رضوی

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आयतुल्लाहिल उज़्मा नूरी हमदानी का “आलम-ए-इस्लाम के उलेमा की हयात-ए-तय्यबा” शीर्षक से आयोजित पहली राष्ट्रीय कॉन्फ़्रेंस के नाम जारी संदेश मे कहाः आज देश के प्रतिष्ठित विद्वानों का एक कर्तव्य, दुरुस्त और सही जीवन शैली मॉडल स्थापित करना है।

हज़रत आयतुल्लाह नूरी हमदानी ने “आलम-ए-इस्लाम के उलेमा की हयात-ए-तय्यबा” के शीर्षक से मुज्तमे आली तरबियत मुज्तहिद मुदीर मोहम्मदिया क़ुम में आयोजित पहली राष्ट्रीय कॉन्फ़्रेंस के नाम संदेश जारी किया, जिसका पाठ इस प्रकार है:

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्राहीम

मैं सबसे पहले इस सम्मानित सभा के सभी उपस्थितजन को सलाम और शुभकामनाएँ पेश करता हूँ।

आज देश के महत्वपूर्ण शैक्षिक लोगों की ज़िम्मेदारियों में से एक, सही और उत्तम जीवन शैली के नमूनों को समाज के सामने पेश करना है।

दुर्भाग्यवंश वर्चुअल स्पेस (ऑनलाइन दुनिया) के फ़ैलाव और उसके ग़लत इस्तेमाल के ज़रिए दुश्मन हमारी नौजवान नस्ल को उस मार्ग पर ले जा रहा है जहाँ कीमती अख़लाक़ी गुण मद्धिम या ख़त्म होते जा रहे हैं।

इसलिए दीन की कीमती चीजो को परिचित कराना आज सबसे अहम फ़रीज़ा है। क़ुरआन करीम में भी परवरदिगार मुतआल ने इस हक़ीक़त की ओर ध्यान दिलाया है कि इलाही पैग़म्बरों की ज़िंदगियाँ इंसानों के लिए राह दिखाने का ज़रिया हैं।
इसी इलाही सुन्नत की बुनियाद पर हमें उन महान लोगों की ज़िंदगियों को भी समाज में पेश करना चाहिए जिन्होंने क़ुरआन के मदार पर अमल किया और क़ुरआनी सीरत को अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बनाया। ख़ास तौर पर उन बुज़ुर्ग उलमा की पाकीज़ा ज़िंदगियों को सामने लाना चाहिए जिनके जीवन के गहराई वाले पहलुओं में ख़ास उत्कृष्टता पाई जाती है। जैसा कि हदीस में कहा गया है — “इन्मल-उलमा वरसतुल-अंम्बिया” (उलमा पैग़म्बरों के वारिस हैं)। लेकिन वह अहम नुक्ता जो मैं इस शानदार और अहम विषय के आयोजकों को बताना चाहता हूँ, यह है कि उनका यह काम बहुत मुबारक है और इसे जारी रहना चाहिए, सिर्फ़ एक कॉन्फ़्रेंस तक सीमित न रहे। बल्कि उदाहरणों और व्यक्तित्वों पर गहराई से काम करें। एक माहिर और अनुभवी कमेटी, बुज़ुर्ग और नामवर उलमा की ज़िंदगी के तमाम पहलुओं का गहराई से अध्ययन करे और सही तौर पर उन्हें समाज के सामने पेश करे। इस काम में आप दूसरे लोगों से भी मदद ले सकते हैं ताकि उलमा की शख़्सियतों को मुकम्मल और सही ढंग से प्रस्तुत किया जा सके, जैसे कि विभिन्न लोगों से मक़ालात (लेखों) के ज़रिए।

दूसरा नुक्ता यह है कि इन नमूनों को कैसे पेश किया जाए? यह बात साफ़ है कि सिर्फ़ रस्मी कॉन्फ़्रेंसों और भारी ख़र्चों से — जो बदक़िस्मती से अब आम हो चुका है — कोई स्थायी नतीजा हासिल नहीं होगा।

मैंने कई बार हौज़ा इल्मिया के ज़िम्मेदारों से कहा है कि बहुत सी कॉन्फ़्रेंसें सिर्फ़ औपचारिक रूप में आयोजित की जाती हैं। कभी ऐसा भी होता है कि क़ुम में एक ही दिन में कई सामाजिक या धार्मिक कॉन्फ़्रेंसें होती हैं जिनके मेहमान भी लगभग वही होते हैं, और कुछ समय के बाद उनका प्रभाव भुला दिया जाता है। उदाहरण के तौर पर किसी इल्मी शख़्सियत के समान में कार्यक्रम किया जाता है, मशहूर लोगों को बुलाया जाता है, लेकिन नए हौज़वी नौजवानों को शामिल नहीं किया जाता ताकि वे उस शख़्सियत और उसके रास्ते से वाक़िफ़ हों। आपका यह काम — मुझे दी गई रिपोर्ट के अनुसार — इसलिए अहम है कि यह एक छोटा, कम खर्च और जारी रहने वाला प्रोजेक्ट है, इंशाअल्लाह इस पर अमल होगा।

मैं ख़ास तौर पर आप सबसे आग्रह करता हूँ कि व्यापक शोध के ज़रिए उलमा की ज़िंदगी के हक़ीक़ी पहलुओं को समाज के सामने लाएँ।
आज हमें अफ़सोस के साथ यह देखना पड़ रहा है कि कुछ उलमा के फ़िक़्ही, उसूली और ख़ास तौर पर सियासी विचारों के बारे में ग़लत बातें और अनदेखी हुई रिवायतें फैल रही हैं, यहाँ तक कि कई बुज़ुर्ग उलमा के विचारों के विपरीत भी बातें कही जाती हैं — जबकि उनके शागिर्द अभी ज़िंदा हैं।

मैं आपके इस काम को बहुत मुबारक समझता हूँ और इस विषय के शानदार चुनाव पर भी आपकी सराहना करता हूँ। इस प्रयास में शामिल तमाम लोगों की मेहनत की क़द्रदानी करता हूँ और ख़ुदा-ए-तआला से आप सब के लिए सफलता और बरकत की दुआ करता हूँ।

1 जमादिल अव्वल 1447 हिजरी / 23 अक्टूबर 2025

हुसैन नूरी हमदानी

 

उस्तादे अखलाक़ हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन हुसैन अंसारियान ने कहा कि अगर इंसान यकीन रखे कि खुदा हर लम्हा उसे देख रहा है और कयामत के दिन कोई अमल कम या ज्यादा नहीं होगा तो वह बहुत से बड़े गुनाहों से अपने आप बच जाएगा।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन हुसैन असारियान ने ईरान के शहर खानीआबाद नौ में स्थित मस्जिद हज़रत रसूल अकरम में खिताब करते हुए कहा कि गुनाह की तारीख़ इंसान की पैदाइश से शुरू हुई।हज़रत आदम के ज़माने में ही पहला बड़ा गुनाह, मतलब बेगुनाह की हत्या, हुआ जो भाई ने भाई के खिलाफ किया।

उन्होंने इमाम जाफ़र सादिक़ का कलाम सुनाते हुए कहा कि हर वह गुनाह जिसके बारे में क़ुरआन में अज़ाब का वादा किया गया है, गुनाह कबीराह है, जबकि अन्य गुनाह उस दर्जे के नहीं हैं और उनकी तौबा नापसंद नहीं है।

उस्ताद अंसारियान ने एक वाकया सुनाया कि एक सूदखोर उनके पास आया और तौबा की इच्छा जाहिर की, लेकिन जब बताया गया कि तौबा का पहला कदम नाजायज़ माल से परहेज़ है तो वह तौबा किए बिना चला गया। इस वाकये से सीख मिलती है कि इंसान को ऐसे गुनाह नहीं करने चाहिए जिनकी तौबा उसके लिए असंभव या मुश्किल हो जाए।

उन्हो ने कहा कि गुनाह से बचने के लिए इंसान को दो अंदरूनी ताकतों की ज़रूरत है — एक खुदा पर ईमान , और दूसरे क़यामत पर ईमान।

उनके मुताबिक़ बाहरी ताक़तें जैसे पुलिस या अदालत, ये दोनों अस्थाई और कमज़ोर हैं, लेकिन जो व्यक्ति दिल से खुदा और कयामत पर यकीन रखता है, उसका ज़मीर हर वक्त उसकी निगरानी करता है।

उन्होंने क़ुरआन की आयत «وَاللّٰهُ یَعْلَمُ مَا فِی السَّمَاوَاتِ وَمَا فِی الْأَرْضِ» का हवाला देते हुए कहा कि खुदा के इल्म से कुछ भी छुपा नहीं, वह हर अमल को देखता है और कयामत के दिन उसका हिसाब लेगा। क़ुरआन कहता है: «یَا بُنَیَّ إِنَّهَا إِنْ تَکُ مِثْقَالَ حَبَّةٍ مِنْ خَرْدَلٍ ... یَأْتِ بِهَا اللّٰهُ» — मतलब अगर अमल राई के दाने के बराबर भी हो तो खुदा उसे कयामत के दिन पेश करेगा।

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि अगर इंसान इस हक़ीक़त पर यकीन रखे कि खुदा नज़रअंदाज़ नहीं करता और कयामत में हर अमल का बदला दिया जाएगा तो वह अपने आप को गुनाहों से बचाएगा।

हौज़ा ए इल्मिया के शिक्षक ने आगे कहा कि इंसानों को चाहिए एक-दूसरे को हक़ की नसीहत करें और खुदा की इबादत की दावत दें।

उन्होंने तकीद की कि साफ़-सफ़ाई व गंदगी में ज़्यादा सख़्ती सही नहीं, लेकिन हलााल और हराम माल में बहुत सावधानी जरूरी है, क्योंकि हराम कमाई इंसान के ईमान और अमल को नष्ट कर देती है।

अख़िर में उन्होंने अपने पिता की ज़िन्दगी का हवाला देते हुए कहा कि उनके पिता हमेशा ख़म्स देने में संवेदनशील रहते थे, यहाँ तक कि आख़िरी साल में मौत से कुछ दिन पहले ही उन्होंने अपना ख़म्स अदा कर दिया। उन्होंने कहा कि जो माल ख़म्स 

 

हौज़ा ए इल्मिया ईरान की उच्च परिष्द के उप सचिव ने कहा कि तलबगी का असली मतलब और पहचान इमाम ज़ामाना (अ) की फिक्र में शामिल होने से तय होती है, और यही सबसे बड़ी, स्थायी और बरकत वाली सेवा है जो कोई इंसान समाज के लिए कर सकता है।

हौज़ा ए इल्मिया ईरान की उच्च परिषद् के उप सचिव आयतुल्लाह जवाद मरवी ने मदरसा जहांगीनर ख़ान क़ुम के छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि तलबगी का असली मतलब और पहचान इमाम ज़माना (अ) की फिक्र में शामिल होने से तय होती है, और यही सबसे बड़ी, स्थायी और बरकत वाली सेवा है जो कोई इंसान समाज के लिए कर सकता है।

आयतुल्लाह मरवी ने कहा कि यदि कोई पूछे कि आज के दौर में उम्मत की सबसे बड़ी सेवा क्या है तो उसका जवाब इमाम ज़माना (अ) के रास्ते में सेवा है। उन्होंने बताया कि वे 31 देशों का सफर कर चुके हैं और विभिन्न शैक्षिक केंद्रों को करीब से देखा है, मगर इन सब अनुभवों के बाद भी वे इसी नतीजे पर पहुँचे कि सबसे बड़ी सेवा इमाम ज़माना (अ) के सैनिक बनने में है।

उन्होंने छात्रों को ज़ोर दिया कि वे अरबी अदब में महारत हासिल करें, क्योंकि यही धार्मिक छात्रो मे कामयाबी की बुनियाद है। उनका कहना था कि चाहे आप फक़ह, क़लाम, फ़लसफ़ा या तफ़सीर के क्षेत्र में जाएं, अरबी भाषा की मजबूती आपके शैक्षिक उन्नति का पहला सीढ़ी है।

आयतुल्लाह मरवी ने शहीद सानी की मिसाल देते हुए कहा कि एक महान मुज्तहिद ने भी मिस्र जाकर अरबी अदब दोबारा सीखा, जो इस ज्ञान की अहमियत को दर्शाता है।

उन्होंने छात्रों को नसीहत दी कि वे अपने दरूस (पाठ) की उपयोगिता समझें ताकि मायूसी से बच सकें, क्योंकि जब पढ़ाई का व्यवहारिक पहलू साफ न हो तो कमजोरी उत्पन्न होती है।

उन्होंने आगे कहा कि अख़लाक, खुदसाज़ी, सुबह जल्दी उठना और शिक्षकों का सम्मान सफल तलबगी की बुनियाद हैं, और यही पुरानी हौज़वी रिवायत आज भी शैक्षिक कामयाबी की गारंटी है।

 

 हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन अली ज़ादेह मूसवी ने कहा कि आज के दौर में दुश्मन ने सूचना और मीडिया पर कब्ज़ा कर लिया है, इस मीडिया निर्भरता को तोड़ना और इस्लामी केंद्रों को मीडिया की दुनिया में प्रभावी बनाना समय की महत्वपूर्ण आवश्यकता है।

बांग्लादेश में सुप्रीम लीडर के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन अली ज़ादेह मूसवी ने मंगलवार (21 अक्टूबर 2025) को हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के विभिन्न विभागों का विस्तृत दौरा किया।

इस मौके पर एजेंसी के जिम्मेदार और प्रबंधकों ने उन्हें न्यूज़ एजेंसी की गतिविधियों, योजनाओं और विशेष रूप से अंतरराष्ट्रीय विभाग की प्रगति से अवगत कराया।

इसके बाद, हुज्जतुल इस्लाम अली ज़ादेह मूसवी ने हौज़ा ए इल्मिया ईरान के मीडिया और साइबर स्पेस के प्रमुख और हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के प्रबंधक हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन रज़ा रुस्तमी से मुलाकात की, जिसमें मीडिया सहयोग को बढ़ावा देने पर चर्चा हुई।

उन्होंने हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की गतिविधियों की सराहना करते हुए कहा कि आज के समय में सही और समय पर सूचना देना एक धार्मिक और सामाजिक आवश्यकता है। उनके अनुसार, दुश्मन की मीडिया निर्भरता को तोड़ना और हौज़ा न्यूज़ को समाचारों का असली केंद्र के रूप में स्थापित करना और इसे उच्च स्थान तक पहुंचाना बहुत आवश्यक है।

सुप्रीम लीडर के प्रतिनिधि ने आगे कहा कि आज के नौजवान हौज़ा हाए इल्मिया की इल्मी और फ़िक्री विरासत से पूरी तरह परिचित नहीं हैं, इसलिए जरूरी है कि धार्मिक स्कूलों और ज्ञानियों की सेवाओं को आधुनिक जरूरतों के मुताबिक पेश किया जाए ताकि यह संदेश युवा पीढ़ी तक प्रभावी ढंग से पहुंच सके।

 

गुरुवार, 23 अक्टूबर 2025 19:12

गज़्जा की स्थिति बेहद भयावह है

यूनिसेफ के एक प्रवक्ता ने गज़्जा पट्टी में मानवीय हालात के और खराब होने पर चिंता जताई है।

आर टी अरबी के हवाले से संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) के प्रवक्ता रिकार्डो प्रेस ने गाजा पट्टी में मानवीय स्थिति के बिगड़ने के बारे में आगाह किया है और जोर देकर कहा कि स्थिति बेहद भयावह है और राहत सामग्री की कमी से सबसे ज्यादा नुकसान बच्चों को हो रहा है।

उन्होंने कहा कि गाज़ा में जीवनरक्षक महत्वपूर्ण राहत सामग्री लगभग पूरी तरह से समाप्त हो चुकी है और बड़ी संख्या में बच्चों को गंभीर कुपोषण के पूर्ण उपचार की सख्त ज़रूरत है ताकि वे जीवित रह सकें।

यूनिसेफ के प्रवक्ता ने कहा कि बहुत सारी चिकित्सा सामग्री, जिसमें छोटे बच्चों के इन्क्यूबेटर और आईसीयू के उपकरण शामिल हैं, को गाजा में प्रवेश की अनुमति नहीं है जिसने स्वास्थ्य संकट को और गंभीर बना दिया है और नवजात शिशुओं और मरीजों की जान जोखिम में डाल दी है।

यूनिसेफ ने गाजा पट्टी में पूर्ण और बिना शर्त मानवीय सहायता के प्रवेश की मांग की है और चेतावनी दी है कि मौजूदा प्रतिबंधों के जारी रहने से बच्चों की मृत्यु दर में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है।

 

 

जामेअ मुदर्रेसीन हौज़ा इल्मिया क़ुम के उप प्रमुख ने कहा: इस्लामी क्रांति फ़ातिमी और हुसैनी मार्ग की निरंतरता है और अमेरीका की इस क्रांति से दुश्मनी दरहक़ीक़त उसकी तहज़ीबी और इलाही नौइयत से दुश्मनी है।

जामेअ मुदर्रेसीन हौज़ा इल्मिया क़ुम के उप प्रमुख आयतुल्लाह अब्बास काबी ने मदारिस-ए-अमीन के राबिता-कारों और सूबाई तब्लीगी उमूर के ज़िम्मेदारों के साथ आयोजित “करीमा ए अहले बैत (अ)” तर्बियती और ब्रीफ़िंग कोर्स में इस्लामी क्रांति की इल्मी, फ़िक्री और तहज़ीबी जहतों की व्याख्या करते हुए कहा: इस्लामी क्रांति फ़ातिमी और हुसैनी मार्राग की निरंतरता है और अमेरीका की इस क्रांति से दुश्मनी दरहक़ीक़त उसकी तहज़ीबी और इलाही नौइयत से दुश्मनी है।

उन्होंने कहा: हम अय्याम-ए-फ़ातिमियह के क़रीब हैं। हज़रत सिद्दीका कुबरा (स) विलायत की रक्षक थीं, उन्होंने बातिल के ख़िलाफ़ अकेले खड़े होकर ख़त-ए-विलायत व इमामत की रक्षा की। दरहक़ीक़त हमारी इस्लामी क्रांति भी इसी राह-ए-फ़ातिमियह का तसल्सुल है क्योंकि यह विलायत और हक़ीक़ी इस्लाम की रक्षा की बुनियाद पर आधारित है।

जामेअ मुदर्रेसीन हौज़ा इल्मिया क़ुम के उप प्रमुख ने आगे कहा: इस्लामी क्रांति एक फ़ातिमी क्रांति है और इसका नेता एक फ़ातिमी नेता है। हमारी क़ौम एक फ़ातिमी और हुसैनी क़ौम है जो आलमी उपनिवेशवाद के सामने डट कर खड़ी है। यह दृढ़ता दरहक़ीक़त मक्तब-ए-फ़ातिमियह से प्रेरित है।

उन्होंने आगे कहा: फ़ातेमी (स) स्कूल को समझे बग़ैर इस्लामी क्रांति को समझना सम्भव नहीं। हमारी क्रांति उसी नूरानी मार्ग की निरंतरता है जिसे हज़रत ज़हरा (स) ने आग़ाज़ किया था। आज सुप्रीम लीडर ने फ़ातिमी और हुसैनी क़ौम के हमराह उसी परचम को बुलंद कर रखा है। अलहम्दुलिल्लाह ईरानी क़ौम उसी हक़ीक़ी जज़्बे की तरफ़ बढ़ रही है।

 

इमाम ख़ुमैनी (र) शैक्षिक एवं शोध इंस्टिट्यूट के प्रमुख ने इलाही अहदाफ़ के तहक़्क़ुक़ में उलमा के मरकज़ी किरदार पर ज़ोर देते हुए कहा: इलाही अहदाफ़ की तकमील के लिए मोमेनीन और दीनी उलमा के वैश्विक सहयोग की ज़रूरत है।

इमाम ख़ुमैनी (र) शैक्षिक एवं शोध इंस्टिट्यूट के प्रमुख आयतुल्लाह महमूद रजब़ी ने अफ़ग़ानिस्तान के हौज़ा इल्मिया के प्रमुख और हिंदुस्तान में आयतुल्लाह सीस्तानी के वकील से मुलाक़ात में कहा: मोमेनीन की भागीदारी के बिना इलाही अहदाफ़ की तकमील सम्भव नहीं, जैसा कि क़ुरआन करीम भी अल्लाह की नस्रत के साथ-साथ मैदान में मोमेनीन की सक्रिय भागीदारी पर ज़ोर देता है, और इस सिलसिले में उलमा-ए-दीन बहेसियत वारिसीन-ए-पैग़म्बर (स) अत्यंत अहम ज़िम्मेदारी रखते हैं।

उन्होंने आगे कहा: इस्लाम के दुशमन के सहयोग और उनके विस्तृत वसाइल को देखते हुए इस दौर में उलमा की ज़िम्मेदारी पहले से कहीं अधिक संगीन है। इस मैदान में कामयाबी के लिए ज़रूरी है कि मोमिन क़ुव्वतों और इल्मी व सकाफ़ती मराकिज़ के दरमियान वैश्विक स्तर पर सहयोग, भागीदारी और सामंजस्य स्थापित हो ताकि दुश्मनों की सकाफ़ती यलग़ार का मुक़ाबला किया जा सके।

आयतुल्लाह रजब़ी ने इलाही रिसालत की अंजाम-दही में उम्मत-ए-इस्लामी की वहदत की अहमियत की तरफ़ इशारा करते हुए कहा: अल्लाह तआला ने क़ुरआन करीम में रिसालत के रास्ते में वहदत को अज़ीम नेमत क़रार दिया है और उम्मत-ए-इस्लाम को इसकी तालीम दी है। आज भी हमारी ज़िम्मेदारी है कि तजरबात के तबादले, इल्मी व सांस्कृतिक सहयोग और भागीदारी के ज़रिए दीनी अहदाफ़ की तकमील के लिए पृष्ठभूमि तैयार करें।

मजलिस-ए-ख़ुबरेगान-ए-रहबरी के इस सदस्य ने आगे कहा: इस्लामी क्रांति की कामयाबी से पहले न तो हक़ीक़ी मअनों में कोई इस्लामी निज़ाम मौजूद था और न ही वो राब्ते और क़ुव्वतें थीं जो आज क्रांति की छत्र छाया में परवान चढ़ी हैं। उस वक़्त हौज़ा इल्मिया के विभिन्न स्तानक लोग कई इस्लामी देशो में ख़िदमात अंजाम दे रहे हैं और इस अज़ीम सलाहियत ने हमारी ज़िम्मेदारियों में मजीद इज़ाफ़ा कर दिया है कि हम इस्लामी मआरिफ़ के तहफ़्फ़ुज़ के लिए मजीद अहल क़ुव्वतों की तर्बियत करें।

 

अंजुमन-ए-उलमाए इस्लाम लबनान ने यह बयान करते हुए कहा कि हज़रत आयतुल्लाह सय्यद अली ख़ामेनई का अमरीकी राष्ट्रपति के ईरानी एटमी सनअत पर बमबारी के झूठे दावों से संबंधित बयान — जिसमें आपने फ़रमाया था: “यह बात महज़ एक वहम है और उन्हें उसी वहम व गुमान में रहने दो; यह बस ख़्वाब की हद तक बाक़ी रहे,” — यह ऐसे बयान हैं जो इत्मिनान और फ़ख़्र का बाइस हैं और इस बात का सबूत हैं कि इस्लामी गणराज्य ईरान तमाम चुनौतियों के मुक़ाबले में मजबूती से खड़ा है।

अंजुमन-ए-उलमाए इस्लाम लबनान ने आला काउंसिल के इजलास के बाद एक बयान जारी करते हुए कहा कि जिस तरह लबनान में युद्ध विराम समझौते और क़रारदाद की 1701 मर्तबा ख़िलाफ़वर्ज़ी हुई, उसी तरह इजराइली दुश्मन ग़ज़्ज़ा युद्ध विराम के समझौते की भी ख़िलाफ़वर्ज़ी कर रहा है। समझौते को नज़रअंदाज़ करते हुए शहरियों के मक़ामात और आम लोगों पर हमले कर रहा है और मार्गो पर लगातार मुन्तज़िर इंसानी मदद के ज़रूरी क़ाफ़िलों को ग़ज़्ज़ा में दाख़िल होने की अनुमति भी नहीं दे रहा है।

अंजुमन ने आगे कहा कि इज़राइली दुश्मन ने ग़ज़्ज़ा युद्ध विराम की 80 से ज़्यादा ख़िलाफ़वर्ज़ियाँ की हैं जिनके नतीजे में 97 शहीद और 230 ज़ख़्मी हुए हैं। इसका मतलब यह है कि जंग अब भी जारी है और अमेरीका ने अपने उन वादों पर अमल नहीं किया जो इस मुल्क के राष्ट्रपति ट्रम्प की जानिब से युद्ध विराम के बारे में किए गए थे; बल्कि वह लबनान में इज़राइली सरकार की कार्रवाइयों पर पर्दा डालने की तरह ग़ज़्ज़ा में भी उस हुकूमत की जारिहत को छुपा रहा है।

अंजुमन-ए-उलमाए इस्लाम लबनान ने मजीद कहा कि इन जारिहाना कार्रवाइयों के नतीजे में ग़ज़्ज़ा की बहादुर मज़ाहमत ने एक बहादुराना कार्रवाई के ज़रिए इज़राइली दुश्मन को जवाब दिया, जिसमें नहाल ब्रिगेड का एक अफ़सर और एक फौजी हलाक हुआ। इस वाक़े को इज़राइली फौज ने ख़तरनाक क़रार दिया।

अंजुमन-ए-उलमाए लबनान ने बयान किया कि मासूम शहरियों के ख़िलाफ़ इज़राइली जारिहत सिर्फ़ ग़ज़्ज़ा तक महदूद नहीं थी बल्कि पश्चिमी तट तक भी फैली हुई थी, जहां इजराइली क़ाबिज़ फौज ने नाबलस शहर पर धावा बोला और मासूम और निहत्ते शहरियों पर गोलियां चलाईं, जिनके नतीजे में 11 फलिस्तीनी ज़ख़्मी हुए।

अंजुमन ने कहा कहा कि यहूदी आबादकारों की बसों ने नाबलस शहर के मशरिक़ी हिस्से पर हमला किया और हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम की क़ब्र की तरफ़ बढ़ने की कोशिश की, ताकि ऐसा अमल मुसल्लत किया जाए जो फलिस्तीनी अथॉरिटी और सिहयोनी हुकूमत के दरमियान तयशुदा मुहायदों से हटकर हो — फलिस्तीनी अथॉरिटी के हस्तक्षेप के बिना जो इज़राइली हुकूमत के ख़िलाफ़ कुछ नहीं करती।

अंजुमन-ए-उलमाए लबनान ने इस बात पर ज़ोर दिया कि फलिस्तीन अथॉरिटी अभी तक इसराइली हुकूमत के साथ एक सिक्योरिटी मुहाएदे में डूबी हुई है और मज़ाहिमती मुझाहिदीन की पहचान व उन्हें सिहयोनी गासिबों के हवाले करने के लिए हमआहंगी कर रही है, और पूरे मग़रिबी किनारे में मज़ाहमत के काम को महदूद कर रही है।

अंजुमन-ए-उलमाए इस्लाम लबनान ने ईरान की एटमी सनअत पर बमबारी और उसकी तबाही के अमरीकी सदर के दावे के बारे में हज़रत आयतुल्लाह सय्यद अली ख़ामेनई के बयानों को ईरान की ताक़त का राज़ क़रार देते हुए कहा कि ये वो बयान हैं जो इस्लामी गणराज्य ईरान की साबित-क़दमी और एतमाद का ज़रिया हैं — और ईरान, अमरीका समेत आलमी इस्तेमारी सरग़नाओं और सिहयोनियों के मुक़ाबले में आख़िरी फ़त्ह तक डट कर खड़ा है।

 

हज़रत ज़ैनब स.ल.सब्र और इसतिक़ामत की बुलंदी और फ़ज़ाइल का मर्कज़ रही है लेकिन अली और फातिमा स.ल.के घराने में एक ऐसी हस्ती भी है, जो अपने बाप के लिए ज़ीनत है तो अपनी मां के लिए फ़ातिमी सीरत का सच्चा आईना है। अगर जनाब फातिमा स.ल. की कोई दूसरी मिसाल है तो वह दूसरी फातिमा, जनाब ज़ैनब (स.ल.) हैं, जिन्होंने इस्मतों की गोद में पल कर, पाकीज़गी के घेरे में परवरिश पाई और चादर-ए-तत्हीर के साए में पली बढ़ी। यक़ीनन हर रिश्ता अपने इत्तेहाद की मुकाम पर फाईज़ नज़र आता है।

हज़रत ज़ैनब स.ल.सब्र और इसतिक़ामत की बुलंदी और फ़ज़ाइल का मर्कज़ रही है लेकिन अली और फातिमा स.ल.के घराने में एक ऐसी हस्ती भी है, जो अपने बाप के लिए ज़ीनत है तो अपनी मां के लिए फ़ातिमी सीरत का सच्चा आईना है। अगर जनाब फातिमा स.ल. की कोई दूसरी मिसाल है तो वह दूसरी फातिमा, जनाब ज़ैनब (स.ल.) हैं, जिन्होंने इस्मतों की गोद में पल कर, पाकीज़गी के घेरे में परवरिश पाई और चादर-ए-तत्हीर के साए में पली बढ़ी। यक़ीनन हर रिश्ता अपने इत्तेहाद की मुकाम पर फाईज़ नज़र आता है।

मौलाना गुलज़ार जाफ़री साहब, जो हमें हजरत ज़ैनब (स) की ज़िंदगी और उनकी महान हिम्मत के बारे में बताने जा रहे हैं। मौलाना साहब, सबसे पहले आप हमें बताइए कि हज़रत ज़ैनब (स.ल.) का स्थान इस्लामी इतिहास में क्या है?

मौलाना गुलज़ार जाफ़री : हज़रत ज़ैनब (स.ल.) न केवल अली और फातिमा (अ) के घराने की शान हैं, बल्कि वे इस्मत और पवित्रता का जीवित उदाहरण भी हैं। वे अपने बाप और मां दोनों के लिए सम्मान और गर्व की वजह हैं। उनकी परवरिश ऐसे माहौल में हुई जहां हर रिश्ता अपने चरम शिखर पर था। उनकी शख्सियत में इमामत और विलायत का असली असर देखा जा सकता है।

कर्बला की घटनाओं में उनकी भूमिका के बारे में कुछ बताएं?

मौलाना गुलज़ार जाफ़री: कर्बला में जब हर तरफ भय, आग और मौत का माहौल था, तब हजरत ज़ैनब (स.ल.) ने एक मजबूत और स्थिर किरदार निभाया। जहां कई योद्धा घबराए हुए थे, वहां उन्होंने धैर्य और मजबूती से अपने क़ौम और रिश्तेदारों की रक्षा की। इमाम सज्जाद (अ) की बात पर उन्होंने सब्र दिखाया और अपने कंधों पर इमामत का बोझ उठाए रखा।

हज़रत ज़ैनब (स.ल.) ने इमाम से कई बार सवाल किए, जो उस समय की इमामत के लिए अस्वीकार्य था। इस पर आपका क्या कहना है?

मौलाना गुलज़ार जाफ़री: यह सवाल केवल सवाल नहीं था। हजरत ज़ैनब (स) ने इस सवाल के माध्यम से अपने मिशन की मजबूती और उस दौर की इमामत की सुरक्षा की जिम्मेदारी निभाई। उन्होंने कर्बला की हकीकत को सामने रखा और अपने क़ौम को शरियत की ओर बुलाया। उनकी यह ताकत उनके धर्म और मिशन की सच्चाई को दर्शाती है।

उनके धैर्य और ईमानदारी से हमें क्या सीख मिलती है?

मौलाना गुलज़ार जाफ़री: हजरत ज़ैनब स.ल. की ज़िंदगी हमें सिखाती है कि चाहे परिस्थिति कितनी भी कठिन हो, इस्तिक़ामत और इत्मिनान-ए-नफ़्स के साथ अपने कर्तव्यों को निभाना चाहिए। उन्होंने ईश्वर पर पूरा भरोसा रखा और कभी अपने मिशन से भटकाव नहीं होने दिया। यह सब्र और हिम्मत हमें हर चुनौती में डटे रहने की प्रेरणा देती है।

 धन्यवाद मौलाना साहब, आपके विचारों से हमें बहुत कुछ सीखने को मिला।

 

आज हम एक नई पीढ़ी के सामने हैं जो किशोरावस्था में प्रवेश कर चुकी है, और उनकी परवरिश के तरीकों पर ध्यान देना समाज के भविष्य को आकार दे सकता है।

पिछले कुछ वर्षों में बार-बार कहा गया है कि तकनीकी युग के युवाओं और बच्चों के साथ बातचीत के लिए परवरिश के तरीकों में बदलाव जरूरी है। लेकिन आज हम एक और नई पीढ़ी के सामने हैं, जो अब किशोरावस्था में आ चुकी है। उनकी सही परवरिश पर ध्यान देने से भविष्य के समाज की दिशा तय हो सकती है।

यह पीढ़ी तेजी से बदलती तकनीक, इंटरनेट और लगातार बदलाव के दौर में पली-बढ़ी है। सोशल मीडिया और चैटबॉट्स के जरिए ये दुनिया के अलग-अलग मुद्दों से वाकिफ हैं। इसलिए इस पीढ़ी की परवरिश के लिए एक नया, लचीला और रचनात्मक नजरिया जरूरी है।

इसी पृष्ठभूमि में परिवार और संस्कृति के विशेषज्ञों से बातचीत की गई ताकि नई पीढ़ी की परवरिश में आए बदलाव और उनकी विशेषताओं को बेहतर तरीके से समझा जा सके।

माता-पिता को नई कौशल की जरूरत है

ज़ैनब रहीमी तालारपुश्ती ने कहा: नई पीढ़ी के बच्चों के माता-पिता बनने के लिए न केवल एक अलग दृष्टिकोण की जरूरत है, बल्कि नए कौशल, जानकारी और संवाद के तरीके की भी जरूरत है। जो माता-पिता अलग-अलग पीढ़ियों के बच्चों को पालते हैं, वे इस अंतर को अच्छी तरह महसूस करते हैं।

उन्होंने इमाम अली (अ) की नहजुल बलाग़ाह, हिकमत 175 का हवाला देते हुए कहा:
لا تُكرهوا أَولادَكُمْ على آدابِكُمْ فإنَّهُمْ مَخلوقونَ لِزَمانٍ غَيرِ زَمانِكُ ला तकुरेहू औलादकुम अला आदाबेकुम फ़इन्नहुम मख़लूक़ूना लेज़मानिन ग़ैरे ज़मानेका
अपने बच्चों को अपने तरीकों पर मजबूर न करो, क्योंकि वे उस जमाने के लिए बने हैं जो तुम्हारे जमाने से अलग है।

यह उपदेश इस सच्चाई को दर्शाता है कि हर पीढ़ी का समय, माहौल और जरूरतें अलग होती हैं। इसलिए परवरिश का तरीका भी बदलना जरूरी है।

उन्होंने स्पष्ट किया कि नई पीढ़ी में बुद्धिमत्ता की ऊंचाई, हिम्मत, जानकारी तक व्यापक पहुंच, अपनी राय पर अड़िग रहना, बोर करने वाली चीजों से बचना और औपचारिक परंपराओं से दूरी जैसी विशेषताएं साफ दिखाई देती हैं।

रहीमी के अनुसार, माता-पिता को भी इस पीढ़ी की जरूरतों के अनुसार खुद को बदलना होगा:

  • आधुनिक जानकारी से अवगत रहना
  • मीडिया साक्षरता (सोशल मीडिया को समझने की क्षमता)
  • इस पीढ़ी की भाषा, सोच, रुचियों और मानसिक दुनिया से परिचित होना
  • नरमी के साथ प्रभावी संबंध बनाने की क्षमता
  • इस्लामी और ईरानी जीवन शैली की रक्षा करना
  • सुनने की क्षमता और आलोचनात्मक न होने का रवैया

"चैटबॉट्स" के युग में परवरिश

ज़हरा महरजवाई ने कहा कि हाल की पीढ़ियां पिछली पीढ़ियों से बिल्कुल अलग हैं। सोशल मीडिया के विस्तार और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के क्षेत्र में प्रगति ने जीवन शैली को पूरी तरह बदल दिया है।

उन्होंने कहा: "इस पीढ़ी के साथ प्रभावी संपर्क के लिए जरूरी है कि हम पहले खुद उनकी स्थिति और दुनिया को समझें, उनकी जगह खुद को रखें, और उनके व्यवहार को नष्टकारी न समझें। उनकी बातचीत का तरीका या बाहरी उदासीनता कोई संकट नहीं है, बल्कि उनके जमाने की विशेषता है।"

हुज़ूर व जामिया की एक शिक्षिका ने आगे कहा: "एक अच्छी मां बनने के लिए जरूरी है कि महिला खुद को सुधारे। अगर माता-पिता में धैर्य, क्षमा और सहनशीलता जैसे गुण नहीं हैं, तो वे अपने बच्चों में ये गुण नहीं उत्पन्न कर सकते।"

उन्होंने जोर देकर कहा: "आध्यात्मिक ध्यान और अल्लाह व अहल-ए-बैत (अलैहिमुस्सलाम) से मदद मांगना बेहद जरूरी है, क्योंकि केवल आधुनिक परवरिश के तरीके इंसान को सफल नहीं बना सकते। अल्लाह की मदद के बिना इंसान अकेले सभी पहलुओं को संभाल नहीं सकता।"

नई पीढ़ी में बेटियों की परवरिश

संस्कृति के क्षेत्र में सक्रिय एक महिला ने कहा: बेटियों के साथ लगातार और सार्थक संबंध बनाए रखना, उन्हें आत्मविश्वास, अपने आप पर भरोसा और अपनी पहचान को स्वीकार करने का एहसास दिलाना माता-पिता, खासकर पिता के लिए एक महत्वपूर्ण परवरिशी जरूरत है।

उन्होंने याद दिलाया: "बेटियां धरती पर फरिश्तों की तरह होती हैं, चाहे वे किसी भी दशक या पीढ़ी की हों। उनकी फितरत पाकीजा होती है, इसलिए माता-पिता को इस पाकीजगी को बचाने के लिए एक अच्छा माहौल देना चाहिए। जो बेटी अपनी कद्र जानती है, वह कभी भी खुद को सामान्य या कमजोर नहीं दिखाती। आत्मविश्वासी लड़की अपने गौरव पर समझौता नहीं करती।"

सारांश

आज की पीढ़ी न केवल तकनीक में, बल्कि सोचने और महसूस करने के तरीके में भी अलग है। इसलिए माता-पिता को बीते जमाने की पारंपरिक परवरिश से आगे बढ़कर प्यार, समझ, ज्ञान और आध्यात्मिकता के मिश्रण से काम लेना होगा, ताकि वे नई पीढ़ी को आधुनिक दुनिया में भी ईमान, नैतिकता और गरिमा के साथ बढ़ा सकें।