
رضوی
वाशिंगटन: यमनियों ने हमको भारी ख़र्चे में डाल दिया है,
अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने एलान किया है: यमनी सशस्त्र बलों के हमलों ने जहाज़ों को महंगा रास्ता अपनाने पर मजबूर कर दिया है।
फ़िलिस्तीन की निहत्थी और मज़लूम जनता के विरुद्ध ज़ायोनी हमलों के जारी रहने के कारण यमनी सशस्त्र बलों ने एक बार फिर ज़ायोनी शासन के जहाजों को अपने जलक्षेत्रों में निशाना बनाया है।
अल-आलम चैनल का हवाला देते हुए, इस मुद्दे ने तेल अवीव और इज़राइल के सबसे करीबी सहयोगी अमेरिका को भारी ख़र्चे में डाल दिया है।
इस बुनियाद पर, अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइक वाल्ट्ज ने कहा: यमन के अंसारुल्लाह आंदोलन के हमलों के कारण तीन-चौथाई अमेरिकी ध्वज वाले जहाजों ने लाल सागर पार करने से इनकार कर दिया और इसके बजाय दक्षिण अफ्रीका से होते हुए लंबा और महंगा मार्ग चुना है।
सीबीएस से एक साक्षात्कार में, वाल्ट्ज ने कहा: अमेरिकी ध्वज के तहत 75 प्रतिशत जहाजों को अब स्वेज नहर से जाने के बजाय अफ्रीका के दक्षिणी तट से गुज़रना पड़ता है।
उन्होंने आगे कहा: पिछली बार जब हमारा कोई डिस्ट्रायर यमन के पास जलडमरूमध्य से गुजरा था, तो उस पर 23 बार हमला किया गया था।
वाशिंगटन से बातचीत से इनकार करना हठ नहीं बल्कि अनुभव का नतीजा है: ईरान
ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराक्ची ने कहा कि जब तक कुछ बदलाव नहीं किए जाते, अमेरिका के साथ बातचीत नहीं हो सकती।
क्षेत्र में बढ़ते तनाव और ईरान को अमेरिकी चेतावनियों के बीच नए परमाणु समझौते पर वार्ता के आह्वान के बावजूद, ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अराक्ची ने जोर देकर कहा है कि उनका देश अमेरिका के साथ तब तक वार्ता नहीं कर सकता जब तक कि कुछ बदलाव नहीं किए जाते। रविवार को एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि वाशिंगटन के साथ बातचीत से इनकार करना हठ नहीं बल्कि इतिहास और अनुभव का परिणाम है।
ईरानी विदेश मंत्री ने कहा कि 2015 के परमाणु समझौते को उसके वर्तमान स्वरूप में बहाल नहीं किया जा सकता, लेकिन इसे एक मॉडल के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि उनके देश ने अपनी परमाणु स्थिति में महत्वपूर्ण प्रगति की है। अब्बास अराक्ची ने कहा कि अमेरिकी पक्ष के साथ किसी भी वार्ता का सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य प्रतिबंधों को हटाना है। उन्होंने कहा कि ईरान हमेशा युद्ध से बचता रहा है और वह युद्ध नहीं चाहता है, लेकिन साथ ही उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि वह इसके लिए तैयार है और इससे डरता नहीं है। अराक्ची ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा ओमान के माध्यम से तेहरान को भेजे गए हालिया संदेश को उसके परमाणु कार्यक्रम से भी बड़ा खतरा बताया। इस बीच, एक अमेरिकी अधिकारी और दो अन्य जानकार सूत्रों ने खुलासा किया है कि ईरान के सर्वोच्च नेता अली खामेनेई को लिखे ट्रम्प के पत्र में नए परमाणु समझौते पर पहुंचने के लिए दो महीने की समय सीमा भी शामिल है। हालाँकि, खामेनेई ने पिछले शुक्रवार को दोहराया कि अमेरिकी धमकियाँ कोई फायदा नहीं पहुँचातीं। तेहरान ने किसी भी सैन्य कार्रवाई के भयंकर परिणामों की भी चेतावनी दी है। 7 मार्च को अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि ईरान के साथ परमाणु युद्ध विराम पर बातचीत करना उनकी प्राथमिकता है, लेकिन साथ ही उन्होंने सैन्य टकराव की संभावना से भी इनकार नहीं किया।
मुस्लिम उम्माह को ग़ज़्ज़ा पर ज़ायोनी आक्रमण के खिलाफ़ एकजुट होना चाहिए: यमनी विद्वान
यमन के विद्वानों ने एक बयान में ज़ायोनी दुश्मन की वादाखिलाफी, समझौतों के उल्लंघन, युद्ध की बहाली और नरसंहार पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि जो लोग इस उत्पीड़न के खिलाफ खड़े नहीं होंगे, उनके लिए अल्लाह की दृष्टि में कोई बहाना स्वीकार्य नहीं होगा।
यमनी विद्वानों ने एक बयान में ज़ायोनी दुश्मन की वादाखिलाफी, समझौतों के उल्लंघन, युद्ध की बहाली और नरसंहार पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि जो लोग इस उत्पीड़न के खिलाफ खड़े नहीं होंगे, उनके लिए अल्लाह की दृष्टि में कोई बहाना स्वीकार्य नहीं होगा।
बयान में कहा गया है कि गाजा, पश्चिमी तट और फिलिस्तीन में विनाशकारी हमलों, बमबारी, भूख और प्यास के खिलाफ केवल निंदा या खेद व्यक्त करना पर्याप्त नहीं है, बल्कि व्यावहारिक उपाय किए जाने की आवश्यकता है।
यमनी विद्वानों ने उम्माह के सभी वर्गों - लोगों, सेना, शासकों, विद्वानों और धर्म प्रचारकों - को इस बर्बरता के खिलाफ उठ खड़े होने की उनकी जिम्मेदारी की याद दिलाई। गाजा की रक्षा और अल-अक्सा मस्जिद की मुक्ति के लिए सम्पूर्ण जिहाद ही इस दुनिया और परलोक की बदनामी से बचने का एकमात्र रास्ता है।
बयान में कहा गया कि युद्ध को फिर से शुरू करने का इजरायल का निर्णय संयुक्त राज्य अमेरिका की अनुमति, सैन्य सहायता और पूर्ण समर्थन के बिना संभव नहीं होता। इसी प्रकार, अरब शासकों की चुप्पी और शर्मनाक मिलीभगत ने भी ज़ायोनी आक्रामकता को बढ़ावा दिया है।
यमनी विद्वानों ने पड़ोसी देशों, लोगों, सेनाओं और उनके नेतृत्व पर सबसे बड़ी जिम्मेदारी डालते हुए कहा कि यदि वे इस नरसंहार को रोकने के लिए एकजुट नहीं हुए तो उन्हें अल्लाह के क्रोध और दंड का सामना करना पड़ेगा।
उन्होंने अंसारुल्लाह के नेता सय्यद अब्दुल मलिक बदर अल-दीन अल-हौथी के गाजा को समर्थन देने के निर्णय को उचित ठहराया तथा हवाई और नौसैनिक सैन्य अभियानों सहित हर संभव विकल्प का समर्थन किया।
यमनी विद्वानों ने स्पष्ट किया कि गाजा का समर्थन करना एक धार्मिक कर्तव्य, धार्मिक और नैतिक जिम्मेदारी, सच्चे इस्लामी भाईचारे की व्यावहारिक अभिव्यक्ति और मुसलमानों के बीच सहानुभूति और सहयोग का एक सच्चा रूप है।
नेतन्याहू के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और गिरफ्तारी की मांग तेज़
बेंजामिन नेतन्याहू पर अलोकतांत्रिक कदम उठाने, और ग़ाज़ा में हमास द्वारा बंधक बनाए गए बंधकों की रिहाई की अनदेखी करने का आरोप लगाने के बाद हजारों इज़रायली नागरिकों ने इज़रायल के प्रधानमंत्री नेेन्याहू के खिलाफ प्रदर्शन किया और गिरफ्तारी की मांग की।
बेंजामिन नेतन्याहू पर अलोकतांत्रिक कदम उठाने, और ग़ाज़ा में हमास द्वारा बंधक बनाए गए बंधकों की रिहाई की अनदेखी करने का आरोप लगाने के बाद हजारों इज़रायली नागरिकों ने इज़रायल के प्रधानमंत्री नेेन्याहू के खिलाफ प्रदर्शन किया और गिरफ्तारी की मांग की।
इज़रायली निवासियों ने एक बार फिर नेतन्याहू की कैबिनेट की कार्रवाइयों का विरोध किया, जिसमें शबाक के प्रमुख को बर्खास्त करने का निर्णय भी शामिल था।
आईएसएनए के अनुसार, इज़रायली निवासियों ने शनिवार रात नेतन्याहू की कैबिनेट की कार्रवाइयों के खिलाफ तेल अवीव और कब्जे वाले क्षेत्रों में कई अन्य स्थानों पर विरोध प्रदर्शन किया जिसमें शबाक प्रमुख रोनिन बार को बर्खास्त करने का निर्णय और ग़ाज़ा युद्धविराम का उल्लंघन भी शामिल था।
टाइम्स ऑफ इज़रायल” अखबार ने बताया कि शबाक प्रमुख को हटाने के नेतन्याहू के फैसले के बाद उनके मंत्रिमंडल के खिलाफ साप्ताहिक प्रदर्शनों में लोगों की भागीदारी बढ़ गई है।नेतन्याहू ने हमास के लिए नहीं, बल्कि कैदियों के लिए नर्क के द्वार खोले हैं: बंधकों के परिजन ने कहा,
इज़रायली कैदियों के परिवारों ने ग़ाज़ा में युद्ध फिर से शुरू करने के नेतन्याहू के फैसले की कड़ी आलोचना की और इज़रायली प्रधानमंत्री के खिलाफ देशव्यापी प्रदर्शन की मांग की।
इज़रायली कैदियों के परिवारों ने नेतन्याहू से कहा कि वह कैदियों को मार डालेंगे और इस शासन को नष्ट कर देंगे। ज़ायोनी कैदियों के परिवारों ने कहा कि नेतन्याहू ने अपने सहयोगियों, स्मोट्रिच और बेंगुइर को संतुष्ट करने के लिए कैदियों के जीवन का बलिदान देने का फैसला किया है।
उन्होंने कहां, नेतन्याहू ने समझौते को लागू करने और कैदियों को वापस करने के बजाय युद्ध फिर से शुरू करने का फैसला किया नेतन्याहू ने बंधकों के लिए नर्क के द्वार खोले हैं।
तुर्क पुलिस और "अकरम इमाम ओग्लू" का समर्थन करने वाले प्रदर्शनकारियों के बीच संघर्ष जारी
इस्तांबुल के हिरासत में लिए गए मेयर "इकराम इमाम ओग्लू" का समर्थन करने वाले प्रदर्शनकारियों के साथ तुर्क पुलिस की झड़प हुई।
मुख्य विपक्षी हस्तियों में से एक और तुर्किए के राष्ट्रपति रजब तैयब अर्दोग़ान के संभावित प्रतिद्वंद्वी इस्तांबुल के मेयर को बुधवार को देश की सरकार ने भ्रष्टाचार और आतंकवाद के आरोप में गिरफ्तार कर लिया।
अर्दोग़ान सरकार की इस कार्रवाई के खिलाफ तुर्किये के कई प्रांतों में प्रदर्शन जारी है और प्रदर्शनकारी इस्तांबुल के निर्वासित मेयर अकरम इमाम ओग्लू की रिहाई की मांग कर रहे हैं।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, शनिवार रात को "इमाम ओग्लू" की रिहाई के लिए आयोजित प्रदर्शनों में तुर्की विश्वविद्यालयों के छात्रों ने व्यापक रूप से भाग लिया।
इमाम ओग्लू से पूछताछ
दूसरी ओर, अल-मयादीन चैनल ने बताया: इस्तांबुल के गिरफ्तार मेयर से पूछताछ शनिवार रात को समाप्त हो गई और वह अपने खिलाफ फैसले का इंतजार कर रहे हैं।
इस रिपोर्ट के अनुसार, तुर्किये के सरकारी अभियोजक ने "इमाम ओग्लू" के लिए जेल की सजा की अपील की है और अदालत जल्द ही अपना फ़ैसला सुनाएगा। वहीं, ''इमाम ओग्लू'' ने अपने ऊपर लगे सभी आरोपों का जोरदार खंडन किया है।
एक्स नेटवर्क ने तुर्किये में कई विपक्षी एकाउंट्स बंद कर दिए
इस बीच, सोशल नेटवर्क एक्स ने तुर्किये में विपक्षी हस्तियों से संबंधित कई एकाउंट्स को बंद कर दिया है। कहा जा रहा है कि ये अकाउंट वामपंथी और छात्र ग्रुप्स के हैं जिन्होंने 19 मार्च को इमाम ओग्लू की गिरफ्तारी के बाद से सरकार विरोधी प्रदर्शनों में सक्रिय रूप से भाग लिया था।
तुर्किये में सैकड़ों प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया गया
तुर्किये के आंतरिक मंत्रालय ने शनिवार को घोषणा की कि इमाम ओग्लू की गिरफ्तारी के विरोध में कई तुर्की शहरों में शुक्रवार रात प्रदर्शन के दौरान 343 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। इस मंत्रालय की घोषणा के अनुसार, "सार्वजनिक व्यवस्था में गड़बड़ी" को रोकने के लिए गिरफ्तारियां की गईं।
तुर्किये के आंतरिक मंत्रालय ने चेतावनी दी है कि तुर्क अधिकारी अराजकता और उत्तेजक कार्रवाइयों को बर्दाश्त नहीं करेंगे।
तुर्किये का सेंट्रल बैंक लीरा की गिरावट को रोकना चाहता है
"फाइनेंशियल टाइम्स" अखबार ने यह भी लिखा: तुर्क राष्ट्रपति के मुख्य प्रतिद्वंद्वी की गिरफ्तारी के कारण हुए आर्थिक संकट के बाद, देश के केंद्रीय बैंक ने लीरा के मूल्य में गिरावट को रोकने के लिए मुद्रा बाज़ार में लगभग 12 बिलियन डॉलर का निवेश किया है।
"अर्दोग़ान" के सबसे बड़े विरोधी दल का प्राथमिक चुनाव और आपातकालीन बैठक
इस बीच, सत्तारूढ़ जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी (एकेपी) के मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में रिपब्लिकन पीपुल्स पार्टी ऑफ तुर्की (सीएचपी) आगामी राष्ट्रपति चुनाव के लिए अपने उम्मीदवार को नामांकित करने के लिए रविवार को प्राइमरी आयोजित करेगी। इस्तांबुल नगर पालिका के उत्तराधिकारी की नियुक्ति को रोकने के लिए 26 अप्रैल को "सीएचपी" की एक आपातकालीन बैठक भी आयोजित होने वाली है।
ग़ज़ा पर नए इज़राइली हमलों में 35 लोग शहीद
हमलों की एक नई लहर में, इज़राइली युद्धक विमानों ने ग़ज़ा पट्टी के विभिन्न इलाकों में फ़िलिस्तीनी घरों पर बमबारी की।
ताज़ा हमलों में, इज़राइली युद्धक विमानों ने ग़ज़ा पट्टी के उत्तर में ख़ान यूनिस और रफ़ा के क्षेत्र अल-बदवीया और अल-जेनेना के अल-मनारा, अल-मवासी और अल-फ़ख़्री क्षेत्रों में फिलिस्तीनी घरों पर बमबारी की, जिसके परिणामस्वरूप कम से कम 35 फिलिस्तीनी शहीद और दर्जनों अन्य घायल हो गए, जिनमें से अधिकांश बच्चे और महिलाएं शामिल हैं।
ज़ायोनी शासन के युद्धक विमानों ने रविवार सुबह ग़ज़ा पट्टी के विभिन्न इलाकों पर बमबारी की।
ग़ज़ा में शहीदों की संख्या बढ़कर 49 हज़ार 747 हो गई
इस संबंध में, ग़ज़ा में फिलिस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय ने शनिवार को एलान किया था कि पिछले 48 घंटों में 130 शहीदों और 263 घायल फिलिस्तीनियों के शवों को अस्पतालों में स्थानांतरित कर दिया गया है।
फ़िलिस्तीन के स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, ज़ायोनी शासन द्वारा युद्धविराम के उल्लंघन के बाद 18 मार्च, 2025 से अब तक शहीदों और घायलों की संख्या 634 हो गई है जबकि 1172 लोग घायल हुए हैं। इस आंकड़े को मिलाकर, 7 अक्टूबर, 2023 से ग़ज़ा पट्टी में शहीदों की संख्या 49 हज़ार 747 हो गई है जबकि घायलों की संख्या 1 लाख 13 हज़ार 213 हो गई है।
ख़ान यूनिस में हमास के राजनीतिक कार्यालय के एक सदस्य शहीद
दूसरी ख़बर यह है कि फ़िलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन "हमास" के राजनीतिक कार्यालय के सदस्य और फ़िलिस्तीनी विधान सभा के प्रतिनिधि "सलाह अल-बर्देवेल" अपनी पत्नी के साथ रविवार की सुबह दक्षिणी ग़ज़ा के खान यूनिस शहर के पश्चिम में स्थित अल-मवासी क्षेत्र में कैंप पर ज़ायोनियों के हमले में शहीद हो गए।
हमास आंदोलन ने अल-बर्देवेल की शहादत पर बधाई और शोक व्यक्त करते हुए एक संदेश जारी किया और इस बात पर जोर दिया कि शहीद अल-बर्दविल और उनकी पत्नी और सभी शहीदों का खून स्वतंत्रता संग्राम की ज्वाला जलाए रखेगा और कब्जा करने वाला शासन हमारे दृढ़ संकल्प और दृढ़ता को कमजोर नहीं कर सकेगा।
हमास: युद्धविराम समझौते को अंतिम रूप देने के लिए मध्यस्थों से संपर्क जारी है
इस बीच, हमास के प्रवक्ता अब्दुल लतीफ क़ानू ने कहा, पश्चिम एशियाई मामलों के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प के विशेष दूत स्टीव वेटकोफ़ के प्रस्ताव और कुछ अन्य विचारों पर मध्यस्थों के साथ चर्चा की जा रही है और ज़ायोनी शासन के साथ युद्धविराम समझौते को अंतिम रूप देने की मांग ख़त्म नहीं हुई है, लेकिन नेतन्याहू हमेशा इस रास्ते में बाधाएं पैदा करते रहते हैं।
नेतन्याहू विरोधी प्रदर्शन
ज़ायोनी सेना ने पिछले मंगलवार से ग़ज़ा पट्टी पर अपना सैन्य आक्रमण फिर से शुरू कर दिया, इन हमलों की वजह से मक़बूज़ा फिलिस्तीन के अंदर व्यापक विरोध प्रदर्शन हुआ और गुस्साए ज़ायोनियों ने मक़बूज़ा बैतुल मुक़द्दस में प्रधानमंत्री बेन्यामीन नेतन्याहू की नीतियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किये और हमास के साथ समझौते की मांग करते हुए कहा कि ग़ज़ा में शेष ज़ायोनी क़ैदियों को रिहा कराया जाए।
इस संदर्भ में, "येदियोत अहारनोत" समाचार साइट सहित ज़ायोनी शासन के मीडिया ने "बेन्यामिन नेतन्याहू" के घर के पास ज़ायोनी सेल्टर्ज़ और इज़रायली शासन पुलिस के बीच गंभीर झड़पों की सूचना दी है।
इस रिपोर्ट के मुताबिक, कई प्रदर्शनकारी मक़बूज़ा बैतुल मुक़द्दस में नेतन्याहू के घर के करीब पहुंचने में कामयाब रहे जिसके बाद प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों के बीच झड़पें तेज़ हो गयीं।
"अरबी- 21" समाचार साइट ने यह भी बताया कि इज़राइल के आंतरिक सुरक्षा और खुफिया संगठन (शाबाक) के प्रमुख रोनिन बार को हटाने और इस फैसले को रोकने के लिए इज़राइली सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक अस्थायी आदेश जारी करने के बाद, शनिवार रात को तेल अवीव में नेतन्याहू की कैबिनेट के खिलाफ एक बड़ा प्रदर्शन आयोजित किया गया था।
इस प्रदर्शन में ज़ायोनी शासन की वर्तमान कैबिनेट के विपक्ष के नेता याइर लापिड ने भाग लिया और इस शासन की कैबिनेट की कड़ी आलोचना की और नेतन्याहू पर गृहयुद्ध शुरू करने की कोशिश का आरोप लगाया।
तालिबान: ईरान के साथ संबंध पहले से अधिक मजबूत किए जाएं
तालिबान सरकार के प्रशासनिक उपप्रधानमंत्री ने तेहरान में अफगानिस्तान शासन के राजदूत से मुलाकात के दौरान ईरान के साथ संबंधों को और अधिक मजबूत करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
फज़ल मोहम्मद हक्क़ानी जो तेहरान में तालिबान सरकार के दूतावास के प्रभारी हैं अफगानिस्तान सरकार के प्रशासनिक उपप्रधानमंत्री अब्दुस्सलाम हनफ़ी से मुलाकात कर अपने कार्यों और गतिविधियों पर रिपोर्ट पेश की।
उन्होंने कहा कि यह दूतावास अफगानिस्तान और ईरान के बीच विभिन्न क्षेत्रों में संबंधों के विस्तार के लिए प्रयासरत है जिसके अच्छे परिणाम सामने आए हैं।
हक्क़ानी ने इस बात पर ज़ोर दिया कि ईरान में बड़ी संख्या में अफगान नागरिक मौजूद हैं इसलिए इस दूतावास में कांसुलर सेवाएं सक्रिय हैं और ईरान में रहने वाले अफगान नागरिकों को बेहतर सेवाएं प्रदान की जा रही हैं तथा उनकी समस्याओं का समाधान किया जा रहा है।
हनफ़ी ने भी इस मुलाकात में कहा कि अफगानिस्तान और ईरान के बीच लंबे समय से धार्मिक ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संबंध हैंऔर इस दूतावास के अधिकारियों को इन संबंधों को और अधिक मजबूत करने के लिए प्रयास करना चाहिए।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शहादत
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ने कहा कि हे अली, जिब्राईल ने मुझे तुम्हारे बारे में एक एसी सूचना दी है जो मेरे नेत्रों के लिए प्रकाश और हृदय के लिए आनंद बन गई है।
उन्होंने मुझसे कहाः हे मुहम्मद, ईश्वर ने कहा है कि मेरी ओर से मुहम्मद को सलाम कहों और उन्हें सूचित करो कि अली, मार्गदर्शन के अगुवा, पथभ्रष्टता के अंधकार का दीपक व विश्वासियों के लिए ईश्वरीय तर्क हैं। और मैंने अपनी महानता की सौगंध खाई है कि मैं उसे नरक की ओर न ले जाऊं जो अली से प्रेम करता हो और उनके व उनके पश्चात उनके उत्तराधिकारियों का आज्ञाकारी हो। आज उसी मार्गदर्शक के लिए हम सब शोकाकुल हैं। वह सर्वोत्तम और अनुदाहरणीय व्यक्तित्व जिसने संसार वासियों को अपनी महानता की ओर आकर्षित कर रखा था।
उस रात भी हज़रत अली अलैहिस्सलाम रोटी तथा खजूर की बोरी, निर्धनों और अनाथों के घरों ले गए। अन्तिम बोरी पहुंचाकर जब वे घर पहुंचे तो ईश्वर की उपासना की तैयारी में लग गए। "यनाबीउल मवद्दत" नामक पुस्तक में अल्लामा कुन्दूज़ी लिखते हैं कि शहादत की पूर्व रात्रि में हज़रत अली अलैहिस्सलाम आकाश की ओर बार-बार देखते और कहते थे कि ईश्वर की सौगंध मैं झूठ नहीं कहता और मुझसे झूठ नहीं बताया गया है। सच यह है कि यह वही रात है जिसका मुझको वचन दिया गया है।
भोर के धुंधलके में अज़ान की आवाज़ नगर के वातावरण में गूंज उठी। हज़रत अली अलैहिस्सलाम धीरे से उठे और मस्जिद की ओर बढ़ने लगे। जब वे मस्जिद में प्रविष्ठ हुए तो देखा कि इब्ने मल्जिम सो रहा है। आपने उसे जगाया और फिर वे मेहराब की ओर गए। वहां पर आपने नमाज़ आरंभ की। अल्लाहो अकबर अर्थात ईश्वर उससे बड़ा है कि उसकी प्रशंसा की जा सके। मस्जिद में उपस्थित लोग नमाज़ की सुव्यवस्थित तथा समान पक्तियों में हज़रत अली अलैहिस्सलाम के पीछे खड़े हो गए। हज़रत अली अलैहिस्सलाम के चेहेर की शान्ति एवं गंभीरता उस दिन उनके मन को चिन्तित कर रही थी।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम नमाज़ पढ़ते हुए सज्दे में गए। उनके पीछे खड़े नमाज़ियों ने भी सज्दा किया किंतु हज़रत अली अलैहिस्सलाम के ठीक पीछे खड़े उस पथभ्रष्ट ने ईश्वर के समक्ष सिर नहीं झुकाया जिसके मन में शैतान बसेरा किये हुए था। इब्ने मुल्जिम ने अपने वस्त्रों में छिपी तलावार को अचानक ही निकाला। शैतान उसके मन पर पूरी तरह नियंत्रण पा चुका था। दूसरी ओर अली अपने पालनहार की याद में डूबे हुए उसका गुणगान कर रहे थे। अचानक ही विष में बुझी तलवार ऊपर उठी और पूरी शक्ति से वह हज़रत अली अलैहिस्सलाम के सिर पर पड़ी तथा माथे तक उतर गई। पूरी मस्जिद का वातावरण हज़रत अली के इस वाक्य से गूंज उठा कि फ़ुज़्तो व रब्बिलकाबा अर्थात ईश्वर की सौगंध में सफल हो गया।
आकाश और धरती व्याकुल हो उठे। जिब्राईल की इस पुकार ने ब्रहमाण्ड को हिला दिया कि ईश्वर की सौगंध मार्गदर्शन के स्तंभ ढह गए और ईश्वरीय प्रेम व भय की निशानियां मिट गईं। उस रात अली के शोक में चांदनी रो रही थी, पानी में चन्द्रमा की छाया बेचैन थी, न्याय का लहू की बूंदों से भीग रहा था और मस्जिद का मेहराब आसुओं में डूब गया था।
कुछ ही क्षणों में वार करने वाले को पकड़ लिया गया और उसे इमाम के सामने लाया गया। इमाम अली अलैहिस्सलाम ने जब उसकी भयभीत सूरत देखी तो अपने सुपुत्र इमाम हसन से कहा, उसे अपने खाने-पीने की वस्तुएं दो। यदि मैं संसार से चला गया तो उससे मेरा प्रतिशोध लो अन्यथा मैं बेहतर समझता हूं कि उसके साथ क्या करूं और क्षमा करना मेरे लिए उत्तम है।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम के एक अन्य पुत्र मुहम्मद हनफ़िया कहते हैं कि इक्कीस रमज़ान की पूर्व रात्रि में मेरे पिता ने अपने बच्चों और घरवालों से विदा ली और शहादत से कुछ क्षण पूर्व यह कहा, मृत्यु मेरे लिए बिना बुलाया मेहमान या अपरिचित नहीं है। मेरा और मृत्यु की मिसाल उस प्यासे की मिसाल है जो एक लंबे समय के पश्चात पानी तक पहुंचता है या उसकी भांति है जिसे उसकी खोई हुई मूल्यवान वस्तु मिल जाए।
इक्कीस रमज़ान का सवेरा होने से पूर्व अली के प्रकाशमयी जीवन की दीपशिखा बुझ गई। वे अली जो अत्याचारों के विरोध और न्यायप्रेम का प्रतीक थे वे आध्यात्म व उपासना के सुन्दरतम क्षणों में अपने ईश्वर से जा मिले थे। अपने पिता के दफ़न के पश्चात इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने दुख भरी वाणी में कहा था कि बीती रात एक एसा महापुरूष इस संसार से चला गया जो पैग़म्बरे इस्लाम की छत्रछाया में धर्मयुद्ध करता रहा और इस्लाम की पताका उठाए रहा। मेरे पिता ने अपने पीछे कोई धन-संपत्त नहीं छोड़ी। परिवार के लिए केवल सात सौ दिरहम बचाए हैं।
सृष्टि की उत्तम रचना होने के कारण मनुष्य, विभिन्न विचारों र मतों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है तथा मनुष्य के ज्ञान का एक भाग मनुष्य की पहचान से विशेष है। अधिक्तर मतों में मनुष्य को एक सज्जन व प्रतिष्ठित प्राणी होने के नाते सृष्टि के मंच पर एक महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है परन्तु इस संबन्ध में इतिहास में एसे उदाहरण बहुत ही कम मिलते हैं जो प्रतिष्ठा व सम्मान के शिखर तक पहुंचे हो। हज़रत अली अलैहिस्सलाम, इतिहास के एसे ही गिने-चुने अनउदाहरणीय लोगों में सम्मिलित हैं। इतिहास ने उन्हें एक एसे महान व्यक्ति के रूप में विश्व के सामने प्रस्तुत किया जिसने अपने आप को पूर्णतया पहचाना और परिपूर्णता तथा महानता के शिखर तक पहुंचने में सफलता प्राप्त की। हज़रत अली का यह कथन इतिहास के पन्ने पर एक स्वर्णिम समृति के रूप में जगमगा रहा है कि ज्ञानी वह है जो अपने मूल्य को समझे और मनुष्य की अज्ञानता के लिए इतना ही पर्याप्त है कि वह स्वयं अपने ही मूल्य को न पहचाने।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम सदा ही कहा करते थे कि मेरी रचना केवल इसलिए नहीं की गई है कि चौपायों की भांति अच्छी खाद्य सामग्री मुझे अपने में व्यस्त कर ले या सांसारिक चमक-दमक की ओर मैं आकर्षित हो जाऊं और उसके जाल में फंस जाऊं। मानव जीवन का मूल्य अमर स्वर्ग के अतिरिक्त नहीं है अतः उसे सस्ते दामों पर न बेचें।
उन्होंने अपने अस्तित्व के विभिन्न आयामों को इस प्रकार से विकसित किया था कि साहस, लोगों के साथ सुव्यवहार, न्याय, पवित्रता व ईश्वरीय भय एवं उपासना की अन्तिम सीमा तक पहुंच गए। हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने जीवन के प्रत्येक चरण में इस बिंदु पर विशेष रूप से बल देते थे कि मनुष्य का आत्मसम्मान उसके अस्तित्व की वह महान विशेषता है जिसको कसी भी स्थिति में ठेस नहीं लगनी चाहिए अतः समाजों की राजनैतिक पद्धतियों एवं राजनेताओं के लिए यह आवश्यक है कि मानव सम्मान के मार्गों को समतल करे। उन्होंने अपने शासनकाल में एसा ही किया और आत्मसम्मान को मिटाने वाली बुराइयों जैसे चापलूसी और चाटुकारिता के विरूद्ध कड़ा संघर्ष किया। इमाम अली अलैहिस्सलाम अपने अधीन राज्यपालों को उपदेश एवं आदेश देते हुए कहते हैं कि अपने पास उपस्थित लोगों को एसा बनाओ कि तुम्हारी प्रशंसा में न लगे रहें और अकारण ही तुम्हें प्रसन्न न करें। एक दिन इमाम के भाषण के दौरान एक व्यक्ति उठा और वह उनकी प्रशंसा करने लगा। इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि मेरी प्रशंसा न करो ताकि मैं लोगों के जो अधिकार पूरे नहीं हुए हैं उन्हें पूरा कर सकूं और जो अनिवार्य कार्य मेरे ज़िम्मे है उन्हें कर सकूं।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम लोगों पर विश्वास करने को प्रतिष्ठा करने और मनुष्य के व्यक्तित्व को सम्मान देने का उच्चतम मार्ग समझते थे। उनकी दृष्टि में दरिद्रता से बढ़कर/आत्म-सम्मान को क्षति पहुंचाने वाली कोई चीज़ नहीं होती। वे कहते हैं कि दरिद्रता मनुष्य की सबसे बड़ी मौत है। यही कारण था कि अपने शासनकाल में जब बहुत बड़ा जनकोष उनके हाथ में था तब भी वे अरब की गर्मी में अपने हाथों से खजूर के बाग़ लगाने में व्यस्त रहते और उससे होने वाली आय को दरिद्रों में वितरित कर दिया करते थे ताकि समाज में दरिद्रता और दुख का अंत हो सके।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम सदैव ही पैग़म्बरे इस्लाम के साथ रहते थे और अपने मन व आत्मा को "वहिय" अर्थात ईश्वरीय आदेशों के मधुर संगीत से तृप्त करते थे। इसी स्थिति में ईमान अर्थात ईश्चर पर विश्वास और इरफ़ान अर्थात उसकी पहचान उनके अस्तित्व पर इतनी छा गई थी कि शेष सभी विशेषताओं पर पर्दा सा पड़ गया था। पैग़म्बरे इस्लाम (स) कहते थे कि यदि आकाश और धरती, तुला के एक पलड़े में रखे जाएं और अली को ईमान दूसरे पल्ड़े में तो निश्चित रूप से अली का ईमान उनसे बढ़कर होगा।
वे ईश्वर की गहरी पहचान और विशुद्ध मन के साथ ईश्वर की उपसना करते थे क्योंकि उपासनपा केवल कर्तव्य निहाने के लिए नहीं होती बल्क उसके माध्यम से बुद्धि में विकास और शारीरिक शक्तियों में संतुलन होता है। यही कारण है कि जो व्यक्ति पवित्र एवं विशुद्ध भावना के साथ उपासना करता है वह सफल हो जाता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि संसार के लोग दो प्रकार के होते हैं। एक गुट अपने आप को भौतिक इच्छाओं के लिए बेच देता है और स्वयं को तबाह कर लेता है तथा दूसर गुट स्वयं को ईश्वर के आज्ञापालन द्वारा ख़रीद लेता है और स्वयं को स्वतंत्र कर लेता है।
अली अलैहिस्सलाम साहस, संघर्ष तथा नेतृत्व का प्रतीक हैं। वे उन ईमानवालों का उदाहरण हैं कि जो क़ुरआन के शब्दों में ईश्वर का इन्कार करने वालों के लिए कड़े व्यवहार वाले और अपनों के लिए स्नेहमयी व दायुल हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम के अधीनस्थ लोग विशेषकर समाज के अनाथ बच्चे व असहाय लोग उन्हें एक दयालु पिता के रूप में पाते और उनसे अथाह प्रेम करते थे परन्तु ईश्वर का इन्कार करने वालों से युद्ध और अत्याचारग्रस्तों की सुरक्षा करते हुए रक्षा क्षेत्रों में उनके साहस और वीरता के सामने कोई टिक ही नहीं पाता था। ख़ैबर के युद्ध में जिस समय विभिन्न सेनापति ख़ैबर के क़िले का द्वार खोलने में विफल रहे तो अंत में पैग़म्बरे इस्लाम ने घोषणा की कि कल मैं इस्लामी सेना की पताका एसे व्यक्ति को दूंगा जिससे ईश्वर और उसका पैग़म्बर प्रेम करते हैं। दूसरे दिन लोगों ने यह देखा कि सेना की पताका हज़रत अली अलैहिस्सलाम को दी गयी और उन्होंने ख़ैबर के अजेय माने जाने वाले क़िले पर उन्होंने वियज प्राप्त कर ली।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम बड़ी ही कोमल प्रवृत्ति के स्वामी थे। उनकी यह विशेषता उनके कथन और व्यवहार दोनों में देखने को मिलती है। इस्लाम के आरम्भिक काल के एक युद्ध में अम्र बिन अब्दवुद नामक अनेकेश्वरवादियों का एक योद्धा, अपनी पूरी शक्ति के साथ हज़रत अली अलैहिस्सलाम के मुक़ाबले में आ गया। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने उसे पछाड़ दिया। यह देखकर वे उसकी छाती पर से उठ गए, कुछ दूर चले और फिर पलटकर उसकी हत्या कर दी।
वास्तव में हज़रत अली अलैहिस्सलाम साहस और निर्भीक्ता का प्रतीक होने के साथ ही साथ नैतिकता और शिष्टाचार का एक परिपूर्ण उदाहरण भी थे। वे ईश्वरीय कर्तव्य निभाते समय केवल ईश्वर को ही दृष्टि में रखते थे। यही कारण था कि अम्र बिन अब्दवुद की अपमान जनक कार्यवाही के पश्चात उन्होंने अपने क्रोध को पहले शांत किया फिर कर्तव्य निभाया ताकि उसकी हत्या अपनी व्यक्तिगत भावना के कारण न करें।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अद्धितीय जनतांत्रिक सरकार की स्थापना की। उनके शासन का आधार न्याय था। समाज में असत्य पर आधारित या किसी अनुचति कार्य को वे कभी भी सहन नहीं करते थे। उनके समाज में जनता की भूमिका ही मुख्य होती थी और वे कभी भी धनवानों और शक्तिशालियों पर जनहित को प्राथमिक्ता नहीं देते थे। जिस समय उनके भाई अक़ील ने जनक्रोष से अपने भाग से कुछ अधिक धन लेना चाहा तो हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने उन्हें रोक दिया। उन्होंने पास रखे दीपक की लौ अपने भाई के हाथों के निकट लाकर उन्हें नरक की आग के प्रति सचेत किया। वे न्याय बरतने को इतना आवश्यक मानते थे कि अपने शासन के एक कर्मचारी से उन्होंने कहा था कि लोगों के बीच बैठो तो यहां तक कि लोगों पर दृष्टि डालने और संकेत करने और सलाम करने में भी समान व्यवहार करो। यह न हो कि शक्तिशाली लोगों के मन में अत्याचार का रूझान उत्पन्न होने लगे और निर्बल लोग उनके मुक़ाबिले में न्याय प्राप्ति की ओर से निराश हो जाएं।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शहादत सिर पर विषैली तलवार से हमला
वह काबे में पैदा हुए थे और सुबह की नमाज़ कूफा की मस्जिद में पढ़ा रहे थे कि इब्ने मुल्जिम नाम के दुष्ट व क्रूर व्यक्ति ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम के पावन सिर पर विषैली तलवार से प्राणघातक हमला किया जिसके कारण वे 21 रमज़ान को शहीद हो गये। हज़रत अली अलैहिस्सलाम 63 वर्षों तक जीवित रहे। इस दौरान उन्होंने हर कार्य केवल महान ईश्वर की प्रसन्नता के लिए किया। उनके जीवन में जब कोई ऐसा अवसर आया कि उन्हें महान ईश्वर की प्रसन्नता और किसी अन्य कार्य के बीच चुनना पड़ा तो उन्होंने महान ईश्वर की प्रसन्नता को चुना।
पवित्र रमज़ान महीने की 19वीं की रात को हज़रत अली अलैहिस्सलाम को पैग़म्बरे इस्लाम का वह कथन याद आया जिसमें उन्होंने हज़रत अली अलैहिस्सलाम से फरमाया था कि मैं देख रहा हूं कि पवित्र रमज़ान महीने की एक रात को तुम्हारी दाढ़ी तुम्हारे ख़ून से रंगीन होगी।"
हज़रत अली अलैहिस्सलाम पवित्र रमज़ान महीने की 19वीं रात को अपनी एक बेटी हज़रत उम्मे कुलसूम के घर पर आमंत्रित थे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपनी दाढ़ी अपने हाथ में ली और कुछ कहा हे पालनहार! तेरे प्रिय दूत पैग़म्बर के वादे का समय निकट है। हे पालनहार! मौत को अली पर मुबारक कर।" जब हज़रत अली अलैहिस्सलाम दरवाज़े की ओर बढ़े तो उनकी शाल दरवाज़े से लगकर खुल गयी। इसके बाद उन्होंने शाल को मज़बूती से पटके से बांध दिया और स्वयं से कहा अली! अपने पटके को मौत के लिए मज़बूती से बांध लो।"
जब क्रूर व दुष्ट व्यक्ति इब्ने मुल्जिम ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम के पावन सिर पर प्राणघातक आक्रमण किया और उसकी तलवार हज़रत अली अलैहिस्सलाम के सिर पर लगी तो उन्होंने ऊंची आवाज़ में चिल्लाकर कहा काबे की क़सम मैं कामयाब हो गया। उसके बाद जहां तलवार लगी थी वहां हज़रत अली अलैहिस्सलाम मेहराब की मिट्टी डालते और पवित्र कुरआन के सूरे ताहा की 55वीं आयत की तिलावत करते थे जिसमें महान ईश्वर कहता है” मैंने तुम्हें मिट्टी से पैदा किया है और मिट्टी की ओर ही पलटायेंगे और फिर मिट्टी से बाहर निकालेंगे।" उसी समय हज़रत अली अलैहिस्सलाम का ध्यान इस ओर गया कि उन पर हमला करने वाले को लोगों ने पकड़ लिया है और उसे मार रहे हैं तो हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने चिल्लाकर कहा उसे न मारो उसने मुझे मारा है उसका पक्ष मैं हूं। उसे छोड़ दो! उस समय भी हज़रत अली अलैहिस्सलाम को अपने सिर की चिंता नहीं थी जब उनका सिर खून से लथ-पथ था। जब उन्हें घर लाया गया तो उन्होंने वसीयत की जो पूरे मानव इतिहास के लिए पाठ है।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम के आह्वान पर बनी हाशिम की समस्त संतानें और हस्तियां उनके बिस्तर के पास जमा हो गयीं। जो भी हज़रत अली अलैहिस्सलाम के कमरे में दाखिल होता था वह अनियंत्रित होकर रोने लगता था परंतु हज़रत अली अलैहिस्सलाम सबको तसल्ली देते और धैर्य बधाते और फरमाते थे" धैर्य करो, दुःखी न हो, व्याकुल न हो। अगर तुम लोग यह जान जाओ कि मैं क्या सोच रहा हूं और क्या देख रहा हूं तो कदापि दुःखी नहीं होगे। जान लो कि मेरी पूरी आकांक्षा व कामना यह है कि जल्द से जल्द अपने स्वामी पैग़म्बर से मिल जाऊं। मैं चाहता हूं कि जल्द से जल्द अपनी कृपालु व त्यागी पत्नी ज़हरा से मुलाक़ात करूं।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम का सिर खून से लत-पथ था, पूरा शरीर ज्वर से जल रहा था। उस हालत में उन्होंने अपने बड़े सुपुत्र इमाम हसन अलैहिस्सलाम को बुलाया और फरमाया मेरे बेटे हसन! आगे आओ। इमाम हसन अलैहिस्सलाम आगे आये और अपने पिता हज़रत अली अलैहिस्सलाम के पास बैठ गये। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने आदेश दिया कि मेरे बक्से को लाया जाये। बक्सा लाया गया। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने बक्से को सबके सामने खोला। उसमें ज़ूल फेकार तलवार, पैग़म्बरे इस्लाम की पगड़ी और रिदा नाम का विशेष परिधान, एक पुस्तिका और एक पवित्र कुरआन जिसे स्वयं हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने एकत्रित किया था। एक- एक करके सबको इमाम हसन अलैहिस्सलाम के हवाले किया और उपस्थित लोगों को गवाही के लिए बुलाया और फरमाया" तुम सब गवाह रहना कि मेरे बाद हसन पैग़म्बरे इस्लाम के नाती मार्गदर्शक हैं। उसके बाद थोड़ा ठहरे और उसके पश्चात दोबारा इमाम हसन अलैहिस्सलाम को संबोधित किया और कहा मेरे बेटे! तू मेरे बाद इमाम होगा। अगर तू चाहना तो मेरे हत्यारे को माफ़ कर देना। इसे तुम खुद समझना और अगर तुम उसे दंडित करना चाहो तो इस बात का ध्यान रखना कि उसने मुझ पर एक ही वार किया था इसलिए तुम उस पर एक ही वार करना और प्रतिशोध को ईश्वरीय सीमा से हटकर नहीं होना चाहिये। उसके बाद हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने इमाम हसन अलैहिस्लाम से फरमाया बेटे! कलम और कागज़ लाओ और सबके सामने जो बोल रहा हूं उसे लिखो। इसके बाद इमाम हसन अलैहिस्सलाम कागज़ कलम लाये और बाप की वसीयत को लिखने के लिए तैयार हुए तो हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने इस प्रकार फरमाया उस ईश्वर के नाम से जो बहुत कृपालु व दयालु है यह वही चीज़ है जिसकी अली वसीयत करते हैं। उनकी पहली वसीयत यह है कि वह गवाही दे रहे हैं कि ईश्वर के अतिरिक्त दूसरा कोई पूज्य नहीं है। वह ईश्वर जिसका कोई समतुल्य नहीं है और यह भी गवाही दे रहा हूं कि मोहम्मद उसके बंदे व दूत हैं। ईश्वर ने उन्हें लोगों के मार्गदर्शन के लिए भेजा ताकि उनका धर्म दूसरे धर्मों पर छा जाये यद्यपि यह बात काफिरों को नापसंद ही क्यों न हो। उसके बाद हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहत हैं बेशक नमाज़, उपासना, जिन्दगी और मेरी मौत सब ईश्वर के हाथ में और उसी के लिए है। उसका कोई समतुल्य नहीं, मुझे इस कार्य का आदेश दिया गया है और मैं ईश्वर के समक्ष नतमस्तक हूं।“
हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने महान ईश्वर और पैग़म्बरे इस्लाम की गवाही देने के बाद समस्त अहलेबैत और उन समस्त लोगों को तकवे अर्थात ईश्वरीय भय, काम में कानून व नियम और एक दूसरे के साथ शांति व दोस्ती से रहने की सिफारिश की जिन लोगों तक यह वसीयत पहुंचे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम आगे अपनी वसीयत में कहते हैं” मैंने पैग़म्बरे इस्लाम से सुना है कि उन्होंने फरमाया है” लोगों के बीच सुधार करना कई साल के नमाज़ और रोज़े से बेहतर है।“
इसके बाद हज़रत अली अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि सामाजिक कार्यों में समस्त इंसानों को कानून के प्रति कटिबद्ध होना चाहिये। क्योंकि किसी समाज की सफलता की पहली शर्त सामाजिक नियमों के प्रति कटिबद्धता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम इसी प्रकार लोगों के बीच शांति व दोस्ती पर बल देते हैं और उसे इस्लामी समाज के लिए ज़रूरी मानते हैं। क्योंकि हज़रत अली अलैहिस्सलाम की दृष्टि में पवित्र कुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम की परम्परा समस्त मतभेदों के साथ सभी मुसलमानों के लिए शरण स्थली है जहां वे शरण लेते हैं और समस्त कबायल और गुट एक दूसरे के साथ एकत्रित होते हैं। अतः हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने जीवन के अंतिम क्षणों में एकता और लोगों के मध्य दोस्ती के लिए प्रयास को नमाज़ और रोज़ा से बेहतर बताते हैं।
इंसानों के जीवन में बहुत सी कमियां होती हैं जिनकी भरपाई लोगों के मध्य दोस्ती व प्रेम से की जा सकती है। इस मध्य अनाथ बच्चे सबसे अधिक प्रेम की आवश्यकता का आभास करते हैं। ये बच्चे मां या बाप की मृत्यु के कारण प्रेम के स्रोत से दूर हो गये हैं और वे हर चीज़ से अधिक प्रेम की आवश्यकता का आभास करते हैं। यह बात इतनी महत्वपूर्ण है कि महान व सर्वसमर्थ ईश्वर इसका उल्लेख पवित्र कुरआन के सूरे निसा की 36वीं आयत में माता- पिता के साथ भलाई के बाद करता है। महान ईश्वर कहता है” माता- पिता, परिजनों, अनाथों और मिसकिनों व बेसहारा लोगों के साथ अच्छाई करो।“
हज़रत अली अलैहिस्सलाम अनाथ बच्चों से बहुत प्रेम करते थे इसी कारण उन्हें अनाथों के पिता की उपाधि दी गयी है और वे अपनी वसीयत में अनाथों पर ध्यान देने पर बहुत बल देते हुए कहते हैं” ईश्वर के लिए ईश्वर के लिए एसा न होने पाये कि उनका कभी पेट भरे और कभी वे भूखे रहें।“
इसी प्रकार हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपनी वसीयत में एक अच्छे परिवार और समस्त इंसानों के मार्गदर्शक के रूप में पवित्र कुरआन पर ध्यान देने और उसकी शिक्षाओं पर अमल करने की सिफारिश की है। इसी प्रकार हज़रत अली अलैहिस्सलाम नमाज़ को धर्म का स्तंभ बताते हुए उसकी भी बहुत सिफारिश करते हैं। वह काबे में उपस्थित होने और हज अंजाम देने पर भी बहुत बल देते हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम फरमाते हैं” ईश्वर के लिए ईश्वर के लिए कुरआन के प्रति होशियार रहो कि दूसरे उस पर अमल करने में तुमसे आगे न निकल जायें। ईश्वर के लिए ईश्वर के लिए कि नमाज़ तुम्हारे धर्म का स्तंभ है और अपने पालनहार के घर के अधिकार का ध्यान रखो और जब तक हो उसे खाली न छोड़ो और अगर उसका सम्मान बाकी नहीं रखे तो तुम पर ईश्वरीय मुसीबतें नाज़िल होंगी।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने जीवन की अंतिम वसीयत में महान ईश्वर की राह में जान व माल से जेहाद करने की सिफारिश करते हैं और इसी प्रकार वे मोमिनों का अच्छे कार्यों को अंजाम देने और बुरे कार्यों से दूरी और आपस में दोस्ती, एकता व संबंध रखने का आह्वान करते हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने वसीयत कर लेने के बाद एक- एक पर दोबारा नज़र डाली और फरमाया ईश्वर तुम सबका और तुम्हारे परिवार की रक्षा करे और तुम्हारे पैग़म्बर का जो अधिकार तुम पर उसकी रक्षा करो अब मैं तुमसे विदा ले रहा हूं। तुम्हें ईश्वर के हवाले कर रहा हूं। तुम सब पर ईश्वर का सलाम और उसकी दया हो। उस समय हज़रत अली अलैहिस्सलाम के माथे पर पसीना आने लगा। अपने नेत्रों को बंद कर लिया और धीरे से कहा मैं गवाही देता हूं कि ईश्वर के अलावा कोई पूज्य नहीं उसका कोई समतुल्य नहीं और मैं गवाही देता हूं कि मोहम्मद उसके बंदे और उसके दूत हैं।“ इसके बाद हज़रत अली अलैहिस्सलाम इस नश्वर संसार से परलोक सिधार गये।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शहादत
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ने कहा कि हे अली, जिब्राईल ने मुझे तुम्हारे बारे में एक एसी सूचना दी है जो मेरे नेत्रों के लिए प्रकाश और हृदय के लिए आनंद बन गई है।
उन्होंने मुझसे कहाः हे मुहम्मद, ईश्वर ने कहा है कि मेरी ओर से मुहम्मद को सलाम कहों और उन्हें सूचित करो कि अली, मार्गदर्शन के अगुवा, पथभ्रष्टता के अंधकार का दीपक व विश्वासियों के लिए ईश्वरीय तर्क हैं। और मैंने अपनी महानता की सौगंध खाई है कि मैं उसे नरक की ओर न ले जाऊं जो अली से प्रेम करता हो और उनके व उनके पश्चात उनके उत्तराधिकारियों का आज्ञाकारी हो। आज उसी मार्गदर्शक के लिए हम सब शोकाकुल हैं। वह सर्वोत्तम और अनुदाहरणीय व्यक्तित्व जिसने संसार वासियों को अपनी महानता की ओर आकर्षित कर रखा था।
उस रात भी हज़रत अली अलैहिस्सलाम रोटी तथा खजूर की बोरी, निर्धनों और अनाथों के घरों ले गए। अन्तिम बोरी पहुंचाकर जब वे घर पहुंचे तो ईश्वर की उपासना की तैयारी में लग गए। "यनाबीउल मवद्दत" नामक पुस्तक में अल्लामा कुन्दूज़ी लिखते हैं कि शहादत की पूर्व रात्रि में हज़रत अली अलैहिस्सलाम आकाश की ओर बार-बार देखते और कहते थे कि ईश्वर की सौगंध मैं झूठ नहीं कहता और मुझसे झूठ नहीं बताया गया है। सच यह है कि यह वही रात है जिसका मुझको वचन दिया गया है।
भोर के धुंधलके में अज़ान की आवाज़ नगर के वातावरण में गूंज उठी। हज़रत अली अलैहिस्सलाम धीरे से उठे और मस्जिद की ओर बढ़ने लगे। जब वे मस्जिद में प्रविष्ठ हुए तो देखा कि इब्ने मल्जिम सो रहा है। आपने उसे जगाया और फिर वे मेहराब की ओर गए। वहां पर आपने नमाज़ आरंभ की। अल्लाहो अकबर अर्थात ईश्वर उससे बड़ा है कि उसकी प्रशंसा की जा सके। मस्जिद में उपस्थित लोग नमाज़ की सुव्यवस्थित तथा समान पक्तियों में हज़रत अली अलैहिस्सलाम के पीछे खड़े हो गए। हज़रत अली अलैहिस्सलाम के चेहेर की शान्ति एवं गंभीरता उस दिन उनके मन को चिन्तित कर रही थी।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम नमाज़ पढ़ते हुए सज्दे में गए। उनके पीछे खड़े नमाज़ियों ने भी सज्दा किया किंतु हज़रत अली अलैहिस्सलाम के ठीक पीछे खड़े उस पथभ्रष्ट ने ईश्वर के समक्ष सिर नहीं झुकाया जिसके मन में शैतान बसेरा किये हुए था। इब्ने मुल्जिम ने अपने वस्त्रों में छिपी तलावार को अचानक ही निकाला। शैतान उसके मन पर पूरी तरह नियंत्रण पा चुका था। दूसरी ओर अली अपने पालनहार की याद में डूबे हुए उसका गुणगान कर रहे थे। अचानक ही विष में बुझी तलवार ऊपर उठी और पूरी शक्ति से वह हज़रत अली अलैहिस्सलाम के सिर पर पड़ी तथा माथे तक उतर गई। पूरी मस्जिद का वातावरण हज़रत अली के इस वाक्य से गूंज उठा कि फ़ुज़्तो व रब्बिलकाबा अर्थात ईश्वर की सौगंध में सफल हो गया।
आकाश और धरती व्याकुल हो उठे। जिब्राईल की इस पुकार ने ब्रहमाण्ड को हिला दिया कि ईश्वर की सौगंध मार्गदर्शन के स्तंभ ढह गए और ईश्वरीय प्रेम व भय की निशानियां मिट गईं। उस रात अली के शोक में चांदनी रो रही थी, पानी में चन्द्रमा की छाया बेचैन थी, न्याय का लहू की बूंदों से भीग रहा था और मस्जिद का मेहराब आसुओं में डूब गया था।
कुछ ही क्षणों में वार करने वाले को पकड़ लिया गया और उसे इमाम के सामने लाया गया। इमाम अली अलैहिस्सलाम ने जब उसकी भयभीत सूरत देखी तो अपने सुपुत्र इमाम हसन से कहा, उसे अपने खाने-पीने की वस्तुएं दो। यदि मैं संसार से चला गया तो उससे मेरा प्रतिशोध लो अन्यथा मैं बेहतर समझता हूं कि उसके साथ क्या करूं और क्षमा करना मेरे लिए उत्तम है।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम के एक अन्य पुत्र मुहम्मद हनफ़िया कहते हैं कि इक्कीस रमज़ान की पूर्व रात्रि में मेरे पिता ने अपने बच्चों और घरवालों से विदा ली और शहादत से कुछ क्षण पूर्व यह कहा, मृत्यु मेरे लिए बिना बुलाया मेहमान या अपरिचित नहीं है। मेरा और मृत्यु की मिसाल उस प्यासे की मिसाल है जो एक लंबे समय के पश्चात पानी तक पहुंचता है या उसकी भांति है जिसे उसकी खोई हुई मूल्यवान वस्तु मिल जाए।
इक्कीस रमज़ान का सवेरा होने से पूर्व अली के प्रकाशमयी जीवन की दीपशिखा बुझ गई। वे अली जो अत्याचारों के विरोध और न्यायप्रेम का प्रतीक थे वे आध्यात्म व उपासना के सुन्दरतम क्षणों में अपने ईश्वर से जा मिले थे। अपने पिता के दफ़न के पश्चात इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने दुख भरी वाणी में कहा था कि बीती रात एक एसा महापुरूष इस संसार से चला गया जो पैग़म्बरे इस्लाम की छत्रछाया में धर्मयुद्ध करता रहा और इस्लाम की पताका उठाए रहा। मेरे पिता ने अपने पीछे कोई धन-संपत्त नहीं छोड़ी। परिवार के लिए केवल सात सौ दिरहम बचाए हैं।
सृष्टि की उत्तम रचना होने के कारण मनुष्य, विभिन्न विचारों र मतों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है तथा मनुष्य के ज्ञान का एक भाग मनुष्य की पहचान से विशेष है। अधिक्तर मतों में मनुष्य को एक सज्जन व प्रतिष्ठित प्राणी होने के नाते सृष्टि के मंच पर एक महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है परन्तु इस संबन्ध में इतिहास में एसे उदाहरण बहुत ही कम मिलते हैं जो प्रतिष्ठा व सम्मान के शिखर तक पहुंचे हो। हज़रत अली अलैहिस्सलाम, इतिहास के एसे ही गिने-चुने अनउदाहरणीय लोगों में सम्मिलित हैं। इतिहास ने उन्हें एक एसे महान व्यक्ति के रूप में विश्व के सामने प्रस्तुत किया जिसने अपने आप को पूर्णतया पहचाना और परिपूर्णता तथा महानता के शिखर तक पहुंचने में सफलता प्राप्त की। हज़रत अली का यह कथन इतिहास के पन्ने पर एक स्वर्णिम समृति के रूप में जगमगा रहा है कि ज्ञानी वह है जो अपने मूल्य को समझे और मनुष्य की अज्ञानता के लिए इतना ही पर्याप्त है कि वह स्वयं अपने ही मूल्य को न पहचाने।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम सदा ही कहा करते थे कि मेरी रचना केवल इसलिए नहीं की गई है कि चौपायों की भांति अच्छी खाद्य सामग्री मुझे अपने में व्यस्त कर ले या सांसारिक चमक-दमक की ओर मैं आकर्षित हो जाऊं और उसके जाल में फंस जाऊं। मानव जीवन का मूल्य अमर स्वर्ग के अतिरिक्त नहीं है अतः उसे सस्ते दामों पर न बेचें।
उन्होंने अपने अस्तित्व के विभिन्न आयामों को इस प्रकार से विकसित किया था कि साहस, लोगों के साथ सुव्यवहार, न्याय, पवित्रता व ईश्वरीय भय एवं उपासना की अन्तिम सीमा तक पहुंच गए। हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने जीवन के प्रत्येक चरण में इस बिंदु पर विशेष रूप से बल देते थे कि मनुष्य का आत्मसम्मान उसके अस्तित्व की वह महान विशेषता है जिसको कसी भी स्थिति में ठेस नहीं लगनी चाहिए अतः समाजों की राजनैतिक पद्धतियों एवं राजनेताओं के लिए यह आवश्यक है कि मानव सम्मान के मार्गों को समतल करे। उन्होंने अपने शासनकाल में एसा ही किया और आत्मसम्मान को मिटाने वाली बुराइयों जैसे चापलूसी और चाटुकारिता के विरूद्ध कड़ा संघर्ष किया। इमाम अली अलैहिस्सलाम अपने अधीन राज्यपालों को उपदेश एवं आदेश देते हुए कहते हैं कि अपने पास उपस्थित लोगों को एसा बनाओ कि तुम्हारी प्रशंसा में न लगे रहें और अकारण ही तुम्हें प्रसन्न न करें। एक दिन इमाम के भाषण के दौरान एक व्यक्ति उठा और वह उनकी प्रशंसा करने लगा। इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि मेरी प्रशंसा न करो ताकि मैं लोगों के जो अधिकार पूरे नहीं हुए हैं उन्हें पूरा कर सकूं और जो अनिवार्य कार्य मेरे ज़िम्मे है उन्हें कर सकूं।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम लोगों पर विश्वास करने को प्रतिष्ठा करने और मनुष्य के व्यक्तित्व को सम्मान देने का उच्चतम मार्ग समझते थे। उनकी दृष्टि में दरिद्रता से बढ़कर/आत्म-सम्मान को क्षति पहुंचाने वाली कोई चीज़ नहीं होती। वे कहते हैं कि दरिद्रता मनुष्य की सबसे बड़ी मौत है। यही कारण था कि अपने शासनकाल में जब बहुत बड़ा जनकोष उनके हाथ में था तब भी वे अरब की गर्मी में अपने हाथों से खजूर के बाग़ लगाने में व्यस्त रहते और उससे होने वाली आय को दरिद्रों में वितरित कर दिया करते थे ताकि समाज में दरिद्रता और दुख का अंत हो सके।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम सदैव ही पैग़म्बरे इस्लाम के साथ रहते थे और अपने मन व आत्मा को "वहिय" अर्थात ईश्वरीय आदेशों के मधुर संगीत से तृप्त करते थे। इसी स्थिति में ईमान अर्थात ईश्चर पर विश्वास और इरफ़ान अर्थात उसकी पहचान उनके अस्तित्व पर इतनी छा गई थी कि शेष सभी विशेषताओं पर पर्दा सा पड़ गया था। पैग़म्बरे इस्लाम (स) कहते थे कि यदि आकाश और धरती, तुला के एक पलड़े में रखे जाएं और अली को ईमान दूसरे पल्ड़े में तो निश्चित रूप से अली का ईमान उनसे बढ़कर होगा।
वे ईश्वर की गहरी पहचान और विशुद्ध मन के साथ ईश्वर की उपसना करते थे क्योंकि उपासनपा केवल कर्तव्य निहाने के लिए नहीं होती बल्क उसके माध्यम से बुद्धि में विकास और शारीरिक शक्तियों में संतुलन होता है। यही कारण है कि जो व्यक्ति पवित्र एवं विशुद्ध भावना के साथ उपासना करता है वह सफल हो जाता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि संसार के लोग दो प्रकार के होते हैं। एक गुट अपने आप को भौतिक इच्छाओं के लिए बेच देता है और स्वयं को तबाह कर लेता है तथा दूसर गुट स्वयं को ईश्वर के आज्ञापालन द्वारा ख़रीद लेता है और स्वयं को स्वतंत्र कर लेता है।
अली अलैहिस्सलाम साहस, संघर्ष तथा नेतृत्व का प्रतीक हैं। वे उन ईमानवालों का उदाहरण हैं कि जो क़ुरआन के शब्दों में ईश्वर का इन्कार करने वालों के लिए कड़े व्यवहार वाले और अपनों के लिए स्नेहमयी व दायुल हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम के अधीनस्थ लोग विशेषकर समाज के अनाथ बच्चे व असहाय लोग उन्हें एक दयालु पिता के रूप में पाते और उनसे अथाह प्रेम करते थे परन्तु ईश्वर का इन्कार करने वालों से युद्ध और अत्याचारग्रस्तों की सुरक्षा करते हुए रक्षा क्षेत्रों में उनके साहस और वीरता के सामने कोई टिक ही नहीं पाता था। ख़ैबर के युद्ध में जिस समय विभिन्न सेनापति ख़ैबर के क़िले का द्वार खोलने में विफल रहे तो अंत में पैग़म्बरे इस्लाम ने घोषणा की कि कल मैं इस्लामी सेना की पताका एसे व्यक्ति को दूंगा जिससे ईश्वर और उसका पैग़म्बर प्रेम करते हैं। दूसरे दिन लोगों ने यह देखा कि सेना की पताका हज़रत अली अलैहिस्सलाम को दी गयी और उन्होंने ख़ैबर के अजेय माने जाने वाले क़िले पर उन्होंने वियज प्राप्त कर ली।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम बड़ी ही कोमल प्रवृत्ति के स्वामी थे। उनकी यह विशेषता उनके कथन और व्यवहार दोनों में देखने को मिलती है। इस्लाम के आरम्भिक काल के एक युद्ध में अम्र बिन अब्दवुद नामक अनेकेश्वरवादियों का एक योद्धा, अपनी पूरी शक्ति के साथ हज़रत अली अलैहिस्सलाम के मुक़ाबले में आ गया। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने उसे पछाड़ दिया। यह देखकर वे उसकी छाती पर से उठ गए, कुछ दूर चले और फिर पलटकर उसकी हत्या कर दी।
वास्तव में हज़रत अली अलैहिस्सलाम साहस और निर्भीक्ता का प्रतीक होने के साथ ही साथ नैतिकता और शिष्टाचार का एक परिपूर्ण उदाहरण भी थे। वे ईश्वरीय कर्तव्य निभाते समय केवल ईश्वर को ही दृष्टि में रखते थे। यही कारण था कि अम्र बिन अब्दवुद की अपमान जनक कार्यवाही के पश्चात उन्होंने अपने क्रोध को पहले शांत किया फिर कर्तव्य निभाया ताकि उसकी हत्या अपनी व्यक्तिगत भावना के कारण न करें।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अद्धितीय जनतांत्रिक सरकार की स्थापना की। उनके शासन का आधार न्याय था। समाज में असत्य पर आधारित या किसी अनुचति कार्य को वे कभी भी सहन नहीं करते थे। उनके समाज में जनता की भूमिका ही मुख्य होती थी और वे कभी भी धनवानों और शक्तिशालियों पर जनहित को प्राथमिक्ता नहीं देते थे। जिस समय उनके भाई अक़ील ने जनक्रोष से अपने भाग से कुछ अधिक धन लेना चाहा तो हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने उन्हें रोक दिया। उन्होंने पास रखे दीपक की लौ अपने भाई के हाथों के निकट लाकर उन्हें नरक की आग के प्रति सचेत किया। वे न्याय बरतने को इतना आवश्यक मानते थे कि अपने शासन के एक कर्मचारी से उन्होंने कहा था कि लोगों के बीच बैठो तो यहां तक कि लोगों पर दृष्टि डालने और संकेत करने और सलाम करने में भी समान व्यवहार करो। यह न हो कि शक्तिशाली लोगों के मन में अत्याचार का रूझान उत्पन्न होने लगे और निर्बल लोग उनके मुक़ाबिले में न्याय प्राप्ति की ओर से निराश हो जाएं।