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ईरान के विदेश मंत्री ने तुर्किये के आंतरिक घटनाक्रम को इस देश का आंतरिक मुद्दा क़रार दिया है।

ईरान के विदेशमंत्री सैयद अब्बास इराक़ची और तुर्किये के विदेशमंत्री हकान फिदान ने सोमवार शाम को टेलीफोन पर बातचीत में क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय परिवर्तनों पर विचारों का आदान-प्रदान किया।

विदेश मंत्री सैयद अब्बास इराक़ची ने इस्लामी गणतंत्र ईरान की सैद्धांतिक स्थिति पर जोर दिया और कहा:

तुर्किये में घटनाक्रम इस देश का आंतरिक मामला है और हमें विश्वास है कि सक्षम तुर्क अधिकारी, तुर्क राष्ट्र के हितों के आधार पर इन परिवर्तनों को उचित तरीके से हल करेंगे।

युद्धविराम समझौतों के घोर उल्लंघन में ग़ज़ा और लेबनान के खिलाफ ज़ायोनी शासन के अपराधों और आक्रमणों की निंदा करते हुए, सैयद अब्बास इराक़ची ने मक़बूज़ा शासन के अपराधों को रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय, विशेष रूप से इस्लामी देशों और क्षेत्र से तत्काल कार्रवाई का आह्वान किया।

उन्होंने ग़ज़ा, वेस्ट बैंक और लेबनान के खिलाफ इजराइली शासन द्वारा अपराधों को फिर से शुरू करने के साथ यमन के खिलाफ अमेरिकी हवाई हमलों की भी निंदा की और मुस्लिम देशों के ख़िलाफ आक्रामकता को रोकने और क्षेत्र में असुरक्षा और अस्थिरता को बढ़ाने के लिए क्षेत्र के देशों के बीच अधिक सहयोग और समन्वय के महत्व पर जोर दिया।

इस टेलीफोन बातचीत में हकान फ़ीदान ने ईरान के विदेश मंत्री को नौरोज़ और नए साल की बधाई भी दी और क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों के लिए राजनयिक समाधान खोजने में मदद करने के लिए तुर्किए की तत्परता पर ज़ोर दिया।

ग़ज़ा की स्थिति की समीक्षा के लिए काहिरा में अरब-इस्लामी संपर्क समिति की हालिया बैठक में अपनी भागीदारी का जिक्र करते हुए, फीदान ने फिलिस्तीन के मज़लूम लोगों की स्थिति पर अधिक ध्यान देने के लिए इस्लामी देशों को ज़्यादा अहमियत देने पर बल दिया।

 

इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स के एयरोस्पेस फोर्स ने दर्जनों किलोमीटर लंबी भूमिगत सुरंगों के साथ अपने नए मिसाइल सिटी का अनावरण किया है।

मंगलवार को इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स एयरोस्पेस फोर्स ने अपने सैकड़ों मिसाइल शहरों में से एक में बड़ी संख्या में बैलिस्टिक मिसाइलों "ख़ैबर शिकन", "हाज क़ासिम", "एमाद", "सिज्जील", "क़द्र एच" और "क्रूज़ पावेह" का अनावरण किया।

इस अनावरण के मौक़े पर ईरान के चीफ़ आफ़ आर्मी स्टाफ मेजर जनरल मोहम्मद बाक़िरी और इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स के एयरोस्पेस फोर्सेज के कमांडर जनरल अमीर अली हाजी ज़ादेह मौजूद थे।

इस अंडर ग्राउंड मिसाइल सिटी की अपनी यात्रा के दौरान, मेजर जनरल बाक़िरी ने ईरानी सशस्त्र बलों की क्षमताओं के महत्व पर जोर देते हुए कहा: ईरानी सशस्त्र बल गंभीरता से प्रगति, पदोन्नति और सशक्तिकरण के अपने मार्ग को जारी रख रहा है।

उन्होंने कहा, ट्रू प्रामिस-1 और 2 के सफल ऑप्रेशन के बाद, हमें पता है कि दुश्मन को कहां नुकसान हुआ है और हम उन क्षेत्रों को और अधिक मजबूत करेंगे, हमारे फौलादी हाथ बहुत मज़बूत हैं।

मेजर जनरल बाक़िरी ने आगे कहा: हमारी मिसाइल शक्ति की वृद्धि की गति दुश्मन द्वारा कमज़ोरियों को ठीक करने की गति से कहीं अधिक है, और दुश्मन निश्चित रूप से पिछड़ जाएगा।

मीसाइल और फ़्लोटिंग सिटी विभिन्न आयामों में महत्वपूर्ण और सक्षम हैं, जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण हैं:

1- सामरिक सुरक्षा: ये अड्डे भूमिगत होने के कारण सुरक्षा की दृष्टि से बहुत मज़बूत हैं और इन्हें दुश्मन के हवाई और मिसाइल हमलों से बचाया जा सकता है।

2- गुप्त ऑपरेशन: यह सैन्य बलों को गुप्त और आश्चर्यजनक ऑपरेशन की क्षमता प्रदान करता है। यह गंभीर परिस्थितियों और एसमैट्रिक वॉर फ़ेयर में बहुत प्रभावी हो सकता है।

3- नौसैनिक अभियानों के लिए समर्थन: ईरान की भौगोलिक स्थिति और समुद्री खतरों को ध्यान में रखते हुए, ऐसे अड्डों के अस्तित्व से नौसैनिक और निगरानी आप्रेशन्ज़ के कार्यान्वयन में मदद मिल सकती है।

4- उन्नत उपकरण तैनात करने की क्षमता: इन अड्डों पर सैन्य उपकरण, ड्रोन, मिसाइल और छोटे जहाज तैनात करना संभव है।

5- लॉजिस्टिक इंफ्रास्ट्रक्चर: इन ठिकानों में सैन्य बलों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए रसद सुविधाएं शामिल हो सकती हैं, जिनमें हथियार डिपो, मरम्मत की दुकानें और नियंत्रण केंद्र शामिल हैं।

6- क्राइसिस मैनेजमेंट: संकट प्रबंधन क्षमता और विभिन्न खतरों पर त्वरित प्रतिक्रिया प्रदान करता है।

 

अमेरिका ने एक बार फिर यमन की संप्रभुता का उल्लंघन किया है, जो गाजा में इस्राइली शासन द्वारा जारी निरंतर अत्याचारों को बिना शर्त समर्थन देने की नीति का हिस्सा है।

अमेरिका ने एक बार फिर अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और संयुक्त राष्ट्र चार्टर को ताक पर रखते हुए गाज़ा में सियोनिस्ट शासन के निरंतर अपराधों का समर्थन करते हुए यमन पर हमला किया है। 

यमन में स्थित सूचना स्रोतों ने बताया कि अमेरिका के ताजा आक्रमण में उत्तरी यमन के सादा प्रांत के सहार क्षेत्र को निशाना बनाया गया। अमेरिकी आक्रमणकारी विमानों ने इस उत्तरी क्षेत्र पर दो बार बमबारी की है।

गाजा के मजलूम लोगों के प्रति यमन के सिद्धांतिक और मानवीय समर्थन, तथा सियोनिस्ट शासन के खिलाफ यमन सशस्त्र बलों की सफल कार्रवाइयों के जवाब में अमेरिका का यमन पर आक्रमण जारी है। 

 

बुधवार, 26 मार्च 2025 20:09

क़ुरआने मजीद और नारी

इस्लाम में नारी के विषय पर अध्धयन करने से पहले इस बात पर तवज्जो करना चाहिये कि इस्लाम ने इन बातों को उस समय पेश किया जब बाप अपनी बेटी को ज़िन्दा दफ़्न कर देता था और उस कुर्रता को अपने लिये इज़्ज़त और सम्मान समझता था। औरत दुनिया के हर समाज में बहुत बेक़ीमत प्राणी समझी जाती थी। औलाद माँ को बाप की मीरास में हासिल किया करती थी। लोग बड़ी आज़ादी से औरत का लेन देन करते थे और उसकी राय का कोई क़ीमत नही थी। हद यह है कि यूनान के फ़लासेफ़ा इस बात पर बहस कर रहे थे कि उसे इंसानों की एक क़िस्म क़रार दिया जाये या यह एक इंसान नुमा प्राणी है जिसे इस शक्ल व सूरत में इंसान के मुहब्बत करने के लिये पैदा किया गया है ताकि वह उससे हर तरह का फ़ायदा उठा सके वर्ना उसका इंसानियत से कोई ताअल्लुक़ नही है।

इस ज़माने में औरत की आज़ादी और उसको बराबरी का दर्जा दिये जाने का नारा और इस्लाम पर तरह तरह के इल्ज़ामात लगाने वाले इस सच्चाई को भूल जाते हैं कि औरतों के बारे में इस तरह की आदरनीय सोच और उसके सिलसिले में हुक़ुक़ का तसव्वुर भी इस्लाम ही का दिया हुआ है। इस्लाम ने औरत को ज़िल्लत की गहरी खाई से निकाल कर इज़्ज़त की बुलंदी पर न पहुचा दिया होता तो आज भी कोई उसके बारे में इस अंदाज़ में सोचने वाला न होता। यहूदीयत व ईसाईयत तो इस्लाम से पहले भी इन विषयों पर बहस किया करते थे उन्हे उस समय इस आज़ादी का ख़्याल क्यो नही आया और उन्होने उस ज़माने में औरत को बराबर का दर्जा दिये जाने का नारा क्यों नही लगाया यह आज औरत की अज़मत का ख़्याल कहाँ से आ गया और उसकी हमदर्दी का इस क़दर ज़ज़्बा कहाँ से आ गया?

वास्तव में यह इस्लाम के बारे में अहसान फ़रामोशी के अलावा कुछ नही है कि जिसने तीर चलाना सीखाना उसी को निशाना बना दिया और जिसने आज़ादी और हुक़ुक का नारा दिया उसी पर इल्ज़ामात लगा दिये। बात सिर्फ़ यह है कि जब दुनिया को आज़ादी का ख़्याल पैदा हुआ तो उसने यह ग़ौर करना शुरु किया कि आज़ादी की यह बात तो हमारे पुराने लक्ष्यों के ख़िलाफ़ है आज़ादी का यह ख़्याल तो इस बात की दावत देता है कि हर मसले में उसकी मर्ज़ी का ख़्याल रखा जाये और उस पर किसी तरह का दबाव न डाला जाये और उसके हुक़ुक़ का तक़ाज़ा यह है कि उसे मीरास में हिस्सा दिया जाये उसे जागीरदारी और व्यापार का पाटनर समझा जाये और यह हमारे तमाम घटिया, ज़लील और पुराने लक्ष्यों के ख़िलाफ़ है लिहाज़ा उन्होने उसी आज़ादी और हक़ के शब्द को बाक़ी रखते हुए अपने मतलब के लिये नया रास्ता चुना और यह ऐलान करना शुरु कर दिया कि औरत की आज़ादी का मतलब यह है कि वह जिसके साथ चाहे चली जाये और उसका दर्जा बराबर होने के मतलब यह है कि वह जितने लोगों से चाहे संबंध रखे। इससे ज़्यादा इस ज़माने के मर्दों को औरतों से कोई दिलचस्बी नही है। यह औरत को सत्ता की कुर्सी पर बैठाते हैं तो उसका कोई न कोई लक्ष्य होता है और उसके कुर्सी पर लाने में किसी न किसी साहिबे क़ुव्वत व जज़्बात का हाथ होता है और यही वजह है कि वह क़ौमों की मुखिया होने के बाद भी किसी न किसी मुखिया की हाँ में हाँ मिलाती रहती है और अंदर से किसी न किसी अहसासे कमतरी में मुब्तला रहती है। इस्लाम उसे साहिबे इख़्तियार देखना चाहता है लेकिन मर्दों का आला ए कार बन कर नही। वह उसे इख़्तियार व इंतेख़ाब देना चाहता है लेकिन अपनी शख़्सियत, हैसियत, इज़्ज़त और करामत का ख़ात्मा करने के बाद नही। उसकी निगाह में इस तरह के इख़्तियारात मर्दों को हासिल नही हैं तो औरतों को कहाँ से हो जायेगा जबकि उस की इज़्ज़त की क़ीमत मर्द से ज़्यादा है उसकी इज़्ज़त जाने के बाद दोबारा वापस नही आ सकती है जबकि मर्द के साथ ऐसी कोई परेशानी नही है।

इस्लाम मर्दों से भी यह मुतालेबा करता है कि वह जिन्सी तसकीन के लिये क़ानून का दामन न छोड़े और कोई ऐसा क़दम न उठाएँ जो उनकी इज़्ज़त व शराफ़त के ख़िलाफ़ हो इसी लिये उन तमाम औरतों की निशानदहीकर दी गई जिनसे जिन्सी ताअल्लुक़ात का जवाज़ नही है। उन तमाम सूरतों की तरफञ इशारा कर दिया गया जिनसे साबेक़ा रिश्ता मजरूह होता है और उन तमाम ताअल्लुक़ात को भी वाज़ेह कर दिया जिनके बाद दूसरा जिन्सी ताअल्लुक़ मुमकिन नही रह जाता। ऐसे मुकम्मल और मुरत्तब निज़ामें ज़िन्दगी के बारे में यह सोचना कि उसने एक तरफ़ा फ़ैसला किया है और औरतों के हक़ में नाइंसाफ़ी से काम लिया है ख़ुद उसके हक़ में नाइंसाफ़ी बल्कि अहसान फ़रामोशी है वर्ना उससे पहले उसी के साबेक़ा क़वानीन के अलावा कोई उस सिन्फ़ का पुरसाने हाल नही था और दुनिया की हर क़ौम में उसे ज़ुल्म का निशाना बना लिया गया था।

बुधवार, 26 मार्च 2025 20:07

ईश्वरीय आतिथ्य- 5

हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शहादत निकट है।

वह काबे में पैदा हुए थे और सुबह की नमाज़ कूफा की मस्जिद में पढ़ा रहे थे कि इब्ने मुल्जिम नाम के दुष्ट व क्रूर व्यक्ति ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम के पावन सिर पर विषैली तलवार से प्राणघातक हमला किया जिसके कारण वे 21 रमज़ान को शहीद हो गये। हज़रत अली अलैहिस्सलाम 63 वर्षों तक जीवित रहे। इस दौरान उन्होंने हर कार्य केवल महान ईश्वर की प्रसन्नता के लिए किया। उनके जीवन में जब कोई ऐसा अवसर आया कि उन्हें महान ईश्वर की प्रसन्नता और किसी अन्य कार्य के बीच चुनना पड़ा तो उन्होंने महान ईश्वर की प्रसन्नता को चुना।

पवित्र रमज़ान महीने की 19वीं की रात को हज़रत अली अलैहिस्सलाम को पैग़म्बरे इस्लाम का वह कथन याद आया जिसमें उन्होंने हज़रत अली अलैहिस्सलाम से फरमाया था कि मैं देख रहा हूं कि पवित्र रमज़ान महीने की एक रात को तुम्हारी दाढ़ी तुम्हारे ख़ून से रंगीन होगी।"

हज़रत अली अलैहिस्सलाम पवित्र रमज़ान महीने की 19वीं रात को अपनी एक बेटी हज़रत उम्मे कुलसूम के घर पर आमंत्रित थे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपनी दाढ़ी अपने हाथ में ली और कुछ कहा हे पालनहार! तेरे प्रिय दूत पैग़म्बर के वादे का समय निकट है। हे पालनहार! मौत को अली पर मुबारक कर।" जब हज़रत अली अलैहिस्सलाम दरवाज़े की ओर बढ़े तो उनकी शाल दरवाज़े से लगकर खुल गयी। इसके बाद उन्होंने शाल को मज़बूती से पटके से बांध दिया और स्वयं से कहा अली! अपने पटके को मौत के लिए मज़बूती से बांध लो।"

जब क्रूर व दुष्ट व्यक्ति इब्ने मुल्जिम ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम के पावन सिर पर प्राणघातक आक्रमण किया और उसकी तलवार हज़रत अली अलैहिस्सलाम के सिर पर लगी तो उन्होंने ऊंची आवाज़ में चिल्लाकर कहा काबे की क़सम मैं कामयाब हो गया। उसके बाद जहां तलवार लगी थी वहां हज़रत अली अलैहिस्सलाम मेहराब की मिट्टी डालते और पवित्र कुरआन के सूरे ताहा की 55वीं आयत की तिलावत करते थे जिसमें महान ईश्वर कहता है” मैंने तुम्हें मिट्टी से पैदा किया है और मिट्टी की ओर ही पलटायेंगे और फिर मिट्टी से बाहर निकालेंगे।" उसी समय हज़रत अली अलैहिस्सलाम का ध्यान इस ओर गया कि उन पर हमला करने वाले को लोगों ने पकड़ लिया है और उसे मार रहे हैं तो हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने चिल्लाकर कहा उसे न मारो उसने मुझे मारा है उसका पक्ष मैं हूं। उसे छोड़ दो! उस समय भी हज़रत अली अलैहिस्सलाम को अपने सिर की चिंता नहीं थी जब उनका सिर खून से लथ-पथ था। जब उन्हें घर लाया गया तो उन्होंने वसीयत की जो पूरे मानव इतिहास के लिए पाठ है।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम के आह्वान पर बनी हाशिम की समस्त संतानें और हस्तियां उनके बिस्तर के पास जमा हो गयीं। जो भी हज़रत अली अलैहिस्सलाम के कमरे में दाखिल होता था वह अनियंत्रित होकर रोने लगता था परंतु हज़रत अली अलैहिस्सलाम सबको तसल्ली देते और धैर्य बधाते और फरमाते थे" धैर्य करो, दुःखी न हो, व्याकुल न हो। अगर तुम लोग यह जान जाओ कि मैं क्या सोच रहा हूं और क्या देख रहा हूं तो कदापि दुःखी नहीं होगे। जान लो कि मेरी पूरी आकांक्षा व कामना यह है कि जल्द से जल्द अपने स्वामी पैग़म्बर से मिल जाऊं। मैं चाहता हूं कि जल्द से जल्द अपनी कृपालु व त्यागी पत्नी ज़हरा से मुलाक़ात करूं।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम का सिर खून से लत-पथ था, पूरा शरीर ज्वर से जल रहा था। उस हालत में उन्होंने अपने बड़े सुपुत्र इमाम हसन अलैहिस्सलाम को बुलाया और फरमाया मेरे बेटे हसन! आगे आओ। इमाम हसन अलैहिस्सलाम आगे आये और अपने पिता हज़रत अली अलैहिस्सलाम के पास बैठ गये। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने आदेश दिया कि मेरे बक्से को लाया जाये। बक्सा लाया गया। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने बक्से को सबके सामने खोला। उसमें ज़ूल फेकार तलवार, पैग़म्बरे इस्लाम की पगड़ी और रिदा नाम का विशेष परिधान, एक पुस्तिका और एक पवित्र कुरआन जिसे स्वयं हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने एकत्रित किया था। एक- एक करके सबको इमाम हसन अलैहिस्सलाम के हवाले किया और उपस्थित लोगों को गवाही के लिए बुलाया और फरमाया" तुम सब गवाह रहना कि मेरे बाद हसन पैग़म्बरे इस्लाम के नाती मार्गदर्शक हैं। उसके बाद थोड़ा ठहरे और उसके पश्चात दोबारा इमाम हसन अलैहिस्सलाम को संबोधित किया और कहा मेरे बेटे! तू मेरे बाद इमाम होगा। अगर तू चाहना तो मेरे हत्यारे को माफ़ कर देना। इसे तुम खुद समझना और अगर तुम उसे दंडित करना चाहो तो इस बात का ध्यान रखना कि उसने मुझ पर एक ही वार किया था इसलिए तुम उस पर एक ही वार करना और प्रतिशोध को ईश्वरीय सीमा से हटकर नहीं होना चाहिये। उसके बाद हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने इमाम हसन अलैहिस्लाम से फरमाया बेटे! कलम और कागज़ लाओ और सबके सामने जो बोल रहा हूं उसे लिखो। इसके बाद इमाम हसन अलैहिस्सलाम कागज़ कलम लाये और बाप की वसीयत को लिखने के लिए तैयार हुए तो हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने इस प्रकार फरमाया उस ईश्वर के नाम से जो बहुत कृपालु व दयालु है यह वही चीज़ है जिसकी अली वसीयत करते हैं। उनकी पहली वसीयत यह है कि वह गवाही दे रहे हैं कि ईश्वर के अतिरिक्त दूसरा कोई पूज्य नहीं है। वह ईश्वर जिसका कोई समतुल्य नहीं है और यह भी गवाही दे रहा हूं कि मोहम्मद उसके बंदे व दूत हैं। ईश्वर ने उन्हें लोगों के मार्गदर्शन के लिए भेजा ताकि उनका धर्म दूसरे धर्मों पर छा जाये यद्यपि यह बात काफिरों को नापसंद ही क्यों न हो। उसके बाद हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहत हैं बेशक नमाज़, उपासना, जिन्दगी और मेरी मौत सब ईश्वर के हाथ में और उसी के लिए है। उसका कोई समतुल्य नहीं, मुझे इस कार्य का आदेश दिया गया है और मैं ईश्वर के समक्ष नतमस्तक हूं।“

 हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने महान ईश्वर और पैग़म्बरे इस्लाम की गवाही देने के बाद समस्त अहलेबैत और उन समस्त लोगों को तकवे अर्थात ईश्वरीय भय, काम में कानून व नियम और एक दूसरे के साथ शांति व दोस्ती से रहने की सिफारिश की जिन लोगों तक यह वसीयत पहुंचे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम आगे अपनी वसीयत में कहते हैं” मैंने पैग़म्बरे इस्लाम से सुना है कि उन्होंने फरमाया है”  लोगों के बीच सुधार करना कई साल के नमाज़ और रोज़े से बेहतर है।“

 इसके बाद हज़रत अली अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि सामाजिक कार्यों में समस्त इंसानों को कानून के प्रति कटिबद्ध होना चाहिये। क्योंकि किसी समाज की सफलता की पहली शर्त सामाजिक नियमों के प्रति कटिबद्धता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम इसी प्रकार लोगों के बीच शांति व दोस्ती पर बल देते हैं और उसे इस्लामी समाज के लिए ज़रूरी मानते हैं। क्योंकि हज़रत अली अलैहिस्सलाम की दृष्टि में पवित्र कुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम की परम्परा समस्त मतभेदों के साथ सभी मुसलमानों के लिए शरण स्थली है जहां वे शरण लेते हैं और समस्त कबायल और गुट एक दूसरे के साथ एकत्रित होते हैं। अतः हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने जीवन के अंतिम क्षणों में एकता और लोगों के मध्य दोस्ती के लिए प्रयास को नमाज़ और रोज़ा से बेहतर बताते हैं।

 इंसानों के जीवन में बहुत सी कमियां होती हैं जिनकी भरपाई लोगों के मध्य दोस्ती व प्रेम से की जा सकती है। इस मध्य अनाथ बच्चे सबसे अधिक प्रेम की आवश्यकता का आभास करते हैं। ये बच्चे मां या बाप की मृत्यु के कारण प्रेम के स्रोत से दूर हो गये हैं और वे हर चीज़ से अधिक प्रेम की आवश्यकता का आभास करते हैं। यह बात इतनी महत्वपूर्ण है कि महान व सर्वसमर्थ ईश्वर इसका उल्लेख पवित्र कुरआन के सूरे निसा की 36वीं आयत में माता- पिता के साथ भलाई के बाद करता है। महान ईश्वर कहता है” माता- पिता, परिजनों, अनाथों और मिसकिनों व बेसहारा लोगों के साथ अच्छाई करो।“

 हज़रत अली अलैहिस्सलाम अनाथ बच्चों से बहुत प्रेम करते थे इसी कारण उन्हें अनाथों के पिता की उपाधि दी गयी है और वे अपनी वसीयत में अनाथों पर ध्यान देने पर बहुत बल देते हुए कहते हैं” ईश्वर के लिए ईश्वर के लिए एसा न होने पाये कि उनका कभी पेट भरे और कभी वे भूखे रहें।“

 इसी प्रकार हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपनी वसीयत में एक अच्छे परिवार और समस्त इंसानों के मार्गदर्शक के रूप में पवित्र कुरआन पर ध्यान देने और उसकी शिक्षाओं पर अमल करने की सिफारिश की है। इसी प्रकार हज़रत अली अलैहिस्सलाम नमाज़ को धर्म का स्तंभ बताते हुए उसकी भी बहुत सिफारिश करते हैं। वह काबे में उपस्थित होने और हज अंजाम देने पर भी बहुत बल देते हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम फरमाते हैं” ईश्वर के लिए ईश्वर के लिए कुरआन के प्रति होशियार रहो कि दूसरे उस पर अमल करने में तुमसे आगे न निकल जायें। ईश्वर के लिए ईश्वर के लिए कि नमाज़ तुम्हारे धर्म का स्तंभ है और अपने पालनहार के घर के अधिकार का ध्यान रखो और जब तक हो उसे खाली न छोड़ो और अगर उसका सम्मान बाकी नहीं रखे तो तुम पर ईश्वरीय मुसीबतें नाज़िल होंगी।

 हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने जीवन की अंतिम वसीयत में महान ईश्वर की राह में जान व माल से जेहाद करने की सिफारिश करते हैं और इसी प्रकार वे मोमिनों का अच्छे कार्यों को अंजाम देने और बुरे कार्यों से दूरी और आपस में दोस्ती, एकता व संबंध रखने का आह्वान करते हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने वसीयत कर लेने के बाद एक- एक पर दोबारा नज़र डाली और फरमाया ईश्वर तुम सबका और तुम्हारे परिवार की रक्षा करे और तुम्हारे पैग़म्बर का जो अधिकार तुम पर उसकी रक्षा करो अब मैं तुमसे विदा ले रहा हूं। तुम्हें ईश्वर के हवाले कर रहा हूं। तुम सब पर ईश्वर का सलाम और उसकी दया हो। उस समय हज़रत अली अलैहिस्सलाम के माथे पर पसीना आने लगा। अपने नेत्रों को बंद कर लिया और धीरे से कहा मैं गवाही देता हूं कि ईश्वर के अलावा कोई पूज्य नहीं उसका कोई समतुल्य नहीं और मैं गवाही देता हूं कि मोहम्मद उसके बंदे और उसके दूत हैं।“ इसके बाद हज़रत अली अलैहिस्सलाम इस नश्वर संसार से परलोक सिधार गये।

 

 

आज मस्जिदों का वातावरण कुछ बदला हुआ है।

जवान मस्जिद की सफाई कर रहे हैं। मस्जिद में बिछे फर्शों को धुल रहे हैं उसकी दीवारों आदि पर जमी धूलों की सफाई कर रहे हैं। वास्तव में दिलों की सफाई करके बड़ी मेहमानी की तैयारी की जा रही है। मानो मस्जिदों की सफाई करके स्वयं को महान ईश्वर की मेहमानी के लिए तैयार किया जा रहा है। इस नश्वर संसार में यह एक प्रकार की छोटी सी चेतावनी है और हम यह सोचें कि एक दिन हमें अपने पालनहार की ओर पलट कर जाना है उसी जगह पलट कर जाना है जब हम मिट्टी से अधिक कुछ नहीं थे और महान व सर्वसमर्थ ईश्वर ने हमें जीवन प्रदान किया।

इमामे जमाअत की आवाज़ सुनकर सभी नमाज के लिए खड़े हो जाते हैं और नमाज़ की पंक्ति को सही करते हैं और पूरी निष्ठा के साथ महान ईश्वर को याद करते हैं। अल्लाहो अकबर की आवाज़ सुनाई देती है जिसका अर्थ होता है ईश्वर महान है यानी ईश्वर उससे भी बड़ा व महान है जिसकी विशेषता बयान की जाये। इस वाक्य की पुनरावृत्ति दिलों को मज़बूत बनाती है और यह बताती है कि केवल उस पर भरोसा करना चाहिये और उससे मदद मांगना चाहिये। नमाज़ खत्म हो जाने के बाद मस्जिद में धोरे -धीरे शोर होने लगता है, दस्तरखान बिछने लगता है, कोई कहता है आज रमज़ान तो नहीं है क्यों इफ्तारी देना चाहते हैं? उसके जवाब में एक जवान कहता है" आज बहुत से लोगों ने पवित्र रमज़ान महीने के स्वागत में रोज़ा रखा है। आज शाबान महीने की अंतिम तारीख़ है। पैग़म्बरे इस्लाम ने फरमाया है कि शाबान मेरा महीना है और रमज़ान ईश्वर का महीना है तो जो मेरे महीने में रोज़ा रखेगा मैं प्रलय के दिन उसकी शिफाअत करूंगा यानी उसे क्षमा करने के लिए ईश्वर से विनती करूंगा और जो रमज़ान महीने में रोज़ा रखेगा वह नरक की आग से सुरक्षित रहेगा।“

जो लोग महान ईश्वर की मेहमानी से लाभांवित होना चाहते हैं और उसकी प्रतीक्षा में रहते हैं वे शाबान महीने में रोज़ा रखकर रमज़ान महीने का स्वागत करते हैं।

इसी मध्य मस्जिद के लाउड स्पीकर से रमज़ान महीने का चांद हो जाने की घोषणा की जाती है। लोग पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों पर दुरुद व सलाम भेजते हैं। उसके बाद इमामे जमाअत सभी को रमज़ान महीने के आगमन की मुबारकबाद पेश करता है और मस्जिद में मौजूद लोग दुआओं की किताब “सहीफये सज्जादिया” की 44वीं दुआ के एक भाग को पढ़ते हैं जिसका अनुवाद है” समस्त प्रशंसा उस पालनहार व ईश्वर से विशेष है जिसने अपने महीने, रमज़ान को पथप्रदर्शन का माध्यम करार दिया है, रमज़ान का महीना रोज़ा रखने, नतमस्तक होने, उपासना करने, पापों से पवित्र होने और रातों को जागने का महीना है। रमज़ान वह महीना है जिसमें कुरआन नाज़िल हुआ है ताकि वह लोगों का पथ-प्रदर्शन करे और सत्य- असत्य के बीच स्पष्ट तर्क व प्रमाण को पेश करे”

रमज़ान के महीने पर सलाम हो, रमज़ान का महीना उस जल की भांति है जो बुराइयों और पापों की आग की लपटों को बुझा देता है। सलाम हो इस्लाम व ईश्वरीय आदेशों के समक्ष नतमस्तक होने के महीने पर, सलाम हो पवित्रता के महीने पर, सलाम हो उस महीने पर जो हर प्रकार के दोष व कमी से शुद्ध करता है, सलाम हो रातों को जागने और महान ईश्वर की उपासना करने वाले महीने पर, सलाम हो उस महीने पर जिसकी अनगिनत आध्यात्मिकता से बहुत से लोग लाभ उठाते हैं और उसके विशुद्ध व अनमोल क्षण, ज्ञान की प्यास बुझाने के लिए लोगों को आमंत्रित करते हैं। यह चरित्र निर्माण का बेहतरीन महीना है, यह इंसान बनने और मानवता को परिपूर्णता का मार्ग का तय करने का बेहतरीन महीना है। यह वह महीना है जिसमें इंसान हर दूसरे महीने की अपेक्षा बेहतर ढंग से स्वंय को सद्गुणों से सुसज्जित कर सकता है। इसी प्रकार यह वह महीना है जिसमें इंसान बुराइयों से दूर रहने का अभ्यास दूसरे महीनों की अपेक्षा बेहतर ढंग से कर सकता है।

महान व सर्वसमर्थ ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम को सबके लिए आदर्श बनाया है। जब वह रमज़ान महीने के चांद को देखते थे तो अपना पवित्र चेहरा किबले की ओर कर लेते थे और आसमान की ओर दुआ के लिए हाथ उठाते थे और प्रार्थना करते थेः हे पालनहार! इस महीने को हमारे लिए शांति, सुरक्षा, स्वास्थ्य, सलामती, रोज़ी को अधिक करने वाला और समस्याओं को दूर करने वाला करार दे। हे पालनहार! हमें इस महीने में रोज़ा रखने, उपासना करने और कुरआन की तिलावत करने की शक्ति प्रदान कर और इस महीने में हमें सेहत व सलामती प्रदान कर”

जब रमज़ान का पवित्र महीना आता था तो पैग़म्बरे इस्लाम बहुत अधिक प्रसन्न होते थे और रमज़ान के पवित्र महीने में नाज़िल होने वाली अनवरत बरकतों व अनुकंपाओं का स्वागत करते और उनसे लाभ उठाते और महान ईश्वर के उस आदेश पर अमल करते थे जिसमें वह कहता है” हे पैग़म्बर कह दीजिये कि ईश्वर की कृपा और दया की वजह से मोमिनों को प्रसन्न होना चाहिये और यह हर उस चीज़ से बेहतर है जिसे वे एकत्रित करते हैं।“

पैग़म्बरे इस्लाम रमज़ान के पवित्र महीने में हर दूसरे महीने से अधिक उपासना की तैयारी करते थे। इस प्रकार रमज़ान के पवित्र महीने का स्वागत करते थे कि अच्छा कार्य करना उनकी प्रवृत्ति बन जाये और पूरे उत्साह के साथ रमज़ान के महीने में महान ईश्वर की उपासना करते थे।

पैग़म्बरे इस्लाम रमज़ान के पवित्र महीने के आने से पहले कुछ महत्वपूर्ण कार्य अंजाम देते थे और यह कार्य उपासना करने में पैग़म्बरे इस्लाम की अधिक सहायता करते थे।

रमज़ान के पवित्र महीने में अच्छे ढंग से रोज़ा रखने के लिए पैग़म्बरे इस्लाम शाबान महीने में ही गैर अनिवार्य रोज़े रखते थे और अपने साथियों व अनुयाइयों को रमज़ान महीने में अधिक उपासना करने के लिए कहते थे। इस उद्देश्य को व्यवहारिक बनाने के लिए लोगों को पवित्र रमज़ान महीने की विशेषता बयान करते और इस महीने में किये जाने वाले कर्म के अधिक पुण्य पर ध्यान देते थे। शाबान महीने के अंतिम खुत्बे में पैग़म्बरे इस्लाम बल देकर कहते थे” हे लोगों! बरकत, दया, कृपा और प्रायश्चित का ईश्वरीय महीना आ गया है। यह एसा महीना है जो ईश्वर के निकट समस्त महीनों से श्रेष्ठ है। इसके दिन बेहतरीन दिन और इसकी रातें बेहतरीन रातें और उसके क्षण बेहतरीन क्षण हैं। यह वह महीना है जिसमें तुम्हें ईश्वरीय मेहमानी के लिए आमंत्रित किया गया है, ईश्वरीय सम्मान और प्रतिष्ठा प्रदान की गयी है, तुम्हारी सांसें ईश्वरीय गुणगान व तसबीह हैं, इसमें तुम्हारा सोना उपासना और तुम्हारे कर्म स्वीकार और तुम्हारी दुआयें कबूल हैं। इस महीने की भूख- प्यास से प्रलय के दिन की भूख- प्यास को याद करो, गरीबों, निर्धनों और वंचितों को दान दो, अपने से बड़ों का सम्मान करो और छोटों पर दया करो और सगे-संबंधियों के साथ भलाई करो। अपने पापों से प्रायश्चित करो, नमाज़ के समय अपने हाथों को दुआ के लिए उठाओ कि वह बेहतरीन क्षण है और ईश्वर अपने बंदों को दयादृष्टि से देखता है।“

इस आधार पर कहा जा सकता है कि रमज़ान के पवित्र महीने का रोज़ा और दूसरी उपासनायें केवल शारीरिक गतिविधियां नहीं हैं बल्कि उनका स्रोत बुद्धि और हृदय है। इसी कारण अगर कोई अमल अंजाम दिया जाये और उसका आधार बुद्धि और दिल न हो तो वह अमल प्राणहीन व परंपरागत है जिसने हमें स्वयं में व्यस्त कर रखा है और उसका कोई लाभ व प्रभाव नहीं है। अगर हम यह चाहते हैं कि हमारी शारीरिक गतिविधियों का आधार बुद्धि व दिल हो तो हमें चाहिये कि सोच- विचार करके अपनी बुद्धि से काम लें और अपने अमल को अर्थपूर्ण बनायें।

इस समय जीवन का आदर्श बदल गया है। दिलों में प्रेम, मोहब्बत और निष्ठा कम हो गयी है और जीवन में उपेक्षा की भावना का बोल- बाला हो गया है। ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई के शब्दों में हर साल रमज़ान महीने का आध्यात्मिक समय स्वर्ग के टुकड़े की भांति आता है और ईश्वर उसे भौतिक संसार के जलते हुए नरक में दाखिल करता है और हमें इस बात का अवसर देता है कि हम इस महीने में स्वयं को स्वर्ग में दाखिल करें। कुछ लोग इस महीने की बरकत से इसी तीस दिन में स्वर्ग में दाखिल हो जाते हैं, कुछ लोग इस 30 दिन की बरकत से पूरे साल और कुछ इस महीने की बरकत से पूरे जीवन लाभ उठाते और स्वर्ग में दाखिल होते हैं जबकि कुछ इस महीने से लाभ ही नहीं उठा पाते और वे सामान्य ढंग से इस महीने गुज़र जाते हैं जो खेद और घाटे की बात है।"

इस प्रकार अगर इंसान रोज़ा रखता है, भूख- प्यास सहन करता है, ईश्वर की राह में खर्च करता है और दूसरों से प्रेम करता है तो यह महान ईश्वर की प्रसन्नता है जो हर चीज़ से श्रेष्ठ है और इंसान महान ईश्वर का सामिप्य प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त करता है यहां तक कि स्वयं इंसान और महान ईश्वर के बीच में किसी प्रकार की कोई रुकावट व दूरी नहीं रह जाती है और यह महान ईश्वर से प्रेम करने वालों का स्थान है।

हदीसे कुद्सी में आया है कि रोज़ा रखने और कम खाने के परिणाम में इंसान को तत्वदर्शिता प्राप्त होती है और तत्वदर्शिता भी ज्ञान व विश्वास का कारण बनती है। जब जिस बंदे को विश्वास हो जाता है तो वह इस बात से नहीं डरता है कि दिन कठिनाई में गुजरेंगे या आराम में और यह प्रसन्नता का स्थान है। महान ईश्वर ने कहा है कि जो मेरी प्रसन्नता के अनुसार व्यवहार करेगा मैं उसे तीन विशेषताएं प्रदान करूंगा। प्रथम आभार प्रकट करने की विशेषता जिसके साथ अज्ञानता नहीं होगी। दूसरे एसी याद जिसे भुलाया नहीं जा सकता और तीसरे उसे एसी दोस्ती प्रदान करूंगा कि वह मेरी दोस्ती पर मेरी किसी रचना की दोस्ती को प्राथमिकता नहीं देगा। जब वह मुझे दोस्त रखेगा तो मैं भी उसे दोस्त रखूंगा। उसके प्रेम को अपने बंदों के दिलों में डाल दूंगा और उसके दिल की आंखों को खोल दूंगा जिससे वह मेरी महानता को देखेगा और अपनी सृष्टि के ज्ञान को उससे नहीं छिपाऊंगा और रात के अंधरे और दिन के प्रकाश में उससे बात करूंगा

पवित्र रमज़ान महीने के आगमन पर हम इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम की दुआ के एक भाग को पढ़ते हैं जिसमें इमाम महान ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहते हैं" पालनहार! मोहम्मद और उनके परिजनों पर दुरूद व सलाम भेज और रमज़ान महीने की विशेषता और उसके सम्मान को पहचानने की मुझ पर कृपा कर"

इस्लामी दुनिया को फिलिस्तीनी मुद्दे की संवेदनशीलता और महत्व को समझना चाहिए। यदि इस्लामी दुनिया कुद्स मुद्दे पर एकजुट नहीं होती है, तो उनके पास एकता का इससे बेहतर कोई केंद्र नहीं होगा।

पिछली आधी सदी से इजरायल लगातार फिलिस्तीन में दमन और बर्बरता का बर्बर कृत्य कर रहा है, लेकिन सभी तथाकथित मानवतावादी देश, मानवाधिकार संगठन और उत्पीड़ितों के ध्वजधारक मूक दर्शक बने हुए हैं। सच तो यह है कि अगर इस्लामी दुनिया ने एकजुट होकर इजरायल के अत्याचारों और आक्रमण का विरोध करने की कोशिश की होती तो आज स्थिति यहा तक नहीं पहुंचती। हालाँकि, इस्लामी दुनिया की उदासीनता, औपनिवेशिक शक्तियों की चापलूसी और मुस्लिम उम्मा के सामान्य हितों की अनदेखी करते हुए ज़ायोनी षड्यंत्रों और योजनाओं को पूरा करने में उनके सहयोग ने क़िबला अव्वल, उम्मा के हितों और उत्पीड़ित फ़िलिस्तीनी लोगों के अधिकारों को दुश्मन के हाथों में नीलाम कर दिया है। ‘सैंचुरी डील’ के लिए तत्परता और इसके कार्यान्वयन में कई इस्लामी देशों की भागीदारी तथा पिछले वर्ष संयुक्त अरब अमीरात द्वारा इजरायल के साथ संबंधों के विस्तार ने यह साबित कर दिया है कि इस्लामी दुनिया ‘कुद्स’ की वसूली के लिए गंभीर नहीं है। यह एक ऐसा राष्ट्र है जो दुश्मन के इरादों की सफलता में भागीदार होता है और मुस्लिम लाशों के ढेर पर बैठकर अपने हितों के लिए समझौता करता है। अन्यथा, यदि मुस्लिम देश एकजुट हो जाएं और यरूशलम को पुनः प्राप्त करने के लिए संघर्ष करें, तो यह असंभव है कि यरूशलम ज़ायोनी शक्तियों के कब्जे से मुक्त न हो। उत्पीड़ित फिलिस्तीनियों के मौखिक समर्थन और प्रच्छन्न ज़ायोनीवाद ने इजरायल को एक पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया है। आज यमन, सीरिया, इराक और फिलिस्तीन में जो अकल्पनीय परिस्थितियां हैं, वे दुश्मन की साजिशों और योजनाओं का परिणाम कम, बल्कि इस्लामी दुनिया की गुलामी और उदासीनता का परिणाम अधिक हैं।

इस्लामी जगत की उदासीनता अपनी जगह है, लेकिन कुछ मानवाधिकार संगठन फिलिस्तीन में जारी इजरायली आक्रमण और मानवता के विरुद्ध अपराधों पर शोध रिपोर्ट प्रस्तुत कर इजरायली अपराधों को उजागर करते रहे हैं। इन रिपोर्टों को लागू करना संभव नहीं हो सका है, लेकिन इनके महत्व को नकारा नहीं जा सकता। इन रिपोर्टों के संदर्भ में, दुनिया को कुछ हद तक फिलिस्तीनी लोगों के उत्पीड़न और इजरायल की बर्बरता के बारे में पता चला है। न्यूयॉर्क स्थित मानवाधिकार संगठन 'ह्यूमन राइट्स वॉच' ने अपनी ताजा रिपोर्ट में एक बार फिर इजरायल का क्रूर चेहरा उजागर किया है। ह्यूमन राइट्स वॉच ने अपनी 213 पृष्ठों की रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि इजरायल अपनी सीमाओं के भीतर तथा अपने नियंत्रण वाले क्षेत्रों में फिलिस्तीनियों के साथ जो व्यवहार कर रहा है, वह अंतर्राष्ट्रीय अपराध की श्रेणी में आता है। यदि हम इजराइल में अरब अल्पसंख्यक नागरिकों तथा गाजा पट्टी और पश्चिमी तट के स्थानीय निवासियों की कुल जनसंख्या को देखें तो यह संख्या इजराइल की आधी जनसंख्या के बराबर है। हालाँकि, अपनी नीतियों के माध्यम से, इज़रायली राज्य न केवल अपने अरब अल्पसंख्यक नागरिकों को, बल्कि गाजा पट्टी और पश्चिमी तट के फिलिस्तीनियों को भी यहूदी नागरिकों को प्राप्त बुनियादी अधिकारों से व्यवस्थित रूप से वंचित कर रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इजरायल जो नीतियां लागू कर रहा है, जो अंतरराष्ट्रीय अपराध की श्रेणी में आती हैं, वे मानवता के खिलाफ गंभीर अपराध की प्रकृति की हैं। मानवाधिकार संगठन ने रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि इस रिपोर्ट का उद्देश्य इजरायल और रंगभेद युग के दक्षिण अफ्रीकी राज्य की तुलना करना नहीं है, बल्कि यह निर्धारित करना है कि क्या विशिष्ट इजरायली नीतियों और कार्यों को मौजूदा अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत नस्लीय भेदभाव माना जा सकता है। इजराइल ने ह्यूमन राइट्स वॉच की इस तथ्य-खोज रिपोर्ट को खारिज कर दिया है, लेकिन फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने इसका गर्मजोशी से स्वागत किया है। उन्होंने रिपोर्ट के बिंदुओं की प्रशंसा करते हुए कहा, “इस समय अंतरराष्ट्रीय समुदाय (फिलिस्तीन और इजरायल के बीच) द्वारा हस्तक्षेप की तत्काल आवश्यकता है ताकि सभी देश, उनके संस्थान और संगठन यह सुनिश्चित करें कि वे किसी भी तरह से इन युद्ध अपराधों में न तो सहायता करें और न ही इनका हिस्सा बनें और न ही मानवता और फिलिस्तीन के खिलाफ किए जा रहे अपराधों का हिस्सा बनें।” इजराइल ने रिपोर्ट को एकतरफा और पक्षपातपूर्ण बताते हुए कहा कि मानवाधिकारों के लिए सक्रिय यह संगठन कई वर्षों से इजराइल का बार-बार बहिष्कार करने में सक्रिय रहा है। "काश, ऐसी रिपोर्ट किसी मुस्लिम देश के सरकारी या गैर-सरकारी संगठन द्वारा जारी की जाती, ताकि दुनिया फिलिस्तीनी लोगों के उत्पीड़न को करीब से देख पाती और इजरायल की आक्रामकता और युद्ध अपराधों की सच्चाई सामने आती। लेकिन मुस्लिम देशों में इतना गर्व और सम्मान नहीं है कि वे इजरायल का समर्थन कर सकें। वे गुलामी के बंधन को तोड़कर उसकी क्रूरता और बर्बरता के खिलाफ मजबूती से खड़े हो सकते हैं।

यह तथ्य कि न्यूयॉर्क स्थित ह्यूमन राइट्स वॉच, जिसने येरुशलम को इजरायल की राजधानी के रूप में मान्यता देने के लिए हर संभव प्रयास किया है, की रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी गई है, कोई छोटी बात नहीं है। पिछले आधी सदी में फिलिस्तीनियों के उत्पीड़न और इज़रायली आतंकवाद पर मुस्लिम देशों के मानवीय संगठनों द्वारा कितनी जांच रिपोर्टें प्रस्तुत की गई हैं, यह बहुत चिंता का विषय है। फिलिस्तीनी इंतिफादा के प्रति इस्लामी दुनिया की उदासीनता दर्शाती है कि वे ‘कुद्स मुद्दे’ के प्रति कितनी चिंता रखते हैं। अधिकांश मुस्लिम देश फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में नहीं देखना चाहते हैं। कुछ देशों ने खुले तौर पर और कुछ ने गुप्त रूप से इजरायल को पूर्ण राज्य के रूप में मान्यता दी है। ‘सेंचुरी डील’ के तहत वे यरूशलम और पूरे पश्चिमी तट को इजरायल को सौंपने के लिए तैयार हैं। यदि फिलिस्तीनी लोगों का प्रतिरोध और ईरानी नेतृत्व की प्रतिरोध की भावना न होती तो संभवतः आज फिलिस्तीन पूरी तरह से एक इजरायली राज्य में तब्दील हो चुका होता। फिलिस्तीनी लोगों का प्रतिरोध और फिलिस्तीनी लोगों के खिलाफ इजरायली आक्रमण का प्रतिरोध 

पीएलओ का प्रतिरोध ईरानी नेतृत्व का ऋणी है, जिसने अशांत परिस्थितियों में भी उत्पीड़ितों को समर्थन देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। यदि यरुशलम का मुद्दा आज वैश्विक स्तर पर इतना महत्वपूर्ण हो गया है, तो यह इमाम खुमैनी और सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह खामेनेई की विद्वत्तापूर्ण अंतर्दृष्टि और विचारशील राजनीति के कारण है। मुझे उम्मीद है कि अन्य मुस्लिम देश भी यरुशलम को पुनः प्राप्त करने के लिए संघर्ष करेंगे और उत्पीड़ित फिलिस्तीनी लोगों की सहायता करना अपना धार्मिक और राष्ट्रीय कर्तव्य समझेंगे, ताकि इस्लामी दुनिया को ज़ायोनी षड्यंत्रों के कहर से बचाया जा सके।

वर्तमान स्थिति यह है कि इज़रायली सेना हर दिन फिलिस्तीनी लोगों पर अत्याचार करती रहती है। उन्हें पहले क़िबला में नमाज़ पढ़ने की भी इजाज़त नहीं है। उनकी महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों के साथ बलात्कार किया जाता है। युवाओं को बिना किसी अपराध के गिरफ्तार कर लिया जाता है और मरने के लिए जेलों में डाल दिया जाता है या फिर मौके पर ही गोली मार दी जाती है। इजराइल फिलिस्तीनी लोगों के सभी अधिकार और शक्तियां अपने हाथों में लेना चाहता है। ‘शताब्दी के समझौते’ के कार्यान्वयन से फिलिस्तीनियों को बुनियादी अधिकारों से वंचित होना पड़ेगा, जिसके तहत उन्हें नागरिक सुरक्षा के लिए अपनी पुलिस और सीमा सुरक्षा के लिए अपनी सेना रखने का अधिकार नहीं होगा। नगर पालिकाओं से लेकर रक्षा मुद्दों तक हर चीज़ की ज़िम्मेदारी इज़राइल को सौंपी जाएगी। इसलिए इस्लामी जगत को फिलिस्तीनी मुद्दे की संवेदनशीलता और उसके महत्व को समझना चाहिए। अगर इस्लामी दुनिया कुद्स मुद्दे पर एकजुट नहीं होती है तो उनके पास एकता का इससे बेहतर कोई केंद्र नहीं है।

लेखक: आदिल फ़राज़

 

आयतुल्लाह मुस्तफा उलेमा ने कहा: रोज़े के प्रभाव कभी-कभी नग्न आंखों से दिखाई नहीं देते हैं, लेकिन आध्यात्मिक पहलू में इसकी वास्तविकता स्पष्ट होती है।

मजलिसे खुबरेगान रहबरी के सदस्य आयतुल्लाह मुस्तफा उलेमा ने क्रांति के सर्वोच्च नेता के कार्यालय, क़ोम में इमाम खुमैनी (र) हुसैनिया में आयोजित रमजान नैतिक पाठ को संबोधित किया।

अपने भाषण के दौरान, उन्होंने पवित्र कुरान की आयत का उल्लेख किया, "रोज़ा तुम्हारे लिए वाजिब है, जैसा कि तुमसे पहले के लोगों के लिए वाजिब था" (बक़रा: 183), और कहा: रोज़ा न केवल मुसलमानों के लिए वाजिब है, बल्कि सभी पूर्ववर्ती राष्ट्रों पर भी फ़र्ज़ था, जो मानव आत्मा और शरीर पर इस इबादत के गहन प्रभावों को दर्शाता है।

मजलिसे खुबरेगान रहबरी के एक सदस्य ने कहा: रोज़े के प्रभाव अक्सर नंगी आंखों से दिखाई नहीं देते, लेकिन आध्यात्मिक पहलू में इसकी वास्तविकता स्पष्ट होती है।

उन्होंने कहा: स्वर्गीय अल्लामा तबातबाई और स्वर्गीय हसनज़ादा अमोली ने रोज़े को बुद्धि और ज्ञान की कुंजी माना था।

हौज़ा ए इल्मिया के शिक्षक ने अमीरूल मोअमिनिन हज़रत अली (अ) की एक हदीस का हवाला देते हुए कहा, "बुद्धि एक पेड़ है जो दिल में बढ़ता है"  बुद्धि वह प्रकाश है जो उपवास व्यक्ति के दिल में पैदा करता है और उसकी जीभ को ईश्वरीय शब्द से सुशोभित करता है।

उन्होंने कहा: जिस प्रकार इमाम खुमैनी (र) और इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता, (दामा ज़िल्लोहुल आली) ने इलाही हिकमत के माध्यम से इस्लामी क्रांति का मार्गदर्शन किया, उसी प्रकार ईरानी राष्ट्र को भी ईश्वर के प्रति अंतर्दृष्टि और आज्ञाकारिता के साथ शहीदों के मार्ग पर चलना चाहिए।

 

वेनेजुएला सरकार ने एक बयान में कराकस से तेल और गैस खरीदने वाले देशों के खिलाफ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प की नई धमकियों की निंदा करते हुए जोर दिया: वेनेजुएला का रास्ता साफ़ है और कुछ भी नहीं और कोई भी हमें नहीं रोक सकता।

एक बयान में, वेनेज़ुएला सरकार ने कराकस से तेल और गैस खरीदने वाले देशों के खिलाफ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प की नई धमकियों पर प्रतिक्रिया व्यक्त की है।

वेनेजुएला सरकार के बयान में कहा गया है: तेल और गैस के क्षेत्र में काराकस के साथ व्यापार करने वाले किसी भी देश पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने का ट्रम्प का फ़ैसला, एक मनमाना और अवैध है जो हताशा से लिया गया था और इस तथ्य को उजागर करता है कि वेनेजुएला के खिलाफ पहले लगाए गए सभी प्रतिबंध निर्णायक विफलता की निशानी हैं।

वेनेजुएला सरकार इस बयान में कहती है: वाशिंगटन ने हमारे लोगों को घुटनों पर लाने की उम्मीद से, वेनेजुएला के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं, जो स्पष्ट रूप से अंतरराष्ट्रीय व्यापार कानूनों का उल्लंघन हैं।

वेनेजुएला सरकार के बयान में कहा गया है: वे नाकाम रहे क्योंकि वेनेजुएला एक स्वतंत्र देश है जिसके लोगों ने सम्मान के साथ विरोध किया है, और दूसरी ओर, हम एक ऐसे दौर में हैं जहां दुनिया के देशों पर अब किसी भी प्रकार की आर्थिक तानाशाही का बोझ नहीं पड़ेगा।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने पहले घोषणा की थी कि वह 2  अप्रैल से वेनेजुएला पर सेकेन्ड्री टैरिफ लगाएंगे, और अन्य देशों को धमकी दी कि अगर वे वेनेजुएला से तेल और गैस खरीदते हैं तो उन्हें अमेरिका को 25 प्रतिशत टैक्स देना पड़ेगा।

सोमवार को, डोनल्ड ट्रम्प ने अपने सोशल नेटवर्क जिसे ट्रुथ सोशल के नाम से जाना जाता है, पर फिर से घोषणा की कि वाशिंगटन वेनेजुएला पर सेकेन्ड्री टैरिफ लगाएगा।

 

यमनी सशस्त्र बलों के प्रवक्ता ने तेल अवीव के बेन-गुरिन हवाई अड्डे और अमेरिकी विमानवाहक पोत हैरी ट्रूमैन पर एक कामयाब मिसाइल हमले की सूचना दी है।

यमन के सशस्त्र बलों के प्रवक्ता ब्रिगेडियर जनरल यहिया सरी ने मंगलवार सुबह एक बयान में एलान किया कि यमनी सशस्त्र बलों ने मिसाइल जुल्फिक़ार और फिलिस्तीन-2 प्रकार की बैलिस्टिक मिसाइलों से तेल अवीव में बेन-गुरिन हवाई अड्डे को निशाना बनाया।

उन्होंने आगे कहा: एक अन्य ऑपरेशन में, यमन की नौसेना, मिसाइल और ड्रोन यूनिट्स ने अमेरिकी हैरी ट्रूमैन एयर क्राफ़्ट कैरियर और कई अन्य जहाजों पर क्रूज मिसाइलों और ड्रोन से हमला किया।

श्री यहिया सरी ने कहा: लाल सागर में पिछले 24 घंटों में अमेरिकी हमलावर जहाज़ों पर यह दूसरा हमला था जो कई घंटों तक चला।

यमन के सशस्त्र बलों के प्रवक्ता ने ग़ज़ा पट्टी पर अतिक्रमण समाप्त होने और इस क्षेत्र की नाकाबंदी हटने तक ज़ायोनी शासन से संबंधित जहाजों के मार्ग को रोकने और मक़बूज़ा क्षेत्रों के अंदर तक हमले करने के लिए इस देश के अभियानों को जारी रखने पर ज़ोर दिया है।

 अमेरिकी हमले में यमन का कैंसर अस्पताल पूरी तरह तबाह

 

इस बीच, यमन के सादा प्रांत में कैंसर के इलाज का विशेष अस्पताल अमेरिकी युद्धक विमानों के हमले में पूरी तरह नष्ट हो गया। इस अस्पताल पर भी छह दिन पहले अमेरिकी युद्धक विमानों ने हमला किया था।

उत्तरी यमन में सादा प्रांत के मानवाधिकार कार्यालय ने कल सोमवार को घोषणा की कि इस हमले में अस्पताल के पूरी तरह नष्ट होने के अलावा कई नागरिक भी घायल हुए हैं।

 यमन की सर्वोच्च परिषद के सचिव: हम फ़िलिस्तीन के साथ किए गये वादे से जुड़े हैं

 इन हमलों के बाद यमन की सर्वोच्च राजनीतिक परिषद के सचिव यासिर अल-हूरी ने मंगलवार सुबह इर्ना से बातचीत में कहा: यमन का राष्ट्र, नेता और सशस्त्र बल, फ़िलिस्तीनी राष्ट्र और फिलिस्तीनी प्रतिरोध के साथ किए गए वादों पर क़ायम हैं।

यासिर अल-हूरी ने कहा: यमनी राष्ट्र मज़लूम फिलिस्तीनी राष्ट्र के नरसंहार का दर्शक नहीं बन सकता है और अन्य अरब देशों की तरह, फिलिस्तीन के समर्थन में बेकार बयानों से संतुष्ट नहीं हो सकता है। उन्होंने कहा: यमन की सैन्य क्षमताएं और सुविधाएं, दिन-प्रतिदिन प्रगति और विकास कर रही हैं, और अमेरिकी हमलों का इस क्षमता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है।

इस यमनी अधिकारी ने कहा: फ़िलिस्तीन के मक़बूज़ा क्षेत्रों में ज़ायोनी शासन के ठिकानों पर प्रतिदिन होने वाले हमले और लाल सागर में अमेरिकी एयर क्राफ़्ट कैरियर से जंग में यमनी सशस्त्र बलों की उच्च तत्परता और क्षमता को दर्शाता है।

 तेल अवीव में एमरजेंसी सायरन बज उठा

 ज़ायोनी मीडिया ने यमन की ओर से मक़बूज़ा फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों की ओर रॉकेट दागे जाने की ख़बरें भी जारी की हैं। इसके बाद, तेल अवीव सहित मक़बूज़ा फिलिस्तीनी क्षेत्रों के बड़े क्षेत्रों में ख़तरे का सायरन बजने लगा।