल इस्लाम जिल्द 1 पेज 237

[28]. तबरी , अलायलुल इमामह पेज 8

[29]. शबरावी , अल इतहाफ़ बे हुब्बिल अशराफ़ पेज 128

[30]. नमाज़ी , मुसतदरके सफ़ीना जिल्द 3 पेज 31, ख़ाक़ानी उम्माहातुल आईम्मा पेज 30, बहदिली उम्माहातुल मोमिनीन पेज 67

[31]. अल्लामा मजलिसी , बिहारुल अनवार जिल्द 19 पेज 25

[32]. बलाज़री , अनसाबुल अशराफ़ जिल्द पेज 273

[33]. बैहक़ी , दलायलुल नुबुव्वह जिल्द 2 पेज 353, तबरी , आलामुल वरा जिल्द 1 पेज 132

[34]. शबरावी , अल इतहाफ़ पेज 128

[35]. अल्लामा मजलिसी , बिहारुल अनवार जिल्द 19 पेज 24

[36]. तबरानी , अल मोजमुल कबीर जिल्द 22 पेज 376

[37]. याक़ूबी , अत तारीख़ जिल्द 2 पेज 29

[38]. दख़ील , उम्मुल मोमिनीन ख़दीजा (स) पेज 12, मुसतदरके सफ़ीना जिल्द 3 पेज 31

[39]. अरबली , कश्फ़ुल ग़ुम्मह जिल्द 1 पेज 16, मुहद्दिस क़ुम्मी , कोहलुल बसर पेज 55

[40]. क़ाज़ी नोमान , शरहुल अख़बार जिल्द 3 पेज 71

[41]. सही बुख़ारी जिल्द 5 पेज 39

[42]. इब्ने हजर , अल इसाबा जिल्द 4 पेज 275

[43]. सैलावी , अल अनवारुस सातेआ पेज 375

[44]. महल्लाती , रियाहिनुश शरीयह जिल्द 2 पेज 412

[45]. अल्लामा मजलिसी , बिहारुल अनवार जिल्द 43 पेज 138

[46]. आयतुल्लाह शिराज़ी , उम्माहातुल मासूमीन पेज 95

[47]. आयतुल्लाह सैयद अब्दुल आला सब्ज़वारी , मुहज़्ज़बुल अहकाम जिल्द 14 पेज 400

[48]. तारीख़े याक़ूबी जिल्द 1 पेज 254

[49]. शरहानी , हयातुस सैयदा ख़दीजा (स) पेज 282

[50]. इब्ने शहर आशोब , मनाक़िबे आले अबी तालिब (अ) जिल्द 4 पेज 170

[51]. अल्लामा मजलिसी , बिहारुल अनवार , जिल्द 8 पेज 53

[52]. तबरी , अत तारीख़ जिल्द 3 पेज 55, 57

[53]. बहरानी , हिलयतुल अबरार , (चाप संगी) जिल्द 2 पेज 54

[54]. इब्ने हजर , फ़तहुल बारी जिल्द 7 पेज 137

[55]. ज़हबी , सीयरे आलामुन नुबला , जिल्द 2 पेज 110

यह आयत स्पष्ट करती है कि पैग़म्बर (स) के मार्गदर्शन से दूर हो जाना और ईमान वालों के मार्ग से भटक जाना विनाश का अंत है। अल्लाह तआला ऐसे व्यक्ति को उसी रास्ते पर छोड़ देता है जिसे उसने स्वयं चुना था, और अन्ततः वह नरक का पात्र बन जाता है। इसलिए, अल्लाह के रसूल (स) की आज्ञा का पालन करना और ईमान वालों के मार्ग पर चलना ही मोक्ष का एकमात्र साधन है।

بسم الله الرحـــمن الرحــــیم  बिस्मिल्लाह अल रहमान अल रहीम

وَمَنْ يُشَاقِقِ الرَّسُولَ مِنْ بَعْدِ مَا تَبَيَّنَ لَهُ الْهُدَىٰ وَيَتَّبِعْ غَيْرَ سَبِيلِ الْمُؤْمِنِينَ نُوَلِّهِ مَا تَوَلَّىٰ وَنُصْلِهِ جَهَنَّمَ ۖ وَسَاءَتْ مَصِيرًا. व मय युशाक़ेक़िर रसूला मिन बादे मा तबय्यना लहुल हुदा व यत्तबिग़ ग़ैरा सबीलिल मोमेनीना नवल्लेहि व नुसलेहि जहन्नमा व साआतुम मसीरा (नेसा 115)

अनुवाद: और जो शख्स रसूल से झगड़ने लगे, इसके बाद कि उस पर हिदायत खुल चुकी हो और ईमान वालों के रास्ते के अलावा किसी और रास्ते पर चले, तो हम उसे फिर उसी रास्ते पर फेर देंगे जिस पर वह फिर गया था और उसे जहन्नम में डाल देंगे, जो सबसे बुरी जगह है।

विषय:

यह आयत अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के प्रति विरोध, ईमान वालों के मार्ग से भटकाव और उसके परिणामों पर प्रकाश डालती है।

पृष्ठभूमि:

यह आयत सूरह अन-निसा से ली गई है, जो मदनी काल में अवतरित हुई थी। इसमें इस्लामी समाज, नियमों और पाखंडियों की भूमिका पर चर्चा की गई है। आयत 115 में विशेष रूप से उन लोगों का उल्लेख किया गया है जो सत्य स्पष्ट होने के बावजूद अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का विरोध करते हैं और ईमान वालों के मार्ग के अलावा कोई दूसरा मार्ग अपनाते हैं।

तफ़सीर:

सत्य और मार्गदर्शन स्पष्ट हो जाने के बाद, हठ और शत्रुता के कारण अल्लाह के रसूल (स) के आदेश का विरोध करना, तथा रसूल (स) की आज्ञाकारिता में ईमान वालों द्वारा अपनाए गए मार्ग के अलावा अपनी इच्छाओं के अनुसार दूसरा मार्ग खोजना, कुफ़्र और पथभ्रष्टता की निशानी है। यहां दो मुद्दे ध्यान देने योग्य हैं:

मैं। [व यत्तबिग ग़ैरा सबीलिल मोमेनीना] अर्थात् वह ईमान वालों का मार्ग छोड़कर किसी अन्य मार्ग पर चलता है। इस वाक्य में, कुछ टिप्पणीकारों ने तर्क दिया है कि सर्वसम्मति एक तर्क है कि जब विश्वासी एक मुद्दे पर सर्वसम्मति से एक रास्ता चुनते हैं, तो दूसरों के लिए उस सर्वसम्मति का पालन करना अनिवार्य है।

तथ्य यह है कि इस आयत का किसी इज्माअ से कोई संबंध नहीं है, बल्कि इसमें रसूल (स) की आज्ञाकारिता और विरोध न करने का उल्लेख है। इसका उद्देश्य यह बताना है कि जो कोई भी व्यक्ति अल्लाह के रसूल (स) का विरोध न करने और उनका अनुसरण करने में ईमान वालों द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण से भिन्न दृष्टिकोण अपनाता है, वह नरक में जाने वाला व्यक्ति है। जबकि इज्माअ विश्वासियों के अपने व्यवहार से संबंधित है।

द्वितीय. [नोवल्लेहि मा तवल्ला] इस वाक्य से यह स्पष्ट हो जाता है कि जबरदस्ती का सिद्धांत झूठा है। मनुष्य अपने कार्यों में स्वतंत्र है और किसी भी प्रकार का दबाव उस पर नियंत्रण नहीं करता। इस वाक्य पर [तफ़सीर अल-मनार] के लेखक की टिप्पणी, अशरी के जबरदस्ती के सिद्धांत की अमान्यता पर पढ़ने लायक है।

महत्वपूर्ण बिंदू:

  1. जो कोई रसूल का विरोध करेगा अल्लाह उसे उसके हाल पर छोड़ देगा: [वह उसे उसके हाल पर छोड़ देगा]...
  2. जिस किसी को अल्लाह अपने हाल पर छोड़ दे, उसके लिए यही बड़ी सज़ा है: [और उसका भाग्य बहुत बुरा है]...

परिणाम:

यह आयत स्पष्ट करती है कि पैगम्बर (स) के मार्गदर्शन से विमुख होना तथा ईमान वालों के मार्ग से भटक जाना विनाश का अंत है। अल्लाह तआला ऐसे व्यक्ति को उसी रास्ते पर छोड़ देता है जिसे उसने स्वयं चुना था, और अन्ततः वह नरक का पात्र बन जाता है। इसलिए, अल्लाह के रसूल (स) की आज्ञा का पालन करना और ईमान वालों के मार्ग पर चलना ही मोक्ष का एकमात्र साधन है।

सूर ए नेसा की तफ़सीर

सीरिया में 5000 सीरियंस का खून बहाने वाले HTS के टेरेरिस्ट हों या पारा चिनार में शियो का खून बहाने वाले पाकिस्तानी टेरेरिस्ट हों कुरान की रौशनी में इन तमाम टेररिस्टों और इनको बनाने वालों को ठीक से पहचानिए?

सीरिया में 5000 सीरियंस का खून बहाने वाले HTS के टेरेरिस्ट हों या पारा चिनार में शियो का खून बहाने वाले पाकिस्तानी टेरेरिस्ट हों कुरान की रौशनी में इन तमाम टेररिस्टों  और  इनको बनाने वालों को ठीक से पहचानिए।

क़ुरान सिर्फ़ एक धार्मिक किताब नहीं है बल्कि इंसान की पूरी ज़िन्दगी का मार्गदर्शन है। क़ुरान मुसलमानों को सिर्फ़ पढ़ने का नहीं, बल्कि "गौर व फिक्र" (सोचने-समझने) का हुक्म देता है ताकि वे हक और बातिल (सच और झूठ) में फर्क कर सकें।

अफसोस की बात है कि मुसलमान क़ुरान को पढ़ते तो हैं, लेकिन न तो उस पर अमल करते हैं और न ही उसे समझते हैं कि कुरान ने किसे उनका असली दुश्मन कहा  है।

यही वजह है कि आज मुसलमान इस्लाम के भेस में छिपे  गद्दार मुस्लिम लीडरों और जिहाद के नाम पर इस्लामी खिलाफत कायम करने का ढोंग रचा कर इस्लाम को बदनाम करने वाले आतंकी संगठनों को नहीं पहचान पा रहे है। जो यहूद और नजारा के एजेंट हैं और यहूद और नसारा इनके जरिए से ही सब से ज्यादा इस्लाम को नुकसान पहुंचा रहे हैं।

क़ुरान ने बहुत साफ़ अल्फ़ाज़ में यहूद व नसारा को रहनुमा या सरपरस्त बनाने से मना किया है। सूरह मायदह (5:51) में अल्लाह फरमाता है:
"ऐ ईमान वालों! यहूदियों और नसाराओं को सरप्रस्त न बनाओ। वे आपस में एक-दूसरे के दोस्त हैं। और तुम में से जो कोई उनके कहने पर चलेगा, वह उन्हीं में से होगा ( यानी अल्लाह की निगाह में वो भी यहूदी और नसरानी होगा) । निःसंदेह अल्लाह ज़ालिम लोगों को हिदायत नहीं देता।(यानी वो मुसलमान जो कुरान के इस फैसले को न माने वो मुसलमान सिर्फ यहूदी और नसरानी ही नहीं है बलि अल्लाह की निगाह में वो ज़ालिम भी है) ये मेरा नहीं अल्लाह का फैसला है जो कुरान में लिखा हुआ है।

(सूरह मायदह: 51)

कुरान की इन आयात की रौशनी में खुद चेक कर लीजिए कि कितने मुस्लिम हुक्मरान, अमरीका, ब्रिटेन और इस्राईल और उनके जैसे मुल्कों के तलवे चाट रहे हैं और उनके हुक्म पर चल रहे हैं और अमरीका ब्रिटेन और इसराइल के खिलाफ एक लफ्ज़ भी नहीं बोलते,फिलिस्तीन में बरसों से और डेढ़ साल से तो रोज  ही मुसलमान मारे जा रहे हैं,बैतुल मुक़द्दस (अल-अक्सा मस्जिद) पर हमला हो रहा है मगर ये यहूदी एजेंट मुंह में दही जमाए हुए हैं।

अल्लाह ने ये भी फर्माया है कि जो लोग अल्लाह के फैसले के खिलाफ हुक्म देते हैं, वह भी काफिर, फ़ासिक़ और ज़ालिम हैं:और जो लोग अल्लाह के उतारे हुए हुक्म के अनुसार फैसला न करें, वही तो काफ़िर हैं।
(सूरह मायदह: 44)

और जो लोग अल्लाह के उतारे हुए हुक्म के अनुसार फैसला न करें, वही तो ज़ालिम (अत्याचारी) हैं।(सूरह मायदह: 45)और जो लोग अल्लाह के उतारे हुए हुक्म के अनुसार फैसला न करें, वही तो फासिक (आज्ञा भंग करने वाले) हैं।

(सूरह मायदह: 47)

यानी जो भी अल्लाह और उसके रसूल के हुक्म के खिलाफ चले,चाहे वो मुसलमान कहलाए, वो असल में काफ़िर, ज़ालिम और फासिक है।
क़ुरान ने सच्चे मुसलमानों की पहचान बताते हुए ये भी कहा है:तुम्हारे दोस्त तो बस अल्लाह, उसका रसूल और ईमान वाले हैं, जो नमाज़ क़ायम करते हैं, ज़कात देते हैं और अल्लाह के आगे झुकते हैं।(सूरह मायदह: 55)

इस आयत की रौशनी में देख कीजिए अल्लाह रसूल पर ईमान रखने वाले फिलिस्तीनियों के साथ कौन है कौन उनकी मदद कर रहा है और कौन फिलिस्तीनियों का साथ नहीं दे रहा बल्कि इसराइल के और अमरीका के साथ है और गाज़ा का रस्ता खुलवा के वहां मदद पहुंचाने के बजाए फिलिस्तीनियों की मदद रोकने और भूखा प्यासा मारने वाले इसराइल को अपनी सरजमीन से मदद पहुंचा रहे हैं।

इसलिए जो यहूद व नसारा के दोस्त बने हुए हैं, उनके साथ खड़े हैं, वो कुरान के फैसले के मुताबिक मुसलमान नहीं हो सकते।
इसके अलावा, क़ुरान ये भी बता चुका है कि इस्लाम का सबसे बड़ा दुश्मन कौन है:

"ईमानवालों! तुम पाओगे कि सबसे ज्यादा दुश्मनी करने वाले यहूदी और मुशरिक हैं,(सूरह मायदह: 82)

यानि यहूदी  मुसलमानों के असली दुश्मन हैं।

आज जो तरह तरह के जिहादी संगठन हैं जो "जिहाद" के नाम पर मुसलमानों का खून बहा रहे हैं वो चाहे तालिबान, अल-कायदा, दाइश (ISIS) हो,या HTS का जुलानी ये सब यहूद व नसारा के एजेंट हैं।

इन संगठनों ने भी कभी  फिलिस्तीन के लिए आवाज़ नहीं उठाई और कभी इसराइल के खिलाफ़ नहीं खड़े हुए और किसी ने भी बैतूल मुकद्दस और फ़िलीस्तीन की आज़ादी में कोई हिस्सा नहीं लिया  उनका मकसद सिर्फ मुसलमानों में फूट डालना मुस्कानों के गले काटना मुस्लिम मुमालिक को कमजोर करना और इस्लाम को बदनाम कर के यहूद नसारा और इस्लाम दुश्मन ताकतों को फायदा पहुंचाना है।

ये सारे दहशत गर्द संगठन अमरीका इसराइल ब्रिटेन और अमरीका इसराइल नवाज़ मुस्लिम मुमालिक के पैसों ट्रेनिंग और हथियारों पर पल रहे हैं।

यानी इन सारे आतंकी गिरोहों ने भी अपना सर प्रस्त अमरीका ब्रिटेन और इसराइल को बना रखा है मतलब अमरीका इसराइल और ब्रिटेन के तलवे चाटने वाले मुस्लिम मुमालिक हों या उनके इशारों पर नाचने वाले आतंकवादी संगठन हों दोनों कुरान की रौशनी में यहूदी और नसरानी हैं

इस्लाम अमन, इंसाफ़ और भाईचारे का मज़हब है, लेकिन ये दोनों इस्लाम के भेस में छिपे इस्लाम के गद्दार इस्लाम को खून-खराबे और दहशत गर्दका मज़हब दिखाकर यहूद व नसारा की इस्लाम विरोधी चालों को कामयाब बना रहे हैं।

इसलिए, हर मुसलमान को चाहिए कि रमजान के महीने में क़ुरान को समझे, उस पर गौर करे, और अपने अंदर के इन दुश्मनों को पहचान कर उनका पर्दाफाश करे। जब तक हम क़ुरान की रौशनी में हक और बातिल की पहचान नहीं करेंगे, तब तक मुसलमानों की जमात मुत्ताहिद नहीं हो सकती।

निष्कर्ष,आज मुसलमानों के सामने सबसे बड़ा फर्ज़ यही है कि वो अपने बीच छिपे गद्दार मुस्लिम हुक्मरानों और आतंकवादियों को बेनकाब करें।

जो यहूद व नसारा के एजेंट बनकर इस्लाम को बदनाम कर रहे हैं,और यहूदियों से ज्यादा मुस्कानों का खून बहा रहे हैं। दो दिनों के अन्दर जुलानी के आतंकवादी संगठन HTS ने 5000 सीरियाई मुसलमानो की जान ले कर बता दिया कि ये यहूदी और नसरानी तकफिरी HTS के आतंकवादी अपने आका मुल्ला उमर और अबूबकर  बगदादी की तरह दूसरे मुसलमानों को काफिर समझते हैं और अपने अलावा किसी को मुसलमान नहीं समझते और इसी लिए अपने अलावा दूसरे मुसलमानों का कतले आम करते रहते है ऐसे लोगों को रोकना हर सच्चे मुसलमान की जिम्मेदारी है।

आप लोग देख लीजिए इसराइल सीरिया पर कब से कब्जा कर रहा है जुलानी ने इसराइल के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया मगर HTS के दहशत गर्द अलवाइट्स और शियो का खुले आम कत्ल कर रहे हैं।

क़ुरान का साफ़ हुक्म है जो अल्लाह के हुक्म के खिलाफ चले, वो काफ़िर, ज़ालिम और फासिक है, चाहे वो मुस्लिम मुमालिक के सरब्राहान हों या मुसलमान के नाम पर बने आतंकी संगठन हों ये चाहे जितना अपने आप को मुस्लिम कहें कुरान की रौशनी में ये सब यहूदी,नसरानी और ज़ालिम हैं और अल्लाह खुद कुरान में जगह जगह ज़लीमों पर लानत करता है।

(शौकत भारती)

 

हौज़ा इल्मिया की सुप्रीम काउंसिल के सदस्य ने तीनों राष्ट्रीय राज्य संस्थानों की हिजाब कानून के प्रवर्तन में ज़िम्मेदारियों पर जोर देते हुए कहा,हिजाब न केवल एक शरीयत का फर्ज़ है बल्कि यह इस्लामी गणराज्य ईरान की संसद द्वारा कानून भी है।

हौज़ा इल्मिया की सुप्रीम काउंसिल के सदस्य आयतुल्लाह महमूद रजब़ी ने एक प्रतिनिधि से बातचीत के दौरान कहा,आज हमारे समाज में एक महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि इस्लाम मक़तबे अहल बैत (अ.ल.) और इस्लामी क्रांति के दुश्मन हर अवसर को इस्लामी व्यवस्था के खिलाफ साजिश के रूप में इस्तेमाल करते हैं।

उन्होंने कहां,हिजाब एक अनिवार्य शरीयत का आदेश है जिसका पालन सभी पर आवश्यक है। अल्हमदुलिल्लाह हमारे समाज का अधिकांश भाग धार्मिक है और शरीयत के आदेशों का पालन करता है। कभी कभी उत्पन्न होने वाली कुछ बुराइयों को दुश्मन के प्रचार का साधन नहीं बनने देना चाहिए ताकि वह यह धारणा न बना सके कि हमारा समाज हिजाब का विरोधी है।

उन्होंने आगे कहा,दुनिया ने देखा कि विभिन्न घटनाओं में जब दुश्मन ने हिजाब के मुद्दे को अपने लाभ के लिए इस्तेमाल करना चाहा तो स्वयं महिलाओं ने इसका सामना किया और दुश्मनों ने भी यह स्वीकार किया कि वे इससे कोई लाभ नहीं उठा सके।

हौज़ा इल्मिया की सुप्रीम काउंसिल के सदस्य ने कहा,अल्हमदुलिल्लाह हमारा समाज धार्मिक है और इस्लाम, मक़तबे अहल-बैत अ.स. इस्लामी व्यवस्था और नेतृत्व के प्रति वफादार है। लेकिन इसके बावजूद, हमें सतर्क रहना चाहिए और दुश्मनों की साजिशों से होशियार रहना चाहिए ताकि वे किसी भी परिस्थिति का गलत फायदा न उठा सकें।

 

 

ईरान के विदेश मंत्री ने जोर देकर कहा, हम किसी भी तरह के दबाव या धमकी के तहत बातचीत नहीं करेंगे और ऐसी किसी भी वार्ता को विचार योग्य तक नहीं मानते चाहे उसका विषय कुछ भी हो।

ईरान के विदेश मंत्री सैयद अब्बास इराक़ची ने एक्स पर लिखा,ईरान का परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम हमेशा पूरी तरह से शांतिपूर्ण रहा है और रहेगा इसलिए इसकी तथाकथित ‘संभावित सैन्यीकरण’ जैसी कोई बात ही नहीं है।

हम किसी भी दबाव या धमकी के तहत बातचीत नहीं करेंगे। हम ऐसी किसी भी वार्ता को विचार योग्य तक नहीं मानते चाहे उसका विषय कुछ भी हो बातचीत और धौंस में अंतर होता है।

हम इस समय तीन यूरोपीय देशों के साथ और अलग से रूस और चीन के साथ समान परिस्थितियों और आपसी सम्मान के आधार पर विचार-विमर्श कर रहे हैं।

इसका उद्देश्य अधिक विश्वास और पारदर्शिता बढ़ाने के उपाय खोजना है ताकि ईरान के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम को लेकर अधिक स्पष्टता हो सके और बदले में अवैध प्रतिबंध हटाए जा सकें।

अतीत में जब भी अमेरिका ने ईरान के साथ सम्मानपूर्वक संवाद किया उसे सम्मान ही मिला। लेकिन जब भी उसने धमकीभरी भाषा अपनाई, तो उसे ईरान के प्रतिरोध का सामना करना पड़ा हर क्रिया की अनिवार्य रूप से एक प्रतिक्रिया होती है।

ब्रिटेन सरकार द्वारा ईरान सरकार के कर्मचारियों के खिलाफ निगरानी उपायों को कड़े करने की घोषणा और इस देश के सुरक्षा मंत्री के उस बयान जिसमें उन्होंने विदेशी प्रभाव पंजीकरण योजना में ईरान को उन्नत श्रेणी में शामिल करने की बात कही, जिस पर गुरुवार 6 मार्च को ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता इस्माइल बक़ाई की प्रतिक्रिया सामने आई है।

ब्रिटेन सरकार द्वारा ईरान सरकार के कर्मचारियों के खिलाफ निगरानी उपायों को कड़े करने की घोषणा और इस देश के सुरक्षा मंत्री के उस बयान जिसमें उन्होंने विदेशी प्रभाव पंजीकरण योजना में ईरान को उन्नत श्रेणी में शामिल करने की बात कही, जिस पर गुरुवार 6 मार्च को ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता इस्माइल बक़ाई की प्रतिक्रिया सामने आई है।

इस संबंध में उन्होंने एक संदेश में कहा कि ब्रिटेन सरकार ईरानियों के प्रति अपनी अव्यावहारिक और द्वेषपूर्ण मानसिकता पर अड़ी हुई है, ताकि वह अपने अपराधों को छुपा सके चाहे वह फिलिस्तीनी जनता के खिलाफ नरसंहार का समर्थन हो या फिर ईरान विरोधी आतंकवाद को बढ़ावा देना जिसकी जड़ें 1953 ईरान तख्तापलट तक जाती हैं, जब ब्रिटेन ने जनता द्वारा चुनी गई सरकार के खिलाफ साजिश रची थी और यह घटना कभी भी हमारी यादों से मिट नहीं सकती।

बक़ाई ने ब्रिटिश अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा,यह एक घटिया बचाव है कि आप ईरान पर उसी चीज का आरोप लगाएं जिसमें खुद आप निपुण हैं यानी राष्ट्रों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप! विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने आगे कहा, लेकिन अब उन्नीसवीं सदी नहीं रही जो भी सरकार ईरानी जनता पर बेबुनियाद आरोप लगाएगी या उनके खिलाफ शत्रुतापूर्ण कदम उठाएगी उसे जवाबदेह होना पड़ेगा।

बक़ाई का यह इशारा 19वीं सदी के ब्रिटिश साम्राज्य की ओर था जिसे “वह दौर जब ब्रिटेन में सूरज नहीं डूबता था कहा जाता था और इसे ब्रिटिश साम्राज्य के स्वर्ण युग के रूप में देखा जाता है।

विदेशी प्रभाव पंजीकरण योजना ब्रिटेन में विदेशी सरकारों के एजेंटों की गतिविधियों की निगरानी के लिए बनाई गई है इस नए कदम के तहत, ईरानी सरकार के कर्मचारी या जो भी ब्रिटेन में ईरान सरकार की ओर से गतिविधियां कर रहे हैं उन्हें इस योजना के तहत अपना नाम पंजीकृत कराना होगा।

ब्रिटिश सरकार के अनुसार, यदि ईरान सरकार के कर्मचारी इस नियम का पालन नहीं करते हैं, तो यह एक आपराधिक कृत्य माना जाएगा, जो अधिकतम 5 साल की कैद तक की सजा का कारण बन सकता है।

इस्माइल बक़ाई ने ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा ईरान पर लगाए गए उस आरोप को बेबुनियाद बताया था, जिसमें कहा गया था कि ईरान ब्रिटेन की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने ब्रिटिश अधिकारियों को सलाह दी कि वे ईरान के खिलाफ शत्रुतापूर्ण नीतियों और निराधार आरोपों पर जोर देने के बजाय, ईरानी जनता के खिलाफ अपनी गलत नीतियों को त्यागें और आतंकवाद को बढ़ावा देने व उसे प्रोत्साहित करने से बाज आ

तालिबान का कहना है कि उनके नियंत्रण वाले अफ़ग़ानिस्तान में महिलाएं शारीरिक और मानसिक रूप से पूरी तरह सुरक्षित हैं और उनके खिलाफ किसी भी तरह की हिंसा नही हुई हैं।

तालिबान के उप प्रवक्ता हामिदुल्लाह फ़ितरत ने शनिवार (18 हुत, 8 मार्च – अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस) को अपने एक्स (पूर्व में ट्विटर) अकाउंट पर लिखा कि महिलाओं की इज्जत, गरिमा और उनके धार्मिक अधिकारों की रक्षा इस्लामी अमीरात की प्राथमिकता है। उन्होंने दावा किया कि अफ़ग़ान महिलाएं पूरी सुरक्षा में हैं और किसी भी तरह की हिंसा से मुक्त जीवन जी रही हैं।

तालिबान प्रवक्ता ने यह भी कहा कि कोई भी व्यक्ति महिलाओं के अधिकारों का हनन नहीं कर सकता और न ही उन्हें अपमानित कर सकता है। उनके मुताबिक, तालिबान की अदालतें और अन्य संबंधित संस्थाएं इस बात को सुनिश्चित करने के लिए काम कर रही हैं कि महिलाओं को उनके विवाह, दहेज, संपत्ति और अन्य धार्मिक अधिकार मिलें और इनकी निगरानी और सुरक्षा की जाए।

उन्होंने आगे कहा कि अफ़ग़ान महिलाओं के अधिकार इस्लामी शरीयत, अफ़ग़ानी संस्कृति और परंपराओं के अनुसार सुनिश्चित किए गए हैं। साथ ही, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अफ़ग़ान समाज एक इस्लामी समाज है, जो पश्चिमी समाज और उसकी संस्कृति से पूरी तरह अलग है।

हालांकि, हकीकत इसके विपरीत है। तालिबान के शासन के तहत अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं को उनके मौलिक अधिकारों से वंचित कर दिया गया है। उन्हें शिक्षा और काम करने के अधिकार से भी वंचित कर दिया गया है, जो कि न केवल शरीयत की व्याख्या बल्कि अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के भी खिलाफ़ है।

हमास आंदोलन ने एक बयान में बताया कि उसके एक प्रतिनिधिमंडल ने मिस्र की खुफिया एजेंसी के प्रमुख से मुलाकात की और युद्धविराम समझौते के लिए तीन अहम शर्ते रखी हैं।

फ़िलस्तीनी संगठन हमास के प्रवक्ता ने अलजज़ीरा मुबाशिर चैनल को बताया कि हमास ने युद्धविराम वार्ता जारी रखने के लिए तीन मुख्य शर्तें रखी हैं

बंदियों का आदान-प्रदान ,ग़ाज़ा से इसरायली क़ब्ज़ा करने वाली सेनाओं की पूरी तरह वापसी,इसरायल की ओर से युद्ध दोबारा शुरू न करने की प्रतिबद्धता उन्होंने स्पष्ट किया कि मध्यस्थों के साथ दूसरी चरण की वार्ता शुरू करने को लेकर बातचीत जारी है, और आने वाले दिनों में कूटनीतिक गतिविधियों में बढ़ोतरी की उम्मीद है।

साथ ही हमास के प्रतिनिधिमंडल ने मिस्र की योजना को स्वीकार कर लिया है जिसमें एक स्वतंत्र फ़िलस्तीनी शख्सियतों वाली जन समर्थन समिति बनाई जाएगी जो ग़ाज़ा का प्रशासन संभालेगी।

यह समिति तब तक ग़ाज़ा का प्रबंधन करेगी जब तक फ़लस्तीनी गुट अपने आपसी मतभेदों को हल नहीं कर लेते और संसदीय एवं राष्ट्रपति चुनाव नहीं हो जाते।

ग़ौरतलब है कि इस योजना का इसरायली शासन, अमेरिका और फ़िलस्तीनी अथॉरिटी ने विरोध किया है।

इसी बीच, इसरायली चैनल 12 ने दावा किया है कि हमास ने युद्धविराम की मौजूदा स्थिति को बढ़ाने पर सहमति जताई है और आगामी हफ्तों में युद्ध फिर से शुरू होने की संभावना नहीं है।

 

राजनीतिक विशेषज्ञों और विश्लेषकों ने फिलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हमास के साथ बातचीत के अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प के फ़ैसले का विश्लेषण किया।

इस्राईली मुद्दों के विशेषज्ञ "फ़ेरास याग़ी" ने अमेरिका और हमास के बीच सीधी बातचीत का ज़िक्र करते हुए इसे ट्रम्प प्रशासन के दृढ़ विश्वास का परिणाम क़रार दिया कि सीधी बातचीत से क़ैदियों की रिहाई में तेजी आएगी और यह क्षेत्र में व्यापक योजनाओं की प्रस्तावना है।

दूसरी ओर, एक अन्य फ़िलिस्तीनी विश्लेषक "हसन लाफ़ी" ने कहा: हमास के साथ अमेरिकी बातचीत के दो नकारात्मक और सकारात्मक पहलू हैं।

इसका सकारात्मक पक्ष यह है कि ट्रम्प प्रशासन इस बात को लेकर आश्वस्त है कि हमास के बिना क़ैदियों की समस्या का समाधान संभव नहीं है और यह नेतन्याहू के सैन्य दबाव की हार जैसा है।

 उनके अनुसार, नकारात्मक पहलू युद्ध रोकने की प्रतिबद्धता दिए बिना, अधिक कैदियों को रिहा करने की हमास के ख़िलाफ़ अमेरिकी चाल है।

फ़िलिस्तीन के राजनीतिक विश्लेषक अय्याद अल-क़रा ने कहा कि हमास के साथ अमेरिकी वार्ता एक व्यापक बातचीत शुरू करने के लिए एक महत्वपूर्ण क़दम है जो क़ैदियों के मुद्दे से परे है और ग़ज़ा में युद्ध को रोकने और क़ब्ज़ा करने वालों को अपने दायित्वों को पूरा करने के लिए मजबूर करने की संभावना की ओर ले जाती है।

उन्होंने कहा: ये वार्ताएं इज़राइली क़ब्ज़े में वाशिंगटन के विश्वास में गिरावट और हमास पर क़ाबू पाने या इसे राजनीतिक रूप से हाशिए पर डालने में उनकी नाकामी को ज़ाहिर करती हैं।

इस दौरान; अरब जगत के एक प्रमुख विश्लेषक अब्दुल बारी अतवान ने कहा, अरब मध्यस्थों के माध्यम से डोनल्ड ट्रम्प का बातचीत का रुख़, हमास के लिए शर्तें तय करने में सरकार और उनके दूत की निराशा का नतीजा है।

इस संबंध में इज़राइली टीवी चैनल "i24" ने भी हमास के ख़िलाफ़ डोनल्ड ट्रम्प और बेन्यामीन नेतन्याहू की निराधार धमकियों की ओर इशारा किया और कहा कि अमेरिका के राष्ट्रपति और ज़ायोनी प्रधानमंत्री अपनी धमकियों पर अमल करने में सक्षम नहीं हैं और अब हमास के साथ दोस्ती की कोशिश कर रहे हैं।

ग़ज़ा में युद्ध के लक्ष्यों को प्राप्त करने में नेतन्याहू की असमर्थता को जारी रखते हुए, अमेरिका और हमास के बीच सीधी बातचीत के बाद, ज़ायोनी शासन के चैनल 13 ने कुछ ज़ायोनी अधिकारियों के हवाले से एक रिपोर्ट में कहा है कि: यदि डोनल्ड ट्रम्प हमास के साथ एक समझौते पर पहुंचते हैं, तो बेंजामिन नेतन्याहू के लिए इसका विरोध करना बहुत मुश्किल होगा और अमेरिकी इस पर कार्रवाई करेंगे।

इस बीच, फिलिस्तीन का इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन "हमास" अपनी सभी मांगों पर अमल किए जाने पर जोर दे रहा है जिसमें कैदियों की अदला-बदली, ग़ज़ा से क़ाब्ज़ि सेनाओं की पूर्ण वापसी और वार्ता जारी रखने के लिए युद्ध फिर से शुरू न करने की ज़ायोनी शासन की प्रतिबद्धता शामिल है।