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रविवार, 26 अक्टूबर 2025 17:51

हज़रत ज़ैनब अ.स. की महानता

हज़रत ज़ैनब अ.स. की एक और सबसे अहम विशेषता जिसको सैय्यद नूरुद्दीन जज़ाएरी ने ख़साएसुज़ ज़ैनबिय्या में ज़िक्र किया है वह यह कि आप क़ुर्आन की मुफ़स्सिरा थीं, और वह एक रिवायत को इस तरह बयान करते हैं कि जिन दिनों इमाम अली अ.स. कूफ़ा में रहते थे उन्हीं दिनों हज़रत जैनब अ.स. कूफ़े की औरतों के लिए क़ुर्आन की तफ़सीर बयान करती थीं

हज़रत ज़ैनब अ.स. एक रिवायत के अनुसार 5 जमादिल अव्वल को मदीने में पैदा हुईं, आपके वालिद इमाम अली अ.स. और मां हज़रत ज़हरा स.अ. थीं, आप केवल पांच साल की थीं जब की मां शहीद हुई,

आपने अपने ज़िदगी में बहुत सारी मुसीबतों का सामना किया, मां बाप की शहादत से ले कर भाइयों और बच्चों की शहादत तक आपने देखी, और इस्लाम की राह में क़ैद की कठिन सख़्तियों को भी बर्दाश्त किया, आपके जीवन की यही सख़्तियां थीं जिन्होंने आपके सब्र धैर्य और धीरज को पूरी दुनिया के लिए मिसाल बना दिया। (रियाहीनुश-शरीयह, जिल्द 3, पेज 46)
आपके बहुत सारे लक़ब हैं जिनमें से मशहूर सिद्दीक़-ए-सुग़रा, आलेमा, मोहद्देसा, आरेफ़ा और सानि-ए-ज़हरा हैं, आपके सिफ़ात और आपकी विशेषताएं देख कर आपको अक़ील-ए-बनी हाशिम कहा जाता है, आपकी शादी हज़रत जाफ़र के बेटे अब्दुल्लाह से हुई थी, और आपके दो बेटे औन और मोहम्मद कर्बला में इमाम हुसैन अ.स. के साथ दीन को बचाने की ख़ातिर शहीद कर दिए गए थे। (रियाहीनुश-शरीयह, जिल्द 3, पेज 210)

आमतौर से बच्चों के नाम उनके मां बाप रखते हैं लेकिन हज़रत ज़ैनब अ.स. का नाम आपके नाना पैग़म्बर स.अ. ने रखा।

जब आपकी विलादत हुई तो पैग़म्बर स.अ. सफ़र पर गए हुए थे जब आप वापस आए और जैसे ही आपको हज़रत ज़ैनब अ.स. की विलादत की ख़बर मिली आप तुरंत इमाम अली अ.स. के घर आए और हज़रत ज़ैनब अ.स. को गोद में ले कर प्यार किया और उसी समय आपने ज़ैनब यानी बाप की ज़ीनत नाम रखा। (रियाहीनुश-शरीयह, जिल्द 3, पेज 39)

इंसान की अहमियत उसके इल्म और ज्ञान से पहचानी जाती है, जैसाकि क़ुर्आन में सूरए बक़रह की आयत न. 31 और 32 में हज़रत आदम अ.स. के बारे में भी यही कहा गया है, और सबसे अहम इल्म और ज्ञान वह है जो सीधे अल्लाह से हासिल किया जाए जिसे इल्मे लदुन्नी कहा जाता है, हज़रत ज़ैनब अ.स. का इल्म भी कुछ इसी तरह का था जैसाकि इमाम सज्जाद अ.स. ने आपको आलिम-ए-ग़ैरे मोअल्लमा नाम दिया यानी ऐसी आलिमा जिसने दुनिया में किसी से कुछ सीखा न हो। (मुनतहल आमाल, जिल्द 1, पेज 298)

औरत के लिए सबसे बड़ा कमाल और सबसे बड़ी सआदत यह है कि उसकी पाकीज़गी और पवित्रता पर कोई सवाल न कर सके, हज़रत ज़ैनब अ.स. ने पवित्रता का सबक़ अपने वालिद से सीखा जैसाकि यहया माज़नदरानी से रिवायत है कि मैंने कई सालों तक मदीने में इमाम अली अ.स. की ख़िदमत की है और मेरा घर हज़रत ज़ैनब अ.स. के घर से बिल्कुल क़रीब था लेकिन कभी न मैंने उनको देखा और ना ही उनकी आवाज़ सुनी।

आप जब भी पैग़म्बर स.अ. की क़ब्र की ज़ियारत को जाना चाहतीं तो रात के सन्नाटे में जातीं और आपके साथ आगे आगे इमाम अली अ.स. चलते और आपके दाहिने इमाम हसन अ.स. और बाएं इमाम हुसैन अ.स. चलते, और जब पैग़म्बर स.अ. की क़ब्र के क़रीब पहुंचते तो पहले इमाम अली अ.स. जा कर चिराग़ की रौशनी को धीमा कर देते थे, एक बार इमाम हसन अ.स. ने अपने वालिद से इसका कारण पूछा तो आपने जवाब दिया कि मुझे डर है कि कहीं कोई हज़रत ज़ैनब अ.स. को देख न ले।

आपने कठिन परिस्थितियों में भी अपनी पाकीज़गी और पवित्रता को ध्यान में रखा, कूफ़ा और शाम जैसे घुटन के माहौल में जहां आपके सर पर चादर नहीं थी लेकिन फिर भी आप अपने हाथों से अपने चेहरे को छिपाए हुए थीं। (अल-ख़साएसुज़ ज़ैनबिय्या, पेज 345)

हज़रत ज़ैनब अ.स. की एक और सबसे अहम विशेषता जिसको सैय्यद नूरुद्दीन जज़ाएरी ने ख़साएसुज़ ज़ैनबिय्या में ज़िक्र किया है वह यह कि आप क़ुर्आन की मुफ़स्सिरा थीं, और वह एक रिवायत को इस तरह बयान करते हैं कि जिन दिनों इमाम अली अ.स. कूफ़ा में रहते थे उन्हीं दिनों हज़रत जैनब अ.स. कूफ़े की औरतों के लिए क़ुर्आन की तफ़सीर बयान करती थीं, एक दिन इमाम अली अ.स. घर में दाख़िल हुए देखा हज़रत ज़ैनब अ.स. सूरए मरयम के शुरू में आने वाले हुरूफ़े मोक़त्तए की तफ़सीर बयान कर रही थीं, आपने हज़रत ज़ैनब अ.स. से कहा बेटी इसकी तफ़सीर मैं बयान करता हूं और फिर आपने फ़रमाया इन हुरूफ़ में अल्लाह ने एक बहुत बड़ी मुसीबत को राज़ बना कर रखा है और फिर आपने कर्बला की दास्तान को बयान किया जिसको सुन कर हज़रत ज़ैनब अ.स. बहुत रोईं।

शैख़ सदूक़ बयान करते हैं कि इमाम हुसैन अ.स. ने इमाम सज्जाद अ.स. की बीमारी के समय हज़रत ज़ैनब अ.स. को यह अनुमति दी थी कि जो लोग शरई मसले पूछें आप उनका जवाब दीजिएगा।

शैख़ तबरिसी ने नक़्ल किया है कि हज़रत ज़ैनब अ.स. ने बहुत सारी हदीसें अपनी मां हज़रत ज़हरा स.अ. बयान की है, इसी तरह एमादुल मोहद्देसीन से नक़्ल हुआ है कि आप अपनी मां, वालिद, भाईयों, उम्मे सलमा, उम्मे हानी और भी दूसरे लोगों से बहुत सी हदीसें बयान की हैं, और जिन लोगों ने आपसे हदीसें नक़्ल की हैं उनके नाम इस तरह हैं इब्ने अब्बास, इमाम सज्जाद अ.स., अब्दुल्लाह इब्ने जाफ़र।

इसी तरह फ़ाज़िल दरबंदी और भी दूसरे बहुत से उलमा ने हज़रत ज़ैनब अ.स. के बारे में  यह बात भी लिखी है कि हज़रत ज़ैनब अ.स. को इल्मे मनाया वल बलाया था यानी ऐसा इल्म जिसमें आने वाले समय में कौन सी घटना पेश आने वाली है इन सबके बारे में आपको मालूमात थी।

 

हज़रत ज़ैनब (स.अ.)5 जमादिउल अव्वल को मदीने में पैदा हुईं, आपके वालिद इमाम अली अलैहिस्सलाम और मां हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स.अ.) थीं, आप केवल पांच साल की थीं जब आपकी मां शहीद हुई,आप के बहुत सारे लक़ब हैं जिनमें से मशहूर सिद्दीक़-ए-सुग़रा, आलेमा, मोहद्देसा, आरेफ़ा और सानि-ए-ज़हरा हैं,

हज़रत ज़ैनब (स.अ) एक रिवायत के अनुसार एक शाबान सन 6 हिजरी और दूसरी रिवायत के मुताबिक़ 5 जमादिउल अव्वल को मदीने में पैदा हुईं, आपके वालिद इमाम अली अलैहिस्सलाम और मां हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स.अ) थीं, आप केवल पांच साल की थीं जब आपकी मां शहीद हुई, आपने अपनी ज़िदगी में बहुत सारी मुसीबतों का सामना किया, मां बाप की शहादत से लेकर भाइयों और बच्चों की शहादत तक आपने देखी और इस्लाम की राह में क़ैद की कठिन सख़्तियों को भी बर्दाश्त किया, आपके जीवन की यही सख़्तियां थीं जिन्होंने आपके सब्र, धैर्य और धीरज को पूरी दुनिया के लिए मिसाल बना दिया। (रियाहीनुश-शरीयह, जिल्द 3, पेज 46) 

  आप के बहुत सारे लक़ब हैं जिनमें से मशहूर सिद्दीक़-ए-सुग़रा, आलेमा, मोहद्देसा, आरेफ़ा और सानि-ए-ज़हरा हैं, आपके सिफ़ात और आप की विशेषताएं देखकर आप को अक़ील ए बनी हाशिम कहा जाता है, आपकी शादी हज़रत जाफ़रे तैय्यार के बेटे जनाबे अब्दुल्लाह से हुई थी और आप के दो बेटे औन और मोहम्मद करबला में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथ दीन को बचाने की ख़ातिर शहीद कर दिए गए थे। (रियाहीनुश-शरीयह, जिल्द 3, पेज 210) 

  आम तौर से बच्चों के नाम उनके मां बाप रखते हैं लेकिन हज़रत ज़ैनब (स.अ) का नाम आपके नाना पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने रखा. जब आपकी विलादत हुई तो पैग़म्बर (स) सफ़र पर गए हुए थे जब आप वापस आए और जैसे ही आप को हज़रत ज़ैनब (स.अ) की विलादत की ख़बर मिली आप तुरन्त इमाम अली अलैहिस्सलाम के घर आए और हज़रत ज़ैनब को गोद में लेकर प्यार किया और उसी समय आपने ज़ैनब यानी 'बाप की ज़ीनत' नाम रखा। (रियाहीनुश-शरीयह, जिल्द 3, पेज 39) 

  इंसान की अहमियत उसके इल्म और ज्ञान से पहचानी जाती है, जैसा कि क़ुरआन में सूरए बक़रह की आयत 31 और 32 में हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के बारे में भी यही कहा गया है और सबसे अहम इल्म और ज्ञान वह है जो सीधे अल्लाह से हासिल किया जाए जिसे *इल्मे लदुन्नी* कहा जाता है, हज़रत ज़ैनब का इल्म भी कुछ इसी तरह का था जैसा कि इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने आप को आलिमा-ए-ग़ैरे मोअल्लेमा नाम दिया यानी ऐसी आलिमा जिसने दुनिया में किसी से कुछ सीखा न हो। (मुन्तहल आमाल, जिल्द 1, पेज 298)

  औरत के लिए सबसे बड़ा कमाल और सबसे बड़ी सआदत यह है कि उसकी पाकीज़गी और पवित्रता पर कोई सवाल न कर सके, हज़रत ज़ैनब ने पवित्रता का सबक़ अपने वालिद से सीखा जैसाकि यह्या माज़नदरानी से रिवायत है कि मैंने कई सालों तक मदीने में इमाम अली अलैहिस्सलाम की ख़िदमत की है और मेरा घर हज़रत ज़ैनब के घर से बिल्कुल क़रीब था लेकिन कभी न मैंने उनको देखा और ना ही उनकी आवाज़ सुनी। 

  आप जब भी पैग़म्बरे अकरम (स) की क़ब्र की ज़ियारत को जाना चाहतीं तो रात के सन्नाटे में जातीं और आप के साथ आगे आगे इमाम अली अलैहिस्सलाम चलते और आप के दाहिने इमाम हसन और बाएं इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम चलते और जब पैग़म्बरे अकरम (स) की क़ब्र के क़रीब पहुंचते तो पहले इमाम अली अलैहिस्सलाम जाकर चिराग़ की रौशनी को धीमा कर देते थे, एक बार इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने अपने वालिद से इसका कारण पूछा तो आप ने जवाब दिया कि मुझे डर है कि कहीं कोई हज़रत ज़ैनब को देख न ले। 

  आप ने कठिन परिस्थितियों में भी अपनी पाकीज़गी और पवित्रता को ध्यान में रखा, कूफ़ा और शाम जैसे घुटन के माहौल में जहां आप के सर पर चादर नहीं थी लेकिन फिर भी आप अपने हाथों से अपने चेहरे को छिपाए हुए थीं। (अल-ख़साएसुज़ ज़ैनबिय्या, पेज 345) 

  हज़रत ज़ैनब की एक और सबसे अहम विशेषता जिसको सैय्यद नूरुद्दीन जज़ाएरी ने किताब "ख़साएसुज़ ज़ैनबिय्या" में ज़िक्र किया है वह यह कि आप क़ुरआन की मुफ़स्सिरा थीं और वह एक रिवायत को इस तरह बयान करते हैं कि जिन दिनों इमाम अली अलैहिस्सलाम कूफ़ा में रहते थे उन्हीं दिनों हज़रत जैनब कूफ़े की औरतों के लिए क़ुरआन की तफ़सीर बयान करती थीं, एक दिन इमाम अली अलैहिस्सलाम घर में दाख़िल हुए तो देखा हज़रत ज़ैनब सूरए मरियम के शुरू में आने वाले हुरूफ़े मोक़त्तए की तफ़सीर बयान कर रही थीं, आप ने हज़रत ज़ैनब से कहा: बेटी इसकी तफ़सीर मैं बयान करता हूं और फिर आपने फ़रमाया इन हुरूफ़ में अल्लाह ने एक बहुत बड़ी मुसीबत को राज़ बनाकर रखा है और फिर आप ने करबला की दास्तान को बयान किया जिसको सुनकर हज़रत ज़ैनब बहुत रोईं।

  जनाबे शैख़ सदूक़ बयान करते हैं कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने बेटे इमाम सज्जाद ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की बीमारी के समय हज़रत ज़ैनब को यह अनुमति दी थी कि जो लोग शरई मसले पूछें आप उनका जवाब दीजिएगा। 

  शैख़ तबरिसी ने नक़्ल किया है कि हज़रत ज़ैनब ने बहुत सारी हदीसें अपनी मां हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स.अ) से बयान की है, इसी तरह किताब 'एमादुल मोहद्देसीन' से नक़्ल हुआ है कि आप ने अपनी मां, वालिद, भाईयों, जनाबे उम्मे सलमा, जनाबे उम्मे हानी और भी दूसरे लोगों से बहुत सी हदीसें बयान की हैं और जिन लोगों ने आप से हदीसें नक़्ल की हैं उनके नाम इस तरह हैं: अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास, इमाम सज्जाद (अ), अब्दुल्लाह इब्ने जाफ़र...

  इसी तरह फ़ाज़िल दरबंदी और भी दूसरे बहुत से उलमा ने हज़रत ज़ैनब के बारे में यह बात भी लिखी है कि हज़रत ज़ैनब को *"इल्मे मनाया वल बलाया"* था यानी ऐसा इल्म जिस में आने वाले समय में कौन सी घटना पेश आने वाली है इन सबके बारे में आप को मालूमात थी।

 

 

हामास के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख खलील अल-हैय्या ने कहा है कि हामास शत्रु को फिर से युद्ध शुरू करने का कोई बहाना नहीं देगा।

गाज़ा में हामास के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख खलील अल एय्या ने स्पष्ट किया कि हामास शत्रु को युद्ध दोबारा शुरू करने का कोई बहाना नहीं देगा।

अल एय्या ने अल जज़ीरा से बातचीत में कहा कि आक्रांता/कब्ज़ेवाले इज़राइल को युद्ध के दौरान अपने सभी उद्देश्य हासिल करने में नाकामी का सामना करना पड़ा है, जबकि अब अमेरिकी अधिकारियों ने भी युद्ध के समापन पर ज़ोर दिया है।

उन्होंने बताया कि युद्धविराम के 72 घंटे बाद हमास ने 20 इज़राईली बंदियों को रिहा किया और 17 बंदियों के शव लौटा दिए। रविवार को और जगहों पर अभियान चलाकर बाकी शवों को भी निकाला जाएगा।

खलील अल-हैय्या ने घोषणा की कि गाज़ा की सारी प्रशासनिक और सुरक्षा जिम्मेदारियाँ स्थानीय प्रशासनिक समिति के हवाले कर दी जाएँगी और युद्धविराम की निगरानी के लिए अंतरराष्ट्रीय फोर्स की तैनाती पर हामास और फतह के बीच भी सहमति हो चुकी है।

उन्होंने कहा कि हमारा लक्ष्य राष्ट्रीय चुनाव और फ़िलस्तीनी एकता की बहाली है क्योंकि हम एक राष्ट्र और एक सरकार चाहते हैं।

अल-हय्या ने आगे कहा कि हमारा हथियार तब तक हमारे पास रहेगा जब तक इज़राइल का कब्ज़ा समाप्त नहीं होता और आज़ादी के बाद इसे सरकार के हवाले कर दिया जाएगा।

उन्होंने दोहा पर आक्रामक कार्रवाई की नाकामी को सियोनीवादी राज्य की शर्मनाक हार बताया और चेतावनी दी कि अगर समझौते का उल्लंघन जारी रहा तो यह सार्वजनिक बेचैनी और युद्धविराम के खत्म होने का कारण बन सकता है।

 

 हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैय्यद सदरुद्दीन कबनची ने कहा, आयतुल्लाहिल उज्मा सिस्तानी ने चुनावों के मुद्दे को एक फतवे के जरिए हल कर दिया है जो उनसे चुनावों के बारे में पूछा गया था।

नजफ अशरफ के इमाम ए जुमआ हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन सैय्यद सदरुद्दीन कबनची ने हुसैनिया फातेमीया नजफ अशरफ में जुमआ की नमाज़ के खुतबों के दौरान कहा,आयतुल्लाहिल उज्मा सिस्तानी ने चुनावों के मुद्दे को एक फतवे के जरिए हल कर दिया है जो उनसे चुनावों के बारे में पूछा गया था। उन्होंने नागरिकों से अनुरोध किया कि वे इस मामले में अपनी अक्ल और जागरूकता से काम लें और सबसे योग्य व्यक्ति को चुनें।

उन्होंने आगे कहा, हम शिया समुदाय में फूट डालने की इजाजत नहीं देंगे क्योंकि ये सभी हमारे बच्चे हैं। बल्कि हम इराक में किसी भी तरह की फूट और तकसीम की इजाजत नहीं देंगे। अगर कोई फिरकापरस्त बातें फैलाता है तो उन्हें रोक दे। हम फिरकापरस्त जुबान को रद्द करते हैं और बदतमीजी का जवाब शालीनता से देते हैं।

नजफ अशरफ के इमाम ए जुमआ ने इलाकाई मसलों पर बात करते हुए कहा,इजराइल ने गाजा पर बमबारी दोबारा शुरू कर दी दक्षिणी लेबनान पर बमबारी जारी रखी और गाजा को मदद बंद कर दी। कल, इजराइली राज्य की संसद ने गाजा को शामिल करने में नाकामी के बाद, वेस्ट बैंक को इजराइल में शामिल करने की मांग की।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैय्यद सदरुद्दीन कबनची ने कहा, इजराइली राज्य फिर से अपने दरिंदा सिफत दांत दिखा रहा है और पूरी दुनिया और सभी अंतरराष्ट्रीय क़रारदादों को ललकार रहा है। हमारा ख्याल है कि ये सब इस बात की अलामत है कि इजराइल नाबूद हो रहा है और अपनी बाक़ा की जंग लड़ रहा है।

नजफ अशरफ के इमाम जुमा ने मजहबी शिद्दतपसंदी की मुख़ालफत करते हुए कहा, मैं मुफ़्तियाने किराम से किसी भी तरह की शिद्दतपसंदी पर मबनी फतवों से परहेज करने की दरख़्वास्त करता हूँ।

उन्होंने आगे कहा, इस्लाम लोगों को रोज़ी की तलाश की तरग़ीब देता है। रोज़ी के हुसूल के लिए इस तलाश को अजीजी और लगन के साथ अंजाम देना चाहिए।

 

मोहतरमा मोहसिन ज़ादेह हर्मुज़गान ने कहां,हज़रत ज़ैनब स.ल. इस्लामी इतिहास की उन महान हस्तियों में से हैं जिनका साहस, ईमान, सब्र और इल्म आज भी हर महिला और बच्ची के लिए बेहतरीन मिसाल है।

इस्लामी गणराज्य ईरान के हर्मुज़गान प्रांत में हौज़ा इल्मिया ख़्वाहरान के सांस्कृतिक और प्रचारात्मक मामलों की प्रमुख मोहतरमा मोहसिन ज़ादेह ने हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा की पवित्र जयंती के अवसर पर हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के अनुसरण में विभिन्न सांस्कृतिक और वैचारिक कार्यक्रमों में जिहाद-ए-तबीयिन की अग्रदूत हैं।

हौज़ा इल्मिया ख़्वाहरान हर्मुज़गान के सांस्कृतिक और प्रचारात्मक मामलों की प्रमुख ने कहा, हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा धार्मिक, आस्थागत और नैतिक क्षेत्रों में एक बेहतरीन आदर्श हैं।

उन्होंने कहा, हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के उपदेशों में ईश्वर और क़ियामत पर विश्वास धैर्य और सहनशीलता, परिस्थितियों की समझ श्रोताओं की पहचान, ईश्वरीय सीमाओं का पालन विशेष रूप से लज्जा और पवित्रता की पाबंदी को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

मोहतरमा मोहसिन ज़ादेह ने कहा, हर्मुज़गान प्रांत की धार्मिक छात्राएं हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के अनुसरण में विभिन्न सांस्कृतिक और वैचारिक कार्यक्रमों में जिहाद-ए-तबीयिन की अग्रदूत हैं। विभिन्न धार्मिक कार्यक्रमों में इस्लामी प्रतीकों और पुस्तक पठन के प्रचार सहित विभिन्न धार्मिक बैठकों का आयोजन उनकी धार्मिक गतिविधियों में शामिल है।

 

मजलिस ए ख़ुबर्गान ए रहबरी के रुक्न आयतुल्लाह सैय्यद अहमद ख़ातमी ने मशहद में मरहूम आयतुल्लाहिल उज़्मा मीरज़ा नाईनी र.ह.की याद में आयोजित अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ़्रेंस के समापन सत्र में खिताब करते हुए कहा,हौज़ा ए इल्मिया ख़ुरासान शुरुआत से आज तक इस्लामी इंक़लाब का झंडाबरदार रहा है और उसने हमेशा समकालीन इतिहास में इंक़ेलाब ए इस्लामी और अवामी तहरीकों में अग्रणी भूमिका निभाई है।

मजलिस ए ख़ुबर्गान-ए-रहबरी के सदस्य आयतुल्लाह सैय्यद अहमद ख़ातमी ने मशहद में मरहूम आयतुल्लाहिल उज़्मा मीरज़ा नाईनी (रह.) की याद में आयोजित अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ़्रेंस के समापन सत्र में कहा कि हौज़ा-ए-इल्मिया ख़ुरासान शुरुआत से अब तक इस्लामी इंक़लाब का अलमरदार रहा है और आधुनिक इतिहास में हमेशा इक़लाबी और जन आंदोलनों में अग्रणी भूमिका निभाता आया है।

उन्होंने कहा कि मरहूम मीरज़ा नाईनी न केवल फ़िक़्ह और उसूल के क्षेत्र में उच्चतम स्थान पर थे, बल्कि आध्यात्मिकता और राजनीति के क्षेत्र में भी उनका कोई मुकाबला नहीं था। उनके वैज्ञानिक और धार्मिक कार्य आज भी हौज़ात-ए-इल्मिया के लिए गर्व का कारण हैं।

आयतुल्लाह ख़ातमी ने कहा कि मीरज़ा नाइनी की शख्सियत एक पूरा वैचारिक और फ़िक़्ही सिस्टम थी जिसने कई पीढ़ियों के फुक़हा को प्रभावित किया। उनके फ़िक़ही विषय इबादात और मुआमलात के गहरे और सूक्ष्म सिद्धांतों पर आधारित हैं। वहीं उसूल के इल्म में वे एक नए  विचारधारा के संस्थापक माने जाते हैं। उनके शागिर्दों में आयतुल्लाह ख़ुई, आयतुल्लाह मिलानी और अन्य महान उलेमा शामिल हैं।

उन्होंने कहा कि मीरज़ा नाइनी ने धार्मिक तर्कशीलता को सामाजिक और राजनीतिक कार्य से जोड़ा, और अपनी वैज्ञानिक व व्यावहारिक ज़िंदगी से यह साबित किया कि दीन और सियासत को अलग नहीं किया जा सकता।उनकी मशहूर किताब तनबीहुल उम्मह व तनज़ीहुल मिल्लह” इस्लामी राजनीति की एक कुरआनी और अलवी व्याख्या पेश करती है। शहीद मुतह्हरी के अनुसार, किसी ने भी इस्लामी राजनीति के सिद्धांतों को इतने तर्कसंगत और व्यवस्थित ढंग से प्रस्तुत नहीं किया।

आयतुल्लाह ख़ातमी ने कहा कि मीरज़ा नाईनी के नज़दीक इस्तिबदाद से लड़ना सिर्फ सत्ता परिवर्तन नहीं, बल्कि एक कुरआनी फर्ज़ था।उन्होंने अपनी किताब को अस्थायी रूप से रोकने के फ़ैसले से यह दिखाया कि उनका उद्देश्य दीन और मरजईयत की सुरक्षा और भ्रम से बचाव था।

उन्होंने याद दिलाया कि हौज़ा-ए-इल्मिया ख़ुरासान हमेशा ज़ुल्म के ख़िलाफ़ मोर्चे की पहली पंक्ति में रहा है।1314 शम्सी (1935 ई.) में तहरीक-ए-गोहर्शाद के दौरान जब रज़ा ख़ान तानाशाही ने इस्लामी मूल्यों पर हमला किया, तो मरहूम आयतुल्लाह सैय्यद हुसैन क़ुमी जैसे उलेमा ने डटकर विरोध किया और बड़ी कुर्बानियाँ दीं।

आयतुल्लाह ख़ातमी ने कहा,आज भी यही उम्मीद है कि हौज़ा-ए-ख़ुरासान उसी तरह इस्लामी इंक़लाब के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा रहे। जिस तरह इस हौज़े के फ़रज़ंद ने दीन और निज़ाम के बचाव में इतिहास रचा, आज भी उन्हें एक दूरअंदेश रहबर के रूप में याद किया जाता है।

अंत में आयतुल्लाह ख़ातमी ने आस्ताने क़ुद्स रिज़वी के मुतवल्ली और सभी भाग लेने वाले उलेमा का शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि हौज़ा-ए-इल्मिया मशहद अतीत की तरह आज भी इस्लामी इंक़ेलाब के साथ मजबूती से खड़ा है।

 

हौज़ा ए इल्मिया ख़ुरासान के प्रबंधक हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अली ख़य्यात ने कहा कि मरहूम आयतुल्लाहिल उज़मा मिर्ज़ा नाईनी (रह.) हमारे दौर के महान वैचारिक और राजनीतिक चिंतकों में से एक थे वे फ़िक़्ह-ए-मुक़ावमत के संस्थापकों में से थे और उन्होंने धर्म और राजनीति के गहरे संबंध को व्यवहारिक रूप में व्याख्यायित किया।

हौज़ा ए इल्मिया ख़ुरासान के प्रबंधक हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अली ख़य्यात ने कहा कि मरहूम आयतुल्लाहिल उज़मा मिर्ज़ा नाईनी (रह.) हमारे दौर के महान वैचारिक और राजनीतिक चिंतकों में से एक थे वे फ़िक़्ह-ए-मुक़ावमत के संस्थापकों में से थे और उन्होंने धर्म और राजनीति के गहरे संबंध को व्यवहारिक रूप में व्याख्यायित किया।उनकी इल्मी और जिहादी ज़िंदगी वास्तव में दीन और दुनिया की ज़रूरतों के साथ तालमेल का प्रतीक है।

यह बात उन्होंने मशहद मुक़द्दस में आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन "मरहूम मिर्ज़ा नाइनी" के समापन सत्र में कही। इस कार्यक्रम में क़ुम नजफ़, मशहद और अन्य देशों के हौज़ा के विद्वानों और विचारकों ने भाग लिया।

हुज्जतुल इस्लाम ख़य्यात ने कहा कि मिर्ज़ा नाईनी की बौद्धिक विरासत ने इस्लामी राजनीतिक और सामाजिक फ़िक़्ह में नए विचारों को जन्म दिया। वे नजफ़ के मकातिब ए फ़क़ाहत के प्रमुख स्तंभों में से थे। उनके प्रमुख शियों में आयातुल्लाह हकीम, मिलानी, हिली और बज़नुर्दी जैसे महान फुक़हा शामिल हैं।

उन्होंने आगे कहा कि नाइनी रह.ने फ़िक़्ह-ए-मुक़ावमत और औपनिवेशिक विरोधी विचारधारा को केवल सैद्धांतिक स्तर पर नहीं रखा, बल्कि इसे व्यावहारिक रूप से भी सिद्ध किया। सैयद जमालुद्दीन असदाबादी से उनका वैचारिक संबंध और मिर्ज़ा शीराज़ी के साथ “तंबाकू आंदोलन” में भागीदारी ने उनके राजनीतिक दृष्टिकोण की नींव रखी। बाद में, संवैधानिक आंदोलन के दौरान, वे आख़ूंद ख़ुरासानी के वैचारिक सलाहकार के रूप में सक्रिय रहे।

उनकी प्रसिद्ध कृति तनबिह अल-उम्मह व तंज़ीह अल-मिल्लह" इस्लामी संवैधानिकता के समर्थन में धार्मिक और तर्कसंगत दलीलों का एक शाहकार है, जो आज भी इस्लामी विलायत आधारित शासन के सैद्धांतिक ढांचे में बुनियादी महत्व रखती है।

हुज्जतुल इस्लाम ख़य्यात ने कहा कि नाइनी की दूरदर्शी और समय को समझने वाली सोच आज भी उम्मत-ए-इस्लाम के लिए मार्गदर्शक है। जब मुस्लिम समाज बौद्धिक भटकाव का शिकार था, उस समय उन्होंने फिक़्ह और रणनीतिक बुद्धिमत्ता को मिलाकर आधुनिक इस्लामी सभ्यता की वैचारिक नींव रखी।

उन्होंने बताया कि इस सम्मेलन का सबसे मूल्यवान परिणाम यह रहा कि इससे क़ुम, नजफ़ और मशहद के हौज़ात ए इल्मिया के बीच वैचारिक और धार्मिक संबंधों को एक नई मजबूती मिली जो विश्व शिया जगत की वैचारिक एकता का प्रतीक है।

अंत में, प्रबंधक ने बताया कि सम्मेलन के दौरान शोधकर्ताओं ने मिर्ज़ा नाईनी के 41 खंडों पर मुशतमील ग्रंथ-संग्रह को संकलित किया है, जो भविष्य में इस्लामी राजनीतिक और सामाजिक फ़िक़्ह के शोधकर्ताओं के लिए एक अमूल्य बौद्धिक धरोहर साबित होगा।

 

बच्चों को नाकामी का सामना करने और मजबूत रहने की ट्रेनिंग देना माता-पिता के लिए सबसे अहम ट्रेनिंग स्किल्स में से एक है। माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों की मदद करें ताकि वे नाकामी को अंजाम नहीं, बल्कि सीखने के प्रक्रिया का एक हिस्सा समझें। इस मकसद के लिए, नाकामी के बाद मलामत करने के बजाय, माता-पिता को चाहिए कि बच्चे से उस तजुर्बे से हासिल होने वाले सबक पर बात करें।

बच्चों को नाकामी का सामना करने और मजबूत रहने की ट्रेनिंग देना माता-पिता के लिए सबसे अहम ट्रेनिंग स्किल्स में से एक है। माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों की मदद करें ताकि वे नाकामी को अंजाम नहीं, बल्कि सीखने के प्रक्रिया का एक हिस्सा समझें। इस मकसद के लिए, नाकामी के बाद मलामत करने के बजाय, माता-पिता को चाहिए कि बच्चे से उस तजुर्बे से हासिल होने वाले सबक पर बात करें।

बच्चों को इस तरह तैयार करना कि वे नाकामी से न घबराएं बल्कि उसे सीखने का हिस्सा समझें माता-पिता की एक बुनियादी जिम्मेदारी है।

मिसाल के तौर पर, अगर बच्चा खेल या किसी तालीमी सरगर्मी में मतलूबा नतीजा हासिल न कर सके, तो माता-पिता को चाहिए कि उसे मलामत करने के बजाय उससे बात करें कि उस तजुर्बे से उसने क्या सीखा और आइंदा वह कैसे बेहतर कर सकता है।

यह रवैया बच्चे को यह समझने में मदद देता है कि नाकामी दरअसल तरक्की का एक मौका है, और इस तरह वह उससे डरने के बजाय सीखने की कोशिश करता है।इसके अलावा, माता-पिता को खुद भी बच्चों के सामने नाकामी के वक्त सकारात्मक रवैया दिखाना चाहिए।

मिसाल के तौर पर अगर आप खुद किसी काम में कामयाब न हो सकें तो घबराने के बजाय पुरसुकून अंदाज में अपने बच्चे से उस तजुर्बे और उससे हासिल होने वाले सबक के बारे में बात करें।

इसी तरह, बच्चों को दोबारा कोशिश करने की हौसला अफजाई करें और उनकी मेहनत और इस्तिकलाल (लगन) की तारीफ करें, चाहे नतीजा मुकम्मल न हो।

यह तरीका बच्चों में खुद पर भरोसा पैदा करता है और उन्हें जिंदगी के चुनौतियों का सामना करने के काबिल बनाता है।

 

अल्लामा अशफ़ाक वहीदी ने कहा, साम्राज्यवाद ने हमेशा आज़ादी के नाम पर युवाओं को शिक्षा से दूर रखा जिसके कारण समाज में बुराइयों ने जन्म लिया।

शिया उलेमा काउंसिल पाकिस्तान के नेता अल्लामा अशफ़ाक वहीदी ने ज्ञान के विषय पर बात करते हुए कहा, ज्ञान एक रौशनी है जिससे अज्ञानता के अंधेरे को मिटाया जा सकता है।

उन्होंने कहा, पैगंबर इस्लाम स.अ.व. और कुरान ने ज्ञान और समझ को विशेष स्थान दिया है, जैसा कि पैगंबर इस्लाम स.अ.व.ने ज्ञान के महत्व को बयान करते हुए फरमाया,मैं ज्ञान का शहर हूं और अली उसका दरवाज़ा हैं।

अल्लामा अशफ़ाक वहीदी ने वैश्विक हालात पर टिप्पणी करते हुए कहा,हर युवा को ताग़ूत के हथकंडों से अवगत कराना उलेमा की जिम्मेदारी है ताकि वे मौजूदा चुनौतियों का सामना कर सकें।

उन्होंने आगे कहा,अहलुलबैत अ.स.के धर्म ने हमेशा मनुष्यों के अधिकारों की सुरक्षा का संदेश दिया है। लोगों को चाहिए कि वे सच्चे धर्म की तलाश करके अपने ईमान और विश्वास को मजबूत करें।

 

शनिवार, 25 अक्टूबर 2025 17:30

कुरआन मे महदीवाद (भाग -2)

सिर्फ़ "कमज़ोरी" दुश्मनों पर जीत और ज़मीन पर हुकूमत पाने का कारण नहीं है, बल्कि ईमान और क़ाबिलियत हासिल करना भी ज़रूरी है। दुनिया के कमज़ोर लोग जब तक ये दो चीज़ें (ईमान और क़ाबिलियत) हासिल नहीं करेंगे, हुकूमत नहीं पाएंगे।

महदीवाद पर आधारित "आदर्श समाज की ओर" शीर्षक नामक सिलसिलेवार बहसें पेश की जाती हैं, जिनका मकसद इमाम ज़माना (अ) से जुड़ी शिक्षाओ को फैलाना है।

हज़रत इमाम महदी (अ) और उनके वैश्विक क्रांति से जुड़ी कुछ आयतें निम्नलिखित हैं:

पहली आयत:

وَلقَدْ کَتَبْنا فِی الزّبُورِ مِنْ بَعْدِ الذّکْرِ أنّ الارضَ یرِثُها عِبادِیَ الصّالِحُونَ वलक़द कतब्ना फ़िज़ ज़बूरे मिन बादिज़ ज़िक्रे अन्नल अर्ज़ा यरेसोहा ऐबादेयस सालेहून

और हमने ज़बूर में, तौरात के बाद लिख दिया है कि ज़मीन के वारिस मेरे नेक बंदे होंगे। (सूरा अनबिया, आयत 105)

इस आयत में दुनिया के नेक लोगों (सालिहीन) को मिलने वाला एक स्पष्ट इनाम (ज़मीन पर हुकूमत) की तरफ इशारा किया गया है। कई रिवायतों में यह अहम घटना, इमाम महदी (अ) के ज़हूर से जुड़ी मानी जाती है।

जब ईमानदार लोग यह योग्यता हासिल कर लेंगे, तो अल्लाह भी उनकी मदद करता है और वो जालिमों पर ग़लबा पाते हैं।

इसलिए सिर्फ़ “कमज़ोरी” दुश्मनों पर जीत या जमीन पर हुकूमत पाने के लिए काफी नहीं; बल्कि ईमान और क़ाबिलियत भी जरूरी हैं। दुनिया के सारे मज़लूम लोग जब तक ये दो चीजें—ईमान और क़ाबिलियत—हासिल नहीं करते, उन्हें जमीन पर हुकूमत नहीं मिलेगी।

नुक्ते

1- आले मोहम्मद (स)

आयत की तफ़्सीर में इमाम बाक़िर (अ) ने फ़रमाया:

هُمْ آلُ مُحَمَّدٍ یَبْعَثُ اللَّهُ مَهْدِیهُمْ بَعْدَ جَهْدِهِمْ فَیعِزُّهُمْ وَ یذِلُّ عَدُوَّهُمْ हुम आलो मोहम्मदिन यबअसुल्लाहो महदीहुम बाद जहदेहिम फ़यइज़्ज़ोहुम व यज़िल्लो अदुव्वोहुम 

वे आले मोहम्मद हैं, जिनके मेहनतों के बाद अल्लाह उनके महदी को भेजेगा और उन्हें इज़्ज़त देगा, उनके दुश्मनों को नीचा दिखाएगा। (किताब अल ग़ैबा, शेख तूसी, पेज 184)

रिवायत सीमित नहीं है; बल्कि साफ़ और शफ़्फ़ाफ़ मिसाल का बयान है। यह तफ़्सीर कभी भी आयत के आम और व्यापक मानी को सीमित नहीं करती। इसलिए हर ज़माने और हर जगह अल्लाह के नेक/सालेह बंदे जब उठेंगे, विजयी होंगे और आखिर में ज़मीन के वारिस बनेंगे।

2- दाऊद के मज़ामीर में नेक लोगो की हुकूमत की खुशख़बरी

दाऊद के मज़ामीर में यही वाक्य या मिलती-जुलती बातें कई जगह देखी जाती हैं, और यकीन किया जाता है कि तमाम तहरीफ के बावजूद यह हिस्सा अब भी सुरक्षित है।

“बुरे लोग मिट जाएंगे, लेकिन जो लोग अल्लाह पर भरोसा करते हैं, वे ज़मीन के वारिस होंगे, और थोड़ा सा वक्त है कि बुरा आदमी भी नहीं मिलेगा; चाहे उसका पता ढूंढो, वो गायब मिलेगा।” (मज़ामीर दाऊद 37:9)

“लेकिन विनम्र लोग ज़मीन के वारिस होंगे, और बहुत सारी सलामती से खुश रहेंगे।” (मज़ामीर दाऊद 37, बंद 11)

“अल्लाह के बरकत वाले लोग ज़मीन के वारिस होंगे, लेकिन बदकिस्मत लोग कट जाएंगे।” (मज़ामीर दाऊद 37, बंद 27)

“सच्चे लोग ज़मीन के वारिस बनेंगे, और हमेशा उसमें बसे रहेंगे।” (मज़ामीर दाऊद 37, बंद 29)

“अल्लाह नेक लोगों के दिनों को जानता है, और उनकी विरासत हमेशा के लिए होगी।” (मज़ामीर दाऊद 37, बंद18)

इन सभी बातों में "सालेहीन" (नेक लोग) जैसा शब्द, जो कुरआन में आया है, वैसा ही दाऊद के मज़ामीर में भी मिलता है। इसके अलावा, "सच्चे लोग", "भरोसा करने वाले", "बरकत वाले", "विनम्र लोग" जैसे शब्द भी आए हैं। ये भाषा इस बात को साबित करती है कि "सालेहीन" (नेक लोगों) की हुकूमत एक आम और सबके लिए है, जो हज़रत महदी (अ) के जमान में होने वाली क्रांति से मेल खाती है।

3- नेक लोगों की हुकूमतपैदाइश का एक नियम

यह जानना ज़रूरी है कि हर गलत किस्म की हुकूमत खुद पैदाइश और कायनात के नियमों के खिलाफ़ है, और जो चीज़ मिजाज़ और सृष्टि के कानून से मेल खाती है, वही सालेहीन (नेक लोगों) की हुकूमत है। कायनात का सिस्टम अच्छे समाजी सिस्टम को मंजूरी देता है, और यही वो कॉन्सेप्ट है जो कुरआन की आयत और इमाम महदी (अ) की क्रांति से जुड़ी रिवायतों में पाया जाता है। (तफ़सीर नमूना, भाग 13, पेज 515 -524)

श्रृंखला जारी है ---

इक़्तेबास : "दर्स नामा महदवियत"  नामक पुस्तक से से मामूली परिवर्तन के साथ लिया गया हैलेखकखुदामुराद सुलैमियान